ईश्वर
टिंग टॉंग.दरवाजे की घंटी की ध्वनि सुन कर वसुधा दरवाज़ा खोलने गयी|
“आप वसुधा जी है ना?” पोस्टमैन ने पूछा|
“जी हाँ! में ही वसुधा हूँ|”
“ये खत(लेटर) आपके लिए है ओर ये पार्सल भी|”
“धन्यवाद” इतना कहकर वसुधा ने दरवाज़ा बंद कर दिया| चिट्ठी खोली तो बड़े ही मार्मिक ढंग से लिखा था|
“माँ ! मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ| मैं नही जानती के मुझसे कौन सी ऐसी ग़लती हुई की कभी आपका प्यार नही पा सकी|ईश्वर ने मुझे सब दिया पर शायद मैं ही इस योगया नही बन पाई के आपकी ममता की छत्रछाया पा साकु|
जब तक ये पत्र आप तक पहुँचेगा शायद में आप सब से बहुत दूर……
हमेशा खुश रहिएगा,
आपकी बेटी,
सोमया”
वसुधा की आँखें भर गयी थी और आँसुओं की जलधारा खत पर इस प्रकार पड़ रही थी मानो कोशिश कर रही हो अपने उन पापों को धोने की जिनका प्रायश्चित करने के लिए शायद अब समय हाथों से छूट गया था|आँखों से अश्रुओं की धारा रोके नही रुक रही थी| उसका प्रत्येक आँसू उसे कोस रहा था,मानो कह रहा हो,”धिक्कार है तुम पर,तुम्हे माँ कहलाने का कोई अधिकार नही है| डॅब्डबायी आँखों के साथ वसुधा सोफे पर बैठ गयी ओर उसकी भीगी आँसुओं से धुँधलाई आँखें उसे 19 साल पीछे खींच ले गयी जब वो माँ बनने वाली थी| बड़ा ही कठिन समय था वो उनके लिए| ऑपरेशन करने पर उन्होने अपनी प्यारी नन्ही सी बेटी सोमया को जन्म दिया| बहुत ही खुश थी वो|
“बड़ी ही प्यारी बेटी को जन्म दिया है तुमने वसु | बिल्कुल तुम्हारे जैसी ही है|” उनके पति अजीत ने कहा.
अजीत बेटी के जन्म से अति प्रसन्न थे| वे वसुधा को घर ले आए| जीवन अब सुखमय हो गया था| एक दिन वसुधा अपनी नन्ही बेटी को गोद मे लेकर उसे बातें कर रही थी|
“सोमया बेटा कुछ ही समय बाद तुम्हारा नन्हा,छोटा भैया भी आ जाएगा और फिर तुम उसके साथ खेला करना,ठीक है| मेरी प्यारी बेटी|”
अजीत ये सब सुन रहे थे|उन्हे लगा जैसे की उन्हे वसुधा को सच्चाई बता देनी चाहिए|
“वसु मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ|”
“अरे आप कब आए? आप बैठिए मैं चाए बना कर लाती हूँ|”
“नही चाए बाद में|” अजीत उसके पास आ कर बैठ गये और वसुधा का हाथ थाम कर कहने लगे|
“वसु मैने तुमसे एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात छुपाई है…….डॉक्टर की रिपोर्ट…..” इतना कहकर अजीत रुक गये| उन्हे समझ नही आ रहा था की वो ये बात कैसे कहे| उन्हे सोच मे डूबा देख वसुधा कहने लगी. “बताइए ना क्या बात है?”
“डॉक्टर की रिपोर्ट के अनुसार…..तुम …..तुम कभी फिर से माँ नही बन पाओगी|”
इतना सुन कर वसुधा सन्न रह गयी| वो किसी पत्थर की मूरत की भाँति स्तब्ध थी| उसने सोमया को गोद से एक तरफ कर दिया|
“वसु कुछ तो कहो ना,कुछ तो कहो| तुम घबराओ मत, हमारी सोमया है ना,वो ही हमारा संपूर्ण संसार है|
वसु,”(अजीत ने वसुधा को झकझोरते हुए कहा)
“ये नही हो सकता अजीत, नही हो सकता| सोमया मेरा संसार पूरा नही कर सकती| वो मेरा वंश आगे नही बड़ा सकती| मैं…..मैं अब बेटे के लिए आजीवन तरसती रहूंगी,इस मनहूस के कारण| ये पैदा ही क्यूँ हुई? पैदा होने से पहले ही मार जाती,तो मुझे……..”
