Ek Dard in Hindi Poems by SARWAT FATMI books and stories PDF | Ek Dard

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Ek Dard

इक दर्द

मेरी आँखों में जो नमी है

इन नमीं में तुम हो

तुम से मेरी सांसें हैं

और सांसों में तुम हो

यू दूर जाते रहे मुझसे

और मैं तुम्हारी कदमों को ढूँढती रही

दुआओं में जब माँगा तुम्हें

तो तुमने हल्के से कह दिया भुल जाओ मुझे

मेरी नम आँख है पर

तुम नहीं

हाथ खुले हैं पर

हाथ तेेरा नहीं

अब सांसें है पर

इन सांसों में तुम नहीं

क्या खता हुई मुझसे

के तू यू दबे पावों चले गए

रिश्तों का दर्द

दोस्तों इस जमाने को क्या हो गया

जिसको चाहा वही बेवफा हो गया

आप ही ने बनाई, ये हालात मेरी

आप ही पुछते हो, ये क्या हो गया

आप गैरों से नजरें मिलाते रहे

एक नजर हमने देखा तो, क्या हो गया

मैं कोई पत्थर की मुरत नहीं

जिसको समझा वही जुदा हो गया

दोस्तों इस जमाने को क्या हो गया

जिसको चाहा वही बेवफा हो गया

बिखरना

तु जो नहीं मेरे पास

दिल कहीं लगता नहीं

पहले की बात कुछ और थी

पर आज हम एक है

क्या हुई मुझसे गलती

जो दिया तुमने इतनी बड़ी सजा

समझ नहीं आता, कैसे समझाऊं खुद को

एक तु ही तो था समझने के लिए, जो शायद अब नहीं है

गुजरा हुआ पल

मुझसे हुई कुछ गलती, वो था

मेरा गुजरा हुआ पल

क्या गुजरे हुए पल को

हम भुल नहीं सकते

अगर नहीं तो वो होता

क्यों है

चुपके से बैठ कर अँधेरे

में रोती है ताकि कोई

मुझे देख ना ले

आँसू छुपाते छुपाते, वक्त गुजर

गया, और मैं यूंही जिते

ही रह गई

काश मेरी इस कमी को, मेरी आँसू

को, कोई पहचान लेता

पर अफसोस में किसी को

समझा ना सकी

फासला इतना बढ़ाने की जरूरत

क्या थी

तुझे मुझसे रूठ कर जाने

की जरूरत क्या थी

अब जो मुझसे रूठ कर

उदास रहते हो

अपने हाथ मेरे हाथ से छोड़ाने

की जरूरत क्या थी

दुनिया कब किसी के गम को

समझी है

तुझे अपना गम दुनिया को

दिखाने की जरूरत क्या थी

मैं आज तक इस बात को

समझ नहीं पाई

जब साथ तुम्हारे मैं थी, तो

तुमहे जमाने की जरूरत

क्या थी

तुम क्या हो

तुम मेरी दुआ हो

ख्वाब को पूरा करने की एक परी हो तुम

नामाज का सजदा हो तुम

मेरी रूह, मेरी कायनात हो तुम

अब क्या बताऊं तुमसे मेरे हमराह

मेरी ताकत मेरी जिन्दगी हो तुम

खुशीयां

तेरे आने से मुझे खुद

में खुशी मिली

तु जो नहीं था मेरी जिन्दगी में,

मेरी जिन्दगी बे—रंग थी

कैसे करूं अपने दिल की

बातों का इजहार

अब दिल भी तु

जिन्दगी भी तु

कभी सोचा ना था, के

यूं प्यार हो जाएगा किसी से

पर आज किसी के फोन के

इनजार भी पूरी दिन निकल जाती है

चेहरे पर एक अलग सी हंसी होती है

भीड़ में बस उसी का एहसास होता है

ना जाना अब कभी मुझसे छु़ड़ कर

मेरी रूह, मेरी दुआ हो तुम

तेरी खामोशी कुछ कह जाती है,

तु ना रहे तो

दिल में कुछ होता है

इस दिल को समझाना

बहुत मुश्किल है

क्यों तेरी खामोशी मुझे परेशान करती है

क्यों तु अपने दिल की

