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मैं कोई साहित्यकार रचनाकार नहीं हूँ | एक सामान्य नागरिक की भांति जीवन व्यतीत करता हूँ | अपनी संस्कृति, देश, लोग, धर्म से प्यार करने वाला एक सामान्य नागरिक | धर्म से प्यार करने का तात्पर्य यह कतई नहीं कि मैं दुसरे धर्मों का सम्मान नहीं करता | दुसरे धर्म चाहे वो कोई से भी हों मेरे विचार में उनकी अहमियत उतनी ही है जितने मेरे अपने धर्म की | कहानी हम सभी के आस पास से होकर गुजरती है | आये दिन हमारे चारों तरफ हजारों घटनाएँ मुहं फाड़े कड़ी रहती हैं | जिस घटना से मन व्यथित या द्रवित होता है उसे काल्पनिक पात्रों में ढाल, शब्दों का सही चयन, भाषा शैली के विधान को सम्मान देते हुए एक माला में पिरो देना ही कहानीकार की विशेषता है | मैं अपने अल्पज्ञान के अनुसार यह विशेषता अपने स्वयं के अंदर महसूस करता हूँ | वास्तविकता से तो परिचय पाठक ही करा सकते हैं | मेरे अनुसार तो कोई घटना जिसे कहानी में बाँधा जाए और वह कहानी पाठकों तक एक सकारात्मक सन्देश मनोरंजन के माध्यम से पहुँचा कर उन्हें सचेत कर दे, सफल कहानी की श्रेणी में आती है | पुस्तक आपके हाथ में है, निर्णय आपका शिरोधार्य |
अज्ञात गज़ियाबदी
वंश
सत्तर वसंत पार कर चुकी वृन्दा को भगवान ने हर खुशी दी थी | गाड़ी, बंगला, धन, संपत्ति, सभ्रांत पति और दो बेटे | परन्तु प्रपौत्र की कमी ने जैसे वृन्दा के अस्तित्व को हिला कर रख दिया था | बड़े बेटे मयंक की पत्नि संतान को जन्म देने में सक्षम नहीं थी | अच्छे से अच्छे डाक्टर, वैध और नीम हकीम को दिखाया, परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ | छोटा बेटा रवि अमेरिका में रहता था | रवि और उसकी पत्नि शिखा उच्च स्तरीय शिक्षित थे | वृन्दा को उम्मीद थी कि मयंक कुल को आगे बढाने में उसकी सहायता कर पाए या नहीं पर रवि की पत्नि शिखा एक पुत्र को जन्म दे वंश को आगे अवश्य बढाएगी |
वृन्दा के ज़हन में विचारों का मंथन बड़ी तेज गति से हो रहा था | रवि और उसकी पढ़ी लिखी पत्नि ने विवाह के तुरंत पश्चात अपनी मन्शा ज़ाहिर कर दी कि वह केवल एक ही संतान पैदा करेंगे | रवि का मानना था कि जीवन में कितनी भी दौलत और शौहरत क्यों न हो, कम ही पड़ती है | फिर हमारे पास जो भी है दो हिस्सों में क्यों बांटे ? वृन्दा को रवि की इस बात से ऐतराज था | वृन्दा ने कभी इस बात पर रवि और शिखा से बहस तो नहीं की परन्तु भगवान से अवश्य प्रार्थना करती रही कि भगवान रवि को पहली संतान के रूप में एक पुत्र ही देना | वृन्दा का मकसद तो वंश को आगे बढ़ाना ही था | वह तो इतना ही चाहती थी कि उसके पति ज्योति स्वरूप का वंश उसके जीते जी आगे बढ़ता रहे |
वृन्दा का हृदय प्रथम बार टूट ही गया, जब रवि की पत्नि शिखा ने कनिका नाम की बेटी को जन्म दिया | वृन्दा जगदिखाई के लिए कृत्रिम मुस्कान चेहरे पर लिए सभी का अभिवादन और बधाइयां स्वीकार करती रही, परन्तु रात को पति के समक्ष श्यानागार में अपनी रुलाई ना रोक सकी |
“ रोती क्यों हो वृन्दा, आजकल बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं है | बेटियाँ आज समाज में जो नाम रोशन कर पा रहीं हैं वह बेटे नहीं कर पा रहे हैं |” ज्योति स्वरूप ने वृन्दा को सांत्वना देते हुए कहा |
“ कैसे फर्क नहीं है ? बेटी नाम रोशन भी करेगी, करेगी तो अपनी ससुराल का ही | मैं चाहती हूँ कि रवि के घर एक बेटा हो जो आपके नाम और वंश को आगे बढ़ा पाए मि. ज्योति स्वरूप शर्मा |” वृन्दा ने बिफरते हुए कहा |
“ ससुराल का नाम रोशन करेगी तो उनकी बहु के रूप में , बेटी तो वह हमारे खानदान की ही कहलाएगी | बेटा एक घर का नाम रोशन करता है मिसेज़ वृन्दा ज्योति स्वरूप, बेटी दो कुलों का नाम रोशन करती है | “ ज्योति स्वरूप ने तनिक कड़े लहजे में कहा |
“ आप अपने दार्शनिक विचार अपने पास ही रखें | शास्त्रों में भी लिखा है, जब तक पुत्र किसी वंश में पैदा ना हो पूर्वजों को मोक्ष नहीं मिलता | फिर मेरा और आपका दाह संस्कार भी बेटी ही करेगी क्या ? “ वृन्दा ने आह भरते हुए कहा |
“ कौन से शास्त्र की बात कर रही हो ? सीता को आज भी पूरा संसार जनकसुता कह कर ही पुकारता है, किसी को दशरथवधु कह कर पुकारते देखा है क्या ? और.....और रवि अभी बूढा नहीं हुआ है, और भी औलादें उसके घर जन्म लेंगी | “ ज्योति स्वरूप ने तुनक कर कहा |
“ वही तो रोना है, बेटा बहु निश्चय कर बैठे हैं कि एक ही संतान को जन्म दे, उसका लालन पालन करेंगे |” वृन्दा ने सिसकी लेते हुए कहा |
“ चिंता मत करो, रवि जब भारत आएगा मैं उससे बात करूँगा | मुझे पूर्ण विशवास है रवि जैसा आज्ञाकारी बेटा तुम्हे ना नहीं कहेगा | रवि तुम्हारे अहसास को समझता है वृन्दा | “ ज्योति स्वरूप के आश्वासन से वृन्दा ने कुछ राहत की सांस ली |
चार महीने बीते थे रवि एक महीने के प्रवास पर भारत आ गया | शिखा की गोद में छ: महीने की कनिका अत्यंत सुंदर लग रही थी | ज्योति स्वरूप ने कनिका को सीने से लगा लिया | वृन्दा का मन तो कनिका को प्यार करने का हुआ परन्तु पौत्र की चाहत ने उसके कदम पीछे खींच दिए |
मयंक, मयंक की पत्नि उमा, रवि, शिखा, वृन्दा और ज्योतिस्वरूप छत पर बैठे धुप सेंक रहे थे | मौका देख वृन्दा ने बात छेड़ते हुए रवि से कहा, “ रवि क्या तुमने पूर्ण निश्चय कर लिया है कि तुम अपने परिवार में एक और बच्चे को जन्म नहीं दोगे |”
“ हाँ माँ, एक बच्चे की पढ़ाई लिखाई, सुख सुविधा देना भी बहुत दुर्गम कार्य है | चाहे हमारे पास अथाह दौलत हो, आज के परिवेश में वह भी कम है | दौलत की ही तो अकेली बात नहीं है माँ, एक से अधिक बच्चे होने पर प्यार, अधिकार और जायदाद सभी कुछ बाँट जाता है |” रवि ने उत्तर दिया |
“ तुम्हें अपनी माँ के अहसास, भावना और विचारों का भी ख्याल रखना चाहिए रवि |” ज्योति स्वरूप ने बीच में बोलते हुए कहा | “ भगवान ने सभी कुछ दिया है हमें | चाँद सूरज जैसे पुत्र, धन और दौलत, हर तरह का सुख है हमारे पास | बस तुम्हारी माँ की इच्छा है कि तुम्हारे यहाँ एक पुत्र पैदा हो जाए | “
“ पापा आप अच्छी तरह जानते हैं मैं अमेरिका में रहता हूँ | अगर हमने दूसरे बच्चे को जन्म दिया तो लोग......लोग हमें बेवकूफ कहेंगे | कई देशों में तो दूसरे बच्चे के पैदा होने पर सामजिक और सरकारी बहिष्कार हो जाता है | फिर....फिर माँ की जिद अनाधिकृत है | जो लाड़ प्यार, धन दौलत और मान सम्मान ये मेरे पुत्र को देना चाहती हैं, इस बेटी को दे कर देखें | यह बेटी उस मान सम्मान में चार चाँद लगा सकती है | यह उस तरह माँ का नाम रोशन कर सकती है जिसकी माँ ने परिकल्पना भी ना की होगी | “ रवि के उत्तर पर ज्योतिस्वरूप ने वृन्दा की तरफ नज़रें उठा कर देखा | वृन्दा की आँखे डबडबा गई | वृन्दा कुछ कहना चाहती थी पर मुँह से बोल नहीं फूट रहे थे |
“ बड़े बेटे मयंक की पत्नि से यह दृश्य देखा न गया | उसे अपनी असक्षमता के अहसास हुआ तो सबके बीच ना रुक सकी और मुहं में साड़ी का पल्लू ठूंस अपने रुदन को रोकती नीचे की तरफ भागी | मयंक भी उमा के पीछे पीछे उसे सांत्वना देता नीचे चला गया |
वृन्दा के सब्र का बाँध टूट गया | वृन्दा ने तेज आवाज में कहना प्रारम्भ किया, “ रवि मैं इस बहस में पड़ना नहीं चाहती | मुझे अपने कुल के वंश के रूप में तुम्हारी संतान के रूप में एक पुत्र चाहिए | अगर तुम मेरा कहना नहीं मानोगे तो बचे जीवन में मैं एक भी दिन सुख चैन से नहीं बिता पाऊँगी, और.........और मरने के बाद भी मेरी आत्मा को चैन शायद ही मिल पाए |” इतना कह वृन्दा फूट फूट कर रोने लगी | रवि की पत्नि शिखा जो अब तक चुपचाप घटनाक्रम को देख रही थी, उठकर वृन्दा के पास बैठ गयी | शिखा ने वृन्दा का हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोली,
“ माँ जी, अगर हम आपके कहने से एक और संतान को जन्म दे भी दें, और अगर वह भी बेटी ही हुई तो क्या करेंगे ? “
“ ऐसा नहीं हो सकता शिखा, कहते हैं कि प्रार्थना में इतनी ताकत होती है की वह पत्थर को भी पिघला देती है | मैं भगवान की इतनी प्रार्थना करुँगी, इतनी प्रार्थना करुँगी कि भगवान को तुम्हें पुत्र ही देना पड़ेगा | “ रोते रोते वृन्दा ने शिखा को अपने सीने से लगा लिया |
शिखा ने स्वर को कड़ा करते हुए कहा, “ माँ जी, मैं आपसे वादा करती हूँ कि मैं और रवि एक और संतान को जन्म देंगे | परन्तु फिर बेटी हुई तो आप अपनी जिद छोड़ देंगी |” रवि कुछ कहना चाहता था मगर माँ की जिद और पत्नि की भावना को देख कुछ ना कह पाया |
इस बात को भी तीन वर्ष हो गए | विगत तीन वर्षों में वृन्दा ने घर के एक कमरे को खाली कर उसमे मंदिर बना लिया | कोई ऐसा देवी देवता नहीं था जो मंदिर में विद्यमान ना हो | वृन्दा दिन रात पूजा में व्यस्त रहती और पिछले तीन वर्षों में भारत का ऐसा शायद ही कोई तीर्थ स्थल था, जहां वृन्दा ने पत्थर की मूर्तियों के पैरों में अपना माथा नहीं घिसा हो | आखिर वृन्दा का पूजा पाठ रंग लायी और अमेरिका से शिखा के पैर भारी होने का समाचार आ ही गया |
वृन्दा बड़ी बेसबरी से नवम्बर माह का इन्तजार करने लगी क्योंकि बच्चे के जन्म की संभावना नवम्बर में ही थी | वृन्दा ने पूजन की दैनिक अवधि भी बढ़ा दी | एक डायरी में वह सारी मन्नते लिख कर रख ली जो पिछले तीन वर्षों में उसने देवी देवताओं के समक्ष मांगी थी | फिर भी जब चैन नहीं आया तो बीस अक्टूबर का हवाई आरक्षण अमेरिका के लिए करा लिया | ज्योति स्वरूप को साथ ले वृन्दा अमेरिका में रवि, शिखा और कनिका पास पहुँच गयी |
अमेरिका पहुँच वृन्दा दिन रात शिखा की सेवा करती | अंत में वह दिन भी आ गया जब शिखा अस्पताल के लिए रवाना हो गयी | शिखा अस्पताल के शल्य चिकित्सा केन्द्र में थी और वृन्दा बाहर बैठी प्रत्येक भगवान को अपनी प्रार्थना का हिसाब किताब दे रही थी | ज्योतिस्वरूप किसी अनहोनी की आशंका से ग्रसित भगवान से शिखा के लिए जीवनदान मांग रहा था |
थोड़ी ही देर में डॉक्टर कमरे से बाहर आया | डॉक्टर भी भारतीय ही था, अत: हिन्दी में ही उसने बताया कि माँ और बच्चा दोनों सकुशल हैं | उसने यह भी बताया कि शिखा ने पुत्री को जन्म दिया है | वृन्दा के हृदय पर तो जैसे वज्रघात हुआ |
शिखा अस्पताल से वापस घर आ गयी थी | पन्द्रह दिन तक वृन्दा ने किसी से भी सीधे मुँह बात नहीं की और पन्द्रह दिन पश्चात भारत वापस जाने का फरमान सुना डाला | रवि, शिखा, और ज्योति स्वरूप ने लाख मिन्नतें की परन्तु वृन्दा टस से मस ना हुई | ज्योतिस्वरूप और वृन्दा वापस भारत आ गए |
भारत आकर जैसे वृन्दा की दिनचर्या ही बदल गयी | अब वृन्दा का पूरा समय मंदिरनुमा कमरे में ही बीतता था | सारे दिन भक्ति में व्यस्त रहती | ऐसा लगता था जैसे वृन्दा भगवान से प्रश्न कर रही हो कि भगवान मेरी भक्ति का यह क्या परिणाम आपने मुझे दिया | उधर ज्योतिस्वरूप दिन रात दोनों बच्चियों अनिका और कनिका के फोटो लेकर बैठे रहते | ये वही साठ सत्तर फोटो थे जो अमेरिका से आते वक्त रवि ने ज्योति स्वरूप को दिए थे |
एक दिन अचानक रवि का अमेरिका से फोन आया कि वह छोटी बेटी अनिका का प्रथम जन्म दिन भारत में मनाना चाहता है | अत: वह सपरिवार भारत एक महीने के लिए आ रहा है | ज्योतिस्वरूप, मयंक और उमा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा | वृन्दा ने कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की |
ज्योतिस्वरूप, उमा और मयंक आज रवि को लेने एअरपोर्ट गए थे | वृन्दा घर पर ही थी क्योंकि वृन्दा ने एअरपोर्ट जाने से मना कर दिया | फ्लाईट सात घंटे देरी से आ रही थी तो ज्योतिस्वरूप ने वृन्दा को फोन कर सूचित कर दिया | अगले दिन सुबह ज्योति स्वरूप पुरे परिवार के साथ एअरपोर्ट से घर आ गये |
“ माँ कहीं नज़र नहीं आ रही, पापा | “ रवि ने पुरे घर में नज़रें घुमा कर देखते हुए पूछा | शिखा की नज़रें भी वृन्दा को खोजने का प्रयास कर रही थी |
“ बेटा, तुम्हारी माँ आजकल मंदिर में ही लगी रहती है | वहीँ खाती पीती है, वहीँ सोती है और वहीँ रहती है | “ ज्योतिस्वरूप ने उत्तर दिया |
“ मैं माँ से मिलकर आता हूँ |” रवि ने कनिका को गोद में उठाते हुए कहा | ज्योतिस्वरूप, मयंक,उमा और अनिका को गोद में लिए शिखा भी रवि के पीछे पीछे मंदिर की तरफ अग्रसर हो गए | मंदिर का दरवाजा अंदर से बंद था |
“माँ दरवाजा खोलो, देखो कौन आया है |” रवि ने दरवाज़ा खटखटाते हुए आवाज दी | बाकी पूरा परिवार रवि के पीछे खड़ा था |
चटखनी खुलने के साथ दरवाजा खुल गया | मंदिर के अंदर का दृश्य देख सभी की आँखे विस्मय से फटी की फटी रह गयी | मंदिर में भगवान की सभी मूर्तियां और तस्वीरें गायब थी | दीवारों पर ज्योतिस्वरूप द्वारा लाये गए अनिका और कनिका के फोटो बड़े ही सुसज्जित ढंग से लगाए गए थे | पूरा कमरा बच्चों के खेल खिलौनो से भरा था |
“ वृन्दा ये सब क्या है, कब किया तुमने यह सब ? “ ज्योतिस्वरूप ने अचम्भित होते हुए पूछा |
“ आपके एअरपोर्ट जाने के बाद | अब मैं समझ गयी हूँ, ये ही मेरा परिवार है और मेरा परिवार ही मेरा मंदिर है | ये दोनों बेटियाँ ही मेरे भगवान हैं | “ कहते कहते वृन्दा ने अनिका और कनिका रवि और शिखा से छीन अपने बाजुओं में भर लिया |
इति
कसक
मोहन राव हैदराबाद की फिरोज कालोनी में रहता था | बीस वर्षीय मोहन गोरे रंग का, अच्छी कद काठी का आकर्षक नौजवान युवक था | पढ़ाई लिखाई में मोहन औसतन होशियार था | मोहन के पिता भीमा राव सिंचाई विभाग में उच्च स्तर के अधिकारी थे | मोहन की माँ सरला एक सफल गृहणी थी | भीमा राव का संयुक्त परिवार था | परिवार में भीमा के अलावा दो भाई उनकी पत्नियां व बच्चों सहित चौदह लोग निवास करते थे | पैतृक मकान की एकमात्र रसोई में सभी का खाना संयुक्त रूप से बनता था | इस संयुक्तता का श्रेय मोहन की माँ सरला को ही जाता था, जिसने पूरे परिवार को एक सूत्र में पिरो कर रखा था |
सरला अपने नाम स्वरूप सरल स्वभाव की बावन वर्षीय महिला थी | इस परिवार को इकठ्ठा रखने में सरला का व्यक्तित्व एक विशेष स्थान रखता था | सरला पूरे परिवार को बहुत प्यार करती थी, परन्तु मोहन के प्रति सरला का आकर्षण एक विशेष स्थान रखता था | सरला इतनी खुशमिजाज़ महिला थी कि परिवार के किसी भी सदस्य ने सरला को क्रोधित होते नहीं देखा था | परिवार का प्रत्येक सदस्य ह्रदय से सरला का विशेष आदर करता था | सरला का प्रत्येक वाक्य इस परिवार के हर सदस्य के लिए पत्थर की लकीर होता था |
प्रात:काल का समय था | मंझली बहू विजय लक्ष्मी सभी का नाश्ता बना रही थी | छोटी बहू प्रतिभा घर की साफ़ सफाई में व्यस्त थी | सरला स्नान आदि से निवृत हो रसोई घर में आती है |
“ ला बहू नाश्ता मैं बनाती हूँ, तू जा और वल्लभ और नीता को स्कूल के लिए तैयार कर दे|” सरला ने मंझली बहू को आदेशात्मक स्वर में कहा |
“नहीं दीदी, मैं नाश्ता बनाकर बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर दूँगी|
अभी काफी समय है | आप चाहे तो थोडा सा आराम कर लें |”
“मैंने कहा ना, तुम बच्चों को तैयार करो | नाश्ता मैं बनाती हूँ, अभी इतनी बूढ़ी नहीं हुई की आराम की आवश्यकता पड़े |”
विजय लक्ष्मी ने वहाँ से हट जाना ही उचित समझा | विजय लक्ष्मी ने जाते जाते कहा, “ अब आपको आराम की आवश्यकता है, अगर अब भी आप ही सारे कार्य करती रहीं तो अवश्य ही हम छोटों की आदतें खराब होने में समय नहीं लगेगा |
”सरला ने प्यार से विजय लक्ष्मी के सर पर हाथ रखते हुए कहा, “ अगर छोटों से ही कार्य करवाते रहे, तो छोटों को बड़ों के अपने सिर पर होने का अहसास कहाँ से होगा | तुम विजय लक्ष्मीऔर वह प्रतिभा मेरे देवरों की पत्नियां अवश्य हो परन्तु मेरे लिए तुम दोनों मेरी बेटियों के ही सामान हो |”
