बहादुर बेटी
(2)
ऐंजल ऐनी और आरती.
आनन्द विश्वास
शाम को आरती ने अपनी मम्मी को चमत्कारी सिक्के, रॉनली और अपने अदृश्य होने के विषय में सब कुछ बताया। यूँ तो आरती की मम्मी को इन सभी बातों में बहुत कम विश्वास था। फिर भी उन्हें अपनी बेटी आरती की योग्यता और समझदारी पर कोई शंका भी तो नहीं थी।
उन्होंने फ्लाइंग-डिसिज़ के बारे में काफी कुछ सुना भी था और पढ़ा भी था। दूसरे ग्रहों से वहाँ के ऐलियन्स लोग पृथ्वी-लोक पर आते-जाते ही रहते हैं। उनका ज्ञान और विज्ञान हम लोगों के ज्ञान और विज्ञान से काफी अधिक विकसित हो और यह भी सम्भव हो सकता है कि उन्होंने यहाँ पर अदृश्य और गुप्त ठिकाने भी बना रखे हों। जिसकी जानकारी हमें अभी तक न हो सकी हो। यू-2 स्पॉइ-प्लेन, सुपर एरिया-51 और यूएफओ जैसी अनेक घटनाऐं देश-विदेश के मीड़िया में, समाचार-पत्रों में और जन-मानस की जवान पर अक्सर चर्चा का विषय बनी ही रहती है।
साथ ही दूसरे ग्रहों पर जीवन के अस्तित्व को नकारा भी तो नहीं जा सकता। मालूम नहीं हो और यह कह दिया जाये कि ऐसा कुछ भी नहीं होता। ऐसा कह देना, उचित भी नहीं होता और ना ही बुद्धिमत्ता-पूर्ण।
आरती की मम्मी ने अपनी बेटी को उसके दिव्य-लोक के नये मित्र रॉनली से मिलने की अनुमति दे दी। साथ ही रॉनली से अपने मिलने की इच्छा भी व्यक्त कर दी और कहा कि यदि रॉनली को हम सब लोगों से मिलने में कोई आपत्ति न हो, तो एक मित्र होने के नाते, उसे अपने घर पर, चाय-नाश्ते के लिये बुलाया भी जा सकता है। इससे उसकी मित्रता की और वास्तविकता की परीक्षा भी हो जायेगी और आत्मीयता भी बढ़ जायेगी। आरती ने अपनी मम्मी के प्रस्ताव को उचित समझा।
निश्चित समय से पहले ही आरती उस स्थान पर पहुँच गई और रॉनली का इन्तजार करने लगी। आरती ने अपने किसी भी मित्र या साथी को अपने साथ रखना उचित नहीं समझा।
कारण भी स्पष्ट था, यदि रॉनली अपने वचन के अनुसार नहीं आया या फिर कोई गड़बड़ हुई तो उस पर होने वाले कटाक्षों को और हास-परिहास को वह कैसे सहन कर सकेगी। वह अपने अन्य साथियों के बीच तमाशा भी तो नहीं बनना चाहती थी और ना ही किसी प्रकार की अनावश्यक चर्चा का विषय ही।
पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और रॉनली निश्चित समय पर ही उपस्थित हो गया। पर अभी भी वह आरती के लिये अदृश्य ही था। वह आरती को देख भी सकता था और सुन भी सकता था।
उसने आरती से कहा-“आरती, तुम अपने पास में रखे हुये चमत्कारी सिक्के को अपने बायें हाथ की हथेली पर रखकर उसे अपने सीधे हाथ के अँगूठे से स्पर्श करो।”
रॉनली के कहने के अनुसार आरती ने अपने पास में रखे हुये सिक्के को बायें हाथ की हथेली पर रखा और फिर अपने सीधे हाथ के अँगूठे से जैसे ही स्पर्श किया, तुरन्त ही सिक्का ऐक्टीवेट हो गया और उसमें से रंग-बिरंगा चमकीला प्रकाश निकलने लगा।
और कुछ ही क्षणों के बाद उसमें से निकलने वाला चमकीला प्रकाश बन्द हो गया। अब उसके ऊपर हरे, गुलाबी और लाल रंग के छोटे-छोटे तीन चमकीले बटन दिखाई देने लगे। इसके बाद रॉनली ने आरती से गुलाबी रंग के बटन को दबाने के लिये कहा।
