Durghatna parytan in Hindi Short Stories by Arunendra Nath Verma books and stories PDF | दुर्घटना पर्यटन

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दुर्घटना पर्यटन

दुर्घटना पर्यटन

पत्नी के उलाहनों से तंग आकर अंत में गुप्ताजी ने निश्चय कर ही लिया कि शनिवार की संध्या को उसके प्रिय हीरो परेशान खान की वह पिक्चर उसे दिखा दें जिसके लिए पत्नी ने उनका जीना मुश्किल कर रखा था .गुप्ताजी ने उसे समझाया तो बहुत कि दूकान जल्दी बंद करके उनके चले आने या दो सुस्त और लापरवाह सहायकों के भरोसे दूकान छोड़ आने की अपेक्षा पचास रूपये में उसी सप्ताह रिलीज़ हुई पिक्चर की पाइरेटेड सी डी से घर बैठे वीडियो देखना कहीं अधिक बुद्धिमानी का काम होगा .पर पत्नी थी कि खाहम्ख्वाह जिद पकड़ कर बैठ गयी थी ,एक तो उसे न मालूम किस दुश्मन ने समझा दिया था की पाइरेटेड सी डी खरीदना ग़लत काम है दूसरे वह गुप्ताजी के पीछे पड़ गयी थी कि वह यदि परेशान खान की तरह अपनी तेज़ी से गंजी हो रही खोपड़ी परग्राफ्टिंग के महंगे तरीके को नहीं आजमाना चाहते तो कम से कम स्वयं अपनी आँखों से देख लें कि अपनी प्रत्यारोपित घनी काली जुल्फों के दम से गंजाहोता परेशान खान अपनी नईं फिल्म में फिर से कितना सजीला जवान लगने लगा था.उसे पूरी आशा थी कि इसके बाद और कुछ नहीं तो कम से कम एक अच्छी सी विग खरीदने के लिए तो वे तैयार हो ही जायेंगे . .गुप्ता जी जब एक बार निश्चय कर लें तो उसे पूरा करते हैं अतः उस शनिवार वह सचमुच रात में आठ बजे ही घर आ गए और फिर पत्नी को साथ लेकर नौ बजे उस मल्टीप्लेक्स के परिसर में पहुँच गए जहां परेशान खान के दीवानों ,दीवानियों का सागर लहरा रहा था.

उस भयंकर भीड़ को देखकर गुप्ताजी को जहां नेट पर बुकिंग करा लेने की अपनी समझदारी पर गर्व हुआ वहीं दूसरी तरफ पत्नी को साथ लाने पर अफ़सोस .वह साथ न होती तो वहाँ इकट्ठे सरफिरों में से किसी को अपना एक सौ पचास रूपये का टिकट आसानी से वे शत प्रतिशत मुनाफे पर सरका सकते थे .पर मजबूरी को समझते हुए उन्होंने गाडी को खचाखच भरी हुई पार्किंग में बड़ी मुश्किल से जगह खोजकर पार्क किया और फिर पत्नी का हाथ बहुत रोमांटिक ढंग से अपने हाथों में लेकर पिक्चर हाल में घुस लिए .फिल्म कैसी रही इसका गुप्ताजी को अब ध्यान भी नहीं रह गया है क्यूंकि उसके बाद जो कुछ हुआ उसने गुप्ताजी के जीवन को एक बिलकुल नया और सुखद मोड़ दे दिया.

