Khoya Bachpan in Gujarati Short Stories by Shweta Misra books and stories PDF | Khoya Bachpan

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Khoya Bachpan

______खोया बचपन______

तुम्हारे गम की डली उठा कर, जुबा पे रख ली है मैंने !
ये कतरा- कतरा पिघल रही है, मै कतरा- कतरा ही जी रही हूँ ……………….!

शुभी पुराने अल्बम की तस्वीर पलटते -पलटते …एक तस्वीर पर नज़र टिक गयी जो उसके बचपन की थी ………गुलज़ार की ये ग़ज़ल सुनते सुनते न जाने किन यादों में खो गई …….

वो भी तो एक शाम ऐसी ही थी ……आसमान पर काले बादल ………..ठंडी ठंडी बहती पुरवाई ……बच्चों का बाहर आपस में खेलना
उन बच्चों में एक साधारण लेकिन सबसे अलग दिखने वाली शुभी भी तो थी …साधारण नयन-नक्स होने के वावजूद कालोनी की सबसे और सबकी चहेती शुभी
वो भी सभी बच्चों के साथ खेल रही थी तभी उसका नौकर दौड़ा-दौड़ा उसके पास आया और बोला ….दीदी आपको साहब घर पर बुला रहे हैं …. शुभी चहकते हुए बोली पापा टूर से वापस आ गए क्या ?नौकर ने मुस्कुराते हुए कहा …. हाँ दीदी ….आपको बुलाया है …शुभी सभी दोस्तों को कल फिर मिलेंगे बाय कहते हुए घर की और हंसते हुए चल पड़ी
पापा .. पापा आप आ गये कहते हुए गले लगने को हुयी …….तभी उसके गालों पर पापा के पांचों उँगलियों के ताबड़तोड़ बारिश शुरू कर दी …. हैरान शुभी ..कुछ भी समझ नही पायी और सहम सी गई .. नौ साल की बच्ची ये समझ नही पाई क़ि आख़िर उसने ऐसा क्या कर दिया जो ये प्यार आज उसके पापा का उस पर बरस रहा है ??नासमझ कुछ भी नहीं समझ पाई …..रात सबने खाना खाया …पर शुभी से दो निवाला न उतर सका …बस उतरता रहा उसके आँखों से आंसू
रात भर तेज़ बुखार में शरीर उसका तपता रहा ……….पापा उसके सिरहाने बैठे पानी की पट्टियाँ बदलते रहे …… …तीन दिन बीत गया ….. बुखार शरीर छोड़ने का नाम नही ले रहा था …. डाक्टर की देखरेख में सारे टेस्ट भी हो गए नतीजा सिफर ही रहा ……. तब डाक्टर ने शुभी के पापा से पूछा कि कोई और बात तो नही ??कोई हादसा ??उसके पापा ने कहा …नही …ऐसा कुछ भी नही …… डाक्टर उसके पापा के अच्छे मित्र थे …..उन्होंने कहा कि ..कोई बात इसके दिमाग में घर कर गई है ……तब उसके पापा ने कहा …दो दिन पहले मैं जब टूर से लौटा तो मैंने उसे पीट दिया था और हाँ ….तब से वो मुझसे बात भी नही कर रही …..क्या मैं पूछ सकता हूँ कि वजह क्या थी ??? डाक्टर ने कहा
घर लौटते वक़्त मुझे पता चला रहा कि शुभी मिट्टी में खेलती है गंदे बच्चों के साथ जो कालोनी के बाहर रहते हैं ……..मुझे गुस्सा आ गया और ……….. शायद मुझसे गलती हो गई
डाक्टर ने कहा … क्या भाई साहब …. इतनी छोटी सी बात …मेरी भी बेटी तो उसके साथ खेलती है मुझे तो उनमे कोई कमी नज़र नही आती ….और ..फिर बच्चे हैं ..बच्चों के साथ ही तो खेलेंगे ….इस बात के लिए मासूम बेटी को इतना पीट दिया आपने …जिन्दगी भर के लिए एक खौफ भर दिया आपने …..आपकी एक ही बेटी है …..और मैं देखता हूँ बेटों से ज्यादा आपका और भाभी जी का ख्याल रखती है …..और आपकी इस हरकत ने उस पर इतना गहरा असर छोड़ा है कि ……कुछ समझ नही आ रहा अब आप से क्या कहूँ ….

हर पल हँसने वाली शुभी ..हर पल सहमी सहमी रहती ….पापा की आवाज़ कानो में पड़ते ही जैसे काँप सी उठती …… कालोनी के सारे बच्चे उसे रोज़ मिलने आते ……धीरे धीरे सब सामान्य तो नज़र आने लगा था ….पापा भी जरुरत से जयादा अब शुभी का ख्याल रखते ..लेकिन शुभी ….. सामान्य नही हो सकी …….जब भी कोई जोर से बोलता ..वो सहम जाती ……. हाथ पाँव उसके कापने लगते …… और वो शिथिल पड़ जाती …….. तीन चार दिन बिस्तर पर पड़ी रहती ….. क्या वो महज़ एक हादसा था जिसने फूल सी बच्ची के जीवन को इस हालत तक पंहुचा दिया
शुभी आज भी नही समझ पाई कि उसका कसूर क्या था …क्यूँ वो इस सजा की हक़दार हुई थी …..क्या इंसानों के बीच रहना उसकी गलती थी या बेवज़ह सजा मिलना उसका नसीब बन चुका था
इन्ही सवालों का जबाब तस्वीरों पर टिकी नज़र से ढूंढ़ ही रही थी कि ….शुभी तुम कहाँ हो ?? किधर हो ?जल्दी तैयार हो हम बाहर घूमने चल रहें हैं …..पिछले तीन-चार दिन से तुम घर में उदास सी हो …मुझे तुम्हे ऐसा देखना अच्छा नही लगता ….. तूम्हे मालूम है ……..सुशांत उस तक पहुँच चुका था …..शुभी ने झट अल्बम एक कोने में रखा और सुशांत के साथ ये सोचते हुए कि प्यार ऐसा या वैसा …कैसा होना चाहिए …. ख़ुशी ख़ुशी चली गई