भारत में एअर एंबुलेंस सर्विस : एक एरोमेडिकल रिव्युलेशन
भारत में आजकल एअर एंबुलेंस सेवा केवल भारतीय मरीजों को ही नहीं, बंग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, नेपाल, मालद्वीप तथा पाकिस्तान के मरीजों को भी अपनी सेवाएं प्रदान करता है. इसके अतिरिक्त भारतीय उपमहाद्वीप जैसे अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, मिडिल इस्ट में सिंगापुर, थाइलैंड तक में मरीज का ट्रांसपोर्टेशन में अपना योगदान कर रहा है. आजकल दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बंगलुरू, हैदराबाद जैसे बड़े शहरों के कई नामी तथा कारपोरेट हॉस्पीटल सिरियस पेसेंट के लिए एअर एंबुलेंस की सेवाएं मुहैया करा रहा है. इसके अंतर्गत हार्ट अटैक,दुर्घटनाग्रस्त तथा दूसरे गंभीर मरीजों को दूरदराज के क्षेत्रों से इमरजेंसी मेडिकल सेवाएं के लिए एअरक्राफ्ट के द्वारा देश के बड़े और आधुनिक सुविधाओं से लैस कारपोरेट अस्पतालों में कम से कम समय में पहुंचाने की व्यवस्था की जा रही है. जिस कारण ऐसे मरीजों को समय रहते चिकित्सीय सुविधाएं मिल जाने से जान का खतरा कम होता जा रहा है.
————————————————————————————————————————————————————————————————————
20 वर्षीया निर्मला 4 दिसंबर'2013 की घटना को याद करना नहीं चाहती. उसने अपनी पहली संतान को एअर एंबुलेंस में ही जनी थी. उन दिनों को याद करती हुई बताती है—‘‘ आधी रात को मुझे लेबर पेन होने लगा. परिवार के लोगों ने तुरंत अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में एअर एंबुलेंस के लिए संपर्क किया. आधे घंटे के अंदर एंबुलेंस आ गया. लेकिन, अस्पताल जाने के क्रम में रास्ते में ही मेरी डिलेवरी हो गयी.'' निर्मला की मां कहती हैं— ‘‘मैंने हाल ही में एअर एंबुलेंस के बारे में सुन रखा था अौर पूरी तहकीकात कर ली थी कि इमरजेंसी की स्थिति में इसके लिए कैसे संपर्क करना है. पहली डिलेवरी सुरक्षित हो, इसके लिए मैं चिंतित थी. यदि निर्मला की डिलेवरी सरकारी अस्पताल में होती तो पूरी संभावना कंप्लीकेशन होने की थी.''
नौवें दशक में आयी आर्थिक उदारीकरण के कारण भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियां चिकित्सा के क्षेत्र में जैसे जैसे कदम रखने लगी तो भारत में अच्छे और विश्वस्तरीय कार्पोरेट अस्पतालों की संख्या बढ़ने लगी फलस्वरूप विदेशों से भी मरीज इलाज कराने आने लगे. इन सारे हेल्थ टूरिस्टों को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल लाने ले जाने तथा स्पेश्यलिस्टों के लिए एअर एंबुलेंस की जरूरत पड़ने पर इन कारपोरेट अस्पतालों ने एअर एंबुलेंस की व्यवस्था करने लगे. जैसे—जैसे इस क्षेत्र में विकास होता गया,मरीजों को बेहतर इलाज की सुविधाएं मिलती गयींं,जटिल से जटिल बीमारियों का इलाज सुगम होता गया. सिरियस मरीजों को कैसे जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाया जाए,इस पर विचार किया जाने लगा. आर्थिक विकास,देश में बढते साक्षरता का प्रतिशत तथा हेल्थ के प्रति बढती जागरूकता की वजह से इस ओर विशेष रूप से सोचने पर बल मिला. चिकित्सक ही नहीं,आमलोग भी यह सोचने पर मजबूर होने लगे कि क्रिटिकल मरीजों को यदि समय पर अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था की जाए और समय पर इलाज शुरू हो जाए तो उसके बचने की संभावना काफी बढ जायेगी.
आंकड़े बताते हैं कि विदेशों से एअर एंबुलेंस भारत में कम से कम तीन मरीजों केा लेकर आते हैं. इस सेवा का सर्वाधिक उपयोग पाकिस्तान,अफगानिस्तान,नेपाल तथा दूसरे मध्य पूर्व देशों के मरीजों को आधुनिक चिकित्सा—सेवा के लिए भारत लाया जाता है.
