Saubhagy se bhare saptaah ke saat din in Hindi Spiritual Stories by sunita suman books and stories PDF | सौभाग्य से भरे सप्ताह के सात दिन

Featured Books
Categories
Share

सौभाग्य से भरे सप्ताह के सात दिन

धार्मिक मान्यता

प्रस्तुति: सुनीता सुमन

सौभाग्य से भरे सप्ताह के सात दिन

अंग्रेजी के महीने में सामान्यतः चार सप्ताहों के सभी सात दिनों पर नौ ग्रहों में से किसी न किसी का राज चलता है। जैसे रविवार पर सूर्य का सोमवार पर चंद्रमा का, मंगलवार पर मंगल एवं राहू का, बुधवार पर बुध का, वृहस्पतिवार पर गुरु का, शुक्रवार पर शुक्र और शनिवार पर शनि एवं केतु का अधिपत्य बना रहता है। यानि कि जो नाम ग्रहों के हैं वही दिनों के भी हैं।

दिन की शुरुआत पश्चिमी देशों में मध्य रात्री से होती है, जबकि भारतीय वैदिक दिन की शुरुआत सूर्याेदय से मानी जाती है। वैदिक ज्योतिष में दिन का अर्थ सूर्योदय से होता है। सूर्योदय से सूर्योदय तक के समय को एक दिन कहा गया है। कुछ विद्वानों ने इस समय को 60 भागों में बांटते हुए हर भाग का नाम घड़ी या घटी या घटिका रख दिया। जबकि दूसरे विद्वानों ने उसे 24 भागों में बांटकर प्रत्येक भाग का नाम घंटा रखा। सूर्यदेव को पूरी दुनिया में सिर्फ इस्लाम को छोड़कर ग्रहों का राजा माना जाता है। दिन के स्वामी का प्रभाव व्यक्ति के दैनिक कार्यकलाप पर भी पड़ता है और उसी के अनुरूप फल की प्राप्ति होती है। जैसे सूर्य व्यक्ति की शारीरिक स्फूर्ति और बाॅडी लैंग्वेज में संरचनात्मक असर को बढ़ाने वाला प्रभाव देता है, तो चंद्रमा दिमाग और गुरु घार्मिक एवं अध्यात्मिक मनोभावों को दर्शता है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर किया गया कार्य सहजता से पूरा होने के साथ-साथ लाभकारी भी होता है।

माना कि सप्ताह सिर्फ मानव निर्मित एक व्यवस्था है, लेकिन इसके धार्मिक महत्व को भी नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इसेे अपनाने से आंतरिक संतुष्टि और कार्यक्षेत्र में व्यवहारिकता आती है। मान्यता है कि इस दिन सामान्य उपायों से रोग और दूसरी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। मानसिक, शारीरिक और आत्मिक शांति के लिए हर दिन से जुड़े व्रत-उपवास तमाम तरह के रोगों से भी मुक्ति दिलाने में सहायक होते है। इस कारण प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्म के अनुसार सप्ताह में एक उपवास अवश्य करना चाहिए।

रविवारः इस दिन उपवास का विशेष महत्व है। इससे अच्छा स्वास्थ्य और तेजस्विता आती है। सूर्य के प्रभाव का लाभ मिलता है। जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपदा और शत्रुओं से सुरक्षा के लिए रविवार का व्रत करने और व्रत की कथा सुनने से हर तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कुष्ठ रोगों से मुक्ति के लिए यह व्रत अति महत्वपूर्ण होता है।

सोमवारः जिनके स्वाभाव में तीखापन हो, बात-बात पर क्रोधित हो जाते हों उन्हें सोमवार का उपवास रखने से लाभ मिलता है। इस दिन का स्वामी चंद्रमा होता है तथा सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की स्थिति कुछ इस तरह की होती है कि उससे हमारे शरीर को शांति मिलती है।

मंगलवारः इस दिन मंगल ग्रह से पीडि़तों को उपवास और हनुमान की आराधना करने से मंगलकारी प्रभाव के चमत्कारी परिणाम मिलते हैं।

बुधवारः इस दिन का उपवास भगवान गणेश के नामपर मानसिक कमजोरी को दूर करने तथा आत्मिक ज्ञान की प्रप्ति के लिए किया जाता है। मान्यता है कि श्रीगणेश बुद्धि देते हैं और बुधवार वौद्धिकता को विकसित करने का दिन होता है।

गुरुवारः यह दिन भी मस्तिष्क से संबंध रखता है, क्योंकि इसके स्वामी देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं। अच्छे और सकारात्मक विचार शैक्षणिकता के प्रभाव और मानसिक प्रबलता के लिए सत्व गुणी बृहस्पति देव के नाम उपवास करने एवं व्रत से मनःस्थिति को मजबूती मिलती है।

