Avadh ke vilupt sthan in Hindi Magazine by Umashankar Tiwari books and stories PDF | Avadh ke vilupt sthan

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Avadh ke vilupt sthan

अवध के विलुप्त होते स्थान

- उमा शंकर तिवारी

लखनऊ अवध,लक्ष्मणपुरी,लखनावती. आदि नामों से जाना जाता था | इस अवध की संस्कृति , हिन्दू-मुस्लिम, सिख, ईसाई, सभी धर्मो के दर्शन होते थे | यहाँ की तहजीब, सभ्यता, संस्कृति,संगीत, रंग-मंच दंगल, पतंग बाजी, आदि अनेको परम्पराओ में विश्व-विख्यात रहा हे | इसी क्रम में हमारे लखनऊ के आस-पास ऐसे ऐतिहासिक स्थान रहे हे जो की लखनऊ के ऐतिहासिक धरोहर थे, चाहे वह ऐतिहासिक इमारत हो. चाहे पार्क हो,चाहे छवि गृह हो चाहे मोहल्ले हो | प्रस्तुत हे उन स्थानो की एक ज़लक जिन स्थानो की पहचान समाप्त हो रहे हे ओर विलुप्त की और बढ़ रहे हे |

लक्ष्मणटीला

ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यता के आधार पर आदि गंगा, गोमती तट पर लक्ष्मण जी का मंदिर था जिसे पहले लक्ष्मण टीला कहा जाता था और लखनऊ को रामानुज लक्ष्मण जी ने बसाया था.तभी तो इस नगर लक्ष्मणपुर नामसे जाना जाता था,इस नगर गोमती तात पर बेस होने के कारन इस पवन नगरी का महात्मय इतना अधिक था की छोटी कशी नाम से विश्व विख्यात था | अब जिस स्थान पर लक्ष्मण जी का मंदिर था,अब उसी स्थान पर आलमगीर मस्जिद हे | जहाँ पांचो वक्त नमाज़ होता हे | रमजान सरीफ के आखिरी जुमे(शुक्रवार) को मुस्लिम भाई बड़ी तादाद में नमाज़ अदा करते हे | जबकि लक्ष्मण जी का न तो मंदिर ही रह गया हे न की पूजा आरती होती | ऐसी स्थिति में लक्ष्मण जी का मंदिर या लक्ष्मण टीला के स्थान को विलुप्त ही कहा जायेगा | क्योकि प्रत्येक शब्बेरात को रौशनी किया जाता हे | अलविदा, ईद,बकरीद के त्योहारो पर नमाज़ पढ़ा जाता हे | लक्ष्मण जी मंदिर पर यदि शोध किया जाय तो एक बहुत बड़ा ग्रन्थ बन जायेगा |

तारो वाली कोठी

यह स्थान के.डी सिंह बाबू स्टेडियम के पीछे जिस इमारत में भारतीय स्टेट बैंक का मुख्यालय हे | इस कोठी के विषय में ऐसा इतिहास हे की इस कोठी का निर्माण नवाब नसीरुद्दीन हैदर ने करवाया था,इस में रस-शाला स्थापित था | उस समय के तांत्रिक कर्नलबिलकस इसमे प्रबंधक थे | नवाब वाजिद अली शाह के शाशन कालमे जब उनकी मृत्यु हो गई तो ये विभाग बंध हो गया | सं १८५७ के स्वतंत्रता - संग्राम के मोलवी जनाब अहमद उल्लाह शाह को अपना निवास बना लिया था | अब इसी इमारत में स्टेट बैंक का मुख्यालय हे | जबकि ऐसी कोठी के कुछ हिस्से में बहुमंजिला भवन का निर्माण हो चूका हे |जो की उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यालय से सटा हे | ऐसी स्थिति में तारो वाली कोठी की पहचान समाप्त हो चूका हे अब इस स्थान को विलुप्त स्थान ही कहा जायेगा |