हुआ यह कि फिल्म समाप्त होने पर जब गुप्ता जी बाहर आये और कन्धों से कंधा छीलने वाली भीड़ से गुज़रकर अपनी कार तक पहुंचे तो एक विचित्र सी बात दिखी .कहाँ तो गाडी पार्क करने के समय जगह ही नहीं मिल रही थी और अब ये आलम था कि उनकी कार के आगे पीछे दायें बाएं चारों तरफ पच्चीस तीस मीटर तक कोई अन्य गाडी नहीं खडी थी और गुप्ताजी की छोटी सी कार नदी के बीच में एक नन्हे से द्वीप सी दिख रही थी .पहले कौतूहल फिर विस्मय और उसके बाद एक अज्ञात आशंका से गुप्ता जी का दिल घबरा उठा .कार के पिछले हिस्से को देखने से कोई खास बात नहीं लगी पर जब पास पहुंचे तो कार की अगाडी को देखकर उनकी पत्नी के मुख से एक लम्बी चीत्कार निकली और गुप्ता जी के मुंह से निकली एक बड़ी लम्बी सी गाली ,फिर अपने इष्टदेव का लम्बा सा आवाहन और फिर अंत में एक लम्बी सी हाय..कार पिछले बम्पर से लेकर ड्राइवर के सामने विंडशील्ड तक तो सही सलामत थी पर उसके आगे बोनट उखडा हुआ पडा था और बोनट,इंजन ,सामने की ग्रिल.इत्यादि जलकर राख हो गए से लग रहे थे .बैटरी दो टुकड़ों में थी ,सामने के दोनों टायर फुके हुए थे और सामने के दोनों दरवाज़े यद्यपि टूट कर अलग नहीं गिरे थे पर बुरी तरह झुलसे हुए थे .अगर लंबा विवरण न देना हो तो संक्षेप में इतना कहना पर्याप्त होगा कि कार श्मसान घाट पर खुले आसमान के नीचे जलती चिता पर अचानक बारिश हो जाने से आधी जली आधी बुझी एक लाश सी लग रही थी.कार की मालकिन जिसने विलंबित लय में चीत्कार से अपना रुदन शुरू किया था अब दहाड़ मारकर रो रही थी .गुप्ता जी किंकर्तव्य विमूढ़ से खड़े थे ,उनकी प्रतिक्रया हमेशा ही पत्नी से उल्टी होती थी ,आज शुरुआत में तो उन्होंने भी पत्नी के साथ एक लम्बी चीख भरी थी पर उसके बाद अब एकदम स्तब्ध खड़े थे.

दो एक मिनट के बाद उनके मौन और मूर्तिवत मुद्रा को भंग किया एक आदमी ने जिसने उनके कंधे पर सहानुभूतिपूर्वक हाथ रखा और बहुत मुलायम स्वर में कहा –“”लो ,आप आ गए साहेब? हम पार्किंग वाले तो कब से इंतज़ार कर कर के थक गए .हमारे मैनेजर साहेब ने तो कई बार माँल में लाउडस्पीकर पर आप की गाडी का नंबर अनाउंस करवाया पर कोई आया ही नहीं .आप सनीमा देख रहे होगे “गुप्ताजी की इच्छा तो हुई कि उसके कालर पकड़ कर और कंधे झिंझोड़कर पूछें कि पार्किंग में कार खडी करने पर भी उनकी गाडी के साथ ये क्या हुआ और ढेर सारी गालियां उसे देकर पहले तो अपने मन की भड़ास निकाल लें .फिर उसके बाद अभी से उसे धमकाना शुरू करें कि वे पार्किंग वालों से नयी कार का मूल्य हर्जाने में मांगेंगे .पर ऐसा करने में कई अडचने थीं.पहली तो ये की गुप्ताजी इस व्यक्ति से डीलडौल में काफी हलके थे,दूसरे ये कि वास्तव में गुप्ताजी मारपिटाई और गालीगलौज करनेवालों में नहीं थे ,ये दूसरी बात है कि इस समय उनका ये दोनों ही काम करने का ज़ोरों से मन कर रहा था पर कई साल के विवाहित जीवन और खानदानी दूकानदारी के पेशे ने उन्हें इतना तो सिखा ही दिया था कि जीवन में बहुत जोर से गुस्सा आने पर भी चिल्लाने चीखने से अंत में कुछ हासिल नहीं होता है ,फिर सबसे बड़ी बात ये थी कि ये आदमी तो पार्किंग का कोई अदना सा कर्मचारी लग रहा था ,कहना सुनना कुछ होगा भी तो पार्किंग के ठेकेदार या फिर मल्टीप्लेक्स वालीउस माल के मालिक से . और गुप्ता जी ये समझने में पूरी तरह सक्षम थे कि डीलडौल में वे जितना इस आदमी से पीछे और नीचे थे ,हैसियत ,धनशक्ति ,रसूख और उच्च सरकारी अधिकारियों से संपर्क आदि में मॉल के मालिक ही नहीं बल्कि पार्किंग के ठेकेदार तक से भी बहुत पीछे थे .अतः जब उनकेएक साथ पूछे गए सवालों के जवाब में पार्किंग के उस कर्मचारी ने उस दुर्घटना का विस्तार से विवरण देना शुरू किया तो उनके पास चुपचाप सुनने और बीच बीच में सिसकती हुई पत्नी को चुप कराने के अतिरिक्त और कोई चारा भी न था.अतः मन मारकर वे सुनते रहे .

