Raham in Hindi Motivational Stories by Prashant Salunke books and stories PDF | रहम

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रहम

लेखक : प्रशांत सुभाषचंद्र साळुंके

अनुवाद : दीपा प्रशांत साळुंके

Copyright©author@prash

सभी हक प्रकाशक के आधीन

Prashant subhashchandra Salunke publication

लेखक : प्रशांत सुभाषचंद्र साळुंके

यह कहानी एक काल्पनिक कहानी है. कहानी को रोमांचक बनाने के लिए लेखक ने अपनी कल्पनाओ का भरपूर इस्तमाल किया है, इसलिये इस कहानीको सिर्फ एक कहानी के रूप में ही पढे. इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है. इस कहानी का बहुत ही ध्यान से प्रुफ रीडिंग करने के लिए में मेरे भाई अनुपम चतुर्वेदी का तहेदील से शुक्रिया करता हुं

सुचना : इस कहानी में लिए गए सभी पात्र काल्पनिक है. इनका किसीभी जीवित या मृतुक व्यक्तिसे कोई सबंद नहीं है और अगर एसा होता है तो वो महज एक इत्तफाक है

कहानी : रहम

हरीश एक अच्छे घर से ऑर संपन्न परिवार से था. उनके दादा बहुत सारा धन उनके लिए छोड़ गये थे. वे दोनो हाथो से पैसा लुटाटे फिर भी उनकी संपती कम होने वाली नही थी. कहा गया है जहां देवी लक्ष्मी का वास होता है वहां सरस्वती नही ठहरती! . ज्ञान की कमी नहीं है. ऐसी ही स्थिति हरीश के परिवार कि थी. उनके पिता हरीलाल और मा विजयालक्ष्मि हमेशा विदेशी दौरे करते रहते. बहन रश्मि दिन में सिर्फ सोने के लिए घर आती और उसकी पुरी रात डिस्को पब में गुजरती! संक्षेप में, पुरा परिवार शराब के नशे में डुबे रहेते इसके अलावा मांसाहारी भोजन किया करते थे. इसलिए वे अच्छे गुणों ऑर संस्कार से कोसो दूर थे.

एक दिन परिवारने अफ्रीका के दौरे के लिए योजना बनाई. हरीश उस दिन से उत्साहित था. विमान में बैठ पुरा परिवार अफ्रीका जाने के लिए निकल पडा. कई घंटो कई मुसाफरी के बाद वे आफिका पहुचे, उन सुंदर जंगलों में, हरियाली के बीच पहुच कर वे अपनी सारी यात्रा कई थकान भूल गये. शुद्ध हवा और कुदरती सौंदर्य से उनका रोम रोम झूम उठा उन्होने जंगल में सभी सुख-सुविधाओं से भरा एक तम्बू बनाया. हालांकि वे यात्रा के बाद काफी थक गए थे फिर भी वेह जंगल के सुंदर सीनरी प्रकृति की सुंदरता का भारी आनंद ले ने से अपने आप को नहीं रोक पाये. पुरा दिन वेह जंगलो में घुमते फिरते रहे.

रात में, पुरा परिवार खाने की मेज पर साथ बैठा था, और उनकी गपशप केवल एक चीज के बारे में थी, ऑर वह थी उन्होने पुरे दिन देखी हुई प्रकृति के सुंदरता की. रसोइये ने उन्हें फ्राइड चिकन, चिकन बिरयानी ऑर चिकन लोलीपोप से सजी प्लेट उनके सामने थी. उनका प्रकृति के प्रती लगाव खाने की प्लेट से भी देखा जा सकता है!

रश्मि चिकन का एक टुकड़ा लेते हुये उसकी माँ से पूछा, " जेसे हम इंसान का नाम रखते है, वैसे इन मुर्गियोंका नाम क्यो नही रखा जाता माँ?"

