*प्रेषिका मंजू गुप्ता *19 ,
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आदरणीय जयेश जी
संपादक मातृ भारती
नमन।
मैं मंजु गुप्ता मातृ भारती के मार्च अंक के ले स्त्री सशक्तिकरण के लिए आलेख प्रेषित कर रही हूँ।
आज के युग में नारी सशक्तिकरण
संस्कृत का श्लोक है - ' यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते , रमन्ते तत्र देवताः। ' अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। वैदिक काल में गार्गी जैसी विदूषी स्त्री ने यज्ञवलक्य को शास्त्रार्थ में हरा दिया था। कहने का तातपर्य यह है कि उस जमाने में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे। स्वतंत्रता - स्वच्छंदता थी।
मध्यकालीन युग में नारियों की दशा बर्बस , बेचारी -सी हो गई। नारी परिवार - समाज की संकुचित सीमाओं में बंध कर रह गई . पुरुष प्रधान समाज में नारी के नारीत्व का हरण होने लगा। पुरुषों ने नारी को राजनैतिक , सांस्कृतिक , शैक्षिक और आर्थिक रूप से पंगु बना दिया। .
महाभारत की सत्य घटना भी नारी के शोषण की कहानी बयाँ करती है . जब सत्यवादी धर्मराज युधिष्ठर ने दुर्योधन के साथ जुआ में हार जाने पर अपनी पत्नी द्रौपदी की सहमती के बिना ही द्रौपदी को दाँव पर लगा दिया था . भरी सभा में उसका दुर्योधन ने अपमान किया था . कहने तात्पर्य यही है कि पुरुष जब चाहे जैसा चाहे अपनी मर्जी से अपनी पत्नी का इस्तमाल कर सकता है . पुरुष सत्ता का ये दंभ , सोच , मानसिकता को बदलना होगा .
हिंदी साहित्य के वीरगाथा कल से रीतिकाल तक कवियों का दृष्टिकोण नारी के प्रति सीमित , अशोभनीय रहा है। कवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा -
' अबला जीवन हाय , तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध , आँखों में है पानी। '
समय ने करवट बदली। व्यक्ति बंधन सहर्ष स्वीकार नहीं करता। वह बंधन मुक्त रहना चाहता है। समाज की प्रगति विकास के लिए आवश्यक है , स्त्री पुरुष में कोई भेदभाव नहीं किया जाए . स्त्री का भी अपना अस्तित्व है . स्त्री के कोमल अंग उसके जरुर हैं विवेक बुध्दिजीवी है . नारियों में चेतना जागी , विचार बदले , जागरूकता जागी। जिससे आज नारी लोक में बदलाव आया । मेरे अनुसार -
सबला जीवन वाह , तेरी महिमा न्यारी।
आँखों में खुशी की चाह , प्रेम - त्याग पर वारी।
८ मार्च को पूरा संसार ' अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ' के रूप में मनाता है। जहां पर सारी स्त्रियां का लक्ष्य यही होता है कि हमने क्या पाया , क्या खोया क्या उपलब्धियां हासिल की हैं ? किस तरह अपने कार्यों, व्यक्तित्व के द्वारा पुरूष प्रधान समाज में समानता का दर्जा मिले। जबकि भारतीय संविधान में स्त्री - पुरुष को समान अधिकार दिए हैं . समाज , देश की प्रगति के लिए स्त्री – पुरुष में भेदभाव न किया जाए . स्त्री की अपना अस्तिस्व है , अपनी सत्ता है . मलयाली परिवार में आज भी मातृ सत्ता का कायम है . माँ , पत्नी की दोहरी भूमिका निभाते हुए प्रोफेशनल फ्रंट में कामयाब हुई हैं . उसमें भविष्य की चुनौतियों को स्वीकार कर शिखर पर पहुंचने का सामर्थ्य भी है । मंगल मिशन की कामयाबी के लिए जग ने भारतीय महिला वैज्ञानिको को सराहा है .