उस आदमी के अनुसार हुआ यह था कि गुप्ताजी इधर अपनी कार पार्क करके मॉल में घुसे उधर उनकी कार से हेड लैम्प की बगल की बारीक सी खाली जगह से धुंआ निकलना शुरू हुआ था.किसी व्यक्ति ने जोर से आवाज़ लगाईं थी कि गाडी से धुंआ निकल रहा है और अचानक वहां भगदड़ सी मच गयी थी .जिन लोगों की कारें गुप्ता जी की कार के आस पास खड़ी थीं उन्होंने जल्दी से अपनी कारें वहां से हटाने के चक्कर में पहले एक दूसरे की गाड़ियों को टक्करें मारीं ,और फिर ड्राइवर की सीट से अपनाअपना मुंह निकालकर एक दूसरे से गालियों के परस्पर आदान प्रदान में व्यस्त हो गए .पर इसके पहले कि यह आदान प्रदान उनके गाड़ियों से बाहर आकर कुश्ती या घूंसेबाजी के मुकाबलों में बदल पाता , पता नहीं कैसे इतनी जल्दी वहाँ पहुँच गए मॉल के सुरक्षा और अग्निसेवा के अधिकारी ने जोर जोर से एक भोंपू पर चिल्लाकर लोगों को चेतावनी दी कि वे अपनी गाड़ियों में चाभी लगी छोड़कर नीचे उतर आयें ताकि पार्किंग के कर्मचारी गाड़ियों को करीने से बाहर हटा दें .वहाँ पर जमे तमाशाइयों के मुंह का स्वाद इस घोषणा से बिलकुल खराब हो गया क्यूंकि बहुत सी कारों की टकराहट और उनके ड्राइवरों की घबराहट देखने में मुफ्त मनोरंजन की काफी संभावनाएं थीं .पर इसके बाद आतिशबाजी शुरू हो गयी और उनकी निराशा कुछ कम हुई.आतशबाजी भी मुफ्त की थी और इसे प्रस्तुत कर रही थी गुप्ताजी की कार जिसमे से उठने वाले धुंए ने अब लपटों का वेश धारण कर लिया था .कार के बोनट के नीचे से निकलने वाली लपटें अचानक बहुत तेज़ हो गयीं .और धाड़ की आवाज़ के साथ बोनट अपने स्थान से लगभग चार पांच फूट ऊपर उछल कर उससे भी ज़्यादा भारी धडाम की आवाज़ के साथ फिर जलते हुए इंजन के ऊपर गिर पडा .और जैसे मृदंग के बोल पर तांडव नृत्य का प्रदर्शन कर रहे हों इस धडाम की आवाज़ से चौंककर बहुत से तमाशाई एक दूसरे के ऊपर गिर पड़े.इंजन से उठने वाली लाल लाल लपटों के साथ ही सामने के दोनों टायरों के जलने से उठते काले धुंए के बादलों ने जब तमाशाइयों को खांसने पर मजबूर किया और बैटरी के चटक कर फूटने के बाद उससे बहते एसिड के धुंए से उनका दम घुटने लगा तब जाकर ये तमाशा देखती हुई भीड़ जो अब तकएक दूसरे पर टूटी पड रही थी,ने थोड़ा पीछेहटना शुरू किया .इसी बीच मौके का फायदा उठाकर दो एक महिलाओं के गले की चेन खींचने और चार पांच लोगों की जेब काटने की वारदातें भी साथ साथ संपन्न हो चुकी थी इससे भी इस अग्निपूजक भीड़ को पीछे हटने की प्रेरणा मिली.भीड़ के बिखरने का फायदा उठाकर मॉल के अपने फायर ब्रिगेड के कर्मचारी मोटे होज़ पाइप को लेकर कार के पास पहुँच पाए .उनके प्रयासों से अगले दस बारह मिनटों में आग को काबू में किया जा सका .धीरे धीरे लपटें शांत हो गयीं और टायरों से उठता धुंआ मन मसोसकर घर के अन्दर पत्नी के आतंक से विद्रोह करते हुए पति की तरह केवल भुन भुनाता हुआ सा लगने लगा .जब एक बार फिर से अमन चैन और व्यवस्था की स्थिति स्वतः कायम हो गयी तो दो पुलिस पेट्रोल कारें वहां पहुँचीं ,उनमे से चार पुलिसवाले फुर्ती से उतरे और मुंह में ठूंसी सीटियों को जोर जोर से बजाते हुए उस सारी भीड़ को जो अबतक आग के नज़ारे को पेट भरकर देखने के बाद संतुष्ट ओकर स्वयं ही वापस जा रही थी “पीछे हटो ,पीछे हटो” कहते हुए ,दोनों हाथों से धक्का देने लगे .भीड़ के लोग भ्रमित हो रहे थे कि अब क्या करें ,वापस तो जा ही रहे हैं ?उधर पुलिस के जवांमर्द सिपाही अपने ऊपर के अफसर अर्थात एक मोटे पुलिस इन्स्पेक्टर को जो पेट्रोल कार में आधा बैठा और आधा पसरा हुआ था भुनभुनाते हुए कोस्र रहे थे कि उसकी अकर्मण्यता और सुस्ती के कारण लाठी चार्ज करने का एक इतना खूबसूरत मौका हाथ से फिसला जा रहा था .पेट्रोल कार वालों को इतने अच्छे अवसर कहाँ मिल पाते हैं अपने हाथों की खुजली मिटाने के? सारा मज़ा तो थाने में नियुक्त किस्मतवाले सिपाही ही करते हैं.