विजय लक्ष्मी कुछ कहना चाह कर भी कुछ न कह पाई | उसकी आवाज़ गले में अटक कर रह गयी | आँखों से चंद बूंदे टपक कर गालों पर लुढक गयीं| फिर भी विजय लक्ष्मी के चेहरे पर मुस्कान जैसी अलौकिक छटा बिखर रही थी | ढेर सारा प्यार पाकर आंसू आँखों से अनायास ही टपक पड़े |सरला का यही व्यवहार सरला को विशिष्ट व उच्च स्थान प्रदान करता था | वैसे तो सरला का व्यवहार सबके साथ समान ही रहता परन्तु मोहन को सरला विशिष्ट स्थान देती थी | ये ही कारण था कि घर का हर सदस्य सरला को जितना आदर मान देता पर मोहन के लिए कहीं दिल के कोने में जलन की मामूली सी भावना अवश्य रहती |
प्रात:काल के दस बज रहे थे, भीमा राव ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे थे | बच्चे सभी कालिज और स्कूल जा चुके थे | सरला ने लंच बाक्स पति की तरफ बढाते हुए कहा, “ यह लीजिए लंच बाक्स और शाम को आते वक्त केक लेते आना | आज जनार्दन (छोटे देवर) के छोटे बेटे का जन्म दिन है |”
भीमा राव ने चुटकी लेते हुए कहा, “ तुम्हे सबका जन्म दिन खूब याद रहता है | तुम सबका ख़याल रखती हो, नहीं रखती तो सिर्फ मेरा ही ख्याल नहीं रखती हो |”
“ आपका ख्याल तो सदैव ही रखती हूँ | परमात्मा करे हर जन्म में आपका ख्याल रखने का मौका मुझे मिलता रहे, परन्तु आपको छोड़ हर व्यक्ति घर में मुझसे छोटा है | हर सदस्य की जिम्मेवारी निभाना मेरा कर्तव्य है| आप एक मिनट रुकियेगा, मैं अभी आती हूँ|” कह कर सरला अंदर के कमरे में चली गयी |
सरला ने बाहर आकर कुछ रूपये भीमा राव की तरफ बढाते हुए कहा,” यह पांच सौ रूपये रखिये | शाम को आते वक्त एक अच्छा सा वीडियो गेम भी लेते आना | वल्लभ कल अपने पिता से वीडियोगेम के लिए जिद कर रहा था |”
“ जिनसे जिद कर रहा था वही लाकर देंगे, मैं क्यों लाऊं |” भीमा राव ने छेड़ने की मुद्रा में कहा |
“वल्लभ के पिता जनार्दन पूरी तनख्वाह मेरे हाथ पर लाकर रखते हैं | इस प्रकार उनके पूरे खर्चे व आवश्यकताओं का विशेष ध्यान रखना मेरा कर्तव्य बनता है |” सरला का उत्तर सुन भीमा राव के मुख पर एक गम्भीर मुकान तैर गई |
नाश्ता कर, लंच बाक्स और पैसे ले भीमा राव ने ऑफिस का रुख किया| भीमा राव हनुमंत चौराहे तक ही गया था कि उसके कदम ठिठक कर रुक गए| सामने उनका पुत्र मोहन पान वाले की गुमठी पर खड़ा था |उन्हें अच्छी तरह अहसास थे कि इस समय मोहन को कालिज में होना चाहिए था | भीमा राव की इच्छा हुई कि वह मोहन से इस बारे में पूछें, परन्तु अगला दृश्य देख भीमा राव पर तो जैसे वज्रघात ही हो गया |
भीमा राव ने देखा, मोहन पान की गुमठी पर खड़ा रेड्डी हाउस की तरफ निहार रहा था | अचानक रेड्डी हाउस की दूसरी मंजिल पर एक लड़की बालकनी में आयी | लड़की को देखते ही मोहन ने लड़की को इंगित कर एक जोरदार सीटी बजा दी | लड़की ने घृणित नज़रों से मोहन की तरफ देखा और बुरा सा मुंह बना फ्लेट के अंदर चली गयी |
भीमा राव जस के तस खड़े रह गए | उन्हें अपने पुत्र मोहन से यह उम्मीद कतई नहीं थी | कुछ ही क्षणों में भीमा राव के दिमाग में कई तूफ़ान आये और चले गए |भीमा राव ने वहाँ मोहन से कुछ भी कहना उचित नहीं समझा | वह ऑफिस की तरफ चल दिए | परन्तु इस दृश्य को देखने के पश्चात भीमा राव का मानसिक तनाव इतना बढ़ गया कि उनके क़दमों ने उनका साथ छोड़ दिया | अपनी इस अवस्था को देख भीमा राव ने ऑफिस जाने का विचार त्याग दिया | बाजार से वीडियो गेम और केक खरीदने के पश्चात भीमा राव वापस घर आ गए |
“ आज आप ऑफिस नहीं गए |” पति को घर वापस आया देख सरला ने आश्चर्यचकित होकर पूछा |
‘ नहीं आज तबियत ठीक नहीं है | बहुत सिरदर्द और बदन दर्द है | वैसे भी बहुत सी छुट्टियाँ बाकी हैं| वल्लभ का जन्मदिन भी है, सोचा आज छुट्टी ही मना लूं |” कहते कहते भीमा राव ने केक व वीडियो गेम सरला की तरफ बढ़ा दिया |
सरला ने वीडियो गेम और केक एक तरफ रख दिया | भीमा राव अपने भावों व मुद्रा को छुपाने का लाख प्रयत्न कर रहे थे मगर सरला की नज़रों से वह अपने विचलित होने के भाव को नहीं छुपा पा रहे थे |
“ ठीक है, मैं चाय बनाकर लाती हूँ | आप कपडे बदल कर आराम करें |” सरला केक लेकर रसोई में चली गयी | सरला के दिमाग में भारी उथल पुथल हो रही थी | वह जानती थी कि भीमा राव गहन बीमारी में भी कार्यालय से छुट्टी नहीं लेते हैं | आज मामूली सर दर्द में छुट्टी कर घर वापस आ गए | अवश्य ही कोई बड़ा कारण होगा | सरला चाय का प्याला ले भीमा राव के समक्ष पहुँच गयी |
“ लीजिए चाय पी लीजिए, सर दर्द में आराम मिलेगा |”
भीमा राव चाय पीने लगे तो सरला ने प्रश्न किया, “ आपके कार्यालय ना जाने का कारण जानना चाहती हूँ | मैं जानती हूँ अत्यधिक बीमार होने पर भी आप ऑफिस से छुट्टी नहीं लेते हैं | मामूली सर दर्द में छुट्टी लेने की बात मेरे गले नहीं उतर रही है |”
लाख कोशिशों के पश्चात भी भीमा राव बात को न छुपा सके | सरला के तर्कयुक्त प्रश्नों के समक्ष भीमा राव की एक न चली | भीमा राव ने प्रात: घटित पूर्ण वृतांत सरला को सुना दिया | घटना को सुन सरला हतप्रभ थी | सरला को मोहन से कतई ऐसी उम्मीद नहीं थी | जिस मोहन से वह अत्यधिक प्यार करती थी, उसी मोहन के प्रति सरला के मुख पर घृणा के भाव स्पष्ट दिखलाई दे रहे थे | सरला चुपचाप उठी और शयनकक्ष में चली गयी |
सायंकाल के चार बजे मोहन के कालिज से आने का समय हो चला था | सरला गम्भीर और आवेशित मुद्रा में आँगन के बीचों बीच कुर्सी डाल बैठी थी | पूरा परिवार सरला के इस रूप को देखकर अचम्भित था परन्तु कोई भी कोई प्रश्न करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था |
क़दमों की आहट सुन सरला खड़ी हो गयी | मोहन कालिज से आया था |सरला ने क्रोधित मुद्रा में ही उसे अपने पास बुलाया और एक झन्नाटेदार तमाचा मोहन के गाल पर जमा दिया | तमाचे की गूँज इतनी सशक्त थी कि उसने घर में फैला सन्नाटा जैसे दूर कर दिया | पूरा परिवार ही आँगन में एकत्र हो गया |
मोहन का बुरा हाल था | मोहन की समझ में नहीं आ रहा था, जिस माँ ने उसे कभी उंगली तक नहीं लगाईं, आज किस अपराध वश उस माँ ने उसे दण्डित किया है | मोहन के गाल पर लाल लाल उंगलियों के निशान पड़ गए | मोहन उस स्थान से और सबकी नज़रों से हटना चाहता था परन्तु उसके कदम उसका साथ नहीं दे रहे थे | फिर भी कोशिश कर मोहन अपने कक्ष में आ बिस्तर पर पड़ गया |
पारिवारिक सदस्यों की लाख कोशिशों के बाद भी मोहन ने उस शाम खाना नहीं खाया | रात्रि दस बजे तक वह आज के प्रसंग और माँ के व्यवहार के बारे में सोचता रहा और उसी दशा मे थक हार मोहन निद्रा की गोद में समाता चला गया | कुछ देर पश्चात मोहन को अपने चेहरे पर कुछ गर्म बूंदों का अहसास हुआ | मोहन ने आँखे खोल धीरे से देखा तो मोहन के विस्मय की सीमा न रही | सरला उसके सिरहाने बैठी मोहन के बालों में उंगलीयाँ फिरा रही थी और अविरल अश्रुधारा उसके आँखों से प्रवाहित हो मोहन के चेहरे पर गिर रही थी | मोहन भी अपने आप पर नियंत्रण न रख सका और सरला के सीने से लग जोर जोर से रोने लगा | कुछ ही समय में शान्ति हुई और माता पुत्र के बीच चल रहा विलाप समाप्त हुआ |
“ माँ मैं अपना अपराध जान सकता हूँ, जिसकी सजा मुझे आज मिली है |”
“ तुमने जो गलती की है उसका अहसास तुम्हे खुद होना चाहिए, फिर भी मैं तुम्हे बता देती हूँ कि रेड्डी हाउस के सामने आज सुबह जो सीटी तुमने किसी लड़की को देख कर बजाई थी यह उसी का परिणाम है | “
मोहन को आभास हो चला था कि गलती उसी की है | अत: उसने कोई प्रश्न न करते हुए सर झुका लिया | सरला के मन को भी सुकून था कि मोहन ने मौन रूप से ही सही पर अपनी गलती को स्वीकार किया है | सरला ने कहना प्रारम्भ किया,
“मोहन, अपने जीवन का एक अध्याय मैंने आज तक किसी को नहीं बताया | यहाँ तक अपने इस दुःख दर्द को तीस साल के वैवाहिक जीवन में मैंने तुम्हारे पिता के साथ भी अपने इस सन्दर्भ को नहीं बांटा | आज घटित घटना को देखते हुए मैं उस दर्द को तुम्हारे साथ बांटना चाहती हूँ| परन्तु तुम्हे मेरी बात पर ध्यान देते हुए मेरे और हर नारी के मर्म को समझना पड़ेगा | अगर तुम मेरी बात को गंभीरता से लो तो तुम्हे मैं अपनी जीवन कथा का एक महत्वपूर्ण अंश सुनाना चाहती हूँ |”
“माँ मैं तुम्हारी सौगंध खाकर कहता हूँ कि तुम्हारी हर बात को गंभीरता से ले अपने जीवन में पूर्णरूप से उतारने का प्रयत्न करूँगा |”
“ तो सुनो मोहन, बात उस समय की है जब मैं चार या पांच वर्ष की थी | मेरी वाकपटुता और हाजिरजवाबी को देख सब खुश होते और मुझे वकील साहब कह कर पुकारते थे | वकील साहब सुनते सुनते यह अभिलाषा मेरे ह्रदय में घर कर गयी कि मुझे एक अच्छा वकील बनना है | मैं जी तोड़ मेहनत करती और हर कक्षा में अव्वल आती रही | दसवीं और बाहरवीं कक्षा में मैंने सोने का तमगा बोर्ड कि परीक्षा में अव्वल आ कर लिया | बाहरवीं के परीक्षा परिणाम के पश्चात मैं इसी खुशी में माँ के साथ मंदिर में प्रसाद चदाने जा रही थी |” कहते हुए सरला के कंठ से शब्दों ने साथ छोड़ दिया और आँखों से आंसुओं ने पुन: बहना प्रारम्भ कर दिया|
मोहन ने हथेली से माँ के आंसुओं को पोंछा और पूछा, “ फिर क्या हुआ माँ ?”
सरला ने सयंत हो पुन: कहना प्रारम्भ किया, “ मैं और मेरी माँ प्रसाद चढा कर लौट ही रहे थे कि तुम्हारी उम्र के एक मनचले लड़के ने मेरी ओर देख जोरदार सीटी बजा दी और साथ ही कुछ अश्लील टिप्पणी भी कर दी | मैं उस नवयुवक को ना ही जानती थी और ना ही पहचानती थी, अत: मैंने उस घटना को अनदेखा कर दिया | दूर खड़े मेरे पिता ने यह प्रसंग देख लिया | मेरे पिता के अहसास, जज्बात और विचारों में उसी वक्त फर्क आ गया | उन्हें अहसास हो गया कि उनकी पुत्री सयानी और विवाहयोग्य हो चुकी है |” सरला ने रुंधे गले से अपनी वेदना जारी रखते हुए कहा,
“ माँ के लाख समझाने पर भी मेरे पिता ने किसी की एक ना सुनी | मेरी पढ़ाई बंद कर दी गई | मैं बहुत रोई, गिडगिडाई परन्तु मेरी फ़रियाद का मेरे पिता पर कोई असर न हुआ | अगले ही वर्ष तुम्हारे पिता के साथ मेरी शादी तय कर दी गई |” कहते कहते सरला का विलाप और तेज हो गया, फिर भी उसने अपनी बात जारी रखते हुए कहां,
“मेरे माता पिता और मेरे सपने चकनाचूर हो चुके थे | वकील बनने और बनाने की ख्वाहिश ध्वस्त हो चुकी थी | मेरी चाहतों को मकबरों में तब्दील करने वाली वो सीटी और फब्ती मारने वाले उस युवक को यह अहसास भी नहीं हुआ होगा कि जवानी के जोश में उसके द्वारा की गई छोटी सी गलती ने किस प्रकार मेरी सभी आकाक्षाओं पर पानी फेर दिया |” इस कथन के साथ साथ सरला के मुख पर कठोरता आ चुकी थी | सरला के आंसूं रुक चुके थे और उसने आगे कहना प्रारम्भ किया |
‘ मैं नहीं चाहती कि मेरा पुत्र अपनी नादान गलतियों के कारण किसी लड़की के जीवन में आग लगा दे | तत्पश्चात भी अगर तुमने इस प्रकार की गलती भविष्य में की तो मुझे मृत ही पाओगे |”
मोहन ने अपना हाथ सरला के मुख पर रख सरला को चुप किया| मोहन के चेहरे पर प्रथम बार परिपक्वता दिखलाई दे रही थी | उसने गम्भीर मुद्रा में जवाब दिया, “ माँ मैं वचन देता हूँ आज के बाद आपको मेरी तरफ से कोई भी शिकायत नहीं मिलेगी | मैं अपने कृत्य पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा चाहता हूँ |” सरला के चेहरें पर संतुष्टि झलक रही थी | दोनों माँ बेटे उसी पलंग पर पसर गए | दोनों शांत थे मगर विचारों कि उथल पुथल में निद्रा से दूर थे |
अगले दिन से मोहन के व्यवहार और प्रतिक्रियाओं में अभूतपूर्व बदलाव था | औसतन पढ़ने वाला मोहन अव्वल आने लगा | फिजिक्स में एम् ए करने के पश्चात मोहन ने प्रशाशनिक सेवा में नौकरी पाने के लिए कोशिशें तेज कर दी | आई ए एस के द्वितीय प्रयास में मोहन सफल हो गया |
आज मोहन को आई ए एस अधिकारी बने बीस वर्ष हो गए | मोहन राव कानपुर देहात के जिलाधिकारी के रूप में कार्यरत है | पिता भीमा राव और सरला स्वर्ग सिधार चुके हैं | आज भी मोहन राव अगर किसी नवयुवक को सीटी बजाते या फब्ती कसते देखता है तो माँ को याद कर उसका हाथ स्वत: ही गाल पर चला जाता है परन्तु होठों पर मुस्कान के साथ आँखे भी नम हो जाती हैं |
इति
फ़सल
कुंवर पाल आज बहुत खुश था | आखिर वह कुंवरा से कुंवर पाल जी बन गया था | मंत्री पद की शपथ लेने के बाद सब लोग उसके लिए कुंवर पाल जी का ही संबोधन कर रहे थे | कुंवरा मंत्री भी ऐसा वैसा नहीं बल्कि प्रदेश का पहला युवा गृह मंत्री था | बंगले पर पहुँचा कुंवरा थकान से ग्रस्त सोफे पर पसर गया | सुबह मंत्री पद का शपथ समारोह और शाम को साधारण मकान से मंत्री के बंगले में शिफ्टिंग | हालांकि शिफ्टिंग के लिए अनगिनत हाथ मौजूद थे, परन्तु फिर भी उनके समक्ष खड़े होकर देखना भी थकन भरा कार्य था | पत्नी, बेटा और माँ, यही परिवार था कुँवरे का | सब लोग बहुत खुश थे | चौदह कमरों के बंगले ने सभी सदस्यों को मोहित कर लिया था |
रात का खाना गृह सचिव ने होटल से भिजवा दिया | साथ ही सूचना भी भेज दी कि कल से नौकर और रसोइया बंगले पर नियुक्त कर दिए गए हैं | पत्नी नन्दिनी, बेटा तरुण और माँ बैकुंठी खाना खा वातानुकूलित कमरे में सोने चले गए और मंत्री कुंवर पाल वहीँ सोफे पर लेट गया | यही होता है, जब अच्छा बिस्तर नहीं था तो कुंवरा रात्रि में थक हार चैन की नींद लेता था और आज आठ-आठ वातानुकूलित, गद्देदार शयन सुविधा होने के पश्चात भी सोफे पर पड़ा करवटें बदल रहा था | नींद जैसे आँखों से कोसों दूर थी |
सोफे पर लेटे लेटे उसका मष्तिष्क अतीत से अठखेलियां करने लगा | कुंवरा बीस वर्ष पुरानी घटना को याद कर रहा था जब वह बारहवीं कक्षा का छात्र था और महाराज पुर गांव में रहता था | कुंवरा पास के स्याना कस्बे के शासकीय विधालय में ही तो पढता था |
कुंवरा का गठीला और कसरती बदन ऊपर से जितना कठोर था, मन अंदर से उतना ही कोमल था | शिक्षक और छात्रों के प्रिय कुंवरा को सबने मिलकर जबरन छात्र संघ के चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए खड़ा कर दिया | सबके प्रिय कुंवर को इस चुनाव को जीतने में कोई परेशानी नहीं हुई | अध्यक्ष बनने के बाद उन्नति की प्रथम सीढ़ी चड़ते ही कुंवर पूरे इलाके में नेताजी के नाम से मशहूर हो गया | कुंवरा राजनीतिज्ञ नहीं था और कालिज के अध्यक्ष पद की क्या अहमियत है, वह नहीं जानता था | उसे तो केवल इतना ज्ञान था कि कालिज की पढ़ाई और उन्नति में जो भी बाधा आती है छात्रों, शिक्षकों और प्रशाशन के साथ मिल जुल कर एक नेक रास्ता निकाल ले | छात्र, शिक्षक और प्रशासन भी जानता था कि कुंवरा की नीयत में खोट नहीं है |
प्रथम बार उसे अपनी अहमियत का अहसास तब हुआ, जब एक बाहरी नेतानुमा युवक ने विधायक भँवर लाल के बुलावे की सूचना कुंवरा को दी | एक बारगी को तो कुंवरा घबरा गया परन्तु आगंतुक युवक के आश्वासन से वह संतुष्ट हो गया कि विधायक आगामी विधायकी के चुनाव पर कुंवरा से चर्चा करना चाहते हैं | युवक ने कुंवर को सख्त हिदायत भी दी कि होने वाली मुलाका़त के बारे में कुंवरा किसी से जिक्र नहीं करेगा |
निर्धारित पर युवक ने कुंवरा को विधायक से मिलवा दिया | विधायक भँवर लाल ने कुंवरा को मुस्कुराते हुए देखा | कुंवरा कुछ सहमा हुआ अवश्य था मगर डरा हुआ नहीं था | कुंवरा जानता था उसने किसी का अहित नहीं किया तो डर कैसा | विधायक ने कुंवरा के नजदीक आ कुंवरा को बैठने का आदेश दिया और पूछा,
“ क्या नाम है तुम्हारा ?”
