बहादुर बेटी
(6)
बचपन बचाओ.
आनन्द विश्वास
और दूसरे दिन से ही सभी बच्चे अपने-अपने निर्धारित कार्यों में बड़ी ही मुस्तैदी के साथ जुट गए। बालकों का उत्साह तो देखते ही बनता था। उत्साहित बच्चों से भी अधिक उत्साहित तो अपने घोष बाबू दिखाई दे रहे थे। बचपन और पचपन का अनौखा संगम था, बुद्धि और शक्ति का अनौखा मनुहारी संगम।
आज सशक्त युवा हाथों को मिल गया था एक सही मार्ग-दर्शन और एक सही दिशा। और सच तो यह है कि किसी भी कार्य की सफलता के लिए, बस इतना ही काफी होता है। बाकी सब कुछ तो सशक्त युवा हाथ अपने आप ही कर लेते हैं।
घोष बाबू के विशाल बंगले के रोड-साइड के दोनों कमरों की साफ-सफाई करके उसे *बचपन-फॉउन्डेशन* के कार्यालय का रूप दे दिया गया था। टेबल, कुर्सी, फोन, फर्नीचर और स्टेशनरी आदि सभी आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था हो चुकी थी।
घोष बाबू ने *शिकारी शो-ऑर्गेनाइज़र्स* के डायरेक्टर विक्रम शिकारी को ऑफिस में बुलाकर रॉनली, आरती, मानसी, शर्लिन, शाल्विया और भास्कर से परिचय करवाया और फिर अपने चैरिटी-शो के उद्देश्य के विषय में पूरी जानकारी देकर अपनी सभी परिस्थितियों से अवगत करवाया। इसी समय चैरिटी-शो के लिए ऑडीटोरियम और समय सब कुछ निश्चित कर दिया गया। सभी की राय थी कि यदि दर्शकों की अनुकूलता को ध्यान में रखा जाय तो शनिवार का दिन सबसे अधिक उपयुक्त रहेगा।
शो-ऑर्गेनाइज़र डायरेक्टर विक्रम शिकारी को जब यह पता चला कि छोटे-छोटे बच्चे ही स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब बच्चों के वैलफेयर के लिए *बचपन-फॉउन्डेशन* के तत्वावधान में इस चैरिटी-शो का आयोजन कर रहे हैं तो उन्होंने मिनीमम खर्च और नो-प्रोफिट नो-लॉस के बेसिस पर चैरिटी-शो के आयोजन कराने का मन बना लिया। साथ ही उन्होंने बच्चों की सोच की और उनके द्वारा उठाए गए इस साहसिक कदम की सराहना भी की। उनका कहना था कि ऐसा शो जिन्दगी में, मैं पहली बार कर रहा हूँ।
दूसरे दिन सभी समाचारपत्रों, मीडिया और स्थानीय चेनल्स पर चैरिटी-शो के विज्ञापन दे दिये गए। चैरिटी-शो के आयोजक के रूप में आरती का नाम और फोटो भी छापा गया।
पर आरती का नाम और फोटो समाचारपत्र और टीवी चैनल्स पर आते ही पुलिस, सरकार और मीडिया के सभी लोग तो हक्का-वक्का ही रह गए। क्योंकि जिस आरती नाम की साहसिक बालिका की तलाश में सरकार की स्पेशल इन्वेस्टीगेटिंग टीम ने और अनेक इन्टेलीजेंस एजेंसियों ने देश-विदेश का कोना-कोना छान मारा था, उसी बालिका का पता और ठिकाना आज उन्हें घर बैठे ही समाचारपत्रों और टेलीविज़न चेनल्स पर अपने आप मिल गया।
सब के सब दौड़ते हो गये थे *बचपन-फॉउन्डेशन* के ऑफिस की ओर और आरती के घर की ओर। और इतना ही नहीं, पीएमओ से लेकर स्थानीय पुलिस थाने तक की सभी सरकारी गाड़ियों का तो एक बहुत बड़ा काफिला ही दौड़ता हो गया था।
क्योंकि यही तो वह साहसी बालिका आरती थी जिसने अपनी जान की चिन्ता न करते हुए, अपनी जान को जोखिम में डालकर, अभी कुछ समय पहले ही, प्रधानमंत्री और उनके ड्रीमलाइनर विमान को तीन-तीन हाईजैकर आतंकवादियों के चंगुल से बड़ी ही कुशलता के साथ मुक्त कराया था।