बेगम मलका अहमद की कोठी

हजरतगंज का प्रमुख बाजार जिसे हम वर्तमान समय में जनपथ मार्केट नाम से जानते हे | इसी स्थान पर अवध के बादशाह अमजद अली शाह ने अपनी बेगम मलका अहमद के निवास के लिए निर्माण करवाया था | अंग्रेजो के शहशन कालमे स्वतंत्रता संग्राम का युद्ध सं १८५७ में यंहा भी हुआ था | यही पर जी.पि.ओ डाक खाना भी स्थापित था | बाद में जब जी.पि.ओ का भवन बन गया फिर यह डाक घर नए भवन में स्थापित हो गया | उसके पश्चात इस ऐतिहासिक कोठी को तुड़वा कर जनपथ मार्केट का निर्माण करवाया गया इस बात से पक्का परिणाम मिल जाता हे की जनपथ मार्केट के ठीक बगलमे बाबा करमुला शाह की मजार हे | इस स्थान की यह विशेषता हे की गाल में करमूल नामक रोग जिसे हो जाता था और जल्दी ठीक नहीं होता था, उस स्थान की मिटटी को लेकर लगाने से करमूल रोग जड़ से समाप्त हो जाता हे |और बाबा की कृपा का आभार के लिए वह अगरबती और प्रसाद चढ़ाया जाता हे | इससे यह सिद्ध होता हे की जनपथ मार्किट बेगम मलका अहमद की ही कोठी थी | जो की अब विलुप्त हो चूका हे और इस स्थान को विलुप्त ही कहा जायेगा |

बेगम मलका अहमद की कोठी

हजरतगंज का प्रमुख बाजार जिसे हम वर्तमान समय में जनपथ मार्केट नाम से जानते हे | इसी स्थान पर अवध के बादशाह अमजद अली शाह ने अपनी बेगम मलका अहमद के निवास के लिए निर्माण करवाया था | अंग्रेजो के शहशन कालमे स्वतंत्रता संग्राम का युद्ध सं १८५७ में यंहा भी हुआ था | यही पर जी.पि.ओ डाक खाना भी स्थापित था | बाद में जब जी.पि.ओ का भवन बन गया फिर यह डाक घर नए भवन में स्थापित हो गया | उसके पश्चात इस ऐतिहासिक कोठी को तुड़वा कर जनपथ मार्केट का निर्माण करवाया गया इस बात से पक्का परिणाम मिल जाता हे की जनपथ मार्केट के ठीक बगलमे बाबा करमुला शाह की मजार हे | इस स्थान की यह विशेषता हे की गाल में करमूल नामक रोग जिसे हो जाता था और जल्दी ठीक नहीं होता था, उस स्थान की मिटटी को लेकर लगाने से करमूल रोग जड़ से समाप्त हो जाता हे |और बाबा की कृपा का आभार के लिए वह अगरबती और प्रसाद चढ़ाया जाता हे | इससे यह सिद्ध होता हे की जनपथ मार्किट बेगम मलका अहमद की ही कोठी थी | जो की अब विलुप्त हो चूका हे और इस स्थान को विलुप्त ही कहा जायेगा |

अमीरददौला पार्क

इस पार्क लखनऊ का जाने-माने पार्को की श्रृंखला के एक प्रमुख पार्क था | इसी पार्क में आज़ादी के पूर्व अनेको घटनाये हो चुकी हे | इसी पार्क में बड़ी सभाओ का आयोजन होता था | इसी पार्क में बड़ी-बड़ी नुमाइश लगती थे | इसी स्थान पर बड़े-बड़े बुद्धिजीवी ,व्यापारी,सम्भ्रान्त विभूतिओ का शाम को जमावड़ा रहा करता था |सं १९९० से इस पार्क को व्यवसायिक बाजार बनाने के चक्कर में दो बार खुदाई फिर बेसमेंट मार्केट बना फिर तोड़ा गया फिर उसी पार्क के अंदर अमीनाबाद बाजार का वाहन पार्किंग बन गया हे,और ऊपर पार्क हे | और अब इस पार्क को झंडे वाला पार्क के नामसे जाना जाता हे | ऐसी स्थिति में यह साफ-साफ स्पस्ट हो जाता हे की अमीरुददौला पार्क का नामतो समाप्त हो चूका हे | ओर इस पार्क की सभ्यता, तहजीब समाप्त हो चूका हे |अब अमीरददौला पार्क की पहचान समाप्त हो जाने के कारन अब विलुप्त ही कहा जायेगा |