अभी हाल ही में कोलकाता के कारपोरेट हॉस्पिटल सिटी हॉस्पिटल चार सीटर एअर क्राफ्ट लीज पर लिया है और झारखंड तथा पूर्वी भभारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मरीजों की सुविधा के लिए एअर एंबुलेंस सर्विस की शुरूआत की.
चार सीट वाले इस एअर एंबुलेंस में वे सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं जो कोलकाता के अस्पतालों में दी जाती है. एअर एंबुलेंस सर्विस प्रदान करने वाले सिटी हॉस्पिटल के अधिकारी का दावा है कि यह सुविधा पूर्वी भारत में पहली बार दी जा रही है, जिसमें सिरियस मरीज को सारी सुविधाएं भी दी जायेंगी. अस्पताल के प्रवक्ता के शब्दों में —‘‘ कोलकाता के विशेषज्ञ चिकित्सक भी एंबुलेंस में साथ रहेंगे अौर मरीजों को ट्रांसपेाटेर्ंशन के दौरान जरूरत के मुताबिक उचित चिकित्सीय सेवाएं मुहैया करायेंगे.'' उन्होंने इस बात को स्वीकारा कि हालांकि एअर क्राफ्ट में अस्पताल जैसी सुविधाएं तो मिलनी मुमकिन नहीं है, फिर आवश्यक लाइफ सपोर्ट सिस्टम प्रदान किये जायेंगे, ताकि मरीज दूर दराज के क्षेत्रों से सिरियस मरीज अस्पताल तक सुरक्षित पहुंच सके.
ज्ञात हो कि आजकल बंगाल तथा इसके आसपास के बिहार, झारखंड, ओड़िसा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, आसाम, अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में चिकित्सीय व्यवस्था काफी दयनीय स्थिति में है. अतः इन राज्यों के दूर दराज तथा पिछड़े इलाकों से मरीजों को बड़े शहरों के कारपोरेट अस्पतालों में पहुंचाने के लिए एअर एंबुलेंस की सहायता ली जा रही है. यह काफी सस्ता तथा मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए काफी किफायती भी है, क्योंकि इसके लिए महज दस हजार रुपये प्रति घंटे के हिसाब से चार्ज करते हैं. करीब चार साल पहले कोलकाता स्थित कोलकाता मेडिकल रिसर्च इंस्टीच्यूट, बीएम बिरला हर्ट रिसर्च सेंटर तथा फोर्टिस ने भी एअर एंबुलेंस सर्विस की शुरूआत की कोशिश को गंभीरतापूर्वक लिया था और हेलीकॉप्टर को लीज पर लेने की कोशिश भी की गयी थी, किंतु एअर ट्रैफिक कंट्रोल सेंटर की व्यवस्था नहीं होने के कारण यह योजना को अभी तक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका.
भारत में पांव फैलाने की कोशिश
आजकल दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बंगलुरू, हैदराबाद जैसे बड़े शहरों के कई नामी तथा कारपोरेट हॉस्पीटल सिरियस पेसेंट के लिए एअर एंबुलेंस की सेवाएं मुहैया करा रहा है. चिकित्सीय क्षेत्र में विकास तथा आधुनिक चिकित्सा की सुविधा के कारण इमरजेंसी सेवाओं में बड़ी तेजी से विकास हो रहा है. इसके अंतर्गत हर्ट अटैक,दुर्घटनाग्रस्त तथा दूसरे गंभीर मरीजों को दूरदराज के क्षेत्रों से इमरजेंसी मेडिकल सेवाएं के लिए एअरक्राफ्ट के द्वारा देश के बड़े और आधुनिक सुविधाओं से लैस कार्पोरेट अस्पतालों कम से कम समय में पहुंचाने की व्यवस्था की जा रही है. जिस कारण ऐसे मरीजों को समय रहते चिकित्सीय सुविधाएं मिल जाने से जान का खतरा कम होता जा रहा है. गंभीर रूप से बीमार तथा घायल मरीजों को जल्द से जल्द पहुंचाने के लिए एअर एंबुलेंस की भभी व्यवस्था है. भारत में आजकल एअर एंबुलेंस सेवा केवल भभारतीय मरीजों को ही नहीं, बंगलादेश, भूटान, श्रीलंका, नेपाल, मालद्वीप तथा पाकिस्तान के मरीजों को भी अपनी सेवाएं प्रदान करता है. इसके अतिरिक्त भारतीय उपमहाद्वीप जैसे अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, मिडिल इस्ट में सिंगापुर, दूराज, थाइलैंड तक में मरीज का ट्रांसपोर्टेशन में अपना योगदान कर रहा है.