शुक्रवारः यह दिन धन, खुशी, रूप-रंग और प्रजनन का प्रतिनिधित्व करता है तथा इसके स्वामी शुक्र ग्रह को उपवास से प्रसन्न रखा जाता है। इससे न केवल तेजस्विता, शौर्य और सौंदर्य में वृद्धि होती है, बल्कि यह शीघ्रपतन व प्रमेह रोगों की भी समस्याओं से छुटकारा दिलवाता है।

शनिवारः कई तरह के दुःखों, परेशानियों और कामकाज में आनेवाली अड़चनों को दूर करने के लिए इस दिन भगवान शनि के नाम उपवास और व्रत करने से लाभ मिलता है। शनिदेव व्यक्ति की कड़ी परीक्षा के दौरान उसे नियमबद्धता के लिए प्रेरित करते हैं। (कुल शब्द 648)

व्रत-त्यौहार

सोमवार : मनोवांछित फल की प्रप्ति

सोमवार सप्ताह की शुरुआत का दिन होता है। नई संकल्पनाओं, उद्देश्यों और संभावनाओं के साथ इस दिन की शुरुआत शांत मन से की जाती है। इसके लिए जरूरी है कि व्यक्ति का मन व्यथित नहीं रहे और मनःस्थिति पर नियंत्रण बना रहे। इसमें भगवान शिव के नाम उपवास रखने से दिन के स्वामी चंद्रमा की भी आराधना हो जाती है।

क्यों करें ?

यदि आप चाहते हैं कि आपकी अच्छी दिनचर्य हो, कार्यक्षेत्र में सौहार्दपूर्ण वातावरण बना रहे और आपमें आंतरिक ऊर्जा का भी सतत प्रवाह होता रहे। बात-व्यवहार में तीखापन न आए, लेकिन काम के प्रति तीव्रता बनी रहे। आक्रामकता और आंतरकि अक्रोश पर नियंत्रण कायम रहे। इसके लिए सोम यानि चंर्द अर्थात भागवान शिव की आराधना करने से लाभ मिलता है। सोलह सोमवार की भक्तिपूर्व किया गया व्रत बहुत ही फलदायी होता है, जो सोमवारी व्रत के नाम से जाना जाता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में किसी ग्रह से अशुभ स्थितियां उत्पन्न हो रही हों किसी विशेष कार्य में अड़चनें आ रही हों तो इस व्रत को विधि पूर्वकर करने से सर्वकामना पूर्ति का उद्देश्य पूरा होता है।

कैसे करें ?

इस व्रत को श्रावण, चैत्र, वैसाख, कार्तिक या मार्गशीर्ष के महीनों को शुक्ल पक्ष के प्रथम सप्ताह से आरंभ किया जाता है। इसे पांच वर्ष या सोलह सप्ताह श्रद्धापूर्वकर करने से मनोवांछित फल की प्रप्ति होती है।

  • व्रत का शुभारंभ करने वाले व्यक्ति को प्रातःकाल जल में कुछ काले तिल डालकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद ओम नमः शिवाय मंत्र के द्वारा श्वेत फूल, सफेद चंदन, चावल, पंचामृत, सुपारी, फल और गंगाजल या साफ पानी से भगवान शिव और पार्वती का पूजन करना चाहिए।
  • शिव-पार्वती की पूजा के बाद सोमवार की व्रत कथा अवश्य सुननी चाहिए। उसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करना चाहिए।
  • पूजा के बाद एक समय का भोजन ग्रहण करना चाहिए जो नमक रहित हो। फलाहार का विशेष महत्व है।
  • व्रत का उद्यापन सोलहवें दिन किया जाना चाहिए। इसके लिए प्रत्येक सोमवार की जानेवाली पूजा के अलावा सफेद वस्तुओं का दान किया जाना चाहिए। उन वस्तुओं में चावल, सफेद परिधान या कपड़ा, श्वेत फूल, सफेद चंदन, दूध, दही, चांदी आदि हो सकता है।
  • उद्यापन के दिन ब्राह्मणों और बच्चों को मिष्ठान भोजन के रूप में खीर-पूड़ी या हल्वा खिलाकर यथाशक्ति दान दिया जाना चाहिए।
  • ज्योतिष के अनुसार इस दिन चंद्रमा की शांति के लिए चांदी की अंगूठी में मोती धारण करने का भी खास महत्व है।
  • विशेष

    प्राचीन हिंदू ग्रंथों और विद्वानों के अनुसार सोमवार का व्रत तीन तरह के होते हैं। एक सोमवार, दूसरा सोलह सोमवार और तीसरा सौम्य प्रदोष कहलाता है। सावन अर्थात श्रावन माह में सोमवार का व्रत सूर्योदय से प्रारंभ करना चाहिए। व्रत के लिए निम्न मंत्र से संकल्प और ध्यान करना चाहिए। वे मंत्र हैं-

    संकल्प के मंत्र-

    'मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये'

    ध्यान के मंत्र-

    ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
    पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्॥

