Dampatya jivan yani ki Vivah in Hindi Love Stories by Sonia Gupta books and stories PDF | दाम्पत्य जीवन, यानि की विवाह

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दाम्पत्य जीवन, यानि की विवाह

Sonia Gupta

sonia.4840@gmail.com

लेख : प्रेम विवाह

आज के बदलते हुए इस समाज में शायद बहुत कुछ कहीं खो गया है, किसी भी दृष्टिकोण से देख लीजिये; आचरण, सभ्याचार, संस्कृति, शिक्षा, व्यापार, सभी इस कद्र बदल गये हैं, कि कईं बार स्वयं ही यह सोचकर मन में सवाल उठता है “ क्या हम खुद भी इसी समाज का हिस्सा हैं “?

दाम्पत्य जीवन, यानि की विवाह, संसार में सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता माना जाता है, जिससे ही यह संसार आगे विकसित होता है ! आज की नवयुवा पीढ़ी ने इस “विवाह” शब्द को भी शायद काफी गम्भीर रूप दे दिया है ! अक्सर देखा जाता है कि आजकल के समय में “प्रेम विवाह” का दौर आ गया है ! जबकि पुरानी सभ्यता को गौर से यदि स्मरण किया जाए तो “अरेंज्ड विवाह” को ही म्हत्त्ता दी जाती थी ! आज के युग की सन्तान शायद स्वयं की ख़ुशी को अधिक मायने समझती है ! बहुत बार माता पिता के खिलाफ जाकर “प्रेम विवाह” जैसा कदम उठाया जाता है ! माता पिता से बंधन तोड़ते हुए भी शायद सोचते नहीं आजकल के नवयुवा और नवयुवतियां ! और कईं बार माँ बाप खुद से समझोता कर अपनी सन्तान की ख़ुशी देख उनके प्रेम विवाह के निर्णय को रजामंदी दे देते हैं !

“प्रेम” कहने को ईश्वर की इबादत माना जाता है, जिसको पाकर शायद इस जीवन के सभी कष्ट एक किनारे लग जाते हैं ! किसी भी बंधन के सफल होने हेतु सबसे अहम गुण “प्रेम” और “ विश्वास” की डोर होते हैं ! यदि ये दोनों रहें तो शायद किसी भी अनुकूल से अनुकूल परिस्थिति का सामना हर शक्स कर सकता है ! इस बात से कतई मुख नहीं मोड़ा जा सकता कि “प्रेम विवाह” वास्तव में एक बेमिसाल उदाहरण साबित हो सकता है ! दो जीवन साथी एक दूसरे की आदतों से, मन के भावों से पहले से परिचित होते हैं, तो शायद अलग वातावरण में ढलने में उन्हें समय नहीं लगता और बड़ी सहजता से हर विपरीत परिस्थियों को भी सुलझा लेते हैं वो !परन्तु एक विचित्र प्रश्न, जो आजकल के आचरण के अनुसार मन में उत्त्पन होता है, वह यह है कि क्या यह परम्परा आजकल सफल सिद्ध हो रही है ? प्रेम विवाह करने के उपरांत भी ९०% यह बंधन असफल साबित हो रहा है ? क्यूँ आखिर ? क्या वजह है इस बदलाव की? क्यूँ विवाहिक जीवन की नींव इतनी टूट चुकी है आज ? एक समय था जब रिश्तों को जान जे बढ़कर समझा जाता था, और निभाया जाता था ! पति- पत्नि का बंधन एक सबसे अलग ही बंधन है, जिसमें हर गम, हर ख़ुशी, सिमटी होती है ! दोस्ती से ज्यादा बढकर होता है यह रिश्ता !

पुराने समय में न तो मोबाइल की सुविधा थी, न ही आज कल की भांति टेलीफ़ोन हर जगह पर उपलब्ध थे! परिवार के बड़े सदस्य स्वयं ही निर्णय ले लेते थे और, दो अनजानों को एक विवाहिक बंधन में बाँध देते थे ! और वो रिश्ता वाक्य में पवित्र सात जन्मों जैसा बन जाता था ! परन्तु आजकल का हाल क्या है? लड़का और लड़की दोनों की रजामंदी से विवाह तय किया जाता है ! घंटों घंटों आपस में मोबाइल या टेलीफोन के जरिये बात भी हो जाती है ! पर फिर भी क्यूँ आपसी मन का मेलजोल नहीं हो पाता ? शायद इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण है :सहनशीलता का आभाव ! एक दूसरे को पहले से जानते हुए भी जब नजदीक रहकर जीवन व्यतीत करने लगते हैं दो लोग, तो अपना गौरव और अहंकार बीच में आ जाता है, जिससे हर बात में बवाल खड़ा हो जाता है..हर छोटी सी बात काली रात्रि की भांति इतनी बड़ी बनने लगती है मानो कि खुद को ही कोसने लगते हैं दो जन; कि क्यूँ किया प्रेम इक दूजे से ? क्यूँ बनाया ऐसा बंधन ? और इस सब का परिणाम होता है..अशांति और तलाक की ओर बढ़ते कदम ! सात जन्मों का बंधन कहलाने वाला नाता शायद आज सात दिन भी मुश्किल से चल पाता है !

