Green hospital in Hindi Health by deepak prakash books and stories PDF | Green hospital

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Green hospital

भारत में ग्रीन हॉस्पिटल

इंडियन काउंसिल ऑफ ग्रीन बिल्डिंग ने ग्रीन बिल्डिंग को पारिभाषित करते हुए कहा है—पारंपरिक बिल्डिंग की तुलना में ग्रीन बिल्डिंग में कम पानी की खपत,उर्जा का किफायती उपयोग,जल संरक्षण, जल छाजन,सीवेज वाटर ट्रीटमेंट,प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, किफायती उपयोग, न्यूनतम कचरे का निर्माण और कचरा प्रबंधन से परिसर में स्वस्थ माहौल कायम होनेवाली बिल्डिंग को ग्रन बिल्िडिंग कहते हैं. हालांकि शुरुआती दौर में इसका कोई विशेष प्रभाव तथा परिणाम देखने को नहीं मिलता. विश्वव्यापी प्रभुत्व वाली यूएस ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल का एक प्रोग्राम लीडरशिप इन इनर्जी एण्ड इंनवायर्नमेंटल डिजाइन के नाम से चलता है. इसके तहत किसी बिल्डिंग की गुणवत्ता के आधार पर सिल्वर,गोल्ड,प्लैटिनम ग्रडिंग सर्टिफिकेशन होता है.

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‘क्लायमेंट चेंज' और ‘ग्लोबल वार्मिंग' के इस दौर में न्यूक्लियर इनर्जी सरकार का भविष्य तय करने लगी है और खनन तथा स्टील से लेकर उर्जा तक के क्षेत्र में किसी परियोजना को तब तक हरी झंडी नहीं मिलती जब तक कि पर्यावरण बंधुता की गारंटी सुनिश्चित नहीं हो जाती. ऐसे में पर्यावरण से सीधे जुड़े स्वास्थ्य के क्षेत्र में इसकी अहमियत बढना बहुत लाजिमी है. इसी की दिशा में आजकल ग्रीन हॉस्पिटल काफी कद्‌दावर हो उठा है. यही कारण है कि उदारीकरण की बयार के साथ ही इसने अपने को परिभाषित करने के साथ अपने बाजार को भी लोकेट करना शुरू कर दिया था. ग्रीन हॉस्पिटल का बाजार मूलक संदर्भ एक अलग मसला है,पर इसके लिए एक नियामक संस्था की जरूरत एक अरसे से महसूस की जा रही थी. आर्थिक सुधार के लगभग डेढ दशक के बाद यानी 2001 में भवन निर्माण में पर्यावरण संरक्षण तथा प्रदूषण से निजात पर निगरानी के मद्‌देनजर इंडियन काउंसिल ऑफ ग्रीन बिल्डिंग की स्थापना के साथ इस कमी को पूरा किया जा सका.

काउंसिल ने ग्रीन बिल्डिंग को पारिभाषित करते हुए कहा है—पारंपरिक बिल्डिंग की तुलना में ग्रीन बिल्डिंग में कम पानी की खपत,उर्जा का किफायती उपयोग,जल संरक्षण तथा जल छाजन,सीवेज वाटर ट्रीटमेंट,प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण तथा किफायती उपयोग तथा न्यूनतम कचरे का निर्माण और कचरा प्रबंधन से परिसर में स्वस्थ माहौल कायम हो. हालांकि शुरुआती दौर में इसका कोई विशेष प्रभाव तथा परिणाम देखने को नहीं मिला. विश्वव्यापी प्रभुत्व वाली यूएस ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल का एक प्रोग्राम लीडरशिप इन इनर्जी एण्ड इंनवायर्नमेंटल डिजाइन के नाम से चलता है. इसके तहत किसी बिल्डिंग की गुणवत्ता के आधार पर सिल्वर,गोल्ड,प्लैटिनम ग्रडिंग सर्टिफिकेशन होता है. सन्‌ 2007 ई में इंडियन काउंसिल ने भी इसी तर्ज पर काम शुरू करते हुए वर्ल्ड ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल का मेबर बन गया. नतीजतन अब इसके 1318 सदस्य हैं.और रजिस्टर्ड बिल्डिंग 183 तथा 187 सर्टिफायड बिल्डिंग का फुटप्रिंट है. केंद्र सरकार भी इसके अनुपालन को बाध्य हैं. और सन्‌ 2015 ई.तक पूरे भारत में ग्रीन बिल्डिंग का जाल बिछाने की योजना बना रही है. ग्रीन बिल्डिंग के क्षेत्र में तीसरे नंबर पर आ जाने की उम्मीद है,जो कि लैंडमार्क होगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अस्पतालों को क्लाइमेट—फें्रडली बनाने पर विशेष जोर दिया है.