“ जी कुंवरा....कुंवर पाल सिंह |”
“ ठाकुर हो ?”
“ जी....जी ..हाँ |”
“ देखो इस साल के अंत में विधायकी के चुनाव हैं | तुम छात्र संघ के अध्यक्ष हो | मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता पड़ेगी | वैसे भी तुम मेरी जाति और समाज से हो, तो मेरी मदद करना तुम्हारा फ़र्ज़ भी बनता है | अगर मैं चुनाव जीत जाता हूँ तो तुम्हें भी इसका फायदा अवश्य मिलेगा |”
“ जी....जी सर |” कुंवर ने संकोचवश कहा तो विधायकजी ने अपनापन जताते हुए आगे कहा,
“ देखो कुंवर पाल, संकोच मत करो | मुझे साफ़ बोलने वाले लोग अधिक पसंद हैं | अगर कोई संशय या हिचकिचाहट तो साफ बोल दो | ऐसा ना हो कि मैं तुमसे उम्मीद रखूं और वक्त आने पर तुम मुझे धोखा दे दो | मुझसे अगर कोई प्रश्न पूछना चाहो तो अभी पूछ लो |”
अपने लिए कुंवर पाल का संबोधन विधायक के मुँह से सुन कुंवरा का दिल बल्लियों उछल गया | कुंवरा के दिमाग की हलचल बढ़ गयी | हज़ारों प्रश्न दिमाग में उपज रहे थे | परन्तु प्रश्न पूछ उत्तर माँगना, वो भी विधायक से, उसे नागवार लग रहा था | फिर भी कुंवरा ने हिम्मत कर पूछा,
“ मैं....मैं आपकी चुनाव में मदद किस प्रकार कर सकता हूँ ?”
नेताजी जोर से हंस कर बोले, “ तुम स्वंम नहीं जानते कि तुम कहाँ खड़े हो ? तुम सीधे और सज्जन व्यक्ति हो ठाकुर | अपने सीधेपन और सज्जनता को केवल लोगो को दिखाने के लिए रखो | राजनीति की डोरी पकड़ अपने जीवन को ऊँचा बनाने की कोशिश करो | राजनिति का पहला पाठ यही कहता है कि प्रत्येक नेता को दो मुखौटे रखने पड़ते हैं| एक हृदय रुपी मुखौटा जिससे बातें बना जनता को लुभाना पड़ता है | दूसरा मष्तिष्क रूपी मुखौटा जिससे प्रगति के पथ पर आगे बढ़ना पड़ता है |”
विधायक जी के मुख मण्डल से अपने लिए ठाकुर का संबोधन सुन जैसे कुंवरा के शरीर में कई किलो खून बढ़ गया | कुंवरा का संकोच और झिझक काफी कम हो गयी थी | अब कुंवरा ने धैर्यपूर्वक अगला प्रश्न पूछा,
“दो मुखौटे पहन कर भी मैं आपकी मदद किस प्रकार कर पाऊंगा ?”
“ तुम तो निरे भोले हो कुंवर पाल, तुम्हे खोल कर समझाना ही पड़ेगा | मतदाता दो प्रकार के होते हैं | एक सरकारी कर्मचारी और उधोगपति | ये दोनों ही वर्ग हमारे काबू में है| उधोगपतियों से हमारे संबद्ध अच्छे रहते हैं क्योंकि हम उन्हें और वे हमें अक्सर आर्थिक फायदा पहुंचाते रहते हैं | सरकारी कर्मचारीयों का जहां तक सवाल है, अभी सरकार हमारी है| ज्यादातर कर्मचारी हमारे मातहत और हमारे अधिकार क्षेत्र में हैं और बचा कुचा हम दस प्रतिशत की डी ए की किश्त देकर उनके मतों पर कब्ज़ा कर लेंगे | दूसरे तबके में आती है आम जनता, जिसमे व्यापारी, छोटे कारोबारी, गरीब तबका और अन्य वर्ग आते हैं | ये लोग डर कर वोट देते हैं | डर वहीँ होता है जहाँ शक्ति होती है | शक्ति तुम्हारे पास है |”
“ मेरे पास शक्ति | मैं अभी भी नहीं समझा |” कुंवरा ने आश्चर्य से पूछा |
“ तुम तो वास्तव में ही बहुत भोले हो ठाकुर कुंवर पाल | तुम छात्र नेता हो | तुम्हारे पास छात्रों की ताकत है | तुम इस वर्ग को हर क्षेत्र में डरा सकते हो | जैसे .... जैसे, दस बीस लड़कों को भेज कोई भी कारण बना कुछ बस ट्रकों में तोड़ फोड करा दो | छात्र नेता होने के नाते भले बन ट्रक यूनियन के साथ मिल कर समझौता करा दो | बाजार में लूट कराओ और हमसे ही लड़ कर व्यापारियों को मुआवजा दिलवा दो | झोपडियों में आगजनी करवाओ, हम तुम्हारे आग्रह पर पुनर्वास करवा देंगे | फिर यह तबका तुम जहां कहोगे वहाँ वोट डालेगा | वैसे भी अब तो अठ्ठारह साल के मतदाता हैं और छात्र और युवा वर्ग तुम्हारे साथ है | पैसे की चिंता मत करना, बस इशारा करते रहना, हर जरुरत पूरी होगी |”
बहरहाल, एक दो घंटे की मंत्रणा में ही कुंवरा राजनीति के बहुत गुण सीख, कुंवरा से ठाकुर कुंवर पाल बन गया | चुनाव आ गए थे | कुंवरा पूरे दिन रात विधायक भंवर लाल के बताए नुस्खे आजमाता | रात में थोड़े समय भंवर लाल के साथ मंत्रणा कर अगले दिन के कार्यक्रम निर्धारित करता और अगले दिन फिर उन्हें कार्यान्वित कर देता |
भँवर लाल भारी बहुमत से जीते | विधायक ने पैसा भी खूब खर्च किया | लाखों रूपये तो खुद कुंवरा ने अपने हाथो से खर्च किये | दारु, मुर्गा, खाना आदि आदि | कुंवरा के हाथ से यह पैसा खर्च होने से इलाके की सारी अराजक ताकतें, कुंवरा के हाथ में आ गईं | हथियारबंद गुंडों से लेकर समाज के सफेदपोश भी कुंवरा से डरते और उसकी इज्ज़त भी करते | भंवर लाल विधायक के साथ साथ प्रदेश के मंत्री भी बन गए | मंत्री का हाथ कुंवरा के सिर पर होने की वजह से कुंवरा बिना किसी पद क्षेत्र का बेताज बादशाह बन गया |
कुंवरा की शिक्षा और भंवर लाल की राजनीति बदस्तूर प्रगति पर थी | हर पग पर भंवर लाल को ताकत की आवश्यकता होती और ताकत कुंवरा के पास थी | बीस वर्ष भँवर लाल और कुंवरा के गठबंधन को हो गए | अब भंवर लाल कि आँखे मुख्य मंत्री की कुर्सी पर थी | भंवर लाल ने अपनी अलग पार्टी बनाई और स्याना क्षेत्र से कुंवरा को विधायकी का टिकट दे दिया |
कुंवरा रिकार्ड मतों से जीता और मुख्य मंत्री भंवर लाल के नजदीकी होने के कारण गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी कँवर पाल को ही मिली |
कँवर पाल सोफे पर पड़ा यह सब सोच ही रहा था कि प्रात: काल की सूर्य किरणे उसके मुहँ पर पडी तो वह समझ गया की सवेरा हो गया | कुंवर पाल सोफे पर ही बैठ गया| थोड़ी देर में नन्दिनी भी शयनकक्ष से उठ कर बाहर आ गयी |
“ आप रात भर सोये नहीं शायद ?” नन्दिनी ने प्रश्न किया |
“ छात्र जीवन से गृह मंत्री बनने तक की जीवन यात्रा रात भर करता रहा, कैसे सो पाता ? खैर छोडो जल्दी से तैयार हो जाता हूँ | आठ बजे मुख्य मंत्री जी के घर पहुंचना है और वहीँ से विधान सभा को प्रस्थान करना है |” कँवर पाल ने हँसते हुए उत्तर दिया |
“ जी मंत्री जी |” नन्दिनी ने भी कुंवरपाल की हंसी में साथ दिया |
गृह मंत्री और मुख्य मंत्री दोनों बैठे मुख्य मंत्री निवास पर चाय का लुत्फ़ उठा रहे थे|
“ कैसा लग रहा है ठाकुर गृह मंत्री बनकर ?” भंवर लाल ने पूछा |
“ जी बहुत अच्छा |”
“अब आगे क्या प्रगति करना चाहते हो ?”
“ जी इतना बहुत है |”
“अरे संतुष्ट हो गए तो क्या जीवन है ?” भँवर लाल ने चहंक कर कहा |
“ फिर ?” कुंवर पाल ने पूछा |
“ अभी मुख्य मंत्री की कुर्सी के सपने नहीं दिखाई देने प्रारम्भ हुए ?”
“ आपके रहते मैं कैसे मुख्य मंत्री के सपने देखने का साहस कर सकता हूँ ? मैंने हर कदम पर आपसे कुछ न कुछ सीखा है परन्तु अपनों से गद्दारी करना आपने कभी नहीं सिखाया |” कुंवरपाल ने उदारतापूर्ण उत्तर दिया |
“ अरे मैं अपनों से गद्दारी करने को कब कह रहा हूँ ठाकुर | मैं देश के प्रधान मंत्री की कुर्सी का सपना देख रहां हूँ तो तुम्हे मुख्य मंत्री की कुर्सी का सपना देखने में क्या हर्ज है ?”
“ पर साहब आपके पास मुझे बनाने की ताकत थी | आज मैं जो भी हूँ वह आपका ही बनाया हुआ हूँ | आपके ही शब्दों में मैं कितना भोला और नासमझ था | परन्तु आपने मुझे उस सांचे में ढाला कि आज प्रदेश का गृह मंत्री हूँ |”
भंवर लाल अट्टाहस लगा हँस पड़ा और कई मिनट तक हँसता रहा | कुंवर पाल अनजानी निगाहों से भंवर लाल को देख रहा था और उसकी हंसीं के मतलब को समझने का प्रयास कर रहा था | कुछ पाल पश्चात भंवर लाल की हंसी रुकी और वह बोला, “ तुम आज भी भोले और बेवकूफ हो कुंवर पाल | मैंने तुम्हें बनाया नहीं काटा था | बीज के रूप में तुम्हारे माता पिता ने जिस फसल को लगाया था पकते ही मैंने उसे काट लिया | आज फिर बहुत सी फसल पक कर तैयार खड़ी है, उत्तम से उत्तम फसल चुन कर काटो और मुख्य मंत्री के सपने को आँखों से दूर मत होने दो |”
कुंवर पाल के मुख मण्डल पर मुस्कान तैर गई और वह समझ गया कि यह अंतिम राजनितिक दाव था, भंवर लाल ने जो राजनितिक दाव कँवर पाल के साथ सबसे पहले खेला था उसका ज्ञान अंत में दिया है |
इति
मुक्ति
रामदीन तेज गति से हर्षोल्लास के साथ रेलवे स्टेशन की तरफ लगभग भागते हुए जा रहा था | जाति से कुम्हार रामदीन बरसों से अपने जातिगत व्यवसाय से विरक्ति पा चुका था | आज परसा के कथन ने जैसे उसके कमजोर और बूढ़े शरीर में उर्जा का संचार ही कर दिया था | परसा ने बताया कि नए रेल मंत्री ने क़ानून बना दिया है कि स्टेशन और रेल गाड़ी में अब प्लास्टिक के गिलासों में चाय नहीं मिलेगी | अब से चाय मट्टी के कुल्हड़ों में बेची जायेगी | रेलवे के खान पान विभाग को एक अदद आदमी की तलाश है जो स्टेशन पर कुल्हडों की खेंप प्रदान कर सके | रामदीन अच्छी तरह जानता था कि परसा असत्य नहीं बोलता और ना परसा की कही बात अफवाह हो सकती है | परसा संवेदनशील है और साथ ही रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करता है |
गाँव से रेलवे स्टेशन का सफर चार किलोमीटर का था | पैदल ही आधा घंटे में यह सफर पूरा कर रामदीन ने स्टेशन पर परसा की तलाश प्रारम्भ कर दी | कुछ ही पलों में रामदीन परसा के समक्ष था और अगले ही पल परसा ने रामदीन को खान पान विभाग के मैनेजर से मिलवा दिया |
“ राम राम मालिक, मैं रामदीन कुम्हार | भरकाने गाँव से आया हूँ | हमारे गाँव का परसा यहाँ स्टेशन पर कुली का काम करता है | परसा ने बताया कि आपको कुल्हडो की आवश्यकता है | ” रामदीन ने सहमते स्वर में कहा |
मैनेजर ने रामदीन को ऊपर से नीचे तक निहारा | रामदीन की दयनीयता पर तरस खाने के बजाए मैनेजर के चेहरे पर कुटिल और सरकारी मुस्कान थी | मैनेजर ने अपनी छोटी छोटी मूंछों पर ताव देते हुए कहा, “ रामदीन कुल्हड़ तो हमें चाहिए | परन्तु सरकारी प्रक्रिया कुछ अलग प्रकार की होती है | कोई भी खरीद दारी हम सीधे सीधे किसी से नहीं कर सकते | हमें दो चार कुल्हड़ बनाने वालों से मूल्य पूछना पड़ेगा | जिसके दाम सबसे कम होंगे, उसे ही आदेश दिया जा सकेगा | फिलहाल हमें पांच हज़ार कुल्हड़ चाहियें | तुम अपने कुल्हड़ का दाम प्रति नग बतला दो | हम और लोगों से भी बात करेंगे | जिसके दाम कम होंगे उसी से खरीद दारी होगी |
मैनेजर की बात सुन रामदीन के माथे पर बल पड गए | रामदीन सोच में पड़ गया | रामदीन ने मैनेजर को लाख समझाने की कोशिश की, कि आस पास के गाँवों में दस दस मील तक रामदीन के अलावा कोई कुम्हार नहीं है | मैनेजर फिर भी टस से मस ना हुआ | आखिर रामदीन साठ पैसे प्रति कुल्हड़ के हिसाब से पांच हज़ार कुल्हड़ों का तीन हज़ार रुपया बता वापस गाँव लौट आया | रामदीन की आशाएं धूमिल होने लगी थी | परन्तु रामदीन के मन में एक आशा की किरण थी कि आस पास के इलाके में उसके अलावा और कोई कुम्हार नहीं था, मैनेजर जाएगा तो कहाँ ?
