Kisse Mahabharat ke in Hindi Spiritual Stories by Sonu Kasana books and stories PDF | किस्से महाभारत के

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किस्से महाभारत के

सुने अनसुने किस्से महाभारत के

मित्रों वैसे तो आप में से कईयों को इन बातों में से ज्ययादातर का पता पहले से ही हो सकता है फिर भी इन किस्सों में कई किस्से संभवतः आप पहली बार सुने और आपको ये रुचिकर तो पक्का लगेंगे ऐसा मेरा प्रबल विश्वास है । कईयों को तो ये बिलकुल नई जानकारी होंगी । और सभी पाठक वर्ग इन तथ्यों को मजे से पढ़ेंगे ।

1 क्या आप जानते हैं ? माना जाता है कि महाभारत के युध में एक मात्र जीवित बचा कौरव युयुत्सु था ।

महाभारत षुरु होने ष्से पहले जब दौनों पक्षों की सेनाऐं आमने — सामने आकर खड़ी हो गई तो भीष्म पितामह नें अपने सारथी को रथ दौनों सेनाओं के बीच ले जाकर खड़ा करने को कहा । वहां से उन्होंने सभी वीरों को संबोधित करते हुए कहा — अगर कोई वीर अपने पक्ष से संतुष्ट नही है या किसी और कारण से वह अपना पक्ष बदलना चाहता है तो अभी बदल सकता है ।

उनकी इस बात को सुन कर दो योधाओं ने अपने पाले बदल लिए ।

पहला तो कौरवों का एक भाई युयुत्सु पांड़वों की ओर जा खड़ा हुआ । जो महाभारत के बाद इकलौता कौरव जीवित बचा था । दूसरा वीर लव और कुष की पचासवीं पीढ़ी में पैदा हुए षल्य पांडवों का पाला छोड़कर कौरवों की ओर जा खड़े हुए जो बाद में कौरवों की ओर से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए ।

2 क्या आपको पता है ? कुछ विद्‌वानों के षोधानुसार जब महाभारत का युध हुआ तो उस समय भगवान श्री कृष्ण की आयु 83 वर्ष थी । और ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत युध के 36 वर्ष बाद एक भील का तीर पैर के अंगुठे मे लगने के कारण अपनी देह का त्याग किया था । उस भील के बारे में किवदंती है कि वह बाली का कोई जन्म था । क्योंकि भगवान राम ने बाली को छुप कर मारा था तो तब का बदला उस समय पुरा हुआ । ऐसा स्वयं श्री कृष्ण जी ने भील से कहा था । इस प्रकार जब श्री कृष्ण जी ने अपनी देह त्यागी तो उनकी आयु 119 वर्ष की रही थी । और भगवान श्री कृष्ण द्वापर के अंत और कलयुग के प्रारंभ के संधि काल के समय में विद्यमान थे । कलयुग का आरंभ षक संवत से 3176 वर्ष पूर्व की चैत्र षुक्ल एकम ( प्रतिपदा ) को हुआ था । इस प्रकार कलयुग का कुल उम्र = 3176 + निवर्तमान षक संवत ( 5100 साल से भी ज्यादा )

3 क्या आप महाभारत युध के नियम जानते हैं ? जी हां उस समय भी कुछ नियम बनाये गये थे जो भीष्म पितामह की सलाह पर दौनों दलों नें एकत्र होकर बनाए थे । जिनका पालन किया जाता था । उनके बनाए नियम निम्न हैं ,,,,,,,,

1 ,, प्रतिदिन युध सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक ही रहेगा । सूर्यास्त के बाद युध नही होगा ।

2 ,, सूर्यास्त के बाद युध समाप्त होंने पर सभी लोग छल कपट छोड़ कर प्रेम का व्यवाहर करेंगे ।

3 ,, रथी , रथी से , हाथी वाला , हाथी वालें से और पैदल , पैदल से ही युध करेगा ।

4 ,, एक वीर से एक ही वीर युध करेगा ।

5 ,, भय से भागते हुए या षरण में आये हुए लोगों पर अष्त्र षस्त्र का प्रहार नही किया जायेगा ।

6 ,, जो वीर निहत्था हो जायेगा उस पर कोई हथियार नही उठायेगा ।

7 ,, युद्‌ध में सेवक का काम करने वालों पर कोई अष्त्र नही उठायेगा ।

3 क्या आप जानतें हैं ?