विजयालक्ष्मि मांस के टुकडे को चबाते हुवे जवाब दिया "उनका भी हम नाम रखते है पर जन्म पर नही उनकी मौत के बाद."

हरीलाल ने जिज्ञासा से पूछा "वह कैसे?",

एक मुस्कान के साथ विजयालक्ष्मि ने कहा "चिकन लॉलीपॉप, चिकन बिरयानी, चिकन हरियाली.,"

सभी इस पर हँसे. इंसान की यही खोट है की वह खाना खाते वखत आईने के सामने नही बैठता अगर इस वख्त मांस के टुकडे को चबाते ऑर मुस्कराते हुए विजयालक्ष्मि ने आईने में देखा होता तो यकीनन उन्होने या तो दर्पण तोडा होता या तो मांसाहार छोड़ दिया होता.

जिस समय, वह उनके खाने में व्यस्त थे तभी अचानक उन्हे अपना तंबू हिलते हुवे महसूस हुवा साथ ही में कपड़े फाड़ने की आवाज सुनाई दि. और उस के साथ वेटरो ने भागना शुरू कर दिया. हरीश इससे पहले कि, क्या हो रहा था? यह समझ सकता कुछ आदिवासियोंने तम्बू में प्रवेश किया. और सीधे हरीश और उनके परिवार के सदस्यों की गर्दन पर उनकी तलवार रख दी. डरकर हरीश ने अपने पिता हरीलाल को देखा. एक तरफ एक आदिवासी वेटर को पकड़े खड़ा था. तभी भयभीत वेटरने आदिवासी को धक्का दिया और भागने की कोशिश की वह भागने में सफल रहा. जिसे धक्का दिया गया था वह आदिवासी शांतिपूर्ण ढंग से वहाँ खड़ा रहा. उसने कोई प्रतिक्रिया नही की! हरीश यह सब देख रहा था फरश पर फिसलते, फर्निचर से टकराते वेटर दरवाजे के पास पहुंच गया. वेटर अपनी स्वतंत्रता का जश्न मनाता इससे पहले, एक तीर सननन... से आया ऑर उसके सिर में घुस गया. उसके साथ क्या हुआ इससे बेखबर, वेटर एक दूरी तक सिर में तीर के साथ भगा और फिर नीचे लूढक गया. उस समय हरीश को समझ में आया की क्यो वेटर भगा फिर भी जिसके हाथ से वो छुटा था वह आदिवासी चूप रहा क्योकि उन जंगली आदिवासीओ ने पुरा तंबू चारो ऑर से घेर लिया था. कुछ आदिवासीओने वेटर के शरीर को लाठी उठाया और वहां से चलने लगे. एक आदिवासीने हरीश की पीठ पर तलवार रख दी और उनके साथ चलने के लिए उसे संकेत किया. हरीश और उसका परिवार चुपचाप उनके पीछे चल दिया. बाहर घना अंधेरा था. दिन के प्रकाश के दौरान जो जंगल सुंदर दिखता था, रात के अंधेरे के दौरान वह उससे कई गुना डरावना लग रहा था. आदिवासियों उन्हें एक गुफा के अंदर ले गये. अंधेरी गुफा के अंदर एक पिंजरा था. उस पिंजर के अंदर उन चारो को उन आदीवासीओने धकेल दिया. हरीश से यह सब सहा नही गया वह चिल्लाने लगा, " हमें पकड़ा क्यों पकडा गया है? तुम्हे क्या चाहिये बताओ? तुम्हारी मांग क्या है? कितना पैसा चाहिये तुम्हे मुझे बताओ??"

पिंजरे के अंदर से एक धीमी आवाज आई " उन्हे पैसा नही भोजन चाहिये."

आवाज से चौक कर हरीशने देखा पिंजरे के अंदर उनसे पहले तीन लोगों पहेले से मौजूद थे जो अंधेरे में दिखाई नही दिये थे.

