Radha ke sanjog me shyamsundar in Hindi Short Stories by Manju Gupta books and stories PDF | राधा के संजोग में श्यामसुन्दर

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राधा के संजोग में श्यामसुन्दर

प्रेषिका

मंजु गुप्ता

१९ , द्वारका , प्लाट - ३१ , सेक्टर ९ A

वाशी , नवी मुम्बई .

पिन कोड - ४००७०३

राधा के संजोग में श्यामसुंदर

' नई सुबह की बाँसुरी राधा के संजोग में श्यामसुंदर के होंठों के सिहांसन पर बिराजने की प्रेम धुन …………राधा को सुना रही थी। '

द्वापर की राधा जिसके संजोग में श्यामसुंदर लिखा था और इक्कीसवीं सदी की पच्चीस वर्षीय तलाकशुदा , तीन वर्षीय बेटे श्याम की माँ राधा सुसराल , समाज की उपेक्षा , तानों की मार और दुखों के पहाड़ के पत्थर - कांटे लिए नासिक में माँ - पिता की छत्र छाया में आर्थिक कष्ट झेलते हुए बैंक में नौकरी कर जीवन यापन के पैत्तीसवें पड़ाव पर आ गई थी . एकमात्र जीने का सहारा श्याम दसवीं कक्षा में आ गया था। बेटे और नौकरी की जिम्मेदारियों से चक्की के दो पाटों के बीच पीसने लगी। मनोरंजन के नाम पर फेस बुक पर चैट कर और वैवाहिक डॉट कॉम पर योग्य लड़कों की प्रोफाइल देख लेती।

तभी उसकी नजर कनाडा के चालीस वर्षीय निःसंतान तलाकशुदा व्यापारी श्यामसुंदर के बॉयोडेटा पर पड़ी। उससे चैट कर दुःख - सुख बांटे , दिल की धडक़नों में सिमटी रंगों की फुहार गालों को होली का गुलाल लगाते हुए लालम …… लाल ....... सी महसूस कर रहीं थी।

यह लालम लाल लाली कहीं पहली शादी की तरह काली घटाओं की दुखों की बरसात न बरसा दें . तभी उसे अपने वैवाहिक जीवन के यादों का सिलसिला तेज रफ्तार से आँखों में घूमने लगा .

शादी के एक सप्ताह बाद मोबाईल पर अपनी माँ का नाम देख राधा ने बजती टोन को ऑन कर अनमनी - सी माँ के प्रश्नों के जवाब देने लगी . मानों अंतस की उथल - पुथल वैवाहिक जीवन की व्यथा को व्यक्त कर रही हो . गहन , गम्भीर , मेधावी राधा ससुरालवालों की संकरी सोच , दकियानूसी विचारधारा से अपने आप को गुलामी की बेड़ी में कैद पाती थी . माँ उसकी व्यथित आवाज से उसकी मनः स्थिति को भाप गई थी .

उसे समझाते हुए कहा, " राधा ! कभी भी किसी भी लड़की को पीहर की तरह माहौल नहीं मिलता . कितनी भी पढ़ी - लिखी लड़की हो , उसे सास - ससुर के सामने दबना ही पड़ता है . धीरे - धीरे तुम उस वातावरण में घुल - मिल जाओगी . फिर तुम्हारा पीहर आने का मन भी नहीं करेगा . "

माँ ने बात को विराम दे फिर फोन करूंगी का वादा किया .

राधा हीन भावनाओं से ग्रस्त हो अपनी मनः स्थिति से उबर नहीं पा रही थी . मन ही मन घुटते , रोते - झीकते , कैसे - तैसे शादी तीन साल एकमात्र पुत्र के साथ गुजर गए . अति तब हो गई जब सास , उसके पति ने उसे मारते हुए धक्का मार उसे घर से बाहर कर मुँह काला करने को कहा .

तभी राधा ने पति को कहा , " मर्दानगी स्त्री को मारने में नहीं बल्कि सम्मान करने पर है . ऐसे संस्कार तुम्हें मिले ही नहीं . तुमने तो पति - पत्नी के पावन रिश्तों को प्रताड़ित करने का खेल बना दिया . "

राधा के मुँह पर छलकती घृणा कल्पना से परे थी . अपने बेटे श्याम को ले अपने माँ के घर आ गई थी .

राधा तनाव , हताशा , अवसाद और नकारात्मक दृष्टिकोण के दर्द को झेलते हुए कई साल गुजार दिए .