    ध्यान के बाद ओम नमः शिवाय से शिवजी और ओम नमः शिवायै से पार्वतीजी षोडशोपचार पूजन किया जाना चाहिए।

    मंगलवार व्रत: दूर होता है अमंगल

    म्ंगलवार का दिन अगर लाल ग्रह मंगल से प्रभावित है तो इसे भगवान हनुमान का भी दिन माना गया है। ज्योतिष के अनुसार ग्रहों के अशुभ प्रभाव को खत्म करने के लिए पीडि़तों को उपवास और हनुमान की आराधना करने से मंगलकारी परिणाम मिलते हैं। अर्थात किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह अशुभ बना हुआ हो या किसी विशेष कार्य में बाधा आ रही हो, तो मंगलवार का विधि पूर्वक व्रत करने से भरपूर लाभ मिलता है। अर्थात जिस व्यक्ति की कुंडली में मंगल की महादशा, प्रत्यंतर दशा आदि गोचर में अनिष्टकारी बन गई हो, उनके लिए यह व्रत महत्व रखता है। साथ ही यह सर्वसुख, मान-सम्मान, शत्रुदमन, रक्त विकार, राज्य और संतान प्राप्ति के लिए भी किया जाता है।

    क्यों करें?

    यदि आप संतान की कामना करते हैं। अस्वस्थता से परेशान हैं। किसी कार्य में बाधा आ रही है। दुश्मनों से परेशानी है। कानूनी अड़चनें आ गई हैं। आपके सुख और साम्राज्य पर ग्रहण लग चुका है। या फिर आप अपने सम्मान, बल, साहस और पुरुषार्थ में बढ़ोत्तरी चाहते हैं, तो मंगलवार के व्रत के साथ-साथ इस दिन की कथा को सुनना चाहिए। इससे मंगल ग्रह के दोष दूर हो जाते हैं। वैसे इस व्रत को कई जगहों पर भूत-प्रेतादि बाधाओं से मुक्ति के लिए भी किया जाता है।

    कैसे करें?

    इस व्रत को सात्विक विचारों के साथ शुक्ल पक्ष के पहले मंगलवार से रखा जाता है, जो सामथ्र्य के अनुसार 21 सप्ताह तक किया जाता है। व्रत की शुरुआत मानसिक रूप से तैयारी के साथ सुबह सूर्योदय से पहले उठकर करनी चाहिए। नित्यकर्म निबटकर और स्नान के बाद लाल व्रस्त्र धारण कर लेना चाहिए।

  • पूजा के लिए हनुमान-मंदिर या घर का एकांत स्थान या आंगन हो सकता है। घर के ईशान कोण में हनुमानजजी की मूर्ति या चित्र रखना चाहिए। पूजा के स्थान पर चार बत्तियों वाले दीपक को जलाकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। उसके बाद लाल फूल, रोली, अक्षत आदि से हनुमानजी की विधिवत पूजा करनी चाहिए। पूजन के बाद हनुमान चालिसा का पाठ करना चाहिए।
  • भगवान हनुमान को प्रसन्न करने वाले इस व्रत के लिए उनके पसंद की वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता है।
  • लाल फूल, तांबे के बरतन तथा नारियल की विशेष महत्ता है। हनुमान की मूर्ति या तस्वीर पर लाल फूल चढ़ाना चाहिए। तथा इस दिन लाल वस्त्र धारण करना चाहिए।
  • हनुमान की पूजा करते समय उनके 21 नामों का उच्चारण करने का भी विधान है। वे नाम हैं- मंगल, भूमिपुत्र, ऋणहर्ता, धनप्रदा, स्थिरासन, महाकाय, सर्वकामार्थ साधक, लोहित, लोहिताज्ञ, सामगानंकृपाकर, धरात्मज, कुज, भौम, भूमिज, भूमिनंदन, अंगारक, यम, सर्वरोगहारक, वृष्टिकर्ता, पापहर्ता और पवन पुत्र।
  • नमक रहित भोजन में गेंहू के आटे की रोटी गुड़ के साथ खाना चाहिए।
  • हनुमान जी को विशेष मंत्र के साथ अध्र्य दिया जाना चाहिए। वह मंत्र है-
  • भूमिपुत्रो महातेजा: कुमारो रक्तवस्त्रक:।

    गृहाणाघर्यं मया दत्तमृणशांतिं प्रयच्छ हे।

    कथा के साथ पूजा समाप्ति के बाद आरती और प्रसाद वितरण कर स्वयं प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। हनुमानजी की बहुत ही प्रसिद्ध आरती है।

    आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रधुनाथ कला की।।

    विशेष

    मंगलवार का व्रत स्वभाव में उग्रता या हिंसक प्रवृति को खत्म करता है। मन में अद्भुत शांति का प्रवाह होता है। यही कारण है कि प्रत्येक मंगलवार को हनुमान की पूजा का विशेष महत्व है। युवा वर्ग इस व्रत से अपनी बौद्धिकता और बल का विकास कर सकते हैं। हनुमान की उपासना का अर्थ है मानसिक संतुष्टि, सुख, धन और यश पाना तथा सभी तरह के पापों से मुक्ति।