मुंबई स्थित कोहीनूर हॉस्पिटल एशिया का पहला तथा पूरे विश्व का दूसरा ग्रीन बिल्डिंग रेटिंग सिस्टम के अंतर्गत इनर्जी एण्ड इन्वायर्नमेंटल डिजाइन की ओर से प्लैटिनम रेटिंग के रूप रजिस्टर्ड है. कुर्ला—विद्या विहार के कोहीनूर सीटी में स्थित यह मल्टीस्पेश्यलिटी हॉस्पिटल डिजाइनिंग तथा प्राकृतिक संसाधनों के मामले में अपेक्षाकृत भिन्न है. इसमें उर्जा के लिए अधिकाधिक प्राकृतिक प्रकाश, सोलर इनर्जी की भरपूर व्यवस्था की गयी है. अस्पताल में स्वच्छ हवा पर्याप्त है. मरीज को सिक बिल्डिंग सिंड्रोम से बचाने के लिए कार्बन डाइक्साइड सेंसर लगाया गया है. कोहीनूर क सीएमडी उमेश जोशी इसकी तसदीक करते हुए कहते हैं —‘‘हालांकि यह व्ययसाध्य ह,ै पर इस माहौल में कार्यक्षमता बढती है, मरीजों को राहत अपेक्षाृत आसानी से मिलती है. हॉस्पिटल का रख रखाव भी सस्ता हो जाता है.'' गुजरात के अहमदाबाद में स्थित केयर इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंस का अईसीयू भी ग्रीन हॉस्पिटल के नाम से ख्यात है.एमडी डॉ. मिलन चांग के शब्दों में—‘‘ आईसीयू में एक गार्डेन है जहां मरीज के लिए अहर्निश प्राकृतिक आनंद सुलभ है. नवंबर 2010 में बना यह भारत का पहला और अनूठा अईसीयू है जो भविष्य में केवल खर्च की कटेेौती ही नहीं करता बल्कि पर्यावरण को प्रदूषणमुक्त भी कर रहा है.''इसके निर्माण में ईंट,एयर कंडिशनिंग, लाइटिंग एंड हीटिंग सिस्टम से लेकर वर्षा जल संरक्षण की भी पर्याप्त व्यवस्था है. इसके लिए 150 करोड के बजट में अतिरिक्त 5० करोड रुपये का प्रावधान है.'' इसके ग्रीन कंसेप्ट में 4० फीसदी अधिक खर्च होने के बावजूद उन्हें उम्मीद है कि पावर कंजप्शन में सालाना २० फीसदी बचेगा. पूरे एरिया के 75 फीसदी क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से सूर्य की रोशनी पहुंच रही है. केयर के चेयरमैन के. पारीख की मानें तो मात्र तीन माह में अस्पताल मेंटेनेंस से लेकर दूसरे खर्चों में कमी होने लगेगी. भविष्य में मरीज के इलाज खर्चे में यहां अपेक्षाकृत 1० फीसदी कटौती भी की जायेगी.

ताप के अधिकाधिक अवशोषण के लिए इस यूनिट के निर्माण में सामान्य ईंट की अपेक्षा दस गुणा मोटी फ्‌लाई ऐश ब्रिक लगी है. इसमें एसी की न्यूनतम जरूरत पडती है. गर्म पानी के लिए सोलर हीटर की व्यवस्था है.शीशे की दीवार से घिरे आइसीयू तथा ओटी के दोनों ओर खाली 4० फीसदी क्षेत्र मुक्त है. इको फ्रेंडली होने के साथ—साथ यह प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर होता है. शहर के ड्रेनेज सिस्टम तथा कैंपस स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से दो भिन्न सीवेज पाइपलाइन जोड़े गए है. यहां रेनवाटर हार्वेस्टिंग भी होती है.

