Aadhe ghante ki chori in Hindi Short Stories by Devendra Gupta books and stories PDF | आधे घंटे की चोरी

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आधे घंटे की चोरी

आधे घंटे की चोरी

अरे सुनती हो, कहाँ रहा गई, काम खत्म नहीं हुआ अभी तक तुम्हारा, दीपेश ने खाना खाने के बाद सौंफ फाँकते हुए बोला l आती हूँ, आती हूँ......कहते हुए सीमा किचन से बाहर आई l वो मेघना के लिए चाय बनाने लग गई थी वरना किचन का काम तो कब का खत्म हो गया था, कहते हुए सीमा ने साड़ी का पल्लू जो उसने पेट के एक तरफ ठूंस रखा था, को ठीक करते हुए बोली l अब बस भी करो, जब देखो जब काम में ही लगी रहती हो, तुम अपना बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखती - दीपेश ने उल्हाना सा दिया l

नहीं ये बात नहीं है, देखो ना मेघना की परीक्षाऐं चल रहीं हैं, वो कह रही थी उसे दस बजे के बाद नींद आने लगाती है सो उसके लिए चाय बनाने लग गई, चलो अब चलते हैं, कहते हुए सीमा ने ताला हाथ में लिया, दीपेश भी बात करते हुए बाहर बाउंड्री में आगयाl सीमा ने फटाफट ताला मारा और तेज कदम चलते हुए दीपेश के बराबर आ गई, फिर साथ-साथ दोनों धीमे-धीमे कदमों से आगे बढ़ने लगे l

यह लगभग रोज का नियम था कि सीमा और दीपेश रात को खाना खाने के बाद टहलते थे, करीब आधा घंटे में वो एक चक्कर लगा लेते और इसी दौरान उनकी दिनभर के सारे घटनाक्रम के बारे में बातचीत होती l सीमा बताती चलती आज मेघना स्कूल में क्या कर के आई है उसके पेपर कैसे हो रहे हैं,हमारे पड़ोसी आज शाम कहीं पार्टी में गए, किस- किस का फोन आया, क्या हुआ क्या नहीं हुआ सब कुछ और दीपेश भी अपने बैंक में हुई सारी घटनाऐं बताता चलता l लगभग एक चक्कर पूरा करने के बाद सीमा घर आने को कहती और दीपेश थोड़ा ओर घूमने को, तब सीमा बताती की वो पूरा दिन कितना थक गई है और दीपेश बस यही एक बात लगभग रोज दोहराता कि बस यही आधा घंटा तो मिलता है जिसमें हम तुम साथ-साथ रहते हैं, यह कहते हुए दीपेश सीमा का हाथ पकड़ लेता तो सीमा मना नहीं कर पाती और दीपेश के साथ थोड़ा ओर टहलती l

सीमा जब दीपेश के साथ घूमने निकलती तो उसकी हमउम्र पड़ोसन जो उनके ऊपर वाले फ्लैट में रहती थी अपनी बालकॉनी से उन्हें लगभग रोज देख लेती और वहीं से हाय-हैलो हो जाती, क्योंकि वो खाना खाकर बालकॉनी में ही इधर - उधर टहल लेती थी और उनके पतिदेव खाना खाने के बाद टीवी देखने में व्यस्त हो जातेl

एक रात जब रोज की तरह सीमा और दीपेश रात को टहलने के लिए दरवाजे पर लॉक लगा ही रहे थे कि उनकी उपर वाली पड़ोसन भी नीचे आ गई, थोड़ी देर तक तो खड़े-खड़े बातें करती रही फिर जैसे ही वो चलने लगे तो उनकी पड़ोसन ने भी उनके साथ कदम बढ़ा लिए, मजबूरन दीपेश को थोड़ी दूरी बनानी पड़ी क्योंकि वो सीमा के साथ बात कर रही थीl दीपेश अनमना सा तेजी से आगे बढ़ता हुआ फटाफट चक्कर पूरा कर घर वापस आ गया और पड़ोसन देर तक सीमा से बात करती रही, जब सीमा अंदर आयी तो दीपेश टीवी देख रहा था l मुझे मालुम है आपको अच्छा नहीं लगा पर क्या करें, जब वो जबरदस्ती साथ चल ही दी तो मना भी तो नहीं किया जाता ना और वैसे भी कौन हमें रोज रोज मिलता है, कहते हुए सीमा ने दरवाजे की चिटकनी अंदर से बंद कीl