गाँव के कच्चे घर में बैठा रामदीन आज के प्रकरण के बारे में सोच ही रहा था कि पत्नि बरालो ने खाने की थाली सामने रख दी | थाली में दाल, रोटी और साथ में हरी मिर्च थी | इतना पैदल चलने से रामदीन की भूख सातवें आसमान पर थी | रामदीन ने जल्दी से थाली पकड़ खाना प्रारम्भ ही किया था कि पहले ही कौर में पत्थर दाल के साथ दाढ़ में घुस गया | पहले से परेशान रामदीन क्रोध से चिल्लाया, “ दाल बनाई है या पत्थर उबाल कर रख दिए हैं | पकाने से पहले दाल नहीं बीन सकती क्या ? “
“ दाल तो मैंने बीनी थी जी, पर कोई पत्थर रह गया होगा | क्या करूँ, मुआ चश्मा पुराना हो गया है | नम्बर बदल गया है जी | गलती से कोई पत्थर रह गया होगा जी | “ बरालो ने विनम्रता से कहा |
“ ठीक है | “ कहकर रामदीन ने पुन: अनमने ढंग से खाना प्रारम्भ किया | विचारों की उथल पुथल मष्तिष्क में निरंतर चल रही थी | पिछले दो वर्षों से उसने निश्चय कर रखा था कि जब भी कहीं से पैसों की आकस्मिक आवक होगी, अवश्य ही सबसे पहले वह पत्नि बरालो के चश्में के शीशे बदलवा देगा | पर पैसा आया नहीं और चश्में के शीशे बदले नहीं गए थे | पिछले दस वर्षों से धंधा तो बिलकुल ठप्प था | प्लास्टिक के गिलासों ने कुल्हड़ों का रिवाज खत्म कर दिया था और घर घर आयीं फ्रिजों ने जैसे घड़े की महत्वता समाप्त कर दी थी | शादी ब्याह में भी प्लास्टिक का प्रचलन हो गया |
रामदीन का पुश्तैनी धंधा जैसे समाप्त ही हो गया था | साल में एक बार दीपावली और करुआ चौथ पर चाक चलता था जब करुओं और दीपको की मांग आती थी | अन्यथा तो कभी किसी के यहाँ शादी ब्याह हुआ, या बच्चा हुआ तो आस पास के गाँवों की महिलायें चाक पूजने आ जाती थी | ये महिलायें जो पैसा दे जाती वही रामदीन की कमाई होती | दूसरी तरफ रामदीन का धंधा पीलिया झाड़ने का था जो बदस्तूर जारी था | सुबह सुबह पांच बजे दो चार लोग पीलिया झडवाने आते और दो पांच रूपये रामदीन के हाथ पर रख जाते | महंगाई के जमाने में इतने रूपये में मियाँ बीवी खर्चा चलना मुश्किल ही था | कभी कभी तो रामदीन भगवान का शुक्रिया अदा करता कि भगवान ने उसे आस औलाद नहीं दी | अपना तो पेट भरता नहीं औलाद का पेट कहाँ से भरता | भला हो पडौस के लाला का जो अपनी दुकान से रामदीन को उधार राशन देता रहता था | जो पैसा रामदीन के पास आता वह लाला को जमा करता रहता था | फिर भी रामदीन के नाम लाला के खाते में अच्छी रकम लिखी थी |
इसी उधेड़बुन में रामदीन खाना खा बिस्तर पर पड़ गया और थके हारे रामदीन को नींद ने घेर लिया | सुबह उठ रामदीन ने पहले तीन आगंतुकों का पीलिया झाड़ा और फिर बाहर चबूतरे पर बैठ चाय की चुस्कियों के साठ धूप का आनंद लेने लगा | तभी परसा आया और बताया कि स्टेशन पर मैनेजर साहब ने बुलाया है | रामदीन की बांछे खिल गयीं | एक ही घूंट में गर्म चाय गुड़क उसने गिलास बाहर रख पत्नि बरालो को गिलास बाहर से उठाने का निर्देश दिया और परसा के साथ स्टेशन की तरफ अग्रसर हो गया | स्टेशन पर वह सीधा मैनेजर के समक्ष जा बोला, “ राम राम, बाबूजी | आपने बुलाया | “
“हाँ रामदीन सरकारी आदेश आ गया है कि एक तारीख से मट्टी के कुल्हड़ों का इस्तेमाल होना है | अब हमारे पास समय नहीं है कि जगह जगह पूछ ताछ कर सकें | अत: मैं तुम्हें पांच हज़ार कुल्हड़ का आदेश देता हूँ | पास के दूसरे स्टेशन पर कुल्हड़ का आदेश पचास पैसे प्रति कुल्हड़ के हिसाब से दिया गया है | तुम्हें भी पचास पैसे कुल्हड़ ही मिल सकेगा | अगर तुम्हें मंजूर है तो बोलो अन्यथा मैं कोई और रास्ता निकालूं |”
“नहीं बाबूजी, हमें मंजूर है | एक पैसा कम कम लेंगे, कोई बात नहीं है | काम तो मिला, अरे बाबूजी हम तो उस मंत्री के आभारी हैं जिसने मट्टी के कुल्हड़ों के प्रचलन का आदेश दिया | कम से कम विलुप्त होती हमारी जाति के व्यवसाय के अस्तित्व को बचाने की किसी ने तो पहल की है | “ रामदीन ने कृतज्ञता पूर्वक कहा |
“ठीक है, पर ध्यान रहे कुल्हड़ की लम्बाई नौ सेंटीमीटर और चौड़ाई सात सेंटीमीटर होनी चाहिए | यह मेरा नहीं बल्कि सरकार का आदेश है |” मैनेजर ने कहा |
“चिंता मत करो बाबूजी, ऐसा ही होगा |” एक साथ कई बार हाथ जोड़ कर रामदीन मैनेजर के कमरे से निकल ही रहा था कि मैनेजर ने रामदीन को पुन: चेताते हुए कहा, “एक तारीख से पहले कुल्हड़ चाहिए | पांच दिन हैं तुम्हारे पास |”
“आ जायेंगे बाबूजी, मैं दिन रात काम करूँगा | पाच नहीं मैं चार दिन में ही कार्य समाप्त कर आपके पास कुल्हड़ पहुंचा दूंगा |” कहकर रामदीन गाँव की तरफ भागा | गाँव में आ चौधरी की मिन्नते कर, भैंसा बुग्गी माँग लाल पहाडिया से मट्टी भर लाया | इस कुल्हड़ के आदेश ने रामदीन के शरीर में इतनी तीव्रता भर दी कि वह स्वयं भूल गया कि वह जीवन के पचास बरस पार कर चुका है | मट्टी घर में डाल रामदीन चौधरी की भैंसा बुग्गी वापस कर सोच रहा था कि अगर सदैव यह कार्य मिलता रहा तो अवश्य ही कुछ दिनों में मट्टी लाने के लिए वह गधा खरीद लेगा | यह बात सही है, अमीर हक का पीछा कर उसे नहीं छोड़ता तो गरीब आशाओं का दामन कभी नहीं छोड़ता |
शाम होते ही रामदीन ने मट्टी को कूटना और रौंदना प्रारम्भ कर दिया | बरालो ने दो बाल्टियों से मट्टी में पानी मिलाना प्रारम्भ कर दिया | अरसे बाद दोनों पति पत्नि घर के आँगन में चाक के इर्द गिर्द इस प्रकार व्यस्त थे जैसे घर में किसी जश्न की तैयारी चल रही है | अँधेरा घिरा तो मट्टी चाक पर चढने के लिए तैयार थी | बरालो ने केरोसिन का दिया जला आँगन में रख दिया | दिए के मध्यम उजाले में रामदीन के हाथ इतनी तीव्र गति से चल रहे थे कि बरालो भी रामदीन के उत्साह को देख स्तब्ध थी | दो दिन में ही रामदीन की मेहनत रंग लाई और पांच हज़ार से ज्यादा कच्चे कुल्हड़ बनकर तैयार थे |
अब परेशानी थी कुल्हड़ पकाने कि | कुल्हड़ पकाने के लिए अलाव जलाना जरुरी था और अलाव जलाने के लिए आवश्यक ठी लकड़ी और कन्डो की व्यवस्था | कम से कम पांच मन लकड़ी और तीन सौ कंडे तो चाहिए ही थे | टाल वाले से बात कि तो तीन सौ रूपये नकद माँग रहा था, भाड़े के पचास रूपये अलग | रामदीन के पास लाला की दुकान के अलावा और कोई चारा नहीं था | लाला ने चार सौ रूपये रामदीन को उधार तो दे दिए परन्तु आगाह भी कर दिया कि बारह सौ रूपये पिछली उधारी और आज के चार सौ मिला कुल सोलह सौ रूपये हो गए | स्टेशन से पैसा आते ही सबसे पहले मेरा कर्जा चुकाओगे | रामदीन ने सहजता से हाँ भर दी |
रामदीन जल्दी से टाल वाले के पास गया | तीन सौ पचास रूपये के नकद भुगतान लाला द्वारा दिए गए पैसों से कर ईंधन घर ले आया | झट पट अलाव लगा कुल्हड़ पकने रख दिए गए | इस दौरान रामदीन ने देखा कि बरालो ईंधन उठाते रखते कई बार लकड़ी और आँगन में रखे पत्थरों से टकरा जाती | लाला द्वारा दिए गए चार सौ रूपये में पचास रूपये शेष थे | रामदीन जानता था कि कुल्हड़ अगले दिन शाम तक ही पक कर तैयार हो पायेंगे | अत: रामदीन ने निश्चय कर लिया कि कल सुबह सबस पहले वह पत्नि बरालो का चश्मा बनवाने शहर जाएगा |
अगले दिन रामदीन शहर की मशहूर चश्में की दुकान पर बरालो को ले गया | दुकानदार ने तीस रूपये आँखों के निरीक्षण और एक सौ बीस रूपये के नए शीशे सहित कुल एक सौ पचास रूपये का खर्चा बताया | रामदीन ने पचास रूपये अग्रिम जमा कर बरालो का चश्मा दुकानदार के पास जमा करा दिया | चार दिन बाद सौ रूपये और दे नए शीशों वाला चश्मा ले जाने का भरोसा दिला पति पत्नि गाँव वापस आ गए |
कुल्हड़ तैयार थे | स्टेशन तक पहुंचाने के लिए ठेले वाला सौ रूपये भाड़े के माँग रहा था | रामदीन कि जेब खाली थी और उसके पास एक ही बैंक था लाला | लाला ने फिर सौ रूपये देते हुए कह दिया, “ रामदीन कुल सत्रह सौ हो गए हैं | जैसे ही तुम्हें स्टेशन से पैसा मिले मेरा उधार निपटा देना |” रामदीन ने लाला कि हाँ में हाँ मिलाई और सौ रूपये लाला से ले ठेले वाले को दिए और सभी कुल्हड़ स्टेशन पहुंचा दिए | कुल्हड़ स्टोर में जमा कर रामदी बाहर आ फर्श पर बैठ गया |
शाम के समय जब मैनेजर साहब घर जाने लगे तो रामदीन को बाहर बैठे देख बोले, “अरे रामदीन, तुम अभी तक क्यों बैठे हो |”
“साहब कुल्हड़ों का भुगतान लेने के लिए |” रामदीन ने उत्तर दिया |
“अरे भाई, यह सरकारी काम है | ऐसे भुगतान नहीं होता है | अभी तुम्हारे माल की जांच होगी | बिल लेखा विभाग में जाएगा | वहाँ बिल पास होगा, तभी पैसे मिलेंगे | तुम कल सुबह आना |” मैनेजर ने कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए कहा |
“ठीक है बाबूजी |” कहकर रामदीन निढाल कदमों से उदास मन गाँव की तरफ चल दिया | रात भर रामदीन को नींद नहीं आ रही थी | वह लेटे लेटे येही सोच रहा था कि पच्चीस सौ रुपया मिलेगा | सत्रह सौ रुपया लाला का उधार चुका देगा | सौ रूपये में बरालो का चश्मा आ जाएगा | अगले कुल्हड़ों के आदेश पर रामदीन को ईंधन और भाड़े के लिए लाला के सामने हाथ नहीं फैलाने पड़ेंगे |
सुबह रामदीन नहा धोकर स्टेशन जाने की तैयारी कर ही रहा था कि परसा आ धमका, “ राम राम भैया |“ परसा ने आँगन में पड़ी टूटी चारपाई पर बैठते हुए कहा |
“राम राम परसा भैया, अच्छा हुआ तुम आ गये | मुझे भी स्टेशन जाना है पैसे लेने | दोनों साथ चलेंगे | समय भी कट जाएगा |” रामदीन ने प्रसन्नता ज़ाहिर करते हुए कहा |
“थोड़ी परेशानी है, रामदीन भैया | पैसे इतनी आसानी से मिलने वाले नहीं है |”
“क्यों परसा भैया ?” रामदीन के पैरों तले जमीन खिसक गयी |
“एक तो मैनेजर बाबू कह रहे थे कि कुल्हड़ का माप थोडा छोटा है | दूसरे वो लेखा विभाग में जो बैठा है स्साला हरामी है | हर भुगतान पर रिश्वत लेता है |”
“यह तो गलत बात है परसा भैया | मैं तो मर जाऊँगा | लाला से कर्ज ले ले कर पैसा लगाया है कि मिलेगा तो तो उसे वापस दे दूँगा |”
“अरे इतना परेशान मत हो जाओ रामदीन, सब काम हो जाते हैं | कुछ पैसा खर्च करना पड़ेगा | मैनेगर और लेखा विभाग वाले की मुट्ठी गर्म करोगे तो झट भुगतान हो जाएगा |” परसा ने दिलासा देते हुए कहा |
“पर भैया, अब मैं पैसा कहाँ से लाऊं | ना जाने वह कितना पैसा मांगे | तुम्ही कोई रास्ता निकालो परसा भैया |” रामदीन ने लगभग गिडगिडाते हुए कहा |
“ वैसे तो दोनों ही भूखे नंगे हैं | ज्यादा से ज्यादा कमाने की सोचते हैं | तुम छ: सात सौ रूपये लेकर आ जाओ, मैं सब समाधान करवा दूंगा |” परसा ने कहा और उठ कर चला गया | रामदीन सर पर हाथ रख कर बैठ गया | जब रामदीन की समझ में नहीं आया तो उसने लाला को जा पूरा वृतांत कह सुनाया | लाला हतप्रभ था | रामदीन और लाला ने निश्चय किया कि वह दोनों स्टेशन जायेंगे | जो भी खर्चा होगा लाला देगा | पैसा मिलते ही लाला आज के खर्च के साथ पिछले पुरे पैसे ले लेगा | रामदीन के पास लाला के प्रस्ताव को मानने के सिवा कोई और चारा नहीं था |
मैनेजर और लेखा विभाग वाला कोई भी पांच पांच सौ रूपये से कम पर राज़ी नहीं था | जब परसा और लाला ने समझाया कि रामदीन गरीब आदमी है तब तीन सौ रूपये मैनेजर और तीन सौ रूपये लेखा विभाग वाले ने ले रामदीन का पच्चीस सौ रूपये का भुगतान कर दिया | लाला ने तपाक से आज खर्चे सहित अपने तेहीस सौ रूपये अपनी जेब के हवाले कर बाकी के दो सौ रूपये रामदीन के हाथ पर रख दिए |
रामदीन, लाला और परसा स्टेशन से बाहर आ गए | रामदीन ने बताया कि उसे शहर से बरालो का चश्मा लेने जाना है | उसकी बात सुन लाला ने गाँव की राह ली, पर परसा रामदीन के साथ शहर की तरफ चल दिया |
“रामदीन भैया, तुम्हें मैंने इतने कुल्हड़ों का काम दिलाया | आगे के लिए तुम्हारी लाइन रेल में खुलवा दी | हमें क्या फायदा ?” परसा ने चलते चलते कहा |
“भैया तुम्हारी बहुत मेहरबानी है | मुझ गरीब को रास्ता दिखलाया है | पर तुम तो पहले से ही सर्व साधन संपन्न हो | मैं गरीब तुम्हें क्या फायदा पहुंचाऊंगा |”
“रामदीन तुम्हें याद है जवानी में हम लोग कितनी पार्टियां करते थे | महुआ की बोतल पर बोतल पी जाते थे तुम |”
“हाँ परसा भैया, वो ज़माना अलग था | माँ बाप का साया सर पर था | चिंता कोई थी नहीं | सबसे बड़ी बात घर में काम धंधा था इसलिए पैसे की कमी नहीं थी | अब तो बरसों हो गए महुआ को मुँह लगाए हुए | घर में रोती के भी लाले है तो महुआ कौन पिए |”
“रामदीन भैया, मैंने इतना बड़ा काम दिलाया, क्या मेरा इतना भी हक नहीं कि एक बोतल महुआ की पार्टी माँग सकूँ ?”
“नहीं परसा भैया, नाराज़ मत हो जाओ | गाँव चलकर मैं अवश्य ही तुम्हें महुआ की पार्टी दूंगा |”
बातों ही बातों में शहर और शहर में चश्में की दूकान में दोनों दोस्त आ पहुंचे | रामदीन ने चश्में की पर्ची दुकानदार को दिखाई तो दुकानदार ने छान बीन कर तीन घंटे बाद शाम सात बजे आने को कहा | दुकानदार के फरमान से परसा की बांछे खिल गयी | परसा ने वहीँ शहर में महुआ की पार्टी देने पर जोर देना प्रारम्भ कर दिया | थोड़ी ना नुकुर के बाद रामदीन भी पसीज गया | सच्चाई यह थी कि जेब में पड़े दो सौ रूपये ने रामदीन कि जुबान को भी महुआ के स्वाद के लिए लालायित कर दिया था |
दोनों दोस्त ठेके पर जा बैठे | रामदीन ने पहले सौ रूपये और चश्मे की पर्ची को एक साथ लपेट ऊपर की जेब में सुरक्षित रख लिया | दूसरा सौ का नोट परसा की तरफ बढ़ा महुआ की बोतल लाने का आग्रह किया | दोनों दोस्त बैठ महुआ का आनंद लेने लगे | महुआ के दौर में पहले रामदीन के और फिर परसा के भी सौ रूपये खर्च हो गए | दोनों दोस्त बचपन से आज तक की यादें संजोये महुआ का आनंद लेटे रहे | यह आनंद तब तक चलता रहा जब तक दोनों बेहोशी की हालत में वहीँ जमीन पर ना पसर गए |
रात के एक बजे ठेके पर काम करने वाले लड़के ने दोनों को जगाया | समय देख दोनों मित्र भौचक्के रह गए | कुछ होश आया तो दोनों ने पाया कि कोई जेबकतरा दोनों की जेब साफ़ कर पैसों के साथ साथ चश्में की पर्ची भी ले गया | मुंह लटका अर्ध्विछिप्त हालत में दोनों सूर्य निकलने से पहले दोनों अपने अपने घर में घुस गए |
रामदीन ने सुबह पूरा वृतांत बरालो को सुनाया | रामदीन ने दु:खी हॉते हुए आहत स्वर में बरालो को सांत्वना देते हुए कहा, “ चलो जो हुआ सो हुआ, पर लाला के कर्जे से मुक्ति मिल गयी |”
“और मुझे अपने पुराने और नाकारा चश्में से मुक्ति मिल गयी |” बरालो ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया | बरालो की आँख के एक कोने से एक आंसू की बूँद बरालो के गाल पर लुढक गयी |
इति
वह कौन था
रेलगाड़ी अपनी रफ़्तार पकड़ चुकी थी | ए सी थ्री टायर में प्रभात भारद्वाज, कलेक्टर जबलपुर अनमने भाव में बैठे थे | केबिन में प्रभात के अलावा केवल एक वयोवृद्ध मगर सभ्रांत व्यक्ति बैठे थे | अचानक प्रभात के फोन की घंटी घनघना उठी |
“हाँ दीदी |” प्रभात ने फोन उठाकर बोला | “दीदी मैंने कह दिया, मैं चार या पांच घंटे में इन्दोर पहुँच जाऊँगा | कृपया मेरे अधिकार मुझसे छीनने का प्रयत्न ना करना | मृत पिता को मुखाग्नि देकर उनका अंतिम संस्कार करने का दायित्व मेरा है | मैं अपने पिता का इकलौता पुत्र हूँ | मेरे पिता विष्णु स्वरूप का अंतिम संस्कार करने मैं स्वम आया रहा हूँ, आपसे विनती है थोड़ी देरी होने के कारण यह अधिकार किसी और को ना दिया जाए |” प्रभात ने अपनी दीदी की बात सुने बिना ही फोन काट दिया |
वृद्ध बड़ी तन्मयता से प्रभात और उसकी दीदी के बीच हुए वार्तलाप को सुन रहा था | प्रभात के मुख पर आयी झल्लाहट को भांपते हुए वृद्ध बोला, “क्या बात है बेटे |” प्रभात चौंक पड़ा | वह सोचने लगा की पचपन वर्षीय कलेक्टर को बेटे शब्द से संबोधित करने वाला यह व्यक्ति कौन है |
“कुछ नहीं अंकल |” प्रभात ने लगभग वृद्ध से पल्ला झाड़ते हुए कहा |
“बेटा, कहने से दुःख हल्का हो जाता है | मुझे गैर मत समझो | फिर तुमने मुझे अंकल कहा है | बताओ क्या बात है ?”