इतना ही नहीं, विमानन मंत्रालय और एयरपोर्ट अथोर्टीज़ तो आज भी प्रश्नों के घेरे में है। पीएम की सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई कि तीन-तीन आतंकवादी हाईजैकर्स इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक, एके 47 राइफल्स और हैन्ड-ग्रेनेड आदि अपने साथ में लेकर ड्रीमलाइनर विमान में घुसने में कैसे सफल हो गए। और आरती का तो आजतक भी वे पता नहीं चला सके थे।
कुछ ही समय के अन्दर आईजी रेंक के दो पुलिस ऑफीसर्स ने आरती से सम्पर्क करके बताया कि अभी कुछ दिन पहले ही आपने जिन तीन आतंकवादियों को ड्रीमलाइनर विमान में से पकड़वाने में हमारी जो सहायता की थी, उसके सहयोग के लिए हम सब आपके आभारी हैं। साथ ही हमने उन तीनों आतंकवादियों पर सरकार की ओर से एक-एक करोड़ का इनाम भी रखा हुआ था। प्रथम तो हम लोग एक विशेष-समारोह का आयोजन करके उन पुरस्कारों की राशि के चेक, शाल और प्रशस्ति-पत्र आपको भेंट करके आपका स्वागत-सम्मान करना चाहते हैं।
दूसरा यह कि, पीएम भी ड्रीमलाइनर विमान की उस घटना के संदर्भ में आपसे मिलना चाहते हैं। पीएम के कार्यालय से हमें अभी-अभी ही यह सूचना मिली है। आरती ने दोनों ही कार्यक्रमों के लिए उनकी अनुकूलता के अनुसार ही दिन और समय निश्चित करने के लिए स्वीकृति दे दी और साथ में यह भी बता दिया कि वे इन कार्यक्रमों को शनिवार के दिन न रखें क्योंकि शनिवार के दिन तो उसका खुद का ही *बचपन-फॉउन्डेशन* के तत्वावधान में एक चैरिटी-शो का आयोजन है।
शाम को ही पुलिस ऑफीसर्स की ओर से सूचना मिली कि हम लोग अपना कार्यक्रम कल सुबह का रख रहे हैं और प्रधानमंत्री से आपके मिलने का कार्यक्रम कल शाम के समय रखा गया है। यह सूचना हम आपको पीएम ऑफिस से समय का कनफर्मेशन करने के बाद ही दे रहे है। आपको लेने के लिए हम खुद ही आऐंगे।
इधर यह समाचार मिलते ही आरती के *बचपन-फॉउन्डेशन* के ऑफिस में तो खुशी की लहर ही दौड़ गई। अब तो सभी बच्चों का उत्साह और काम करने का हौसला और दुगना हो गया था। क्योंकि अब उन्हें लगने लगा था कि पैसे की समस्या अब उनके काम में रुकावट नहीं बनेगी।
दूसरे दिन समय से पहले ही पुलिस ऑफीसर्स आरती को लेने के लिए घर पर आ पहुँचे थे। अपने सम्मान-समारोह में शामिल होने के लिए आरती ने घोष बाबू और मानसी को भी अपने साथ ले जाना उचित समझा। आरती के सम्मान समारोह का कार्यक्रम सेन्ट्रल ऑडीटोरियम में रखा गया था। शहर के अनेक सम्मानित व्यक्ति, उद्योगपति, साहित्यकार, बुद्धिजीवी-वर्ग, राज-नेता और पुलिस अधिकारियों से खचाखच भर गया था सोलह हजार सीटों की कैपेसिटी वाला यह सेन्ट्रल ऑडीटोरियम।
सेन्ट्रल ऑडीटोरियम पर प्रिन्ट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया का जमावड़ा तो देखते ही बनता था और यह तो होना स्वाभाविक भी था। समारोह ही कुछ ऐसा था। बहादुरी का पुरस्कार और वह भी छोटी-सी बालिका को। उसके अदम्य साहस और वीरता का परिचय, खूँख्वार आतंकवादियों से दो-दो हाथ करने का साहस। और तीनों आतंकवादियों को सरकार के हवाले कर देने का साहस और वह भी जिन्दा। जिनके लिए सरकार ने जिन्दा या मुर्दा सौंपने पर एक-एक करोड़ का ईनाम घोषित किया हो।