    बुधवार व्रत: बढ़ती है बुद्धि

    और उन्नत होता है कारोबार

    विचार में बौद्धिकता, व्यापार में वृद्धि और कार्यक्षेत्र में बाधाओं से मुक्ति के लिए बुधवार के व्रत का विशेष महत्व है। इसके अतिरिक्त जन्म कुंडली के अनुसार बुध ग्रह के शुभ प्रभाव में कमी आने या फिर उसके अशुभ भावों में बैठने पर भी ज्योतिषीय सलाह के आधार पर इस व्रत को विधिपूर्वक करने से कल्याणकारी लाभ मिलता है। भगवान बुद्धदेव की अनुकंपा से घर में धन-संपदा आती है।

    क्यों करें?

    यदि आप अशांत चित्त का अनुभव कर रहे हैं। असंतुष्टि के भाव से बार-बार व्याकुल हो जाते हैं। व्यापार में नुकसान उठाना पड़ रहा है, या फिर नये कारोबार को लेकर मन विचलित रहता है। लाभ-हानि की दुविधा बनी हुर्इ है। नया काम शुरु करने में बाधाएं आ रही हैं । कामकाज में एकाग्रता टूटती रहती है। इन अड़चनों और मुश्किलों से मुक्ति बुधवार का व्रत करने से मिल सकती है। इससे स्त्री-पुरुष के जीवन में सभी तरह की मंगलकामनाओं का संचार होता है और वाक्शक्ति में प्रवीणता के साथ-साथ बुद्धि में कुशाग्रता आती है।

    कैसे करें?

    भगवान बुद्धदेव को प्रसन्न करने के लिए बुधवार के व्रत की तैयारी सूर्योदय से पहले उठकर नित्यकर्म और स्नानादि कर इस तरह से करना चाहिए:-

  • घर के इशान कोण में भगवान शिव या बुध का चित्र या मूर्ति कांस्य के बर्तन में स्थापित करना चाहिए। उनपर बेलपत्र, अक्षत, धूप और दीप जलाकर विधिवत पूजा करनी चाहिए।
  • इस दिन हरे-पीले रंग के शेड वाले कपड़े पहनने चाहिए। पन्ना रत्न धारण करना शुभ होता है। व्रत में हरी वस्तुओं का इस्तेमाल करना चाहिए। मूंग का हलवा, हरे फल, छोटी इलाइची, तुलसी के पत्ते का विशेष महत्व है।
  • पूजन के बाद बुधदेव की इस मंत्र के साथ आराधना करनी चाहिए। मंत्र है-
  • बुध त्वं बुद्धिजनको बोधद: सर्वदा नृणाम। तत्वावबोधं कुरुषे सोमपुत्र नमो नम:।।

  • अंत में श्रीविष्णु सहस्त्रानाम का पाठ करना चाहिए और व्रत-कथा सुननी चाहिए। आरती करना चाहिए।
  • पूरे दिन के व्रत की पूर्णाहुति सूर्यास्त के बाद एक बार फिर से बुध को धूप, दीप और गुड़, भात एवं दही के भोग लगाने से होती है।उसके बाद प्रसाद वितरण कर स्वयं ग्रहण करना चाहिए।
  • व्रत करने वाले को दिन में एक बार ही नमक रहित भोजन करना चाहिए।
  • विशेष

    बुधवार का व्रत को विशाखा नक्षत्र में बुधवार के दिन से आरंभ करना चाहिए, जिसे 17 या 21 सप्ताह तक करना चाहिए। इस योग के नहीं मिलने की सिथति में इस व्रत को किसी भी माह में शुक्ल पक्ष के पहले बुधवार से किया जाता है। ब्राह्मणों को भोजन करवाकर यथाशक्ति दान देना चाहिए।

    बुध मंत्र :

    ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः।

    उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जाग्रहि। त्वमिष्टापूर्ते सूं सृजेथामय च।

    अस्मिन्त्सधस्थे अध्युन्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्चय सदित।

    चंद्र पुत्राय विद्महे रोहिणी प्रियाय धीमहि। तन्नो बुधः प्रचोदयात्।

    सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि। तन्नो बुधः प्रचोदयात्।

    बुधाय नमः। नमो नारायणाम। चंद्र पुत्राय नमः। विश्व रूपाय नमः।

    बृहस्पतिवार व्रत: पाएं सुख-सौभाग्य

    विधा, बुद्धि, धन-धान्य, सुख-सुविधा, विवाह आदि के लिए गुरुवार को किये जाने वाले बृहस्पतिवार व्रत की अलग विशेषता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना के साथ उनकी विधिवत पूजा की जाती है। इस व्रत से जन्म कुंडली में गुरु ग्रह के असरहीन प्रभाव के कारण कार्य में आ रही बाधाओं को दूर किया जा सकता है। किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम बृसिपतिवार अर्थात गुरुवार से प्रारंभ कर नियमित सात व्रत करने से अगर गुरु ग्रह से उत्पन्न होने वाले अनिष्ट दूर हो जाते हैं, तो इस व्रत को 16 सप्ताह या तीन साल तक लगातार करने से मनोवांछित फल की प्रापित होती है।

    क्यों करें?