गुलाबी रंग के बटन को दबाते ही आरती ने अपने सामने रॉनली खड़ा हुआ पाया। पर आज वह अकेला नहीं था उसके साथ उसकी दो सगी बहनें भी थीं।
रॉनली के साथ दैवीय गुणों से सम्पन्न अन्य दो सौम्य, सुन्दर और सुशील बालिकाओं को देखकर आरती को बहुत ही अच्छा लगा और उसे मन में प्रसन्नता भी हुई।
उसने रॉनली से पूछ ही लिया-“रॉनली, तुम्हारे साथ में आई हुई ये लड़कियाँ कौन हैं। ये तो बहुत ही सुन्दर और प्यारी हैं।”
“आरती, ये दोनों मेरी सगी बहनें हैं यॉल्सी और चॉल्सी। कल मैंने जब तुम्हारे बारे में इन्हें बताया तो इनकी भी इच्छा तुमसे मिलने की हुई और ये तुमसे मिलने की जिद करने लगीं। इसीलिये मैं इन्हें भी अपने साथ ले आया हूँ।” रॉनली ने बताया।
“ये तो बहुत ही अच्छा किया, रॉनली तुमने। मुझे तो तुम्हारी दोनों बहन यॉल्सी और चॉल्सी से मिलकर बहुत ही अच्छा लग रहा है और मेरी मम्मी तो खुश-खुश ही हो जायेगी जब वे तुम सब लोगों से मिलेंगी।” और फिर यॉल्सी और चॉल्सी को अपने गले से लगाकर आरती ने आत्मीयता और प्रसन्नता भी व्यक्त की।
बड़ा ही अच्छा लगा यॉल्सी और चॉल्सी को आत्मीयता भरे स्वागत को पाकर और उससे भी अधिक प्रसन्नता तो इस बात की हुई कि अब वे आरती की मम्मी से भी मिल सकेंगीं और उनसे ढ़ेर सारी बातें भी कर सकेंगी।
और जब आरती ने रॉनली को यह बताया कि मेरी मम्मी भी तुमसे मिलना चाहती हैं। उन्हें भी तुम सब से मिलकर बहुत खुशी होगी। तब तो रॉनली की खुशी का ठिकाना ही न रहा और उससे भी ज्यादा खुशी थी यॉल्सी और चॉल्सी को।
आरती ने रॉनली, यॉल्सी और चॉल्सी सभी को अपने घर पर ही चलने का आग्रह किया और कहा-“चलो रॉनली, अब तो हम सब लोग अपने घर पर ही चलते हैं। वहीं पर बैठकर ढ़ेर सारी बातें भी करेंगे और साथ में खूब सारा नाश्ता भी करेंगे। बड़ा मज़ा आयेगा।”
रॉनली ने पल भर के लिए अपनी आँखें बन्द कीं और फिर आँखें खोलकर आरती से कहा-“आरती, अभी तो तुम्हारी मम्मी घर पर नहीं हैं। अभी तो वे तुम्हारी सकल ऑन्टी के घर पर गई हुईं हैं और तुम्हारे पापा भी अभी घर पर नहीं हैं। अभी तो घर पर कोई भी नहीं है, घर पर तो ताला लटका हुआ है।”
रॉनली की बातें सुनकर आरती को आश्चर्य हुआ और आश्चर्य से भी अधिक शंका। आरती को लगा कि रॉनली जानबूझ कर ही घर पर न चलने का बहाना बना रहा है और वह उसके घर पर जाना ही नहीं चाहता है। कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है। शंका ने घर कर लिया था आरती के मन में।
अतः उसने रॉनली से पूछ ही लिया-“रॉनली, तुम्हें कैसे पता चला कि मेरे मम्मी और पापा घर पर नहीं हैं।”
“आरती, क्या तुम्हें मेरे ऊपर विश्वास नहीं है। और क्या तुम ये सब कुछ अपनी आँखों से ही देखना चाहते हो, तभी विश्वास होगा तुम्हें, मुझ पर और मेरे शब्दों पर।” रॉनली ने प्रश्न किया।
“विश्वास तो है रॉनली। इसमें कोई शंका भी नहीं है और एक मित्र होने के नाते विश्वास तो होना ही चाहिये। पर, फिर भी मैं तुम्हारे इस कौतूहल को और चमत्कार को अपनी आँखों से देखना चाहती हूँ।” आरती ने रॉनली की अविश्वास की बात को दरकिनार करते हुये अपना स्पष्टीकरण दिया।