भारत में तीन कारपोरेट हॉस्पिटल कोहीनूर, मैक्स और फोर्टिस होस्पीटल.कोहीनूर और मैक्स ग्रीन रेटेड हैण् इंडियन ग्रीन काउंसिल आफ इंडिया की लीडरशिप इन इनवायर्नमेंटल इनर्जी डिजाइन तथा दिल्ली के शालीमार स्थित फोर्टिस को ग्रीन रेटिंग इंटिग्रेटेड हैविटेट एसेसमेंट द्वारा ग्रीन रेटिंग दी गयी है. ग्रीन हॉस्पिटल के मानकों के अधिकाधिक अनुपालन के कारण मुंबई के कोहीनूर हॉस्पिटल को काउंसिल के द्वारा प्लैटिनम रेटिंग दी गयी है. कार्बन डॉयक्साइड सेंसर लगे होने की वजह से मरीज सिक बिल्डिंग सिंड्रोम से मुक्त रहने के साथ मरीज अपेक्षाकृत आसानी से राहत पाते हैं. ग्रीन बिल्डिंग का दर्ज प्राप्त दिल्ली के फॉर्टिस होस्पीटल का हाल भी कमोवेश यही है. प्राकृतिक उर्जा के अधिकाधिक तथा कृत्रिम उर्जा के न्यूनतम इस्तेमाल के प्रति सतर्क रहने के कारण रख—रखाव में 35 से 37 फीसदी उर्जा बचती है.

बीसवीं शताब्दी में हेल्थकेयर सेक्टर के क्षेत्र में बननेवाले हॉस्पिटलों के स्टाइलिश लुक तथा आरामदेह होने पर जोर दिया जाता था. पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, बिजली, पानी, उर्जा की बचत, प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग तथा कचरा प्रबंधन के बारे में सोचा तक नहीं जाता था. नतीजतन आगे चलकर कारपोरेट अस्पतालों में बिजली, पानी, मेंटनेंस, उर्जा, प्रदूषण की समस्याएं बढने लगीं. तकनीकी विकास के साथ विश्वस्तरीय अस्पताल बनने के दौर में मेंटनेंस तथा बिजली, पानी, पर्यावरण की समस्याएं आने लगीं. अब तो ये समस्याएं इतनी बढ गयीं कि सरकार और हेल्थकेयर प्रोवाइडर भी गंभीरतापूर्वक सोचने लगे. इमारत—निर्माता तथा बिल्डिंग डिजाइनर तथा हेल्थकेयर प्रोवाइडर हॉस्पिटल को अत्याधुनिक, स्टाइलिश के साथ—साथ स्वास्थ्य तथा पर्यावरण की दृष्टि से अधिक सेंसिबिल तथा इंटेलिजेंट बनाने में लगे हैं.

क्यूबा, ब्राजिल, मैक्सिको, पोलैंड, आस्ट्रेलिया, इटली, सिंगापुर, इंगलैड, अमेरिका, जर्मनी, स्वीडेन जैसे देशों में तो ग्रीन हॉस्पिटल वषोर्ं से काम कर रहा है. मलेशिया,इंडोनशिया, थाइलैंड तथा वियतनाम भी इस कंसेप्ट को अपना रहा है. साउथ इस्ट इंडिया में भी इसकी संख्या काफी है. माना जा रहा है कि साउथ—इस्ट एशियायी देशों में ग्रीन हॉस्पिटल की डिमांड आनेवाले वषोर्ं में काफी बढ़ेगी. व्यावसायिक संस्थानों की तुलना में हॉस्पिटल में तीन गुना ज्यादा उर्जा खपत होने के कारण आज कास्ट कटिंग के लिए ग्रीन हॉस्पिटल जरूरी हो गया है.

ग्रीन बिल्डिंग बनाम ग्रीन हॉस्पिटल

भारत में ग्रीन बिल्डिंग या ग्रीन हॉस्पिटल का कंसेप्ट अपेक्षाकृत नया है. भारत में 2007 से ही इसपर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. इसके भी कई कारण हैं. लगातार बढते पर्यावरण प्रदूषण प्राकृतिक संसाधनों में कमी तथा बिजली,पानी,उर्जा की खपत बढने के कारण तरह—तरह की परेशानिया बढ़ी हैं.यही नहीं, व्यावसायिक इमारतें और हॉस्पिटलों के कारण पर्यावरण तथा प्राकृतिक संसाधनों पर दवाब बढता जा रहा है और घर ही नहीं हॉस्पिटल भी सिक बिल्डिंग सिंडा्रेम के शिकार हो रहे हैं. इन्हीं समस्याओं से निबटने के लिए हमारे पर्यावरणविद्‌, समाजसेवी, चिकित्सा विशेषज्ञों, आर्किटेक्ट्‌ और सरकार ने इंडियन काउंसिल आफ ग्रीन बिल्डिंग की स्थापना की. कार्पोरेट सेक्टर को केवल ग्रीन हॉस्पिटल ही बनाने की अनुमति है.