    यदि आप धन-संपत्ति में कमी या इस कारण रोजमर्रे की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ महसूस कर रहे हैं। पग-पग पर बाधाएं उत्पन्न हो रहीं हैं। सुख-सौभाग्य में कमी महसूस हो रही है। आपकी बौद्धिकता, कार्यक्षमता और प्राक्रम का क्षय हो रहा है। घर में पारिवारिक स्तर पर अशांति फैली हुर्इ है, तो इस व्रत से लाभ मिल सकता है। परिवार में सुखद और शुभ-शांति का माहौल बनता है। ​स्त्रियों के लिए यह व्रत बहुत ही शुभ फल देने वाला है तथा अविवाहित युवतियों को मनोवांछित जीवन साथी का बेहतर संयोग और सौभाग्या प्राप्त होता है।

    कैसे करें?

    इस व्रत को घर या मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के साथ केले के पेड़ की भी पूजा की जाती है। घर में पूजा करने से पहले एकांत स्थान पर विष्णु भगवान का चित्र स्थापित करना आवश्यक है। पूजा के लिए अपनाए जाने वाले सरल तरीके इस प्रकार हैं:-

  • व्रत करने वाले को एक दिन का उपवास रखना चाहिए, क्योंकि धार्मिक मान्यता और र्इश्वरीय श्रद्धा के अनुसार इस दिन एक ही समय भोजन किया जाता है।
  • व्रत के लिए गुरुवार के दिन सूर्योदय से पहले स्नानादि से निपटकर पीले परिधान में पीले फूलों, चने की दाल, पीला चंदन, बेसन की बर्फी, हल्दी व पीले चावल से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। बृहस्पतिदेव की प्रतिमा को केसर मिले दूध या पवित्र जल से स्नान करवाना चाहिए। पीले रंग की मिठार्इ का भोग लगाना चाहिए। इसके बाद प्रार्थना के लिए मंत्र निम्नलिखित है।
  • मंत्र : धर्मशास्तार्थातत्वज्ञ ज्ञानविज्ञानपराग।

    विविधार्तिहराचिन्त्य देवाचार्य नमोस्तुते।।

  • पूजन के बाद कथा सुननी चाहिए और आरती के लेकर प्रसाद का वितरण कर देना चाहिए।
  • नमक रहित भोजन के साथ उपवास को शाम के समय पीले अनाज से बने व्यंजन से तोड़ना चाहिए। जैसे बेसन का हलवा आदि।
  • विशेष:

    पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बृहस्पति ने शिव कृपा से देवगुरु का पद पाया। यही कारण है कि बृहस्पति की उपासना भगवान शिव को प्रसन्नकर सांसारिक जीवन की कामना की जाती है। इसे विवाह, संतान, धन आदि की सिद्धि देने वाला माना गया है। इसे पुरुष या स्त्री कोर्इ भी कर सकते हैं। व्रत करने वाली स्त्री को उस दिन सिर नहीं धोना चाहिए, जबकि पुरुष को शेविंग करने और नाखून काटने की मनाही होती है। बृहस्पतिवार के दिन शुभ असर के लिए सोने की अंगूठी में पुखराज पहनना चाहिए। भगवान विष्णु को ध्यान में रखकर छल, कपट और स्वार्थ रहित मन से पूजा करने से इस व्रत का सर्वश्रेष्ठ लाभ मिलता है।

    नीचे लिखे मंत्र का स्मरण पूजा के बाद गुरु ग्रह से संबंधित पीली सामग्रियों जैसे पीली दाल, वस्त्र, गुड़, सोना आदि का यथाशक्ति दान करें -
    जीवश्चाङ्गिर-गोत्रतोत्तरमुखो दीर्घोत्तरा संस्थित:

    पीतोश्वत्थ-समिद्ध-सिन्धुजनिश्चापो थ मीनाधिप:।

    सूर्येन्दु-क्षितिज-प्रियो बुध-सितौ शत्रूसमाश्चापरे

    सप्ताङ्कद्विभव: शुभ: सुरुगुरु: कुर्यात् सदा मङ्गलम्।।

    शुक्रवार व्रतः सुख-समृद्धि और संतान

    सप्ताह के पांचवें दिन उपवास के साथ रखा जाने वाला यह व्रत संतोषी माता की पूजा से संबंधित है। इसे सर्व सुख कामना, मान-सम्मान, संतान और राज्य-साम्राज्य की प्रप्ति के लिए सोलह सप्ताह किया जाता है। इसकी विशेषता खट्टा खाने की मनाही को लेकर भी है। धार्मिक ग्रंथों और ज्योतिष के अनुसार जबकि इसके नीच में होने की स्थिति में यौन समस्यायों, रोगों या दूसरे कारणों से असंतुष्टि की स्थिति बन जाती है। शंकालु स्वाभाव शुक्र के कमजोर होने पर आ जाती है।

    क्यों करें?