रचना धर्मिता नारी का वैशिष्ट्य है , नारी की सृष्टि का मूल है , वह रचे बिना नहीं रह सकती है। २१ वीं सदी की नारी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही है। आज की नारी के आँचल में दूध की ताकत , आँखों में पानी के बदले समृद्धि , सफलता , समाजिकता , विकास के उन्नत सपने हैं। रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा - “ स्त्रियाँ घर में प्रकाश करनेवाली देवियाँ हैं और आत्मा का प्रकाश हैं। ”
स्त्रियां एक समर्थ - सार्थक समाज की रचना में साझेदारी के संकल्प से भरी भूमिका निभा रही है।
विकास कर्म में स्त्री पुरुष से आगे है। पुरुष पूर्ण विकास के लिए पहुंचे तो वह स्त्री हो जाएगा।
क्या हम १८५७ की क्रान्ति को भूला सकते हैं ? जब लक्ष्मीबाई स्वयं राज कार्य संभाला और अंग्रेजों छक्के छुड़ा दिए थे . इतिहास उठाकर देखे तो क्या भारत आजादी में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर स्त्रियों ने सहयोग नहीं दिया था ? क्या देवासुर संग्राम में दुर्गा ने कोशिका का रूप धारण कर शुंभ - निशुंभ का वध नहीं किया था।
वर्तमान संदर्भ में नारी में पुनः चेतना आई है गुणों , प्रतिभा से भरी नारियों में जागरण के बीज अंकुरित हुए हैं। ज्योतिबा फूले , सावित्रीबाई फूले , सरोजनी नायडू , इंदिरा गांधी , प्रतिभा पाटिल , बॉकिसग की मेरी कॉम , कल्पना चावला आदि इस प्रसंग में उल्लेखनीय है। इससे अधिक आशाजनक और क्या हो सकता है कि प्रतिकूलताओं , विषमताओं , दबाबों से घिरे होने बाबजूद स्त्री शक्ति अपनी बेहतरी के लिए बाहर निकल रही है, आर्थिक संपन्नता ला रही है , अपने हक के लिए बाहर निकल रही है और अपनी हक की लड़ाई के लिए अपनी आवाज खुद मुखर कर रही है। चेतना की अभिव्यक्ति लिए स्त्रियाँ संघर्ष कर समाज में अपने अधिकारों को उजागर कर रही है . हिरनी – सी फुर्तीली , अँधेरे में ज्ञान की रोशनी बन उजाला कर रही है . एक स्त्री के शिक्षित होने पर पूरा परिवार शिक्षित हो जाता है . सामाजिक , धार्मिक , आध्यात्मिक अनुष्ठान नारी के बिना अधूरे हैं . नवरात्रों में दुर्गा पूजन के साथ कन्या को देवी माँ कर पूजा जाता है . इसलिए नारी को लक्ष्मी , सरस्वती , दुर्गा का रूप माना जाता है . नारी त्याग , प्रेम , दया , सेवा , करुणा का प्रतिरूप है . रीति – रिवाज , परम्पराओं को निभा कर सांस्कृतिक धरोहर की धूरी है . स्त्री का खुद जीवन जगत के लिए जीवन दर्शन है . सभी क्षेत्रों में नारी काम कर आगे बढ़ी है , इस जीवन की गाड़ी दो पहियों से चलती है एक पुरुष , दूसरी स्त्री। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। हमारे संविधान ने स्त्रियों को पुरुषों के बराबर दर्जा दिया है।
आज माहौल , वातावरण , परिवेश और समाज में परिवर्तन दिखाई देता है। खुद स्त्रियां अत्याचारों ,दहेज , बलात्कारों के खिलाफ आवाज उठा रही है। यूनीसेफ , मानव अधिकार , सरकार की एजेंसियां, महिला आयोग आदि भी स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार , हिंसा , उत्पीडन , जुल्म को , मानसिक त्रासदियां आदि को बढ़ावा न मिले ठोस कदम , नियम , क़ानून , योजनाएं बना रही हैं ।