यदि प्रेम विवाह करने के बाद भी परिणाम इन “तलाक”, “अशांति” या “ आत्महत्या” जैसे भयंकर लफ्ज़ ही बनते हैं तो क्या फायदा अपने मन की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का ?

विवाह के दोनों ही पक्षों में; चाहे वह “ प्रेम विवाह” हो या “अरेंज्ड विवाह”; दो परिवार भी साथ जुड़े होते हैं ! और परिणाम जो भी होता है, उसका खामियाजा माँ बाप को भी भुगतना पड़ता है बाद में ! दूसरा विवाह करना भी क्या कोई आसान बात है ? पर यह समाज जीने नहीं देता किसी कुँवारी कन्या को या पुरुष को ! और दुसरे विवाह हेतु अक्सर लोग मान ही जाते हैं ! परन्तु क्या यह निश्चित है कि अगली बार विवाहिक जीवन सुखी ही मिलेगा किसी को ? कहीं फिर से तो एक समझोता ही नहीं बन कर रह जाएगा यह विवाह ?

इतने सारे उठते हैं इस मन में प्रश्न

इतनी सारी उलझनों में घिरा ये मन

कैसे सुलझाएं हम ये मन की उलझन

कैसा बनता जा रहा है आज जीवन !!

कुछ भी हो, इस विषय को लेकर मेरे मन में कईं विचार उठते हैं, और कईं निष्कर्ष भी निकलते हैं !

  • प्रेम और विश्वास की डोर में बंधा बंधन हमेशा कामयाब होता है और कभी आसानी से टूट नहीं सकता ! यदि प्रेम विवाह किया जाये और बिना किसी अभिमान, अहम, और असहनशीलता से उसको निभाया जाये, तो इससे बड़ी सौगात और क्या होगी ?
  • यदि प्रेम करने के बाद भी रिश्ता इतना कमजोर हो जाये कि निभाना ही मुश्किल हो, तो क्या फायदा ऐसे बंधन को विवाह का नाम देने का ! इससे स्वयं की भावनाओं को भी ठेस पहुंचती है ! इससे बेहतर तो है बड़ों की मर्जी से तय किये रिश्ते में बंधिये, जिससे कोई गलती हुई भी तो बड़े सम्भाल लेंगे !
  • अपनी सोच और विचारों को यदि सकारात्मक रूप दिया जाये तो प्रेम विवाह अवश्य एक बेमिसाल उदाहरण सिद्ध हो सकता है !
  • इन सारी समस्यायों का एक ही हल नजर आता है मुझे : समर्पण, सहनशीलता, और प्रेम से किसी भी बंधन को निभाएं, वो बेहतर ही होगा ! ईश्वर की बनाई कोई भी रचना इस जग में बुरी नहीं; बुरा है तो उसको देखने का नजरिया ! यदि दो जन आपस में थोड़ा सा प्रयास कर लें तो शायद यह समस्या उत्त्पन ही न हो ! माता पिता को भी चाहिए कि किसी दबाव में आकर अपनी सन्तान का विवाह तय न करें, अन्यथा परिणाम साथ में उनको भी भुगतना पड़ता है ! यह एक गम्भीर विषय अवश्य है, परन्तु इतना भी नहीं जितना आजकल के बदलते हुए समाज ने बना दिया है !

    यदि मन में हो इक आशा तो, मरुथल भी सागर बन जाए
    यदि मन में हो अभिलाषा तो, जहर अमृत गागर बन जाए
    तुमने तो पाई यह काया……..क्यूं हर पल रोते रहते तुम
    यदि मन में हो नेक इरादा तो, माटी भी आगर बन जाए !

    प्रेम विवाह का बंधन जैसे भी बना हो, दो जनों में प्रेम होना आवश्यक है, विश्वास होना जरूरी है ! इन दोनों के बिना जीवन की गाड़ी कभी चलनी सम्भव नहीं !

