Kiran Didi Ki Salah in Hindi Children Stories by Sandeep Meel books and stories PDF | Kiran Didi Ki Salah

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Kiran Didi Ki Salah

किरन दीदी की सलाह

एक थी बिमला। उम्र लगभग 45 के आसपास। सुबह घर का काम करने के बाद पड़ौसनों के पास चौकड़ी जमा लेती थी। सुबह से लेकर शाम तक चुगली करती रहती। गांव का ऐसा कोई घर नहीं था जिसकी उस चौकड़ी में चुगली नहीं होती। हर दिन किसी न किसी का नम्बर आता था। बिमला की इस चौकड़ी में शामिल थी— ममता, लक्ष्मी, तुलसी और वंदना। वंदना नई नई आयी थी। बाकी सब से वंदना का स्वभाव थोड़ा सा अलग था। वो कम बोलती और बिना कारण किसी की बुराई भी नहीं करती। इसलिये बिमला का वंदना पर गुस्सा भी रहता मगर वंदना उस पर कोई ध्यान नहीं देती।

एक दिन की बात है। पूरी मंडली लक्ष्मी के घर पर इक्कठी हुई। वे हर दिन अलग—अलग घर पर इक्कठी होती थी। बातचीत शुरू हुई।

बिमला बोली, श्वंदना तुम चुप क्यों रहती हो, कुछ तो बोला ?श्

वंदना शर्माते हुए कहा, श्भाभी जी, आप बड़ों के सामने मैं क्या बोलूं।श्

श्अपनी सास के बारे में, पति के बारे में कुछ तो बताओश् बिमला ने मुस्कराकर कहा।

तुलसी, ममता व लक्ष्मी ने भी समर्थन किया, श्हां, वंदना बोलो। तुम तो हमारी ही सुनती रहती हो।श्

वंदना उलझन में पड़ गई। क्या बोले ? न पति की बुराई कर सकती है और न ही सास की। अजीब संकट में फस गई।

श्कल बताऊँगी।श् वंदना ने पीछा छुड़ा लिया।

वंदना के परिवार में कुल तीन ही सदस्य थे। दोनों पति पत्नी और बुढ़ी माँ। सुखी परिवार था। किसी भी तरह का कोई लड़ाई झगड़ा नहीं। बच्चे थे नहीं। कोई समस्या थी तो पैसे की कमी की। वंदना का पति राहुल अकेला कमाता था। मजदूरी से केवल परिवार का पेट भरा जा सकता था। कमाने वाला एक और खाने वाले तीन हो तो आज के जमाने में मुश्किल काम है। राहुल सुबह काम पर जाता और शाम को लौटकर आता। बुढ़ी सास थी जो अपनी सहेलियों के पास चली जाती।

राहुल शाम को जब काम से लौटकर घर आया तो देखा कि वंदना कुछ सोच रही है।

राहुल ने पुछा, श्क्या सोच रही हो ?श्

श्कुछ नहीं।श् वंदना ने बात को टालने की कोशिश की।

श्नहीं, कुछ तो सोच रही थी, बताओ।श् राहुल ने प्यार से पुछा।

व्ांदना और राहुल एक दूसरे को समझते थे। सुख दुख को बांटते थे। इसलिए वंदना ने दिन वाली पूरी कहानी राहुल को सुना दी। पहले तो वो बहुत हंसा। फिर सोचने लगा।

सोचकर बोला, श्तुम दिन भर बेकार ही तो बैठी रहती हो। कुछ काम कर लो जिससे हमारी आमदनी भी हो जाये और तुम्हारा दिन भी मस्ती से गुजर जाये।श्

बात तो वंदना को भी जची मगर सवाल था कि क्या काम किया जाये ? वह भी रोज किसी की चुगली करना और सुनना पसंद नहीं करती थी। उसने उस दिन तो काम के बारे में राहुल से नहीं पूछा।

दूसरे दिन वंदना अपनी सहेलियों के पास गई। सब सहेलियां ममता के घर पर इक्कठी हुई। सब अपनी बातों में मस्त थी।

वंदना को देखते ही बिमला सबसे पहले बोली, श्हां, आज तो कुछ बताना पड़ेगा वंदना।श्

वंदना ने हंसकर कहा, श्भाभी जी जरूर बताऊँगी।श्

सबने विमला का समर्थन किया, श्तब देर क्यूँ, अभी बताओ।श्

वंदना ने अपना प्रस्ताव रखा, श्हम सब दिनभर खाली ही बैठी रहती हैं। हमारे घर में पैसे की भी तंगी रहती है। तो कुछ काम करें। मिलकर काम करेंगी तो आमदनी भी हो जायेगी और बातचीत भी।श्

बात सभी को अच्छी लगी। लेकिन काम क्या किया जाये ? क्योंकि पैसे की तंगी तो सभी के घर में रहती थी। उनके घर में भी अकेले उनके पति ही कमाने वाले थे और खर्चा रोज बढ़ रहा था। सब एक—दूसरे के मुँह की तरफ देखने लगी। कोई कुछ नहीं बोली। बोलना तो सब चाह रही थी मगर पहले कौन बोले। कुछ देर एकदम सन्नाटा रहा।

फिर सभी एक साथ बोलीं, श्बात तो तेरी सही है मगर हम क्या करें ?श्

इस सवाल पर तो वंदना भी चुप हो गई। क्योंकि उसे भी पता नहीं था कि क्या किया जाये। लेकिन उसे पूरा भरोसा था कि राहुल कुछ रास्ता जरूर निकाल देगा।

