बेबनी साहब ।
1-
भीख़ मांगते हाथ।
2-
अपूर्ण अंतिम क्रिया।
3-
अछूत।
4-
समाज तेरी सोच।
5-
मुकदमा।
6-
मुकदमा-२
7-
विदाई।
भीख़ मांगते हाथ।
बेबनी साहब बल्लभगढ़ की तंग गलियों और बाजारों से होते हुए अपने दफ्तर की ओर जा रहे थे। दफ्तर तक जाने के दो ही रास्ते थे। एक मार्ग गलियों से होते हुए जाता था और दूसरा सड़क मार्ग से। बहुत कम ही ऐसा होता था कि बेबनी साहब गलियों से जाये। वो तो आज स्कूटर ख़राब हो गया तो उन्होंने सोचा क्यों न गलियों से ही चला जाये। काफी समय हो गया था उनको यहाँ से गुजरे।
बाजार की रौनक तो देखने लायक ही होती थी। कहीं चाट बनाये जा रहे होते थे तो कहीं कपडों पर भारी छूट मिल रही होती पर बाज़ारों में भीख़ माँगते हाथों को देख बेबनी साहब को बड़ी दया आती। आज भी कुछ बच्चे वहाँ भीख मांग रहे थे। बेबनी साहब ने जेब में हाथ डाला, २ रुपए के ४ सिक्के थे। जेब में ही उन सिक्कों को मुट्ठी में बंद कर दिया। एक क्षण तो सिक्के निकालने की कोशिश भी कर दी पर दिमाग में ख्याल आया, और खुद से बोल पड़े- बेबनी जी इन लोगों का क्या भरोसा, कहीं बीच बाजार में हाथ-पैर पकड़ कर और पैसे न मांगने लग जायेगें?
उधर एक कार में बैठे शख़्स ने उन्हें धिक्कारते हुए कहा-तुम्हारे माँ-बाप ने तुम लोगों को पैदा कर के सड़क पर छोड़ दिया है और अब तुम लोग हमारी जान खा रहे हो।
बेबनी साहब यह देख कर आगे निकल गए। अभी कुछ दूर ही गए थे कि अचानक एक हट्टा-कट्टा नेपाली युवक उनके पास आया। बेबनी साहब उनके तौर-तरीके व बोलने के ढंग से जान गए कि वो युवक नेपाली ही है।
युवक ने बेबनी साहब को देखा, फिर इधर-उधर नज़र दौड़ाई और अचानक बेबनी साहब के पैर पकड़ लिए। अब तो यह हालात हो गयी कि आस-पास के लोग बेबनी साहब को घूर-घूर कर देखने लगे।
वह युवक बेबनी साहब से बोला- साहब मुझे आपकी मदद चाहिए। मुझे आज तनख्वा मिलनी थी, मैं यहाँ आया पर किसी ने मेरी जेब काट थी। पर्स में तनख्वा के ८००० रुपए और साथ में कुछ पैसे भी चले गए। आप मेरी मदद कर दीजिये। मुझे घर जाना है।
(
बेबनी साहब ने सबसे पहले उस युवक को उठाया और एक तरफ ले गए। वह नहीं चाहते थे कि आस-पास के लोगों के सामने उनका तमाशा बने।)
बेबनी साहब बोले- अच्छा तो मुझे यह बताओ कि मैं तुम्हारी किस प्रकार से मदद कर सकता हूँ?
युवक बोला- मुझे दिल्ली जाना है ट्रेन से। यहाँ से दिल्ली जाने का किराया 18 रुपए है। आप मुझे 18 रुपए दे दीजिये। यहाँ से स्टेशन तो मैं पैदल ही चला जाऊंगा। बस आप मुझे ट्रेन के किराये के लिए पैसे दे दीजिये। आपकी बड़ी मेहरबानी होगी।
बेबनी साहब का दिल तो उस युवक की मदद के लिए तैयार हो गया पर दिमाग अब भी तैयार न था। अंत में दिल और दिमाग की जंग में जीत दिल की हुई। बेबनी साहब ने वहीं आठ रुपए के सिक्के और एक दस का नोट उस नेपाली युवक को थमा दिया। उसने बेबनी साहब को धन्यवाद दिया और पैर छूकर आगे बढ़ गया। संयोग वश से बेबनी साहब भी स्टेशन वाले रस्ते से ही जा रहे थे।
युवक आगे तेज़ी से निकल रहा था और बेबनी साहब पीछे ही चल रहे थे। पैसे लेने के बाद युवक ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
बेबनी साहब मन ही मन सोचने लगे- बेचारा कितना परेशान है और दूसरी तरफ वह बच्चे जो बिना बात के ही भोली-भाली शक्ल लिए हाथ फैला देते है।
पर जैसे-जैसे वह युवक आगे बढ़ रहा था वैसे-वैसे बेबनी साहब का विश्वास भी कमज़ोर हो रहा था। अब तो उनके मन में एक मुकदमा चल रहा था जहाँ एक पक्ष और दूसरा विपक्ष बैठा था। एक कहता पैसे देकर आपने गलती की और दूसरा कहता कि नहीं आपने मदद की है औने कुछ गलत नहीं किया।
अब बेबनी साहब तेज़ी से उस युवक के पीछे चलने लगे और इस बार वो ज़रा उसके नज़रों से बच कर चल रहे थे। वह ज्यादा दूर नहीं जा पायेगा, अगर मेरी आँखो से ओझल हो गया तो? नहीं अभी नहीं जा पायेगा बच कर। मैं उसे पकड़ लूंगा। ( मन में तरह-तरह के प्रशन-उत्तरों का खेल चलता रहा।)
यह सिलसिला १० (10) मिनट का चलता रहा।