ऐसी बात नहीं है कि ऐसे हॉस्पिटल या इमारत की बनावट विशेष होती है. आम इमारत जैसी ही यह होती है. बाहर से इसमें कोई अंतर नहीं दिखताण् यहां भर्ती मरीज या स्टाफ की कार्यशैली में भी कोई अंतर नहीं होता. बस प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग, अल्पव्यय, मरीजों के स्वास्थ्य संवर्द्धन तथा वातावरण का. ग्रीन हॉस्प्टिल की खासियत यह है कि परिसर ही नहीं, बाहरी वातावरण भी प्रदूषणमुक्त होता है. इससे सिक बिल्डिंग सिड्रोम नामक जटिलता नहीं दिखती. रिसर्च से यह सिद्ध हो चुका है कि ग्रीन हॉस्प्टिल में इलाज करानेवाले मरीजों के ठीक होने की रफ्‌तार तीव्र होती है क्योंकि मरीजों का सीधा संबंध प्राकृतिक वातावरण से होता है,ण्

अब विदेशों की तरह भारत में भी ग्रीन हॉस्पिटल की मांग तेजी से बढी है. सरकारी अस्पताल, हेल्थकेयर प्रोवाइडर ही नहीं, बिल्डिंग निर्माता भी ऐसी इमारतों में अधिकाधिक प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल कर बिल्डिंग की डिजाइन में कचरे की रिसाइक्लिंग का इंतजाम रखते हैं. इसमें बिल्डिंग मटिरियल में प्रयोग होने वाले सामानों की भी अहम्‌ भूमिका होती है. इस परिकल्पना को ग्रीन डिजाइन, इमारत को ग्रीन बिल्डिंग, डिजाइन को ग्रीन आर्किटेक्चर या इको डिजाइन का नाम दिया गया. यानी ऐसे हॉस्पिटल के रख—रखाव में कम खर्च के साथ—साथ ऊर्जा की अधिकाधिक बचत और इको फ्रेंडली होते हैं. केंद्र सरकार ने ग्रीन होस्पीटल के कंसेप्ट को स्वीकार कर सभी निर्माणाधीन अस्पतालों के लिए खर्चे में कटौती करने के मकसद से ग्रीन इंजीनियरिंग तथा ग्रीन आर्किटेक्चर को जरूरी कर दिया है, अकारण नहीं कि सभी छह निर्माणाधीन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान पर यह लागू है. आजकल ३०० बेड के अस्पताल के वार्षिक खर्चे का ६० फीसदी खर्च पावर पर हो रहा है.

क्र.सं.प्रोजेक्ट का नाम लोकेशन बिल्डअप ऐरिया,वर्गफीट स्टेटस

1.एशियन हेल्थ केयर

मुंबई

4,50,000

निर्माणाधीन

2.मातुश्री मांगिबेन रामजी साल्वा हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर

मुंबई

3,00,000

निर्माणाधीन

3मैक्स बालाजी हॉस्पिटल दिल्ली2,30,000निर्माणाधीन

4गवर्नमेंट मोहन कुमारमंगलम्‌ मेडिकल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल सलेम3,24,513निर्माणाधीन

5इर्.एस. आईबैंगलोर258226निर्माणाधीन

6मेडिकल हॉस्पिटल प्रा.लिकोलकाता215078निर्माणाधीन

7कोहिनूर सीटी हॉस्पिटल मुंबई2,08,614निर्माणाधीन

इसकी जरूरत क्यों ?