महिला एवं बाल-विकास मंत्री श्रीमती श्रद्धा सुमन ने अपने हाथों से आरती को शाल उड़ाकर स्वागत-सम्मान किया और फिर तीन करोड़ रुपए की धन-राशि के चेक और प्रशस्ति-पत्र सीनियर पुलिस ऑफीसर आईजी एस.के.भार्गव के हाथों से प्रदान किया गया। तालियों की गड़गड़ाहट और आरती... आरती... आरती... के शब्दों के जोरदार शोर से सारा का सारा हॉल ही गूँज उठा था। फोटो और कैमरों की फ्लैश-लाइट इधर-उधर सारे हॉल में काफी देर तक चमकतीं रहीं।
अपने संक्षिप्त अध्यक्षीय भाषण में महिला एवं बाल-विकास मंत्री श्रीमती श्रद्धा सुमन ने कहा कि आरती जैसी बहादुर बेटियों के ऊपर आज सारे देश को नाज़ है और बहादुर बेटी आरती ने आज वह काम करके दिखाया है जिससे हमारा मस्तक गर्व से ऊँचा उठ जाता है। जिसने अपनी जान की चिन्ता न करते हुए, अपनी जान को जोखिम में डालकर तीनों आतंकवादियों को ढ़ेर कर, सरकार के हवाले कर दिया। यह पुरस्कार अपने आप में ही उसके साहस और शौर्य का प्रतीक है। आरती आज के युवा-वर्ग और देशवासियों के लिए प्रेरणा-पुंज और अनुकरणीय है।
और जब अतिथि विशेष, महिला एवं बाल-विकास मंत्री श्रीमती श्रद्धा सुमन ने स्टेज से घोषणा करके यह बताया कि आरती अपने पुरस्कार की इस राशि को गरीब और स्लम-एरिया में रहने वाले बच्चों के वैलफेयर के लिए *बचपन-फॉउन्डेशन* नाम की सामाजिक संस्था को डोनेट करना चाहतीं हैं तब तो इस धोषणा के होते ही पूरा हॉल एक बार फिर से तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट और आरती... आरती... आरती... आदि के नारों से काफी देर तक गूँजता रहा। इतनी बड़ी राशि का डोनेशन निश्चय ही प्रेरणा-पूर्ण साहसिक कदम ही कहा जा सकता है।
दो मिनट के अपने संक्षिप्त वक्तव्य में आरती ने समारोह में उपस्थित सभी आगन्तुक महानुभावों और आयोजन कर्ताओं को हृदय से धन्यवाद देते हुए बड़ी ही विनम्रता के साथ कहा-“मैं भी तो आप जैसी ही एक सामान्य नागरिक हूँ और मैंने जो कुछ भी किया है वह तो हर किसी नागरिक को करना ही चाहिए था। और मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि मुसीबत की खौफनाक घड़ी में भी मैं अपने कर्तव्य का पालन पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ पूरा करने का साहस जुटा सकी। एक बार फिर से आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।”
आरती का वक्तव्य पूरा होने के साथ ही पूरा हॉल एक बार फिर से तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट से काफी देर तक गूँजता रहा।
समारोह समाप्त होने के बाद मीडिया की ओर से एक छोटी सी प्रेस-कॉन्फ्रेंस का भी आयोजन किया गया था। पीसी में आरती को पीएम और आतंकवाद से सम्बन्धित प्रश्नों की धुआँधार बौछार का सामना तो नहीं करना पड़ा, पर हाँ, चैरिटी-शो के आयोजन और उसके उद्देश्य को लेकर मीडिया ने अनेक प्रश्न पूछे।
मसलन एक पत्रकार ने आरती से पूछा-“*बचपन-फॉउन्डेशन* के तत्वावधान में हो रहे चैरिटी-शो के आयोजन करने के पीछे आपका उद्देश्य क्या है।”