एका-एक उस युवक के कदम रुके। बेबनी साहब भी संभल गए और एक तरफ छुप गए। उसने पीछे मुड़ कर देखा और फिर सामने शराब की दुकान से एक देसी दारू की बोतल ली और वही १८(18) रुपया शराब वाले को थमा दिए। (
यह देखकर बेबनी साहब को बड़ा पछतावा हुआ। वह अपनी नज़रो में गिर से गए। शर्म से पानी-पानी हो गए और वह अपने आप को कोसते रहे। वह पाप के भागीदार जो बन गए थे। बोलने लगे-हाय एक नशेड़ी को नशा करने की चीज़ थमा दी।)
वह अब अपनी जेब में हाथ डाल रहे थे इस उम्मीद से कि वह सिक्के उन बच्चों को दे देते तो कितना अच्छा होता।
शाम को उसी रस्ते से आते वक़्त बेबनी साहब को वही बच्चे दिखे जो सुबह भीख़ मांग रहे थे। बेबनी साहब ने अपने पर्स से २० रुपए निकाले २ बिस्कुट के पैकेट लिए और उन बच्चों के पास जाकर उनके हाथों में थमा दिए। एक हल्की सी मुस्कराहट के साथ उन बच्चों ने बेबनी साहब को देखा और ख़ुशी-ख़ुशी उन बिस्कुट के पैकेट को रख लिया। बेबनी साहब अब अपने आप को हल्का महसूस कर रहे थे। हो भी क्यों न सारे दिन वह पछतावे कि आग में जलते रहे और एक बोझ अपने सीने तले लिए रहे कि आज उनसे कितनी बड़ी भूल हो गयी। खैर जो हुआ उसको बदला तो नहीं जा सकता था पर उससे सबक ज़रूर लिया जा सकता था।
अपूर्ण अंतिम क्रिया।
बेबनी साहब आज बड़े उदास थे। हों भी क्यों न, आज उनके सबसे करीबी दोस्त जो कभी उनके साथ स्कूल में पढ़ा करते थे, जो कभी गाँव के जामुन के पेड़ो के नीचे साथ समय गुज़ारा करते थे वह अब इस दुनिया में नहीं रहे। खबर आई कि उनको दिल का दौरा पड़ा था। उनके इस मित्र का नाम कृपाल मेहता था।वह भी बेबनी साहब के उम्र के थे और कुछ समय पहले ही फ़ौज से रिटायर्ड हुए थे।
कुर्ता-पजामा डाल बेबनी साहब कृपाल मेहता के घर की ओर निकले। वहाँ पहुँचे तो देख कि घर के बाहर लोग बाहर खड़े थे। घर के अंदर गए वहाँ पर परिवार के लोग खड़े थे। कृपाल मेहता की बीवी भी कुछ वर्ष पूर्व ही चल बसी थी। घर पर इकलौता बेटा, बहु और 2 छोटे बच्चे थे। वहाँ का माहौल शांत था। फर्श पर मेहता जी का देह रखा था और उनके ऊपर एक सफ़ेद चादर बिछाई हुए थी। देह के ऊपर फूल और पास में ही अगरबत्ती जली हुए थी।
बेबनी साहब ने हाथ जोड़े और कृपाल मेहता की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। उसके बाद वह एक कोने में रखी कुर्सी में बैठ गए। वह वह आने-जाने वाले शख्स को देखते और उनकी क्रियाओं को ध्यान से देखते। अब वह दीवार पर लगी कृपाल मेहता की तस्वीर की देखकर मन ही मन बोले- कृपाल मुझे पता है तुम अभी यहीं पर हो। देखो अपने मृत्यु शरीर को देख कर डरना मत। यह तो तुम्हारी आत्मा द्वारा त्यागे गए पुराने वस्त्र है। तुम अगला जन्म ज़रूर लोगे और हाँ इस बार भी हमारे गाँव में जन्म लेना।
एक आवाज़ से बेबनी साहब का ध्यान भंग हुआ। कृपाल मेहता के पुत्र ने कहा- चलिए अंतिम संस्कार के लिए जाना है।
घर की औरतें घर पर ही रुक गयी और सभी मर्द देह संस्कार के लिए निकल पड़े। राम नाम के साथ कृपाल मेहता कि अंतिम यात्रा शुरू हुई।
बेबनी साहब पीछे चल रहे थे और मन ही मन कृपाल को कहते- यार मेहता कभी यह न सोचा था कि तुम्हारी मृत्यु अचानक ही हो जायेगी। तुमने सदा मेरी मदद की और हमेशा एक अच्छा मित्र होने का कर्तव्य निभाया। मैं ईश्वर से प्रार्थना करूँगा कि तुम जहाँ भी रहो खुश रहो।
सभी लोग शमशान घाट पहुँचे। शमशान घाट पर एक लकड़ी का बोर्ड था जहाँ लिखा था कि " मुझे यहाँ तक पहुँचने का शुक्रिया। अब आगे की यात्रा मैं अकेला ही करूँगा"।
अब अंतिम क्रिया की तैयारी शुरू हुई। पंडित को बुलाया गया। पंडत जी ने अनुराग से 2 किलो घी, गंगाजल, फूल मालाएँ लाने के लिए कहा। अनुराग सब सामान ले आया। हिन्दू रीती-रिवाज़ों के मुताबिक पिता की मृत्यु के उपरांत बेटे को अपने शरीर का एक अंग डायन होता है। पंडित जी के कहा- बीटा तुम्हे बाल कटवाने होंगे।
अनुराग- क्यों भाई, बालों का अंतिम क्रिया से क्या संबंध है?
