Aditi in Hindi Love Stories by Gautam Thummar books and stories PDF | अदिती

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अदिती

आमंत्रीत सभी गेस्ट का आना जारी था। मैं काफी खुश था, क्योंकि सभी ने हमारे आमंत्रण को स्वीकारा था और इस आर्ट अेक्जीबिझम् की शान बढाई थी। मेरी पत्नी अदिती काफी खुश नजर आ रही थी और आती भी क्यों नहीं? आखिर ये अेक्जीबिझम् उनके लिए ही तो था।
उनकी दिन-रात की मेहनत, उनकी हंसी, उनका दर्द, उनकी सोंच, उनके सपने ये सब उनकी बनाई हुई पेइन्टींग में छलक रहा था और आज वो अपनी कला को सबके सामने लाके गर्व महसूस कर रही थी। मैं उनकी हंसती हुई आंखों को देख रहा था।
अदिती शहर के आर्ट क्युरेटर्स को अपनी पेइन्टींग दिखाने में व्यस्त थी। मैं अपनी नजरें होल में चारो तरफ फिराता हुं। सब लोग काफी बारीकी से अदिती के पेइन्टींगस् का निरीक्षण कर रहे थे। लोगों के चेहरे की रोनक देखते ही मुझे अंदाजा आ जाता है कि सबको पेइन्टींगस् जरूर पसंद आ रही होगी।
"समीर...!"
मेंने पीछे मुडके देखा। मेरे सामने बहोत ही खूबसूरत चेहरा था। एक ही नजर में पसंद आ जाए ऐसा। वो अदिती थी, मेरी पत्नी। वो खूबसुरत तो थी, पर साथ में बहोत ही अच्छा दिल भी था।
"कुछ काम था अदिती?"
"समीर पीछे मुडके देखो नौ नंबर वाली पेइन्टींग की तरफ।" अदिती के कहने पर मैं पीछे देखता हुं। जैसे ही मेरी नजरें नौ नंबर वाली पेइन्टींग की तरफ जाती है, तो एक पल के लिए मुझे लगा कि सब कुछ थम गया है। अेक्जीबिझम् में आए लोग, अदिती की हंसी, मेरी सांसे, यहां तक की सारी दुनिया थम सी गई हो ऐसा लग रहा था।
"वो प्रीती है ना?" अदिती ने मेरे कंधों पर हाथ रखते हुए कहां। मैं उनकी बात का जवाब नहीं दे पाया। मैं सोच रहा था कि अदिती कैसे पहचान गई प्रीती को? उसने तो एक ही बार प्रीती की फोटो देखी थी, शायद प्रीती की आंखों से पहचान गई होगी, दुनिया की सबसे खूबसूरत आंखें जो थी उनकी।
प्रीती को देखके मुझे वो सारी बातें याद आने लगी जो मेंने उनके साथ की थी और उसने मेरे साथ। हम दोनों इन्टरनेट से मिले थे। देर रात तक हम चेट् किया करते थे। हंसना, झगडना, रूठना, मनाना ये सब जारी रहता था। वो प्यार से मुझे स्टूपीड कहती थी, जबकिं में उसे पागल कहता था। बातों-बातों में हम एक दूसरे को जानने लगे, पसंद करने लगे, प्यार करने लगे और हम जिंदगी के सबसे हसीन पलो में जीने लगे।
मैं रोज उसे अपनी गोद में उसका सिर रखके सुलाता था। हा हम दोनों अलग-अलग शहर में थे, पर एेसा महसूस करते थे, जैसे कि हम पास-पास हो और वो भी जब तक मैं ना सूलाउं तब तक सोती ही नहीं थी। पागल जो थी वो।
मेसेज में कीस करना, हग करना, प्यारी स्माइली भेजना ये सब जब तक ना मिले तब तक एक दूसरे को चैन नहीं मिलता था, अगर दोनों में से किसी को रिप्लाय करने में देरी हो जाए तो उनके मेसेज का इंतजार करना, उनका ओफलाइन से ओनलाइन होने की राह देखना ये सब मानो एक अजीब सा सुकून भरा एहसास कराता था। आखिर प्यार जो था हमारे बीच में और प्यार वाले हर पल हसीन ही होते है।
पर पता नहीं क्यों प्रीती हमारे प्यार को अंजाम तक नहीं ले जा सकी। उसने अचानक से मुझसे जुदा होने का फैसला किया। मेंने लाख मनाया पर वो नहीं मानी, शायद वो इन्टरनेट वाले प्यार को नहीं मानती होगी, या फिर वो अपने पापा को ये बात बताने से डरती होगी। प्रीती मुझसे जुदा होते वक्त काफी रोई थी। कुछ दिनों बाद मुझे उनकी फेसबुक वोल से पता चला कि उनकी शादी हो गई है और अभी अेक्जीबिझम् में उनके साथ जो आदमी है वो शायद उनका पति ही होगा।