“चैरिटी-शो के माध्यम से हम एक बहुत बड़ा फण्ड एकत्रित करना चाहते हैं जिसका उपयोग गरीब बच्चों के वैलफेयर के लिए किया जा सके। गरीब और स्लम-एरिया में रहने वाले बच्चों की फ्री-एज्यूकेशन के साथ-साथ हम लोग नारी-शिक्षा और नारी-सुरक्षा पर भी काम करना चाहते हैं।” आरती ने उत्तर दिया।
“ऐसे कौन-कौन से काम होंगे जिन्हें आप अपनी प्राथमिकता के आधार पर निर्धारित करेंगे।” एक न्यूज रिपोर्टर ने पूछा।
आरती ने बताया-“प्राथमिकता के आधार पर हम सबसे पहले तो ऐसे रैज़ीडेंशियल स्कूलस् बनाना चाहते हैं जहाँ पर कि स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब बच्चों के रहने के लिए हॉस्टिल, खाने-पीने और पढ़ाई आदि की व्यवस्था निःशुल्क हो सके।”
“ऐसे रैज़ीडेंशियल स्कूलस् बनाने में तो आपको काफी धन की आवश्यकता होगी और इतना धन आप कैसे जुटा सकेंगे।” रिपोर्टर ने प्रश्न किया।
“हमारे पास बाल-शक्ति की अपार सम्पदा है और घोष बाबू जैसे कुशल और अनुभवी व्यक्तियों का सही मार्ग-दर्शन भी। हम अपने उद्देश्य में निश्चय ही सफलता प्राप्त करेंगे। इसमें हमें तनिक भी सन्देह नहीं है।” आरती ने पूर्ण आत्म-विश्वास के साथ कहा।
“क्या इस चैरिटी-शो से आपको इतनी धन-राशि मिल सकेगी जिससे कि आप अपने मिशन के सभी कामों को पूरा कर सकेंगे।” एक रिपोर्टर ने जानना चाहा।
“नहीं, हमें इस तरह के चैरिटी-शो हर महिने और जगह-जगह पर करने होंगे। इसके साथ-साथ अन्य सेवाभावी संस्थाओं और अनेक उद्योगपतियों से भी आर्थिक सहायता लेनी होगी। हमें अन्य सेवाभावी संस्थाऐं तभी सहयोग करेंगी जब उन्हें हमारी संस्था *बचपन-फॉउन्डेशन* के द्वारा किए गए कार्यों के प्रति उनके मन में विश्वास उत्पन्न होगा। हमें अपने कार्यों से उनका दिल जीतना होगा।” आरती ने रिपोर्टर को विश्वास दिलाते हुए कहा।
सभी मीडिया-कर्मिओं और प्रेस-रिपोर्टरस् को सन्तोष-जनक उत्तर देने के बाद आरती ने पीसी को समाप्त करते हुए एक बार फिर से वहाँ पर उपस्थित सभी सज्जनों को धन्यवाद दिया और फिर अपने *बचपन-फॉउन्डेशन* के ऑफिस की ओर प्रस्थान किया। क्योंकि आज शाम को भी तो उसका पीएम से मिलने का कार्यक्रम भी था।
पीएम से मिलने के कार्यक्रम को लेकर आरती के मन में काफी उत्साह था और यह उत्साह और भी अधिक इसलिए हो गया था क्योंकि पीएम ने उसे मिलने के लिए सामने से बुलाया था, एक विशिष्ट व्यक्ति के रूप में, एक विशिष्ट अतिथि के रूप में।
शाम को भी समय से पहले ही पुलिस ऑफीसर्स आरती को लेने के लिए घर पर आ पहुँचे थे। पर अब उनकी गाड़ी की दिशा सेन्ट्रल ऑडीटोरियम की ओर नहीं, पीएम हाउस की ओर थीं और उनके साथ में था पीएम सीक्योरिटी का स्टाफ भी।
सभी फॉर्मलिटीज़ पूरी होने के बाद, आरती थी पीएम श्री के विशिष्ट अतिथि-कक्ष में, एक विशिष्ट अतिथि के रूप में। जिससे मिलकर पीएम स्वयं ही धन्यवाद देने चाहते थे क्योंकि उस दिन ड्रीमलाइनर विमान में अगर वह न होती तो शायद आज पीएम या तो आतंकवादियों के कब्जे में होते या फिर कुछ भी हो सकता था उनका और उनके साथ जा रहे उनके प्रतिनिधि मण्डल का।
