Sansanikhej Khabar in Hindi Short Stories by Arunendra Nath Verma books and stories PDF | सनसनीखेज खबर

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सनसनीखेज खबर

सनसनीखेज खबर !

सुबह होने वाली थी पर पूरब के दरवाज़े पर अभी तक सूरज ने ठीक से दस्तक नहीं दी थी. रात का अन्धेरा धीरे धीरे कम हो रहा था जैसे सत्ता के सिंहासन पर आरूढ़ सरकार धीरे धीरे जनता का विश्वास खोती जा रही हो. सड़कों पर बिजली के खम्भों के नीचे रोशनी के गोल घेरे फीके पड़ने लगे थे. हवा में गुलाबी ठंढक थी पर मुंहअँधेरे सैर के लिए निकलने वालों के लिए अभी गरम कपडे पहनना आवश्यक नहीं था. इसी लिए मुझे अपने पड़ोसी रवि जी को शाल लपेटकर सुबह की सैर के लिए निकलते देख कर थोडा आश्चर्य हुआ था. आश्चर्य शक में बदल गया जब मैंने ध्यान दिया कि शाल को वे इस तरह लपेटे हुए थे कि चेहरा आधे से अधिक छुप जाए. कोशिश शायद इसकी थी कि उन्हें आसानी से कोई पहचान न पाए. अपने घर से निकल कर उन्होंने जिस तरह से दायें बाएं देखा और लम्बे लम्बे डग भरते हुए तेज़ी से आगे बढ़ लिए उससे स्पष्ट था कि वे किसी अपराध भावना से त्रस्त थे. कोई गलत काम उन्होंने या तो किया था या करने जा रहे थे. जल्दबाजी या घबराहट में उन्होंने मुझे पहचाना नहीं क्यूँकि मैं उनसे दस बीस कदम पीछे था. मैं अपना कौतूहल दबा नहीं पाया. अपने कदम तेज़ किये और उनके बहुत पास जाकर अचानक कहा “ क्यूँ रवि साहेब, ऐसे चुपचाप कहाँ भागे जा रहे हैं?” बेचारे एकदम चौंक पड़े. शाल के अन्दर छिपे उनके हाथों से एक प्लास्टिक का बड़ा सा थैला छूट कर नीचे ज़मीन पर आ गिरा. चोट से फट गए थैले में से काफी ढेर सारा प्याज निकल कर फूटपाथ पर बिखर गया. रवि बाबू की अगली प्रतिक्रया और भी अजीब थी . बजाय नीचे झुक कर बिखरा हुआ प्याज इकट्ठा करने के वे उससे तीन चार कदम दूर इस अंदाज़ में खड़े हो गए जैसे नीचे फैली हुई प्याज से उनका कोई लेनादेना ही न हो .

अब मेरे हैरान होने की बारी थी. मेरी तरह रवि बाबू भी दिल्ली सरकार में राजपत्रित अधिकारी थे. नई दिल्ली की इस उच्च मध्यम वर्ग के सरकारी अधिकारियों की कालोनी में चूँकि अलग अलग विभागों के लोग रहते थे अतः सब एक दूसरे से परिचित नहीं थे .पर हम दोनों लगभग एक ही समय पर सुबह की सैर के लिए निकलते थे. मुझे अच्छी तरह से मालूम था कि वे एक ईमानदार अधिकारी हैं. हमारे बीच ऐसे ईमानदार थे ही कितने कि उँगलियों पर न गिने जा सकते. इसीलिये मुझे उनका पूरा व्यवहार बड़ा विचित्र सा लगा. पर जब उन्होंने सफाई देनी शुरू की तो मुझे लगा कि वे जो कुछ कर रहे थे ठीक ही कर रहे थे.

“मेरी इज्ज़त अब आपके हाथ में है “ वाले अंदाज़ में रवि बाबू बोले “ क्या किया जाए वर्मा साहेब ,आप तो जानते ही हैं कि मुझे रिटायर होने में कुछ ही महीने बाकी हैं. मेरे ऊपर के तीन तीन अधिकारियों से सी बी आई वालों की पूछताछ चल रही है. मैं किसी तरह का ख़तरा मोल लेने की स्थिति में नहीं हूँ. इसी लिए मैंने पिछले साल भर से किसी केस में न कोई निर्णय लिया है न किसी फ़ाइल में कुछ ऐसा लिखा है कि पढ़ कर कोई किसी निष्कर्ष पर पहुँच सके. अब तो किसी तरह से बाकी का समय भी इज्ज़त से बीत जाए और रिटायर हो जाऊँ यही एक अंतिम इच्छा बची है.”