अमीनाबाद का तांगा स्टैण्ड

लखनऊ की धरती पर इक्का, तांगा की सवारी का भी विशेष स्थान रहा हे | अमीनाबाद का तांगा स्टैण्ड का एक विशेष महत्त्व रहा हे | अमीनाबाद से नक्खास, टुडियागंज, रकाबगंज, चारबाग का तांगा स्टैण्ड, डालीगंज का तांगा स्टैण्ड, केसरबाग का तांगा स्टैण्ड, चौक का तांगा स्टैण्ड लखनऊ के जगह-जगह घोड़े को पानी पिलाने के लिए चरही हुआ करते थे | तांगेवाले भी तहजीब सभ्यता के प्रतिक हुआ करते थे |वह हमेशा,हुजूर, कहकर ही सवारिओ को बुलाते थे |यही नहीं तांगे की सवारी भीड़-भाड़ से हटकर तथा प्रदुषण से मुक्त हुआ करते थे |अब तो इक्के ताँगे का प्रचलन ही समाप्त हो चूका हे | अमीनाबाद तांगा स्टैण्ड अब टेम्पो स्टैण्ड हो जाने के कारण लखनऊ का विलुप्त स्थान ही कहा जायेगा | क्योकि अब उसी स्थान पर जहाँ अमीनाबाद का तांगा स्टैण्ड हुआ करता था अब उसी स्थान पर टेक्सी स्टैण्ड हे और वंहा कोई भी तांगा खड़ा नजर नहीं आता हे |

मंकी ब्रिज

की ब्रिज का बहुत ही रोमांचक इतिहास रहा हे | इस ब्रिज के अवशेष गोमती नदी के अंदर आज भी देखे जा सकते हे | यह पुल देवरहा घाट से केनिन कालेज तक था |( जो आज कला शिल्प विद्यालय के नाम से जाना जाता हे )

इस पुल पर बन्दर बहुत हुआ करते थे,पीर फ़क़ीर, साधु संतो का जमावड़ा लगा रहता था |इसी पुल पर महा प्राण पं.सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला घूमने आते थे,उनके पड़ोसी भी उनके साथ आते थे वह सज्जन बंदरो को पुआ खिला रहे थे,वही एक भिखारी आ गया उन सज्जन ने कैसे भिखारी को डांटा? निराला जी के शब्दों में -

मेरे पड़ोस के वे सज्जन

करते प्रतिदिन सरिता मज्जन

जोली से पुए निकाल लिए

बढ़ते कपियो के हाथ दिए

देखा भी नहीं उधर फिर कर

जिस और खड़ा वह भिक्षु इतर

चिल्लाया किया दूर दानव

बोला में - धन्य श्रेष्ठ मानव !!

इस प्रसंग से बंदरो का जमावड़ा होने के कारण ही मंकी ब्रिज का नाम पड़ा | १९६० के बाद बाढ़ आने के कारण अमीनाबाद,केसरबाग, हजरतगंज आदि जगहों पर पानी भर जाने के कारण इस पुल को तोडा गया जिसमे कुछ मजदुर भी खत्म हो गए | अब मंकी ब्रिज गिर जाना और समाप्त हो जाना विलुप्त ही कहा जायेगा.

