सामयिक लेखः विज्ञान
संदर्भः अंतरराष्ट्रीय प्रकाश वर्ष
प्रस्तुतिः शंभु सुमन
प्रकाश केवल अँधेरा
मिटाने का नाम नहीं
अंतरराष्ट्रीय प्रकाश वर्ष 2015 का ऐतिहासिक वर्षगांठ मनाने के सिलसिले में प्राकृतिक और कृत्रिम प्रकाश की विकास यात्रा को जानने-समझने के साथ-साथ पृथ्वी से सूर्य के रिश्ते की मानवीय स्पर्श को भी एहसास किया जाना चाहिए। जीवन में रचा-बसा सात रंगों का मिश्रित श्वेत प्रकाश उतना ही महत्वपूर्ण है जितना जल, जंगल, जमीन, वायु, पर्यावरण और दूसरे किस्म के आहार। प्रकाश के बगैर बेहतर जीवनयापन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। इसमें जरा भी संदेह नहीं कि मानव-जीवन का विकास प्रकाश के बिना कदापि संभव नहीं था।
सबसे तेज गति वाले प्रकाश के बारे में जो भी जानते हैं , वह काफी रोमांचित करने जैसा है। लेकिन क्या यह जानते हो कि इसकी रोशनी की तेज में चाकू जैसी धार है, जो चिकित्सा जगत में चीर-फाड़ करने का काम बगैर रक्त बहाए बाखूबी कर सकता है। बिजली के बल्ब से लेकर लेजर किरणें तक और रोशनी के बल्बों से लेकर दूसरे इलेक्ट्राॅनिक गजेट इसी की देन है। आज सभी की पहली पसंद बन चुका टच स्क्रीन और डिजिटल दुनिया प्रकाश की बदौलत ही बहुउपयोगी बन गया है। संचार और सूचना क्रांति तो इसके बगैर संभव ही नहीं था। हाॅलीवुड की बहुचर्चित फिल्म स्टार वार्स में सारी लड़ाइयां और संघर्ष लेसर किरणों से होती है।
अंतरराष्ट्रीय प्रकाश वर्ष क्यों?
संस्कृत के वाक्य तमासे मा ज्योतिर्गमय के अर्थ में आस्था, आध्यात्म, आत्मविश्वास और ज्ञान-विज्ञान संबंधी अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का व्यापक गूढ़ संदेश छिपा है। जबकि यह विज्ञान और वैज्ञानिकों के नजरिए से प्रकाश में उस क्षमता को दर्शाता है, जिसके दम पर हम हर असंभव को भी संभव करने की हिम्मत जुटा पाते हैं। प्रकाश केवल किसी वस्तु को देखने में ही मदद नहीं करता, बल्कि वह हमारे जीवन में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रच-बस चुका है। यह क्यों और कैसे है?् प्रकाश की हर किरण हमारे जीवन और प्रकृति के लिए कितना महत्व रखती है? विभिन्न किस्म की प्रौद्यौगिकी में इसका भविष्य क्या है? सूर्य की तेज चुंधिया देने वाली किरणों से लेकर चांद और तारे की संवंदनशील कोमलता का एहसास देने वाली किरणों का रहस्य आज भी क्यों अबूझ पहेली बना हुआ है? इन किरणों को संभालने व सहेजने की भागीदारी किसकी और कितनी है? बिजली और पर्याप्त रोशनी की बात करने वाले आम लोगों को इसकी गूढ़ जानकारी का होना क्यों जरूरी है? क्या कृत्रिम प्रकाश के नुकसान भी हैं?