हरीश को देखकर पिंजेरे में मौजूद शख्स बोला " मेरा नाम अफस है, तुम कितना भी चीखो चिल्लाओ वह तुम्हारी भाषा नही समजेंगे! ."

हरीश ने कहा, "मुझे बताओ वे कोन से जाति के है? मैं यहाँ आने से पहले अलग-अलग भाषाओं को सिखा है. उनका धर्म क्या है?"

अफसने लाचारी के साथ कहा "उनका कोई धर्म नहीं है, उनकी कोई जाति नहीं है. वे सिर्फ भूख की भाषा समझते हैं.",

हरीश ने कहा, "तो वे क्या चाहते हो? मैं उनकी इच्छा को पूरा करूंगा."

अफस हंसा और बोला " आप उन्हें कुछ भी नहीं दे सकते है, उन्हे जो चाहिये वो उनको मिल गया है.”

हरीश झटके के साथ अपनी गर्दन को घुमा कर पुछा "क्या?"

अफस "तुम! उन्होने अपनी भूख को संतुष्ट करने के लिए आप लोगो को चुना है. हम इस पिंजरे में कैदि या गुलाम नहीं हैं. लेकिन हम उनकी इस पिंजरे रूपी गोदाम में रखा हुवा सिर्फ भोजन हैं."

हरीश " क्या? मतलब क्या कहा? "

अफस विनम्रतासे कहा, "वे आदमखोर हैं."

अचानक कुछ आदिवासि पहुंचे. और वेटर का मृत शरीर काट उसके टुकडे करना शुरू कर दिया. इस अमानवीय दृश्य को देखकर, रश्मि बेहोश हो गई. हरीलाल और विजयालक्ष्मि उल्टी करने लगे.

हरीश " इस तरह कई गंदी हरकत ये लोग ऐसा कैसे कर सकते हैं?"

इस तरह से दो दिन बीत गये. एक दिन, सुबह में कुछ आदिवासी आए. वे 2 लोगों पिंजरे के पीछे चले गये. उनके व्यवहार को देखकर हरीश चौंक गया था और एक ज़ोर की आवाज़ देकर उसने कहा, "माँ, पिताजी, रश्मि पीछे हो जाईये. खतरा लग रहा है." तत्काल हरीलाल और विजयालक्ष्मि पीछे हट गये. आदीवासीओने एक झटके से दरवाजा खोला और रश्मि के बाल पकड़ लिए और उसे खींचना शुरू कर दिया. रश्मि मदद के लिए चिल्लाने लगी. जंगली उसे खींच रहे थे. हरीशने धीरे-धीरे से उसकी जेबमें से एक छोटासा चाकू निकाल लिया और रश्मि के बालों पर वार किया एक झटके से रश्मी के बाल काट दिये उसके साथ ही रश्मि एक ऑर भाग निकली. वह गहरी साँस लेते हुवे पिंजरे के पीछे के भाग में आ गई. आदिवासी अपने भाले पछाडते हुवे ऑर पिंजरे को लात मारते हुवे उसके पीछे आ गये. तभी अफसने पिंजरे में शिकार के रूप में रखे गये दुसरे आदमी को धक्का मारा. ऑर वह उन आदिवासी कई चपेट में आ गया. उसने बचने के लिए पूरी कोशिश की वह चीखा चील्लाया लेकिन सब व्यर्थ था, आदिवासी उसे घसीट कर ले गये. उनमें से एक ने पिंजरेको बंद कर दिया और उस पर ताला लगाया.

चील्लाते उस जंगली की गर्दन पर आदीवासीने चाकू फिराया ऑर उसकी गर्दन से खून टपकने के साथ ही उसकी चीखे शांत हो गई. हरीश और उस्के परिवार के सदस्य इस घटना को देखकर हैरान थे. रश्मिने शुक्रिया की नजरो से अफस को देखा वह अब भी गहरी साँस ले रही है, अगर अफसने उस जंगलीको न धकेला होता तो अभी उसकी जगह रश्मी के टुकडे हो रहे होते. थकान और डर के साथ वे सब जल्द ही सो गये.