प्रभात के सब्र का बाँध टूट गे | कुछ आंसुओं की गर्म बूंदें गालों पर लुढक गयी | कलेक्टर जैसे संवेदनशील पद पर होते हुए भी प्रभात भावुक हो बोला, “ मेरे पिता का कल देहांत हो गया अंकल |”
“तुम झूठ बोल रहे हो | तुम्हारे पिता का देहांत हुए पचास वर्ष बीत चुके हैं |” वृद्ध ने तैश में आते हुए कहा |
“क्या बकते हो ?” प्रभात ने उम्र का लिहाज़ ना करते हुए दुगुने आवेश में कहा |
“बेटे, झूठ का आवरण कभी सत्य को नहीं ढक सकता | तुम्हारे पिता की शक्ल और शरीर की सरंचना उनकी अधेढ़ अवस्था में बिलकुल तुम्हारे समान थी | अगर कोई व्यक्ति तुम्हारे पिता के नज़दीक रहा है, वह तुम्हे देख कर कह सकता है कि तुम ईश्वर चन्द्र के पुत्र हो |” वृद्ध के शब्दों को सुन प्रभात की स्थिति काटो तो खून नहीं वाली हो गयी | लहू जैसे रगों में जम गया | थूक गले में अटक गया था | जबान ने जैसे कार्य करना बंद कर दिया था | धडकनों की रफ़्तार मंद हो गयी | मष्तिष्क में विचारों की लहरें सुनामी की भाँती हिलोरें लेने लगी |
प्रभात ने बचपन में कई लोगो से सुना था कि प्रभात मास्टर विष्णु स्वरूप का पुत्र नहीं बल्कि किसी ईश्वर के घर जन्मा था | प्रभात ने इन बातों को ना मानते हुए अपना जीवन पालन पोषण करने वाले अपने पिता मास्टर विष्णु स्वरूप को समर्पित कर दिया था |
“क्या सोचने लगे बेटे ? यह सत्य है कि तुम्हारा जन्म ईश्वर चन्द्र मल्होत्रा के घर और पालन पोषण मास्टर विष्णु स्वरूप के परिवार में हुआ |”
“आप यह सब कैसे जानते हैं |” प्रभात ने अटकते स्वर में पूछा |
“मेरा नाम बलराज कपूर है | मैं तुम्हारे जन्म देने वाले पिता ईश्वर चन्द्र के निकटतम सम्बन्धियों में एक हूँ | मैं राजगढ़ का रहने वाला हूँ | पुरे राजगढ़ में केवल एक ही पंजाबी परिवार है, इसलिए हम वहाँ काफी मशहूर हैं | कभी राजगढ़ आओ तो सब बातें विस्तार से बता पाऊंगा | तुम्हारी वर्तमान परिस्तिथि को देख मैं पुरानी बातों के वार्तालाप हेतु उचित समय अभी नहीं समझ पा रहा हूँ |”
“शायद आप सही कह रहे हैं अंकल |मैं आपके पास अवश्य आऊंगा | अभी तो मुझे इन्दोर पहुँच अपने पिता मास्टर विष्णु स्वरूप के अंतिम संस्कार में सम्मलित हो उन्हें मुखाग्नि देनी है | भरण पोषण करने वाले ही सही, वह पिता थे मेरे | मुझे उनके प्रति कर्तव्य निभाना ही पड़ेगा |”
प्रभात द्वारा कहे शब्दों को सुन बलराज मुस्कुरा पडा | प्रभात और बलराज के मुख पर पल प्रतिपल नए नए भावों का आवागमन हो रहा था | वातावरण में स्तब्धता फ़ैल चुकी थी | रात घिर आयी थी | वातावरण की गंभीरता को देखते हुए दोनों की ही आँखों से नींद कोसों दूर थी |
“क्या तुम्हें पुत्र होने के नाते मास्टर विष्णु स्वरूप को मुखाग्नि दे, मास्टर विष्णु स्वरूप की मुक्ति का रास्ता प्रशस्त करना चाहिए ?” बलराज ने मौन तोड़ते हुए कहा |
“अवश्य |” प्रभात आवेशित हो तेज स्वर में बोला | “मास्टर विष्णु स्वरूप का खून मेरे शरीर में नहीं तो क्या उन्होंने पिता की भाँती मेरे प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह किया है | मेरे हाथों मुखाग्नि दिया जाना उनका अधिकार और मेरा दायित्व है |” प्रभात ने उत्तर दिया |
“तब भी अगर मास्टर विष्णु स्वरूप तुम्हें जन्म देने वाले तुम्हारे असली माँ बाप का हत्यारा हो |” बलराज के प्रश्न पर प्रभात उछल पडा |
“आप क्या निरंतर बकवास करें जा रहे हैं | मुझे आपसे कोई बात नहीं सुननी है |” प्रभात का चेहरा लाल हो उठा |
“तुम सुनना नहीं चाहते पर मैं सुना कर रहूँगा बेटे, मास्टर विष्णु स्वरूप एक हत्यारा था | तुम्हारे माँ बाप का हत्यारा | धन, छल, कपट और धर्म की आड़ में मास्टर ने ईश्वर चन्द्र मल्होत्रा की प्रथम पुत्र संतान यानी तुम्हे ईश्वर चन्द्र से हड़प लिया | मजबूर और गरीब ईश्वर चन्द्र और उसकी पत्नी कुछ ना कर सके | तुम्हे अपनी कोख से जन्म देने वाली तुम्हारी माँ तुम्हारे विछोह में पल पल घुलती रही | तिल तिल कर मरते देखा है मैंने उस औरत को | तुमसे बिछडने के गम में वह दो वर्ष भी जिन्दा ना रह सकी | परिस्तिथिवश ईश्वर चन्द्र ने भी कुछ ही दिन में प्राण त्याग दिए | संसार तुम्हारे माता पिता की मौत को अकाल म्रत्यु कहे परन्तु मैं जानता हूँ इश्वर चन्द्र और उनकी पत्नी की हत्या हुई थी | उनका हत्यारा मास्टर विष्णु स्वरूप था, जिसने तुम्हे उन दोनों से अलग किया और तुम्हारा अलग होना ही उन दोनों की मौत का कारण बना |” बलराज का गला रुंध गया था | मास्टर की प्रति घृणित भाव बलराज के चेहरे पर साफ़ नज़र आ रहे हैं |
“आप झूठ बोल रहे हैं | आपको शर्म आनी चाहिए | आप मास्टर विष्णु स्वरूप जैसे निष्ठावान पिता पर इतना गंभीर आरोप लगा उन्हें उनके पुत्राधिकार से वंचित नहीं कर सकते |“ प्रभात को बिफरते देख बलराज ने सयंत स्वर में कहा |
“मैं जानता हूँ बेटे, तुम्हारे दिल को ठेस पहुंची है | विष्णु स्वरूप ने छलपूर्वक तुम्हें हथिया कर तुम्हारा अच्छी तरह लालन पोषण तो अवश्य किया | क्या तुम्हे जन्म देने वाले माँ बाप का अधिकार नहीं था कि उनका अंतिम संस्कार तुम्हारे हाथों हो | विष्णु स्वरूप ने ऐसा इस लिए नहीं करने दिया क्योंकि तुम उसके अधीन थे | विष्णु स्वरूप ने तुम्हारे असली माता पिता और तुम्हारे अधिकारों से तुम्हे वंचित रखा | यहाँ तक कि विष्णु स्वरूप ने उसकी अपनी पत्नी का क्रिया कर्म करने की इजाज़त तुम्हे इसलिये नहीं दी क्योंकि तुम्हारे शरीर में दौड़ने वाले खून से विष्णु स्वरूप का कोई वास्ता नहीं था |”
“बस करें आप, मुझे आपकी कोई बात नहीं सुननी है |” प्रभात क्रोधवश बोला |
“बस एक बात और बेटे, आखिरी बात | विष्णु स्वरूप ने तुम्हें अपने माँ बाप से अलग किया, तुम्हारे माँ बाप की मौत का जिम्मेदार भी वही था | तुम्हे जन्म देने वाले माता पिता और तुम्हारे अधिकारों का हनन भी विष्णु स्वरूप ने ही किया | विष्णु स्वरूप के प्रति अपने पुत्र दायित्व का निर्वाह कर अगर तुम अपने जन्म देने वाले दिवंगत माता पिता की आत्माओं को कष्ट पहुंचाना चाहते हो तो अब मुझे तुमसे कुछ नहीं कहना है |”
बलराज अपनी बात कह नजर झुका चुपचाप बैठ गया | प्रभात ने भी अपना सिर खिडकी से लगे शीशे से टिका दिया अपनी आँखें बंद कर ली | विचारों का कोलाहल प्रभात के समुद्र रूपी मष्तिष्क में उछालें ले रहा था |
अचानक झटके के साथ रेल रुकी तो प्रभात नींद से जागा | प्रभात के सामने बैठा बलराज कपूर नदारद था | प्रभात ने बाहर झाँक कर देखा इन्दोर आ चुका था | प्रभात ने सोच लिया शायद बलराज कपूर अपने गंतव्य राज गढ़ पर उतर गया होगा | प्रभात ने भी अटेंची उठा उतरने की तैयारी कर ली |
बाहर दीदी के पुत्र बेशु को खोजने में कोई खास परेशानी नहीं हुई | बेशु की कार में बैठ प्रभात सीधे शमसान घाट पहुँच गया | अंतिम संस्कार की सभी तैयारियां पूर्ण हो चुकी थी | पंडित ने जोर जोर से मंत्रोच्चारण प्रारंभ कर दिया | लोगों का हुजूम संस्कार वेदी के चारों तरफ गोला बनाए खड़ा था | फूटा मटका कंधे पर रख प्रभात ने मृत शरीर की परिक्रमा की | मुखाग्नि हेतु अग्नि दण्डिका प्रभात ने हाथों में ले ली | रात्रि रेल में घटित घटना और बलराज कपूर के शब्द प्रभात के दिल और दिमाग को झकझोर रहे थे |
“मैं इन्हें मुखाग्नि नहीं दूँगा |” कह प्रभात ने अग्नि दण्डिका को एक तरफ फेंक दिया और शमसान घाट से बाहर चला गया |
घर का माहौल ग़मगीन था | अंतिम संस्कार बेशु के हाथों करा सब लोग घर आ गए थे |
“तुमने ऐसा क्यों किया ?” दीदी ने कमरे में आ प्रभात से प्रश्न किया |
“मैं तुमसे पूछ रहीं हूँ प्रभात, तुमने ऐसा क्यों किया ?” प्रभात की कोई प्रतिक्रिया ना पाकर दीदी ने तनिक और तेज आवाज में पूछा |
प्रभात ने नज़र उठा कर दीदी की तरफ देखा | प्रभात सीधे दीदी के चरणों में गिर कर बोला, “मुझे माफ कर दो दीदी |”अश्रुधारा प्रभात के नयनों से अविरल झरने की भाँती बहने लगी | प्रभात ने रेल में हुई बलराज से मुलाक़ात का सम्पूर्ण वृतांत दीदी को कह सुनाया | वृतांत सुन दीदी के व्यथित मुख पर गंभीरता का आवरण चढ गया | दीदी संयम भरे शब्दों में बोली,
“प्रभात यह सत्य है कि तुम मेरे पिता विष्णु स्वरूप के पुत्र नहीं हो और तुमने दिवंगत विष्णु स्वरूप के घर में जन्म नहीं लिया है | इस बात को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि तुम्हारा जन्म ईश्वर चन्द्र मल्होत्रा के परिवार में हुआ था | पिता की म्रत्यु के पश्चात इस सत्य को कहने में भी मुझे कोई परहेज़ नहीं है कि मेरे पिता मास्टर विष्णु स्वरूप ने छलपूर्वक तुम्हे तुम्हारे माता पिता से हांसिल किया था | इससे बड़ा सत्य यह भी है कि मास्टर विष्णु स्वरूप ने एक कर्तव्यनिष्ठ पिता की भाँती तुम्हारा लालन पोषण किया था | मैं नहीं जानती इतने सारे सत्यों को तुम एक झूठ की चादर में लपेट कर क्यों बता रहे हो ?”
“मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ दीदी |”
“मैं कैसे मान लूं कि सच्चाई को उजागर करने के लिए तुम झूठ का सहारा नहीं ले रहे हो | तुम जिस बलराज कपूर की बात कर रहे हो, जो बलराज कपूर तुम्हारे कथनानुसार कल तुम्हें रेल में मिला था.... वह तुम्हे जन्म देने वाली तुम्हारी सगी माँ का भाई यानी तुम्हार मामा था | दरअसल तुम झूठ बोल रहे हो | बलराज कपूर तुम्हें नहीं मिल सकता | तुम्हारे झूठ बोलने का क्या कारण है मैं नहीं जानती परन्तु मैं इतना अवश्य जानती हूँ कि परिस्तिथियों के कारण तुम्हारा मानसिक संतुलन अभी ठीक नहीं है |तुम्हें आराम की सख्त आवश्यकता है | दीदी की बात सुन उसके मुख से कोई शब्द नहीं निकल पा रहा था | वह चुपचाप पलंग पर बैठ गया | दीदी भी समझ गयी कि प्रभात की मानसिक अवस्था दुरुस्त नहीं है | दीदी ने प्रभात को अकेला छोड़ आराम करने की सलाह दे डाली |
पूरी रात प्रभात पलंग पर करवटें बदलता रहा | सुबह की प्रथम किरण के साथ कार में बैठ उसने ड्राइवर को राज गढ़ चलने की हिदायत दे डाली | कल हुई थकान की वजह से घर के सभी सदस्य आराम से सो रहे थे | दो घंटे की यात्रा के बाद राजगढ़ आ गया | शहर के बाहर नीले बोर्ड पर लिखा था “कपूर फ़ार्म हाउस” | एक ग्रामीण से ज्ञात हो गया कि राजगढ़ में एक ही कपूर परिवार है | बोर्ड पर बने तीर के निशान की दिशा में कार आगे चल दी | दूर बना फ़ार्म हाउस और फ़ार्म हाउस के बीच बना बंगला दूर से ही सुशोभित हो रहा था |
फ़ार्म हाउस के गेट पर गार्ड खड़ा था | “कपूर साहब से मिलना है |” कहकर कार बंगले के पोर्च में जा रुकी | प्रभात ने उतर कर काल बैल का बटन दबा दिया | एक हष्ट पुष्ट और सुसज्जित युवक ने दरवाजा खोला |
“मुझे श्री बलराज कपूर से मिलना है |” प्रभात ने युवक को संबोधित किया | युवक चौंक पड़ा और अचंभित मुद्रा में प्रभात को निहार अंदर बैठने का इशारा कर दुसरे कमरे में चला गया | पभात सोफे पर बैठ बलराज कपूर का इंतज़ार करने लगा | बड़े से सुसज्जित ड्राइंग हाल में पड़े सोफे पर प्रभात बैठ गया | हाल में सुशोभित सामान और दीवारों पर बनी चित्रकारी ने जैसे प्रभात का मन मोह लिया | अचानक प्रभात की नज़र दीवार पर बने एक चित्र पर पडी | प्रभात के शरीर में जैसे बिजली कौंध गयी | यह चित्र बलराज कपूर का था | चित्र पर माला पड़ी हुई थी और नीचे लिखा था,
बलराज कपूर (१९०५-१९७५)
प्रभात बाहर की तरफ भाग कार में बैठ गया | प्रभात ने ड्राइवर को इन्दोर वापस चलने का आदेश दे डाला | कार तेज गति से दौड रही थी और कार से तेज एक प्रश्न प्रभात के मष्तिष्क में दौड रहा था कि अगर बलराज कपूर की म्रत्यु उन्नीस सौ पचहत्तर में हो चुकी है तो जो व्यक्ति मुझे रेल में मिला था “वह कौन था “ |
इति
मनिया
कमरे में सभी सामान सुसज्जित रूप से रखा था परन्तु कमरे में घूम रही मनिया के मष्तिष्क में विचारों के तूफ़ान ने जैसे मनिया के अस्तित्त्व को ध्वस्त कर दिया था | वह कमरे में पागलों की भाँती इधर से उधर घूम रही थी | मनिया ने राजीव बाबू के बारे में ऐसा कभी नहीं सोचा था | मनिया राजीव बाबू को एक नेकदिल और चरित्रवान व्यक्ति के रूप में जानती थी |लेकिन कल से घटित घटनाओं ने जैसे मनिया की सोच को ही बदल दिया था | वह येही सोच रही थी कि किस प्रकार कुछ ऐसा किया जाए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे |
मनिया का पति बल्लू अभी चोरी के शक में थाने में बंद था | मनिया सुबह थानेदार की भूखी नज़रों का सामना कर चुकी थी | आज ही नहीं बचपन से किशोरावस्था में कदम रखते ही उसने अहसास कर लिया था कि एक पुरुष की नज़रों में भूख किस प्रकार की होती है | सुंदरता धनी और ताकतवर लोगों के लिए वरदान होती है गरीबों के लिए यह एक अनकहा और बड़ा अभिशाप है, इसे मनिया के अतिरिक्त और कोई इतनी अच्छी तरह नहीं सोच सकता था | अठ्ठारवां वसंत पार करते ही तो जैसे मनिया के सुन्दर स्वरूप ने पुरे गांव के पुरुषों को आह भरने पर मजबूर कर दिया था |
गौर वर्ण, लंबी गरदन, काले घने लंबे बाल, नीली गहरी बड़ी बड़ी आँखें, लंबी तीखी नाक, सुडोल बदन, लंबा कद और मदमस्त चाल की मालकिन थी गढ़ी गांव की मनिया | उन्मुक्त यौवन के युगल प्रतीक ऐसे कि सयंमशाली पुरुष भी होश खो बैठने कि स्तिथि में ही रहते थे | पर किसी मर्द की इतनी हिम्मत ना होती कि मनिया से कुछ कह सके, उसका कारण मनिया का गंभीर व्यवहार और संजीदापन था | मनिया अपने बूढ़े गरीब माँ बाप की अकेली संतान थी | मनिया नाम उसे गांव वालों ने ही दिया था | माँ बाप ने तो सुकोमल फूल की भाँती सुन्दर बेटी का नाम मणिका रखा था | मनिया को याद था कि उसके असली नाम से केवल मास्साहब ने ही पुकारा था जब पहली जमात में दो चार दिन ही स्कूल गयी थी | बाकी तो पुरे गांव ने उसे मनिया कहना प्रारम्भ कर दिया था और आज मनिया के परिवार के सिवाए कोई नहीं जानता था कि इस सुन्दर लड़की का असली नाम मणिका है | पढ़ाई में मन ना लगने के कारण मनिया ने स्कूल तभी छोड़ दिया था |
जिस प्रकार पुष्प की सुगंध वातावरण को सुगन्धित कर देती है, मनिया के सौंदर्य की महक से पूरा गांव सुगन्धित था | मनिया के अपने गांव ही नहीं आस पास के दो चार गावों में भी मनिया का सौंदर्य कोतहूल का विषय था | पास में ही एक गांव था जलालपुर | जलालपुर के जमींदार सज्जन सिंह के कानों में भी मनिया के हुस्न का जिक्र पहुँच ही गया | नाम से सज्जन जमींदार ह्रदय से अत्यंत दुर्जन था | चार ब्याह कर चुकने के पश्चात भी सज्जन सिंह आज भी अकेला और विधुर कहलाता था | चारों पत्नियां किसी ना किसी दुर्घटना का शिकार हो परमात्मा को प्यारी हो चुकी थीं |
गांव गढ़ी में स्कूल के वार्षिकोत्सव का आयोजन था | पूरा गांव स्कूल में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम को देखने उत्सुक था | गांव वालों की इस उत्सुकता का विशेष कारण इस कार्यक्रम के में होने वाला मनिया का नृत्य था | जलालपुर के जमींदार सज्जन सिंह इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे | वार्षिकोत्सव में मनिया का नाच देख सज्जन सिंह तो जैसे पागल हो गया | जलालपुर आते ही सज्जन सिंह ने अपने विश्वसनीय लठैतों की सभा लगा ली और उदघोष कर दिया कि सज्जन सिंह को किसी भी हाल में मनिया दुल्हन के रूप में चाहिए | अगले ही दिन प्रात: काल की बेला में दीनू काका को दूत बना गढ़ी गांव भेजा गया | दीनू काका का फरमान और सज्जन सिंह की अभिलाषा जान मनिया के बूढ़े माँ बाप तो कांपने लगे मगर मनिया विचलित ना हुई | उसने दीनू काका से साफ़ शब्दों में व्यक्त कर दिया कि सज्जन सिंह से कह देना कि सज्जन सिंह को मनिया और सज्जन सिंह के बीच उम्र और दर्जे का फर्क समझना चाहिए | दीनू काका के लाख डराने और धमकाने से भी मनिया टस से मस ना हुई |
दीनू काका ने जब मनिया के व्यक्तव्य और इरादे सज्जन सिंह को सुनाये तो सज्जन सिंह बिफर पड़ा | सज्जन सिंह ने कभी नहीं सोचा था कि कोई लड़की उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा सकती है |
“दीनू, उस नामुराद लड़की को यह नहीं मालूम है कि सज्जन सिंह एक बार जिस चीज़ को प्राप्त करने का मन बना ले, भगवान भी सज्जन सिंह को उसके इरादे से हटा नहीं सकता | अगर उस लड़की को अपने सौंदर्य का इतना घमंड है तो सज्जन सिंह के इरादे भी अटल है | प्यार से नहीं मानी तो क्या, अब ताकत के सामने तो उसे झुकना ही पड़ेगा | कल सुबह दस बलवान पहलवानों को मय हथियार बल्लू पहलवान के नेतृत्व में गढ़ी गांव भेजो | साथ में घोड़ा गाड़ी पर लदी एक पालकी होनी चाहिए | मनिया से प्यार से हमारी हवेली में आकर हमारी पत्नी के रूप में बसर करने का प्रस्ताव रखा जाए | अगर नहीं मानती है तो जबरन उसे उठा लाया जाए | अगर कोई भी गढ़ी गांव का नागरिक कुछ कहे या बीच में बोले तो वह जिन्दा नहीं बचना चाहिए |” दीनू काका ने इसे अनुचित बतलाया परन्तु सज्जन सिंह ने उनकी एक ना सुनी |
सज्जन सिंह ने बल्लू पहलवान को विशेष रूप से नेतृत्व के लिए चुना था | वह जानता था कि हनुमान भक्त बल्लू बाल ब्रह्मचारी और बल से भरपूर है | बल्लू आज्ञाकारी और नमक हलाल भी है | बल्लू को जो भी आदेश दिया जाएगा वह उसका पालन निष्ठापूर्व और इमानदारी से करेगा | अन्य किसी और पर यह विशवास करना सज्जन सिंह को उचित नहीं लग रहा था | सज्जन सिंह को संदेह था कि बल्लू के अतिरिक्त कोई भी मनिया के सौंदर्य को देख विचलित हो अपने ईमान से समझौता कर सकता है | सज्जन सिंह कतई नहीं चाहता था कि उसके सिवा किसी और की बुरी नज़र मनिया पर पड़े |
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार बल्लू पहलवान दस बारह लोगो के सात हथियार सहित मनिया के घर पहुँच गया | पूरा गांव इस दल के पीछे मूक दर्शक की भाँती चल रहा था | किसी की भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि पूछ सके कि दिन दहाड़े इस गांव में हथियार ले डकैतों की भाँती आने का क्या तात्पर्य है |
“आप तुरंत तैयार हो बाहर खड़ी पालकी में बैठ जाएँ | जलालपुर के जमींदार सज्जन सिंह के हुक्म से हम आपको जलालपुर ले जाने के लिए आयें हैं |” बल्लू ने नज़र नीची रखे बड़े अदब से मनिया के समक्ष प्रार्थना भरे स्वर में कहा |
“अगर मैं ना कर दूं तो |” मनिया ने साहस पूर्ण उत्तर दिया | मनिया के माता पिता एक कोने में खड़े थर थर काँप रहे थे | बल्लू को भी मनिया के इस दुस्साहस का अनुमान नहीं था |
“क्षमा करें, फिर हमें जबरन आपको उठा कर ले जाना पड़ेगा |” बल्लू ने अत्यंत शालीनता से उत्तर दिया |
“मैंने आपको कई बार देखा है | आप वास्तव में एक सज्जन पुरुष हैं | आस पास के गांवों के सभी पुरुषों की आँखों में मैंने वासना की भूख को देखा है | परन्तु मैं जानती हूँ कि आपने कभी मुझे आँख उठाकर भी नहीं देखा | मैं नहीं सोच सकती कि आप जैसे बलशाली और शरीफ् व्यक्ति इस प्रकार का अनुचित दुस्साहस कर सकते हैं |” मनिया बोली |
“आप कह रही हैं | नारी के बारे में सोचना या उसे गन्दी नज़र से देखना भी मुझ बाल ब्रह्मचारी के लिए पाप है | परन्तु ऐसा कभी मत सोचना कि इस कारण से मैं अपने मालिक के आदेश की अवहेलना कर दूंगा | मैंने जमींदार सज्जन सिंह का नमक खाया है | उनके आदेश का पालन करने हेतु मैं अपने प्राणों की आहुति भी दे सकता हूँ |“
“नारी के ऊपर बल प्रयोग कर अगर आप अपने मालिक के आदेश का पालन करना चाहते हैं तो अवश्य ही इतिहास आप जैसे बलशाली पुरुष का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख आपको सम्मान अवश्य देगा | फिर भी मैं आपसे प्रार्थना करुँगी कि आप अपने मालिक के आदेश का पालन तो अवश्य करें मगर मेरे माँ बाप की इज्जत को नीलाम ना करें | मैं मनिया आपसे वादा करती हूँ कि आपकी मजबूरी समझते हुए मैं स्वेच्छा से आपके साथ जलालपुर चलूंगी | परन्तु अभी नहीं, आप रात्रि को अँधेरा होने के पश्चात अकेले पालकी लेकर आयें, मुझे आपके साथ चलने में कोई आपत्ति नहीं होगी | इस समय आपके साथ जाकर मैं अपने माँ बाप की प्रतिष्ठा को समाप्त करना नहीं चाहती | आपसे एक और नम्र निवेदन हैं कि अभी आप जब पालकी खाली ले कर जाएँ तो पालकी के पट खोल दें जिससे गांव वालों को संज्ञान रहे कि आप मुझे ले जाने में सफल ना हो सके |” मनिया ने कह मुंह दूसरी तरफ कर लिया | पालकी खाली लौट गयी |
सज्जन सिंह को मनिया की शर्त से कोई ऐतराज नहीं था | शाम को बल्लू स्यंम घोड़ा गाड़ी लगी पालकी ले गढ़ी गांव की तरफ प्रस्थान कर गया | अँधेरा घिरते घिरते बल्लू का रथ मनिया के द्वार पर जा खड़ा हुआ | मनिया तैयार खड़ी थी | माँ बाप से गले मिल मनिया चुपचाप पालकी में जा बैठी | माँ बाप की आँखे अश्रुओं से सराबोर थी मगर मनिया की आँख में एक बूँद आंसुओं की नहीं थी | मनिया के मुखमंडल पर एक अजीब सी चमक अपनी शौर्य गाथा कह रही थी | मनिया के बैठ जाने पर बल्लू ने हलके से घोड़ों को हांकना प्रारम्भ कर दिया | बल्लू भी नहीं चाहता था कि गांव में किसी को पता चले और बिना बुलाए कोई आपदा रास्ता रोकने की कोशिश करे | गढ़ी से जलालपुर का सफर सात किलोमीटर का था | गढ़ी से जलालपुर तक घोड़ा गाड़ी पर लगभग दो घंटे का समय लगता था |
“तेरा ब्याह हो गया |” गांव से बाहर निकलते ही मनिया ने बल्लू से पूछा | बल्लू मनिया के अप्रत्याशित व्यवहार से अचंभित था | आप आप कर आदर से बोलने वाली मनिया तू तड़ाक पर कैसे आ गयी |
“नहीं |” बल्लू ने संछिप्त सा उत्तर दिया |
“क्यों ?” मनिया ने पुन: पूछा |
“मैंने आपको बताया था मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ | जीवन पर्यंत विवाह ना करने का फैसला किया है मैंने |” बल्लू ने बड़े धीमे और अटकते स्वर में कहा |
“अगर मैं कहूँ कि मुझसे ब्याह कर ले तो तेरा जवाब क्या है |” मनिया ने आगे बढ़ बल्लू के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा | बल्लू के शरीर में बिजली कौंध गयी | मनिया के कोमल मगर गरम स्पर्श ने जैसे बल्लू के पुरे शरीर में तरंगें प्रवाहित कर दी | घोड़े की रास स्वत: खिंच गयी और रथ रुक गया | बल्लू ने कंधे को झटका देते हुए मनिया के स्पर्श से स्वयं को मुक्त किया और गाड़ी से नीचे उतर गया |
“आप मुझसे दूर रहें तो अच्छा है | मैं धर्म पर चलने वाला व्यक्ति हूँ | धर्म के विपरीत मैं कुछ नहीं करता |”
“किस धर्म की बात कर रहा है बल्लू ? आज सुबह एक नारी को जबरन उठाने आया था तू | क्या यही तेरे धर्म का आचरण है | अरे रावण ने भी सीता माँ के अपहरण किया था तो स्वयं के लाभ हेतु | तू तो रावण से भी नीच कार्य करने को आतुर है | एक वासना में अंधे अपने मालिक के निजी हित हेतु तू एक चरित्रवान नारी का समर्पण उस राक्षस के समक्ष करने जा रहा है | ध्यान से सोच क्या भगवान तुझे कभी माफ करेगा ?”