यूनेस्को का उद्देश्य
इन्हीं सब सवालों का हल जानने-समझने के मकसद से पेरिस स्थित संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन ‘यूनेस्को’ के मुख्यालय में 19 नवंबर 2013 को 190वीं बैठक के दौरान सन् 2015 को अंतरराष्ट्रीय प्रकाश वर्ष के रूप में मनाए जाने का प्रस्ताव रखा गया था। उसके बाद मात्र दो सप्ताह के बाद ही संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 दिसंबर 2013 को इसे अंतरराष्ट्रीय प्रकाश एवं प्रकाश आधारित प्रौद्योगिकी वर्ष के रूप में मनाने की घोषण कर दी। इसका मूल उद्देश्य आज की तकनीक से भरी दुनिया में प्रकाश आधारित प्राद्यौगिकी के विकास को नए सिरे से समझना और किशोर व युवा प्रतिभाओं को इसके प्रति आकृष्ट कर नवसृजन के लिए प्रेरित करना है। साथ ही वैश्विक स्तर पर विकास को बढ़ावा देने के सिलसिले में ऊर्जा, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के क्षेत्र में आई चुनौतियों के समाधान तलाशने की दिशा में प्रकाश आधारित प्रौगिकियों को लेकर लोगों के बीच जागरूकता फैलाना है। यही नहीं 20वीं सदी में इलेक्ट्रानिक्स क्रांति को प्रकाश आधारित प्रौद्योगिकी की मदद इस सदी में और अधिक तेज करना है। इसी के साथ भारत समेत 85 से अधिक देशों के विभिन्न शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों, विज्ञान केंद्रांे और वैज्ञानिकों को इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए मानवहित में उपयोगी परियोजनाएं सौंपी गईं। साथ ही कई लक्ष्य निर्धारित किए गए। इनमें प्रकाश की वैज्ञानिकी पर शोध संबंधी चर्चा एवं प्रकाशीय ऊर्जा की क्षमता और उपयोगिता के अतिरिक्त शांति, अहिंसा की संस्कृति के प्रसार को भी महत्व दिया गया। हालांकि इसके पहले भी यूनेस्को की घोषणा के बाद 2005 में भौतिकी और 2014 में क्रिस्टलोग्राफी के लिए दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय वर्ष के रूप में मनाया जा चुका है।
प्राकृतिक संसाधनों के विपुल भंडार और नाभकीय ऊर्जा का भी सीधा संबंध प्रकाश की आवश्यकता और उपलब्धता से है। यह बात हर किसी के लिए कितना मायने रखती है, इसे भी समझना और सामान्य लोगों को बताना आवश्यक है। यूनेस्को का मानना है कि प्रकाश सूचना व संचार, फाइबर आप्टिक्स, खगोलशास्त्र, आर्किटेक्चर, पुरतत्व, मनोरंजन और सांस्कृतिक परिवेश के क्षेत्र में अनगिनत संभावनाएं समेटे हुए है। आज इलेक्ट्रानिक्स क्रांति के बाद जिस डिजिटल तकनीक की बातें लोगों की जुबान पर आ गई है, उसके लिए आप्टिक्स और फोटोनिक्स से सकारात्मक प्रभाव की संभावनाएं बनती हैं। यह यूरोपियन फिजिकल सोसायटी का अंतरराष्ट्रीय प्रकाश वर्ष के लिए किया गया सराहनीय प्रयास रहा है, जिसके अध्यक्ष ही अंतरराष्ट्रीय प्रकाश वर्ष की संचालन समिति के भी अध्यक्ष हैं। इले
प्रकाश की शोध के महत्वपूर्ण साल
2015 प्रकाश के संदर्भ में बहुत महत्व का साल रहा है। यह कहें कि विज्ञान के विकास की दृष्टिकोण से यह एक यादगार वर्ष साबित हुआ। यह साल प्रकाशकी विज्ञान क्षेत्र में इब्न अल हायथम द्वारा किए गए शुरुआत के जहां 1015 और प्रकाश की तरंग प्रकृति के सिद्धांत के 100 साल पूरे होने का वर्ष है। इसके अतिरिक्त मैक्सवेल के प्रकाश के विद्युतीय चुंबकीय सिद्धांत के प्रतिपादित होने के 150 वर्ष पूरे हो गए। और तो और, 200 साल पहले फ्रेजनल ने एक शोध पत्र प्रकाशित करवाया था, जिस आधार पर प्रकाश की अनुप्रस्थ तरंग की प्रकृति स्थापित करने में मदद मिल। वर्ष 1905 में अलबर्ट आंस्टाइन द्वारा