    यदि आप दांपत्य सुख में कमी महसूस कर रहे हों। आप सशंकित स्वाभाव से ग्रसित हो गए हों। विवाह का जिनकी कंुडली में शुक्र ग्रह कमजोर स्थिति में होता है, उनके लिए इस व्रत को विधिवत करने से चमत्कारी लाभ मिलता है। ज्योतिष विज्ञान में शुक्र ग्रह न केवल भौतिक सुख देने वाला माना गया है, बल्कि यह यौन अंगों और वीर्य को भी प्रभावित करता है। अर्थात शुक्र का जीवन में सुख और सुंदरता के प्रति आकर्षण पैदा करने के साथ-साथ ‘काम शक्ति’ की प्रप्ति में महत्वपूर्ण भूमिक निभाता है। जिस किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र के उच्च और अच्छे योग होते हैं उन्हें पर्याप्त यौन सुखों की प्राप्ति होती है। लंबा समय गुजर जाने के बावजूद संतान सुख नहीं मिल पाया हो। जीवन में सुख की सरसता, सौभाग्य और धन-धान्य की कमी आ गई हो। किसी काम में बाधा आ रही हो। कुंडली में शुक्र का योग मंगल और केतु के साथ बन रहा हो। ऐसे में शुक्रवार का विधिवत व्रत करना चाहिए।

    कैसे करें?

    इस व्रत को शुक्ल पक्ष के पहले शुक्रवार से शुरु किया जाता है। हालांकि श्रावण माह के पहले शुक्रवार को शुरु करने से लक्ष्मी की विशेष कृपा रहती है। स्त्री या पुरुष दोनों को यह व्रत करना चाहिए। इस दिन मां संतोषी की पूजा की जाती है, जो लक्ष्मी का ही एक रूप है। इनकी आराधना इस प्रकार करनी चाहिए।

  • व्रत के दिन स्नान आदि के बाद सफेद वस्त्र में पूजा की तैयारी करनी चाहिए। घर के इशान कोण में मां संतोषी की तस्वरी स्थापित करनी चाहिए।
  • पूजा के इस्तेमाल की जानी सामग्रियों में धूप, दीप, कलश, चंदन, सफेद फूल, चावल, गुड़, भूना चना और सुपाड़ी मुख्य है।
  • पूजा से पहले कलश को जल से भर देना चाहिए। उसके ऊपर गुड़ और भूने हुए चने से भरा कटोरा रखना चाहिए।
  • पूजा के बाद मां संतोषी व्रत की कथा सुननी चाहिए। आरती कर गुड़-चने को प्रसाद के रूप में वितरित कर देना चाहिए। व्रत के अंत में स्वयं भोजन करना चाहिए।
  • इस व्रत के उद्यापन के लिए अंतिम अर्थात सोलहवें शुक्रवार को विशेष तैयारी करनी होती है। पुड़ी, खीर पकवान के साथ नैवेद्य रखे जाते हैं, लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी होता है कि उनमें रत्तीभर भी नमक और खट्टे पदार्थ का इस्तेमाल नहीं हुआ हो। विधिवत पूजा के बाद मां संतोषी की आराधना करते हुए नरियल फोड़ना चाहिए।
  • प्रसाद के रूप में तैयार किये गए पकवान आठ लड़कों को श्रद्धापूर्वक खिलाया जाना चहिए। सामथ्र्य के अनुसार उन्हें दक्षिण भी देना चाहिए। साथ ही उस दिन उन्हें खट्टा खाने से मना किया जाना चाहिए।
  • विशेष

    शुक्र दोष से ग्रसित व्यक्ति को ग्रह को अपने अनुकूल बनाने के लिए शुक्रवार व्रत के अलावा ज्योतिषीय सलाह भी माननी चाहिए। अच्छे योग देख कर शुक्र का रत्न पहनना चाहिए। संभव हो तो भगुबुधात्वि यंत्र भी पहना जा सकता है। सांड को गुड़ खिलाना तथा भिक्षुक को भोजन करवाने का विशष महत्व है। यह व्रत अनैतिक संबंधों और यौन रोगों से भी छुटकारा दिलाता है। अविवाहित लड़कियों को यह व्रत करने से उन्हें सुयोग्य जीवनसाथी मिलता है।

