Pariksha-Guru - Chapter - 26 in Hindi Short Stories by Lala Shrinivas Das books and stories PDF | परीक्षा-गुरु - प्रकरण-26

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परीक्षा-गुरु - प्रकरण-26

परीक्षा गुरू

प्रकरण - २६

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दिवाला.

लाला श्रीनिवास दास

कीजै समझ, न कीजिए बिना बि चार व्‍यवहार।।

आय रहत जानत नहीं ? सिरको पायन भार ।।

बृन्‍द.

लाला मदनमोहन प्रात:काल उठते ही कुतब जानें की तैयारी कर रहे थे. साथ जानेंवाले अपनें, अपनें कपड़े लेकर आते जाते थे, इतनें मैं निहालचंद मोदी कई तकाजगीरों को साथ लेकर आ पहुँचा.

इस्‍नें हरकिशोर से मदनमोहन के दिवाले का हाल सुना था. उसी समय से इस्को तलामली लग रही थी. कल कई बार यह मदनमोहन के मकान पर आया, किसी नें इस्‍को मदनमोहन के पास तक न जानें दिया और न इस्‍के आनें इत्तला की. संध्‍या समय मदनमोहन के सवार होनें के भरोसे वह दरवाजे पर बैठा रहा परन्‍तु मदनमोहन सवार न हुए इस्‍से इस्‍का संदेह और भी दृढ़ होगया. शहर मैं तरह-तरह की हजारों बातें सुनाई देती थी इस्‍से वह आज सवेरे ही कई लेनदारों को साथ लेकर एकदम मदनमोहन के मकान मैं घुस आया और पहुंचते ही कहनें लगा "साहब ! अपना हिसाब करके जितनें रुपे हमारे बाकी निकलें हमको इसी समय दे दीजिये. हमें आप का लेन-देन रखना मंजूर नहीं है. कल सै हम कई बार यहां आए परन्‍तु पहरे वालों नें आप के पास तक नहीं पहुँचनें दिया."

"हमारा रुपया खर्च करके हमारे तकाजे से बचनें के लिये यह तो अच्‍छी युक्ति निकाली !" एक दूसरे लेनदार नें कहा "परन्‍तु इस्‍तरह रकम नहीं पच सक्‍ती. नालिश करके दमभर मैं रुपया धरा लिया जायगा."

"बाहर पहरे चौकी का बंदोबस्‍त करके भीतर आप अस्‍बाब बांध रहे हैं !" तीसरे मनुष्‍य नें कहा "जो दो, चार घड़ी हम लोग और न आते तो दरवाजे पर पहरा ही पहरा रह जाता लाला साहब का पता भी न लगता."

"इस्‍मैं क्‍या संदेह है ? कल रात ही को लाला साहब अपनें बाल बच्‍चों को तो मेरठ भेज चुके हैं" चोथे नें कहा "इन्‍सालवन्‍सी के सहारे से लोगों को जमा मारनें का इन दिनों बहुत होसला होगया है"

"क्‍या इस जमानें मैं रुपया पैदा करनें का लोगों नें यही ढंग समझ रक्‍खा है" एक और मनुष्‍य कहनें लगा "पहले अपनी साहूकारी, मातबरी, और रसाई दिखाकर लोगों के चित्त मैं बिश्‍वास बैठाना, अन्‍त मैं उन्की रकम मारकर एक किनारे हो बैठना"

"मेरी तो जन्‍म भर की कमाई यही है. मैंनें समझा था कि थोड़ीसी उमर बाकी रही है सो इस्मैं आराम सै कट जायगी परन्‍तु अब क्‍या करूं ?" एक बुड्ढा आंखों मैं आंसू भरकर कहनें लगा "न मेरी उमर मेहनत करनें की है न मुझको किसी का सहारा दिखाई देता है जो तुम से मेरी रकम न पटेगी तो मेरा कहां पता लगेगा ?"

"हमारे तो पांच हजार रुपे लेनें हैं परन्‍तु लाओ इस्‍समय हम चार हजार मैं फैसला करते हैं" एक लेनदार नें कहा.

