Bahadur Beti-4 in Hindi Short Stories by Anand Vishvas books and stories PDF | Bahadur beti Chapter - 4

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Bahadur beti Chapter - 4

बहादुर बेटी

(4)

काश, यदि ऐसा हो पाता.

आनन्द विश्वास

प्रधानमंत्री के ड्रीमलाइनर विमान के हाईजैकिंग और उसको मुक्त कराने की घटना के दूसरे दिन ही आरती ने अपने आकाश के भ्रमण के अनुभव को रॉनली के साथ शेयर करने का मन बनाया। उसने अपने पास में रखे हुये चमत्कारी सिक्के को ऐक्टीवेट किया और फिर उसके लाल बटन को दबाकर रॉनली से सम्पर्क किया।

सामने से आवाज आई-“हाँ हलो आरती, कैसा है।”

इससे पहले कि आरती कुछ भी बोल पाती, रॉनली ने आरती से कहा-“आरती, तुमने देश के प्रधानमंत्री के ड्रीमलाइनर विमान को हाईजैक होने से बचाकर और तीनों खूँख्वार आतंकवादियों को सरकार के हाथों तक पहुँचाकर एक बहुत ही अच्छा काम कर दिखाया है। जिसकी सभी जगह प्रसंशा भी हो रही है और आज के समाज को हम जैसे बच्चों से ऐसी ही अपेक्षा भी है।”

“पर रॉनली, तुम्हें कैसे पता चला, ये सब कुछ। ये घटना तो कल शाम की ही है। तुम्हें किसने बताया, रॉनली।” आरती ने बड़ी ही आतुरता और आश्चर्य के साथ रॉनली से पूछा।

“आरती, इस घटना को तो विश्व के सभी समाचारपत्रों और मीडिया ने कवर किया है। ये कोई ऐसी-वैसी सामान्य घटना नहीं है। ये तो एक देश के प्रधानमंत्री के अपहरण की गम्भीर समस्या का सम्वेदनशील मामला है। और वैसे भी आतंकवाद से तो विश्व के सभी देश चिन्तित हैं। आजकल आतंकवाद तो एक विश्व-व्यापी समस्या बन चुका है।” रॉनली ने अपना स्पष्टीकरण दिया।

“तो क्या रॉनली, तुम्हारे दिव्य-लोक में भी हमारे पृथ्वी-लोक के सभी समाचार-पत्र, पत्रिकाऐं और टेलीविज़न चैनल्स उपलब्ध हो जाते हैं।” आरती ने रॉनली से जानना चाहा।

“नहीं आरती, तुम्हारे लोक के समाचार-पत्र और टेलीविज़न चैनल्स की तो यहाँ पर कोई आवश्यकता ही नहीं होती है। यहाँ के नैट-वर्क की डिवाइस तो पृथ्वी-लोक की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण ब्रह्मांड के सभी ग्रहों पर पल-पल होने वाली सभी घटनाओं को कवर करती रहती है। किस ग्रह पर कब, कहाँ और क्या हो रहा है, इस सबकी जानकारी हमें हमारी डिवाइस हम तक हर पल पहुँचाती रहती है। इतना ही नहीं निकट भविष्य में होने वाली सभी घटनाओं की जानकारी भी हमारी डिवाइस हमें देती रहती है और हर पल सावधान भी करती रहती है।” रॉनली ने बताया।

“रॉनली, तब तो तुम्हारे दिव्य-लोक की डिवाइस और नैट-वर्क निश्चत रूप से बड़ी ही अद्भुत और लाभकारी है। हमारे यहाँ तो बड़ी से बड़ी घटना घट जाए और उसके बाद भी किसी को कुछ भी पता नहीं चल पाता है। हमारे यहाँ के अधिकतर टीवी चैनल्स पर तो फालतू बे सिर-पैर की अनावश्यक बहस ही चलती रहती है। फालतू के लोग पहले उल्टे-सीधे अनर्गल बयान दे देते हैं और फिर बाद में वे माँफी भी माँग लेते हैं। टीवी चैनल्स उसी में मिर्च-मसाला मिलाकर दिनभर चलाते रहते हैं।” आरती ने अपनी व्यवस्था और कार्य-प्रणाली के प्रति क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा।

