Pujniy Pitaji ko Patra in Hindi Letter by Amrita shukla books and stories PDF | पूजनीय पिताजी को पत्र

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पूजनीय पिताजी को पत्र

Amrita Shukla

ami11.shukla@gmail.com

पूजनीय कक्का जी,
सादर प्रणाम,
परसों आपका पत्र मिला। पत्र पढ़कर एक संबल एक ठहराव का अनुभव हुआ। जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब हम कोई बड़ा निर्णय लेना तो चाहते हैं पर इस बात से भी ड़रते हैं कि यह गलत तो नहीं हो रहा।इसका कारण यह है कि हमारे पास न उम्र का कोई ठोस अनुभव होता है न ही परिपक्वता। आपने लिखा है कि "मैं भावुक भी नहीं हूं और आदर्शवाद का मुखौटा लेकर चलने वाला भी नहीं हूँ लेकिन निष्कर्षत: इतना कह सकता हूँ कि प्राचीनता की पवित्र आदर्शवादिता की दुहाई देकर धुंधुआते हुए जीने और सहने का कतई समर्थन नहीं करता।अपनी आंतरिक सच्चाई और सात्विकता के साथ सिर उठाकर जीने का अधिकार पहला है। तुम जो भी निर्णय लोगी सोच समझ कर लोगी और हम सब उसमें साथ रहेंगे।तुम पर पूरा पूरा विश्वास है कि तुम सही निर्णय लोगी ।पिता का घर आंगन तुम्हारे लिए न तो परबत होगा और न ही बिदेस। यह मैंने इसलिए लिखी थी कि तुम्हें इनसे स्वावलम्बन दृढ़निशचिन्तता की प्रेरणा मिले।"आपके इन मजबूत विचारों ने मुझे सही निर्णय लेने की क्षमता दे दी है। आपकी छत्रछाया में हम सब भाई बहनों ने परिवार में हमेशा प्यार दुलार संस्कार का वातावरण पाया है।सबने आपसे साहित्यिक गुण विरासत में लिए और आपकी रचनाएँ सुनकर हम बडे हुए है।इसलिए कोई भी गलत बात या गलत वातावरण में स्वयं को ढाल नहीं पाते ,स्वीकार नहीं कर पाते।यही कारण है कि हम सब आपसे अपनी बात कह पाते है और हमें पता है आप हमें समझ कर ही सही सलाह देगें ।आपने भी तो कभी गलत बात से समझौता नहीं किया और इस कारण कितनी बार आपको तकलीफ हुई।आपने लिखा था_____मै रमा नहीं सुविधाओं में
मै भ्रमा नहीं दुविधाओं में
मैने सर गिरवी नहीं रखा
मैंने स्वर गिरवी नहीं रखा।
मैं सबसे छोटी और सबसे लाड़ली रही हूँ।कहीं भी जाना होता तो मैं ही साथ जाती थी।सब भाई बहनों और मुझमें उम्र का अधिक फासला होने से अपने में ज्यादा मस्त रहती थी।आपने तो मेरे लिए बाल कविताएं भी लिखी थी____आज बबली की गुडिया की शादी होगी _____घी शककर किशमिश की बरबादी होगी आज बबली पकवान तलेगी
सब्जी कच्ची रह जाएगी ,पूडी जलेगी ।कैसे मानेंगे रुठे हुए बाराती,कैसे होगी अब गुडिया की शादी।
जब मै और बड़ी हुई तो सब बहनों और भाई की शादी हो गयी थी ।सब अपने घर जा चुके थे भाई भी।बस हम तीन लोग ही रह गए थे।आप रिटायर हो गए थे।तब मैं और आप अक्सर ताश ,लूड़ो,चैस ,कौडियों वाला गेम जिसे हम अठ्ठू कहते थे ,खेलते।तब अंम्मा भी काम निपटा कर हमारे साथ खेलने लगती। मेरी शादी के लिए आपने रिश्ता तय किया पर दूसरों पर भरोसा रखने के कारण गड़बड़ हो गयी।इसलिए आप हमेशा इस बात के लिए स्वयं को जिम्मेदार समझते रहे।लेकिन कहते हैं न भगवान जो करते हैं अच्छे के लिए करते हैं तो आप मत परेशान हो मेरे लिए भी अच्छा होना होगा। आपने मेरे अदंर की प्रतिभा को निखारने कहा इसलिए मैने लिखना शुरू किया।भगवान ने कुछ अच्छा ही सोचा होगा।ऐसे ही कुछ भाव ले कर मैंने लिखा था______भगवान जिसके साथ है,
फिर ड़र की क्या बात है।
सुख मिलेगा दुख हटेगा
दिन रात समृद्धि का वास है।
अपने रास्ते तू बढ़ता चल,
वो पथ प्रदर्शक है बड़ा
बाधाएं सारी दूर होगीं
बस प्रार्थना है धन गड़़ा
मंजिल मिलेगी तुझे,जब उसका पाया हाथ है
सौंप दे अपने आप को
समझ ले तू तर गया है
विनय कर श्रद्धा से भर
समझ कष्ट हर गया है
वो वृक्ष है विशालकाय,तू शाख का एक पात है। भगवान जिसके साथ है फिर ड़र की क्या बात है।