इमारत बनाने में प्रयुक्त बिल्डिंग मेटेरियल से पूरा पर्यावरण प्रभावित होता है. खासकर फिनिशिंग मेटेरियल, पेंटस, कोटिंग्स से. प्लास्टर, पेंटस आदि में पॉली विनाइल क्लोराइड तथा वोलाटाइल आर्गेनिक कम्पाउंड्‌स का मिश्रण होता है. पर्दे, लकडियों तथा दीवालों की खूबसूरती के लिए प्लास्टिक मटेरियल का प्रयोग प्रयोग होता हैंण् इसमेंं पीवीसी की मात्रा अत्यधिक रहती है. खिड़कियों आलमारियों, किचन तथा दूसरे सामानों में ग्लास तथा अलमुनियम—शीट का प्रयोग होता हैण् इससे विषैले पदार्थों का विकिरण जारी रहता हैण् यह इमारत के भीतरी तथा बाहरी वातावरण को प्रदूषित करता है. ये काफी हानिकारक तथा कैंसरस होते हैं. इससे अंतस्रावी प्रणाली ,प्रजनन क्षमता तो प्रभावित होती हैंण् गर्भस्थ शिशु में जन्मजात बीमारियों की आशंका काफी बढ़ जती है. मस्तिष्क भी इससे प्रभावित होता है तथा प्रतिरोधी क्षमता भी घटती है. इस तरह की बिल्डिंग से लगातार आर्गेनिक फार्मलडिहाइड तथा बैंजीन नामक विषैली गैसें निकलती हैं. विषैली गैसेें खासकर नये कार्पेट्‌स, फ्लोर तथा अंदर की फिनिशिंग मेटेरियल्स से निकलती हैं. मॉडर्न इन प्लानिंग एंड डिजाइनिंग ऑफ हॉस्पिटल प्रिसपल्स एंड प्रेक्टिस नामक पुस्तक के लेखक डॉ शक्ति गुप्ता के शब्दों में—‘‘ कार्पेट्‌स तथा प्लाइउड मे प्रयुक्त पेंट्‌स, स्टेंस या एडहेेसिव मेटेरियल के सूखने पर निसृत विषैली गैसें श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाती हैं. ऐसी इमारतों के नाजुक लोगों में सांस की बीमारियों के साथ—साथ कई तरह की एलर्जी की आशंका प्रबल हो जाती है..''

आजकल कारपोरेट तथा बडे अस्पतालों में एसी चौबीसों घंटे चलते हैं. इसमें काफी ऊर्जा बरबाद होती है. मुंबई के विद्यानिधि इंस्टीच्यूट फॉर आर्किटेक्चर के श्री गणेश राजेंद्रन की मानें तो इलेक्ट्रानिक्स को लगातार कूलिंग की जरूरत होती है जिसमें काफी ऊर्जा बर्बाद होती है. एसी मेंं 6० फीसदी तथा प्रकाश व्यवस्था में २० फीसदी बिजली की खपत होती है.

चूंकि अस्पताल में रात.दिन मरीजों तथा तीमारदारों की आवाजाही से बहुत बडी मात्रा में कचरा निकलता है. इसे सामान्यतः अस्पताल प्रबंधन इकट्ठा कर जला देते हैं.े इससे बहुत बडी मात्रा में हानिकारक गैस तथा विषैले पदार्थ निकलते हैं जो पर्यावरण को संक्रमित तथा प्रदूषित करते है. ग्रीन हॉस्पिटल में कचरा प्रबंधन से रिसाइकिल किया जाता हैण्

ग्रीन हॉस्पिटल के फायदे

आज ग्लोबल वार्मिंग अौर पर्यावरण प्रदूषण दिनोंदिन स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, प्राकृतिक संसाधनों के लिए भी समस्या बनती जा रही है. नागरिक के साथ सरकार के लिए भी इससे निबटना एक चुनौती हो गया है. अबतक तो लगभग सिद्ध हो चुका है कि ग्रीन हॉस्पिटल से वातावरण शुद्ध होने से स्वास्थ्यवर्द्धन होता है. मुंबई के होसमैक इंडिया की सीनियर कंसल्टेंट जागृति भाटिया के शब्दों में —‘‘ अस्पताल के अंदर का वातावरण स्वास्थ्य के अनुकूल होने से मरीज जल्दी रिकवर होकर चले जाते हैं. इससे मरीज का विश्वास अस्पताल के प्रति बढ़ता है.''