“नहीं आरती, ऐसा तो कुछ भी नहीं है। यह संसार अच्छाइयों और बुराइयों से भरा पड़ा है। हम जो कुछ भी देखेंगे और सुनेंगे, उसी का प्रभाव हमारे मन पर पड़ता है। हमें अपने संस्कारों को अच्छा बनाने के लिए अच्छा ही सुनना चाहिए और अच्छा ही देखना चाहिए। हमें सदैव अपने मन को निर्मल बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए। अच्छा मन ही सबसे अच्छा धन होता है।” रॉनली ने दोनों लोकों में सन्तुलन बनाने का प्रयास किया।

“हाँ रॉनली, इसीलिए हम लोग यहाँ टेलीविजन पर केवल गिने-चुने अच्छे-अच्छे कुछ ही प्रोग्राम देखते हैं।” आरती ने कहा।

“ठीक है आरती, आज शाम को मैं तुमसे मिलने के लिए आने वाला हूँ। तभी शेष बातों पर चर्चा कर सकेंगे। अभी तो मैं थोड़ा जल्दी में हूँ।” रॉनली ने कहा।

“ठीक है रॉनली, मैं तुम्हारा इन्तज़ार करूँगी।” ऐसा कहकर आरती ने अपने चमत्कारी सिक्के को डिऐक्टीवेट कर दिया।

रॉनली से बातें करने के बाद आरती के मन में तरह-तरह के विचार आने लगे। उसके मन में विचार आया कि काश, कितना अच्छा होता कि यदि अपने लोक के बच्चे भी दिव्य-लोक के बच्चों के साथ उनके स्कूलों में पढ़ने के लिए जा पाते और वहाँ के शिक्षक और विद्वान वैज्ञानिक पृथ्वी पर आकर यहाँ के बच्चों को अपना दिव्य-ज्ञान और अपनी अद्भुत वैज्ञानिक-तकनीक दे पाते। तब निश्चय ही हमारा लोक भी शिक्षा और ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ गया होता।

और जब उसका ध्यान अपने लोक की ज्वलन्त समस्याओं की ओर गया तब तो उसे अपने सामने अनेक समस्याओं का अम्बार ही दिखाई देने लगा।

छोटे-छोटे बच्चों के किडनैपिंग की समस्या, बाल-मजदूरी की समस्या, गरीबी के कारण बाल-शिक्षा की समस्या, बालिकाओं को कलम-किताब से दूर रखने की समस्या, नारी-शोषण की समस्या, कन्या-भ्रूण हत्या की समस्या, भ्रष्टाचार की समस्या, आतंकवाद की समस्या और ऐसी एक नहीं अनेकों समस्याऐं आरती के सामने मुँहबाँऐं खड़ी हुईं थी।

पर क्या रॉनली उसे, उसकी इन सभी समस्याओं से निजात दिला सकेगा या उसके इस भागीरथ-प्रयास में अपना सहयोग दे सकेगा। क्या वह चाहेगा कि यहाँ के बच्चे और यहाँ का समाज भी ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ सके और खुश-खुशहाल जीवन यापन कर सके। और क्या वहाँ के प्रशासन-व्यवस्था की ओर से उसे ऐसा करने पर कोई अवरोध तो उत्पन्न नहीं किया जाएगा। ढ़ेर सारे अनसुलझे प्रश्न थे आरती के मन में।

