जब काटे छोटे-मोटे जीव-जंतु
आमतौर पर पर सामान्य घर में पाया जाने वाला जीव-जंतु कई बार जानलेवा साबित हो जाते हैं। जैसे -छिपकली। लेकिन कुछ के काटने खतरनाक रोग होने का खतरा रहता है तो कुछ के काटने से कई तरह से मुसीबतें आ जाती हैं। चूहा, छिपकली, ततैया, बिच्छू, लाल चींटी, मधुमक्खी, कीट आदि के काटने से बेवजह परेशानी आ जाती है। आइए जानते हैं कि इनके काटने पर किस तरह का प्राथमिक उपचार किया जाना अच्छा होता है।
चूहा
अमूमन सभी घरों में पाया जाने वाला चूहा, खेत और खलिहान में भ्ीा पाए जाते हैं, जो एक एक डरपोक जीव हैं। चूहा सामने से नहीं काटता है, लेकिन सोते वक्त वह आपको काट सकता है या खाने - पीने के सामान को कुतर कर इन्फेक्शन दे सकता है। चूहे के काटने से आपको उलटी - दस्त की समस्या से लेकर प्लेग जैसी जानलेवा बीमारी हो सकती है। जानलेवा और तेजी से फैलने वाले प्लेग की सबसे बड़ी वजह चूहा ही है। यह देखेत ही देखते महामारी का रूप ले लेती है। प्लेग का कोई प्री - वैक्सिनेशन या इलाज नहीं है और अगर यह हो गया तो इसे महामारी का रूप लेते देर नहीं लगती। ऐसे में प्लेग की आशंका होने पर फौरन डॉक्टर से संपर्क करना ठीक होता है। चूहा काटे व्यक्ति पर दस दिनो तक नजर रखनी चाहिए और तत्काल प्राथमिक उपचार किया जाना चाहिए।
चूहा के काट लेने कि स्थिति में सबसे पहले खून बहने को रोका जाना चाहिए। खून बंद हो जाने के बाद काटे स्थान को पानी या ऐंटिसेप्टिक सल्यूशन, यानि डिटॉल , स्पिरिट , आफ्टर सेव लोशन आदि से साफ कर लेना चाहिए। उसपर साफ पट्टी बंाध से सुरक्षा मिलती है। कुछ दिनों तक कटे स्थान पर लालीपन, सूजन और मवाद का पर नजर रखनी चाहिए। डाॅक्टर को दिखाना चाहिए।
गहरे कटे होने की स्थिति में टांकें भी लगवा लेना चाहिए। चूहा काटने पर बुखार, सिरदर्द, मतली और पीठ एवं जोड़ों में दर्द की शिकायतें हो सकती है, जिससे रैट-फीवर के लक्षण कहे जाते हैं। हालांकि इसका असर दस दिनों में खत्म हो जाता है। वैसे इसके बचाव के उपाय ही बेहतर होते हैं। कोशिश करें कि आप जहां रहते है , वहां चूहे न हों। चूहों को खत्म करने के लिए चूहे मारने वाली दवा का इस्तेमाल करना बेहतर उपाय हो सकता है।
छोटे मगर खतरनाक
ज्यादातर ग्रामीण इलाके में खेतों के आस-पास पाया जाने वाला बिच्छू के डंक को लेकर भी लोगों के मन में तरह - तरह की आशंकाएं रहती हैं। इसके विष के असर से बचने के लिए आम ग्रामीण ओझा - गुनी के चक्कर में पड़ जाते हैं। उन्हें होश तब आती है जब मरीज लाइलाज हो जाता है। दरअसल वे झाड़-फूंक से बिच्छु के काटे का नहीं, बल्कि अपने वहम का इलाज करा रहे होते हैं। क्योंकि साइंस कहता है कि अगर बिच्छू ने काटा हो तो आप सबसे पहले उस हिस्से को पानी या डेटॉल से अच्छी तरह साफ कर लेना चाहिए। उसके बाद ऐंटि - एलर्जिक दवाओं में एविल , सिट्रिजन वगैरह से डंक के असर को खत्म किया जा सकता है। ये जेनरिक दवाओं के नाम हैं , जो अलग - अलग ब्रैंड के नाम से बाजार में मिलते हैं।
छिपकली