बल्लू सोच में पड गया | साहस कर पुन: बोला, “ मेरा धर्म उस व्यक्ति के आदेश का पालन करना है जिसका नमक मैं खाता हूँ | इसमें पाप होता है यह निर्णय भगवान स्वयं लेगा | अगर मैं जमींदार की आज्ञा का पालन नहीं करता तो भी दोषी मैं ही कहलाऊंगा |”
“जब धर्म का रास्ता दोराहें पर आकर रुक जाए तो सही दिशा का निर्धारण कर उस पर आगे चलना ही धर्म कहलाता है | माता पार्वती ने भगवान गणेश को स्नान करने से पहले आज्ञा दी थी कि किसी को भी घर में अंदर आने की अनुमति ना दी जाये | गणेश जी ने अपने पिता की आज्ञा का उल्लंघन कर अपने शीश को गंवाया | माता पिता की आज्ञा का पालन करना भगवान गणेश का कर्तव्य था, परन्तु दोनों की आज्ञा एक साथ पालन ना कर पाने की स्तिथि में गणेश ने उसी आज्ञा का पालन किया जो उन्हें उचित लगी |” कहकर मनिया गाड़ी से नीचे उतर किनारे बनी शिला पर बैठ गयी, जहां बल्लू बैठा था | हालांकि मनिया का शरीर बल्लू को स्पर्श नहीं कर रहा था परन्तु नज़दीक होने के कारण उत्तेजना बल्लू के शरीर में हिलोरें ले रही थी | बल्लू के दिल की धडकन तेज चल रही थी |
“आज तुम भी उसी दोराहे पर खड़े हो | एक धर्म कहता है कि तुम मुझे अपने अधर्मी विधुर और बूढ़े मालिक को मुझ कुवारीं कन्या का अर्पण कर दो और दूसरा धर्म यह है कि एक कुवारीं कन्या का प्रस्ताव मान उससे ब्याह कर लो |” इतना कह मनिया ने अपने सर को बल्लू के कंधे से टिका दिया | मनिया के बदन का स्पर्श होते ही बल्लू के शरीर में कंपन प्रारम्भ हो गया | उसके लहू के रगों में दौड़ने की रफ़्तार में अप्रत्याशित तेजी आ गयी | चांदनी रात में बल्लू ने पहली बार मनिया के रूप को ध्यान से देखा था | सुन्दर बेला की तरह दिख रही थी मनिया | रात की रानी जैसे महक मनिया के शरीर से निकल बल्लू के नथुनों को आनंदित कर रही थी | बल्लू ने मनिया की कलाई कस कर हाथ में पकड़ी और उठ खड़ा हुआ | घोड़ा गाड़ी को छोड़ बल्लू मनिया को ले एक अनजान राह पर पैदल निकल पड़ा |
मनिया को लेकर बल्लू हमीरपुर शहर आ चुका था | यहां उसका मित्र राजीव रहता था | मनिया को स्टेशन पर छोड़ बल्लू राजीव से मिला | राजीव धनाड्य व्यक्ति था और बल्लू का अभिन्न मित्र | बल्लू ने सारी व्यथा कह सुनायी | राजीव ने तुरंत अपने फ़ार्म हाउस स्तिथ एक खाली कमरे की चाबी बल्लू को दे दी | बल्लू मनिया को ले कमरे में जाकर रहने लगा | अगले ही दिन एक मंदिर में जा दोनों विवाह सूत्र में बांध गए |
राजीव ने बल्लू को अपनी कम्पनी में ड्राइवर के पद पर नियुक्त कर दिया | राजीव अक्सर फ़ार्म हाउस आता रहता था | मनिया से राजीव बड़े ही सम्मानपूर्वक बात करता और मनिया भी राजीव को खूब सम्मान देती और राजीव बाबू के संबोधन से पुकारती थी | वक्त गुजरता गया | धीरे धीरे बल्लू और मनिया की गृहस्थी और प्यार प्रगाढ़ होते गए | बल्लू अक्सर शाम सात बजे तक कार राजीव बाबू के बंगले पर खड़ा कर फ़ार्म हाउस में मनिया की बाहों में लौट आता |
कल रात नौ बजे तक जब बल्लू घर नहीं पहुंचा तो मनिया परेशान हो फ़ार्म हाउस के चौकीदार के पास पूछने गयी कि बल्लू के अब तक घर ना आने का क्या कारण है | चौकीदार के जवाब से तो जैसे मनिया के पैरों तले धरती ही खिसक गयी | चौकीदार ने बताया कि बल्लू थाने में बंद है | राजीव बाबू के घर से एक लाख रूपये की चोरी हो गयी | जिस वक्त चोरी हुई बल्लू सहित तीन नौकर घर में मौजूद थे | पुलिस ने तीनों नौकरों को शक के आधार पर गिरफ्तार किया है | बेहाल मनिया तुरंत हरिया माली को ले थाने पहुँच गयी | थानेदार मनिया को इस प्रकार घूर रहा था जैसे नज़रों ही नज़रों में उसके सौंदर्य को पी जाना चाहता हो |
“साहब, आपने हमारे मर्द को गिरिफ्तार किया है |” मनिया ने सहमते हुए पूछा |
“क्या नाम है तेरे मर्द का |” थानेदार ने बेशर्म सी मुस्कान बिखेरते हुए पूछा |
“बल्लू.... बल्लू पहलवान |” मनिया डरते डरते बोली |
“हाँ, बल्लू पर चोरी का शक है | हरिराम, सुखिया के साथ बल्लू भी हवालात में बंद है |” थानेदार ने बताया |
“हुजुर मेरा मर्द कभी चोरी नहीं कर सकता | और मेरा मर्द तो राजीव बाबू का दोस्त भी है | भला वह चोरी क्यों करेगा |” मनिया ने सफाई देते हुए कहा |
“ठीक है, अगर राजीव बाबू कहेंगे तो हम बल्लू को छोड़ देंगे | उसके लिए राजीव बाबू को थाने आकर बल्लू की जमानत देनी पड़ेगी और सरकारी रोजनामचे पर हस्ताक्षर भी करने पड़ेंगे | इसलिए मुझसे ना कहकर तुम राजीव बाबू से ही बात करो |” थानेदार के चेहरे पर एक कुटिल और रहस्यमयी मुस्कान बिखर गयी |
हालात से अनभिज्ञ मनिया हरिया के साथ अपने कमरे पर लौट आयी | इच्छा तो हुई कि अभी जाकर राजीव बाबू से बल्लू की रिहाई के लिए मन्नत करे पर आधी रात को राजीव बाबू के घर जाने की हिम्मत ना जुटा पायी | सुबह राजीव बाबू के घर जाकर उनसे मिल बल्लू की रिहाई कराने का मन बना मनिया घर वापस आ गई |
तडके छ: बजे मनिया राजीव बाबू के घर जा पहुंची | आज पहली बार मनिया राजीव बाबू की हवेली आयी थी | हवेली विशाल और आकर्षक थी | मनिया हवेली के स्वरूप को देख अंदर जाने की हिम्मत ना जुटा पा रही थी |
“कौन मनिया, आओ अंदर आओ |” राजीव बाबू हवेली के बाहर बनी बगिया में बैठे चाय और अखबार का आनंद उठा रहे थे | मनिया को आया देख उन्होंने ही मनिया को आवाज़ लगा ली |
“जी मालिक, वो आपसे कुछ........|” मनिया कहते कहते रुक गयी |
“हाँ, बोलो मनिया | क्या बात है |” राजीव बाबू के व्यवहार से लग रहा था जैसे उन्हें मालूम था कि मनिया अवश्य ही इस मुश्किल घडी में हवेली आएगी | पास पड़ी कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए राजीव बाबू ने मनिया को ऊपर से नीचे तक निहारा तो मनिया आश्चर्यचकित रह गयी | आज राजीव बाबू की नज़रों में खोट नज़र आ रहा था मनिया को | पहले कभी भी इस प्रकार राजीव बाबू की निगाह की चुभन मनिया ने अपने शरीर पर महसूस नहीं की थी | मनिया ने तुरंत अस्त व्यस्त पल्लू को बदन पर सुसज्जित किया और घूँघट कर आधे चेहरे को ढक लिया |
“बाबूजी, मेरे मर्द को पुलिस ने हवालात .....हवालात में बंद किया है |”
“हाँ मनिया, हम जानते हैं | हम यह भी जानते हैं कि बल्लू चोरी नहीं कर सकता |”
“यह ही तो हम कह रहे हैं हुजूर |” मनिया का चेहरा राजीव बाबू की बात सुनते ही खिल उठा | “बाबूजी कल रात हम थाने गये थे | थानेदार का कहना है कि अगर आप कहेंगे तो वह हमारे मर्द को छोड़ देगा |”
“मनिया, यह कानूनी मामला है | रूपये तो चोरी हुए हैं | हम जानते है बल्लू ने चोरी नहीं की होगी | परन्तु क्या कानूनी तफ्शीश में रोड़ा अटकाना उचित होगा | हम बल्लू को छुडाएंगे तो बाकी दो को थानेदार पैसा ले स्वयं छोड़ देगा | केस ठन्डे बस्ते में स्वत: ही चला जाएगा | इसलिए यही उचित है कि पुलिस को अपना कार्य करने दिया जाए | पूछताछ के पश्चात स्वत: ही पुलिस बल्लू को रिहा कर देगी | क़ानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं कि निर्दोष को सजा मिले |”
“मालिक, मैं घर में अकेली | और बल्लू हवालात में | मैं नहीं रह पाउंगी मालिक | आपसे प्रार्थना है कि आप बल्लू को कैसे भी हवालात से निकलवा दे |“ कहते कहते मनिया रो पड़ी | राजीव बाबू उठ खड़े हुए और मनिया के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले,
“मनिया, मैं अगर बल्लू को हवालात से रिहा करा भी दूँ तो मुझे क्या मिलेगा ? मेरा क्या फायदा ?” राजीव बाबू के हाथ का दबाब मनिया के कंधे पर प्रश्न के खत्म होते होते और तेज हो गया | मनिया राजीव बाबू से दूर छिटक कर खड़ी हो गयी | मनिया की आँखों में भय और नफरत के मिश्रित भावों का आवागमन प्रारम्भ हो चुका था |
“मनिया, अब तो तुम समझ ही गयी होगी कि मैं क्या चाहता हूँ | मुझे भी पहेलियाँ बुझाने का शौक नहीं है | मैं तुम्हें बता देना चाहता हूँ कि जिस दिन तुम्हें पहली बार देखा था उसी दिन से निश्चय कर लिया था कि तुम्हे हासिल कर के रहना है | हासिल करने को तो मैं कभी भी तुम्हे उठवा सकता था मगर मैं तुम्हारा समर्पण चाहता था | बात साफ़ है | तुम अपने शरीर का समर्पण मेरे प्रति कर दो मैं बल्लू को रिहा करवा दूंगा | वर्ना.......|”
“वर्ना ..... वर्ना क्या ?” मनिया ने विस्मय से पूछा |
“वर्ना हो सकता है थाने से पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश करते में बल्लू को पुलिस की गोली लग जाए और गोली लगने से उसकी मौत भी हो सकती है मनिया |”
“राजीव बाबू |” चीख पड़ी मनिया |
“चीखने चिल्लाने से काम नहीं बनेगा मनिया | रात तक का वक्त तुम्हारे पास है | सोचो और आज रात हमें समर्पित हो जाओ | कल तुम्हारा बल्लू तुम्हारे समक्ष होगा | यह हमारा वादा है |” राजीव के चेहरे पर कुटिलता छलक रही थी | मनिया ने लाख मिन्नतें कीं | राजीव पर कोई असर ना हुआ | हताश मनिया वापस कमरे पर आ गयी | सुबह से सोच सोच रात हो गयी और मनिया इसी उधेड़बुन में कमरे के अंदर इधर से उधर घूम रही थी | मनिया के चेहरे पर चिंता और अवसाद के भाव दिख रहे थे |
अचानक इन चिंता और अवसाद के भावों ने निश्चयता का रूप ले लिया | मनिया ने निश्चय कर लिया कि वह राजीव बाबू के पास आज रात जायेगी और कल सुबह तक बल्लू को थाने से रिहा करा लेगी | मनिया ने सजना धजना शुरू कर दिया | कुछ ही पल में मनिया तैयार हो राजीव बाबू की हवेली जा पहुँची |
राजीव बाबू तो जैसे मनिया का इंतज़ार ही कर रहे थे | राजीव बाबू को पूर्ण विशवास था कि मनिया अवश्य आएगी | भारतीय नारी अपने पति के लिए सब कुछ छोड़ सकती है यहाँ तो सिर्फ एक रात के लिए शरीर समर्पण का सवाल है, इस बात को राजीव बाबू अच्छी तरह जानते थे | मनिया को देख राजीव बाबू के मुहं से अचानक ही आह निकल गयी | मनिया गज़ब की खूबसूरत लग रही थी | लाल जोड़े में लिपटी मनिया के होठ थरथरा रहे थे, आँखे नशे की हालत में बोझिल थी | गालों पर लाली उभर उभर कर आ रही थी | कुछ दूर खड़ी मनिया के बदन की तपिश राजीव बाबू को दूर से भी जलने पर मजबूर कर रही थी | मनिया को इस वक्त शायद होश भी ना था | राजीव बाबू को अहसास होने लगा कि मनिया शायद कुछ नशा कर के आयी है | राजीव बाबू ने आगे बढ़ मनिया को बाहुपाश में लेने की कोशिश की तो मनिया पीछे हट गयी |
“रुक जाओ राजीव बाबू | आपने बल्लू को छोड़ने की एवज में मेरे शरीर का समर्पण माँगा था | सो मैं यह शरीर आपको सौंप रही हूँ | पर ... पर इसे समर्पण ना समझना राजीव बाबू |” मनिया की आवाज नशे के कारण जैसे बहुत दूर से आ रही थी | डूबती आवाज में उसने पुन: कहना प्रारम्भ किया | “ राजीव बाबू यह समर्पण नहीं प्रत्यार्पण है | मेरे इस खूबसूरत शरीर का प्रत्यार्पण | नारी कमजोर अवश्य होती है, पर शरीर से राजीव बाबू | द्रढता की शक्ति नारी में पुरुष से अधिक होती है | हालात की मजबूरी एक नारी को झुकने पर मजबूर कर सकती है परन्तु उसे पतिता होने पर मजबूर नहीं कर सकती | आपको समर्पण चाहिए था इस शरीर का और मैं .... मैं प्रत्यार्पण कर रही हूँ |”
मनिया जमीन पर गिरने ही वाली थी कि राजीव ने उसके निर्जीव से शरीर को बाहों में थाम लिया |
“राजीव बाबू, मैंने पतिता होने का बजाए विषपान करना उचित समझा | अपने वादे के अनुसार मैं अपना शरीर आपको सौंप रही हूँ | वादा करो कल सुबह की पहली किरण से पहले आप आप मेरे बल्लू को आज़ाद कर देंगे | “ कहते कहते मनिया की गरदन एक तरफ लुढक गयी | राजीव की आँखे अश्रुओं से सराबोर थी |
इति
दुश्मनी
बाहर दरवाजे की खट खट खटकने की आवाज सुन पंडिताइन ने उठ दौड़ कर दरवाजा खोला तो पति सियाराम को बदहवास सी हालत में हाँफता पाया | पंडित सियाराम बार बार पीछे मुड कर देख रहे थे | जल्दी से घर के अंदर आ सियाराम ने दरवाजा बन्द किया और वहीँ धरती पर आसन ग्रहण कर लिया | धरती पर बैठा पंडित हांफ रहा था | पंडित की धोती भी अस्त व्यस्त हो अधखुली अवस्था में आ चुकी थी |
“क्या हुआ, अरे कुछ तो बोलो | उठो वहाँ से और चारपाई पर बैठ जाओ |” पंडिताइन ने चारपाई की तरफ इशारा करते हुए कहा | पंडित घुटनों के बल उठा और चारपाई पर बैठ गया | पंडित के चेहरे पर अभी भी खौफ के भाव थे |
“ये सफ़ेद कुत्ता तो जान ही ले लेगा | पिछली गली के मुहाने से पीछे लगा है | भौंक भौंक और कूद कूद कर मुझ पर प्रहार करने का यत्न करता रहा | भगवान का शुक्र है कि हाथ में लाठी थी | ससुरा लाठी से भी तो नहीं डरता |” पंडित ने हाँफते हुए कहा |
“मुआ सफ़ेद कुत्ता, जीना दूभर कर दिया इस सफ़ेद कुत्ते ने | कोई भी घर का सदस्य घर से बाहर निकलता है तो काटने को दौड़ता है | मरता भी तो नहीं कर्म जला |” पानी का गिलास पति की तरफ बढाते हुए पंडिताइन ने रोषपूर्ण मुद्रा में कहा | पंडित पानी पी वहीँ चारपाई पर लेट गया | गुस्से में पंडित अभी भी कुछ कुछ बडबडा रहा था |
पंडित उस दिन को कौस रहा था जब उसने इस सफ़ेद कुत्ते के चंगुल से एक नन्हे पिल्ले को बचाया था | बात लगभग ढाई वर्ष पुरानी थी | पंडित मंदिर से पूजा पाठ कर प्रात: आठ बजे घर की तरफ आ रहा था | ठण्ड के दिन थे तो कम ही लोग सड़क पर घर के बाहर थे | यही सफ़ेद कुत्ता एक नन्हे से काले पिल्ले को बुरी तरह नोंच रहा था | पंडित को लगा अगर इस नन्ही जान को बचाया नहीं गया तो यह शक्तिशाली सफ़ेद कुत्ता इस पिल्ले को नहीं छोडेगा | फाड़ ही देगा इसे | पंडित ने लाठी से सफ़ेद कुत्ते को डराने की कोशिश की तो सफ़ेद कुत्ते ने पंडित पर भी हमले का प्रयास किया | पंडित ने दूर हट दो चार बड़े पत्थर उठा सफ़ेद कुत्ते में जड़ दिए | सफ़ेद कुत्ता चोटिल हो भाग खड़ा हुआ | पंडित ने काले नन्हे पिल्ले को हाथों में उठा कुछ दूर सुरक्षित स्थान पर छोड़ घर की राह ली |