    शनिवार व्रतः कष्ट निवारण

    और व्यापार में भी बृद्धि

    भारतीय ज्योतिष के अनुसार शायद ही कोई व्यक्ति हो जो शनि के प्रभाव में नहीं आया हो। कंुडली में इसका असर लंबे समय तक बना रहता है, जिसे अत्यंत कष्टदायक और नुकसानदायक माना गया है। यही कारण है कि शनिवार का व्रत सभी वारों से अधिक महत्व रखता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार कंुडली में शनि की निर्बलता से सकारात्मक फल नहीं मिल पाता है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक शनिवार किया जाने वाला यह व्रत हर कोई कर सकता है। इस व्रत के करने से न केवल मानसिक परेशानी दूर होती है, बल्कि दर्द एवं स्नायु विकार संबंधी शारीरिक तकलीफों से भी मुक्ति मिलती है। इससे गृह की अरिष्ट शांति, शत्रु भय, आर्थिक संकट, मानसिक संताप का निवारण होता है, वहीं धन-धान्य और व्यापार में भी बृद्धि होती है।

    क्या करें?

    जिस व्यक्ति को जीवन में कदम-कदम पर मुश्किलों से जूझना पड़ रहा हो। काम बनते-बनते बिगड़ जाता हो। आमदनी में कमी आ रही हो। काम समय पर पूरा नहीं हो पा रहा हो या उलझनें आ रही हों। जोड़ों के दर्द, कमर के दर्द और स्नायू विकारा से शारीरिक तकलीफें बढ़ गई हों। ऐसे हालातों में समझना चाहिए कि जन्म कुंडली में शनि की साढ़ेसाती, शनि की ढैय्या या फिर शनि की महादशा, अंतर्दशा चल रही है। इसका ज्योतिष से सही आकलन करवाकर शनि की आराधना करना और नियमित रूप से 11 या 51 सप्ताह का व्रत रखना चाहिए। इससे कार्यक्षेत्र में कामकाज की प्रगति आती है। नये काम की शुरुआत होती है और मन में उम्मीदें जगती हैं।

    कैसे करें?

    वैसे तो शनि से प्रभावित व्यक्ति को हर शनिवार तिल या सरसों के तेल का दीपक पीपल के पेड़ के नीचे जलाने के उपाय बताए गए हैं, लेकिन शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शास्त्रों में विधिवत व्रत का भी विधान बताया गया है। इसे किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले शनिवारे शुरु कर अंतिम शनिवार को उद्यापन से पूर्णाहुति की जाती है। वैसे इसकी शुरुआत श्रावण मास के शनिवार को श्रेष्ठ माना गया है। तिल के तेल से भरे लोहे के कटोरे में शनिदेव की लोहे की मूर्ति का महत्व है। इस बारे में निम्नलिखित बातें महत्वपूर्ण हंै।

  • व्रत के नियमों का पालन करते हुए प्रातः सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। नित्यकर्म से निपटकर घर को गंगाजल से शुद्ध कर लेना चाहिए। पूजा के लिए आवश्यक वस्तुओं में तिल या सरसों का तेल, तिल, चावल, लौंग, काली उड़द, नीले फूल व फल, गुड़ काला वस्त्र है।
  • काले वस्त्र पहनकर पश्चिम दिशा की ओर मुख कर शनि देव की मूर्ति के सामने पूजा पर बैठना चाहिए। शनिदेव के प्रिय वस्तुओं से पूजन करने के बाद शनिदेव की आराधना शनि चालिसा, शनिस्त्रोत पाठ और आरती से करना चाहिए। कथा सुननी चाहिए। उसके बाद पिपल में जल डालना चाहिए तथा पीपल को सूत्र बांधकर सात परिक्रमा करना चाहिए।
  • शनि देव के नाम दीप पीपल के पेड़ के नीचे जलाना चाहिए।
  • एक समय में तेल, नारियल, चावल और उड़द के दाल से बना नमक रहित भोजन करना चाहिए।
  • शनि देव की पूजा के बाद राहू और केतु की भी पूजा करनी चाहिए तथा हनुमान चालिसा का भी पाठ करना चाहिए।
  • विशेषः

    शनि ग्रह की शांति के लिए निम्नलिखित मंत्रों का यथाशक्ति जाप किया जाना चाहिए और घोड़े की नाल का छल्ला पहनना चाहिए।

    शनि बीज मंत्र

    ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: ऊं शं शनिश्चराय नम:

    महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख जप (नित्य 15 माला, 125 दिन) करें-

    ऊँ त्रयम्बकम्‌ यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं
    उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योमुर्क्षिय मामृतात्‌।

    शनि के निम्नदत्त मंत्र का 21 दिन में 23 हजार जप करें

    ऊँ शत्रोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
    शंयोभिरत्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।

    पौराणिक शनि मंत्र

    ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।
    छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।

    स्तोत्र

    शनि के निम्नलिखित स्तोत्र का 11 बार पाठ करें या दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें.

