Lota Bhar Pani Balti Bhar Chintan in Hindi Comedy stories by Surjeet Singh books and stories PDF | Lota Bhar Pani Balti Bhar Chintan

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Lota Bhar Pani Balti Bhar Chintan

व्यंग्य--विनोद

लोटा भर पानी, बाल्टी भर चिंतन

- सुरजीत सिंह

जब मौसम की ठंड में, पारे की शून्य में, शरीर की रजाई में घर वापसी हो जाए, तो ऐसे समय अच्छा भला बंदा किसी तरुणी के दिल से ज्यादा, नहाने से जी चुराने लगता है। अत्याचार की इंतेहा तब होती है, जब परिवार की रायशुमारी उसे नहाने को मजबूर कर देती है। बाथरूम की ओर प्रस्थान करता बंदा दुनिया का सबसे निरीह प्राणी होता है। बंदा नहाना नहीं चाहता, रायशुमारी नहलाने पर तुली है। ऐसे निरीह प्राणी के लिए बाल्टी में पानी नहीं, जैसे पूरा उत्तरी धु्रव जमाकर रखा गया है। यह ऐसा काम है, जो रोज मन मारकर करना पड़ता है। अब मन मारकर सारी उम्र सरकारी नौकरी तो की जा सकती है, लेकिन नहाना तो निहायत ही पर्सनल काम है! कायदे से तो ऐसे मौसम में नहाने के लिए मजबूर करने वालों पर गैरइरादतन हत्या का केस चलना चाहिए। यहां हत्यारों तक के मानवाधिकार सुरक्षित हैं, मगर बाथरूम में अपने मानवाधिकारों से हाथ धोते बंदे के समर्थन में किधर से भी कैंडल मार्च नहीं निकलता।

देश के हालात के लिए चौबीसों घंटे सरकार को कोसने के मॉड में रहने वाला बंदा भी बाथरूम में विषय बदलकर अचानक मौसम को कोसने लगता है। मन में ऊल-जुलूल खयाल आने लगते हैं। ऊंह, बड़े अच्छे दिन आए हैं। उसे जीवन में पहली बार अपने सैनिक न होने का अफसोस होता है। हाय! इससे अच्छा तो सीमा पर शहीद हो जाते। जितना नहाने के लिए फोर्स किया गया, उसका छटांक भी यदि एवरेस्ट पर चढऩे के लिए किया होता तो आज वह बाथरूम में नहीं, एवरेस्ट पर खड़ा होता।

लोटा भीरू दुविधा में पड़े होते हैं, तभी बाहर कैलाश खैर गाते सुनाई देते हैं- अल्लाह के बंदे हंस दे...! अबे कैलाश खैर के बंदे, मजाक की भी हद होती है, कोई तुम पर एक लोटा पानी डाल गाने को कहे तो! घायल की गति घायल जाने, फिर क्या कैलाश, क्या खैर, भई!

जब लोटा सिर की ओर गमन की तैयारी करता है, तो हालत उस कबूतर जैसी हो जाती है, जो बिल्ली को आते देखकर आंखें बंद कर लेता है। कुछ बंदे लोटे को आता देखकर जोर-जोर से हनुमान चालीसा का जाप करने लगते हैं, भूत-पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे...। अब इन स्नान आतंकितों को कौन समझाए कि लोटा भूत नहीं, वर्तमान होता है। 'ओम भूर्भुव: स्व: ' की ध्वनियां बाथरूम की दीवारों से टकराकर करुण पुकार में बदल जाती हैं। इसमें 'बचाओ-बचाओ' ध्वनित होता है। माहौल निपट आद्र्र हो जाता है। चीख-पुकार सुन एक साथ तैंतीस करोड़ देवी-देवता बाथरूम में जमा हो जाते हैं। घोर नास्तिक तक बाथरूम में चुपके से आस्तिक हो लेते हैं। बाहर निकलते ही गर्म कपड़ों के साथ-साथ पुन: नास्तिकता ओढ़ लेते हैं।

जो लोग नहाते समय गाते हैं- ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए...,दरअसल वे गाने की मार्फत पानी को पटा रहे होते हैं, जैसे उनके मधुर गान पर द्रवित होकर पानी पिघल जाएगा। जैसे कोई करोड़ों डकार भगवान को बेसन के दो लड्डूओं से बरगला रहा हो। अब पानी कोई गरीब का वोट थोड़े ही है, जो जरा सी पुचकार से रीझ जाएगा। इसी समय यदि टीवी पर आ रही फिल्म में 'जगीरा' डायलॉग मार दे कि 'सब कुछ ले आओगे, लेकिन मेरे जैसा कमीनापन कहां से लाओगे' तो उससे भी बंदा हर्ट फील करता है, कोई उसका मजाक उड़ा रहा है कि 'बर्खुरदार, गीजर तो ले आओगे, मगर नहाने के लिए जिगर कहां से लाओगे? '

बस, एक लोटे का सवाल है बाबा, इसे झेल जाएं, फिर तो बिना स्वर्ण भस्म खाये ही खोई जवानी वापस लौट आती है। लोटा दर लोटा साहस, चेतना, बहादुरी सब लौटने लगते हैं। बाथरूम से सद्य निकला बंदा अपने साहस को लेकर इतना मुदित होता है कि जी चाहता है, तत्काल कोई उसका नाम नॉबेल के लिए रिकमंड कर दे।

नहाया हुआ आदमी बिन नहायों को यूं हिकारत से देखता है, जैसे वे इंसान न होकर संक्रामक रोगों के चलते-फिरते पुतले हों, जिनके सम्पर्क में आते ही उसके शरीर में संक्रमण फैल जाएगा। उसका मन तो करता है कि दो-चार बिन नहायों को पकडक़र 'लोटा चैलेंज' के लिए नॉमिनेट कर दे! फिर यह सोचकर रुक जाता है कि जाने दो यारो, तुमसे नहीं होगा! तुम्हारे लिए झाड़ू पकडक़र फोटो खिंचवाना ही ठीक रहेगा!

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सुरजीत सिंह,

36, रूप नगर प्रथम, हरियाणा मैरिज लॉन के पीछे,

महेश नगर, जयपुर -302015

(मो. 09680409246, मेल आईडी-surjeet.sur@gmail.com