भीड़ छटने और आग बुझने के बाद अपनी कार की अधजली लाश को गुप्ता दम्पति ठगे से देखते रहे .कार के अन्दर की हालत का जायजा लेने के लिए उन्होंने दरवाज़े खोलने की कोशिश की तो पाया कि वह जेम हो गये थे .खिडकियां तो अन्दर से बंद थीं ही .रात के साढ़े ग्यारह बजे कार को कहीं ले जाने का प्रश्न नहीं था ,सुबह होने पर ही बीमा कंपनी को सूचित करने के बाद अगला क़दम उठाया जा सकेगा अतः गुप्ताजी ने पत्नी , जो अभी तक सिसक रही थी , के साथ घर जाने का निश्चय किया.जब पार्किंग के आदमी ने उन्हें याद दिलाई कि गाडी रात भर वहां छोड़ने का चार्ज सौ रूपये लगेगा तो उन्हें अपने ज़ख्मों पर नमक छिडके जाने की अनुभूति हुई पर मजबूरी थी , इसके लिए भी मन मारकर हामी भरी और एक ऑटोरिक्शा में बैठकर वे घर वापस आ गए .

गुप्ताजी को सपने में भी गुमान नहीं था कि आग लगने की खबर आग से भी ज़्यादा तेज़ी से फैलेगी.अभी वे नित्यक्रिया से भी नहीं निपटे थे कि उनके पड़ोसी शर्मा जी जो वकील थे आ पहुंचे .उन्होंने बताया कि उनतक खबर एक और ‘’चश्मदीद गवाह –‘’द्वारा पहुँची थी असल में वे अपने बेटे की बाबत कह रहे थे जो कल रात पिक्चर देखने गया था पर उसे “मेरे बेटे “ के बजाय “चश्मदीद गवाह ‘ कहकर जो बात उन्होंने शुरू की उसका सारांश यह था कि गुप्ता जी की कार बनाने वाली कंपनी पर दावा वे बीमे से हर्जाने की रकम मिलने के बाद ठोंकेंगे और अपनी फीस पड़ोसी होने के नाते कंसेशनल रेट पर लेंगे ..गुप्ताजी ने जब कहा कि कार का कोम्प्रिहेंसिव बीमा था .वह अभी छः सात महीने पुरानी थी अतः डेप्रिसिएशन भी नहीं कटेगा और कार के पूरे दाम मिल जाएंगे तो वकील साहेब पहले तो जोर जोर से हँसे फिर उन्होंने गुप्ताजी की नादानी पर तरस खाते हुए समझाया कि बात कार के रिप्लेसमेंट की नहीं थी .बात थी इस दुर्घटना से गुप्ताजी को होने वाले मानसिक संताप की ,और उनकी पत्नी के ,जो दिल की मरीज़ थीं, के स्वास्थ्य पर लगे गहरे आघात की जिसके कारण पत्नी का जीवन खतरे में था.गुप्ता जी ने जब कहा कि उनकी पत्नी तो बिलकुल स्वस्थ थीं और उन्हें दिल की कोई बीमारी नहीं थी तो वकील साहेब नेफिर मुस्करा कर अनुरोध किया कि गुप्ता साहेब इस मुक़दमे के लिहाज़ से अपनी पत्नी उन्हें सौंप दें.गुप्ताजी इस क़दर बेहूदी बात सुनकर भड़क उठे तो वकील साहेब को अपनी गलती का एहसास हुआ और अपनी बात को सुधारते हुए उन्होंने कहना चाहा कि उनका मतलब ये था कि अपनी पत्नी का दिल उन्हें सौंप दें और चिंता न करें .पर ये कहने से पहले एक बार फिर वे स्वयं संभल गए और बात साफ़ की कि स्वस्थ पत्नी को अस्वस्थ कर देना उनके बाएं हाथ का खेल था इसे वे अपनी पहचान के डाक्टरों की मदद से संभाल लेंगे ,गुप्ता जी चिंता न करें .