ग्रीन बिल्डिंग एक्सपर्ट डा. शक्ति गुप्ता मानते हैं कि ऐसे हॉस्पिटल के निर्माण में हालांकि 2 फीसदी निर्माण में खर्च ज्यादा होते हैं,लेकिन आगे चलकर इसमें 20 फीसदी की बचत होती है, यानी शुरूआती खर्चे से 10गुणा ज्यादा.नेचुरल लाईट , सोलर एनर्जी तथा ग्रीन पावर से खर्चे में काफी कमी आती है. डा. राजेंद्रन कहते हैं कि बहुत जरूरी होने पर ही कृत्रिम प्रकाश की जरूरत होती है, इससे प्रकाश प्रदूाण कमता है. सोलर एनर्जी का उपयोग पानी गरम करने के साथ—साथ बिजली उत्पादन मेंभी होता है. बिल्डिंग निर्माण के दौरान सूरज की दिशा काभी ध्यान रखा जाता है. उत्तर दिशा में बिल्डिंग ऐसे बनायी जाती है, ताकि दक्षिण की ओर से प्राकृतिक प्रकाश का भरपूर उपयोग हो सके. दक्षिण दिशा के बगल को ब्लाक कर देने पर बिल्डिंग के भीतरी भाग मे अतिरिक्त रोशनी नहीं पड़ती है. इससे अस्पताल को कई तरह से फायदा होता है, जैसे उचित प्रकाश , गर्म—ठंडा संतुलन के साथ—साथ पर्याप्त वेंटिलेशऩ अंदर के भाग को मिलता है. इसे पैसिव डिजाइन स्टटे्रजी कहते हैं. इससे एक तो अंदर का वातावरण नेचुरल कूलिंग सिस्टम के अधीन रहता है अौर बिल्डिंग के बाहर पर्याप्त मुक्त क्षेत्र रहने से सूर्य प्रकाश तथा हवा के आवागमन की गुंजाइश रहती है. ऐसी स्थिति में खिड़कियां इस तरह बनायी जाती हैं, जिससे वेंटिलेशऩ तथा प्राकृतिक प्रकाश अबाधित रहे तथा गर्मी भी कम हो . इसके अतिरिक्त बायो गैस, बायो इंधन आदि का पर्याप्त उपयोग होता है.

इमारत में जलापूर्ति के लिए वर्षा जल संरक्षण तथा प्रबंधन की तकनीक से जलसंग्रह किया जाता हैण् इसे टैंक में जमा कर साफ करने के बाद दुबारा उपयोग करने लायक बनाया जाता है. भाटिया कहते हैं सीवेज वाटर को भी रिसाइकल कर लिया जाता है. अत्यल्प मात्रा में दुरुपयोग हो, इसके लिए सिवेज वाटर को शुद्ध कर बाथरूम, ट्‌वायलेट, गार्डेनिंग तथा अस्पताल की साफ—सफाई के लिए उपयोग में लाया जाता है. इमारत से निकलनेवाले कचरा को कपोस्टिंग द्वारा नष्ट किया जाता है. भाटिया बताते हैं कि भवन निर्माण के दौरान बचे पदार्थों का उपयोग कैंपस के अंदर की रोड खूबसूरती तथा गार्डेन बनाने में किया जाता है इसके वन निर्माण के बचे सामानों का उपयोग भी हो जाता है जिससे अंदर की खूबसूरती बढ़ जाती है. यहां इस बात का ध्यान दिया जाता है कि भवन के बाहर प्रयोग होने वाले सामान पीवीसी, पीयूसी तथा आर्सेनिक फ्री हो. विशेषज्ञों का कहना है कि इसके लिए दुबारा प्रयोग में आने लायक मेटेरियल का ही उपयोगकिया जाना चाहिए.

भारत में इसकी शरूआत

इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउसिंल के जरिए भारत में यह कंसेप्ट २००7 में विकसित हुआ. यह कंसेप्ट यूएस बिल्डिंग काउंसिल की देखरेख में लीडरशिप इन एनर्जी एंड इन्वायरमेंट डिजाइन (एलइइडी) प्रोग्राम के अंतर्गत इसकी रचना की गयी. आज 1221 बिल्डिंग की रूपरेखा लगभग 844 मिलियन वर्गफीट के दायरे में बनायी जा रही है, अब दुनिया के तीन बड़े देशों में भारत की गिनती होने लगी हैं.