परन्तु उस नन्हे पिल्ले ने पंडित का साथ नहीं छोड़ा | लाख भगाने पर भी काला पिल्ला पंडित के पीछे पीछे पंडित के घर तक आ पहुंचा | पंडित, पंडिताइन और पंडित के दोनों लड़के अनेक बार उस पिल्ले को घर से दूर छोड़ छोड़ कर आते परन्तु देर अबेर रात होने से पहले पिल्ला वापस पंडित के घर आ ही जाता था | नियति मान पंडित परिवार ने भी उस पिल्ले को अपनी गृहस्थी में स्थान दे उस पिल्ले का नाम कालू रख दिया |
ढाई वर्ष के अंतराल में कालू पूर्ण विकसित एक जवान कुत्ता हो चुका था | सफ़ेद कुत्ते और कालू के बीच प्रतिदिन नौंक झौंक चलती रहती | सदैव सफ़ेद कुत्ता ही कालू पर भारी पड़ता | कभी कभी खतरा देख पंडित और उसका परिवार कालू को बचाने की खातिर सफ़ेद कुत्ते पर लाठी और पत्थरों से प्रहार करते रहते थे |
पंडित के बड़े बेटे संजय से कालू को अत्यधिक प्रेम था | संजय की इंजीनियरिंग पूरी हो चुकी थी | पढ़े लिखे संजय को जानवरों की व्वास्त्विक इच्छाओं का पूर्ण ज्ञान था | संजय कभी कभी कालू को चैन में बाँध बाज़ार ले जाता और कालू को अंडा या मांस का सेवन करा देता | पंडित के पूर्ण शाकाहारी परिवार में किसी को इस बात की जानकारी नहीं थी, अन्यथा पंडित पूरे घर में कोहराम मचा देता | घर का हर व्यक्ति यह अवश्य सोचता कि कालू और संजय का अवश्य ही कोई पुराने जन्म का रिश्ता है, तभी तो कालू पूरे परिवार में सबसे ज्यादा स्नेह संजय से करता है | संजय भी इस बात को सुन फूला न समाता था |
वक्त बीता, संजय की नौकरी होशंगाबाद में लग गई | पच्चीस हज़ार वेतन के साथ साथ कार और बंगला आदि की सुविधाएँ भी संजय को मिली थी | कुछ ही दिनों में जब संजय कार लेकर पंडित के घर मिलने आया तो मोहल्ले वालों की छाती पर सांप लोट गए | संजय के आने की खुशी सभी को थी परन्तु कालू का उत्साह देखने लायक था | संजय भी कालू से मिल अत्यंत प्रसन्न था | दो दिन की छुट्टी काट संजय नौकरी पर वापस गया तो अपनी कार में कालू को भी साथ ले गया | पंडित ने सोचा चलो कालू चला गया तो सफ़ेद कुत्ते का कुछ तो आतंक कम होगा, परन्तु सफ़ेद कुत्ते के व्यवहार में कोई फर्क नहीं आया और पंडित के परिवार से उसकी दुश्मनी बरकरार थी | परेशान हो पंडित को जब कोई उपाय ना सूझा, पंडित ने जहर देकर सफ़ेद कुत्ते को मारने की योजना बना ली |
अगले दिन पंडित ने मंदिर के प्रसाद के चार लड्डुओं में दस रूपये का चूहे मार जहर मिला एक बच्चे के हाथों सफ़ेद कुत्ते को परसवा दिया | देखते देखते सफ़ेद कुत्ता चारों लड्डुओं सो चट कर गया | पंडित ने राहत की सांस ली कि चलो अब तो इस अजाब से छुटकारा मिला | दो तीन दिनों तक सफ़ेद कुत्ता नजर नहीं आया तो पंडित आश्वस्त हो गया कि अब कोई खतरा नहीं है | आज की घटना ने पंडित को फिर से चिंता में डाल दिया था और पंडित अब बहुत डरा हुआ था |
सांझ होते होते पंडित के छोटे बेटे विजय ने सारा वृतांत अपने बड़े भाई संजय को बता दिया | बड़े भाई संजय ने आश्वासन दे दिया कि जल्द ही वह आकर पूरे परिवार को होशंगाबाद ले जाएगा | विजय की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी | पंडित रहता भी किराए के मकान में था | रही बात पंडित के धंधे की तो पंडिताई का धंधा तो ऐसा धंधा था जो कहीं भी चल सकता है | अत: पंडित ने निश्चय कर लिया कि वह सपरिवार होशंगाबाद संजय के पास चला जाएगा |
कुछ ही दिनों में पंडित सपरिवार साजो सामान के साथ बड़े बेटे संजय के पास पहुँच गया | पंडित अपने निर्णय पर काफी गर्वान्वित था | कहाँ वह किराए का टूटा फूटा मकान और कहाँ कम्पनी का दिया यह आलीशान और सर्व सुविधा युक्त यह बंगला | वक्त आया तो सियाराम ने संजय की शादी भी धूम धाम से कर दी | विजय की शादी को धीरे धीरे दो वर्ष बीत गए और विजय की पत्नि ने एक सुन्दर बेटी को जन्म भी दे दिया | परन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था | कहते हैं कि मनुष्य का जीवन दु:ख विहीन नहीं हो सकता |
अब परेशानी थी कि पंडित के छोटे बेटे विजय की अभी नौकरी नहीं लगी थी | संजय की पत्नि को आभास हो चला था कि पंडित का पूरा परिवार संजय की कमाई पर सुख चैन और आराम का जीवन व्यतीत कर रहा है | संजय की पत्नि की इस अवधारणा ने रोजमर्रा की छोटी मोटी नोंक झौंक को विशाल अनबन का रूप दे दिया | अब संजय और विजय में वैचारिक मतभेद के साथ साथ वैमनस्य की भावना भी घर कर चुकी थी | विजय उदास सा रहने लगा | पंडित और पंडिताइन को हमेशा भय रहता कि कहीं विजय घर त्याग ना चला जाए या कोई गलत कदम ना उठा बैठे |
वही हुआ जिसका पंडित और पंडिताइन को डर था | एक बार काफी बहस के बाद संजय के मुँह से निकल गया कि, “ विजय, तुम जैसे इंसानों को जीने का कोई अधिकार नहीं है | तुम धरती पर ही नहीं इस परिवार पर भी बोझ बन चुके हो |” फिर क्या था, अगले ही दिन विजय ने कीटनाशक पी जान देने की कोशिश कर डाली |
विजय अस्पताल में भर्ती था | पंडित और पंडिताइन का रो रो कर बुरा हाल था | डॉक्टर के अनुसार जहर ने फेफड़ों पर असर किया था और विजय का बचना असंभव लगता था | विअजय आई सी यू में भर्ती था और आई सी यू के सामने हनुमान जी का मंदिर था |
पंडित के आंसू रुके तो वह हनुमान की मूर्ति के समक्ष आसान लगाए बैठा था | पंडित मन ही मन भगवान से पूछ रहा था, “ भगवान मैंने किसी का अहित नहीं किया, फिर यह सजा मुझे क्यों ? भगवान अगर मैंने कोई अपराध किया है तो उसकी सजा मुझे दो, मेरे बेटे विजय को क्यों ? भगवान अगर मैंने सच्चे मन से आपकी आराधना की है तो मेरे बेटे को लौटा दो भगवन, मेरे विजय को लौटा दो |” कहते कहते पंडित की आँखों से अविरल अश्रुधारा बह निकली और वह भगवान की मूर्ति के समक्ष दंडवत मुद्रा में लोट गया | अचानक पंडित उठ कर खड़ा हो गया जैसे उसे बिजली का करंट लगा हो | पंडित सीधा मंदिर से बाहर आया | पंडित कि बदहवासी देख पंडिताइन दौड़ कर पंडित के पास पहुँची और बोली, “ क्या हुआ जी, आप चिंता मत करो | हमने किसी का बुरा नहीं किया है, भगवान कभी हमारा बुरा नहीं करेंगे |”
“यह बात नहीं है संजय की माँ, मुझे अपनी गलती का अहसास भगवान के मंदिर में बैठने से हो गया है | जाने अनजाने मुझसे एक गलती हुई है | मैंने गाँव में सफ़ेद कुत्ते को जो जहर खिलवाया था उसी का परिणाम मेरे समक्ष है |” पंडित ने फिर मंदिर की तरफ मुँह किया और बोला, “ भगवान, मुझसे जो यह गलती हुई है उसके लिए मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ और प्रण लेता हूँ कि विजय के ठीक होते ही गाँव जाऊँगा और सफ़ेद कुत्ते से भी क्षमा मांगूंगा | मेरे विजय के प्राण बक्श दो भगवान, मेरे बेटे के प्राण बक्श दो |” कहने के साथ ही फिर जैसे आंसूओं का सैलाब पंडित की आँखों से बह निकला |
“ पिताजी...... पिताजी, विजय को होश आ गया है, डॉक्टर का कहना है अब विजय खतरे से बाहर है |” विजय ने दौड़ कर आते हुए कहा | उत्साहवश और दौड़ने से विजय की सांस तेज चल रही थी | विजय ने आगे कहना प्रारम्भ किया, “ पिताजी, मैं आपसे माफ़ी मांगता हूँ, यह सब मेरी बदजुबानी से हुआ है | विजय ठीक हो जाए मैं उससे भी माफ़ी माँग लूँगा | आपकी बहु भी पश्चाताप की आग में जल रही है | उसे भी माफ कर दें पिताजी |”
“नहीं बेटा, हम तो सब एक हैं मुझे एक और से माफ़ी मांगनी है | विजय ठीक हो घर पहुँच जाए तो मैं तुरंत गाँव जाऊँगा |” पंडित ने गंभीरता पूर्वक कहा |
विजय घर आया ही था कि पंडित ने गाँव का रुख किया | गाँव आकर पंडित अपने दोस्त पंडित हरी राम के घर रुका | पंडित ने हरिराम से सफ़ेद कुत्तेके बारे में पूछा तो हरी राम ने बताया कि कुत्ता अपांग हो गया है और मंदिर के बाहर पेड़ तले पड़ा रहता है | वहीँ मोहल्ले वाले खाना आदि दे देते हैं | पंडित अपने आप को ना रोक सका और तुरंत मंदिर की तरफ भागा | मंदिर के बाहर पीपल के पेड़ के नीचे सफ़ेद कुत्ता लेटा था | काफी कमजोर, बूढ़ा और असहाय लग रहा था | अभी भी पंडित कुत्ते को देख डर रहा था | सहमते क़दमों से पंडित आगे बढ़ा तो कुत्ते ने दोस्ती की परिचायक अपनी पूंछ को धीरे से हिला दिया | जोर से पूंछ हिलाने की क्षमता शायद उसमे नहीं थी | पंडित ने धीरे से कुत्ते की पीठ पर अपना हाथ रख दिया | उठ पाने में असक्षम कुत्ते ने गर्दन आगे बढ़ा पंडित के पैरों को चाटना प्रारम्भ कर दिया | पंडित की आँखों से पुन: गंगा जमना बहने लगीं |
इति
मजबूरी भगवान की
ब्रह्मलोक म भगवान विष्णु का दरबार सजा था | विष्णु नाग शैया पर विराजमान थे तो बाएँ तरफ माता लक्ष्मी कमलासन पर सुशोभित थीं | दायें और बाएं कतार में सभी देवता अपने अपने आसनों पर बैठे थे | दायीं तरफ कि कतार में प्रथम आसन पर बैठे अलका पुरी नरेश इन्द्र ने विष्णु भगवान का अभिवादन करते हुए कहा, “ भगवन, महा मुनि नारद अभी तक दरबार में उपस्तिथ नहीं हुए हैं | प्रथ्वी से आती नकारात्मक किरणों से स्वर्गलोक का वातावरण अशुद्ध हो चुका है | आशा है यह नकारात्मक किरणे जल्द ही ब्रह्मलोक तक पहुँच जायेंगी |”
“ हाँ इन्द्रदेव, आपकी चिंता अनावश्यक नहीं है | आपकी सूचना के आधार पर ही हमने विश्व कर्मा जी को इस नकारात्मक किरणों के परिवेश का पता लगाने का आदेश दिया था | विश्वकर्मा जी ने पूरी जांच पड़ताल के बाद सूचित किया कि यह किरणें प्रथ्वी लोक से आ रहीं हैं | इसी आधार पर हमने महा मुनि नारद को प्रथ्वी लोक इन नकारात्मक किरणों का कारण जानने हेतु विशेष दल के साथ भेजा था | नारदजी प्रथ्वी लोक से ब्रह्म लोक आ चुके हैं | कुछ ही देर में दरबार में उपस्तिथ होंगे |” विष्णु भगवान इंद्र देवता को समझा ही रहे थे कि नारद ने दरबार में प्रवेश किया |
“नारायण, ...... नारायण |” नारद की आवाज सुन सभी देवताओं ने महा मुनि का अभिवादन कर प्रणाम किया |
“ महामुनि नारद, आप अपना आसान ग्रहण करें और प्रथ्वी के समाचार हमें बतलायें | प्रथ्वी से आ रही नकारारात्मक किरणों से इन्द्र लोक का वातावरण दूषित हो चुका है और इन किरणों का असर अब ब्रह्म लोक पर भी पड़ने लगा है | आप प्रथ्वी लोक से आती इन नकारात्मक किरणों के बारे में क्या सन्देश लाएं हैं हमे विस्तार से बतलायें ? भगवान विष्णु ने चिन्तात्मक मुद्रा में कहा |
“ भगवन, प्रथ्वी लोक में बहुत गन्दा वातावरण हो चुका है | पाप और पापी अपनी अंतिम चरम सीमा पर हैं | खून, डकैती, बेईमानी, नालायकी और गन्दा आचरण कुछ ऐसी प्रतिक्रियाएं हैं जिसमे प्रत्येक मानव लिप्त है | मानवता धूमिल हो चुकी है | अधर्म इस प्रकार परिवेश पर हावी है कि नकारात्मक किरणें ब्रह्म लोक तक आ पहुंचीं हैं |”
“ पुत्र नारद, आपने प्रथ्वी पर हो रही असामाजिक और अमानवीय घटनाओं का वर्णन तो कर दिया, परन्तु यह नहीं बताया कि इसका मूल कारण क्या है ? प्रथ्वी वासी इस प्रकार की घोर निंदनीय क्रियाएँ क्यों कर रहे हैं ? इस तरफ प्रकाश डालें तो अच्छा होगा |” माता लक्ष्मी जो अभी तक शांत थी ने चिंतित स्वर में प्रश्न किया |
“ माते, अपराध क्षमा करें | इन सब निंदनीय क्रियाओं का मूलभूत कारण आप हैं | जो बची कुची कमीं रह जाती है उसे भगवान विष्णु ने पूरा कर रखा है |” नारद के वचन सुनते ही माता लक्ष्मी का मुख क्रोध से लाल हो गया और भगवान विष्णु की भ्रकुटीयां भी तन गयीं | सभी देवता भी नारद के वचनों से असंतुष्ट और अचम्भित थे |
“ कैसी अनर्थक बातें कर रहे हो पुत्र नारद ? आपको इस बात का बोध है कि आप क्या कह रहे हैं ?” लक्ष्मी माता ने क्रोधित स्वर में कहा |
“क्षमा करें मातये, मैं असत्य कभी नहीं कहता | आप अच्छी तरह जानती हैं | जितना भी अधर्म धरती पर पनप रहा है उसका मूल कारण आप ही हैं माता | इन निंदनीय कार्यों को क्रियान्वित करने वालों का मुख्य उद्देश्य इन कार्यों को कर धन और स्रमद्धि प्राप्ति करना है और धन एवं सम्रद्धि की देवी आप है | प्रथ्वी पर ऐसे निंदनीय कार्य करने वालों पर आपकी कृपा एवं स्नेह है |” नारद के वचन से सभी असहमत लग रहे थे |
“ नारद यह क्या कह रहें हैं आप ? आपको अपने कथन का संज्ञान है या नहीं ? अगर प्रथ्वी वासी ऐसा कार्य कर रहें हैं तो इसमें देवी लक्ष्मी का दोष कैसे हो सकता है ? आपने अपने कथन में यह भी कहा कि बची कुची प्रक्रिया की जिम्मेदारी मुझ पर आती है | ऐसा कैसे हो सकता है विस्तार से कहें |” लक्ष्मी को रोषपूर्ण मुद्रा को देख भगवान विष्णु ने बात को अपनी ओर घुमाते हुए कहा |
“जी भगवन, मैं समझ सकता हूँ कि माता के रोष को देखते हुए आप बात परिवर्तित कर रहे हैं | इन मान मर्यादायों को सीमा में बाँधने से सत्य को नहीं झुठलाया जा सकता | अंत में मैं तो यह ही कहूँगा कि प्रथ्वी लोक से जो अविरल नकारात्मक किरणें ब्रह्म लोक की तरफ अग्रसर हैं उनका श्रेय आपको और माता लक्ष्मी को ही जाता है |” नारद के कठोर शब्द सुन पुरे दरबार में खुसर पुसर होने लगी | भगवान विष्णु जो अब तक शैया पर विराजमान थे उठ कर खड़े हो गए | उनके मुख पर भी क्रोध की रेखाएं अंकित थी | विष्णु ने तनिक क्रोध की मुद्रा में कहा,
“ महा मुनि नारद आप एक संत हैं और ब्रह्म समाज में आपसे ज्यादा आदर किसी का नहीं है | आपका कथन अशोभनीय है | किस प्रकार धरती पर बढते पाप के लिए मैं उत्तरदायी हूँ, विस्तार से कहें | कहना ही नहीं, बल्कि भरे दरबार में जो आक्षेप आपने मुझ पर और माता लक्ष्मी पर लगाएं हैं उन्हें सिद्ध करें | यह हमारा आदेश है |” भगवान विष्णु का रूप देख सभी सिहर उठे |
“ आप इसे अन्यथा ना लें भगवन, यह सत्य है | प्रथ्वी पर जितने पाप और अपराध फल रहें सब धन और वैभव की लालसा में होते हैं | मेरे पूज्य पिता ब्रह्मा का कार्य संसार की उपत्ति करने का है | भगवान महादेव जगत के विनाश के संचालक हैं | जगत का और तीनो लोकों का सचालन आप करते हैं | प्रथ्वी पर जो पाप और पापियों में बढ़ोतरी हुई है उसका उत्तरदायित्व तो संचालक पर ही आएगा | जहाँ तक माता लक्ष्मी का प्रश्न है, धन वैभव और संपत्ति का लेखा जोखा माता लक्ष्मी के ही पास है | पापी और अधर्मी लोग सुख, धन, वैभव और संपत्ति से परिपूर्ण और संपन्न हैं | ऐसा क्यों है इसका उत्तर तो माता लक्ष्मी ही दे सकती हैं ?” महा मुनि नारद के प्रश्न का उत्तर भगवान विष्णु की समझ में नहीं आ रहा था |