विदेशों में यह उद्योग विकसित
विदेशों में यह उद्योग काफी विकसित और फैला हुआ है. अधिकतर बड़े अस्पतालों के पास एंबुलेंस तथा अस्पताल परिसर या छत पर हेलीपैड रहता है ताकि सिरियस मरीज सीधे अस्पताल में शिफ्ट किया जा सके. भारत में एक—दो को छोड़कर किसी के पास न एंबुलेंस है,न हेलीपैड. पूरे भारत में लगभग 15 एअरक्राफ्ट प्रोवाइडर हैं. जरूरत पड़ने पर बड़े—बड़े कार्पोरेट हॉस्पिटल किराये पर लेते हैं. इतने बड़े देश में फिलहाल एंबुलेंस प्रोवाइडरों की संख्या भी काफी कम है. औसतन दो से तीस एजेंसियां ही मेट्रो सीटी को अपनी सेवाएं प्रदान करती हैं. विदेशों की बात करें तो यूएस में करीब आठ सौ प्राइवेट मेडिकल हेलीकॉप्टर केवल इसी काम के लिए समर्पित हैं. आंकड़ों केा माने तो प्रति वर्ष करीब तीन लाख मरीजों को सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों में पहुंचाते हैं. लंदन एअर एंबुलेंस करीब एक हजार मरीजों को अपनी सेवाएं मुहैय्या कराते हैं. भारत में मरीजों के ट्रांसपोर्ट के लिए एअर एंबुलेंस का प्रयोग काफी उपयोगी है. इसके माध्यम से मरीजों को स्पेशलिटी हािेस्पटल में तेजी से शिफ्ट किया जा सकता है.
यह कंसेप्ट पुराना है
आज इमरजेंसी मेडिकल सर्विस के क्षेत्र में चाहे जितनी तरक्की हो गयी हो, लेकिन इंजर्ड पेसेंट्स का एअरक्राफ्ट से ट्रांसपोर्ट का कांसेप्ट मिलिटरी की देन है. एअर क्राफ्ट का एंबुलेंस के रूप में प्रयोग उतना ही पुराना है, जितना पुराना हवाई जहाज है. सन् 1870 ई. में पहली बार एअर मेडिकल ट्रांसपोर्ट का प्रयोग 160 घायल फ्रैंच सैनिकों को हॉट एअर बैलून की सहायता से सियेग आफ पेरिशन से फ्रांस तक पहुंचाया गया था. प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भी विभिन्न मिलिटरी आर्गेनाइजेशन द्वारा विभिन्न साधनों का प्रयोग एअर एंबुलेंस की तरह किया गया था. लेकिन, तब एअर क्राफ्ट शैशव अवस्था में था अौर इसका दायरा सीमित था. लेकिन, सन् 1936 ई. में आर्गेनाइज्ड रूप में मिलिटरी एअर एंबुलेंस सेवा का प्रयोग जर्मनी में स्पेनिश सिविल वार के दौरान घायल सैनिकों के इलाज के लिए किया गया था. सन् 1900—1953 के बीच कोरिया लड़ाई के दौरान यूएस फोर्स द्वारा हेलीकॉप्टर का प्रयोग एअर एंबुलेंस के रूप में किया गया था. इस दौरान हेलीकॉप्टर का प्रयोग युद्ध क्षेत्र से घायलों को बाहर निकालने के लिए किया जाता था. उसके बाद जैसे—जैसे इसका विकास अौर विस्तार होता गया, छोटे अस्पतालों से गंभीर मरीजों को बड़े अौर अधिक साधन संपन्न अस्पतालों में ट्रांसफर करने के लिए इसका प्रयोग किया जाने लगा. सन् 1969 में पहली बार यूएस द्वारा पूरी तरह ट्रेंड मेडिकल टीम के साथ हेलीकॉप्टर का प्रयोग एंबुलेंस की तरह किया गया. ऐसा करने पर पाया गया कि ट्रीटमेंट के साजो सामान से लैस हेलीकॉप्टर के प्रयोग से युद्धक्षेत्र से घायल सैनिकों को बेहतर चिकित्सा सुविधा मिल पाती है, जिससे मृत्युदर में काफी कमी आती है. यूएस मिलिटरी ने इराक युद्ध में घायलों को युद्धस्थल से अस्पताल तक पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टपरों का प्रयोग किया. यही कारण है कि आज दुनिया के कई देश के मिलिटरी घायल सैनिकों तथा आम नागरिकों को अस्पताल तथा उच्च चिकित्सीय संस्थान तक पहुंचाने के लिए एअर एंबुलेंस का प्रयोग करने लगा है.