पयागपुर हाउस

मंकी ब्रिज से लेकर निशातगंज तक गोमती के किनारे पुराण सड़क उस रोड को बीरबल साहनी रोड कहलता था |इसी रोडके किनारे राजा पयागपूरकी कोठी और उनके नोकरो,चाकरों के रहने के लिए गाँव बसा रखा था|आज भी महर्षि वाल्मीकि आश्रम के बगल में राजा साहब की कोठी का अवशेष कुआ तथा टीला आज भी देखा जा सकता हे |सं १९६० में बाढ़ आने के कारण शहर में पानी भर जाने का खतरा बढ़ गया और गोमती के चारो तरफ बंधे का निर्माण कराया गया और पुरानी सड़क और जो मंकी ब्रिज से मिला था अव रोड अब नदी के अंदर आने के कारण समाप्त हो गया |बीरबल साहनी मार्ग की सड़क का कुछ अंश सत्य प्रेम शाहन्शा आश्रम,पुराण संकट मोचन हनुमान मंदिर तक आज भी देखा जा सकता हे |और जो बंधा रोड हनुमान सेतु से निशातगंज की और जाता हे वह वह बंधा रोड पहले नहीं था |गोमती तट जहा राजा पयागपुर की कोठी और गाव हुआ करता था अब उन स्थानो पर सत्यप्रेम शाहंशाह आश्रम,महषि वाल्मीकि आश्रम ,संत गॉडसे धोबी घाट, ए.एन.सी.सी कैडेट कोर बोट क्लब, मस्जिद,मजार,मदरसा आदि आज भी देखा जा सकता हे | अब पयागपुर हाउस नदी के अंदर आ जाने और बाढ़ के कारण ढह जाने के कारण समाप्त हो जाने के कारण अब विलुप्त ही कहा जायेगा |

मेफेयर सिनेमा

लखनऊ के सिनेमा घरो में हजरतगंज में मेफेयर सिनेमा एक ऐसा सिनेमा घर हुआ करता था की इसी सिनेमा घर में ब्रिटिश शाशन कालमे बड़े बड़े गवर्नर,जनरल,बड़े-बड़े साहित्यकार,राजनेता,विदेशी अंग्रेज इस सिनेमा घरमे सिनेमा देखने आया करते थे | इस सिनेमा घर का निर्माण किसी विदेशी शासक ने करवाया था,इस लिए इस सिनेमा का नाम मेफेयर सिनेमा पड़ा था |इस सिनेमा घर की विशेषता यह थी की इस सिनेमा घरमे सभ्यता, तहजीब, लखनऊ की अदब, नजाकत, नफासत, साफ़- सफाई,शोरगुल से दूर बहुत ही शांतिपूर्ण सिनेमा घर हुआ करता था |अब इस सिनेमा घर के स्थान पर अन्य कार्यालय खुल जाने के कारण इस ऐतिहासिक मेफेयर सिनेमा घर को लखनऊ का विलुप्त सिनेमा घर कहा जायेगा |

जयहिन्द सिनेमा

यह सिनेमा घर कवीस कालेज और घसियारी मंडी रोड के चौराहे के पास हुआ करता था | इस सिनेमा हल में भक्ति, सामाजिक, जासूसी, सस्पेंस फिल्मो का प्रदर्शन होता रहता था | इस सिनेमा हाल में बम्बई के अनेको कलाकार आते रहते थे |

अब इसी सिनेमा हाल के स्थान पर एक व्यवसाइक काम्प्लेक्स का निर्माण हो चूका हे |अब इस स्थान पर ऐसा बिलकुल नहीं पता चलता हे की कभी इसी स्थान पर जयहिंद सिनेमा हुआ करता था | इसी स्थिति में जयहिंद सिनेमा हाल के स्थान पर व्यवसाइक बाजार बन जाने के कारण लखनऊ का विलुप्त सिनेमा घर कहा जायेगा |

उमाशंकर तिवारी पुत्र रामतेज तिवारी

8737985708