पर अब उसने अपना मन बना लिया था कि वह रॉनली के सामने अपना यह प्रस्ताव जरूर रखेगी और उसे उसकी सहायता करने के लिए बाध्य भी करेगी। और यदि वह ऐसा करने से कोई आना-कानी करता है या टालमटोल करता है तो फिर कैसी दोस्ती और कैसी मित्रता। जो व्यक्ति मेरे देश लिए और मेरे समाज के लिए उपयोगी नहीं हो सकता है, सहयोगी नहीं हो सकता है, तब उससे दोस्ती करने का और परिचय बढ़ाने का अर्थ ही क्या है। तब वह उससे मित्रता रखने के विषय में फिर से मूल्यांकन करेगी।

आरती ने अपने सभी साथी मानसी, शर्लिन, अल्पा, कल्पा, सार्थक और भास्कर से भी इस विषय मे चर्चा की। आरती के सभी साथी भी आरती के इस विचार से पूरी तरह से सहमत थे।

शाम को निश्चित समय पर ही रॉनली, आरती से मिलने के लिए आ गया। उसने आरती से कहा-“आरती, अब तुम अपने पास में रखे हुए चाँदी के चमत्कारी सिक्के को एक्टीवेट करके, उसका गुलाबी बटन दबाओ।”

और बटन को दबाते ही आरती ने अपने सामने रॉनली को खड़ा हुआ पाया। आरती के साथ में उसके दूसरे साथी मानसी, शर्लिन, अल्पा, कल्पा, सार्थक और भास्कर भी थे। आरती के सभी साथियों को रॉनली से मिलकर बड़ी प्रसन्नता हुई साथ ही रॉनली को भी आरती के सभी साथियों से मिलकर बड़ी प्रसन्नता हुई।

इससे पहले कि रॉनली आरती से कुछ कह पाता, उससे पहले ही आरती ने रॉनली से कहा-“रॉनली, आज मैं तुमसे एक अत्यन्त गम्भीर प्रश्न पूछना चाहती हूँ। क्या तुम उसका उत्तर दोगे।”

आरती के प्रश्न पूछने का अन्दाज़ और उसके मित्रों के चहरे के हाव-भाव और भाव-भंगिमा को तुरन्त ही भाँप लिया था रॉनली ने। उसने आरती से कहा-“हाँ हाँ आरती, क्यों नहीं। एक ही क्यों, हजारों प्रश्न पूछने का अधिकार है तुम्हें। जितने चाहो उतने प्रश्न पूछ सकते हो, तुम। और तुम्हारे हर प्रश्न का समाधान भी है मेरे पास। तुम्हें निराश नहीं होना पड़ेगा। यह मेरा वादा है, आरती।”

आरती ने कहा-“रॉनली, मैं इस बात से सहमत हूँ कि तुम्हारे लोक का ज्ञान-विज्ञान हमारी पृथ्वी-लोक के ज्ञान-विज्ञान से बहुत आगे है। साथ ही तुम्हारे लोक में हमारे लोक जैसी समस्याऐं भी नहीं हैं। मैं चाहती हूँ कि तुम हमारे लोक की अनेक समस्याओं से हमें निज़ात दिलाने में हमारी सहायता करो।”

“इसमें प्रश्न और उत्तर का तो प्रश्न ही कहाँ है, आरती। मित्रता में तो केवल अधिकार के साथ आदेश होता है और वह भी प्रश्न और उत्तरों की सीमाओं के परे। मित्रता में तो केवल समर्पण का भाव होता है मित्र के प्रति। और तुम्हारा दुःख तो तुम्हारा है ही कहाँ। वह तो मेरा दुःख है और तुम्हारी समस्या तुम्हारी नहीं, वह तो मेरी समस्या है। मैं तुमसे अलग ही कहाँ हूँ। हम सब मिलकर हर समस्या का समाधान करने में समर्थ हैं, आरती। इसमें संशय की तो कोई गुंजाइश ही नहीं है। आखिर समस्या क्या है तुम्हारी, यह तो बताओ।” रॉनली ने आरती की समस्या को जानना चाहा।