बिखरे हुए प्याज का उनकी इज्ज़त से क्या लेना देना? न समझते हुए भी मैंने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा “ बात तो आपकी बिलकुल सही है. अगर फैसले लेने में जल्दबाजी करने की हमारी गंदी आदत होती तो हम सब सरकारी नौकरी करते ही क्यूँ.” बात कुछ पटरी से उतरती हुई लग रही थी इसलिए उसे फिर से मुद्दे पर लाते हुए मैंने पूछा “खैर ये बहस तो अंतहीन है, इसे छोडिये. रवि साहेब मुझे तो ये समझ में नहीं आया कि आपकी परेशानी का इस प्याज के थैले से क्या सम्बन्ध है. ये तो साफ़ है कि आप इस प्याज़ को चुपचाप कहीं ले जा रहे थे. मेरे बुलाने से आप इतनी जोर से चौंके कि शाल के नीचे छुपाया हुआ प्याज हाथ से छूट कर नीचे आ गिरा.पर आज के ज़माने में जिसके पास इतना प्याज़ हो उसे तो अपने आप पर गर्व करना चाहिए. ऐसी अमीरी तो लोगों को दिखाकर जलाने वाली चीज़ है न कि छुपाने वाली.”

“ अरे भाई इससे जियादा सीधी बात क्या हो सकती है कि मैं अब रिटायर होने के तुरत पहले, आय से अधिक संपत्ति ( डिस प्रोपोर्शनेट असेट )के केस में नहीं फंसना चाहता”. वे बोले “अब आप ही बताइये ,कहीं राज़ खुल गया कि मेरे घर पर इतना ढेर सारा प्याज है तो क्या सी बी आई या आयकर के इन्फोर्समेंट डायरेकट्रेट वाले सूंघते सूंघते मेंरे घर तक नहीं पहुँच जायेंगे.?”

मैंने चुटकी ली “खैर प्याज चीज़ ही ऐसी है कि उसे सूंघते हुए पहुँच जाना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं होगा. कोई स्विस बैंकों में रखा हुआ काला धन तो है नहीं कि सरकार तक उसकी महक भी न पहुंचे. पर आप ने इतना ढेर सारा प्याज कैसे और कहाँ से जमा कर लिया. क्या बाकी खाना छोड़कर केवल प्याज खाने का फैसला ले रखा था ?”

रविजी मिमियाते हुए बोले “नहीं भाई, ये प्याज तो ज़बरदस्ती हमारे सर पड़ गया है. हाल में ही हमारे बच्चों ने हमारी शादी की रजत जयन्ती मनाई थी. मुझे डर था कि सारे निमंत्रित लोग बहुत सारी भेंट लेकर पहुंचेंगे. जिन लोगों को हमारे विभाग से काम रहता है वे पता नहीं कहाँ से अधिकारियों और उनके परिवार के सारे सदस्यों की जन्मतिथि और विवाह आदि की तारीख पता कर के रखते हैं और ऐसे मौकों पर कीमती उपहार लेकर बिन बुलाये पहुँच जाते हैं. इसी डर से बच्चों ने जब निमंत्रण पत्र भेजे तो मेरे आदेशानुसार साफ़ साफ़ लिखा कि किसी तरह की भेंट, यहाँ तक कि फूलों का गुच्छा तक हम स्वीकार नहीं करेंगे .पर लोग इतने निर्दय होंगे हमने नहीं सोचा था .तमाम लोग थैलों में भर कर प्याज भेंट में लाये. एक कंपनी का बड़ा केस मेरे पास था .उसका निष्पक्ष रूप से फैसला करना होता तो कभी का उनके पक्ष में कर देता. पर मैंने स्वयं पिछले कई महीनों से कभी पर्यावरण मंत्रालय की राय मांगकर, कभी मौसम विभाग को बीच में लाकर और कभी कानूनी सलाह के लिए भेज कर लटका रखा था कि फैसला करने की ज़िम्मेदारी मेरे कन्धों पर रिटायरमेंट से पहले आकर न बैठ जाए. उधर वह कंपनी मुझे गलत समझ गयी. मुझे खुश करने का सबसे अच्छा तरीका उन्हें ये समझ में आया कि मेरे घर पर सब्जी मंडी से मंगाकर एक टेम्पो प्याज भेज दिया जाए. हम घर पर नहीं थे तो टेम्पोवाला नौकर के पास प्याज की बोरियां छोड़ कर चलता बना .वर्मा साहेब आप समझ सकते हैं कि किसी के घर पर एक टेम्पो भरकर प्याज मिलना स्विस बैंक में उसके नाम से काले धन का एकाउंट मिलने से भी ज़्यादा सनसनीखेज बात है. विदेश में काला धन तो अब हर ऐरे गैरे के पास है. मेरी पत्नी इतनी भोली हैं कि पूछिए मत. नयी साड़ियाँ या गहने लेने पर सीधे अपनी सहेलियों को दिखाने के लिए चल देती हैं. अपने घर पर इतनी प्याज़ होने की भी डींग हांकने तुरंत निकल पडतीं. वो तो मैने समय रहते उन्हें रोक लिया.”