लेकिन, आम नागरिकों को एअरक्राफ्ट का प्रयोग एंबुलेंस के रूप में किया जाना एक संयोग के तहत हुआ. उत्तरी कनाडा, आस्ट्रेलिया तथा स्केडीनेवियन देशों में अत्यधिक पिछड़ें इलाके के लोगों को एक जगह से दूसरी जगहों पर जहां सड़क मार्ग की सुविधा नहीं थी, वहां इसका प्रयोग वर्षों तक किया जाता रहा. कई बार, खासकर नार्वे में नावों का सहारा लिया जाता था. ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो हवाई साधनों के प्रयोग की प्रारंभिक अवस्था में, कई समुदायों में आम नागरिकों के लिए एअर क्राफ्ट का प्रयोग, मुख्यतः सामान, चिट्ठी—पत्री, डॉक्टर्स, नर्सों की सेवाएं पिछड़े तथा दूरदराज के इलाकों में पहुंचाने के लिए किया जाता था. सन् 1928 में पहली बार पूरी तरह एअर एंबुलेंस सर्विस की स्थापना आस्ट्रेलिया में किया गया था जोकि आज इसने एक संगठन के रूप ले लिया है और रॉयल फ्लाइंग डाक्टर सर्विस के रूप में काम कर रहा है. उसके बाद सन् 1934 में पहली बार अफ्रीका में सिविल एअर सर्विस प्रारंभ की गयी. तब एअर एंबुलेंस पिछड़े इलाकों के लिए काफी यूजफूल था, लेकिन तब भी विकसित देशों के लिए उतना कारगर नहीं था. द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद पिछड़े तथा दूरदराज के नागरिकों को बेहतर चिकित्सीय सेवा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पहली बार उत्तरी अमेरिका में एअर एंबुलेंस सुविधा प्रदान की गयी. संयुक्त राज्य में सन् 1947 में भी पहली बार देश में पहली बार इस तरह की सेवा की शुरूआत की गयी. उसके बाद इसकी महत्ता तथा उपयोगिता को देखते हुए दुनिया के कई देशों में जैसे जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, कनाडा, नार्वे, संयुक्त राज्य, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड आदि देशों में इसकी सेवा की शुरूआत की गयी. मिलिट्री को छोड़ कर आम नागरिकों को इसकी सेवा मुहैया कराने के उद्देश्य से भभी एअर एंबुलेंस सेवा की शुरूआत हुई, जिसकी लिए सरकारी अनुदान, उद्योगपतियों से लेकर चेरिटेबुल ट्रस्ट अौर विभिन्न आर्गेनाइजेशन से सहयोग लिया जाने लगा.
इमरजेंसी चिकित्सीय सुविधाएं
जैसे—जैसे चिकित्सा के क्षेत्र में विकास होता गया, इसकी सुविधाओं में भी लगातार आधुनिकीकरण होता गया. शुरूआती दौर में जहां एअर एंबुलेंस का इस्तेमाल मात्र पहाड़ी, दुर्गम, दूरदराज के क्षेत्रों से इमरजेंसी अौर एक्सीडेंट में घायल मरीजों को महज अस्पताल तक पहुंचाने के लिए इस्तेमाल होता था, अब इसमें काफी सुधार हो गया है. अब तो इन एंबुलेंसों में जहां तमाम तरह के इमरजेंसी उपकरणों से लैस होता है. इसके साथ पूरे साज—ओ—सामान से लैस होते हैं और मेडिकल टेक्नीशियंस, पारा मेडिकल स्टाफ, लाइट नर्स, रिस्पाइरेटरी, थिरैपिस्ट के साथ—साथ इमरजेंसी ड्रग्स, इसीजी मशीन, वेंटीलेटर, सीपीआर, इक्वीपमेंट के साथ—साथ जरूरत के अनुसार फिजिशियन, ड्रामा स्पेशलिस्ट तक साथ—साथ चलते हैं. इनका मूल उद्देश्य क्रिटिकल केयर ट्रांसपोर्ट की ओर रहता है अौर उसी को ध्यान में रखकर, मेडिकल उपकरण से लेकर मेडिकल सर्विस प्रोवाइडर की टीम साथ—साथ चलती है. ऐसे भी इन स्थितियों में क्रू के साथ फिजिशियन, सर्जन , एनेस्थेटिक्स, ट्रामा स्पेशलिस्ट के अतिरिक्त विशेष रूप से ट्रेंड पारा मेडिकल स्टाफ तथा नर्से होते हैं. इनका मूल उद्देश्य आपातकालीन सेवा प्रदान करना होता है, जिसके अंतर्गत कई बार एंबुलेंस में ही पेसेंट को आपातकालीन अॉपरेशन करने की जरूरत भभी पड़ जाती है. ऐसी स्थिति में बिना समय गंवायें ये टीम घटनास्थल पर ही आवश्यक उपचार के साथ—साथ आपरेशन भी कर देते हैं.