भारत में स्त्री सशक्तिकरण हो गया है। रेलों की ड्राइवर , पायलेट , शिक्षिका , जल , थल , नभ सेना , कॉपोरेट जगत ,बैंक आदि सभी आयामों में स्त्रियां बुलंदियां छू रही हैं। पिछले साल के गणतंत्र दिवस २६ जनवरी २०१५ की परेड में विंग कमांडर पूजा ठाकुर ने मा. ओबामा जी को गार्ड आफ ऑनर दे कर नारी शक्ति का परिचय दिया। युवा प्रोड्यूसर एकता कपूर को मनोरंजन की दुनिया की पूरी पकड़ है . महिला बेडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल , लाॅन टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा विश्व में अपनी पहचान दी है . अभी हाल ही में फ़िल्म अभिनेत्री ऐश्वर्य राय बच्चन को गणतंत्र दिवस पर फ्रांस के राष्ट्रपति के साथ भोजन पर आमंत्रित किया गया था . यह सब भारतीय स्त्रियाँ देश की , समाज , घर की दशा - दिशा बदल रही हैं . साहित्य के क्षेत्र में महादेवी वर्मा , महाश्वेता , इंदिरा गोस्वामी को कोई भुला सकता है ? यह सब महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं . नारी तो ऊँची रही और रहेगी क्योंकि पुरुष को जन्म देने वाली नारी ही तो है।
नारी जागरण की स्वरचित पंक्तियाँ -
अब दब नहीं सकती हिन्द की नारियां
जो दबाए उसे कोई बनेगी चिंगारियां
नहीं अब वे भोग - लिप्सा की तितलियाँ
वे कार्योँ -गुणों की चमकती बिजलियाँ
जागी है भारती युग है बदल रही
,सेवा , शुचिता ,शिक्षा , प्रेम , त्याग से
करके क्रान्ति पहचानी अपनी शक्ति।
कटु सत्य है स्त्री सशक्तिकरण के साथ स्त्रियों पर आज भी अत्याचार हो रहे हैं। एसिड फेंकते हैं , इज्जत लूटते हैं , बाल विवाह , दहेज प्रथा , कन्या भ्रूण हत्या आदि कायम हैं । घर - समाज में पुरुषवादी मानसिकता का बोलबाला है। अतः देश - समाज विकास के लिए पुरुष प्रधान समाज महिलाओं के हिफाजत की शपथ ले , सम्मान करे , बराबरी का अवसर दे, महिलाओं को सशक्त बनाएं । स्त्री शक्ति को परिभाषित करने के लिए मा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ' बेटी बचाओ पढ़ाओ ' योजना की शुरुआत कर सराहनीय कदम उठाया है। पूरे देश में बेटी पढ़ाने के लिए जनता जागरूक हुई है . उत्तरप्रदेश , हरियाणा , राजस्थान जैसे राज्यों में लड़कियों को पढ़ाया नहीं जाता था , अब वहाँ पर भी लड़कियों को पढ़ाया जा रहा है . हरियाणा में बहू से घर के काम करवाते थे , लेकिन अब वहाँ पुरुषों की सोच में बदलाव आया है. वहाँ की पढ़ी लिखी बहुएँ २०१५ में गाँवों की सरपंच बनी . जो नारियों के लिए बहुत बड़ी उपलब्धी है . जरूरत है स्त्रियों को पुरुष के समान पूरी स्वतन्त्रता दी जाए . स्त्री की आधी आबादी का यही सच है की अपने पैरों पर खड़ी हो आत्म निर्भर और सशक्त बन सशक्तिकरण खुद कर रही है . नारी घर की शान और देश का साभिमान है .
अंत में नारी को शोषित , दलित बनाए रखना , उसका उत्पीडन करना अब असंभव है । नारी शक्ति की मसाल दुनियाभर में उसके रास्तों को प्रकाशित कर रही है। जरा सोचो सारा आकाश , धरा उसके कदमों में है। उसकी गूंजे अनुगूँज -
' न जमीन - आसमां की चिंता हमें
न तान - ओ तशनी की फ़िक्र हमें .
जिस धरा पर जन्म लिया हमने
वह सारी धरा , सारा जग हमारा है। '