रॉनली ने अपने दोनों हाथों को आपस में रगड़ा और फिर सीधे हाथ की हथेली पर फूँक मारकर, हथेली को आरती की ओर बढ़ाते हुये कहा-“देखो आरती, इस हाथ की हथेली पर देखो। इस पर तुम्हें तुम्हारे घर का मेन-गेट, घर का नम्बर और घर के गेट पर लगा हुआ ताला दिखाई दे जायेगा।”
आरती ने रॉनली के कथन को सही पाया। वही गेट था, वही घर का नम्बर था और वही ताला था। उसके घर का दरवाजा बन्द था और दरवाजे पर ताला लगा हुआ था।
फिर रॉनली ने आरती से कहा-“देखो आरती, ये हैं तुम्हारी मम्मी, सकल ऑन्टी के घर पर, उनसे बातें कर रहीं हैं। अब क्या तुम उनकी आपस में होने वाली बातों को भी सुनना चाहोगे।”
अब तो आरती की आतुरता और जिज्ञासा और भी अधिक प्रबल हो गई। साथ ही रॉनली के शब्दों के प्रति विश्वास भी।
उसने रॉनली से कहा-“हाँ रॉनली, अब तो मैं अपनी मम्मी और सकल ऑन्टी के बीच होने वाली बातों को भी अपने कानों से सुनना चाहती हूँ। पर क्या तुम ऐसा भी कर सकते हो कि उनके बीच होने वाली बात-चीत भी मुझे स्पष्ट सुनाई दे सके।”
“हाँ हाँ, क्यों नहीं, आरती। ऐसा भी हो सकता है। हाँलाकि किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच होने वाली बातों को सुनना नैतिकता की दृष्टि से उचित नहीं होता है और हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। फिर भी, चूँकि वे हम लोगों के विषय में ही बातें कर रहे हैं अतः यह वार्तालाप सुना भी जा सकता है और देखा भी जा सकता है।” ऐसा कहकर रॉनली ने सिस्टम की वॉइस को ऑन कर दिया।
अब तो आरती को उसकी मम्मी और सकल ऑन्टी के बीच में होने वाली बातें भी स्पष्ट सुनाई देने लगीं। सभी वार्तालाप स्पष्ट सुनाई भी दे रहे थे और सब कुछ स्पष्ट दिखाई भी दे रहा था। बिलकुल स्पष्ट, टेलीविज़न के स्क्रीन की तरह।
कुछ ही पलों के बाद आरती की मम्मी ने सकल ऑन्टी के घर से विदा ली और अपने घर की ओर प्रस्थान किया।
रॉनली ने आरती से कहा-“आरती, अब कुछ ही समय के बाद तुम्हारी मम्मी अपने घर पर पहुँच जायेंगी। अतः अब हम सभी लोग तुम्हारे घर पर चल सकते हैं।”
“हाँ ठीक है रॉनली, अपन पार्क वाले रास्ते से घर चलते हैं। यह रास्ता हमें बहुत ही जल्दी घर पर पहुँचा देगा।” आरती ने अपने घर को जाने वाले रास्ते का मार्ग-दर्शन करते हुये रॉनली को सुझाव दिया।
“नहीं आरती, इस सबकी कोई आवश्यकता नहीं है। हम सब लोग वायु-मार्ग से पल भर में ही तुम्हारे घर पर पहुँच जायेंगे। बस कुछ देर के लिये एक-दूसरे का हाथ पकड़ लो।” रॉनली ने आरती और अपनी दोनों बहनों से कहा।
रॉनली ने अपना हाथ हवा में हिलाया और कुछ कहा। कुछ ही क्षणों के बाद आरती ने अपने आप को, रॉनली, यॉल्सी और चॉल्सी के साथ, अपने घर के दरवाजे पर पाया।
रॉनली ने आरती के घर की डोर-बैल बजाई। दरवाजा खुलते ही उसने अपने सामने पाया आरती की मम्मी को। ममता की साक्षात् दिव्य-स्वरूप माँ को, ममता-मयी माँ को।
दिव्य-लोक के बालकों को अपने बीच में पाकर आरती की मम्मी को बहुत ही अच्छा लगा और साथ ही अपनी बेटी आरती की सूज-बूझ और समझदारी पर गर्व भी हुआ।