गुप्ता जी ने कहा कि उत्तर वे सोचकर देंगे ,पहले तो उन्हें कार को सिनेमा की पार्किंग से क्रेन द्वारा उठवा कर सर्विस स्टेशन पहुंचाने का काम करना था नहीं तो कार पार्किंग का मीटर चलता रहेगा.वकील साहेब ने फिर समझाया कि वे इसमें भी जल्दबाजी से काम न लें ,इश्योरेंस वालों के बजाय कारनिर्माताओं से पहले बात कर लें फिर कार को बीमा वालों की जगह कार निर्माता स्वयं ले जायेंगे और उन्हें अपनी कंपनी की साख बचाने की ज़रा सी भी चिंता होगी तो सर्विस स्टेशन की बजाय कहीं अज्ञातवास में ले जायेंगे और तब तक उसे वहाँ गुप्त रूप से रखेंगे जबतक जनता की बदनाम स्मरणशक्ति अगले राजनैतिक स्कैम में उलझ कर इस घटना को पूरी तरह भूल न जाए .बात धीरे धीरे गुप्ता जी को जम रही थी .वैसे भी आज रविवार होने के कारण कागजी कार्यवाही कुछ आगे बढ़ने की आशा तो थी नहीं .पार्किंग वालों से ही कहना होगा कि कार अभी एक दिन और वहीं रहेगी.

नाश्ता करने के बाद गुप्ताजी मॉल की कार पार्किंग में गए तो रास्ते भर सोचते गए कि दो दिन लगातार पार्किंग में कार रखने के लिए वे पार्किंगचार्ज में डिस्काउंट मांगेंगे.पर जब पार्किंग वाले से बात हुई तो उन्हें घोर आश्चर्य हुआ जब उसने कहा- “ साहेब आपका पहले ही बहुत नुकसान हो गया है अब आप से पैसे क्या मांगे .रखो कार आपको जब तक रखना हो ,हम पैसे नहीं लेंगे .” गुप्ता जी तुरंत भांप गए की दाल में कुछ काला है ,इतनी मोह ममता इसके दिल में कहाँ से उपज आयी.उन्होंने थाह लेने के लिए कहा –“नहीं भाई ,छोडो ,मैं सोचता हूँ इसे अब ले ही जाऊं “ तो पार्किंग वाला बिलकुल ही घबरा गया ,बोला अरे नहीं साहेब ऐसा न करो आज तो रहने दो ,सन्डे का दिन है “ गुप्ता जी को कोई शक बाकी नहीं रह गया किदाल में कुछ काला नहीं था बल्कि पूरी दाल ही काली थी .अंत में उन्होंने बात खुलवा ही ली और तय ये हुआ कि कार दिनभर वहाँ छोड़ने के वे पार्किंग वालों से दो हजार रूपये लेंगे –हाँ ठीक पढ़ा आपने .रूपये वे लेंगे , देंगे नहीं यही तय हुआ . .हुआ यह था कि पुलिस के द्वारा बाहर भगादिए जाने के बाद भी कई लोगों ने फिर अन्दर आकर फूंकी हुई कार देखने की इच्छा प्रकट की थी तो पार्किंग वाले ने उनसे कहा था कि बिना पार्किंग चार्ज लिए अन्दर वह किसी को पैदल भी नहीं आने देगा और इसके बाद उसने तीस चालीस लोगों से प्रतिव्यक्ति बीस रूपये वसूल करके पिछली रात ही लगभग आठ सौ रुपये बना लिए थे.रात देर हो गयी थी अतः और लोग नहीं आये पर आज सन्डे होने के कारण रात वालों से आँखों देखा हाल सुनकर कमसे कम ढाई तीन सौ लोग तो वह कार देखने आयेंगे ही और उसे आशा थी की बीस रूपये की रेट से वह पांच सात हज़ार तो कमा ही लेगा इसीलिये गुप्ताजी को वह दो हज़ार रायल्टी के दे रहा था ,सोमवार से शुक्रवार तक तो दर्शक कम आयेंगे पर अगले सप्ताहांत तक गाडी छोड़ सके तो गुप्ताजी को उसके लिए अलग से वह तीन चार हज़ार पेशगी देने को तय्यार था .