भारत में कोहिनूर (मुंबई) मैक्स तथा फोर्टिस हॉस्पिटल को ही फेडरेशन आफ इंडियन इंडस्ट्री की ओर से ग्रीन हॉस्पिटल की रेटिंग दी गयी, इसके अतिरिक्त दर्जनों हॉस्पिटल्स प्रतीक्षा में हैं. यहां यह बता दें कि अब भारत सरकार के मिनिस्ट्री आफ हेल्थ ने कडे रुख अख्तियार करते हुए नये बडे अस्पतालों के लिए ग्रीन टेक्नोलाजी जरूरी कर दिया है. खास बात यह है कि मुंबई के कोहिनूर हॉस्पिटल में पावर का खर्च दूसरे एसी अस्पतालों की तुलना में 5० फीसदी कम हो गयी है पूरी बिल्डिंग सिक बिल्डिंग सिंड्रोम से भी मुक्त हैं.

हॉस्पिटल प्लानिंग एंड मैनेजमेंट की जानी मानी कंपनी होसमैक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की एक रिपोर्ट के अनुसार किसी भी हेल्थकेयर प्रोवाइडर के लिए मैनपावर तथा कन्जुमेेबल कास्ट के बाद पावर का खर्च अहम है. यह वातावरण को प्रदूषणमुक्त कराने के लिए भी जरूरी है. बेहतर हो कि निर्माणाधीन अस्पताल हर हाल में ग्रीन हॉस्पिटल की धारणा पर अमल करेंण् होसमैक ने अभी हाल ही में मुंबई, बैंगलोर, दिल्ली तथा कोलकाता के तमाम बडे अस्पतालों में प्रति बेड बिजली की खपत और ग्रीन हॉस्पिटल द्वारा उसके न्यूनीकरण की गुंजाइश पर आधारित एक सर्वे किया। इससे कई चौंकानेवाली बात सामने आयी. रिपोर्ट के अनुसार कृत्रिम उर्जा पर निर्भर अस्पतालों का खर्च प्राकृतिक प्रकाश प्रणाली वाले अस्पताल की तुलना में बिजली पर खर्चे तीन गुणा ज्यादा थे. यही नहीं, अत्यधिक उच्च कोटि की टेक्नोलाजी वाले अस्पतालों का पावर पर खर्चा चार गुणा ज्यादा है. सर्वे में प्रथम श्रेणी में मुंबई के और दूसरा नंबर बैंगलोर के अस्पताल थेण् अनचाहे खर्चे से निजात पाने के लिए ग्रीन आर्किटेक्चर तथा इंजीनियरिंग ही एकमात्र रास्ता हैण्

भारतीय अस्पतालों में 27 फीसदी बिजली की बचत के साथ—साथ प्रतिवर्ष 4० लाख से अधिक के राजस्व की बचत होगी.

ग्रीन होस्पीटल की धारणा पर अमल करने के बाद पुणे के जहांगीर हॉस्पिटल महज 27.95 लााख रुपये खर्च कर अपनी स्ट्रेटजी बदलने के बाद प्रतिवर्ष 46.25 की बचत 12.66 फीसदी के हिसाब से बचत कर रहा है. इसके अतिरिक्त पानी इनर्जी में 53.9 प्रतिशत, एअरकंडिशनिंग में 17.9 फीसदीतथा लाइटिंग के खर्चे में 5.99 फीसदी में कमी आयी है. इसके आधार पर कोयंबटूर के कोवल मेडिकल सेंटर तथा हॉस्पिटल भी इनर्जी की खपत तथा अपने टेक्नोलोजी को बढ़ाते हुए नयी टेक्नोलोजी अपनाने की दिशा में प्रयास करदिया है. इसके अतिरिक्त कई अौर दूसरे अस्पताल जो ग्रीन डिजाइन की धारणा पर अमल करते हुए ग्रीन होस्पीटल की परिकल्पना करने में लगे हैं. वे मुंबई के ब्रीच कैंडी, जसलोक, हिंदुजा तथा दिल्ली के बना हॉस्पिटल आदि इस दिशा में कदम बढ़ा चुका है. इसके अतिरिक्त फोर्टिस तथा अपोलो हॉस्पिटल तो पहले से ही ग्रीन हॉस्पिटल की श्रेणी में शामिल हैं