रॉनली ने आरती की मम्मी के चरण-स्पर्श किए और यॉल्सी-चॉल्सी ने झुककर अभिवादन किया। आरती ने यॉल्सी और चॉल्सी के विषय में अपनी मम्मी को बताया।
बड़ा ही अच्छा लगा आरती की मम्मी को। अच्छे संस्कार ही तो होते हैं जो मानव हृदय में अपने आप अपना स्थान बना लेते हैं और आत्मीयता का सिंचन भी कर देते हैं।
पानी-पानी हो गई थी माँ की ममता। अपने हृदय से लगा लिया था आरती की मम्मी ने, किसी दूसरे लोक के अनजान और अपरिचित दिव्य-बालकों को। सरहद की सीमा ही नहीं, लोक और परलोक की सीमाओं को भी लाँघ गई थी माँ की ममता। कितनी विशाल होती है माँ की ममता। विशाल ब्रह्माण्ड को भी अपने आँचल में समेंट लेने की क्षमता होती है, *माँ* में और *माँ की ममता* में।
“आओ बेटा, तुम तो बड़ी दूर से आये हो, बहुत थक गये होगे, बैठो और थोड़ा आराम भी कर लो। मैं अभी तुम्हारे लिये पानी और कुछ नाश्ता लेकर आती हूँ। बड़ी भूख लग रही होगी।” ऐसा कहकर आरती की मम्मी किचिन की ओर चली गईं और भोले बाल-गोपाल माँ का आदेश पाकर सोफा की ओर हो लिये।
पानी पीने के बाद नाश्ते में अभी कुछ देरी थी और चुपचाप बैठना तो बच्चों को कहाँ भाता है। चंचलता और क्रियाशीलता ही तो बच्चों की पहचान होती है। अतः आरती ने अपने दिव्य-लोक के सभी मित्रों को अपने स्टडी-रूम में ले जाना उचित समझा। जहाँ उसने अपनी डॉल्स, टैडीबियर, देश-विदेश के इकठ्ठे किए हुए दुर्लभ कॉइन्स्, स्टैम्पस् आदि के कलैक्शन को दिखाया। इतना ही नहीं अपनी बुक्स् के कलैक्शन, प्राइजेज़, शील्डस् और अपने स्कूल के मित्रों के ढ़ेर सारे फोटोग्राफस् भी दिखाये।
रॉनली और उसकी दोनों बहनों को आरती की सरल-सादगी, निर्मल-मन, भोलापन और स्पष्ट बयानी बड़ी ही अच्छी लगी। न कोई आडम्बर, न कोई दिखावा, बिलकुल सीधा-सादा खुला मन और आत्मीयता भरा सरल व्यवहार। आरती अपने नये मित्रों से ऐसे घुल-मिल गई थी जैसे कि वे लोग, आज से नहीं, युगों-युगों से एक-दूसरे से परिचित हों।
यॉल्सी ने अपने भाई रॉनली से पता नहीं किस भाषा में कुछ कहा। शायद उनके दिव्य-लोक की कोई भाषा रही होगी या फिर कुछ और, पता नहीं। पर आरती कुछ भी न समझ सकी।
रॉनली पहले तो मुस्कुराया फिर उसने हँसते हुये यॉल्सी से कहा-“अच्छा रहेगा और फिर जैसा तुम उचित समझो।”
यॉल्सी ने अपना सिर हिलाकर सहमति जताई और चॉल्सी ने निर्णय को उचित ठहराया। इसके बाद रॉनली ने अपने सीधे हाथ को हवा में ऊपर-नीचे हिलाया और कुछ बोला भी। तुरन्त ही रबड़ की एक बहुत सुन्दर गुड़िया, लगभग तीन-चार फुट की रही होगी, रॉनली के हाथों में आ गई।
रॉनली ने उस रबड़ की गुड़िया को आरती के हाथों में देते हुये कहा-“आरती, यह चमत्कारी गुड़िया तुम यॉल्सी और चॉल्सी की ओर से एक छोटा-सा उपहार समझकर अपने पास रखो। इसी चमत्कारी गुड़िया के लिये ही यॉल्सी और चॉल्सी ने अभी-अभी मुझसे आग्रह किया था।”
सुन्दर और आकर्षक रबड़ की गुड़िया आरती के मन को भा गई। उसने यॉल्सी और चॉल्सी को धन्यवाद दिया और फिर गुड़िया को अपने सामने ही रखी कुर्सी पर बैठाते हुये रॉनली से कहा-“रॉनली, बड़ी ही प्यारी है यॉल्सी और चॉल्सी की ये अद्भुत भेंट। यह तो सुन्दर भी है और आकर्षक भी। मुझे तो बेहद पसन्द है तुम्हारी ये रबड़ की गुड़िया।”