"औरों की जमा मारकर सुख भेगनें मैं क्‍या आनन्‍द आता होगा ?" एक और मनुष्‍य बोल उठा.

इतनें में और बहुतसे लोगों की भीड़ आगई. वह चारों तरफ़ मदनमोहन को घेरकर अपनी, अपनी कहनें लगे. मदनमोहन की ऐसी दशा क़भी काहे को हुई थी ? उस्‍के होश उड़ गए. चुन्‍नीलाल, शिंभूदयाल वगैरे लोगों को धैर्य देनें की कोशिश करते थे परन्‍तु उन्‍को कोई बोलनें ही नहीं देता था. जब कुछ देर खूब गड़बड़ हो चुकी लोगों का जोश कुछ नरम हुआ तब चुन्‍नीलाल पूछनें लगा "आज क्‍या है ? सब के सब एका एक ऐसी तेजी मैं कैसे आ गए ? ऐसी गड़बड़ सै कुछ भी लाभ न होगा. जो कुछ कहना हो धीरे सै समझा कर कहो"

"हम को और कुछ नहीं कहना हम तो अपनी रकम चाहते हैं" निहालचंद नें जवाब दिया.

"हमारी रकम हमारे पल्‍ले डालो फ़िर हम कुछ गड़बड़ न करेंगे" दूसरे नें कहा.

"तुम पहले अपनें लेनें का चिट्ठा बनाओ. अपनी, अपनी दस्‍तावेज दिखाओ, हिसाब करो, उस्‍समय तुम्‍हारा रुपया तत्‍काल चुका दिया जायगा" मुन्शी चुन्‍नीलाल नें जवाब दिया.

"यह लो हमारे पास तो यह रुक्‍का है" हमारा हिसाब यह रहा" "इस रसीद को देखिये" हमनें तो अभी रकम भुगताई है" यह तरह पर चारों तरफ़ सै लोग कहनें लगे.

"देखो जी ! तुम बहुत हल्‍ला करोगे तो अभी पकड़ कर कोतवाली मैं भेज दिए जाओगे और तुम पर हतक इज़्जत की नालिश की जायगी नहीं तो जो कुछ कहना हो धीरज से कहो" मास्‍टर शिंभूदयाल नें अवसर पाकर दबानें की तजवीज की.

"हमको लड़नें झगड़नें की ज़रूरत है ? हम तो केवल जवाब चाहते हैं. जवाब मिले पीछे आप सै पहले हम नालिश कर देंगे" निहालचंद नें सबकी तरफ़ सै कहा.

"तुम बृथा घबराते हो. हमारा सब माल मता तुम्हारे साम्हनें मौजूद है. हमारे घर मैं घाटा नहीं है ब्याज समेत सबको कौड़ी, कौड़ी चुका दी जायगी" लाला मदनमोहन नें कहा.

"कोरी बातों से जी नहीं भरता" निहालचंद कहनें लगा "आप अपना बही खाता दिखादें, क्‍या लेना है ? क्या देना है ? कितना माल मौजूद है ? जो अच्‍छी तरह हमारा मन भर जायगा तो हम नालिश नहीं करेंगे"

"कागज तो इस्‍समय तैयार नहीं है" लाला मदनमोहन नें लजा कर कहा.

"तो खातरी कैसे हो ? ऐसी अँधेरी कोठरी मैं कौन रहै ? (ब्रंद) जो पहल करिये जतन तो पीछे फल होय । आग लगे खोदे कुआ कैसे पावे तोय ।। इस काठ कबाड़ के तो समय पर रुपे मैं दो आनें भी नहीं उठते" एक लेनदार नें कहा.

"ऐसे ही अनसमझ आदमी जल्‍दी करके बेसबब दूसरों का काम बिगाड़ दिया करते हैं" मास्‍टर शिंभूदयाल कहनें लगे.