एअर एंबुलेंस एक ऐसा एअर क्राफ्ट है, जो इमरजेंसी मेडिकल सुविधाओं के लिए गंभीर पेसेंट को एक जगह से दूसरी जगहों पर पहुंचाने की सुविधाएं प्रदान करता है जहां ट्रेडिशनल एंबुलेंस आसानी से नहीं पहुंच पाता है. इसमें माध्यम से मरीजों को आसानी से तथा यथाशीघ्र गंतव्य तक पहुंचाया जाता है. कई बार दूरदराज के मरीजों को भी कम से कम समय में पहुंचाने की जरूरत पड़ती है. कई बार हर्ट अटैक के मरीजों को यथाशीघ्र इमरजेंसी चिकित्सीय सेवा की जरूरत पड़ती है. इस स्थिति में भी इससे मेडिकल टीम मरीज—स्थल तक पहुंचकर इमरजेंसी चिकित्सा प्रदान करते हैं, क्योंकि एअर एंबुलेंस क्रू के साथ इमरजेंसी ट्रीटमेंट के सारे उपकरण मौजूद होते हैं, जिसकी सहायता से क्रिटिकली इंजर्ड या सीरियस मरीजों को प्राथमिक चिकित्सा के लिए जरूरी होता है. एअर एंबुलेंस में उपलब्ध उपकरणों से मुख्यतः वेंटिलेटर, इसीजी मशीन, सीपीआर, स्ट्रेचर, इमरजेंसी दवाएं भी साथ होती है. यहां यह भभी बताते चलें कि एक एअर एंबुलेंस हेलीकॉप्टर एक कार पार्किंग की जगह पर भभी लैंड करने की क्षमता रखता है. इसलिए जहां सड़क की सुविधा नहीं है या फिर पहाड़ी अौर दुर्गम क्षेत्रों में भभी आसानी से पहुंच सकता है.
राष्ट्रीय राजमार्ग पर बढ़ती दुर्घटनाओं को देखते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग आथिरिटी ने पूरे देश में फैले राष्ट्रीय राजमागोर्ं पर एअर एंबुलेंस की लैंडिंग के लिए हेलीपैड बनाने की तैयारी शुरू कर दी है ताकि सड़क दुर्घटनाओं में घायल मरीजों को नजदीक के अस्पतालों तथा ट्रामा सेंटर में कम से कम समय में पहुंचाया जा सके. शुरूआत में दिल्ली,हरियाणा तथा राजस्थान के राजमार्गां पर तीन स्थानों को चिन्हित भी कर लिया गया ताकि एअर एंबुलेंस की सुरक्षित लैंडिंग कराया जा सके. इसमें एक गुड़गांव—दिल्ली के बीच तथा दो राजस्थान के राजमार्ग पर हैं. उसके बाद फरीदाबाद,बहादुरगढ़,गाजियाबाद आदि जगहों इसका विस्तार किये जाने की योजना है. इस महत्त्वाकांक्षी योजना को पूरे देश के राजमार्गों में फैलाने के लिए जगहों को चिन्हित करने का काम युद्धस्तर पर काम चल रहा है. देश के विभिन्न क्षेत्रों के क्षेत्रीय राजमार्ग निदेशकों को निर्देश भी जारी भी किये जा चुके हैं. इस हाइस्पीड राजमार्ग से 100 किमी की दूरी पर वैसी जगहों पर हेलीपैड बनाये जाने की योजना है जहां से बड़ा अस्पताल या ट्रामा सेंटर नजदीक है. इस योजना के पूरे होने पर देशभर के राजमागोर्ं पर होनेवाली दुर्घटनाओं में अधिक से अधिक घायलों को कम से कम समय में नजदीक के अस्पतालों में पहुंचाया जा सकेगा.
किस तरह की सुविधाएं प्रदान करता है?