“आरती, ये कोई सामान्य ऐसी-वैसी रबड़ की गुड़िया नहीं है, ये तो चमत्कारी गुड़िया है। इसका नाम ऐनी ऐंजल है। ये तुम्हारी हर समस्या का समाधान करने में समर्थ है। इसे तुम जब चाहो तब ऐक्टीवेट कर सकते हो और जब चाहो तब डीऐक्टीवेट कर सकते हो। और अब से ये तुम्हारे हर कमाण्ड का पालन करेगी।” रॉनली ने आरती को ऐंजल की विशेषता बताते हुये कहा।
“पर रॉनली, मैं इसे कैसे ऐक्टीवेट कर सकती हूँ। इसके बारे में तो मुझे कुछ भी नहीं मालूम है।” आरती ने अपनी विवशता को स्पष्ट करते हुए कहा।
“आरती, जब तुम अपने दायें हाथ के अँगूठे को इसके दायें हाथ के अँगूठे से स्पर्श करोगे तो यह ऐंजल अपने आप ऐक्टीवेट हो जायेगी। तब तुम इससे जो भी प्रश्न पूछोगे या इससे कोई अन्य जानकारी प्राप्त करना चाहोगे, तो उसका सही उत्तर भी देगी और तुम्हारी हर समस्या का समाधान भी करेगी।” रॉनली ने आरती को समझाया।
“अरे वाह, तब तो अपनी ऐनी ऐंजल हम सबके लिये बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकती है और इसकी सहायता से तो अनेक क्षेत्रों में ढ़ेर सारे उपयोगी और परजन हिताय कार्य भी किये जा सकते हैं। इतना ही नहीं, इसकी सहायता से तो हम अपने समाज में व्याप्त अनेक सामाजिक बुराइयों को भी दूर कर सकते हैं।” आरती ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा।
“इतना ही नहीं आरती, ऐनी ऐंजल से तुम जिस भी भाषा में बात करोगे, ये तुमसे उसी भाषा में बात कर सकती है। ये जंगली जानवर, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और अन्य ग्रह के सभी प्राणियों की भाषा को समझ सकती है और बोल भी सकती है। इसका आकार तुम छोटा और बड़ा कर सकते हो और दूसरों से अदृश्य भी कर सकते हो।” रॉनली ने आरती को समझाते हुये कहा।
“अच्छा रॉनली, तब तो ये ऐंजल बहुत ही चमत्कारी है। क्या मैं इसे अभी ऐक्टीवेट कर सकती हूँ।” आरती ने पूछा।
“हाँ, क्यों नहीं। तुम जब चाहो तब इसे ऐक्टीवेट कर सकते हो। और जब चाहो तब डीऐक्टीवेट भी कर सकते हो। पर तुम्हें इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि इसका उपयोग केवल अच्छे और परोपकारी कार्यों के लिये ही होना चाहिये। इसका दुरुपयोग करने पर यह शक्ति तुमसे हमेशा-हमेशा के लिए दूर चली जायेगी और फिर कभी भी वापस नहीं आ सकेगी।” रॉनली ने आरती को ऐंजल की विशेषताओं को समझाते हुये कहा।
“ठीक है रॉनली, मैं ऐनी ऐंजल की दिव्य-शक्ति और विद्या का उपयोग केवल अच्छे कार्यों के लिये और दूसरों की भलाई के लिये ही करूँगी।” आरती ने रॉनली को आश्वासन देते हुए कहा।
“अच्छा आरती, अब तुम इसे ऐक्टीवेट करके, इससे कुछ भी पूछ सकते हो।” रॉनली ने आरती से कहा।
और जैसे ही आरती ने अपने सीधे हाथ के अँगूठे से ऐंजल के सीधे हाथ के अँगूठे को स्पर्श किया, ऐनी ऐंजल ऐक्टीवेट हो गई। अब वह किसी भी समस्या का समाधान करने में सक्षम थी।
“आरती, अब अपनी ऐंजल ऐक्टीवेट हो चुकी है। अब तुम इससे कोई भी प्रश्न पूछ सकते हो। अपनी कोई भी समस्या इसके सामने रख सकते हो।” रॉनली ने आरती से कहा।
