नितिन मेनारिया
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कहानी .................. भय का अंत .............................
मित्रों मैं यहाँ एक लघु कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ। जो कुछ वास्तविक और कुछ काल्पनीक है। इस कथा को किसी अन्य संदर्भ से ना जोड़ा जाये।
कहानी:-
एक युवक जिसका नाम रवि था वह युवक बहुत ही साधारण था। बचपन से ही अनुशासन प्रिय रहा और हर कार्य को नियमित और समयबद्ध पुर्ण करने की जिम्मेदारी रखता था। रवि अपने कार्य करने में वक्त को महत्वपुर्ण मानता था।
रवि को कई बार बचपन में ऐसे सपने आते थे जिससे वह सहम जाता था और उसे लगता था कि उसकी मृत्यु उसके निकट हैं। जब नींद खुलती तो वह दंग रह जाता था। उसे बाद में अहसास होता था कि यह तो मैंने सपना देखा है। लेकिन बार बार उसी सपने के आने से वह भी हैरान था। सपने में रवि इतना ही देखता था कि वह रेल में यात्रा कर रहा हैं और दरवाजे पर खड़ा है तभी उसे पीछे से कोई धक्का दे देता हैं। इसी बात का भय उसके मन में बैठ गया था।
रवि ने अपने मित्रों से जब इस बारे में चर्चा की तो कुछ मित्रों ने कहा कि बचपन का सपना सच होता है तो किसी मित्र ने कहा कि यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अतित हैं हो सकता है कि पूर्व जन्म में तुम्हारी मृत्यु रेल से गिरने पर हूई हो। मित्रों की ऐसी बाते सुन रवि का भय और अधिक बढ़ गया। रवि अपने जीवन में बाल्यावस्था से लेकर किशोरावस्था तक कभी भी रेल में नहीं बैठा था। और उसने मान लिया था कि वह कभी भी रेल से यात्रा नहीं करेगा।
एक समय ऐसा आता है कि एक दिन के लिए रवि का दिल्ली की यात्रा पर जाना होता है और रवि बस द्वारा ही आना और जाना निश्चित करना है। लेकिन रवि को जब दिल्ली के कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी मिलती है तो वह पाता है कि लौटते वक्त उसे कोई भी बस नहीं मिल पायेगी और उसे एक दिन दिल्ली और अधिक रूककर अगले दिन लौटना होगा।
रवि के पास लौटने के लिए रेल का विकल्प मौजुद था एवं सही समय पर रेल की उपलब्धता भी थी। अब रवि के सामने दो समस्याऐं थी कि वह रेल द्वारा यात्रा ना करने की बात माने या अपने कीमती वक्त को यूंही जिद्दीपन में गंवाऐं। बहुत सोच विचार कर आखिर रवि ने फैसला ले ही लिया कि वह अपने जीवन में कभी रेल की यात्रा ना करने के कथन का त्याग करेगा और वक्त को ऐसे ही बर्बाद नहीं करेगा। उसने अपनी यात्रा वापसी के लिए रेल में तत्काल में आरक्षण करा ही दिया।
रवि अगले दिन रात्रि में तय समय पर दिल्ली यात्रा के लिए प्रस्थान कर गया। सुबह दिल्ली पहूँच दिन भर अपने कार्य में व्यस्त रहा और शाम को आखिर वापसी की रेल पकड़ ही ली। रेल में बैठ कर वो भुल ही गया कि मैं कभी रेल में नहीं बैठुंगा बस इतना याद रखा कि वह पहली बार रेल यात्रा पर हैं। उसे रेल में कई मित्र मिले और नई सुबह कब हुई उसे पता भी नहीं चला। रवि महोदय के नभ में निकलते ही रवि यात्रा से लौट आया था। जब रवि सकुशल लौट आया तो उसके वकतव्य एवं सपने की बातों के अंत के साथ भय का अंत भी हो गया।
प्रेरणा:- ’’किसी प्रकार का भय यदि मन में बैठ जाये तो उसे दूर करना बहुत मुश्किल हो जाता हैं लेकिन कभी-कभी जब हालात और परिस्थितियाँ ऐसी बन जाये तब ना चाहते हुए भी और डरे मन से भी हमें गुजरना होता है और उसमें हम जीत जाये तो हमारा भय दूर हो ही जाता हैं। एक दिन भय का अंत होना निश्चित होता है।’’