आजकल एअर एंबुलेंस के अंदर ऐसी सुविधाएं होती हैं, जिसकी जरूरत सीरियस मरीजों को ट्रांसपोर्टेशन के दौरान जरूरत पड़ जाती है. बीमारी की गंभीरता तथा इंजरी की जरूरत के अनुसार भी सुविधाएं घटायी—बढ़ाई जाती है. अधिकतर प्रयोग में लाये जाने वाले एअर क्राफ्ट में ट्वीन इंजिन्स, टर्बो प्रोप्स, लीयर 35 या लीयर 36 सिरीज जेट का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन, हकीकत तो यह है कि मरीज के कंडिशन, दूरी तथा बजट के मद्देनजर एअर क्राफ्ट को बदला भभी जाता है. लेकिन, अमूमन सभी एअरक्राफ्ट को मिनी इंटेंसिव केयर यूनिट की तरह सुसज्जित होते हैं, ताकि बेसिक लाइफ सपोर्ट, एडवांस लाइफ सपोर्ट तथा क्रिटिकल केयर सपोर्ट की सुविधा मरीज को जरूरत के हिसाब से मिले. बेसिक लाइफ सपोर्ट की जरूरत वाले पेसेंट को ट्रांसपोर्ट द्वारा महज बेसिक मोनिटरिंग की जरूरत पड़ती हैं. ऐसे मरीजों के लिए एअरक्राफ्ट तथा क्रू के साथ एअरोमेडिकली ट्रेंड मेडिकल टीम साथ होती है, जो कि पूरी यात्रा के दौरान आवश्यक इमरजेंसी सेवाएं प्रदान करती हैं. एडवांस लाइफ सपोर्ट की सुविधा जरूरत मुख्यतः क्रिटिकली इल मरीजों को पड़ती हैं. इसके अंतर्गत एअर एंबुलेंस के साथ चलने वाली मेडिकल टीम अपने साथ लाये मेडिकल इक्युपमेंट की सहायता से स्पेशल मोनिटरिंग रोग की गंभीरता को देखते हुए करते हैं. इस तरह की सुविधाएं मुख्यतः घायल, जले मरीजों के साथ हर्ट डिजीज के मरीजों को साथ—साथ दूसरी गंभीर मरीजों को देने की जरूरत पड़ती है. ऐसे गंभीर मरीज, जिन्हें ट्रांसपोर्टेशन के दौरान इंटेसिव केयर सेटिंग की जरूरत पड़ती है, एअरो मेडिकल सर्विस प्रोवाइडर वैसी सुविधाओं से लैस एअर एंबुलेंस की सेवा प्रदान करता हैं. ऐसे एअर क्राफ्ट के साथ स्पेशलाइज्ड मेडिकल में विशेष रूप से ट्रेंड फिजिशियन तथा क्रिटिकल केयर नर्सें होती हैं, जिसका चुनाव मरीज की गंभीरता को देखते हुए किया जाता है. कई बार टीम में रिस्पायरेटरी थिरेपिस्ट तथा दूसरे विशेषज्ञों कोभभी शामिल किया जाता है.
एअर एंबुलेंस में मरीज के कंडिशन को देखते हुए तीन तरह की मेडिकल फैसिलिटीज होती है—जिसे बेसिक लाइफ सपोर्ट, एडवांस लाइफ सपोर्ट तथा कि‘टिकल केयर लाइफ सपोर्ट कहते हैं. बेसिक लाइफ सपोर्ट वाले एअर क्राफ्ट द्वारा मरीजों को महज ट्रांसपोर्ट की सुविधा होती है. इसके अंतर्गत वैसे पेसेंट को ट्रांसपोर्ट किया जाता है, जिन्हें एक्टर्नल लाइफ सपोर्ट की न्यूनतम जरूरत पड़ती है. लेकिन, इतना जरूर है कि ट्रांसपोर्ट के दौरान लगातार मरीजों में मॉनिटरिंग तथा निगरानी की जरूरत पड़ती है. एडवांस लाइफ सपोर्ट वाले एअर एंबुलेंस की जरूरत एक्सीडेंट, बर्न या कार्डियक फैल्योर के मरीजों को ट्रांसपोर्ट करने की जरूरत पड़ती है. इसके अतिरिक्त कई दूसरे गंभीर पेसेंट के ट्रांसपोर्ट के लिए भभी इसकी जरूरत पड़ती है.