“क्या प्रश्न पूछूँ, रॉनली। कुछ तो बताओ। मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा है।” आरती ने रॉनली से कहा।
“अच्छा ठीक है, मैं ही इससे कोई कठिन-सा प्रश्न पूछता हूँ।” रॉनली ने कहा।
“हाँ रॉनली, तुम्हीं ऐनी ऐंजल से कोई प्रश्न पूछकर बताओ कि इससे किस प्रकार से प्रश्न पूछे जा सकते हैं।” आरती ने कहा।
“स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था।” रॉनली ने ऐनी ऐंजल से प्रश्न किया।
“स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म 12 जनवरी 1863 के दिन कोलकता में हुआ था।” ऐनी ऐंजल का उत्तर था।
“स्वामी विवेकानन्द जी के माता और पिता के नाम बताओ।” रॉनली ने ऐंजल से दूसरा प्रश्न किया।
“स्वामी विवेकानन्द जी की माता नाम भुवनेश्वरी देवी और उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्ता था।” ऐंजल का उत्तर था।
“हिन्दी साहित्य में आकाश-दीप कहानी के रचयिता का क्या नाम है।” और अब यह प्रश्न पूछा था आरती ने।
“हिन्दी साहित्य में आकाश-दीप कहानी के रचयिता का नाम जयशंकर प्रसाद है।” ऐंजल का उत्तर था।
“सुनीता विलियम्स का जन्म कब और कहाँ हुआ था।” आरती ने एक और प्रश्न किया।
“अन्तरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स का जन्म 19 सितम्बर सन् 1965 के दिन में ओहियो (अमेरिका) में हुआ था। इनके पिता का नाम डॉ दीपक पांड्या हैं, जो भारत में अहमदाबाद के पास झूलासण गाँव के रहने वाले हैं।” ऐना ऐंजल ने आरती के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा।
“अकबर दरबार के नव-रत्नों के नाम क्या-क्या थे, बताओ।” यह सोचकर कि इतना कठिन प्रश्न शायद ऐनी ऐंजल न बता सके, आरती ने पूछा।
“सम्राट अकबर के दरबार के नव-रत्नों के नाम, अबुल फ़ज़ल, अब्दुल रहींम खान-ए-खाना, बीरबल, फैज़ी, शेख मुबारक, राजा मान सिंह, टोडर मल, फकीर अज़िया-ओ-दीन और तानसेन थे।” ऐंजल ऐनी ने आरती के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा।
ऐनी ऐंजल का उत्तर सुनकर तो आरती उछल ही पड़ी। अपने बेस्ट-फ्रेन्ड रॉनली की बहनों से मिली, ऐसी आश्चर्यजनक भेंट ऐनी ऐंजल को पाकर आरती की खुशी का ठिकाना ही न रहा।
उसके मुँह से अचानक निकल ही पड़ा-“रॉनली, अब तो ऐनी ऐंजल मेरी बहुत सारी समस्याओं का समाधान कर सकेगी। और इसके सहयोग से तो मैं गरीब बच्चों की पढ़ाई में उनकी सहायता भी कर सकूँगी।”
“इतना ही नहीं आरती, यह ऐंजल तो तुम्हारी हर प्रकार की आवश्यकता की पूर्ति भी कर सकती है। इसके साथ तुम किसी भी लोक या ग्रह का भ्रमण भी कर सकते हो। इसके साथ तुम्हारे ऊपर आग, पानी, गर्मी-सर्दी, धूप और वायु-मण्डल का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ेगा। हर दीवार तुम्हारे लिये पार-दर्शी हो जायेगी। किसी भी स्थान पर होने वाली घटनाओं और वार्तालापों को आसानी से तुम देख भी सकते हो और सुन भी सकते हो।” रॉनली ने ऐंजल की महत्ता को समझाते हुये आरती से कहा।
“तो क्या मैं आकाश-मार्ग में इसके साथ भ्रमण कर सकती हूँ, रॉनली।” आरती ने पूछा।