अतिथि-कक्ष में आरती को अधिक देर इन्तज़ार नहीं करना पड़ा। निश्चित समय पर ही पीएम आरती से मिलने आ पहुँचे थे। बड़ी ही गर्म-जोशी के साथ पीएम ने आरती से हाथ मिलाते हुए हँसकर पूछा-“यहाँ आने में कोई असुविधा तो नहीं हुई, बेटी।”
“कैसी असुविधा सर, आपने यहाँ पर बुलाकर मुझे जो सम्मान दिया है वह ही क्या कुछ कम है। यहाँ पर बिताया हुआ एक-एक पल, मेरे जीवन के लिए अविस्मरणीय पल होगा।” आरती ने बड़ी ही शालीनता के साथ उत्तर दिया।
“नहीं आरती, तुम्हारा काम ही इतना अच्छा और महान था कि हर किसी को तुमसे मिलकर गर्व की अनुभूति होगी। आदमी का कार्य ही तो उसे महान बना देता है। तुम्हारे साहसपूर्ण कार्य के लिए हम सब तुम्हारे बहुत-बहुत आभारी हैं।” पीएम ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा।
“नहीं सर, इसमें आभार कैसा, ये तो मेरा कर्तव्य था और मैंने तो मात्र अपने कर्तव्य को ही निभाया था।” आरती ने कहा।
और इसी बीच चाय-नाश्ता आ चुका था। आरती ने फ्रूट-ज्यूस ही लेना पसन्द किया और प्रधानमंत्री ने चाय की चुस्की लेते हुए आरती से पूछा-“बेटी, हमें अभी-अभी बताया गया है कि तुम एक चैरिटी-शो का आयोजन स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए करने जा रहे हो।”
“हाँ, यह सच है सर। हम गरीब और असहाय बच्चों के लिए ऐसे रैज़ीडेंशियल स्कूलस् बनाना चाहते हैं जहाँ पर कि उन छात्रों के रहने के लिए हॉस्टिलस्, खाने-पीने और पढ़ाई आदि की निःशुल्क व्यवस्था हो सके। इसके साथ नारी-शिक्षा और नारी-सुरक्षा भी हमारी संस्था *बचपन-फॉउन्डेशन* के मिशन का एक भाग है।” आरती ने चैरिटी-शो के उद्देश्य को बताते हुए कहा।
“और क्या-क्या सुविधाऐं होनी चाहिऐं उस स्कूल में, बेटी।” पीएम ने बाल-मन आरती से पूछा।
“उसमें लड़के और लड़कियों, दोनों के लिए पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था होनी चाहिए और किताब-कॉपी, पैन-पैंसिल आदि सभी कुछ सभी को निःशुल्क मिलना चाहिए।” आरती के बाल-मन ने उत्साहित होकर कहा।
“इसके अलावा और क्या होना चाहिए उस स्कूल में, बेटी।” पीएम ने आरती के बाल-मन को और टटोलने का प्रयास किया।
“नहीं, फिलहाल तो इतना ही काफी रहेगा। और हाँ, यदि हो सके तो विद्यार्थियों के खेलने के लिए मैदान, कॉम्प्यूटर-लैब और इन्टरनैट की सुविधा के साथ-साथ लाइब्रेरी में ई-बुक्स भी मिल सके तो बहुत अच्छा रहेगा।” आरती ने अपने मन की बात कही।
आरती बोल रही थी और पीएम का मन पिघल रहा था। उन्हें रह-रह कर बस, यही ख्याल आ रहा था कि देश के बच्चे जिस काम को करने का मन बना सकते हैं और कुछ करने का बीड़ा भी उठा सकते हैं तो हम लोग इतनी बड़ी सत्ता और सामर्थ्य के होते हुए भी, उन स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब बच्चों के उत्थान के विषय में, क्या सोच भी नहीं सकते।
और मैं भी तो उसी तरह के बच्चों में से एक बच्चा हूँ जिसने अपने संघर्ष-मय जीवन के सफर की शुरुआत ही, स्लम-एरिया की उस छोटी-सी झोंपड़ी से की थी। वह भी तो कभी स्लम-एरिया में ही रहकर अपनी गुजर-बसर किया करता था और लैम्प-पोस्ट के नीचे टाट के बोरे पर बैठकर ही तो अक्सर गणित के सवाल किया करता था। बिल्लू, माधव, सर्किट, गोलू और छुटकी तो आज भी उसके ख्यालों में कभी-कभार जाने-अंजाने में घूम ही जाते हैं।