पार्किंग वाले से व्यापार वार्ता अभी चल ही रही थी कि पार्किंग वाले और गुप्ता जी का ध्यान एक आदमी ने अपनी तरफ खींचा .उसने जेब से विज़िटिंग कार्ड निकाल कर अपना परिचय दिया कि वह दैनिक अफवाह का संवाददाता था और अपने समाचारपत्र के लिए फूंकी हुई कार का फोटो खींचना चाहता था. पार्किंग वाले ने गुप्ता जी को आँख मारी और गुप्ता जी ने चौकन्ने होकर उससे कहा-“इसके लिए आपको पांच हज़ार देने होंगे .”वह बिचारा बहुत गरीब अखबार का अत्यंत गरीब संवाददाता निकला ,अभी वह रिरिया ही रहा था और गुप्ताजी उसे कुछ कम कोट करने की सोच ही रहे थे कि पार्किंग गेट से दौड़ता हुआ एक लड़का आया और बेहद उत्तेजित होकर खुशी से नाचते हुए बोला ‘ “ परसों तक” टी वी चैनेल वाले आये हैं और अपनी गाडी जिसपर बहुत बड़ा सा एरियल लगा हुआ है अन्दर लाने के लिए बैरियर का बांस हटाने को कह रहे हैं और इसके लिए बजाय बीस रूपये के एक हज़ार रूपये देने को तय्यार हैं .” गुप्ता जी ने उसे जोर से डांट लगा कर कहा .” अबे , पागल हो गया है, मेरे पास भेज दे दस हज़ार से एक रुपया कम न लेंगे हम “ अबतक पार्किंग के ठेकेदार के साथ उन्होंने आँखों ही आँखों में पार्टनरशिप का करार कर लिया था , लड़के को जो वापस जा रहा था पीछे से आवाज देकर उन्होंने कहा – “ और देख ,बता दीजो की कार मालिक और पार्किंग के ठेकेदार का इंटरव्यू करना हो तो उसके दस दस हज़ार अलग से लगेंगे .”दैनिक अफवाह का संवाददाता जो इतनी बड़ी बड़ी रकमों को सुनकर बेहोश होता सा लग रहा था घिघियाता हुआ बोला “ सर जी .वे तो न्यूज़ चैनेल वाले हैं आप उन्हें स्टिल फोटोग्राफी के राइट्स मत देना मैं अभी अपने सम्पादक से बात करके बताता हूँ कि मैं इसके लिए आपको कितने तक दे पाऊंगा .”और वह एक किनारे खडा होकर अपने मोबाइल पर कोई नंबर मिलाने लगा.