इतनें मैं हरकिशोर अदालत के एक चपरासी को लेकर मदनमोहन के घर पर आ पहुँचे और चपरासी नें सम्‍मन पर मदनमोहन सै कायदे मूजिब इत्तला लिखा ली. उस्‍को गए थोड़ी देर न बीतनें पाई थी कि आगाहसनजान के वकील की नोटिस आ पहुँची. उस्‍मैं लिखा था कि "आगाहसनजान की तरफ़ सै मुझको आपके जतानें के लिये यह फ़र्मायश हुई है कि आप उस्‍के पहले की ख़रीद के घोड़ों की कीमत का रुपया तत्‍काल चुका दैं और कल की खरीद के तीन घोड़ों की कीमत चौबीस घन्टे के भीतर भेजकर अपनें घोड़े मंगवालें जो इस मयाद के भीतर कुल रुपया न चुका दिया जायगा तो ये घोड़े नीलाम कर दिये जायंगे और इन्‍की क़ीमत मैं जो कमी रहैगी पहले की बाकी समेत नालिश करके आप सै वसूल की जायगी"

थोड़ी देर पीछे मिस्‍टर ब्राइट का सम्‍मन और कच्‍ची कुरकी एक साथ आ पहुँची इस्‍सै लोगों के घरबराहट की कुछ हद न रही. घर मैं मामला हल होनें की आशा जाती रही. सबको अपनी, अपनी रक़म ग़लत मालूम होनें लगी और सब नालिश करनें के लिये कचहरी को दौड़ गए.

"यह क्‍या है ? किस दुष्ट की दुष्‍टता सै हम पर यह ग़जब का गोला एक साथ आ पड़ा ?" लाला मदनमोहन आंखों मैं आंसू भर कर बड़ी कठिनाई से इतनी बात कह सके.

"क्‍या कहूँ ? कोई बात समझ मैं नहीं आती" मुन्‍शी चुन्‍नीलाल कहनें लगे "कल लाला ब्रजकिशोर यहां से ऐसे बिगड़ कर गए थे कि मेरे मन मैं उसी समय खटका हो गया था शायद उन्‍हीं नें यह बखेड़ा उठाया हो. बाजे आदमियों को अपनी बात का ऐसा पक्ष होता कि वह औरों की तो क्‍या ? अपनी बरबादी का भी कुछ बिचार नहीं करते. परमेश्‍वर ऐसे हठीलों से बचाय. हरकिशोर का ऐसा होसला नहीं मालूम होता और वह कुछ बखेड़ा करता तो उस्‍का असर कल मालूम होना चा‍हिये था अब तक क्‍यों न हुआ ?"

प्र‍थम तो निहालचंद कल से अपनें मन मैं घबराट होनें का हाल आप कह चुका था, दूसरे हरकिशोर की तरफ़ से नालिश दायर होकर सम्‍मन आगया, तीसरे चुन्‍नीलाल ब्रजकिशोर के स्‍वभाव को अच्‍छी तरह जान्‍ता था इस्लिये उस्‍के मन मैं ब्रजकिशोर की तरफ़ से जरा भी संदेह न था परन्‍तु वह हरकिशोर की अपेक्षा ब्रजकिशोर से अधिक डरता था इसलिये उस्‍नें ब्रजकिशोर ही को अपराधी ठैरानें का बिचार किया. अफ़सोस ! जो दुराचारी अपनें किसी तरह के स्‍वार्थ से निर्दोष और धर्मात्‍मा मनुष्‍यों पर झूंटा दोष लगाते हैं अथवा अपना कसूर उन्‍पर बरसाते हैं उन्‍के बराबर पापी संसार मैं और कौन होगा ?

लाला मदनमोहन के मन मैं चुन्‍नीलाल के कहनें का पूरा विश्‍वास होगया. उस्‍नें कहा "मैं अपनें मित्रों को रुपे की सहायता के लिये चिट्ठी लिखता हूँ. मुझको विश्‍वास है कि उन्‍की तरफ़ से पूरी सहायता मिलेगी परन्‍तु सबसे पहले ब्रजकिशोर के नाम चिट्ठी लिखूंगा कि वह मुझको अपना काला मुंह जन्‍म भर न दिखलाय" यह कह कर लाला मदनमोहन चिट्ठियां लिखनें लगे.