जिस लडकी को मेंने प्यार किया, जिस लडकी को मेंने अपनी जिंदगी में पहली बार "i love you" कहां। उस लडकी से मैं मिले बिना ही बिछड गया। मैं उसे मिलना चाहता था, क्योंकि मेंने उनसे प्यार किया था, मैं उनके हाथों के स्पर्श को महसूस करना चाहता था। मैं उनको छूकर तृप्त होना चाहता था। उसको भूलाना मेरे लिए आसान नहीं था। शादी के बाद भी मैं उसे पूरी तरह भूला नहीं पाया था। आज वो लडकी मेरे सामने खडी है। जिससे मिलने की मेरी ख्वाइश थी, जिससे मिलने को मैं बेकरार था, उसे मैं अपनी नजरों के सामने देख रहा था।
"समीर जाओ प्रीती से मिलो।" अदिती ने मेरा हाथ पकड के कहा। मैं अपने खयालों से बहार आया। वास्तवीक्ता में, जहां मेरे साथ मेरी प्यारी पत्नी थी और दूसरी तरफ वो लडकी जिसे मैं कभी मिला नहीं था, पर जिंदगी में सबसे ज्यादा प्यार उसीसे किया था।
"क्या वो मुझे पहचान पाएगीं?" मेंने अदिती से पूछा।
"मुझे यकीन है, जिस तरह तुम उसे नहीं भूल पाए उसी तरह वो भी नहीं भूली होंगी।
मैं प्रीती से मिलने उनकी तरफ चल देता हुं। आज मैं अपने प्यार से मिलुंगा, आज उस स्पर्श को महसूस करुंगा जो हमने मेसेज में चेट् करते महसूस किया था। धडकनें तेजी से चल रही थी, खून भी रफतार से दोड रहा था। प्रीती से मिलने की बेकरारी खतम होने को ही थी पर अचानक मैं रूक जाता हुं, मैं आगे चल नहीं पाता, कुछ था जो मुझे रोकने पर मजबूर कर रहा था।
मैं पीछे की तरफ मुडता हुं। मेरे पीछे अदिती थी। मुझे रूका हुआ देख वो हैरान थी। कुछ पल के लिए हम एक दूसरे को देखते रहे। उसने मुझे आगे जाने का इशारा किया, पर मैं अब भी उन्हें ही देख रहा था। मैं उनकी आंखों में बाहर आने को तडप रहे आंसूओं को देख रहा था। मेंने उसका झूट्ठ पकड लिया। वो मुझे प्रीती से मिलने को कह रही थी, पर वो अंदर से तो यही चाहती थी कि मैं ना जाउं, मैं उसके साथ ही रहुं, उनके हाथो में हाथ पकड के।
कितना सह रही है अदिती मेरे लिए और मैं पागलो की तरह अपने अतीथ के लिए अपना वर्तमान और भविस्य दु:खी कर रहा हुं। मैं अपने कदम अदिती की ओर बढाता हुं और उनके सामने खडा हो जाता हुं।
"समीर जल्दी जाओ। नहीं तो वो चली जाएगीं।"
"प्रीती का समीर कब का चला गया अदिती! अब जो तुम्हारे सामने खडा है वो सिर्फ अदिती का समीर है। वो अदिती जिसने अपने पति को बहोत प्यार किया है, अपने पति की खुशी के लिए हर गम को सहने की हिंमत दिखाई है और मैं था जो तुम्हारे जैसी पत्नी के होते हुए भी अपने अतीथ को पकडे रखा था। अदिती मैं तुम्हारा मुरीद हो गया हुं।"
मेरी बातें सुनकर वो अपनी आंखों में कब से रोके हुए आंसूओं को किसी सैलाब की तरह बहा देती है और रोते-रोते हंसने लगती है। यही तो होता है जब हम भावुक होते है तब आंखों में आंसू और होंट्ठों पे हंसी होती है। मेंने अदिती को गले लगाया, शायद पहली बार मैं उसे गले लगाके तृप्त कर रहा था, क्योंकि इस वक्त मेरे दिल में, मेरे दिमाग में, मेरी नस-नस में अदिती ही थी।

( होती है ऐसी बहोत सी जिंदगी जो अपने अतीथ को लेकर दुखी होती है। सबकी अपनी-अपनी कहानी है, कोई पिछली बातों को भूला देता है तो कोई लाख कोशिश करने पर भी भूला नहीं पाते। सबकी अपनी-अपनी प्रोब्लम है लेकिन ये बात कितनी जायज है कि हम अपने बीते हुए कल की याद को लेकर अपने आज को और भविष्य को बरबाद करे? आखिर हम सबकुछ तो साथ लेकर तो नहीं चल सकते ना! जिंदगी है सुख, दुख, हंसना, रोना सबकुछ आएगा, बस हमे सब स्वीकार करके जीना है।)