अजीत वसुधा के इस बदलते रूप को देख कर अवाक थे.
“तुम ये क्या कह रही हो? इसमे इस बेचारी का क्या कसूर”.अजीत ने दुखी हो कर पूछा.
बस वो आखरी दिन था जब वसुधा ने सोमया को सीने से लगाया था| अचानक आए इस बदलाव ने सोमया को माँ से दूर कर दिया| नन्ही सोमया माँ का आँचल ढूंडती,परंतु वसुधा उसे कभी अपना ना सकी| जिनकी सच मे माँ नही होती उनका दुख तो समझ आता है| परंतु सोमया के पास होते हुए भी माँ नही थी| अजीत सोमया से बेहद प्यार करते थे| उन्होने कभी उसे किसी बात की कमी नही होने दी|
सोमया स्कूल जाने लगी| वो बहुत ही होशियार थी| कक्षा मे सदैव अव्वल रहती| सभी उसका प्रोत्साहन करते थे| परंतु उसे तो माँ की ममता की आवश्यकता अधिक थी| वो समझ नही पा रही थी की उसके प्रति उसकी माँ का ये निष्ठुर व्यवहार किस कारण से है| वो 8वी कक्षा मे प्रथम रही और माँ को ये खुशख़बरी सुनाए बिना रह नही पाई| भागी भागी माँ के कमरे मे पहुँच गयी|
“माँ माँ! मैने……मैने (हानफते हुए),आठवी कक्षा पास कर ली है और वो भी प्रथम स्थान लेकर| आप खुश है ना माँ.बोलिए ना|”
“तेरे होने से मुझे खुशी कभी नसीब नही होगी|चली जाओ यहाँ से.” वसुधा ने गुस्से मे सोमया को डाँट दिया|
“वासू ये क्या कर रही हो? वो तुम्हारी बेटी है|”
“मेरी कोई बेटी नही.” ये कहकर वसुधा कमरे से बाहर चली गयी|
अजीत रुआंसी सोमया को गोद मे बैठा कर पूचकारने लगे|
“पापा! माँ मुजसे प्यार नही करती,पर क्यूँ? मेने ऐसा क्या कर दिया|”
अजीत ने सोमया को पूरी सच्चाई बता दी| सोमया ये सब जानकार खुद को कोसने लगी| उसने फिर कभी ये प्रशन माँ से नही किया| वो अब बड़ी हो रही थी परंतु साथ ही अक्सर बीमार भी पड़ने लगी| उसे अपनी माँ से गीला नही था| 12 वी करने के बाद आगे की पड़ाई करने के लिए दूर चली गयी|
एक बार अचानक हॉस्पिटल से अजीत को फोन आया| सोमया बहुत बीमार थी| अजीत फौरन घर पहुँच गया और जाने की तैयारी करने लगा| उसे बैग मे कपड़े डालते हुए देख वसुधा ने पूछ ही लिया,
“कहाँ जा रहे हो इस तरह अचानक?”
“सोमया बहुत बीमार है, हमे जल्द ही निकलना चाहिए|” अजीत ने उत्तर दिया|
“मुझे उस से कुछ लेना देना नही,तुम जाओ|” उसने बेपरवाही से कहा|
“तुम नही चाहती तो मत चलो,पर एक दिन यही स्वाभाव तुम्हे सब से दूर कर देगा| मेरी ये बात अवश्य याद रखना|” बस इतना कहकर अजीत निकल गये|
अजीत हॉस्पिटल पहुँचे| सोमया की तबीयत बहुत खराब थी|उस समय सोमया सो रही थी| डॉक्टर के पास गये तो पता चला की सोमया को कॅन्सर है| ये सुनकर मानो उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गयी| उनकी आँखो से आँसुओं की धाराएँ बह निकली| वे सोमया के पास गये ओर उसका हाथ थम कर् रोने लगे| सोमया जाग गयी और पिता को रोते देख उसने कहा, “पापा रोइए मत,अगर आप ही हिम्मत खो देंगे तो माँ को कौन संभालेगा?”