पंडितजी ने कहा- बेटा यह करना जरूरी है। तुम्हारा कर्तव्य है।
अनुराग- पंडित जी, जो गुजर गए वो गुजर गए। अब उनके लिए क्या रोना। आप मेरी बात मानिये जल्दी से मंत्र पढ़कर अंतिम क्रिया पूरी कीजिये।
इससे पहले पंडित जी कुछ बोल पाते साथ में और सदस्यों ने कहा- हाँ कोई बात नहीं। जल्दी से अंतिम क्रिया पूरी करो हमें काम पर जाना है। पंडित जी को हुक्म देते हुए कहा-चलिए पंडित जी जल्दी से अंतिम क्रिया पूरी कीजिये।
पंडित जी कुछ न बोले। वह भी मन में सोचने लगे बड़े मूर्ख लोग हैै।
बेबनी साहब पीछे से सब सुन रहे थे। कृपाल मेहता को डाँटते हुए बोले- देखो मेहता तुम्हारा बेटा क्या अनर्थ कर रहा है। तुम उसे कुछ बोलते क्यों नहीं। इन्होंने तो धर्म भ्रष्ट कर दिया। क्या तुम्हारी आत्मा भी मर गयी मेहता।
ऐसा कह कर बेबनी साहब अंतिम क्रिया को अपूर्ण छोड़ कर आ गए।
अछूत।
आज बेबनी साहब काफी साल बाद अपने गाँव जा रहे थे। उनके गाँव का नाम कांडई था। वही मकान, वही रस्ते, वही हलवाई काका की वो दुकान जहाँ बेबनी साहब अपने मित्र मेहता और अन्य दोस्तों के साथ आया करते थे।
लेकिन ऐसा नहीं कि गाँव में कुछ बदलाव नहीं हुआ था। एक समय ऐसा था जब बिना बिजली के वह मोमबत्ती जलाकर पढ़ा करते थे, पानी भी गाँव से दूर नदी से लाते थे। अब तो वहाँ सड़क, बिजली, पानी की सुविधा पहुँच चुकी थी। गाँव के बच्चों के हाथ में मोबाइल थे। बड़े-बुज़ुर्ग टीवी पर समाचार देख रहे थे। इन सब बातों में बेबनी साहब कब घर तक पहुँच गए पता ही नहीं चला।
घर पर बेबनी साहब के चाचा जी, उनका लड़का, बहू और 2 बच्चे थे। घर बेबनी साहब के पिताजी के नाम पर था। बेबनी साहब तो शहर में बस गए थे और मकान यहाँ खली छोड़ गए। पुश्तैनी घर था इसलिए बेच न सकते थे। आखिर में घर उन्होंने चाचाजी को दे दिया लेकिन घर में अब भी क़ानूनी अधिकार उन्ही का ही था।
बेबनी साहब के यहाँ आने का कारण चाचाजी के पोते का नामकरण था। चाचाजी चाहते थे कि नामकरण के बहाने बेबनी साहब गाँव आये। वैसे भी उन्हें शहर से गाँव आये काफी अर्सा हो गया था।
बेबनी साहब ने चाचजी के पैर छुये। अपने चचेरे भाई नरेश से गले मिले। 5 साल के भतेजे ने बेबनी साहब के पैर छुए। उन्होंने अपने भतीजे को नमकीन का पैकेट दिया। उसके बाद उन्होंने अपने स्वर्गीय पिताजी कि तस्वीर के आगे हाथ जोड़े और खाना-पीना खाने के बाद गाँव में घूमने निकल गए।
बेबनी साहब जब घूम रहे थे तो उन्होंने नदी किनारे नज़र दौड़ाई। वहाँ एक आदमी था जो लगभग 50 की उम्र का रहा होगा। वह एक बालक जो 15 साल का था उसको कुछ निर्देश दे रहा था। पास जाकर पता चला की वह लोग मछली पकड़ने का प्रयास कर रहे थे पर यहाँ मेहनत तो बालक कर रहा था और वह आदमी उसे दिशा निर्देश देता। बेबनी साहब भी उनकी क्रियाओं को ध्यान से देखने लगे। बालक जाल से मछली पकड़ता और एक लोहे की बाल्टी में डालता जाता। ऐसा लगभग आधे घंटे तक चलता रहा। बाल्टी में भी काफी सारी मछलियां जमा हो गयी। कुछ देर बाद आदमी ने बाल्टी उठाई और अपने रास्ते चला गया। बालक के चेहरे पर उदासी आ गयी।
बेबनी साहब ने मन में कहा- यह क्या था। मेहनत इस बालक ने की और सारी मछलियां वह आदमी ले गया। उन्होंने उस बालक को अपने पास बुलाया और कहा- क्या नाम है तुम्हारा?