अगले रोज सीमा और दीपेश जैसे ही बाहर घूमने निकले वो पड़ोसन फिर सामने थी, इस बार दीपेश ने उन्हें नमस्ते किया और आगे बढ़ने लगे, वो यह बताना चाहता था कि हमें अकेला छोड़ दो पर सीमा तो पीछे ही रह गई थी उसी पड़ोसन साथ l

सीमा, अब शाम को हम साथ साथ टहला करेंगे क्योंकि मेरे पतिदेव तो टीवी देखने में लग जाते हैं और अकेले मेरी इच्छा नहीं होती, पड़ोसन की ये लाइन आगे चल रहे दीपेश के कानों तक पहुँची तो उसका मूड खराब हो गया l

थोड़ी ही आगे चल दीपेश बोला, सीमा तुम घूमो, मुझे एक जरुरी काम याद आ गया है मैं वापस जाता हूँ, कहकर दीपेश वापस घर आगया l आधा घंटा बाद जब सीमा घर वापस लौटी तब तक दीपेश सो चुका था, सीमा समझ चुकी थी दीपेश उससे नाराज हो चुका है l

अगले रोज खाना खाने के बाद दीपेश ने सीधे टीवी ऑन किया और मसंद (मोटा तकिया ) लगाकर न्यूज देखने लगा, सीमा समझ गई दीपेश कल की बात भूला नहीं हैl

आज तो हद हो गई, मेरे पतिदेव घूमने नहीं जा रहे हैं, रोज तो आप मेरा मान मनुहार करते थे मुझसे आधा घंटा लेने के लिए और आज मुझे याद दिलाना पड़ रहा है, सीमा ने बनावटी आश्चर्य दिखायाl क्योंकि वो ऊपर वाले फ्लैट की औरत मेरा आधा घंटा बर्बाद कर देती है- दीपेश ने अपनी बाँह के नीचे मसंद को ठीक करते हुए कहा ।

प्लीज अब चल भी दो, किसी ओर की गलती की सजा हम-तुम क्यूँ भुगते, चलिये….. मुझे लगता है कल जब आप तुरन्त वापस आ गये थे तो हमारी पड़ोसन को लग गया था कि आप को उसका हम दोनों के साथ चलना पसंद नहीं आया था, इसलिए अगर वो थोड़ी भी समझदार है तो आज वो कवाब में हड्डी नहीं बनेगी ।

ठीक है…… चलता हूँ, लेकिन अगर आज भी वो सामने आ गयी तो तुम मना कर देना उसे, आखिर यह हमारा टाइम है और वैसे भी पूरे दिनभर में बस यही तो वक्त है जो हम साथ में बिताते हैं, दीपेश ने नाराजगी और मजबूरी एकसाथ जाहिर की ।

मुझे मालूम है दीपेश, लेकिन क्या करूँ, आखिर मुँह पर सीधे-सीधे मना करना भी तो बुरा लगता है, फिर वो हमारे पड़ौसी भी हैं, ऐसा करने से अनबन हो जायेगी । दस बार तो मिलती है दिन में, फिर एक दूसरे से मुँह मोड़ कर जाना पड़ेगा, अच्छा लगेगा क्या आपको?............सीमा ने दीपेश को समझाया ।

हाँ, कह तो तुम सही रही हो, चलो बाहर घूमने चलते हैं, कहते हुऐ दीपेश बाहर की ओर निकले और दरवाजे के बाहर ताला लगा कर चाबी जेब में ही रखी थी कि बाउंड्री के बाहर से ही आवाज आई- क्या बात है सीमा, आज बहुत देर करदी बाहर निकलने में । उनकी पड़ोसन फिर उनके सामने थी । सीमा और दीपेश दोनों एक-दूसरे को देखते रह गये, अब क्या किया जाये, तभी दीपेश बोला कि आज में बाउंड्री में ही टहलूँगा आप लोग बाहर घूम कर आइये, बेचारी सीमा ने जाते हुए मुड़कर देखा तो दीपेश ने उधर से नज़रें हटा ली, सीमा अनमने ढ़ंग से आगे बढ़ गई ।