“तुम्हे अभी भी उसकी चिंता है, जिसके लिए तुम्हारा होना ना होना एक समान है.” अजीत ने बड़े ही दुखी स्वर मे कहा.
“पापा वो माँ है,मुझे उनसे कोई गिला नही| मैं उनसे आज भी उतना ही प्यार करती हूँ और हमेशा करती रहूंगी| मैं उनके लिए एक तोहफा छोड़े जर रही हूँ ….. ”
अचानक सोमया की आँखें बंद होने लगी|
“सोमया! सोमया!.... बेटा क्या हुआ? आँखें खोलो…..डॉक्टर! डॉक्टर……..”अजीत बेचैन हो कर चिल्लाने लगे|
“पापा हमेशा खुश रहिएगा| मैं आप दोनो से बहुत प्यार करती हूँ| मुझे माफ़ कर देना| आ…..आप्प्प दोनों को छोड़ के जा रही.... हू… हूँ .” और सोमया की आँखों के समक्ष अंधेरा छा गया|
तीन दिन बाद अजीत घर लौटे तो बिल्कुल खामोश थे|
वसुधा ने पूछा, “क्या हुआ? क्यूँ उस मनहूस के लिए इतना परेशन हो रहे हो| काश वो मर ……….”
अजीत ये सुनकर खुद को वसुधा पर हाथ उठाने से रोक नही पाए| “वसुधा मुझे शर्म आती है की तुम मेरी बीवी हो और मैं खुश हूँ के सोमया इस जिंदगी से मुक्त हो गयी| तुम माँ कहलाने के योग्य ही नही हो और तभी शायद………शायद ईश्वर ने तुमसे आज वो अधिकार भी छीन लिया|”
वसुधा को समझते देर ना लगी की सोमया अब उन्हे छोड़ कर बहुत दूर चली गयी है| आज उसे समझ आया की उसने क्या खोया है| वो बस रोती रही और खो गयी उन आँसुओं के साथ|
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“वसु! वसु!....कहाँ खो गयी? वसु …” अजीत की आवाज़ सुन कर वसुधा की तंद्रा टूट गयी| आँसुओं को पोंछते हुए,“कहीं नही,बस अपने किए गुनाहों……उहू उहू.” और वो फूट पड़ी|
“मुझे माफ़ कर दीजिए.”
“कोई बात नही वसु| पर ये तुम्हारे हाथो मे क्या है?”
पड़कर उनकी आँखें भी आँसुओं से तरर्रा(भर) गयी| पर स्वयं को उन्होने रोक लिया|
“और ये क्या है पार्सल मे?” अजीत ने पूछा.
“मुझे नही पता|अभी तक खोला नही| ”
वसुधा ने पार्सल खोला| उसमे एक पुस्तक थी| शीर्षक(टाइटल) ‘ईश्वर’| उसे खोला तो पहले पन्ने पर कुछ पंक्तियाँ थी,
“ईश्वर से उँचा अगर किसी का स्थान है,
वो माँ है|
जिसके चरणो मे स्वर्ग,आँचल मे जीवनदान है,
वो माँ है,केवल माँ है|”
वसुधा को मानो ये शब्द अंतर तक चीर गये| उसके मन की भारी ग्लानि ने उसके कंठ को रूंध दिया था| बस इतना ही कह पाई, “मुझे माफ़ कर देना सोमया,….माफ़ कर देना!!!!!”
बस अब यही निशानी रह गयी थी जिसके सहारे वसुधा अपनी बेटी के उन भावों को समझ सकती थी,जिन्हे समझने के लिए शायद उन्होने देर कर दी थी|