“रॉनली, मैंने खुद अपनी आँखों से छोटे-छोटे गरीब बच्चों को सड़े-गले बदबूदार कचरे और गन्दगी के अम्बार में से प्लास्टिक की खाली बोतलें, थैलियाँ और प्लास्टिक के छोटे-मोटे सामान को बीनते हुए देखा है। उनसे पूछने पर मुझे पता चला कि वे इस सामान को बेचकर थोड़े-बहुत पैसे कमा लेते हैं जिससे कि उनके घर पर, उनकी दाल-रोटी का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल पाता है। मेरा मन तभी से विचलित हो रहा है, रॉनली। इसका कारण कुछ भी हो सकता है, पर मैं उनके लिए कुछ करना चाहती हूँ। मैं उनके बचपन को ऐसे ही नहीं मरने देना चाहती हूँ। मैं उनके फूल से कोमल बचपन को बचाना चाहती हूँ और इस कार्य के लिए मुझे तुम्हारा सहयोग चाहिए।” आरती ने रॉनली को बताया।

“हाँ आरती, मेरा अनुभव भी कुछ इसी तरह का है। मैने भी सुबह-सुबह गरीब बच्चों को प्लास्टिक आदि का सामान बीनते हुए देखा है। मेरा मन भी उनकी ऐसी दयनीय स्थिति को देखकर भर आया था।” रॉनली ने अपना अनुभव बताया।

“इतना ही नहीं रॉनली, आजकल सभी जगह पर छोटे-छोटे बच्चे शोषण का शिकार हो रहे हैं। कहीं तो उन्हें किडनैपिंग करके बेच दिया जाता है और उनके अंग-भंग करके जबरदस्ती उनसे भीख मँगवाई जाती है तो कहीं पर बंधुआ-मजदूर और गुलामों जैसा बनाकर उनसे फैक्ट्री, मील और कारखानों में काम करवाया जाता है।” आरती ने बड़े दुःखी मन से रॉनली से कहा।

“ये तो वास्तव में बड़ी ही गम्भीर समस्या है, आरती।” ऐसा सुनकर रॉनली की आँखें नम हो गईं।

“इतना ही नहीं रॉनली, हमारे यहाँ पर कुछ स्थानों पर तो लड़कियों के पढ़ने-लिखने पर भी पाबन्दी लगा रखी है। वहाँ के लोग, न तो लड़कियों को पढ़ने-लिखने के लिए स्कूल में ही जाने देते हैं और ना ही उन्हें घर पर ही पढ़ने देते हैं। कलम और किताब से उन्हें कोसों दूर रखा जाता है। यदि कोई लड़की पढ़ने-लिखने का दुःसाहस करती भी है तो उसे जान से मार डाला जाता है। और तो और रॉनली, बालक के जन्म लेने के समय से पहले ही गर्भवती महिला के बच्चे का लिंग-परिक्षण करावाकर, लड़की होने पर तो उसे गर्भ में ही दवा देकर मार डाला जाता है। कितना घिनौना कृत्य है ये, रॉनली। ऐसा करने से तो समाज में लड़कियों की संख्या ही कम हो जाएगी और प्राकृतिक सन्तुलन भी बिगड़ जाएगा।” बोलते-बोलते आरती का गला रुंध गया।

“हमें अपने इस मिशन को बहुत ही शीघ्र कार्यान्वित करना होगा, आरती। और वैसे भी हम इस मिशन के लिए काफी लेट हो चुके हैं। यह मिशन तो अब से बहुत पहले से ही चालू हो जाना चाहिए था। पता नहीं लोग इतना सब कुछ कैसे सहन करते चले गए। सहनशक्ति की भी तो कोई सीमा होती है। यह कृत्य तो निश्चित रूप से बहुत ही निन्दनीय और अमानवीय है।” रॉनली का आक्रोश उसके शब्दों में परिलक्षित हो रहा था।