उन्हें जाते देख पहले तो दीपेश को बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन फिर सोचने लगा कि इसमें सीमा की तो कोई गलती नहीं बल्कि सबसे ज्यादा तो उसे ही परेशान होना चाहिये क्योंकि उसे मुझे और पड़ोसन दोनों के साथ सामजस्य बिठाना पड़ रहा है । इसके बाद दीपेश शांत मन से बाउंड्री में ही टहलने लगा ।

सीमा ने वापस आने पर अपनी सफाई में कुछ कहना चाहा तो दीपेश ने उसे रोक दिया और कहा कि वो उसकी मजबूरी समझता है इसलिए नाहक ही वो परेशान ना हो और आराम से सो जाय।

अब तो रोज का यही रूटिन था सीमा पड़ोसन के साथ घूमने चली जाती, दीपेश बाउंड्री में ही घूम लेता और पड़ोसन का पति पहले की तरह टीवी में मस्त रहता । इसी तरह हफ्ते दर हफ्ते बीतते गये और मेघना के एक्साम भी खत्म हो गये ।

उस शाम खाना खाने के बाद मेघना टीवी देख रही थी और सीमा और दीपेश घूमने के लिए बाहर आ गये थे, मेघना अपने मम्मी और पापा के बारे में अच्छी तरह जानती थी कि वो खाना खाने के बाद हर काम छोड़ कर घूमने जरूर जाते हैं । अचानक मेघना की नज़र बाउंड्री में घूम रहे उसके पापा पर पड़ी, वो तुरन्त टीवी छोड़ बाहर आई और लगभग चिल्लाते हुऐ पूछा- पापा आप और मम्मी तो खाना खाने के बाद आधे घंटे के लिये टहलने के लिये जाते हैं ना, फिर आज आप क्यों नहीं गये………

आज ही नहीं बेटा, महीने भर से नहीं जा रहा हूँ, दीपेश ने बाउंड्री के गेट से ही जवाब दिया ।

पर क्यूँ- मेघना ने दूर खड़े –खड़े ही चिल्लाया

क्योंकि मेरा आधा घंटा चोरी हो गया है- दीपेश ने चिल्लाते हुऐ उत्तर दिया, संयोग से उस समय पड़ोसन के पति भी टीवी छोड़ कर बालकॉनी में टहलते हुऐ मोबाइल पर बात कर रहे थे, यह बात उनके कानों तक भी पहुँची ।

उसने अपनी कॉल काट कर उपर से ही जोर से पूछा- क्या हुआ दीपेश जी क्या चोरी हो गया ?

मेरा आधा घंटा चोरी हो गया साहब, लगभग महीने भर पहले जिसके कारण में घूमने नहीं जा सकता – दीपेश ने उपर की ओर देखते हुऐ जवाब दिया ।

पड़ोसी जवाब सुनकर असमंजस में पड़ गये, फिर अपना सिर खुजाते हुऐ बोले- बड़ी अजीब चोरी है ये तो साहब… क्या वापस मिला ?

रोज ढूँढने की कोशिश करता हूँ लेकिन नहीं मिला, क्या आप मेरी सहायता करेंगे- दीपेश ने फिर जवाब दिया ।

जी मैं…..कैसे करूँ- पड़ोसी ने फिर सोचते हुए बोला ।

क्या मेरे आधे घंटे को आप अपने घर में भी ढूँढेंगे, हो सकता है उड़ कर आपके घर आगया हो और आप को पता भी ना हो, दीपेश ने ठहाके लगाते हुऐ कहा । जवाब में जब कुछ समझ नहीं आया तो पड़ोसी भी हँस दिये और वापस अन्दर जाने के लिये मुड़ गये ।

उसकी दूसरी शाम खाना खाने के बाद रूटिन के अनुसार मेघना ने टीवी ऑन कर लिया और सीमा और दीपेश बाहर आ गये, दो मिनट बाद मेघना ने अपनी जाली के गेट से झाँक कर देखा, उसके मम्मी- पापा साथ-साथ टहलने के लिये बाउंड्री के गेट से बाहर निकल सड़क पर जा चुके थे । मेघना समझ गई कि उसके मम्मी- पापा को चोरी हुआ उनका आधा घंटा मिल गया है और वो भी पड़ोसी अंकल के घर से ।