Photo Frame in Hindi Short Stories by Devendra Gupta books and stories PDF | Photo Frame

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Photo Frame

फोटो फ्रेम

गाँव को छोड़े राजेश को करीब दस साल हो गये थे, पिताजी बड़े चाव से मिलने के लिए आये थे जब उन्हें पता चला कि राजेश ने शहर में एक बड़ा सा फ्लेट ले लिया है और उनका पौता अब स्कूल जाने लग गया है ।

पिताजी के आते ही उनका पौता ऐसे हिलमिल गया जैसे हमेशा साथ ही रहता आया हो और कभी अलग भी ना होना हो ।

फ्लेट मिलने के बाद ही हमारी याद आयी पिताजी – कहकर राजेश की पत्नी शोभा ने स्वभाव अनुसार पिताजी के सामने खाने की थाली के साथ उपेक्षा के गन्दे बर्तन भी रख दिये । उसके बाद दो-तीन दिन में ही पिताजी ने जाने का मन बना लिया, आये तो थे माँ के जाने के बाद अकेलापन दूर करने पर साथ में कुछ ओर ही बोझ ले कर जा रहे थे ।

राजेश ने भी रोकने की कोशिश ऐसे की थी कि -प्लीज पिताजी चले ही जाओ वरना ना तो आप और ना मैं ही ठीक से रह पायेंगे ।

पिताजी के गाँव जाने के बाद, थोड़े दिनों तक राजेश गाँव में पिताजी को फोन कर उनका अकेलापन और खुद की तरफ से मिली मायूसी को कम करने की कोशिश किया करता था, लेकिन समय की तगीं अपना असर दिखाने लगी थी । महीने दर महीने फोन कॉल का सिलसिला कम होता गया, समय के साथ राजेश भी काम और घर परिवार में खो गया और वक्त अपनी रफ़्तार से चलता रहा ।

कुछ इसी तरह चार साल और बीत गये, पिताजी से राजेश की आखिरी बार कब बात हुई उसे याद भी न था ।

एक शाम राजेश ऑफिस से थक कर घर आया ही था कि बेटा ध्रुव बोला – डेडी, कल आपका जन्मदिन आने वाला है, मम्मी कह रही थी कि हम सब बाहर जायेंगे आउटिंग पर ।

कहाँ जा रहे हैं हम, पापा.. –ध्रुव ने अभी भी राजेश का हाथ पकड़ रखा था ।

अभी नहीं बेटा, अभी मैं थका हूँ, कहते हुऐ राजेश सोफे पर करीब-करीब लेट सा गया, तभी ख़याल आया कि बचपन में माँ कैसे उसका जन्मदिन मनाती थी । माँ, पिताजी और दादाजी सब एक साथ मन्दिर जाकर आरती करते थे और वापस आकर पिताजी घर के सामने के चबूतरे पे बैठकर आने जाने वालों को पूरा दिन लड्डू बाँटते थे ।

ऐसा कुछ सोचते-सोचते कब उसकी आँख लग गयी, कब सपनों की नाव लिए वो समय के समंदर में तैरता अपने छोटे से गाँव पहुँच गया, जिसकी गलियों में राजेश का बचपन अभी भी जीवंत था । जरा भी वो नज़रों से ओझल हो जाता तो राजू-राजू की रट लगाये उसकी माँ पूरे मोहल्ले में ढूँडती थी ।माँ ने ही उसके घर का नाम राजू रखा था ।

अपने घर को राजेश ने दूर से ही पहचान लिया था । कई जगह से पलस्तर गिरा हुआ था, दीवारों का हरा रंग कई जगह से उड़ गया था और नीचे हुई सफेदी दिखाई देने लगी थी। घर के दरवाजे पर ताला पड़ा था । पास आकर खिड़की की झिरी से झांक कर देखा तो देखता ही रह गया….

अन्दर से घर ऐसा सजा-धजा था जैसे घर में आज कोई उत्सव की तैयारी हो रही हो । ड्राइंग रूम के चारों कोनों में फूलों की मालाऐं लटक रही थी, कुर्सियां मेज़ के चारों तरफ सलीके से लगी थी, काग़ज़ की रंग-बिरंगी झालरें चारों दिवारों पर लटक रही थीं, कई गुब्बारे दिवारों पर हिलडुल रहे थे शायद उनका धागा दिवारों पर टेप से चिपका हुआ था । खिड़की के ठीक सामने वाली दीवार पर राजेश को दादाजी, पिताजी और माँ की तस्वीरें दिख रहीं थी । उन सभी के फ्रेम भी गुलाब और गेंदे से बनी मालाओं से सजे थे ।

अचानक माँ फ्रेम से बाहर आई और पिताजी को आवाज़ लगाई – सुनो जी, कब तक बैठे रहोगे । सूरज कितना उपर आगया है ! मालूम है ना आज कहाँ जाना है ?