वंदना ने जवाब दिया, श्सोचते हैं, कुछ तो करना ही पड़ेगा।श्

हर रोज की तरह उस दिन इधर—उधर की बाते नहीं हुई। आज किसी की चुगली नहीं हुई। सब सोचने लगी। वंदना भी सोचने लगी क्योंकि सबसे बड़ी जिम्मेदारी तो उसी की थी। ममता ने सबको चाय पिलाई। चाय पिते समय भी सब चुप ही थी। दूसरे दिन मिलने का समय तय करके सब अपने अपने घर चली गईं। वंदना भी घर आकर काम में लग गई। घर में काम करने वाली वह अकेली ही थी। वंदना बार बार दरवाजे की तरफ देख रही थी कि कब राहुल आये और कब वह इस बारे में उससे पूछे।

राहुल जब काम से आया तो वंदना बोली, श्हमने तय किया है कि कुछ काम करें मगर क्या काम कर सकती हैं ?श्

राहुल मुस्कराया। अपना बैग अंदर रखकर बाहर आया।

राहुल ने तो पहले से ही सोच रखा था, श्तुम पापड़ बनाओ और उसको बेचो।श्

‘‘पापड़!''

व्ांदना को बात समझ में ही नहीं आयी। उसे लगा कि राहुल मजाक कर रहा है।

वंदना ने कहा, श्पापड़ तो वैसे ही हम घर के लिये बनाती हैं। बना लेंगी मगर बेचेेंगी कहां ?श्

राहुल बोला, श्तुम्हारा काम बनाना है। बेचने की व्यवस्था मैं कर दूंगा। मैं किरन दीदी को भेज दूंगा। वह सब समझा देगी।'

अब वंदना को बात समझ में आयी कि पापड़ तो शहर में भी खाये जाते है और हमें बनाना भी आता है। यह काम तो आराम से कर सकती हैं।

किरन दीदी दक संगठन चलाती हैं जो महिलाओं को घरेलू उधोग के लिए प्रोत्साहित और प्रशिक्षित करता है।

दूसरे दिन वंदना सुबह सुबह जल्दी काम पूरा करके सहेलियों के पास जाने को उतावली थी। वो पूरी तरह काम में लगी हुई थी। इतने में ही बिमला, लक्ष्मी, ममता सब की सब उसके घर ही पहुँच गई। उन्हें भी इस बात में रूची थी। इसलिए काम निपटा के आ गई। उनके घर में भी पैसे की तंगी रहती थी इसलिये हमेशा झगड़ा भी रहता था। बच्चों की फीस और बिल के लिये हमेशा उधार मांगना पड़ता था।

बैठते ही वे कुछ बात शुरू कर दी। वंदना सबको चाय बनाकर पिलाई। विमला बोली, श्वंदना बताओ हम क्या करें?श्

वंदना पास की चारपाई पर बैठी, श्भाभी जी, हम पापड़ बनाकर बेचेंगी।श्

पापड़ वाली बात उन्हें भी समझ में नहीं आयी।

श्पापड़ बना सकती हैं मगर बेचेंगी कैसे?श् सबने एक साथ पूछा।

वह हंसी, श्मैंने राहुल से बात कर ली है। किरन दीदी सब सिखा देगी।''

उसने किरन दीदी के बारे में सबको बताया।

फिर ममता ने पूरी योजना विस्तार से सबको समझा दी।

ममता ने कहा,‘‘ श्अरे, यह तो बहुत ही अच्छी बात है। मिलकर पापड़ भी बना लेंगी और बातचीत भी हो जायेगी।श्

अगले दिन किरन दीदी आयी और सब के साथ बात की। उन्होंने कहा—

‘‘समय की कीमत पहचानों भईया।लौट कर समय नहीं आता।''

सब उनकी बातें सुनकर ख्ुाश हुई। दीदी ने दूसरे दिन पापड़ बनाने का सामान लिखवा दिया और ले आने को कहा ताकि पापड़ बनाना सिखा सके। दाल और बाकी की चीजें घर से ले आयी और कुछ सामान राहुल से बजार से मंगवा लिया। किन दीदी के साथ दो ओर औरतें भी सिखाने आयी थी। पापड़ बनाना सबको अच्छी तरह आता था लेकिन दीदी ने सही मात्रा में सामान डाल कर पापड़ बनाना सिखाया। इतने सुन्दर और अच्छे पापड़ बनाये कि कुछ ही दिन में दूर—दूर तक उन पापड़ों की चर्चा होने लगी। वे पापड़ बनाकर दीदी को दे देती औद उनका संगठन पापड़ शहर की दुकान पर दे आता। एक तो सब मिलकर खुश रहती और दुसरा आमदनी भी होने लगी। इस कारण सबके घरों में भी खुशी का माहौल रहने लगा। बच्चों की फीस व कपडों के लिए कोई दिक्कत नहीं होती।

किरन दीदी ने उनका एक स्वयं सहायता ग्रुप बनाकर बैंक से लोन भी दिला दिया। अब तो वे पापड़ के साथ—साथ आचार भी बनाती हैं। पूरे गांव में उनके काम की सराहना होती है। सामाजिक इज्जत भी बढ़ी और घर में ख्ुाशहाली आ गई। गांव की अन्य महिलायें भी उनकी मंडली में जुड़ गई है। वे किरण दीदी की सलाह कभी नहीं भूलतीं—

‘‘समय की कीमत पहचानों भईया।

लौट कर समय नहीं आता।''