“हाँ, क्यों नहीं। यह ऐंजल तुम्हारा मार्ग-दर्शन कर सकेगी।” रॉनली ने आरती की शंका का निवारण करते हुए कहा।
और तभी बाहर से डोर-बैल बजी, शायद गेट पर कोई था। मम्मी किचिन में थीं अतः आरती ने ही दरवाजा खोला। दरवाजा खोलते ही उसने अपनी फ्रेन्ड मानसी को अपने सामने पाया।
मानसी, वैसे तो मूल रूप से गुजरात के अहमदाबाद की रहने वाली है। अधिकतर तो वह गुजराती ही बोलती है पर कुछ शब्द हिन्दी और अंग्रेजी के मिक्स करके अपना काम चला लेती है। पर हिन्दी और अंग्रेजी को समझने में उसे कोई परेशानी नहीं होती है।
“हॉय मानसी, तेरी उमर तो बहुत लम्बी है। अभी-अभी तो मैं तुझे ही याद कर रही थी। देख तो सही मेरे घर पर कौन आया है। दिव्य-लोक से मेरा मित्र रॉनली और उसकी सगी बहनें यॉल्सी और चॉल्सी।” और ऐसा कहते-कहते वे दोनों स्टडी-रूम तक पहुँच चुके थे जहाँ पर कि रॉनली, यॉल्सी और चॉल्सी बैठे हुये थे।
“दिव्य-लोक थी आव्या छे तमारा मित्रो, आरती। आ लोक नी तो मने खबरज़ नथी। क्याँ आवेलो छे आ दिव्य-लोक।” मानसी ने आश्चर्यचकित होकर आरती से पूछा।
“ये दिव्य-लोक अपनी पृथ्वी से दूर, बहुत दूर कोई दूसरा ग्रह है। शायद उस ग्रह पर भी अपन जैसे ही आदमी रहते होंगे मानसी। ये लोग उसी ग्रह से अपने यहाँ पर आये हुये हैं। और इससे ज्यादा जानकारी तो मुझे भी नहीं है मानसी। अब मैं जब इनसे और बात-चीत करूँगी तब ही तो पता चल सकेगा इनके बारे में और इनके दिव्य-लोक के बारे में।” आरती ने मानसी को समझाते हुये कहा।
और तब तक तो दोनों स्टडी-रूम में पहुँच चुके थे। कमरे में सामने ही इतनी बड़ी तीन-चार फुट की रबड़ की गुड़िया को कुर्सी पर बैठा हुआ देखकर मानसी को बड़ा आजीब-सा लगा। पल भर के लिए तो उसका दिमाग ही चकरा गया और उसके मुँह से निकल ही पड़ा-“आरती, तारी आ रबड़ नी ढींगली तो बहु सारी छे। ऐ तो सरस मज़ा नी छे, आटली मोटी रबड़ नी ढींगली। आ ढींगली तू क्याँ थी लाई छे, आरती। हूँ पण लाविश।”
इधर ऐनी ऐंजल ऐक्टीवेट-मोड में थी अतः उसने तुरन्त ही मानसी को उत्तर दिया-“मानसी बैन, हूँ रबड़ नी ढींगली नथी, हूँ तो ऐंजल छूँ। म्हारो नाम ऐनी ऐंजल छे अने हूँ आरती बैन नी फास्ट-फ्रेन्ड छूँ।”
रबड़ की गुड़िया को मनुष्य की तरह से बात-चीत करते हुये देखकर तो मानसी चौंक ही गई। उसके आश्चर्य का तो ठिकाना ही न रहा और वह आरती से पूछ बैठी-“आरती, आ रबड़ नी ढींगली तो आपणा जेवी रीते बातो करे छे अने ऐ तो गुजराती पण बोली सके छे। सुपर छे तारी आ रबड़ नी ढींगली।”
“हाँ मानसी, ऐनी ऐंजल को मेरे बैस्ट-फ्रेन्ड रॉनली की बहन यॉल्सी और चॉल्सी ने मुझे गिफ्ट के रूप में दिया है।” आरती ने मानसी को समझाते हुये कहा और फिर सभी का एक-दूसरे से परिचय करवाया।
रॉनली और उसकी बहन यॉल्सी और चॉल्सी को मानसी से मिलकर अपार आनन्द की अनुभूति हुई। मानसी का बात-चीत करने का सुपर अंदाज, उसका हँसमुख चेहरा, विशेषकर उसका गुजराती बोलने का तरीका, स्पष्ट बयानी और भोलापन सबको अच्छा लगा। मानसी को भी दिव्य-लोक के दिव्य और अलौकिक बालकों से मिलकर बहुत अच्छा लगा।
तभी किचिन से आरती की मम्मी की आवाज सुनाई दी-“चलो बच्चो, गरमागरम नाश्ता तैयार है।”