इस बीच उसकी माँ बेटी के तलाक को सहन न कर पाई . हृदयाघात से स्वर्गवासी हो गई .

आँखों से आंसुओं की अविरल धाराएं बेटी - पिता के दर्द बयान कर रही थी .

राधा अतीत के सिलसिले को छोड़ वर्तमान में आई .

तभी राधा की नजर कम्प्यूटर की बंद विंडो पर गई , उसे खोल कर पुनःश्याम सुंदर

की प्रोफाइल , फोटो देखने लगी . खुबसूरत , गौर वर्ण , सजीला , अनुरागी युवक को देख विमुग्ध हो गई.

दिल से दिल के तार जुड़ने की गुनगुनाहट राधा ने अपनी धडकनों में सुनी , जो उसकी आत्मा की आवाज लगी . जैसे की श्यामसुन्दर उसके समक्ष हो . प्यार इतना गहरा होता है कि तारों से भरी काली रात की अमावस्या उनकी गवाह बन वैवाहिक जीवन का समर्थन कर रही हो . हर नियत समय पर वे दोनों वीडियों चैटिंग कर बतियाते रहते थे . एक दूसरे के मुखर संवाद मुस्कुराते चहरे की भाव भंगिमा प्रेम की मुखे सुखानुभूति को दर्शाते हुए प्रेमालाप करते थे .

उधर पिता जसवंत सोच में पड़े रहते कि मेरे बाद बेटी की कौन जिम्मेदारी लेगा ? . जबकि तलाक के बाद राधा के लिए की तलाकशुदा लडके भी देखे थे , कहीं न बात बनती थी , बेटी के भाग्य में शादी का सुख ही नहीं लिखा , यह सोच कर उन्होंने हार मान ली थी .

दिन , महीने , साल अपनी चाल से चलते - चलते आठ साल गुजर गए . राधा की उम्र टाइम वार्ड होने की वजह से राधा की शादी की आशा जसवंत ने छोड़ दी थी कि अब कौन बन्दा इससे शादी करेगा ? .

तभी शाम के आगोश में रजनी बाला और दिनों की तरह न थी . पूर्णिमा अपनी चांदनी बिखेर रही थी .

ऐसी चाँदनी राधा के नेह पूरित मुख पे बिखर रही थी .

उल्लासित राधा अपने कमरे से निकल पिता के कमरे में जाकर उनके सम्मुख शर्माते हुए क्षीण मधुर ध्वनि से अपने मन की बात कही .

अनुरागमयी दृष्टि से पिता जसवंत ने राधा को अपलक देखते हुए राधा के इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया .

इस प्रेम के अंकुरण फूटने के लिए ख़ुशी - ख़ुशी हाँ में सहमति दी .

जसवंत ने विभोर होकर राधा से कहा , " कनाडा प्रवास की , उसके बारे में पूरी जानकारी दो . उससे आज रात ही वीडियो चेट कर भारत आने का न्योता दे कर , तुम्हारी शादी की तारीख पक्की कर देंगे . " माँ गोदावरी की कल - कल धारा की हर बूंद तुम्हारे पर आशीर्वाद बरसाएगी . "

विवाहोत्सुक राधा ने मुग्ध दृष्टि से पिता की हाँ में हाँ मिला ' स्वीकार्य ' में स्वीकृति दे दी .

निश्चित सुनहरी तारीख आ गई , जब जसवंत ने राधा के संग कनाडा से आए युवक श्यामसुन्दर से पंचवटी होटल में मुलाक़ात की .

विन्रमता से आपस में अजनबी चेहरों ने अपना परिचय दिया और उनकी मैत्री की मुस्कान अपनी लगने लगी . वे औपचारिकता के रुख को बदल कर अनौपचारिक रूप में बतियाने लगे . जैसे की कितने सालों पुरानी उनकी दोस्ती , रिश्तेदारी हो .

जसवंत ने अपने दामाद के सर पर प्यार से हाथ रख कहा , " बेटा श्यामसुन्दर ! मेरा परम सौभाग्य है कि आप जैसे नेक , उदार इंसान ने मेरी बेटी को अपने दिल में जगह दे अपनी पत्नी बना रहे हो ..