कैसे भूल सकता हूँ मैं अपनी जिन्दगी के वे गर्दिश के दिन और वे दर्दीली रातें, जब मैं खुद ही कभी किसी सेठ की एक छोटी-सी दुकान पर काम किया करता था और मेरी माँ भी कभी सेठानी के घर पर वर्तन साफ किया करती थी। गरीबी की सौनी-गंध तो आज भी उसके मन-मस्तिष्क पर अटी पड़ी थी। विशाल देश के सशक्त पीएम की आँखों में, आज पहली बार आँसू देखे गए।
उन्होंने अपने पीए मानस कुलकर्णी को बुलाकर पूछा-“मानस, जरा देखो, क्या एज्यूकेशन मिनिस्टर गर्विता अभी यहीं हैं या चले गए। और यदि न गए हों तो उन्हें अभी यहीं पर बुलवा लो।”
और कुछ ही समय में एज्यूकेशन मिनिस्टर श्रीमती गर्विता श्रीवास्तव भी आरती और पीएम के साथ में थीं।
“हम हर स्टेट में, कम से कम एक-एक तो ऐसे रैज़ीडेंशियल स्कूल बनाना चाहते हैं जहाँ पर छात्रों के रहने के लिए हॉस्टिल के साथ, खाने-पीने और पढ़ाई की निःशुल्क व्यवस्था हो सके। और उन स्कूलों में ई-बुक्स की सुविधायुक्त लाइब्रेरी और वाई-फाई की कनेक्टिविटी और कॉम्प्यूटर-लैब आदि की सुविधा के साथ-साथ विद्यार्थियों के खेलने के लिए मैदान भी हों।” पीएम ने एज्यूकेशन मिनिस्टर गर्विता श्रीवास्तव के सामने अपना विचार रखा।
“हाँ, हो सकेगा सर, और हमारे पास पर्याप्त मात्रा में फण्ड भी है। पर इससे भी अच्छा यह रहेगा कि हम इस तरह के स्कूलस् के ऐप्रूवल को पब्लिक पार्टनर-शिप में ले जाऐं और उस पर सेवा-भावी संस्थाओं को जमीन, भवन-निर्माण और अन्य व्यवस्था के लिए सब्सिडी और सहायता दें, तो यह काम आसान भी रहेगा और प्रभावशाली भी। इससे सरकार का स्कूलों पर नियंत्रण भी बना रहेगा, जिसका समय-समय पर स्कूल-निरीक्षकों द्वारा निरीक्षण और ऑडिट भी किया जा सकेगा।” एज्यूकेशन मिनिस्टर ने अपना सुझाव रखा।
“नहीं, हम चाहते हैं कि इस तरह के रैज़ीडेंशियल स्कूलस् को भी सेन्ट्रल स्कूलस् की तर्ज पर ही सेन्ट्रल गवर्नमेंट के द्वारा गवर्न किया जाय और यदि सेवा-भावी सामाजिक संस्थाऐं भी, पब्लिक पार्टनर-शिप में या फिर स्वयं ही इसी तरह के फ्री-रैज़ीडेंशियल स्कूलस् खोलना चाहें तो सरकार उन संस्थाओं को भी जमीन मुहैया कराने के साथ-साथ, भवन-निर्माण और अन्य व्यवस्था के लिए सब्सिडी देकर उन सेवा-भावी संस्थाओं की सहायता करे।” पीएम ने सुझाव दिया।
“हाँ, तब तो यह योजना और भी अधिक प्रभावशाली रहेगी। इससे सरकारी स्कूलों और संस्था-गत स्कूलों में एक ही प्रकार का मानक निश्चित किया जा सकेगा, जो शिक्षा और व्यवस्था के स्तर को भी समान बनाए रखने में सहयोगी सिद्ध होगा।” एज्यूकेशन मिनिस्टर श्रीमती गर्विता श्रीवास्तव ने इस विचार को और भी अधिक प्रभावशाली बताया।
“ठीक है, अब इस योजना को हमें जल्दी से जल्दी लागू करना होगा ताकि आने वाले सत्र से ही गरीब बच्चों की पढ़ाई विधिवत् रूप से चालू हो सके। और इस योजना के कार्यान्वयन के लिए जिस भी विभाग और जिस भी मंत्रालय से सम्पर्क करना है, करके इस योजना को जल्दी से जल्दी पूरा कराऐं।” पीएम ने एज्यूकेशन मिनिस्टर श्रीमती गर्विता श्रीवास्तव को आवश्यक दिशा-निर्देश देते हुए कहा।
