Khatte Mithe Vyang : 5 in Hindi Comedy stories by Arunendra Nath Verma books and stories PDF | Khatte Mithe Vyang : Chapter 5

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Khatte Mithe Vyang : Chapter 5

खट्टे मीठे व्यंग

(5)

व्यंग संकलन

अरुणेन्द्र नाथ वर्मा

  • 21. बाल्टी भर पानी
  • 22. लौटा देने का सुख
  • 23. भारतीय क्षमा संहिता
  • 24. एक्के गो पत्थर कई शिकार
  • 25. हैलोवीन और श्री हनुमान चालीसा

    बाल्टी भर पानी अकल पर

    बेटे को अमरी एक्सेंट में फर फर अंग्रेज़ी बोलते देखकर संतोष होता है कि इतने महंगे पब्लिक स्कूल में पढ़ाने के पैसे वसूल हो गए. बस इसकी एक कीमत भारी पड़ी है. हमें भाषा के साथ साथ अपनी पूरी रहन सहन भी बदलनी पड़ गयी. शुरुआत बाथरूम से हुई थी जहां उसकी पसंद के क्यूबिकल, शावर और डब्ल्यू सी आदि लगवाने में इतने पैसे खर्च हो गए जितने में हमारे फ़्लैट का पूरा कायाकल्प हो जाता. फिर बाथरूम से बाल्टी मग इत्यादि निकाल कर फेंकने पड़े. पिताजी की यादगार पीतल का मुरादाबादी लोटा तो बेटे ने बरसों पहले कबाड़ी को दे दिया था. इतना सब करने के बाद आज जब उसने घोषणा की कि बाथरूम में शावर से नहीं नहायेगा बल्कि खुली छत पर कई बाल्टी बर्फीला पानी सर पर उन्ड़ेल कर “आइस बकेट चैलेन्ज” स्वीकार करेगा तो लगा कि उसकी बुद्धि बिलकुल भ्रष्ट हो गयी है.

    श्रीमतीजी को अपने लाडले की कोई आलोचना सहन नहीं होती. बोलीं जब उसने अपनी नयी जींस को रगड़ रगड़ कर, उसका रंग उड़ाकर उसके घुटनों में छेद किया था तब भी तुमने यही सोचा था. उसके बाद जींस को घुटनों से क़तर कर, धागों के तार निकाल कर चीथड़े जैसा बनाने पर भी तुमने यही कहा. नमस्ते की जगह हाय भी तुम्हे बुरी लगती थी. हमारा बेटा लीक लीक चलने वाला कपूत नहीं बल्कि सिंह और शायर की तरह लीक छोड़ कर चलने वाला सपूत है. वह जो आज करता है, तुम्हारी पसंद के देसी स्कूलों में पढने वाले कोलोनी के बच्चे कल करेंगे. देखना तुम, इन पानी की बाल्टियों में भी कोई राज़ होगा. उसे ज़माने के साथ कदम मिला कर चलने दो, बाबा आदम के ज़माने में रहना हो तो तुम शौक से रहो, उसे क्यूँ मायूस करते हो.

    मेरी एक न चली. बेटे ने छत पर बाल्टियों में पानी रखवाया, अपने दोस्तों की भीड़ इकठ्ठा की, फिर होली जैसी मस्ती और छठ पर्व जैसी भक्ति से सबने इतना पानी उंडेला कि फ्रिज में बर्फ और ओवरहेड टैंक में पानी समाप्त हो गया. मैं अपने कमरे से ये तमाशा देख रहा था. उसने मुझे बाहर बुलाया और अपने तथा अपने दोस्तों के मोबाइल थमा कर कहा वैसे तो आजकल सेल्फी का फैशन है पर मोबाइल पानी पड़ने से खराब हो जायेंगे इसलिए ज़रा आप इनपर वीडियो ले लीजिये. मैंने पूछा क्या वीडियोक्लिप बोलीवुड में हीरो का रोल मांगने के लिए भेजोगे? वह बोला नहीं डैड , उसके लिए देर हो गयी है. वहाँ पहले से ही अक्षय, अमीर , अजय आदि में होड़ चल रही है कि कौन कितनी बाल्टी पानी अपने ऊपर फेंकता फिंकवाता है.