बात, अपने दिल में रखती है

जिन्दगी है, एक खुबसुरत रंग

जो उतरे ही उतारी नहीं जाती

तेरा ही एक सहारा था

तेरा ही एक साथ था

जाते जाते कह गए मुझसे

तेरा सहारा, तेरा साथ बस

कुछ पल के लिए था

कभी कहते थे जीना है

तेरे साथ और मरना भी

पर आज अफसोस दिल में है

क्यों वो समझ ना सके

मेरी इस कमी को

खुद के नजरों गिरे थे कभी

फिर आज वही आ खड़े हुए

सच ही कहा है किसी ने

बिते पल लौट कर जरूर आते हैं

सिसकियों में रोना दस्तुर बन गया

और उन्हें लगा मैंने मुस्कुराते

हुए अलवीदा कहा उन्हें

तुम से जो दूर हुए

क्या खोया है वो

क्या बताऊ तुम्हें

हर पल तेरी याद तड़पाती है

तेरे ना होेने की कमी

हर पल महसुस होती है

हर चीज से तुम्हें हीं टूटंती हूँ

हो गई है मोहब्बत तुमसे

जान से भी ज्यादा

तुम्हारा नाम आते हीं

अकेले में रो पड़ती हूँ

क्यो एैसा हुआ मेरे हीं साथ

कभी इन आँखों में चमक

और इंतजार होता था, सिर्फ तुम्हारा

और आज भी इंतजार है

आँखों मेें वही चमक है,

बल तुम्हारे एक आवाज के लिए

उफ!! क्या थी और क्या हो गई ?

गई उनके निकाहो में

एक पल के लिए लगा

अब तु हमारे बीच नहीं

खुदा से दुआ माँगा भी तो

सिर्फ तेरी लम्बी उर्म के लिए

माना तेरे दिल में जखम बहुत है

पर इस दिल में एक गम है

जो तुझे ना रोने देगा

ओैर ना उदास रहने

वो कोई और नहीं वो तुम्हारी

आत्मा और तुम्हारी परछाई होगी

जब मैं उसे देखता था तो

लगता था क्या मैं बात

कर पाऊगा उससे

ये सोचते हुए वक्त निकल गया

और मैं खुद में सवाल बन

कर रह गया

दोसतों की यारी मुझे रंग ला रही थी

अकेला था पर किसी ने प्यार से

हाथ थामा नहीं

किसके लिए जिऊ किससे अपनी बात कहु

समझ नहीं आता

फिर मुझे वो मिल गयी और मैं

धीरे—धीरे उसका होता हीं

चल गया

पता है मुझे वो हो नहीं सकती मेरी

पर उसे भुलाना अब मेरे बस

में नहीं

तुझसे नाराज नहीं मेरी जिन्दगी

पर वफा जरूर है मेरी जिन्दगी

देने को तो कुछ नहीं मेरी जिन्दगी में

पर तुम्हारे साथ चलने को

है मेरी जिन्दगी

वक्त को कहा था ठहरने को

पर अब वक्त हीं नहीं है मेरे पास

अच्छा होता पहले मैं संभल जाती तो

आज मेरी परछाई साथ छोड़ कर

नहीं जाती

माफ करना मेरी जिन्दगी को

मैं बेवफा तो नहीं

बुंदों की तरह टपकना

कतरों को तरह पीना

मेहफिल में लुफ्त उठाना

नशे में चुर रहना

टुकड़ोे—टुकड़ों में जिना

आँखों में बसाना

समझ में आया तुम्हारा

पिना

बड़ी मुद्‌दत से झुकी तुम्हारी

आँखों

आज समझ में आया

तुम्हारा नशे में चुर रहना

कहते हैं जिन्दगी बहुत खुबसुरत है

पर मेरे साथ क्यों नहीं

कहते हीं प्यार हीं जिन्दगी है

पर मानने को मैं क्यों नहीं

कहते है साथ ना छोडुगा

पर उनपर विश्वास क्यों नहीं

कहते है तुम हो मेरी जान

पर मैं उनकी जिन्दगी क्यों नहीं

कहते है इन्तजार करते है तुम्हारा

पर वो मेरे साथ क्यों नहीं

कहते है हमेशा साथ हूं तुम्हारे

पर मुड़ कर देखा तो पास

क्यों नहीं