महाभारत के युध के पष्चात कौरवों की तरफ से तीन पांड़वों की तरफ से पंद्रह योधा जीवित बचे थे । यानि कुल 18 योधा ही जीवित बचे थे । महाभारत का युध भी 18 दिनो तक चला था ।

महाभारत में जीवित बचे योधाओं में कौरवों की तरफ से बचे तीन के नाम निम्न हैं

1 कृतवर्मा 2 कृपाचार्य 3 अश्र्‌व्‌थामा

महाभारत में जीवित बचे योधाओं में पांड़वों वों की तरफ से बचे मुख्य नाम निम्न हैं

1 युयुत्सु 2 युधिष्ठिर 3 भीम 4 अर्जुन 5 नकुल 6 सहदेव 7 श्री कृष्ण 8 सात्यकि आदि ।

4 क्या आप जानते हैं ? युध के पहले ही दिन कौरवों का पलड़ा पांड़वों पर भारी रहा था । उस समय जिस राक्षसी से भीम ने विवाह किया था उसने अपने एक बेटे को पांडवों की सहायता के लिए भेजा था । जिसका नाम था बबरभान । बबरभान वैसे तो अथाह बलों , षस्त्रों और षक्ति का स्वामी था परन्तु बहुत विवेकवान न था । जब भीम की पत्नी को पता चला की पहले ही दिन के युध में कौरवों का पलड़ा भारी रहा है तो उसने बबरभान को ये कह कर युध में भेजा कि जो भी पक्ष हार रहा हो उसके पक्ष में लड़ना । बबरभान ने इसी बात की गांठ बांध ली की हारने वाले पक्ष से लड़ना है । अगले दिन कौरवों का पक्ष हार में रहा श्री कृष्ण जी ने इस बात को जान लिया कि बबरभान हारने वाले के पक्ष में लड़ेगा और उसको समझाना नामुमकिन सा ही है । और उसकी ताकत भी अतुलनीय है । इसलिए उन्होंने उसे युध क्षेत्र से पहले ही ब्राहम्ण का वेष धारण कर रोक लिया और पुछा — कहां जा रहे हो पुत्र ?

युध में — बबरभान ने उत्तर दिया ।

श्री कृष्ण — युध किसकी और से करागे ?

बबरभान — जो पक्ष कमजोर होगा ।

श्री कृष्ण — तुम कुछ कर भी सकते हो या बस ऐसे ही आ गये ?

बबरभान — आप मेरी षक्ति पर संदेह कर रहे हैं ?

श्री कृष्ण — नही , नही । पर मैंने सुना है वहां एक से एक वीर , भीष्म , द्रोणाचार्य , कर्ण और अर्जुन जैसे योधा हैं कभी उनके बीच तुम्हारा उपहास हो ।

बबरभान — मैं इस पेड़ के सारे पत्तों को एक तीर से भेद सकता हूं । चाहे वो डाल पर हो या जमीन पर ।

श्री कृष्ण — असम्भव

बबरभान ने मंत्र पड़ कर तीर छोड़ दिया । तीर सब पत्तों को भेदने लगा । तो श्री कृष्ण ने एक पत्ते पर अपना पैर रख लिया । तीर उनके पैर पर आकर रुका । बबरभान प्रार्थना की कि पैर हटा लें । लेकिन श्री कृष्ण ने एक वरदान देने को कहा । बबरभान ने दे दिया । उस वरदान में श्री कृष्ण ने बबरभान के प्राण मांगे जो उसने खुषी से दे दिये । पर उसने कहा की मेरे सर को युधक्षेत्र में रखना मैं सारा युध देखना चाहता हूं । श्री कृष्ण जी ने ऐसा ही किया । कहते हैं की जिधर बबरभान का सर घूम जाता था उस पक्ष का ही पलडा नीचे हो जाता था।