सभी बच्चे मम्मी की आवाज सुनते ही अपनी बात-चीत के सिलसिले को बन्द कर डाइनिंग-टेबल पर पहुँच गये। माँ के हाथ का बना हुआ गरमागरम नाश्ता डाइनिंग-टेबल पर पहले से ही उनके आगमन की प्रतीक्षा कर रहा था। गरमागरम नाश्ता तो वैसे भी बालकों को प्रिय होता है और उसमें अगर माँ का प्यार भी मिला हो फिर तो सोने में सुहागा ही समझो।
सभी बच्चों ने जमकर खूब नाश्ता किया। बात-चीत और नाश्ते में कब समय बीत गया कुछ पता ही न चल सका। न तो बच्चों को ही और ना ही ममता-मयी माँ को ही।
घड़ी की ओर देखते हुए रॉनली ने आरती से कहा-“आरती, काफी समय हो गया है अब तो हमें चलना ही होगा, घर पर भी चिन्ता हो रही होगी।”
“ठीक है रॉनली, जैसा तुम उचित समझो और वैसे भी काफी समय हो चुका है अब तो।” आरती ने कहा।
“हाँ आरती, अभी तो हमें जाना होगा। पर शीघ्र ही हम लोग दुबारा मिलेंगे। तब हम सब लोग मिलकर विस्तार से सभी बातों की चर्चा कर सकेंगे और एक दूसरे से और अधिक परिचित हो सकेंगे।” रॉनली ने आरती को शीघ्र मिलने का आश्वसन दिया।
“और इस बीच रॉनली, यदि मैं तुमसे सम्पर्क करना चाहूँ तो कैसे सम्पर्क हो सकेगा।” आरती ने जानना चाहा।
“हाँ आरती, जब तुम अपने पास में रखे हुये चमत्कारी सिक्के को ऐक्टीवेट करके उसका लाल बटन दबाओगे तो तुम्हारी मुझसे तुरन्त ही बात हो सकेगी और यदि तुम सिक्के का गुलाबी बटन दबाओगे तो मैं कहीं पर भी होऊँगा, कुछ ही समय के अन्दर, मैं तुम्हारे पास पहुँच जाऊँगा।” रॉनली ने रहस्यमयी सिक्के का राज़ आरती को बताया।
“ठीक है रॉनली, मैं आवश्यकता पड़ने पर ही इसका उपयोग करूँगी, अन्यथा नहीं।” आरती ने आश्वसन दिया।
रॉनली ने आरती से कहा-“अब अगली बार जब भी मेरा यहाँ पर आना होगा तब मैं तुम्हें अपनी इच्छा-शक्ति यानि कि विल-पावर की दिव्य-शक्ति की डिवाइस दे दूँगा। तब तुम्हें चमत्कारी सिक्के की भी कोई आवश्यकता नहीं रहेगी और तब तुम अपनी आवश्यकताओं का और अपनी इच्छाओं का संचालन स्वयं ही कर सकोगे। अपनी इच्छा के अनुसार कहीं भी आ जा सकोगे।”
“जैसा तुम उचित समझो, रॉनली।” आरती ने अपनी स्वीकृति देते हुए रॉनली से कहा।
और फिर रॉनली ने आरती की मम्मी के चरण-स्पर्श किये और उसकी दोनों बहनों ने झुककर अभिवादन किया और जाने की अनुमति ली।
आरती की मम्मी ने ढ़ेर सारा आशीर्वाद दिव्य-लोक के प्यारे बालकों को देते हुये रॉनली से कहा-“बेटा रॉनली, जब भी तुम्हारा इस लोक में आना हो तो घर पर जरूर होकर जाना। इस घर को अपना ही घर समझना। तुम्हारी एक माँ यहाँ भी रहती है।”
“हाँ, मम्मी। अब जब-जब भी हमारा पृथ्वी-लोक पर आना होगा तो हम आपके दर्शन करने अवश्य ही आयेंगे। हमें भी आप सबकी बहुत याद आएगी, मम्मी जी। आपका स्नेह, प्यार और दुलार हम सबको आपके पास तक जरूर ही खींचकर ले आएगा।” और ऐसा कहते-कहते रॉनली का मन भारी हो गया।
मधुर स्नेह-मयी यादों को अपने मन में समेंटे हुए रॉनली, यॉल्सी और चॉल्सी ने आरती और मानसी से विदा ली। और कुछ ही पलों के बाद रॉनली और उसकी बहनों ने अपने दिव्य-लोक की ओर प्रस्थान किया।
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