    प्रेम किया तो निभाना भी सीखो, बिन इसके जीवन कैसे चलेगा

    प्रेम करके भी निभाया न तुमने, फिर प्रेम को कोई कैसे समझेगा !

    प्रेम इबादत है उस उपरवाले की, करो मत बेकदरी तुम इसकी

    प्रेम पिरोओगे जो हर बंधन में, हिय में वो अमृत बन बरसेगा !

    अपने इस छोटे से लेखन के माध्यम से मैं यही कहना चाहूंगी, कि वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता ! यदि आज का वक्त , हमारे रिश्तों की परिभाषा को बदलने का प्रयास कर रहा है, तो हमें ही कुछ ऐसा प्रयास करना होगा जिससे, वो सुनहरा वक्त भी आए जब वो स्वयं हमारे विश्वासपूर्ण स्वभाव के आगे झुक जाए ! “विवाह” जैसे पवित्र बंधन को एक मजाक न बनाया जाए, इसके नाम को एक बनावटी रूप न दिया जाए!मुस्कुराते, हंसते, आपस में एक स्नेह और विश्वास की डोर से एक ऐसा बंधन बनाओ, जिससे ईश्वर भी उस बंधन को सात जन्मों तक तोड़ न सकें !

    समझौता ही करना है तुमको यदि, तो क्यूँ न खुद से कर डालो

    “विवाह” शब्द का मतलब खास, इसको कोई और रूप में न ढालो

    बिना दाम्पत्य के जीवन अधूरा, न जलाओ चिता इस बंधन की

    प्रेम और विशवास का प्रतीक है, मन में घृणा व वहम न पालो

    क्या हुआ जो वक्त का रुख बदला, तुम उसका रुख बदल डालो

    हो भी गया जो मन मुटाव कभी भी, उन सब बलाओं को टालो

    ऐसा बनाओ बंधन ये अपना तुम, ईश्वर भी देख, करे नमन तुम्हें

    मजबूत बने ये बंधन इतना तुम्हारा, एक जन्म को सात कर डालो !!!

    डॉ सोनिया

    सर्वाधिकार सुरक्षित !

    चित्र: स्वरचित

    परिचय:मैं डॉ सोनिया (बी.डी.एस; ऍम.डी.एस) चंडीगढ़ के समीप,डेराबस्सी शहर में रहने वाली हूँ! चिकित्सक होने के साथ साथ लिखना मेरा शौंक है! २००५ में पहली बार मैंने कुछ लिखने की कोशिश में अपनी कलम उठाई थी और, आगे ही आगे लिखने का सफर चलता रहा! कुछ कविताएँ हरियाणा की पत्रिका “हरिगंधा में प्रकाशित हुई! मेरी हाल ही में दो काव्य रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं! मैं अंग्रेजी में भी कविताएँ लिखती हूँ, और बहुत पत्रिकाओं, संग्रहों में प्रकाशित भी हुई! मेरे तीन अंग्रेजी और तीन हिंदी के काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होने वाले हैं! कवयित्री होने के साथ साथ मुझे चित्रकारी, गायिकी, सिलाई, कढाई, बुनाई, का भी हुनर प्राप्त है! मेरे जीवन की अनुकूल परिस्थितयों ने मुझे इन सब कलाओं का अस्तित्व प्रदान किया! कहते हैं,”इरादे नेक हों तो सपने भी साकार होते हैं, अगर सच्ची लग्न हो तो तूफान भी पार होते हैं”..अपनी लिखी इन्हीं पंक्तियों ने मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया आगे बढने के लिए ! मेरा हर कार्य मेरे ईश्वर, मेरे माता पिता को समर्पित है, जिनके आशीष से मैं आज इस मुकाम तक पहुंची हूँ ! आशा है मेरी कलम से तराशे शब्द थोड़े बहुत पसंद अवश्य आएँगे सभी को !

    नाम: डॉ सोनिया गुप्ता

    शिक्षा: दंत चिकित्सक (बी.डी.एस; ऍम.डी. एस)

    प्रकाशित पुस्तकें: “जिंदगी गुलज़ार है”, “उम्मीद का दीया” (काव्य संग्रह)

    सांझा काव्य संग्रह : “भारत की प्रतिभाशाली कवियत्रियाँ”, “ प्रेम काव्य सागर”, साहित्य सागर”, “अमलताश के शतदल”

    अन्य रचनाएँ: देश, विदेश की अनेक पत्रिकाओं, समाचार पत्रों में प्रकाशित लेख, कहानी, कविताएँ (हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में)

    सम्मान: नारी गौरव सम्मान , प्रेम सागर सम्मान, साहित्य गौरव सम्मान (घोषित)

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