छिपकली के काटने को लेकर भी बहुत सारे वहम लोगों के जहन में हैं। सच्चाई यह है कि छिपकली के काटने से कोई नुकसान नहीं होता, क्योंकि जहर उसके ग्लैंड्स में नहीं, स्किन में होता है। कई लोग छिपकली के अपने ऊपर गिर जाने को भी तरह - तरह से नुकसानदायक मानते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि छिपकली की स्किन आपके स्किन के संपर्क में आ जाने भर से नुकसान हो जाएगा। नुकसान तब हो सकता है , जब छिपकली आपके खाने - पीने के सामान में गिर जाए। उदाहरण के लिए दूध , पानी या गर्म सब्जी में छिपकली के गिर जाने पर नुकसान होता है, क्योंकि छिपकली की स्किन का जहर आसानी से इन चीजों में घुल जाता है।
यदि छिपकली गिरा खाना खा लने के बाद यह पता लग जाए कि खाने में छिपकली गिरी थी तो मुंह में उंगली डालकर उलटी करने के तुरंत बाद फौरन डॉक्टर के पास जाना चाहिए। इसके साथ ही डाक्टर के निर्देश का सही तरीके से पालन करें। ऐंटि - एलर्जिक दवाएं कितनी मात्रा में लेनी है, इसकी सलाह आप डॉक्टर से जरूर लें , क्योंकि अलग - अलग वजन या उम्र वाले शख्स को यह अलग - अलग मात्रा में दी जाती हैं। ऐसा न करने पर इसका उलट असर भी पड़ सकता है।
ततैया
ततैया के काटने से खुजली, सूजन और उस हिस्से का लाल होने जैसी एलर्जी हो सकता है। इस तरह प्रतिक्रिया कम होने की स्थिति में ततैया के काटे हिस्से को ठंडे पानी से साफ करने , ठंडक प्रदान करने वाली क्रीम, टूथपेस्ट या गीला आटा लगाने से भी आराम मिल जाता है। घर में बीटाडीन हो तो उसे भी इस्तेमाल कर सकते हैं। वह भी सूजन पर कारगर होता है। कई लोग ततैया काटने पर लोहा घिसने या अचार बांधने जैसे नीम - हकीमी इलाज करते हैं, जिससे पीडि़त को रहत के वजाय इन्फेक्शन का खतरा बढ़ता है। इसके सूजन में ऐंटि - इन्फ्लमेट्री दवाएं कारगर होती हैं , लेकिन ऐसी कोई भी दवा डॉक्टर से पूछे बगैर नहीं लेना चाहिए। काटे स्थान पर ज्यादा प्रतिक्रिया हाने या चेहरे या कमर के हिस्से में लाल धब्बे भी होने जैसी आशंका बन सकती हैं। ततैया के काटने पर दमे के मरीज को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। इसमें ऐंटि - एलर्जिक दवाओं से राहत मिलती है।
मधुमक्खी या लाल चींटी
ज्यादातर कोई कीड़ा काट ले या मधुमक्खी का डंक लग जाये तो घर परही इलाज किया जा सकता है। हालांकि मधुमक्खी के काटने पर थोड़ा बुखार या हल्की सूजन हो सकती है। इसके काटे स्थान पर बर्फ या ठंडक प्रदान करने वाली क्रीम मलकर ठीक किया जा सकता है। साथ ही आप ऐंटि - एलर्जिक दवाएं भी ली जा सकती है हैं। लेकिन इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि कई बार मधुमक्खी के काटने से तेज एलर्जिक रिऐक्शन हो सकता है। इसे मेडिकल साइंस एनाफायलैक्सिस का नाम देती है। इसमें भयंकर सूजन और दर्द होता है। इसलिए अगर मधुमक्खी के काटने के बाद फर्स्ट - एड लेने पर भी बुखार या सूजन बरकरार रहे तो फौरन डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
मधुमक्खी का डंक जहां जहरीला होता है , वहीं कीट - पतंगों या लाल चींटी के डंक में जहर नहीं होता। अगर किसी कीट या लाल चींटी वगैरह के काट लेने से आपकी स्किन लाल हो जाती है या उस पर सूजन होती है तो आप ऐंटि - एलर्जिक दवाएं लेनी चाहिए।
प्रस्तुति: सुनीता सुमन