अगले दिन सुबह में फिर से वही लोग आए. हरीश और उनके परिवार के सदस्यों पीछे की ओर चले गये. आदिवासियों चिल्लाते हुवे पिंजरे जा चक्कर मारना शुरू कर दिया. डर के साथ पिंजरे में हरीश ऑर उसके सदस्योने बचने के लिए गोल गोल चक्कर मारना शुरू कर दिया. अचानक रश्मि फिसल गई एक आदिवासी ने उसके कपड़े पकड़ लिए और उस कपड़े से उसे खींचना शुरू कर दिया. लाचारी के साथ उसने हरीश को देखा. हरीश कल की तरह उसका चाकू बाहर निकाला, लेकिन इस बार आदिवासी में से एक सचेत था जेसे हरीशने चाकू का वार किया एक आदिवासीने उसके माथे पर छड़ी से वार किया. उसकी आंखों के सामने अंधेरा फैल गया. धीरे-धीरे उसकी बहन का हाथमे आया ड्रेस का कपडा हरीश के हाथ से दूर होते जा रहा था, और इसके साथ हरीश को रश्मि की जिंदगी उसकी मौत की ओर बढ़ती दिखाई दे रही थी. पिंजरा बंद हो गया. हरीश के कानो पर उसके माता पिता की आवाज सुनाई दी "मेरी बेटी को छोड़ दें. हमें जाने दो .. बचाअओ बचाओ....." हरीशने देखा उसके माता-पिताके शरीर भय से कांप रहे थे. शरीर का खून जहर होता जा रहा थाएक आदिवासीने रश्मि की गर्दन पर चाकू रख दिया, . बेहोश हो रहे हरीश के कानो पर आवाज आई "भाई...." ऑर वो होश खो बेठा...

बाहर शायद बारिश हुई होगी. पानी की ठंडी बूदो ने हरीश को जगाया. कल की बाते याद आते ही वह बोखला के उठ गया. उसने चारोऑर अपने माता-पिता की खोज की, लेकिन उसे कोई नहीं दिखाई दिया था.

उसने अफस से पूछा, "मेरे माता-पिता?"

अफसने उंगली से उसे संकेत किया, हरीशने उंगली की दिशा में देखा. आदिवासी भोजन कर रहे थे.

हरीशने पूछा,"कहाँ हैं मेरे माता पिता?"

अफस " मेज पर रखी प्लेट में हैं."

हरीश बुरी तरह चीखा, “अरे दुष्टो यह क्या किया तुमने? तुम मेरे परिवार को मारकर खा रहे हो? बेरहम लोगों इस पाप का फल तुम्हे भुगतना पडेगा. उनकी बेबस लाचार चीखो से भी तुम्हारा दिल नही पसिजा? यह सब क्यो कर रहे हो सिर्फ अपना पेट भरने के लिए? उन निर्दोष, असहाय लोगों की हत्या से क्या मिलता है तुम्हे? तुम क्या कर रहे हो उसका अंदाजा भी है तुम्हे? तुम जिंदा लोगो की अपने पेट में एक कब्र बना रहे हो. कब्र उनके अरमानो की, कब्र उनके सपनों की!"

अफस यह सुनकर हंसने लगा. हरीशने क्रोध से साथ कहा, "अफस, तुम मेरी ऐसी हालत पर हँस रहे हो?"

