बाल कहानी
घमंडी को सबक
अमरकण्टक वन में कपिला नाम की एक लोमड़ी रहती थी। वह बड़ी ही चालाक आैर घमण्डी थी। खरगोश, चूहे, मुर्गी, मेमनों आदि को वह मार कर खा जाया कती थी। वह बड़ी फुर्तीली थी, इसलिए तुरन्त शिकार कर लेती थी।
एक दिन कपिला ने कई मुर्गियां मारीं। कुछ मुर्गियां उसने खा लीं। जब उसका पेट भर गया तो बची हुई मुर्गियां लेकर वह बरगद के पेड़ के पास पहुंची। वहाँ उसने जमीन में गड्ढा खोदा आैर सब बची मुर्गियां उसमें दबा दीं। चंचल गिलहरी पेड़ पर से कपिला की ये सारी हरकतें देख रही थी। जैसे ही कपिला चलने को हुई ,वह तुरन्त पेड़ से उतरी आैर बोली-कपिला दीदी! बुरा मत मानना। तुम तो कहती हो कि तुम बहुत शक्तिशाली हो, पर तुम शिकार करती हो इन छोटे-छोटे निरीह प्राणियों का। सिंह दादा की तरह तुम भी बड़े-बड़ जानवरों को मारो, तब जानूं तुम्हारी शक्ति। अपने से छोटों को सताना बहुत सरल होता है। चंचल गिलहरी की यह बात कपिला लोमड़ी को चुभ गयी। वह घमण्ड में अकड़ कर बोली- अली चंचल ! तूझे क्या पता कि मैं बड़-बड़े जानवरों का शिकार करती हूं। फिर वह गर्व से अपनी भुजाओं को अकड़ाते हुए बोली- बहुत शक्ति है मेरी इन भुजाओं में। अच्छा यदि यह सच है तो अपनी इस शक्ति का प्रदर्शन सभी के सामने करो, ऐसा कहकर चंचल ने उसे भड़काया। चंचल आैर कपिला बात कर ही रही थीं कि तब तक आसपास से कल्लू गधा, लालू बन्दर, श्यामा चिड़िया आदि बहुत से अन्य जानवर भी इकट्ठे हो गये थे। लालू बन्दर बड़ा शरारती था। उनकी बातें सुन कर बोल उठा- तो फिर मौसी कब दिखाओगी अपनी कुशलता ? चूंकि लोमड़ी के मुंह से बात निकल चुकी थी। इस कारण भरी पंचायत में कपिला लोमड़ी अपनी बात से पीछे भी कैसे हटती। तभी सहसा उसके दिमाग में एक युक्ति सूझी, वह बोली- अभी तो मैं अपनी बहिन के घर जा रही हूं। आज से ठीक एक महीने बाद इसी वृक्ष के नीचे अपनी शक्ति दिखाऊंगी। इसके बाद सभी जानवर अपने-अपने ठिकाने पर चले गये। अगले दिन लालू बंदर सभी के घर जाकर यह बात बता आया। कपिला लोमड़ी भी उसी दिन अपना ठिकाना छोड़ पास के जंगल में चली गयी।
उस जंगल में भासुरक नाम का सिंह रहता था। शिकार करने में वह बहुत कुशल था। कपिला उसकी गुफा के पास जाकर छिप गयी। वह बड़े ध्यान से देखती रहती थी कि सिंह अपने बच्चों को किस प्रकार से शिकार करना सिखाता है। कपिला ने ध्यान दिया कि सिंह शिकार के लिए सबसे पहले जानवरों की गर्दन पर झपटता है। कपिला ने सोचा बड़े जानवरों का शिकार करने का यही तरीका है। सिंह अपने पंजे की एक चोट से बड़े जानवरों को गिरा देता था। कपिला सोचने लगी कि यह तरीका तो बड़ा सरल है। मैं भी अब बड़े-बड़े जानवरों को मार सकती हंू। यह विचार कर वह पूरे आत्मविश्वास के साथ निर्धारित समय पर कपिला लोमड़ी बरगद के पेड़ के नीचे पहुंची। वहां लालू बन्दर आैर चंचल गिलहरी ने बहुत से जानवरों को पहले से इकट्ठा कर रखा था। दूर से हाथी दादा को आता देखकर लालू बन्दर बोला-हां तो कपिला दीदी! आप हाथी दादा का शिकार करके दिखाओ। ठीक है, ठीक है अभी दिखाती हंू , अपने मुंह को कुछ फुलाती हुई कपिला लोमड़ी बोली। हाथी के पास आते ही ज्यों ही कपिला ने उसके मस्तक पर वार किया हाथी ने अपनी सूंड़ से लपेट कर लोमड़ी को जमीन पर दे पटका। लोमड़ी कराह उठी। उसको दो-चार हड्डियां टूट गयीं। कमर को सहलाती हुई कपिला बड़ी मुश्किल से उठी।
उधर हाथी दादा की जय, हाथी दादा की जय के नारों से सारा जंगल गंूज उठा। कल्लू गधा बोला-देखा कपिला दीदी! घमण्डी को कैसा फल मिलता है ? लालू बन्दर बोला- तुम्हें यह सबक इसीलिए मिला है क्योंकि तुम छोटे प्राणियों को बहुत मारने लगी हो। खाती हो फिर बचे हुओं की गाड़ भी देती हो। आज से तुम बस कीड़-मकोड़े ही खाया करोगी।
चंचल गिलहरी ने कहा-कपिला दीदी! देखा तुमने कि आवेश में काम करने का क्या नतीजा होता है। हमें हर स्थिति में शान्ति आैर विवेक से काम लेना चाहिए। तनिक सी बात पर उत्तेजित हो जाना मूर्खता की निशानी है। इस मूर्खता से दूसरों की कम आैर अपनी हानि अधिक होती है। कपिला लोमड़ी सिर झुकाये हुए चंचल गिलहरी की बात गंभीरता से सुन रही थी। वह सोच रही थी कि ये सब ठीक कह रहे हैं। अब कपिला लोमड़ी अपनी शक्ति के घमण्ड में जानवरों को नहीं सताती। वह स्वभाव को भी संतुलित रखती है। बात-बात में उत्तेजित नहीं होती।
पूनम नेगी
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