इतिहास की पहली एअर एंबुलेंस दुर्घटना
भारत में एअर एंबुलेंस सर्विस के इतिहास में पहली बार एक मरीज को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करने के दौरान 25 मई 2011 को फरीदाबाद के एक रेसिडेंसियल एरिया में दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसमें सवार सात लोगों सहित दस लोगों की मौत हो गई. एंबुलेंस में सवार दो डॉक्टर, दो पायलेट,देा मेडिकल एटेंडेंट, एक मरीज तथा उसके दो रिश्तेदारों की भी मौत हो गई. इस एंबुलेंस से राहुल राज नामक 22 वर्षीय कोमा के मरीज को पटना के एक कार्पोरेट अस्पताल से दिल्ली के अपोलो अस्पताल में शिफ्ट किया जा रहा था. मरीज लीवर फेल्योर की वजह से कोमा में था और इसे वेंटीलेटर सपोर्ट दिया जा रहा था. दिल्ली के एअर चार्टेड सर्विस इंडिया पा.लि. के हेलीकाप्टर की दुर्घटना खराब मौसम की वजह से हुई थी.
एअर एंबुलेंस सेवा कैसे प्राप्त करें
अब, प्रश्न उठता है कि जरूरत पड़ने पर एअर एंबुलेंस सेवा कैसे प्राप्त करें. इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है कि आपको पता लगाना कि किस अस्पताल में इसकी सेवा उपलब्ध है अौर वहां का कंटेक्ट नंबर क्या है. जो लोग भविष्य में इसका लाभभ उठाना चाहते हैं, उन्हें इसके संबंध में पहले से पूरी जानकारी रखनी चाहिए. यदि आप दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई जैसे शहर के आसपास रहते हैं तो वहां के बड़े कारपोरेट अस्पताल में संपर्क कर पूरी जानकारी ले लें. जैसे— वहां इसकी सुविधा है या नहीं. कितने सीटर का एंबुलेंस उपलब्ध है. प्रतिघंटा कितना किराया है अौर उसके नियम अौर शर्ते क्या हैं? किस तरह की सूचना मुहैया करानी होती है? बेसिक लाइफ सपोर्ट, एडवांस लाइफ सपोर्ट तथा क्रिटिकली इल के मरीजों के ट्रांसपोर्ट के लिए कैसी व्यवस्था है? ग्राउंड एंबुलेंस ट्रांसपोर्ट की क्या व्यवस्था है?इसके साथ और भी कई बेसिक जानकारी जान लेना जरूरी है।
जरूरत पड़ने पर जब आप फ्लाइट के लिए एअर एंबुलेंस के लिए कॉल करेंगे, तब एंबुलेंस को—अॉर्डिनेटर को पेसेंट के संबंध में कुछ बेसिक इन्फार्मेशन मुहैया करना पड़ेगा. मसलन पेसेंट का कंडिशन, दूरी तथा आपका बजट क्या है? जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि सभी एअर क्राफ्ट में मिनी इंटेंसिव केयर यूनिट की व्यवस्था रहती है, ताकि लाइफ सपोर्ट, एडवांस लाइफ सपोर्ट तथा क्रिटिकल केयर पेसेंट को घटनास्थल पर ही या फिर ट्रांसपोर्ट के दौरान उचित इलाज किया जाये. यहां यह भी बताते चलें कि इस एंबुलेंस का काम मरीजों को डेस्टिनेशन तक सुरक्षित तथा जीवित पहुंचाना लक्ष्य होता है.
मेडिकल स्टाफ में कौन—कौन साथ रहेगा. मसलन डाक्टर, नर्स, पारा मेडिकल स्टाफ, रिस्पाइरेटरी थिरैपिस्ट या कौन—कौन विशेषज्ञ रहेंगे,इसका निर्णय मरीज की गंभीरता पर निर्भर करता है. भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में एअर एंबुलेंस सर्विस इतनी दुरूस्त होती है कि देश के किसी भी कोने से मरीज को दो घंटे के अंदर डेस्टिनेशन तक पहुंचा दे.