फिर पिताजी फ्रेम से बाहर आये स्त्री की हुई पैंट और आधी बाँह की शर्ट पहने और बोले – पता है आज तुम्हारे बेटे का जन्मदिन है,मंदिर जाना है लेकिन पहले लड्डू ले आता हूँ, मंदिर में प्रसाद चढाने के बाद गाँव वालों को भी तो बाँटना है । कहते हुऐ पिताजी बिलकुल मेरे पास से निकल गये ।

पिताजी आप भी तैयार हो जाइये, राजू को भी उठाती हूँ – माँ ने कहा

दादाजी सिर्फ मुस्कुराऐ और हाँ में सिर हिलाया – फ्रेम से ही ।

देखते ही देखते माँ ने राजू को तैयार किया, वही चंचलता का भाव लिए राजू खड़ा था जैसा कि वो 35 साल पहले था ।

पूजा की थाली लिए माँ, पिताजी और दादाजी के साथ राजू का हाथ पकड़े मंदिर चली गयी ।

वापस आते समय राजू अपने स्वभावानुसार अपनी माँ की साड़ी के पल्लू का किनारा पकड़े कूदता हुआ आ रहा था ।

अन्दर आकर जैसे ही राजू ने दादाजी के पैर छुए,दादाजी आर्शिवाद देते हुऐ बोले – सदा खुश रहो राजू….। कहते हुऐ अपने फ्रेम की ओर आगे बढ़ गये । राजू ने अभी भी माँ की साड़ी पकड़ रखी थी। दादाजी धीरे-धीरे उसकी नज़रों से ओझल हो गये थे, अब वो केवल फ्रेम में ही नज़र आ रहे थे ।

माँ राजू को गले से लगाये हुए ही बोली – बेटा, तुम कब बड़े होओगे, समझदार बनोगे । मुझे तुम्हारी बहुत चिंता रहती है, कहते हुऐ उनकी आँखों में आँसू भर गये ।

उन्होने राजू के सर पर हाथ फेरते हुए ये सब समझाया और अपना पल्लू छुड़ाकर फ्रेम की ओर बढ़ी, जब मुड़कर देखा तो राजू उन्हें एकटक देखे जा रहा था, माँ की आँखों से अश्रुओं की धारा बह निकली । राजू दौड़ कर माँ के पास आया और अपने छोटे-छोटे हाथों से माँ की आँखों के आँसू पोंछने लगा, उसे लगा शायद माँ रुक जायेंगी लेकिन वो कुछ बोली नहीं शायद बोल ही नहीं पाई, उनका गला रूंध गया था, डबडबाई आँखों से राजू को देखते हुए बिना कुछ बोले ही फ्रेम में चली गयी, बस फ्रेम के शीशे पर अभी भी उनके आँसू ढ़ुलके जा रहे थे, लेकिन राजू उन्हें पौंछ नहीं सकता था बस नीचे से ही माँ को रोते हुए देख रहा था ।

मैं बाहर लड्डू बांटकर आता हूँ, और हाँ.. अगले जन्मदिन पर फिर मिलेंगे, तब तक हमारा राजू भी सयाना हो जायेगा- पिताजी ने कहते हुए लड्डुओं का कार्टून उठाया और अपनी उदासी छुपाते हुए बाहर चले गये ।

शायद ये दादाजी और माँ से बिछुड़ने का गम था या बेटे के जन्मदिन की खुशी कि मरने के बाद भी माँ से पूरी तरह बात किये बिना ही

फिर एक साल के लिए अलग हो गये । राजू पिताजी की आवाज़ अनसुनी कर एकटक अपनी माँ की फोटो की तरफ देखे जा रहा था ।

खिड़की की झिरी से नज़र हटाकर राजेश ने देखा पिताजी लड्डू बाँट रहे हैं , हमेशा की तरह ।

इस बार वो चुपचाप देखता नहीं रहा, खिड़की से हटकर चबूतरे पर आया और पिताजी के पैर छुए ।