“रॉनली, आज के बच्चे कल का भविष्य हैं। हमें इन बच्चों को और इनके बचपन को बचाना होगा। तभी उनका भविष्य सुरक्षित रह सकेगा।” आरती ने अपने मन की पीढ़ा व्यक्त करते हुए कहा।

“क्या वे इस बात को नहीं जानते कि एक लड़के को शिक्षित करने से केवल एक व्यक्ति ही शिक्षित होता है जबकि एक लड़की को शिक्षित करने से एक परिवार शिक्षित होता है। ऐसा हमारे बापू जी कहते थे और आरती मैं तो हमेशा से ही नारी-शिक्षा और नारी-सम्मान का पक्षधर रहा हूँ। मैं तुम्हारे इस विचार से पूरी तरह से सहमत भी हूँ, आरती।” रॉनली ने कहा।

“रॉनली शिक्षा पर तो सबका बराबर का अधिकार होता है। माँ शारदे के मन्दिर के द्वार तो सभी के लिए खुले हुए हैं। तो फिर ऐसा भेद-भाव क्यों।” आरती ने अपना तर्क प्रस्तुत किया।

“आरती, इस मिशन पर काम शुरू करने से पहले मेरी इच्छा यह है कि हम सब मिलकर सभी कार्यों की एक विस्तृत रूप-रेखा तैयार कर लें और प्राथमिकता की दृष्टि से एक-एक करके सभी कार्यों का संचालन प्रारम्भ करें। क्योंकि सभी कार्यों का प्रारम्भ एक ही साथ करने से अव्यवस्था फैल जाएगी और कोई भी काम सही ढंग से सम्पन्न नहीं हो सकेगा।” रॉनली ने आरती को परामर्श दिया।

“जैसा तुम उचित समझो, रॉनली।” आरती ने कहा।

“ठीक है आरती, इसके लिए हम दूसरे लोकों के अपने सभी बाल-मित्रों और बाल-प्रतिनिधियों को भी बुला लेते हैं ताकि वे सब भी हमारी समस्याओं के विषय में अपने सुझाव दे सकेंगे और यथाशक्ति अपनी-अपनी सहायता और सहयोग भी दे सकेंगे। और इतना ही नहीं सभी का एक दूसरे से परिचय भी हो जाएगा। जो भविष्य में लाभदायी भी सिद्ध हो सकेगा।” रॉनली ने बताया।

“हाँ ऐसा करना बिलकुल सही रहेगा।” भास्कर, सार्थक और मानसी ने भी रॉनली के सुझाव का समर्थन करते हुए कहा।

“ठीक आरती, मैं कल सुबह के लिए अपने सभी बाल-मित्र और बाल-प्रतिनिधियों को सूचित कर देता हूँ। तुम अपने घर पर ही कुछ लोगों के बैठने की व्यवस्था कर लेना। घर पर बैठकर ही हम सब लोग मिलकर आपस में चर्चा कर लेंगे।” रॉनली ने आरती को परामर्श दिया।

“सभी व्यवस्था हो जाएगी, रॉनली। इसमें चिन्ता की कोई बात नहीं है।” आरती ने कहा।

“एक बात और रॉनली, हमारे पास ही के बंगले में घोष बाबू जी रहते हैं। बड़े ही मिलनसार और सौम्य स्वभाव के व्यक्ति हैं वे। बच्चों के साथ तो वे बिलकुल बच्चे जैसे ही बन जाते हैं और वे बच्चों की हर समस्या का समाधान करने के लिए सदैव ही तैयार रहते हैं। घोष बाबू फौज के रिटायर्ड मेजर हैं और पूरे बंगले में अकेले ही रहते हैं। यदि इस विषय में उनका मार्गदर्शन और सहयोग भी लिया जाय तो उचित रहेगा।” आरती ने रॉनली को बताया।

“ठीक है आरती, यह भी उचित ही रहेगा। तुम उन्हें भी इसकी सूचना दे देना। इस विषय में हम उनके परामर्श और मार्गदर्शन के अनुसार ही काम करेंगे। उनका अनुभव हमारे लिए निश्चित रूप से बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा।” रॉनली ने आरती के सुझाव का अनुमोदन करते हुए कहा।