एअरक्राफ्ट को—आर्डिनेटर के लिए मरीज का कंडिशन जानना इसलिए जरूरी होता है, ताकि उसके अनुसार मेडिकल स्पेशलिस्ट को साथ ला सकें. मरीज, बच्चा है तो उसके लिए पेड्रिटिशयन, महिलाओं के लिए गाइनोकालोजिस्ट को क्राफ्ट में लेकर आना पड़ता है. हर्ट अटैक के मरीजों के लिए कार्डियोलोजिस्ट तथा रोड ट्रैफिक एक्सीडेंट की हालत में सर्जन, आर्थोपेडिक सर्जन की सेवाएं ली जाती है, ताकि पेसेंट के ट्रांसपोर्ट के दौरान भी इलाज की शुरूआत कर ली जा सके. उसी तरह मरीज की स्थिति के अनुसार रिस्पायरेटर, वेंटिलेटर डिफिब्रिलेटर जैसे मशीन को साथ लाना होता है. उसी तरह एटेंडेंट तथा लगेज की संख्या तथा वजन भी बताना जरूरी है, क्योंकि उसी के अनुसार 4 सीटर, 6 सीटर या 8 सीटर एअरक्राफ्ट की सेवा मुहैया करायी जाती है.
फ्लाइट को—अॉर्डिनेटर मरीज से संबंधित पूरी इन्फारमेंशन प्राप्त करने के बाद इमरजेंसी मेडिकल डिपार्टमेंट में संपर्क करते हैं अौर मरीज के कंडिशन के अनुसार मेडिकल स्टाफ, लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम, लाइफ सेविंग ड्रग्स का चुनाव कर तुरंत एंबुलेंस को मरीज के डेस्टिनेशन प्वाइट के लिए रवाना हो जाते हैं. इस बीच मरीज के संबंध में लिखित प्रपोजल भभी ले लेते हैं. इस प्रपोजल में नियम, शर्तें तथा किराये से संबंधित पूरी जानकारी होती है. मरीज के एटेंडेंट से अथेराइजेशन टू ट्रांसफर भी ले लिया जाता है, जिसमें ट्रांसफर की पूरी जानकारी होती है. कई बार जहां पर एअर क्राफ्ट उतरेगा, वहां तक मरीज को पहुंचाने के लिए एटेंडेंट ही ग्राउंड एंबुलेंस की व्यवस्था करते हैं. तो कई बार शुरूआती दौर में जिस अस्पताल में मरीज भर्ती रहता है, वहीं इसकी व्यवस्था करते है. कई बार ग्राउंड ट्रांसपोर्ट की भी व्यवस्था एअर एंबुलेंस वाले ही करते हैं.
एअरक्राफ्ट का किराया
एअरक्राफ का किराया एअरक्राफ्ट की क्षमता,आकार,मिलनेवाली सुविधाएं,दूरी, समय के साथ—साथ कई बातों पर भी निर्भर करता है. मरीज के साथ पैसेंजर की संख्या ज्यादा होने पर बड़े एअरक्राफ्ट के प्रयोग से छोटे एअरक्राफ्ट की तुलना में किराया ज्यादा हो जाता है. एंबुलेंस में मेडिकल फैसिलिटी के अनुसार भी किराये का निर्धारण होता है. इसके अतिरिक्त स्टाफ,चिकित्सकों की संख्या और दूरी के कारण भी किराया कम ज्यादा होता है. यदि एंबुलेंस उसी दिन मरीज को लेकर लौटता है तो उसका किराया अलग और दूसरे दिन लौटता है तो उसका किराया अलग होता है.
अमूमन एक दिन का किराया ढाई से तीन लाख तक होता है लेकिन यदि एंबुलेंस दूसरे दिन मरीज लेकर लौटता है तो किराया बढकर साढे तीन से चार लाख तक हो जाता है. कई अस्पताल 80 से 90 हजार प्रति घंटा तक किराया वसूल करता है. अभी हाल में ही कोलकाता के सीटी होस्पीटल भी एअर एंबुलेंस की सुविधा की शुरूआत किया है जो दस हजार रूपये प्रति घंटा के हिसाब से किराया वसूलता है.
एअर एंबुलेंस मूलतः तीन तरह की सेवाएं प्रदान करने के लिए उपयोग में लाया जाता है
प्राइमरी एअरो मेडिकल ट्रांसपोर्टेशन के अंतर्गत बड़ी, रेल या हवाई दुर्घटनाओं की स्थिति में जंगलों,पहाड़ो तथा दूर दराज के क्षेत्रों से घायलों को ढूंढकर अस्पताल में पहुंचाना.
सेंकंडरी ट्रांसपोट्रेशन की स्थिति में छोटे अस्पतालों से बड़े और सुपर स्पेशलिटी सेटर में शिफ्ट किया जाना.
टर्सियरी मेडिकल ट्रांसफर के अंतर्गत मरीज को राष्ट्रीय स्तर के अस्पतालों मे शिफ्ट किया जाता है.
विदेशों के अस्पतालों में भी कई बार मरीजो को इसी के द्वारा शिफ्ट करना.