वह बोला- जी मेरा नाम नारायण है।
बेबनी साहब ने कहा- नारायण, यह क्या था? तुमने मेहनत से मछलियां पकड़ी और उस आदमी ने तुम्हे एक मछली नहीं दी। सारी कि सारी मछलियां ले गया। तुम्हे गुस्सा नहीं आया। आखिर कारण क्या था इसका? क्या वो तुम्हे मारता है? क्या तुम उसके नौकर हो? या फिर तुम्हे उसने अपना गुलाम बना रखा है।
नारायण- जी, हम गुलाम है। हम नीच जात के है और अछूत है। मेरे पिताजी कहते है की यदि हमने उनको छुआ या उनकी किसी चीज़ को छुआ तो उनका धर्म भ्रष्ट हो जायेगा।
बेबनी साहब बोले- बेटे, क्या तुमने एक बात पर गौर किया! तुम्हारी पकड़ी हुए मछलियां वह ले गया। अब वो घर जाकर तुम्हारी हाथ की मछलियों को खायेगा। क्या इससे उसका धर्म भ्रष्ट नहीं होगा। (बेबनी साहब ने उस बालक से सवाल किया)
नारायण चुप रहा। फिर बोला साहब हम लोगो को इतना सोचने का हक़ नहीं है।
बेबनी साहब बोले चलो ठीक है। एक काम करो मेरे लिए भी मछलियां पकड़ो और मैं तुम्हारे साथ तुम्हारी मदद करता हूँ। इतने सालों बाद मछलियां पकड़ रहा हूँ, अब तो भूल भी गया। पता है मैं जब तुम्हारी उम्र का था तो मिनट में ही ढेरों मछलियां पकड़ लेता था।
बेबनी साहब और नारायण ने काफी मछलियां पकड़ी। जाते जाते बेबनी साहब ने साडी मछलियां बालक को दे दी। बेबनी साहब बोले- नारायण, ये लो मछलियां। अपने घरवालों को ज़रूर खिलाना।
बेबनी साहब घर लौटे। अगली मुलाकात बेबनी साहब की नारायण से नामकरण वाले दिन हुई। नारायण अपने पिताजी के साथ खाना बनाने का काम कर रहा था। बेबनी साहब नदी किनारे अकेले बैठे थे। तभी उन्होंने नारायण को नदी के पास आते देखा। वो पानी पीने आया था। बेबनी साहब ने नारायण से पूछा - ओ नारायण, यहाँ क्या कर रहे हो।
नारायण जोर से चिल्लाया- जी पानी पीने आया हूँ।
बेबनी साहब बोले- तुम पानी तो हमारे घर भी पी सकते थे न फिर इतनी दूर यहाँ क्यों आये?
(
नारायण की चुप्पी ने बेबनी साहब को सरे सवालो के जवाब दे दिए।)
बेबनी साहब ने नारायण को अपने पास बुलाया और साथ बैठने को कहा। नारायण नहीं माना। बेबनी साहब के लाख समझने पर भी वो साथ नहीं बैठ। बोला- साहब आप इस पत्थर के ऊपर बैठ जाइए मैं नीचे बैठ कर आपकी बातें सुन लूंगा।
बेबनी साहब बोले-तम्हे पता है जब भगवन ने इंसानो को बनाया था तब न कोई जात-पात का भेद था न छूत-अछूत का। ईश्वर के इस अतुल्य संसार में कोई छोटा-बड़ा नहीं था। यह तो हम इंसानो ने न जाने कैसे-कैसे नियम बना दिए। तुम जानते हो हमारे संविधान की स्थापना बाबा अम्बेडर जी के नेतृत्व में हुए जो स्वयं दलित थे। महाभारत में अर्जुन से भी बड़ा निशानेबाज भील पुत्र था को स्वयं पिछड़ी जाती से सम्बन्ध रखता था। और भी न जाने कितने ही लोग ऐसे रहे है जो पिछड़ी जाति के थे पर उन्होंने अपनी कामियाबी की राह में जाति को अवरोधक नहीं बनने दिया। देखो अगर मैं तुम्हारे हक़ ले लिए गाँव वालों से लडुंगा तो मैं इतना कामियाब न हों पाऊँ। अगर तुम खड़े होंगे तो इसमें कोई शक नहीं कि जीत तुम्हारी होगी। फिर भी अगर तुम अपने हालात से समझौता कर लेते हो तो याद रखना कि पूरी ज़िन्दगी तुम पछताते रहोगे कि क्यों तुम अपने लिए कुछ न कर पाये। जानता हूँ कि कहने और करने में बहुत अंतर है पर प्रयास करने में क्या जाता है। हार गए तो क्या हुआ कम से कम तुम्हारे मन में यह बात तो रहेगी कि हां मैंने कोशिश तो की। यह तुम्हारा सफ़र है और तुम्हे तय करना है की तुम कौनसा रास्ता चुनते हो।
इतने लंबे भाषण के बाद नारायण चुप रहा फिर अचानक बोला- साहब, आपकी बातों ने मुझमें एक नयी उम्मीद का संचार हुआ है। मैं आपको निराश नहीं करूँगा। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है मैं अपने जीवन में कामियाब ज़रूर करूँगा।
बेबनी साहब- अच्छा चलो। नामकरण शुरू होने वाला है।
समाज तेरी सोच।
बेबनी साहब आज अपनी बेटियों के स्कूल गए। उनको अपनी बेटियों के परीक्षा परिणाम देखने जाना था। उनकी दोनों बेटीयाँ क्रमश 11वीं और 12वीं में पढ़ती थी। बेबनी साहब अपनी बेटियों की परवरिश बहुत अच्छे से की थी। दोनों ही लड़कियां बड़ी ही समझदार और होनहार थी। बेबनी साहब को उनपर बड़ा ही गर्व था पर एक बात थी जो बेबनी साहब को बड़ा परेशान करती थी वह थी यह दुनिया।
रोज अखबारों में और न्यूज़ चैनल्स में जो खबरें आती थी वह बेबनी साहब को डरती थी। आज का माहौल भी कुछ ठीक न था। रोज-रोज न जाने कितनी ही मासूम लड़किय अँधेरी दुनिया में खो जाती थी। पल-पल वह अपनी बेटियों का ध्यान रखते, उन्हें किसी भी प्रकार की तकलीफ न होने देते।
स्कूल के प्रधानाचार्य ने बेबनी साहब को बधाई देते हुए कहा- बृजमोहन बेबनी जी आपकी दोनों बेटियां अपनी-अपनी क्लास में फर्स्ट आई है। बधाई हो आपको। सोनी के 11वीं के रिजल्ट को देखते हुए स्कूल उसकी 12वीं की पढाई का खर्चा खुद उठाएगा। आपकी बड़ी बेटी रोशनी ने तो 12वीं की बोर्ड की परीक्षाओं में कमाल ही कर दिया। वह भी 95 प्रतिशत अंको के साथ अव्वल नंबर पर आई है।
बेबनी साहब बोले- प्रिसिपल सर, मेरी बेटियों कि कामयाबी और सफलता का श्रेया आपको और स्कूल के टीचर्स को जाता है। जो नींव और आकार अपने मेरी बेटियों के भविष्य को दिया है उसका मैं आभारी हूँ। मेरे पास आपके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं है।
आज बेबनी साहब बहुत खुश थे। बेटियों ने सिर गर्व से ऊँचा जो कर दिया था। बेबनी साहब बेटियों के साथ स्कूल से बाहर निकले।
वह बोले- अच्छा सोनी और रोशनी। इतने अच्छे नंबर लाने के बाद तुमने मुझे खुश कर दिया। बताओ क्या गिफ्ट चाहिए तुम दोनों को मुझसे?