तभी “परसों तक “ चैनेल के आई डी कार्ड की माला गले में डाले उनकी टीम का जो व्यक्ति वहां आया उसके लेवायस के लेबल वाली ,नीली जींस और रेबैन के धूप के चश्मे से सुसज्जित व्यक्तित्व के आगे दैनिक अफवाह का संवाददाता बिलकुल फटेहाल सा लगने लगा. गुप्ता जी से उसने शानदार अम्रेरिकन एक्सेंट वाली अंग्रेज़ी में,पूछा कि क्या कार के मालिक वही थे .हिन्दी समाचार चैनेल वाला ऐसी अंग्रेज़ी क्यूँ झाड रहा था यह कौतुहल मन ही मन में दबाये हुए गुप्ताजी ने हामी भरी तो उसने गुप्ता जी को समझाया कि चैनेल की जो मशहूर एंकर उनका इंटरव्यू लेंगी उससे बात करते हुए चैनेल पर दिखाए जाने के लिए बड़ी बड़ी राजनैतिक पार्टियों के नेता दसियों हज़ार रूपये खर्चने को तैयार रहते हैं और एक गुप्ता जी थे जो रूपये लेने की मांग कर रहे थे .पर गुप्ता जी कच्ची गोलियां खेले हुए नहीं थे .उन्होंने वापस उसे समझाया कि राजनैतिक नेताओं के लिए तो यह सब रोज़ का खेल है पर उनके जीवन में तो ऐसा मौक़ा एक हीबार आया था जिसे वे मुफ्त में नहीं गंवाएंगे .नीली जीन्स वाले ने तंग आकर हथियार डाल दिए और गुप्ताजी से कहा कि वे कैमरे के सामने आने के लिए अपने मुख पर मेंकअप वाले से थोडा टच अप करवा लें कि तभी गुप्ता जी के मन में आया किटी वी चैनेल पर इंटरव्यू देने से पहले अपने वकील पड़ोसी से बात कर लें तो अच्छा रहेगा.पर जब उन्होंने मोबाइल पर नंबर लगाकर सलाह माँगी तो वकील साहेब ने बहुत कड़क आवाज़ में गुप्ताजी को ऐसा करने से सख्त मना किया.वकील शर्मा जी ने उन्हें बताया कि जिस इंटरव्यू को देने के लिए और कार को टी वी स्क्रीन पर दिखाने का वे कुल दस और दस अर्थात बीस हज़ार मांग रहे थे उसी इंटरव्यू को न देने के लिए और अगर दे दिया हो तो प्रसारित होने से रोकने के लिए कार बनाने वाली कम्पनी शायद कई लाख रूपये देने के लिए तैयार हो जाए .गुप्ता जी ने कहा की वे टी वी वालों से सौदा तय कर चुके हैं बात से मुकरना कैसे संभव होगा तो वकील साहेब ने सुझाया कि अभी तक उन्होंने केवल कार की दशा कैमरे में क़ैद करने और गुप्ताजी का इंटरव्यू करने का मोल माँगा था,इसका ये अर्थ नहीं था की वे उसे प्रसारित भी कर सकते हैं . उसका प्रसारण करने के लिए वे पांच लाख और मांगें ,इस बीच वकील शर्मा जी कार बनाने वालों से संपर्क साधेंगे और उनसे इस इंटरव्यू आदि के प्रसारण को रोकने के लिए दस लाख और मांगेंगे .यदि वे मान गए तो गुप्ताजी चैनेल वालों के साथ हुए सौदे से मुकर जाएँ आखिर लिखा पढी तो अभी कुछ हुई नहीं थी .गुप्ताजी ने जब अपनी मांगें टी वी वालों के सामने रखीं तो उनके भी छक्के छूट गए .जींस वाला घबरा कर बोला कि उसे अपने बॉस से बात करके उनका अप्रूवल लेना पडेगा और इसके लिए गुप्ता जी से उसने थोड़ी देर रुकने और तबतक किसी और चैनेल से बात न करने की प्रार्थना की .गुप्ताजी भी येही चाहते थे.थोड़ा नखरा दिखाकर मान गए ,उधर वकील शर्मा जी ने बताया कि कार निर्माता कंपनी दिल्ली में अपने स्थायी प्रतिनिधि को दो घंटे के अन्दर बातचीत (अर्थात मोलभाव ) के लिए भेज रही है और करबद्ध प्रार्थना कर रही है कि तबतक न्यूज़ चैनेल वाले मामले में कोई जल्दबाजी न की जाए .

गुप्ताजी को सपने में भी ऐसे धन् बरसाऊ विचारकभी नहीं आये थे .उन्हें लगातार डर बना रहा कि वकील साहेब की बातें हवाई किले न साबित हों.ये भी लगा कि कार के निर्माता यदि वकील साहेब के झांसे में न आये तो कहीं टी वी चैनेल से मिलती हुई रकम भी हाथ से न निकल जाए .पर वकील साहेब ने गुप्ता जी को अंत में राजी कर ही लिया कि वे जल्दबाजी से काम ना लें .