प्रकाश वैद्युतिक सिद्धांत के आने के बाद ही लेसर का आविष्कार संभव हो पाया। सामान्य सपेक्षता का सिद्धांत भी इसी के आधार पर अस्तित्व में आया था। आइंसटाइन ने सौ साल पहले सपेक्षवादिता का सिद्धांत देकर सबको चैंका दिया था, जिससे ब्रह्मांड और गुरुत्वाकषर्ण को समझने के लिए नया दृष्टिकोण मिल गया। माइक्रोवेव की खोज 50 साल पहले 1965 में पेनाजियास और विल्सन द्वारा हुई थी। इन महत्वपूर्ण और यादगार वर्षों के संदर्भ में प्रकाश संबंधी शोध सामान्य जनमानस को प्रोत्साहित करने वाला साबित हुआ है।
विज्ञान और प्राद्यौगिकी के क्षेत्र में भारत की भागीदारी और उपलब्धियों को भी साधारण नही माना जा सकता है। यहां के वैज्ञानिकों की वैश्विक पहचना है। भारतीय मूल के वैज्ञानिक ने प्रकाश संश्लेषण का सिद्धांत दे चुके हैं। प्रकृति में सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशीय ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित होने की क्रिया को समझाने वालों में जगदीश चंद्र बोस का नाम महत्वपूर्ण है। प्रकाश संश्लेषण की इस नैसर्गिक प्रक्रिया में पेड़-पौधों के पत्तों का हरापन सूर्य के प्रकाश से ही संभव है, तो पृथ्वी पर जीवन का आधार ही यह प्रक्रिया है। सूर्य का प्रकाश, प्रकाश संश्लेषण के अतिरिक्त हमें गर्मी प्रदान करने और मौसम के बदलाव का कार्य करता है। आंखों से किसी वस्तु को दखना इसी से संभव है।
वैज्ञानिकों के शोध और मत
सदियों पुराने प्रकाश के इतिहास पर गौर करें तो पाएंगे कि हमारे जीवन के इस अभिन्न हिस्से को लेकर समय-समय पर दार्शनिकों और वैज्ञानिकों ने कई खोज किए। इस बारे में जैसे-जैसे समझ बदलती गई, वैसे-वैसे दुनिया भी बदलती चली गई। सूर्य से पृथ्वी पर आए प्राकृतिक प्रकाश से लेकर दीपों और बल्बों के कृत्रिम प्रकाश के क्षेत्र में किए गए शोधों से हमारी जीवनशैली सरल-सहज बनती चली गई। इस कारण इसे जीवन का पर्याय कहा जा सकता है। कुछ वैज्ञानिकों की तरह ही 17 वीं सदी में सर आइजक न्यूटन का मानना था कि प्रकाश कणों का समूह है, जबकि कुछ वैज्ञानिक इसे तरंग मानते थे। न्यूटन द्वारा किए गए अनेक प्रयोगों से बताया गया कि श्वेत प्रकाश सात रंगों से मिलकर बना है। ये रंग बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल हैं। इन्हें एक साथ प्राकृतिक इंद्रधनुष में देखा जा सकता है। यानि बैंगनी से लाल तक की पट्टियां ही प्रकाश की एक किरण होती हैं। तब यह भी मानना था कि प्रत्येक रंग का उपयोग कर श्वेत प्रकाश पुनः नहीं बनाई जा सकती है, और न ही किसी एक रंग के प्रकाश को विभक्त किया जा सकता है। उसे सन् 1800 में थामस यंग नामक भौतिकशास्त्री ने अपने प्रयोगों के आधार पर खंडित कर दिया। साथ ही हाइगेन्स और राबर्ट हुक ने प्रकाश को तरंग कहा। यंग ने यह भी कहा कि प्रकाश के विभिन्न रंगों के भी भिन्न-भिन्न तरंग दैध्र्य होते हैं। उसी के अनुसार उनमें चमक और चटकीलापन दिखता है। इस आधार पर किए गए शोधों का फायदा 19वीं सदी में वैद्युतिक और चुंबकत्व संबंधी विज्ञान में मिला। भौतिकशास़्त्री जेम्स क्लार्क मैक्सवेल ने बताया कि विद्युत और चुंबकीय क्षेत्रों में भी तरंगें होनी चाहिए। इनकी गति प्रकाश की गति के काफी करीब पाई गई। इस अनुसार यह स्पष्ट किया गया कि प्रकाश एक विद्युत-चुंबकीय घटना है। आज भी इसे एक महत्वपूर्ण तथ्य के तौर पर जाना जाता है कि विद्युत-चुंबकीय विकिरण की एक काफी उच्च आवृत्ति होती है। प्रकाश की तरंग प्रकृति संबंधी सिद्धांत के सिलसिले में 1905 आइंसटाइन