सोनी- मुझे तो स्कूटी चाहिए।
रोशनी- और मुझे मोबाइल चाहिए।
बेबनी साहब बोले- क्या तुम मुझसे कुछ सस्ता सा, टिकाऊ सा गिफ्ट नहीं मांग सकते?
दोनों ने एक स्वर में कहा - होटल में खाना खायेंगे।
बेबनी साहब बोले- हाँ, यह सुझाव तुम्हारा अच्छा है।(
शाम को बेबनी साहब अपनी बेटियों के साथ होटल में खाना खाने गए।)
बेबनी साहब ने खाने का आर्डर दिया। वहाँ उन लोगों ने खाना खाया। खाना खाने के बाद बेबनी साहब घर की ओर जा रहे थे की अचानक पास में ही 2 लड़कों की लड़ाई होने लगी। लड़ाई को देखने के लिए आस-पास भीड़ इकठ्ठा हो गयी। कुछ देर बाद दोनों की लड़ाई छूटी।
बेबनी साहब जा रहे थे की अचानक किसी ने पास खड़े लड़कों को पूछा आखिर माजरा क्या था? लड़ाई क्यों हो रही थी।
एक लड़का बोला- सुना है किसी लड़के ने लड़की को छेड दिया था। उसके पिताजी आये थे उसको सबक सिखाने।
दूसरा लड़का तपाक से बोला- अरे लड़की को ही तो छेड़ा था। वैसे भी लड़की छेड़ने की चीज है।(
इतना बोलते ही साथ में खड़े लड़के खिलखिला कर हँसने लगे।)
बेबनी साहब ने भगवान से सवाल किया। वह बोले- हे भगवन, क्या यह हमारे आगे आने वाली पीढ़ी है जिन्हें लडकियां छेड़ने की चीज़ लगती है । एका-एक उनको साथ में खडी सोनी और रोशनी का ख्याल आया। उन्होंने दोनों से कहा- चलो बच्चों, हमें घर चलना है।
बेबनी साहब के माथे पर चिंताओं की लकीरें साफ़ झलक रही थी। वह सोच रहे थे कि आखिर दुनिया के हैवानों से अपनी फूल जैसी बेटियों को किस तरह बचायें। यह चिंता बेबनी साहब की ही नहीं बल्कि बेबनी साहब जैसे उन करोड़ों माता पिताओं की थी जो अपनी बेटियों को समाज के कुछ नीच और नरभक्षी लोगों से बचाना चाहते थे। जिनका हर दिन एक संघर्ष की तरह होता है।
बेबनी साहब ने दोनों बेटियों का हाथ पकड़ा और घर की ओर चल दिये।
मुकदमा!
आज बेबनी साहब के घर पुलिस आई। आस-पास के लोग तरह-तरह की अगवाहें फैला रहे थे। कोई कहता बेबनी साहब ने शायद चोरी की है, कोई कहता है बेबनी साहब ने झगड़ा किया और किसी आदमी का सर फोड़ दिया।
थाने में चौकी इंचार्ज ने बेबनी साहब से पूछताछ शुरू की।
रोशनी आपकी बेटी है?
बेबनी साहब- जी।
चौकी इंचार्ज-कितने साल की है और क्या करती है?
बेबनी साहब- जी 23 साल की और बीकॉम फाइनल इयर की छात्र थी।
चौकी इंचार्ज- कभी बेटी पर हाथ उठाया है आपने?
बेबनी साहब- कभी नहीं, वह पढाई में बहुत होशियार थी। 3 साल पहले उसने अपनी स्कूल में टॉप किया था। उसने हमेशा मेरा नाम रोशन किया था। वह अपने नाम की तरह ही रोशनी जैसी थी।
चौकी इंचार्ज- पर अबकी बेटी ने आपके खिलाफ मुकदमा क्यों दायर किया?
बेबनी साहब- क्यों कि मैं उसे आदर्श और संस्कारो की अच्छी शिक्षा न दे पाया।
चौकी इंचार्ज- मैं समझा नहीं?