“ठीक है, कल से ही मैं इस योजना पर काम शुरू करवा देती हूँ और हमें आशा है कि हम इस काम को बहुत जल्दी ही पूरा कर सकेंगे।” शिक्षा-मंत्री ने पीएम को विश्वास दिलाया।
आरती खुश थी क्योंकि वह जो कुछ भी करना चाहती थी, वही सब कुछ तो हो रहा था। उसके विचारों को, उसकी भावना को, उसकी कल्पना को, देश के विद्वान प्रधानमंत्री ने समझा है, स्वीकारा है और उसे पूरा करने का संकल्प भी किया है। आज उसका एक बहुत बड़ा सपना जो साकार होने जा रहा था।
मुस्कुराते हुए पीएम ने आरती से कहा-“आरती, अब इसी सत्र से गरीब बच्चों को पढ़ने के लिए *फ्री-एज्यूकेशन* के अन्तर्गत सभी राज्यों में कम से कम एक-एक *रैज़ीडेंशियल स्कूलस्* तो हो ही जाऐंगे और फिर निकट भविष्य में हम इस योजना का और भी अधिक विस्तार करेंगे। साथ ही जो सेवाभावी संस्थाऐं इस प्रकार के स्कूल खोलना चाहेंगी, उन्हें भी सरकार की ओर से सब्सिडी और अन्य सहायता मिलती रहेगी।”
आरती नहीं समझ पा रही थी कि किन शब्दों से वह पीएम सर को धन्यवाद के दो शब्द कहे। शब्द और वाणी दोनों ही उसका साथ नहीं दे पा रहे थे। शब्द बौने पड़ गए थे और वाणी लड़खड़ा रही थी। बस, आँखों से निकलते आँसुओं ने, खुशी के छलछलाते आँसुओं ने, वह कमी पूरी कर दी थी और बिना बोले ही आरती ने सब कुछ बोल दिया था और बिना बोले ही पीएम ने सब कुछ सुन भी लिया था।
“नहीं बेटी, आज तो सचमुच ही तुमने मेरी आँखें खोल दी हैं। कभी-कभी तो बच्चे ही बड़े-बड़ों को वह सब कुछ सिखा देते हैं जो कि उन्हें करना चाहिए। आज तुमने मुझे बता दिया है बेटी, कि यदि हमें अपने कल के देश को बचाना है तो हमें आज के बचपन को बचाना होगा, बचपन को सँवारना होगा। आज के बच्चे ही तो कल का देश हैं। और जब बच्चों का बचपन ही नहीं बच सकेगा तो फिर कल का देश कैसे बच सकेगा। जब देश का बचपन ही भूखा होगा तो देश कैसे खुशहाल रह सकेगा।” पीएम ने गम्भीर होकर आरती से कहा।
और जब आरती ने पीएम से अपने चैरिटी-शो में आने के लिए विशेष-आग्रह किया तो उन्होंने बताया कि कल से ही उनका दस दिन की विदेश-यात्रा का शिड्यूल है और आज रात को ही उन्हें जाना होगा। पर हाँ, तुम्हारे चैरिटी-शो में एज्यूकेशन मिनिस्टर श्रीमती गर्विता श्रीवास्तव जरूर पहुँचेंगी। मैं उनसे कहे देता हूँ।
और अन्त में पीएम ने अपना पर्सनल मोबाइल नम्बर आरती को देते हुए कहा-“बेटी आरती, जब कभी भी आवश्यकता हो, तुम मुझसे निःसंकोच कभी भी सम्पर्क करके सकोगे।”
आरती पीएम के सीधे, सरल और सादगी-पूर्ण व्यवहार से बेहद प्रसन्न थी। उसे अपने पीएम पर गर्व की अनुभूति हो रही थी। क्योंकि वह अपनी अपेक्षा से अधिक ही पा चुकी थी।
दूसरी ओर खुश, पीएम भी थे। क्योंकि आज वे उस बालिका के सपनों को साकार करने जा रहे थे जो उन जैसे ही स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए कुछ करने का मन बना चुकी थी। सच में तो वह उनके ही सपनों को साकार करने का संकल्प कर चुकी है।
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