“ठीक है रॉनली, मैं घोष बाबू जी को भी सूचित कर दूँगी और उनसे आने के लिए निवेदन भी करूँगी।” आरती ने कहा।

“और आरती आज की इस वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि तुम्हारे पास ‘विल-पावर’ की स्पेशल पावर-फुल डिवाइस होनी ही चाहिए ताकि तुम मेरे और अपने अन्य लोक के बाल-मित्रों के साथ सीधे सम्पर्क में रह सको। यह पावर-फुल डिवाइस तुम्हारे लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकेगी। इसकी सहायता से तुम अपनी इच्छा के अनुसार ही अपने सभी कार्यों का संचालन स्वयं कर सकोगे। अपने मन में विचार करके तुम किसी से भी कभी भी बात कर सकोगे। सम्पूर्ण ब्रह्मांड का नैट-वर्क भी इसके साथ अटैच है और यह पावर-फुल डिवाइस सभी प्रकार की गतिविधियों की पल-पल की जानकारी तुम्हें हर पल देती रहेगी।” रॉनली ने कहा।

“ठीक है रॉनली, जैसा तुम उचित समझो।” आरती ने रॉनली को स्वीकृति देते हुए कहा।

आरती की स्वीकृति मिलने के बाद रॉनली ने अपने सीधे हाथ को हवा में ऊपर-नीचे हिलाया और फिर ‘विल-पावर’ की स्पेशल पावर-फुल डिवाइस को आरती के लैफ्ट हैन्ड की रिस्ट पर सैट कर दिया। यह डिवाइस बिलकुल अदृश्य रूप में ही थी और इसे आरती के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति देख ही नहीं सकता था।

रॉनली ने बताया-“आरती, इस डिवाइस में लेंग्वेज़-कन्वर्टर भी सैट किया हुआ है, इसकी सहायता से तुम ब्रह्मांड में किसी भी लोक की किसी भी भाषा को समझ भी सकोगे और उस व्यक्ति से उसी की भाषा में बात-चीत भी कर सकोगे। यह लेंग्वेज़-कन्वर्टर तुम्हें उन लोगों को समझने और अपनी बातों को उन लोगों को समझाने में सहायक हो सकेगा।”

“रॉनली, मुझे तो केवल हिन्दी और थोड़ी बहुत अंग्रेजी भाषा ही आती है। इसके अलावा तो मुझे कोई दूसरी भाषा आती ही नहीं है तो फिर दूसरी भाषा में मैं सामने वाले लोगों से कैसे बात कर सकूँगी।” आरती ने अपने मन की शंका और व्यथा को व्यक्त करते हुए कहा।

“आरती, मुझे भी तो तुम्हारी हिन्दी-भाषा कहाँ आती है। मुझे तो केवल अपने दिव्य-लोक की दिव्य-भाषा ही आती है और मैं उसी भाषा में तुमसे बातें भी करता हूँ। यह लेंग्वेज़-कन्वर्टर ही तुम्हारी हिन्दी-भाषा को हमारी दिव्य-भाषा में कन्वर्ट करके हमें सन्देश पहुँचा देता है और हमारी दिव्य-भाषा को तुम्हारी हिन्दी-भाषा में कन्वर्ट करके तुम्हें हिन्दी-भाषा में हमारे सन्देश तुम्हारे पास तक पहुँचा देता है। इस प्रकार इसकी सहायता से हम किसी भी देश के या किसी भी लोक के लोगों से आपस में बात-चीत कर सकते हैं और अपने सम्वाद दूसरों तक पहुँचा सकते हैं। इतना ही नहीं, इसकी सहायता से हम अनेक पशु-पक्षियों से उनकी ही भाषा में बात-चीत कर सकते हैं और वे क्या बोल रहे हैं, ये भी जान सकते हैं।” रॉनली ने आरती को बताया।