तभी जसवंत ने कहा , " मैं सिख धर्म का अनुयायी हूँ , इसलिए विवाह गुरुद्वारे में करूंगा . "

हाँ में श्यामसुन्दर ने जसवंत को सहमती दी और जसवंत ने कहा -

." शुभ मुहूर्त की तारीख में गुरुद्वारे में गुरुग्रंथ साहिब के साक्ष्य में फेरे डाल के राधा के संग वैवाहिक बंधन में बंध जाओगे . "

तभी जसवंत ने देखा , दोनों के चेहरे देखे जो प्रेममय हो के एक दूसरे को निहार रहे थे . परिवेश में प्रेम की उत्तांग लहरे उछाले मार रही थीं .

तभी श्याम सुंदर ने कहा , " ठीक है हमारे हिंदू धर्मानुसार हमारी भी शर्त है , राधा की शादी राधा - कृष्ण के मन्दिर में करेंगे . क्योंकि इनका प्रेम अजर - अमर है. संसार इनके प्रेम को पूजता है . ऐसे ही हम दोनों का प्रेम है . "

यह सुन भावी दामाद को हाँ में गर्दन हिला कर कहा , " जैसा तुम चाहोगे वैसा हम करेंगे . "

प्रेम प्रसंग सुन श्यामसुन्दर की आँखें चमक उठीं . सुंगंधित परिवेश भी संवाद का आनंद ले रहा था .

उधर राधा अपने सर झुकाए कंगन के नग में अपने रूमानी प्रेमी मोहक मुख को निहार रही थी . अपने प्रेमी के सौन्दर्य से विमोहित हो कर कृष्ण रूप से अभिभूत होने लगी . कल्पना लोक में तन्मयता से उसके रूप - सौन्दर्य का रसपान करने लगी . प्रेम में सब कुछ प्यारा सुंदर , नशीला लगता है . संवाद की मुखर वाणी जैसे उन दोंनों को मदहोश कर रही थी .

हिंदू रीतिरिवाजों से बन्ना बननी गाकर अडोस - पडोस की महिलाओं ने राधा - कृष्ण मन्दिर में दोनों दुल्हा - दुल्हन ने गुलाब के फूलों की जयमाला एक दूजे के गले में डाल , पंडित ने शादी करा दी .

अगला सुहाना दिन भी आ गया . आमंत्रित अतिथियों से गुरूद्वारे का प्रांगण भरा हुआ था ,स्टेज पर दुल्हा - दुल्हन दोनों की तस्वीरों के साथ फूलों से लिखा था - राधा संग श्यामसुन्दर का विवाह .

जब राधा जरी - मोतियों की कढ़ाई का लाल सलवार सूट पहन सोलह श्रृंगार कर नई नवेली दुल्हन बन गुरुद्वारे में श्याम सुंदर दूल्हा बन वेस्टर्न लुक के धोती कोट पहन सर पर गुलाबी सेहरा बाँध राधा के संग फेरे मार रहा था , तभी कनखियों से राधा श्याम सुंदर को निहार रही थी . अपलक निहारते हुए बेटा श्याम अपनी माँ की शादी में अपने नए पिता को माँ की ख़ुशी के लिए फूल पंखुरियां बरसा कर अपना समर्थन दे रहा था .

इस शुभ घड़ी में जसवंत आँखों में खुशी लिए अनाम प्रेमानुभूति से भव विभोर हो रहा था , मन ही मन सोच रहा था कि राधा की जिम्मेदारी निभानेवाला फरिश्ता मिल गया . अब मुझे ईश कोई शिकायत नही है , अब मैं निश्चिन्त हो गया . वाहे गुरु की कृपा से मेरी अंतिम साँसें गुरुद्वारे की सेवा में समर्पित रहें .

डोली में बेटी को बिठा कर गले लगा कर , अश्रुओं से भीगी आँखों ने विदा किया .

ऊँच - नीच की , अमीर - गरीब , जाति -पाँति संप्रदायवाद की दीवारें तोड़ के समाज में राधा संग

श्याम सुंदर की दो रस्मों से हिंदू - सिख धर्म से शादी विविधता में एकता को दर्शा रही थी .

सामाजिक अवेहलना, अकेलापन दूर करने के लिए और सुख - सुकून की जिंदगी जीने के लिए पिता की रजामंदी, आशीषों के साथ श्याम को बेटा मान के श्यामसुंदर - राधा ने शादी कर के प्यार के सतरंगी रंग दिलों की प्रेम होली को रंग रहे थे ।

वाकई ' नई सुबह की बाँसुरी राधा के संजोग में श्यामसुंदर के होंठों के सिहांसन पर बिराजने की प्रेम धुन …………राधा को सुना रही थी। '