(
बेबनी साहब अब अपने आँसुओ को न रोक पाये। वह फूट-फुट कर रोने लगे। आज उनकी आत्मा ने मनो शरीर ही त्याग दिया हो। सोचा न था कि ये दिन भी देखना पड़ेगा। खैर पुलिस वालों ने बेबनी साहब को पानी पिलाया। वह भी समझ गए कि मुकदमा जो बेबनी साहब के खिलाफ दायर हुआ है वो झूठा है। उन्हों जेल से बहार निकल और कुर्सी पर बिठाया। बड़े अफसर चौकी इंचार्ज ने उनके लिए चाय मंगवाई और बेबनी साहब को पूरी बात बताने के लिए कहा)
बेबनी साहब बोले- मेरी पत्नी की मृत्यु 10 साल पहले हो चुकी थी। उनकी माँ के गुज़र जाने के बात मैंने अपनी दोनों बेटियों को अच्छी परवरिश की। उन्हें किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने दी। रोज की तरह रोशनी कॉलेज गयी थी। वह सुबह 9 बजे जाती और शाम 5 बजे तक आ जाया करती थी। कुछ दिन पहले वह कॉलेज गयी पर 5 बजे घर नहीं आई। शाम के 7 बजे तक इंतज़ार करता रहा। उसके सब दोस्तों को फ़ोन मिलाया पर सबने मना कर दिया हाँ उसकी क्लास में पढ़ने वाली एक लड़की ने बताया की वो कॉलेज भी नहीं आई थी। पूरी रात परेशान रहा। सब जगह उसे ढूंढ।
चौकी इंचार्ज- आपने पुलिस में कंप्लेंट नहीं की?
बेबनी साहब- इतनी परेशानी में यह सब नहीं सूझा। अकेला ही दर-बदर भटकता रहा। बस अड्डा, रेलवे स्टेशन सब जगह तलाश की। उसका फ़ोन भी बंद आ रहा था। अगले दिन सुबह 8 बजे मेरा फ़ोन बजा। रोशनी का फ़ोन आया। उसने कहा कि वह चंडीगढ़ में है और उसने एक लड़के से मंदिर में शादी कर ली। मैंने उसे कहा-बेटी जो हुआ भूल जाओ और घर वापस आ जाओ। मैं तुम्हारी शादी उसी लड़के से धूम-धाम से करवाऊँगा। उसने लड़के से बात करवाई। मैंने उस लड़के के सामने हाथ पैर जोड़े, विनती की कि वह मेरी बेटी को घर छोड़ दे। मैं पूरे रीती-रिवाज से शादी करवाऊँगा पर उसने मना कर दिया। मैंने कहा कि बेटी मेरी इज़्ज़त का तो ख्याल करो, लोग हमारे ख़ानदान पर हँसेगें पर उसने आने से साफ़ इनकार कर दिया। उसके इनकार के बाद तो मैं टूट सा गया।
और आज मुझे पता चला कि मैंने अपनी बेटी और दामाद को जान से मारने की धमकी भी दी है। यकीन नहीं होता कि मेरी अपनी बेटी ने मेरे खिलाफ झूठा मुकदमा दायर किया है।
चौकी इंचार्ज- बेबनी साहब एक बात पूछूँ क्या रोशनी अपकी अपनी बेटी है?
बेबनी साहब- बदकिस्मती से वह मेरी अपनी बेटी है। पता नहीं उसकी परवरिश में मैंने क्या कमी छोड़ दी। घर से भाग जाना तो ठीक पर मुकदमा! मेरे परिवार का आज तक कोई भी सदस्य पुलिस थाने तक नहीं गया था, हमारा परिवार सीधा और पाक छवि का रहा है पर रोशनी ने यह कसार भी पूरी कर दी।
चौकी इंचार्ज- बेबनी साहब हिम्मत रखिये। आज-कल बच्चों ने प्यार को मजाक बना कर रख दिया है। जो लड़की अपने माता-पिता की नहीं रही वो किसी और के साथ कैसे ईमानदारी से रह सकती है। बेबनी साहब आपके बात करने के तरीके से ही मैं समझ गया था की आप निर्दोष है पर अदालत में यह साबित करना मुश्किल होगा कि अपने धमकी नहीं दी थी। ऐसे मामलों में अदालत माता-पिताओं के प्रति सख्त होती है।
बेबनी साहब बोले- बेटी घर से भाग गयी, झूठा मुकदमा भी दायर हो गया अब इससे ज्यादा क्या बुरा हो सकता है।
चौकी इंचार्ज- बेबनी साहब आपको अगले हफ्ते अदालत के सामने पेश होना है।
मुकदमा-२
आज बेबनी साहब की अदालत में पेशी थी। उन्होंने कोई वकील भी न किया था। बेचारे अब भी दुःख से न उबार पाये थे। भरी क़दमों के साथ वह अदालत की सीढीयां चल रहे थे, मन में घोर निराश और माथे पर चिन्ता की लकीरें साफ झलक रही थी।
बृजमोहन बेबनी हाज़िर हो.......। एक तेज़ आवाज़ के साथ बेबनी साहब को अदालत में बुलाया गया।
बेबनी साहब अंदर आये। सामने ही उन्होंने रोशनी और उसके पति को को देखा। उनका सर नीचे झुक गया था। वह कठघरे में खड़े हुए। (
बृजमोहन बेबनी पर यह इलज़ाम है कि उन्होंने अपनी बेटी और दामाद की जान से मारने की धमकी दी है। वह अपनी बेटी की शादी के खिलाफ थे।)
रोशनी की तरफ से वकील खड़ा हुआ। उसने कहा- जज साहब, बृजमोहन बेबनी साहब ने अपनी बेटी को और दामाद को जान से मारने की धमकी दी है। उनकी बेटी ने भाग कर शादी की है। झूठी शान और इज़्ज़त के खातिर वह अपनी बेटी की शादी के खिलाफ है और उसे मारना चाहते है।)
जज- बृजमोहन बेबनी आपका वकील कहाँ है?