आप लोगों की अच्छी परवरिश थी कि मैं उस वातावरण में भी इतने साल रह पायी। दोनों छोटे बच्चों और संयुक्त परिवार में रहते हुए कॉलेज के लैक्चरार और प्रोफेसर की पीएसी परीक्षा पास की। पर पता नहीं इटरव्यू लेटर न मिलने से मैं कॉलेज में नहीं लग पायी।आपने कहा भी था कि चलकर देख लेते हैं पर मै नहीं गयी क्योंकि घर की शांति ज्यादा जरूरी होती है।बच्चे अच्छा पढ़ रहे है और दूसरे सांस्कृतिक कार्यक्रम मे भी हिस्सा लेते हैं।स्कूल में होने वाले खेलकूद और नाच गाने नाटक सब में और हमारे घर के पास गणेश ,दुर्गोत्सव में भी भाग लेते हैं।गगन पढने से ज्यादा शैतानी में अधिक दिमाग लगाता है इसलिए उसकी चिंता होने लगती है ।अभी तो छोटे ही है सैकंड और नर्सरी में हैं पर आगे केलिए कुछ सोचना आवश्यक हो गया है ।एक दिन स्कूल की छुट्टी थी पर कार्यक्रम की तैयारी के लिए जब रिक्शा वाला आया तो गगन घर से गायब थे।बाबूजी बडे नाराज हो गए और कहने लगे आवारा होता जारहा है।सुनकर अच्छा नहीं लगा।यहाँ के घर बाहर के वातावरण में वो नहीं पनप पाएंगे। मेरे जाने के बारे में पता लगने पर उन्होंने मेरी नंनद से समझाने कहा था।उन्होंने अपनी बडी सी संपत्ति को छोडकर न जाने की बात कहीं ।पर मुझे संपत्ति से ज्यादा बच्चों को बनाने की चिंता थी क्यों कि पूत सपूत तो क्यों धन संचय,पूत कपूत तो क्यों धन संचय ।विश्वास दिलाती हूँ कि आप सब के विश्वास को कभी गलत और कमजोर साबित नहीं होने दूंगी। दोनों बच्चों के भविष्य के लिए इस फैसले से सबको उस समय और नाज़ होगा जब ये लोग हमारा नाम रौशन करेंगे। अब मै निशिचिंतता से आगे कदम बढा सकती हूँ।आप स्कूल कॉलेज कहीं भी मेरे लिए बात करिएगा।ताकि मन भी लगा रहे कुछ आय हो ।वैसे यह बूंद भर होगी।बस आपके और अंम्मा की शुभकामनाएं और आशीर्वाद के साथ अपना जीवन दुबारा जीने निकल पड़ी हूँ। अपने और बच्चों की तरह से आप दोनों को प्रणाम ।आप दोनों के स्वस्थ रहने की प्रार्थना करती हूँ ।कहते है कि रात के बाद सुबह तो अवश्य आती है इसलिए व्यक्ति को अपना धीरज नहीं खोना चाहिए। यही वाक्य अपने जीवन में रखना चाहती हूँ।आपके और अंम्मा का आशीर्वाद कठिन डगर में हाथ थामा रहे। इसी कामना के साथ इन लिखी पंक्तियों से पत्र बंद कर रही हूँ_____
विष अमृत में द्वंद् होता है
जागता है भाग्य सदा नहीं सोता है।
होगी रात की गहरी स्याही जितनी
सुबह का उजाला उतना तेज होता है।

आपकी बेटी
बबली