    फिर उसने आश्चर्य के साथ पूछा क्या आपको सचमुच पता नहीं कि ऐसा करके वे सब सितारे और यहाँ मैं और मेरे दोस्त ए एल एस नाम की एक बीमारी के अनुसंधान में भारी योगदान देकर मानवता की सेवा कर रहे हैं. मैंने कहा हमारे गाँवों में हर कुँए पर मानवता की ऐसे ही सेवा होती आई है. अब अगर खुले मैदान में पानी की बोतल लेकर बैठने का भी फैशन वापस आने वाला हो और उससे मानवता की सेवा की उम्मीद हो तो सारे देश में शौचालय बनाने में करोंडो रूपये खर्च हो जाने के पहले बता देना. वरना वहाँ अमरीका में सब खुले में जंगल जाएंगे, यहाँ शौचालय में जाकर अपने पिछड़ेपन की शर्मिन्दगी से हमारे सर पर घड़ों पानी पड जाएगा.

    लौटा देने का सुख

    बचपन से ही उनमें आगे चलकर महान दार्शनिक, कूटनीतिग्य, महागुरु, महायोगी बनने के लक्षण थे. जो मूरख न समझे उसे उन्होंने अपने विराट स्वरूप का दर्शन करा दिया- समझाने के लिए कि वे साक्षात भगवान हैं, साधारण मानुष नहीं- जिसे आजकल आम आदमी कहते हैं. बचपन के माखन चोरी वाले प्रसंग ने ही उनके लच्छन उजागर कर दिए थे. किस ठाठ से जी भर कर माखन खाया, अकेले खाने से मन नहीं भरा तो अपने ग्वाल-बाल अर्थात चेले चपाटियों को भी प्रेम से खिलाया. उससे भी मन नहीं भरा तो माखन मुख-बहियाँ वगैरह सब जगह प्रेम से फैलाया. और इतना सब करने के बाद माँ यशोदा से अकड़ गए! पूछताछ हुई तो तुनक कर बोले ‘यह ले अपनी लकुट कमरिया- बहुतहि नाच नचायो!’ चोर ने पलटकर कोतवाल को डांटा ‘येल्लो जी अपना माल मता, हमें नहीं चाहिए’ और बेचारा कोतवाल हक्का बक्का रह गया!

    कक्षा आठ वाले हमारे हिन्दी मास्साब होते तो पूछते ‘बताओ इस पंक्तिओं से क्या शिक्षा मिलती है?’ मेरा उत्तर सही होता या नहीं ये तो स्वर्गीय की आत्मा जाने पर मैं कहता ‘महाकवि सूरदास की इन पंक्तियों से हमें ये शिक्षा मिलती है कि पाने के सुख से बड़ा सुख होता है लौटा देने का. आम के आम और गुठलियों के दाम वाली बात, जो माखन से लेकर बड़े बड़े साहित्यिक पुरस्कारों तक सब पर लागू हो. मिलने का महान सुख तो होता है लेकिन मिलने के लिए हर प्रकार के साम, दाम, दंड, भेद वाले हथकंडे आजमाने पड़ते हैं. स्वयं चमचा बनना पड़ता है, खुद के चमचों की फ़ौज बनानी पड़ती है. तब जाकर ‘बड़े भाग मानुस तन पायो’ जैसी सम्मान –पुरस्कार पाने की स्थिति बनती है. लेकिन जब नए महंत पुराने महंतों की जगह, अपने नए चमचों की फ़ौज साथ लेकर, प्रतिष्ठित हो जाएँ तो घबराने की ज़रुरत नहीं. सम्मान के साथ मिला दुशाला घिस चुका. सरकार-प्रदत्त आवासीय प्लाट मुनाफे में बिक चुका. नकद पुरस्कार कबका उड़ चुका. विदेश यात्राओं, पांच सितारा होटलों का सुख भोग कर शरीर वापस पञ्चतत्वों में मिलने की तय्यारी में है. आख़िरी अवसर है फिर से सुर्ख़ियों में आने का. सम्मान- पुरस्कार का कागज़ रखकर क्या चाटना है? बोलो ‘यह ले अपनी लकुटी कमरिया बहुतही नाच नचायो’ और दुबारा सुर्ख़ियों में आ जाओ.’