अपनी दुःख भरी दास्तान सुनाते सुनाते रवि जी का गला भर आया था. कुछ क्षणों तक चुप रहने के बाद , गला साफ़ करते हुए फिर बोले “ मैंने फैसला किया कि चुपचाप इस प्याज को मुंह अँधेरे ही नौकर की मदद से मुनिसपल कूड़े के डिब्बे में फेंक आऊँगा. बाहरी मदद लेता तो बात खुलने का डर था. सोचा पहली बार मैं स्वयं दस बारह किलो प्याज फेंक आऊंगा. उसमे कोई ख़तरा न दिखा तो बाकी मेरा नौकर चार पांच चक्कर में फेंक देगा. दो एक किलो तो नौकर का मुंह बंद रखने के लिए देना होता. क्विंटल भर प्याज घर पर होने से डाका पड़ने का भी ख़तरा था. पर वाह री किस्मत , पहले ही चक्कर में आपने देख लिया” कहते कहते वे बहुत भावुक हो गए.

मुझे रवि जी से अब सहानुभूति हो रही थी. पत्नी की लाश तंदूर में जलानेवालों को भी न्यायालय से थोड़ी बहुत सहानुभूति मिल जाती है जो इस अपराध को रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर की श्रेणी का नहीं मानता .पर जब सारे देश में प्याज के लिए हाहाकार मचा हुआ हो, जब केरल में साम्भर में डालने के लिए मुनक्के जितनी छोटी प्याज़ लोग दस रुपये की एक के भाव से खरीद रहे हों, जब कश्मीरी दस्तरख्वान पर बादाम पसंदा में डालने के लिए कश्मीर की शुद्ध केसर भी प्याज से सस्ती पड़े, जब पूरब में हिलसा माछ के लिए प्याज खरीदते समय आदमी ‘हिल सा’ जाए, जब पश्चिम में नासिक की नासिका भी प्याज का नाम लेते ही शर्म से लाल हो जाए, तब भ्रष्टाचार उन्मूलन के वायदे पर आई हुई सरकार की नाक के नीचे यानी दिल्ली में किसी सरकारी अधिकारी के घर पर प्याज का ज़खीरा पकड़ा जाए इस से अधिक खतरनाक बात खुद सरकार और उस कर्मचारी के कैरियर के लिए क्या हो सकती है? न्यायालय भी तो आजकल कितने बेरहम हो गए हैं. इधर हैसियत से अधिक संपत्ति रखने के केस में फंसे हुए रवि बाबू न्यायालय के सामने आंसू बहा बहा कर अपने निर्दोष होने की दुहाई देते उधर न्यायालय उनके आंसुओं की फोरेंसिक जांच करने का आदेश देता कि आंसू सचमुच के हैं या प्याज आँखों में मलकर निकाले गए हैं .”

मैंने रवि बाबू का कंधा थपथपा कर सहानुभूतिपूर्वक कहा “ मैं आपकी परेशानी समझता हूँ .लाइए इस बिखरे प्याज को बटोर कर फिंकवाने में आपकी मदद कर दूं.” रवि जी कृतज्ञता के बोझ से झुक गए. भावावेश से उनकी आवाज़ भीग गयी. बोले “ बहुत धन्यवाद, पर कई प्याज गिरने से फट गए हैं .हाथों पर दस्ताना चढ़ाए बिना उन्हें छूना उचित नहीं होगा. हाथों से प्याज की महक आयेगी तो हमलोग इतनी बेशकीमती चीज़ रखने के जुर्म में रंगे हाथों, मेरा मतलब है महकते हाथों, कहीं पकडे न जाएँ.”

इन बातों में हम उलझे रहे और धीरे धीरे सूरज की किरणे क्षितिज के ऊपर आ गयीं .सड़क पर और लोग भी दीखने लगे थे. उस प्याज के चक्कर में देर तक रुकना खतरनाक था अतः हम दोनों आगे बढ़ लिए. थोड़ी दूर जाकर इधर उधर देखकर रवि जी ने चेहरे पर लपेटी शाल हटा दी. फिर हम लोग घर वापस आ गए. उस दिन दफ्तर पहुंचा तो सबके मुंह पर एक ही खबर थी जो ब्रेकिंग न्यूज़ में टीवी पर बार बार दिखाई जा रही थी. कश्मीर में सीमा रेखा पर पाकिस्तानी हथियारों का बड़ा जखीरा मिला और दिल्ली में हमारी कालोनी में दस किलो बहुमूल्य प्याज सड़क पर लावारिस पडा हुआ मिला, ये दोनों सनसनीखेज खबरें लगातार एक के बाद एक दुहराई जा रही थीं.