पिताजी, प्रणाम… मैं राजू – कहकर राजेश उनके सामने खड़ा हो गया ।

पिताजी के हाथों में लड्डू थे, किसी राहगीर को देने के लिए । सुनते ही उन्होंने अपना चेहरा ऊपर की ओर किया और देखते ही उनकी आँखों में आँसू आ गये ।

बहुत देर कर दी बेटा आने में, अपनी माँ को बताओ कि तुम बड़े हो गये हो और अब तुम अपना खयाल रख सकते हो, तभी तुम्हारी माँ और हम सबको इस दुनिया से मुक्ति मिलेगी । उन्हें राजू की जगह राजेश से मिलवा दो बेटा, कब तक यूँ ही उन फोटो फ्रेमों में कैद हो कर बैठे रहेंगे – कहकर पिताजी सिर छाती की ओर झुका कर रोने लगे ।

पिताजी चुप हो जाइये, प्लीज़…….प्लीज़….-कहता हुआ राजेश सोफे पर लेटा बड़बड़ा रहा था ।

शोभा ने राजेश को हिलाकर जगाया ।

क्या हुआ, किस सपने में खो गये,क्या आज पिताजी से बात हुई थी – शोभा पूछे जा रही थी, ध्रुव आवाक सा खड़ा था।

कुछ नहीं, कुछ नहीं………कहकर राजेश ने अपने आपको संभाला और सीधा सोने चला गया, बिना खाना खाये ही।

सुबह उठकर राजेश जाने की तैयारी कर रहा था । आज हम आउटिंग के लिये कहा जा रहे हैं - शोभा ने पूछा ।

तुम लोग नहीं, सिर्फ़ मैं –कमीज़ पहनते हुए राजेश ने बात पूरी की ।

क्यों – शोभा आश्चर्य चकित होकर राजेश के बाँयी तरफ आकर खड़ी हो गई और ड्रेसिंग टेबल के आइने में देखते हुए राजेश के जवाब का इंतजार करने लगी ।

वापस आकर बताऊंगा – राजेश बात पूरी करते हुए दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया ।

शोभा शायद कुछ ओर पूछ्ती , लेकिन तब तक राजेश बाहर जा चुका था । शोभा के पास उसे जाते हुए देखने के सिवाय ओर कुछ नहीं बचा था ।

राजेश सालों बाद गाँव आया था ,वो भी जन्मदिन पर । सब कुछ बदला-बदला था लेकिन एक चीज थी जो वैसी ही थी, पिताजी चबूतरे पर बैठे हुए लड्डू बाँट रहे थे।

पिताजी प्रणाम् – राजेश ने पैर छूते हुए कहा ।

आ गये बेटा , मुझे पता था एक दिन तुम्हें, तुम्हारी माँ की याद जरुर आयेगी । चलो, अन्दर चलो – कहते हुऐ पिताजी घुटनों पर हाथ रखते हुऐ उठे। पिताजी के चेहरे से उदासी ऐसे चली गई मानों रात के जगे आदमी पर सुबह की ठंडी हवा पड़ते ही नींद उड़ जाती है ।

माँ के फोटो फ्रेम के सामने सर झुकाकर प्रणाम् किया और ऊपर की ओर देखने पर फ्रेम के शीशे पर कुछ बूदें दिखी, शायद आँसू जिन्हें राजू पौंछ नहीं पाया था। राजेश ने फ्रेम को हाथ बढाकर साफ किया ।

पूजा के बाद गंगाजल के छींटे दिये थे पूरे घर में, शायद वो ही आ पड़े हों – पिताजी ने उसे देखते हुए कहा ।

फ्रेम साफ होने पर माँ का मुस्कुराता चेहरा दिखाई दिया, जैसे राजेश को देख माँ की सारी चिन्ताऐं उड़न छू हो गई हों, लगा माँ को राजू ने ही राजेश से मिलाया है, उनका राजेश, और जिसका वो आज जन्मदिन मना रही थी । पिताजी मन्दिर के लिए पूजा की थाली तैयार कर रहे थे ।

तुम्हारी माँ ने ही कहा था, हर जन्मदिन पर मन्दिर जाने को – कहते हुए थाली लेकर बाहर आये, राजेश ने बाहर से दरवाजा बंद किया ।

राजेश पिताजी के साथ मन्दिर जा रहा था । माँ साथ में नहीं थी, उसका राजू बड़ा हो गया था ।

माँ ने अपना राजेश जो पा लिया था ।