    कोणरथः पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोन्तको यमः
    सौरिः शनिश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥

    तानि शनि-नमानि जपेदश्वत्थसत्रियौ।
    शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद् भविष्यति॥

    साढेसाती पीड़ानाशक स्तोत्र -

    नमस्ते कोणसंस्थय पिड्.गलाय नमोस्तुते।
    नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते॥

    नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च।
    नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो॥

    नमस्ते यंमदसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते॥
    प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च॥

    रविवार व्रत: सर्वमनोकामना की पूर्ति

    सुख-समृद्धि और सर्वमनोकामना की पूर्ति के लिए किये जाने वाला रविवार के व्रत की महिमा अपरंपार है। इससे न केवल शत्रु पर विजय की प्राप्त होती है, बल्कि संतान प्राप्ति के भी योग बनते हैं। साथ ही यह व्रत नेत्र रोग और कुष्ठ रोग के निवारण के लिए भी किया जाता है। रविवार के दिन भगवान सूर्य की आराधना सूर्य ग्रह के प्रभाव को सकारात्मक बनाने के लिए की जाती है। सूर्य शांति के लिए मानिक रत्न धारण कर लाल कपड़े के दान को शुभ और फलदायी बताया गया है। इसे इतवारी व्रत के नाम से भी जाना जाता है।

    क्यों करें?

    यदि किसी की कुंडली में सूर्य के अलावा कोई अन्य ग्रह अशुभ प्रभाव दे रहा हो और किसी विशेष कार्य में बाधा उत्पन्न हो रही हो, तो वैसे व्यक्ति को रविवार का व्रत करना चाहिए। इसके अतिरिक्त यह व्रत अच्छी सेहत और तजस्विता देता है। स्वभाव में आत्मविश्वास आता है। आयु और सौभाग्य में बृद्धि होती है। स्त्रियों में इस व्रत से संतनहीनता दूर होती है।

    कैसे करें?

    यह व्रत सूर्याष्ठी रथ सप्तमी या शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से आरंभ कर प्रत्येक रविवार को 12 सप्ताह या पूर एक साल रखना चाहिए। विशेष कामनाओं के लिए इसे बारह साल तक किया जा सकता है। व्रत के दिन तेल और नमक का परहेज करते हुए सूर्य भगवान का ध्यान करना चाहिए। इसे एक दिन के उपवास के साथ विधिपूर्वक इस प्रकार से किया जाता है।

  • रविवार को सूर्योदय से पहले उठकर नित्यकर्म से निपटने और स्नानादि कर घर के ईशान कोण में किसी पवित्र स्थान पर भगवान सूर्य की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए।
  • व्रत के लिए संकल्प के बाद सुगंध, धूप, फूल, दीप आदि से लाल चंदन का तिलक लगाकर सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए। पूजा के लिए लाल रंग का फूल शुभ होता है।
  • दोपहर के समय एक बार फिर भगवान सूर्य को अध्र्य देकर पूजा के बाद कथा करना या सुनना चाहिए।
  • व्रत के दिन सिर्फ गेंहू के आटे की रोटी गुड़ के साथ सेवन करना चाहिए। साथ में दलिया, घी और शक्कर हो सकता है। किसी कारण सूर्य अस्त हो जाने तक भोजन नहीं कर पाने की स्थिति में अगले दिन के सूर्योदय तक निराहार रहना चाहिए। प्रातः स्नानादि कर सूर्य भगवान को अध्र्य देने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।
  • विशेष

    ज्योतिष विज्ञान में सूर्य को आत्मा का कारक बताया गया है। इससे ही करियर और कारोबार में उन्नति के लिए आत्मविश्वास आता है। राजकीय हो या फिर आपका कार्यक्षेत्र, उनमें मान-सम्मान तभी मिल पाता है जब आपकी कुंडली में सूर्य अनुकूल हो। सूर्य के प्रतिकूल होने की स्थिति में अनगिनत असफलताएं आ जाती हैं। इस तरह की परिस्थतियांे में सूर्य यंत्र की प्रतिष्ठा कर धारण करने से शीघ्र लाभ मिलता है। पौष मास के रविवार और सूर्य यंत्र एवं मंत्रों के महत्व का बखान विभिन्न शास्त्रों में किया गया है। पौष मास के रविवार को नमक रहित भोजन करने के विशेष तरीके बताए गए हैं।

    सूर्य यंत्रः इस यंत्र को धारण करने से पहले इसे भगवान विष्णु के सम्मुख रखकर पूजन करना चाहिए। इसके लिए हरिवंश पुराण की काथा का आयोजन भी करवाया जा सकता है।

    मंत्र

    सूर्य भगवान को प्रसन्न करने के लिए आसानी से उच्चारण के साथ पाठ किये जाने वाले महत्वपूर्ण मंत्र इस प्रकार हैंः-

    ऊँ घृणिं सूय्र्यः अरदित्यः

    ऊँ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवंछित फलम् देहि देहि स्वाहा।

    ऊँ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयोमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकरः।

    उच्चारण दोष नहीं होने की स्थिति में आदित्य हृदय स्तोत्र का जाप किया जाना चाहिए। (कुल शब्दः 589)