बेबनी साहब- जज साहब मेरा कोई वकील नहीं है। मैं अपने ऊपर लगे सारे इलज़ाम कबूल करता हूँ।
जज -क्या आप अपने बचाव में कुछ कहना नहीं चाहते है।
बेबनी साहब- नहीं जज साहब, मैं कुछ नहीं कहना चाहता। आप मुझे सजा सुनाइये। आप जो सजा देंगे मुझे कबूल है।
जज- क्या आप किसी के दवाब में अपने ऊपर लगे अपराध स्वीकार कर रहे है?
बेबनी साहब- जी बिल्कुल नहीं। मुझे बस आपके फैसले का इंतज़ार है।
बेबनी साहब रोशनी के चेहरे की ओर देखने लगे। पता नहीं लड़के ने ऐसा क्या जादू कर दिया कि वह बिल्कुल बेशर्म हो गयी। वह बार बार उसके चेहरे को देखने लगे मानो वह उससे पूछ रहे हो- बेटी, क्या अब भी तुम्हारा दिल नहीं पसीजा।
जज- बृजमोहन बेबनी ने अपने ऊपर लगे आरोपों को स्वीकार कर लिया है। लिहाज़ा उन्हें 6 महीने कैद की सज़ा सुनाई जाती है और 5 साल के अंदर अगर रोशनी और उसके पति को कुछ भी होता है तो बृजमोहन बेबनी को नामज़द किया जायेगा। इसके साथ ही उनपर रुपए का जुर्माना और जुर्माने राशि न देने पर 1 महीने की अतरिक्त कैद दी जायेगी। अदालत की कार्यवाही यहीं समाप्त होती है।
चौकी इंचार्ज बेबनी साहब के हाथ में हथकड़ियां लगते हुए उन्हें बाहर की तरफ ले जाने लगे। बेबनी साहब ने रोशनी को पालने की साज़ समझकर ख़ुशी-ख़ुशी सजा स्वीकार कर ली। अब बेबनी साहब ने एक बार भी रोशनी की तरफ नहीं देखा।
जीप में बेबनी साहब को बैठा कर जेल ले जाया जा रहा था। पीछे से आवाज़ आई। रोशनी बेबनी साहब की तरफ दौड़ कर आ रही थी। वह आते ही बेबनी साहब के पैरों की तरफ गिर पड़ी और अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगने लगी। वह कुछ बोलते इतने में लड़का भी बेबनी साहब के पैरों की तरफ गिर पड़ा और वो भी अपने किये की क्षमा मांगने लगा। पास में खड़े वकील और लोग उन दोनों को देखने लगे।
बेबनी साहब ने उन दोनों को नहीं उठाया। रोशनी चिल्लाई- पाप मेरा आपको जेल भिजवाने का कोई इरादा नहीं था। मैं तो बस इतना चाहती थी कि आप नाराज़ न हो।
लड़का बोला- पाप जी मुझे माफ़ कर दो। दोस्तों के कहने पर मैंने आप जैसे सीधे आदमी पर मुकदमा दायर कर दिया। मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी।
बेबनी साहब ने लंबी साँस ली। वह बोले- बेटी, जब भी मैं दुनिया के सामने निकलूंगा तो मैं यही कहूँगा कि मैंने ही तुम्हे जान से मारने की धमकी दी थी। यदि लोगों को पता चला कि तुमने झूठा मुकदमा दायर किया था तो हो सकता है लोग अपनी बेटियों को कोख में ही मार देगें। ऐसे दिन देखने से पहले वह बेटियों को मारना ही उचित समझेगें। यह मत समझना कि मैंने तुम्हे माफ़ कर दिया कभी नहीं। यह पाप माफ़ी के लायक नहीं है और आज के बाद न तो तुम मेरी बेटी न मैं तुम्हारा बाप।
बेबनी साहब ने अपने दामाद को कहा- बेटा, तुमने जो किया वह बड़ा कायराना और नीच काम था। तुम्हारे जैसे हज़ारों लड़के लड़कियो को भगा कर ले जाते है एक बार भी उनके माता-पिता के बारे में नहीं सोचते। याद रखना जो तुमने आ किया है उसकी सजा तुम्हे ऊपर वाला ज़रूर देगा।
(
जीप चल पड़ी। बेबनी साहब ने उन्हें मुड़कर नहीं देखा। आगे जाने के बाद वह बहुत रोये, अब भी यकीन नहीं था कि खुद की बेटी इतना गिर जायेगी।)
विदाई।
6
महीने जेल में बिताने और रुपए जुर्माना देने के बाद बेबनी साहब घर गए। घर पहुँचते ही नहाये-धोये खाना खाया। जेल की सख्त रोटियाँ और अधपके दाल चावल खाने के बाद घर का खाना उन्हें किसी अमृत से कम न लगा। सोनी आज घर पर ही थी। उसने अपने पिता को चाय बना कर पिलाई। अगले दिन बेबनी साहब काम पर वापस गए पर पता चला कि मुक़दमे के बाद ही कंपनी ने उन्हें निकाल दिया था। वह से उन्हें बेइज़्ज़त कर के बाहर निकाल दिया गया।
अब जाये तो कहाँ जाये? अभी तो सोनी की शादी भी करनी है। पता नहीं मेरी बेटी को कौन अपने घर की बहू बनाएगा। भला कोण जोड़ेगा रिशता एक मुजरिम की बेटी से जो अभी अभी 6 माह कि जेल से होकर आया है।