    भारतीय क्षमा संहिता

    सुनिए, सुनिए, सुनिए! हर तरह के अपराधियों के लिए ज़बरदस्त खुशखबरी! हत्यारों, बलात्कारियों से लेकर फुटपाथ पर सोते लोगों को दारू के नशे में कार से कुचल देने वालों तक के लिए, सैकड़ों निरपराध लोगों को आर डी एक्स जैसे शक्तिशाली विध्वंसकों का प्रयोग करके रेलगाड़ी के सफ़र के दौरान उड़ा देनेवालों के लिए, देश के गद्दारों से लेकर तस्करी, डकैती तक के धुरंधरों के लिए, चोरी से लेकर गिरहकटी तक के छुटभैयों के लिए, जुआघर चलाने वालों से लेकर जिस्मफरोशी करनेवालों तक के लिए बहुत बड़ी खुश खबरी सुनिए. फांसी और जेल से डरने के दिन अब समाप्त हुए. मुनादी की जाती है कि खुद भारतीय दंड संहिता को बहुत जल्दी फांसी के फंदे पर लटका दिया जाएगा. आजीवन कारावास भुगतने वालों को जेल से बाहर निकाल कर हर्जाने के तौर पर सितारा होटलों में रखा जाएगा. बुद्धिजीवियों के बूटों तले रौंदी जाकर घायल हुई भारतीय दंड संहिता को अब जल्द ही जीने की यातना से मुक्ति मिलेगी. उसकी जगह लेगी भारतीय क्षमा संहिता.

    खूंखार हों, आदत से मजबूर हों या शौकिया अपराध का लुत्फ़ उठाने वाले हों, सभी को सूचित किया जाता है कि भारतीय क्षमा संहिता के लागू होने तक हर तरह का कायदा क़ानून निलंबित रहेगा. नया क़ानून संसद में पास होने तक अभी चल रहे सारे मुकदमे बिना निर्णय लिए निलंबित रहेंगे. सुनिए, सुनिए, सुनिए !

    ढोल पीट कर की जा रही इस मुनादी पर मुझे विश्वास नहीं हुआ. पहले तो यह घोषणा ही बिलकुल हवाई लगी कि संसद में इस तरह का, बल्कि किसी भी तरह का कोई क़ानून बन सकता है. वे ज़माने कभी के लद गए जब संसद के अन्दर जनप्रतिनिधि क़ानून बनाने के लिए एकत्रित होते थे. पहले उस क़ानून की आवश्यकता समझाई जाती थी. फिर विरोध करने वालों को अपनी बात कहने का अवसर दिया जाता था. अब जब किसी की बात सुनने का रिवाज़ ही समाप्त हो गया तो क़ानून बनें कैसे. मुठ्ठी भर सदस्य तय कर लें कि वे क़ानून नहीं बनने देंगे तो दिखा दे कोई माई का लाल क़ानून बना के. शायद ऐसी विकट स्थिति से तंग आकर ही सरकार ने निर्णय लिया हो कि पुराने कानूनों को भी उठा कर ताक पर रख दिया जाए. नए कानून बन ही न पायें और पुराने कानूनों को निलंबित कर दिया जाए तभी तो पता चलेगा कि देश को पूर्ण स्वराज्य मिल गया है.

    हमारे स्थानीय नेता जी की, भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों और चुनाव आचार संहिता से लेकर सामान्य फौजदारी तक,सभी तरह के कानूनों से पुरानी अदावत है. कुछ महीने पहले संदिग्ध परिस्थितियों में पत्नी की मृत्यु के बाद से वे फांसी की सज़ा के खिलाफ मुहीम तो चला ही रहे थे. इधर जब से उनके दल के जमे हुए मंत्रियों के खिलाफ सी बी आई ने कई मुकदमे भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के अंतर्गत दायर किये हैं वे हर प्रकार की सज़ा के विरोधी हो गए हैं. कहते हैं हमारे शास्त्रों में कन्यादान से बढ़कर कौन कर्तव्य है? जो क़ानून बेटी के विवाह की अनदेखी करके अपने काम में लगा रहे उसे तुरंत हटा देना चाहिए.

    नेता जी से मैंने इस मुनादी के विषय में पूछा तो बोले ‘सही कदम है. सज़ाएँ हट जायेंगी तो पुलिस को अपराधों की तफ्शीश करने में कितनी आसानी होगी. अभी जुर्म इतने होते हैं पर सालों तक अपराधी का पता नहीं चलता. पुलिस के पास न वैज्ञानिक उपकरण हैं न सही ट्रेनिंग. भारतीय दंड संहिता में दर्ज अधिकांश क़ानून तो पुलिस स्वयं तहकीकात करने में ही तोड़ देती है. तहकीकात का अर्थ है थाने में बंद करके तब तक पिटाई करना जब तक पिटने वाला अपराध कबूल न कर ले चाहे उसने अपराध किया हो या नहीं. तफ्शीश में ही इतनी ठुंकाई पिटाई हो जाने के बाद अपराध के लिए सज़ा देने की क्या आवश्यकता?’