ने बताया कि प्रकाश की किरण में कण और तरंग, दोनों तरह के गुण और व्यवहार होते हैं। साधारण अर्थ में यह दृश्य प्रकाश, विद्युत चुंबकीय विकरण के फोटान (ऊर्जा का बंडल) के रूप में मुक्त ऊर्जा होता है। इसी फोटान को हमारी आंखें महसूस करती है। ये फोटान परमाणु स्तर पर होने वाली घटना के परिणामस्वरूप ही परिवर्तित होती है। इसी स्थिति में ठीक वैसे ही रंगों में बदलाव आता है, जैसे किसी लोहे की छड़ को गर्म करने पर होता है। तापमान बदलने पर प्रकाश के अदृश्य अवरक्त विकिरण उत्सर्जित होते हैं। तापमाने के और ज्यादा बढ़ने पर प्रकाश का रंग लाल, नारंगी, पीला और अंत में चमकीला सफेद रंग में बदल जाता है।
बल्ब और कृत्रिम रोशनी
अब जरा घरों में रोशनी के लिए इस्तेमाल की जाने वाले तरीकों पर गौर करें। परंपरागत तेल के जलते दीए और मोमबत्तियों की लौ में गर्म कार्बन कणों के द्वार प्रकाश उत्पन्न होता है। जबकि सामान्य टंग्सटन बल्बों में गर्म टंगस्टन तंतु द्वारा प्रकाश पैदा होता है। इस बल्ब का आविष्कार थामस एडिसन ने किया था। 11 फरवरी 1847 को जन्म लेने वाले एडिसन ने अपने जीवनकाल में कुल 1093आविष्कार पेटेंट करवाए, जिसमें 389 के पेटेंट प्रकाश संबंधी थे, तो 195 फोनोग्राफी, 150 टेलीग्राफ, 141 बैटरियों को संग्रहित करने और 34 टेलीफोन संबंधी थे। उनके आविष्कारों में बल्ब के अतिरिक्त मोशन पिक्चर कैमरा, फोनोग्राफ, प्रिंटिंग टेलीग्राफ, टाइपराइटिंग मशीन, गैल्वेनिक बैटरी, इलेक्ट्रीक जेनरेटर और टेलीग्राफी आदि प्रमुख हैं। उन्होंने जब 31 दिसंबर 1897 न्यूयार्क के मेनलो पार्क में अपनी स्थापित इलेक्ट्रिक लाइट कंपनी द्वारा बनाई गई प्रकाश के बल्ब का सार्वजनिक प्रदर्शन किया था तब कहा था कि मैं इतनी सस्ती बिजली बनाऊंगा कि केवल अमीर लोग ही मोमबत्ती जलाएंगे। ट्यूब्स, सीएफएल में गैस और प्रतिदीप्ति के द्वारा विद्युत प्रवाह से प्रकाश उत्पन्न किया जाता है, तो लाइट इमिटिंग डायोड (एलईडी) में ठोस अवस्था की इलेक्ट्रानिक प्रक्रियाओं के द्वारा प्रकाश उत्पन्न किया जाता है।
भागीदारी और जिम्मेदारी
अंतरराष्ट्रीय प्रकाश वर्ष को महज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर औपचारिक आयोजनों तक ही सीमित रखना सही नहीं होगा। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि सभी उम्र और सभी क्षेत्र के व्यक्ति प्रकाश के संास्कृतिक विज्ञान और विशेषताओं की भूमिका को गहराई से समझें। विभिन्न क्षेत्रों कें आपसी संबंधों को ध्यान में रखते हुए अपनी भागीदारी निभाएं और जिम्मेदारी का निर्वाह करें। प्रकाश संबंधी विज्ञान से उत्पन्न होने वाले प्रौद्यौगिकी क्षेत्र, जिसे फोटोनिक्स कहा जाता है, के बढ़ते महत्व को ध्यान मंे रखते हुए इससे संबंधित ऊर्जा सुरक्षा को नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। हमें प्रकृति में फैले उस प्रकाश की भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए, जिनकी बदौलत आर्कटिक में बर्फीले क्रिस्टल हैं, रेगिस्तान में मृगरीचिका बनता है, पानी में बनने वाली तस्वीरों, मौसम के अनुरूप आसमान की प्राकृतिक घटनाएं आदि है। कृत्रिम प्रकाश का बढ़ता चलन प्रकाशीय व्यवस्था को महत्व को बढ़ाता है, साथ में यह प्रकाश प्रदूषण जैसी असहज करने वाली मुश्किलें उत्पन्न कर सकता है।
शंभु सुमन, मुख्य उप संपादक
न्याय चक्र 12, जनपथ],नई दिल्ली—11
मोबाइल:9871038277
शपथ: मेरी यह रचना मौलिक और अप्रकाशित है। इसे कहीं और प्रकाशन के लिए नहीं भेजा गया है। दिनांक: 9 जनवरी 2015