अफसने शांति से कहा: दोस्त, तुमने मुर्गी का चिकन या बकरी का गोश्त खाते वख्त कभी ये सोचा? की वह भी किसी का भाई है, वह भी किसिकी बहन है किसिकी प्यारी, दुलारी है? और आज? बडी चोट लग रही है अपनो को भोजन की प्लेट में देखकर?” थोडा रुककर अफस आगे बोला “जिस तरह तुम्हे मुर्गी या बकरे का गोश्त खाने में दिक्कत नही आती वैसे ही इन लोगों को मानव गोश्त खाने के लिए शर्म महसूस नहीं होती है, “

हरीश ने कहा, "लेकिन भाई, मैं मुर्गियों या बकरियों घर पे काटता नहीं हुं. में उसे बाजार से खरीदकर लाता हुं. ये लोग मनुष्य को काटकर खाते है! ऑर ऐसे जंगली लोगो के साथ तुम मेरी तुलना कर रहे हो?"

अफसने कहा ". यही तुम्हारे में और इन आदमखोर के बीच एक मामूली सा अंतर है, इन्हे काटना आता है ऑर तुम्हे नही. इस अंतर से तुम भद्र ऑर ये जंगली नही हो जाते. कसाई काटता है इसलिये में खाता हुं यह कहना तुम्हारा यकीनन गलत है. कसाई बकरा इसीलिए काटता है क्योकि तुम लोग उसे खाते हो. खाना बंद करो फिर कसाई क्यो उन्हे काटेगा? लेकिन आप कसाई आप के लिए कटौती क्यों आप जल्द करने के लिए कैसे पता नहीं है जैसा कि. है, उन्हें खाने के लिए, और वे यह जानते हैं." अफस ने कहा,

अचानक कुछ आदिवासी फिर से आए. अफस पिंजरे के पीछे चला गया और बोला “हरीश, तुम्हें पता है मैं पिछले 5 सालों से इस पिंजरे में हूँ. ऑर अभी तक जीवित हुं, क्यो उसका कारण पता है? क्योकि में जानता हुं की यह आदिवासी कभी पिंजरे को खाली नही रहने देते! आज के बाद में फिरसे अकेला हो जाऊंगा ओर वे तब तक इस पिंजरे से खाना नही निकालेंगे जब तक यह दुसरे लोगो से भर नही जाता." ऐसा बोल अफसने हरीश को एक लात मारी. हरीश को एक आदीवासीने पकड लिया ऑर अब सबने उसे खींचना शुरू कर दिया.

हरीश, चिल्लाने लगा, "मुझे छोड़ दो, मुझे छोड़ दो. मैं मरना नही चाहता मैं मैं .. मुझे छोड़ दो, मुझे छोड़ दो मुझे जीना हैं .. जीना हैं."

"हरीश, हरीश, क्यो नींद में बड़बड़ा रहे हो?" हरीश की मां विजयालक्ष्मि उसे हीलाते हुए बोली.

हरीशने अपनी आँखें खोली, उसकी मां उसकी आंखों के सामने थी. विमान उड़ान के लिए 3 घंटे का समय अभी भी शेष था और वह घर पर ही सो कर सपना देख रहा था. हरीशने अपनी मां को गले लगाया उसकी आँखों में आँसू आ गये वो बोला...” माँ अब हम किसी के भी परिवार को बर्बाद नहीं करेंगे, हम अपनी मां से किसी भाई या बहन को अलग नहीं करेंगे, हम किसी भी पिता से उसके बेटे को अलग नहीं होने देंगे, माँ हम आदिवासी नहीं हैं. हम शिक्षित हैं है मां?”

विजयालक्ष्मि को कुछ समज में नही आया उसने कहा, "मैंने तुम्हारे लिए आमलेट बनाया है चलो उठो उसे खालो."

क्या हरीश आमलेट खायेगा? इस कहानी का हरीश पाठक के अलावा अन्य कोई नहीं है. कहानी का अंत पाठको को तय करना है. क्या करना है खाओ ऑर जिओ यां जियो और जीने दो के नियम को अपनाना है? मैंने सिर्फ एक सपना दिखाया है. पशु कल्याण के विचारो वाली एक हसी दुनिया. अब इसे पूर्ण आप लोगो को मिलकर करना है.... धन्यवाद.