    मैंने पूछा ‘आप भले असंतुष्ट हों पर पुलिसवाले, मारपीट के बिना तहकीकात कैसे करेंगे? ‘ वे बोले ‘ बिलकुल करेंगे. क्षमा संहिता लागू होने के बाद पुलिसवाले अपना चेहरा अपराधी के सामने लाकर कहेंगे मुझे थप्पड़ लगा, तब तक लगाता रह जब तक मुझ पर पसीज कर अपना जुर्म कबूल नहीं कर लेता. उसके बाद क्षमा संहिता के अंतर्गत अदालत तुझे छोड़ ही देगी. फिर तू भी चैन से सो सकेगा और हम भी!

    मैंने कहा ‘सही कहते हैं आप. अभी इतने लोगों को अदालतों द्वारा अपराधी घोषित कर दिए जाने से क्या फरक पड़ गया है. भ्रष्टाचार के बड़े से बड़े अपराध सिद्ध हो जाने के बाद जो खुद चुनाव नहीं लड़ सकते वे अपने पूरे खानदान को चुनाव लडवाते हैं. जेल की चक्की पीसने के बजाय चुनावी भाषणों की चक्की चलाते हैं. उनकी चक्की से आटे की बजाय जातिवादी युद्ध का आह्वान निकलता है. आतंक वादियों के मृत्युदंड के खिलाफ आवाजें उठाने वालों को कौम का फ़रिश्ता समझा जाता है. ऐसे में किसी सज़ा का मिलना न मिलना कोई मायने रखता है क्या? बेहतर होगा कि भारतीय क्षमा संहिता लागू करके हर जुर्म को सज़ा के दायरे से मुक्त कर दिया जाए.’

    एक्के ठो पत्थर - कई शिकार

    पड़ोसी होने के बावजूद उनसे ज्यादा मेल जोल नहीं बढ़ सका था. वे ज़्यादातर बिहार में रहते थे. लेकिन पिछली वाली नीतीश कुमार सरकार के गठन के बाद वे दिल्ली में रहने लगे तो मेलजोल बढ़ा. व्यवसाय पूछने पर बोले ‘जी हम इलेक्शन जिताने का ठेका लेता हूँ‘ विस्तार में पूछना चाहा लेकिन वे टाल गए.

    कुछ दिनों में खुल गए. मगर उदास थे. बताया ‘इलेक्शन में बूथलुटाई और उसके बाद फिरौती -दोनों बिजनेस डाउन हैं.’ पर इस बार बिहार विधानसभा के चुनावी नतीजे आये तो चहक कर बोले ‘पुराना बिज़नेस तो नितीश बाबू ने चौपट कर दिया. अब असली बागडोर लालू जी के हाथों में आई है. पुराने दिन लौटाने का रास्ता नितीश बाबू के हांथों से ही निकलवाएंगे.’

    पिछले सप्ताह बताया ‘वापस बिहार जाने का प्रोग्राम सेट हो गया है. अब घोषणा किये हैं तो समझिये शराब बंदी लग्गे गयी. हम चेले चपाटियों को जाकर पकड़ता हूँ, सबका भला होगा.’ मैंने पूछा ‘इससे सबका क्या फायदा होगा?’ बोले ‘ ईहे तो बात है. एक्के पत्थर से बहुत निशाने सधेंगे. गृह उद्योग खुलेंगे. बिहार की वन संपदा का उचित इस्तेमाल होगा. महुए और ताड़ की फसल का मुंहमांगा दाम मिलेगा. बेरोजगार नौजवानों को महुआ और ताड़ का उपयोग करने वाले उद्योगों में प्रोडक्शन से लेकर मार्केटिंग तक सभी विभागों में काम मिलेंगे. पहले नौकरी के लिए वे गुजरात जाते थे. अब गुजरात से माल की तलाश में व्यापारी खुद बिहार आयेंगे.’

    मैंने एतराज़ किया- ‘बूटलेगिंग की महिमा मत बखानिये. ’तो बोले ‘आपकी सोच संकुचित है. ज़रा समझिये. इस धंधे से नौजवानों की पर्सनैलिटी बन जाती है. साहस, एडवेंचर, देशाटन और ज़िम्मेदारी आदि गुण विकसित होते हैं. उधर मद्यनिषेध मंत्री जितना कम पढ़ा लिखा हो उतना ही अच्छा पार्टी का काम संभालेगा.’ मैंने कहा ‘इसमें पार्टी का काम कहाँ से घुस गया?’ बोले ‘अरे आपो कमाल का बतियाते हैं. भले एक्साइज ड्यूटी का नुक्सान हो पर पार्टी की आर्थिक स्थिति तो सुधरबे करेगी. लोकसभा का अगला चुनाव आते आते पार्टी एकदम टंच हो जायेगी.’