“तब तो यह डिवाइस हमारे लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकेगी। इसकी सहायता से तो हम अनेक पशु-पक्षियों के दुःख-दर्द को समझ सकेंगे और फिर उसे दूर कर सकेंगे।” आरती ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए रॉनली से कहा।

“हाँ निश्चित रूप से। तुम्हें याद है न आरती, जब तुम्हारे घर पर ऐंजल ऐनी मानसी बैन से गुजराती-भाषा में ही बात कर रही थी।” रॉनली ने आरती को याद दिलाते हुए कहा।

“हाँ, हाँ रॉनली याद आया। अपनी ऐंजल ऐनी तो मानसी से गुजराती-भाषा में ही बात कर रही थी।” आरती ने कहा।

“ऐंजल ऐनी के पास भी यही डिवाइस है, आरती।” रॉनली इससे आगे कुछ और बोल पाता, इससे पहले ही मानसी बोल पड़ी-“सारो आरती, हवे तो तू म्हारे साथे गुजराती मां पण बातो करी सकसे, बहु सरस। मज़ा आवसे। हवे तू तो कोयल साथे कुहु-कुहु पण करी सकसे अने पोपट साथे पण बातो करी सकसे। तारे तो मज़ा पड़ी गया, आरती। अने सरस मज़ा नी बात तो ऐ छे कि तू तो कूतरा साथे पण भों-भों करी सकसे।”

मानसी के कटाक्ष और हास्य मिश्रित बात को सुनकर सभी मित्रों को हँसी आ गई और गम्भीर वातावरण में थोड़ा हल्कापन आ गया।

आरती ने वातावरण को हल्का और हास्यमय बनाने के लिए मानसी से कहा-“हाँ मानसी, हूँ तारे साथे चोक्कस गुजराती माँज़ बातो करिश।”

आरती के बात करने के अन्दाज़, आचरण और भाव-भंगिमा में गम्भीरता का अनुभव किया गया। शायद उसकी ‘विल-पावर’ की डिवाइस एक्टीवेट हो चुकी थी। साथ ही अब उसके कंधों पर पृथ्वी-लोक के गरीब और शोषित-वर्ग के बच्चों के कल्याण की एक अत्यन्त महत्व-पूर्ण जवाबदारी जो आन पड़ी थी।

रॉनली के मन में क्या कुछ चल रहा था इसका आभास अब आरती को हो रहा था। अतः उसने सामने से ही रॉनली से जाने का आग्रह किया और कहा-“रॉनली, अब तुम्हें शीघ्र ही अपने लोक में पहुँच जाना चाहिए। वहाँ पर तुम्हारा इन्तज़ार हो रहा है।”

रॉनली को समझते देर न लगी और अब वह समझ चुका था कि आरती की ‘विल-पावर’ की डिवाइस एक्टीवेट हो चुकी है। अब आरती अपने निर्णय अपने आप लेने में समर्थ है।

“अच्छा आरती, अब मैं चलता हूँ। काफी देर हो चुकी है। अब हम लोग कल मिलेंगे।” ऐसा कहकर रॉनली ने सभी से विदा ली।

भले ही व्यस्तता थी और आवश्यक काम भी, पर रॉनली आज भी अपने वचनों को नहीं भूला था। आरती की मम्मी को दिए हुए वे वचन आज भी उसे याद थे और वैसे भी माँ की ममता को भुला पाना इतना आसान भी तो नहीं होता है।

दो मिनट के लिए ही सही, वह आरती की मम्मी से मिलने के लिए गया। माँ से आशीर्वाद लिया और फिर थोड़ा बहुत नाश्ता करके वह अपने लोक के लिए चला गया, जहाँ पर कि उसका बड़ी बेसब्री से इन्तज़ार हो रहा था। एक अत्यन्त आवश्यक गम्भीर विषय पर निर्णय जो लेना था।

***