वकील साहेब से बात हुए अभी दो घंटे बीते नहीं थे कि पार्किंग में एक काले रंग की मर्सिडीज़ कार आकर रुकी और उससे उतर कर काला बिज़नेस सूटपहने एक व्यक्ति ने उतर कर गुप्ताजी की जली हुई कार की और रुख किया .गुप्ताजी को भांपने में देर न लगी कि ये कार निर्माता कंपनी से आया था ,बल्कि उन्हें ये देख कर हंसी भी आयी कि वह अपनी कंपनी की बनायी कार में नहीं आया था ,क्या गुप्ता जी की कार में लगी आग से वह स्वयं इतना डर गया था कि अपनी कंपनी की कार में आने की हिम्मत नहीं कर पाया ?चलो अच्छा हुआ ,अब यह भी समझ गया होगा कि दूसरे लोगों को जब गुप्ताजी की कार के अग्निकांड के विषय में पता चलेगा तो वे इस मॉडल की कार से कितना डरेंगे .कार कंपनी का नुकसान लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों में आयेगा इतना तो तय था .गुप्ताजी सोच सोच कर खुश होते रहे जैसे कार नहीं फूंकी हो ,लाटरी लग गयी हो .

गुप्ता जी उस मर्सिडीज़ की तरफ बढ़ने ही वाले थे पर शर्मा जी ने फुसफुसा कर कहा कि ऐसा कर के वे अपनी कमजोरी न दिखाएँ ,काला बिज़नेस सूट स्वयं उनतक आयेगा. यही हुआ ,वह आया ,अकेले ही आया ,और आने के बाद चौकन्ने होकर चारों तरफ देखकर उसने पहले अपना परिचय दिया. पर इसकी ज़रुरत नहीं थी. गुप्ता जी ने पहले ही सही भांप लिया था .फिर एकदम गुप्ताजी के कान के पास अपना मुंह लाकर धीरे से उसने पूछा कि अभी तक उन्होंने कोई इंटरव्यू तो नहीं दिया था और कार की फोटो तो नहीं खींचने दी थी .वकील साहेब ने गुप्ता जी को इसके बाद बात करने का कोई मौका ही नहीं दिया .पहले तो उन्होंने दुर्घटना से श्रीमती गुप्ता के कमज़ोर दिल पर होने वाले आघात का ऐसा हृदयविदारक वर्णन किया कि स्वयं गुप्ताजी की आँखों में आंसू आने को हो गए ,फिर उन्होंने “ परसों तक “ चैनेल से प्राप्त होने वाले लाखों रुपयों का ज़िक्र किया ,और अंत में उन्होंने बताया की गुप्ताजी अपनी फूंकी हुई कार को स्थायी रूप से उस पार्किंग में छोड़ने का निश्चय कर चुके थे ताकि इस मेक और मॉडल की कार खरीदने का इरादा रखनेवालों को सावधान किया जा सके और यह सब गुप्ताजी केवल समाजसेवा की भावना से करना चाहते थे .

उसके बाद क्या हुआ बजाय वह सब बताने के, संक्षेप में ये बताया जा सकता है कि गुप्ता जी आजकल एक बिलकुल नयी कार में चलते दीखते हैं .अपनी छोटी सी दूकान उन्होंने बंद कर दी है और वकील शर्मा जी तथा , मॉल की पार्किंग के ठेकेदार खुराना साहेब की पार्टनरशिप में उन्होंने एक नयी कंपनी बना ली है .यह कंपनी देश विदेश से आने वाले पर्यटकों को उन स्थलों पर ले जाती है जहां कोई बहुत भयंकर दुर्घटना घटी हो .रेत,प्लास्टर ऑफ़ पेरिस ,लकड़ी और प्लास्तिसीन आदि से बने हुए लाइफ साइज़ माडलों की सहायता से वे भूकंप ,बाढ़ त्सूनामी अदि के हैरत अंगेज़ दृश्य बना कर दिखाते हैं,उनसे पीड़ित लोगों से बातचीत आदि कराते हैं और जहाँ तक संभव हो चीत्कार ,रोने ,आदि की आवाजों और मूवी कैमरा में क़ैद दुर्घटना स्थल पर मची तबाही के ध्वनि और प्रकाश ( सोंन एत ल्युमिए) कार्यक्रम सुधी श्रोताओं और दर्शकों के सामने प्रस्तुत करके देश के लिए काफी विदेशी मुद्रा भी अर्जित करते हैं .