बेबनी साहब घर आये। साल की मेहनत से जो कमाया था उसका हिसाब लगाया। 8 लाख रुपए रुपए थे जो उन्होंने एक-एक पाई कर के जोड़ रखे था।
बेबनी साहब आँखें बन कर कुर्सी पर बैठ गए। सोच रहे थे कि आगे क्या करना चाहिए। गाँव जाये या कही और नौकरी करें? कुछ समझ न आ रहा था। एक हल्की से आवाज़ ने उन्हें उठाया।"
पापा मैं आपसे कुछ बात करना चाहती हूँ " (
सोनी बेबनी साहब के पैरों के पास बैठ गयी )
बेबनी साहब ने बेटी के सर पर हाथ रखते हुए बोला- बोलो बेटी, क्या बात करनी है।
सोनी- पापा.......। ( वह चुप हो गयी। मानो वह कुछ कहना चाहती हो पर किसी झिझक के कारण कुछ कह न पारी हो।)
बेबनी साहब- बेटी क्या बात है, यदि तुम्हे कोई परेशानी है तो बेझिझक होकर बोलो। तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो। ( उन्होंने सोनी का हाथ थामते हुए कहा )
सोनी- पापा, मैं एक लड़के को पसंद करती हूँ। मैं उससे शादी करना चाहती हूँ, वो एक बड़ी कंपनी में काम करता है। अभी-अभी उसकी नौकरी लगी है। अगर आप कहें तो मैं आपको उससे मिलवाना चाहती हूँ।
बेबनी साहब ने अपनी बेटी का हाथ पकड़ लिया। वह डर गए। बेटी को अपने से दूर नहीं करना चाहते थे। एक सोनी थी जिसके ख़ातिर वह जी रहे थे वरना रौशनी ने तो उन्हें कब का मार दिया था। एका-एक अपनी जिम्मेदारियों का एहसास आया। सोचा आज नहीं तो कल बेटी को घर से जाना ही है फिर अचानक ही हाथों को बेटी से अलग किया और बोले- मैं उससे ज़रूर मिलना चाहूँगा। कौन है वो भाग्यशाली लड़का जिसको मेरी बेटी ने पसंद किया है।
सोनी- उसका नाम रोहित है। मैं कल ही उससे आपको मिलवाती हूँ। ( वह ख़ुशी से उछल पड़ी। मानो साडी इच्छाएँ उसकी पूरी हो गयी हो। )
अगले दिन रोहित बेबनी साहब से मिलने आया। उसने बेबनी साहब के पैर छुए और पास में बैठ गया।
बेबनी साहब ने सोनी को कहा- बेटी, यह पहली बार हमारे घर आया है। जाओ तुम इनके लिए चाय-कॉफी बनाओ।
बेबनी साहब- तो बेटे क्या नाम है तुम्हारा और क्या काम करते हो।
रोहित- जी मेरा नाम रोहित है और मैं भारतीय स्टेट बैंक में कम करता हूँ।
बेबनी साहब- तुम्हारे घर में कौन-कौन है।
रोहित- जी पिताजी तो काफी वर्ष पहले चल बसे थे। माँ ने ही पाला-पोसा है। उनके ही त्याग और बलिदान का नतीजा है कि मैं अपने जीवन में कुछ बन पाया हूँ।
बेबनी सहाब- बेटे, तुम्हारी बातों से मुझे लगता है कि मेरी बेटी ने सही लड़के की पहचान की है। वैसे मेरी बेटी ने तुम्हे सारी बातें बताई होगी जो भी मेरे साथ पिछले महीनों से हुआ है। मैं............!
रोहित ने बीच में कहा- जी मैं सब जानता हूँ। आप अब इसके बारे ना बात करे तो अच्छा होगा। इसमें आपका कोई दोष न था। मैं बड़ा ही खुश नसीब हूँ जो मुझे आप जैसे आदमी की बेटी मिली है। मैं वादा करता हूँ कि आपकी बेटी मेरे घर हमेशा खुश रहेगी।
बेबनी साहब- मुझे तुमसे यही उम्मीद थी। मैं तुम्हारी माँ से बात कर के शादी का मुहर्त निकलवाता हूँ।
इतने में सोनी चाय ले कर आयी। सबने चाय पी। इसके बाद बेबनी साहब ने रोहित के घर बात कर रिश्ता पक्का किया।
शादी के समय पंडित जी ने बेबनी साहब को कन्यादान करने के लिए आगे बुलाया। कहा जाता है कि कन्यादान सबसे बड़ा दान माना गया है। बेटी के कन्यादान करते वक़्त बेबनी साहब के आँखों के सामने सोनी के जन्म से लेकर कन्यादान तक की यादों का चित्र सामने प्रकाशित हुआ। बेटी की विदाई कराते वक़्त बेबनी साहब ने अपने आँसुओं को तो रोक लिए पर अपनी भावनाओं और जज़्बात को काबू न रख सके। उस समय तो वह सोनी को यह दिखाना चाह रहे थे कि वह अकेले रह लेगें और आराम से अपनी ज़िन्दगी गुज़ार लेगें पर हकीकत में वह काफी अकेले हो गए थे। अब न तो बीवी थी न बेटियां। अब वह अकेले ही अपने जीवन के सफ़र में चलने वाले थे। एक बात की ख़ुशी थी कि बेटी अच्छे घर में गयी है और ख़ुशी ख़ुशी अपना जीवन व्यतीत कर सकती है।
जय बद्रीनाथ जय केदारनाथ।