    मैंने कहा ‘ज़रूर होगी. लालू जी का भ्रष्टाचार पहले ही सिद्ध हो चुका है’ नाराज़ होकर वे बोले ‘ ऊ तो बहुत ईमानदार हैं. चाहते तो बेटों के लिए एम ए की डिग्री कब्बे खरीद लेते. पर खूनपसीने की कमाई थी तभी डिग्री खरीदने में नहीं नष्ट की. और क्या सबूत चाहिए आपको‘

    हैलोवीन और श्री हनुमान चालीसा

    बत्तीस साल पहले पिता न बना होता तो मैं सांस्कृतिक रूप से ‘अति पिछड़ा वर्ग’ में ही रह जाता. पर मेरी ज़िंदगी में बेटा आया, बड़ा होता गया और ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात मेरा पिछडापन दूर करने में दिलोजान से जुटता गया. पोपकोर्न से शुरू करके उसी ने होटडॉग, बर्गर, पिज्जा आदि से परिचय कराया. अपने पाँव पर खडा होने की कोशिश करता तो मेरी छलांग दो मिनट वाली मैगी से आगे न पहुँच पाती. पर मैं जब भी लडखडाया उसने ‘हे डैड’ कह कर मेरा हाथ थाम लिया. इधर जाने क्यूँ ‘डैड’ की जगह ‘ड्यूड’ कहने लगा है.

    आगे चलकर उसके होंठों के ऊपर काली रेख दिखने लगी तो उसने पाठ्यक्रम में दो सौ रुपये कप वाली कॉफ़ी और डेढ़ सौ रूपये वाले ‘नैचो’ के साथ समाजशास्त्र के अन्य पाठ भी जोड़ दिए. ‘वैलेंटाइन’ के माहात्म्य से परिचित कराया, अपने मित्रों को ‘हे ड्यूड’ कह कर बुलाना सिखाया, पतलूने कहीं छिपा दीं, उनकी जगह मेरे लिए जींस लाया. टाईट होने के कारण उन्हें चढ़ाने में मुझे दिक्कत होते देखकर एक दिन घुटनों पर फाड़कर उनमे बहुत से छेद कर दिए, और जगह जगह नोच कर बोला ‘अब आपको ऊपर चढ़ाने में आसानी होगी’. किसी तरह मैंने जींस पहनने का अभ्यास कर लिया तो अपनी मम्मी को मुझसे वैलेंटाइन गिफ्ट नहीं मिलते देखकर विस्मय के साथ पूछा “मम्मी को न सही, पर पहले अपनी गर्ल फ्रेंड को तो वैलेंटाइन गिफ्ट देते होंगे?’ मैंने बताया कि उन दिनों मुहल्ले की लडकियां राखी बाँध कर इसकी संभावना भी साफ़ कर देती थीं तो बड़ी तरस भरी नज़रों से मुझे देखा था उसने.

    फिर वह जैसे-जैसे बड़ा हुआ मुझमे और सुधार की सम्भावना उसे कम लगती गयी. वैसे भी हर कुछ महीने पर नौकरी और गर्ल फ्रेंड दोनों बदलते रहने में वह बहुत व्यस्त रहने लगा था. पर उसकी शादी के बाद मेरे पौत्र ने मुझे सुधारने की ज़िम्मेदारी खानदानी पेशा समझ कर संभाल ली. वह बंगालुरू में और मैं दिल्ली में. पर उसे डिस्टेंट एजुकेशन पर पूरा भरोसा है. स्पाइक और व्हाट्स एप के सहारे वह मेरा पिछडापन दूर करने में जुटा रहता है.

    ३१ अक्तूबर को उसने कद्दू काट कर बनाये हुए दैत्य के मुखौटे वाली अपनी फोटो भेजकर पूछा कि उसकी हैलोवीन फोटो कैसी लगी. मैंने पूछा ‘हैलोवीन’ क्या होता है तो तरस खाते हुए उसने समझाया कि यह भूत-पिशाच बनकर डराने का अमरीकन त्यौहार है. मैंने कहा ‘तुम्हारी हैलोवीन की तस्वीर से घबरा कर मैंने हनुमान चालीसा जपनी शुरू कर दी थी’ तो बड़ी मासूमियत से उसने पूछा “हनुमान वाले कॉमिक्स तो मैंने देखे हैं, पर हनुमान चालीसा क्या चीज़ है?’