“ पुत्र नारद, मेरी कृपा केवल धर्माचारियों पर ही रहती है | मेरा आशीर्वाद भी धन और वैभव के रूप में धर्माचारियों को ही मिलता है | अवश्य ही इस कार्य में कुबेर की गलती रही होगी जो कि धन के वितरण के लिए उत्तरदायी हैं | कुबेर ने ही धन का वितरण गलत लोगो में कर नियमों का उल्लंघन किया लगता है |” माता लक्ष्मी ने नारद के वाणी तीर को अपनी तरफ आता देख उस तीर का मुँह कुबेर की तरफ मोड दिया | तीर को अपनी तरफ आता देख कुबेर महोदय भी सकपका गए | अपनी स्तिथि को संभालते हुए कुबेर ने उठ सबका अभिवादन कर कहना प्रारम्भ किया |
“ मेरी तरफ से कोई गलती नहीं की गयी है भगवन | आप चाहे तो मेरे लेखे की जांच करा सकते हैं | लक्ष्मी माता द्वारा निर्देशित निर्देश पालिका के अनुसार ही धन का वितरण मेरे द्वारा किया गया है | प्रथ्वी वासियों को यज्ञ अनुष्ठान करने पर, भगवान का स्मरण करने पर, भगवान के मंदिरों में दर्शन करने पर, आरती करने पर और सत्य बोलने आदि आदि जितने धर्माचार हैं, उन पर माता लक्ष्मी ने जिस अनुपात में धन वर्षा करने का निर्देश दिया है, उन सब नियमों का बड़ी ही कर्तव्यनिषठा से पालन किया गया है |” कुबेर ने अपनी सफाई व्यक्त करते हुए कहा |
“ कुबेर ऋषि सत्य कह रहे हैं भगवन |” नारद ने भगवान विष्णु को संबोधित कर कहा | “ इन्होने धरती पर रह रहे मनुष्यों पर धन वर्षा उसी अनुपात में की है जैसा माता लक्ष्मी ने निर्देशित किया है | असली व्यवधान यह है कि प्रथ्वी पर जितना बड़ा पापी है उतना ही वह व्यक्ति धर्म करने या दिखावा करने का प्रयत्न करता है | उदाहरण के तौर पर व्यवसायी वर्ग किसी ना किसी प्रकार की बेईमानी या धोखाधड़ी में लिप्त है | बिना अधर्म किये शायद व्यवसाय करना असंभव सा हो गया है | परन्तु यही व्यवसायी धोखाधड़ी के साथ साथ अपने व्यवसाय स्थल पर भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करता है और विधिवत पूजा दीप कर धर्म के अनुसरण करने का प्रयत्न भी | हर बेईमानी कर धन की अनुचित प्राप्ति पर माता लक्ष्मी को आराध्य मान उन्हें स्मरण भी करता है | कुबेर महाराज उसके पूजा पाठ, दीप प्रज्ज्वलन और धर्मानुसार माता लक्ष्मी को स्मरण करने की क्रिया के आधार पर धन वर्षा कर देते हैं | इस प्रकार वह सुख के साथ साथ वैभव की भी प्राप्ति करता है |
“ माना यह घटना व्यवसायी वर्ग के साथ हो रही है | व्यवसायी तो प्रथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों का कुछ प्रतिशत हैं | पूरी प्रथ्वी पाप रूपी विध्वंश की तरफ क्यों जा रही है ? “ विष्णु भगवान ने नारद को बीच में रोकते हुए प्रश्न किया |
“ आपका कथन सत्य है भगवन | आज प्रथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों में सबसे ज्यादा व्यवसायी ही हैं | जिन मनुष्यों की कार्य प्रणालियों का व्यवसाय से कोई लेना देना नहीं था वह सबसे बड़े व्यवसायी बन बैठे हैं | धर्म और शिक्षा भी सबसे बड़े और सुगम व्यवसाय बन बैठे हैं | “ नारद अपनी बात निरंतर करना चाहते थे परन्तु भगवान विष्णु ने अचम्भित हो बीच में टोकते हुए कहा, “यह क्या कह रहे हो नारद |” नारद ने पुन: कहना प्रारम्भ किया,
"सत्य कह रहा हूँ भगवन, शिक्षा जो मुफ्त में मिलनी चाहिए वह बेची जा रही है | ज्ञान खरीदने और बेचने वालों की कमी नहीं है | केवल ज्ञान ही नहीं भगवन, ज्ञान के नकली प्रमाण पत्रों का व्यवसाय भी असाध्य नहीं | धर्म के नाम पर प्रवचन का व्यवसाय भी आम बात है | योग क्रिया सिखाने के भी पैसे गुरु शिष्य से लेता है | यह धन दक्षिणा के स्वरूप नहीं बल्कि शुल्क के रूप में लिया जाता है | “ नारद ने कहा |
“महा मुनि, पिछली बार किसी एक देवता ने कहा था कि प्रथ्वी पर सरकारी और प्रशासनिक ढांचा कुछ इस प्रकार का बन चुका है की मनुष्यों के मौलिक अधिकार और जीवन रक्षक कार्यों को गति प्रदान हुई है | क्या पाप और अधर्म को रोकने हेतु सरकार और प्रशाशन कुछ नहीं कर रहा है | “ विष्णु भगवान ने जिज्ञासावश पूछा |
“ भगवन, सरकार और प्रशाशन अब केवल धन के लिए कार्य कर रहे हैं | कोई भी सरकारी और प्रशाशनिक कर्मचारी बिना सुविधा शुल्क के कार्य नहीं करता | कितने ही मंत्री और पदाधिकारी पाप वश बन्दी ग्रह में कैद हैं | पुलिस एवं अनेक अन्वेषण संस्थाएं इन आचरणों को रोकने हेतु गठित की गयी हैं परन्तु यह सभी संस्थाएं धन के लालच में भ्रष्ट हो नैतिकता का मार्ग छोड़ अनैतिक रास्तों पर अग्रसर हैं |” नारद ने दु:खी स्वर में कहा |
“ नारद इसमें मेरा दोष कहाँ है | मैं जगत का संचालक होने के नाते अच्छा मार्ग ही दिखलाता हूँ | अगर मनुष्य मति भ्रष्ट हो गलत रास्ते और पाप अधर्म का रास्ता ग्रहण करता है तो मैं या माता लक्ष्मी इसके उत्तरदायी कैसे हुए |“ विष्णु ने बचाव की मुद्रा में कहा |
“ भगवन, मैं आपको उत्तरदायी इस लिए बता रहा हूँ कि प्रथ्वी पर हर ओर किसी ना किसी रूप में आपके मंदिर निर्मित हैं | मनुष्य मंदिर का निर्माण करता है, विधिवत पूजा अर्चना कर आपकी प्राण प्रतिष्ठा करता है | यहाँ से सारा खेल प्रारम्भ होता है | मनुष्य पाप करता है, आपकी प्रतिमा के समक्ष क्षमा याचना कर आपका पूजन करता है और अपने आपको कृतज्ञ और क्षमित मान पुन: पाप के रास्ते पर अग्रसर हो जाता है | आपकी उपस्तिथि इन मंदिर के स्थानों को पावन बना देती है | मनुष्य इन स्थानों का भ्रमण कर यहाँ दान रूपी रिश्वत प्रदान कर अपने को धन्य समझ लेता है |” नारद ने कहा |
“ पुत्र नारद आप अनर्गल सी बातें कर रहे हो |” लक्ष्मी ने वास्तविकता से पल्ला झाड़ते हुए कहा तो नारद भी पीछे हटने की जगह प्रत्युत्तर में बोले ,
“ नहीं माते, यह अनर्गल तथ्य नहीं है | अगर प्रथ्वी पर धनाढ्य संस्थानों पर ध्यान केंद्रित किया जाए तो आपके और भगवान विष्णु के बहुत से मंदिर और संस्थान धन के मामले में उत्कृष्ट स्थान रखते हैं | पापी मनुष्य पाप करने के पश्चात आपके मंदिरों में आपके दर्शन कर, दान रूपी रिश्वत दे अपने आपको पाप मुक्त समझ लेता है | यह दान रूपी रिश्वत जितनी बड़ी होती है उतना ही बड़ा पाप करने के लिए वही मनुष्य अपने आपको अधिकृत समझ लेता है | “ नारद ने उत्तर दिया |
“ प्रथ्वी की उत्पत्ति से लेकर आज तक जो भी समाजीकरण हुआ उसका श्रेय सदैव प्रथ्वी पर अच्छे परिणाम लाया है | इस समाजीकरण और सभ्यता का प्रतीक विगत युगों में साहित्यकार ही रहे हैं | ग्रन्थ, वेद, पुराणों की रचना कर साहित्यकारों ने प्रथ्वी वासियों को धर्माचरण करने और पाप मुक्त वातावरण बनाने के लिए प्रेरित किया | आज जब पाप की आंधी युग को विनाश की तरफ ले जा रही है तो साहित्यकार क्या कर रहे हैं ? “ भगवान विष्णु ने पुन: बचाव की मुद्रा अपनाते हुए नारद द्वारा साधे गए तीर को साहित्यकारों की तरफ मोड दिया |
“ सत्य वचन भगवन, विश्व को धर्म के साथ संजोने का कार्य सदैव ही साहित्यकार करता आया है | आज प्रथ्वी पर जो धनोपार्जन की होड़ लगी है उसमे साहित्यकार भी पीछे नहीं है | अधिक से अधिक धन कमाने की लालसा में साहित्यकार ऐसे साहित्य की रचना कर रहे हैं जो केवल मनोरंजन के लिए है | ज्ञान का उससे कुछ लेना देना नहीं है | लोकप्रियता की सीढ़ी चढ़ने के लिए साहित्यकार गुणवत्ता को भूल अश्लील और भौंडा साहित्य लिख रहे हैं | साहित्यकार ऐसे साहित्य की रचना करने में व्यस्त हैं जो विक्रय की द्रष्टि से उत्तम हो और धन की उत्पत्ति कर सके | साहित्य भी अब व्यवसाय बन चुका है भगवन |” नारद के वचन सुन विष्णु बोले,
“महा मुनि, मैं या लक्ष्मी इस सारे घटनाक्रम में कहीं से कहीं तक दोषी नहीं है | हम तो उन्ही मनुष्यों को प्रथ्वी पर सुख वैभव प्रदान कर रहे हैं जो धर्म का आचरण कर रहे हैं | मनुष्य द्वारा किये गए पापों का लेखा जोखा चित्रगुप्त रखते हैं | चित्रगुप्त ही बता सकतें है कि मनुष्य को उसके किये गए पापों की सजा क्यों नहीं मिल रही है | “ विष्णु ने पुन: आक्रमणकारी तीर को चित्रगुप्त की तरफ मोड दिया |
“ भगवान, यही कारण है कि जो मनुष्य जितने ज्यादा पाप कर रहा है उतना ही ज्यादा धन, सुख वैभव और संपत्ति प्राप्त कर रहा है |” नारद ने फिर अपने विचार व्यक्त किये |
“महा मुनि नारद, चित्रगुप्त को भी अपने विचार रखने का समय दें | “ विष्णु ने नारद को रोकते हुए कहा | चित्रगुप्त अपने स्थान पर खड़े हो गए | नमन एवं अभिवादन के पश्चात चित्रगुप्त ने कहना प्रारम्भ किया,
“ भगवन मेरे कार्य में कोई गलती नहीं हुई है | प्रत्येक पाप और पुण्य का विवरण मैं सम्बंधित विभाग को भेज रहा हूँ | इस कार्य में विलम्ब अवश्य हो रहा है | मेरे विभाग में कर्मचारियों की संख्या उतनी ही है जितनी संसार की उत्पत्ति के समय थी | प्रथ्वी पर मनुष्यों की संख्या कई गुना बढ़ चुकी है | पापों और पुण्यों के विवरण को आगे बढाने में समय अवश्य लग रहा है परन्तु इसका तात्पर्य यह बिलकुल नहीं की मनुष्य को उसके पापों की सजा नहीं मिलेगी अर्थात उसे क्षमा दान दे दिया गया है | आज जो मनुष्य पाप करने के पश्चात भी सुख और वैभव की प्राप्ति कर अपने आपको गौरवशाली समझ रहा है उसे अत्यधिक संताप होगा जब आने वाले समय में उसके पापों की सजा ब्याज सहित प्राप्त होगी | वैसे मेरे कार्य की देरी के लिए प्रथ्वी पर बढ़ती जनसंख्या भी उत्तरदायी है |”
“ देखा पुत्र नारद, परम पिता ब्रह्मा द्वारा मनुष्य कि अधिक उत्पत्ति भी इन नकारात्मक किरणों का एक कारण है | ऐसा मैं नहीं वरन चित्रगुप्त द्वारा दिए गए व्यक्तव्य से प्रतीत होता है |” विष्णु अपनी बात कह ही रहे थे कि ब्रह्माजी का आगमन दरबार में होता है | भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, नारद और सभी देवता अपने अपने स्थान पर खड़े हो परम पिता ब्रह्मा का चरण वंदन करते हैं | ब्रह्मा जी अपने आसान पर आसीत हो कहते हैं,
“ इसमें हमारा भी कोई दोष नहीं है पुत्र नारद | संसार की रचना के समान संसार का अंत भी सुनिश्चित है | इस अंत के लिए अठ्ठासी करोड योनियों में प्रत्येक आत्मा को एक बार मनुष्य की योनी में जन्म देना आवश्यक है | इस आवश्यकता को देखते हुए ही संसार के समापन से पूर्व प्रत्येक आत्मा को मनुष्य का चोला देने के प्रयोजन से इस जनसंख्या का सयोंजन किया गया है, जिसे आप लोग अधिक कह रहे हो | संसार का अंत समीप है | प्रलय के बाद केवल सदाचारी और धर्माचारी ही सुख और वैभव प्राप्त कर सकेंगे | पापी, अत्याचारी और अधर्मी कष्ट पूर्ण योनी में कष्टपूर्ण जीवन ही व्यतीत कर पायेंगे | उनके दुराचारों की सजा भी अत्यंत भयभीत होगी पुत्र |” ब्रह्मा के कथन से सभी सहमत थे | विष्णु भगवन ने संशय के द्रष्टिगत एक प्रश्न किया |
“ पितामह, अगर संसार का अंत समीप है और प्रलय का समय आ गया है तो क्या इस पाप को समाप्त करने के लिए प्रथ्वी पर मुझे पुन: एक अवतार लेना पड़ेगा ?”
“ नहीं लक्ष्मीपति, इसकी आवश्यकता नहीं है, वैसे भी त्रेता में एक रावण को मारने के लिए आपने अवतार के समय चौदह वर्षों का वनवास ग्रहण किया था | आज तो धरती पर अनेकाएक रावण हैं | आप कितने युगों का वनवास जायेंगे | हां एक समस्या है, इस बढ़ी हुई जनसँख्या को द्रष्टि में रखते हुए आने वाले सतयुग में मुझसे यह प्रश्न इतिहास अवश्य करेगा कि प्रथ्वी के अंत का उत्तरदायी कौन था | मैं भी कह दूंगा “मेरी मजबूरी थी |”पिता ब्रह्मा की बात सुन नारद बोले,
अवगुण सारे विद्यमान हैं, देखो फिर भी जिन्दा है
मानव की उत्पत्ति कर, भगवान बहुत शर्मिंदा है
इति
नीलाक्षी
प्राचीर बिस्तर पर पड़ा बार बार करवटें बदल रहा था | नींद आँखों से कोसों दूर थी | पत्नि वैशाली भी उसी बिस्तर पर गहरी नींद में सो रही थी | सुबह घटित घटना ने तो जैसे प्राचीर का सुख चैन ही छीन लिया था | प्राचीर विदेशी कम्पनी में मेनेजिंग डाइरेक्टर के पद पर आसीन था | प्राचीर की निजी सचिव मिसेज ब्रिगेन्जा नौकरी छोड़ अपने प्रदेश केरला चली गयी थीं | आज सुबह निजी सचिव हेतु प्राचीर ने कुछ आवेदकों का साक्षात्कार लिया था |
साक्षात्कार हेतु आये लोगों में एक महिला विशेष थी | महिला का नाम प्रणाली घोष था | लम्बे कद की छरहरी प्रणाली गौर वर्ण के साथ साथ देखने में अत्यंत सुन्दर थी और किसी भी व्यक्ति में भरपूर उत्तेजना भरने का माद्दा रखती थी | प्रणाली की खूबसूरती में उसके लम्बे, काले और सुसज्जित केशों के साथ खास बात थी प्रणाली की सुन्दर नीली आँखें | प्राचीर अपने शयन कक्ष में लेटा था पर अभी भी वही मदहोश करने वाली नीली आँखे उसके मन में गुदगुदी कर रही थी | प्राचीर अभी भी उन नीली आँखों की गहराई की थाह लेने का अथक प्रयास कर रहा था | प्रणाली की सुन्दर, नीली और मंत्रमुग्ध कर देने वाली आँखों की गहराई मापने की हालत में प्राचीर नहीं था | प्राचीर अनायास मन ही मन मुस्करा पड़ा | प्राचीर जानता था कि उसने प्रणाली को चयनित कर लिया है और कल से ऑफिस में कम से कम आठ घंटे प्रणाली प्राचीर के साथ रहेगी | कल से प्राचीर अपनी निजी सचिव प्रणाली की खूबसूरती और नीले नयनों का अवलोकन कर सकेगा | इसी उधेड़बुन में ना जाने कब प्राचीर को नींद आ गयी |
“गुड मोर्निंग......सर |“ प्रणाली ने ऑफिस में प्रवेश करते हुए कहा |
“गुड........मोर्निंग, मिस प्रणाली |” प्राचीर ने अटकते से स्वर में कहा | प्राचीर प्रणाली को देखते ही जैसे पलकें झपकाना ही भूल गया | प्राचीर को अब ख्याल आया कि प्रणाली अभी तक दरवाजे पर ही खड़ी है | प्राचीर ने तुरंत अपने आपको सयंत किया और प्रणाली के बदन से अपनी नज़रें हटा उसे अंदर आने और बैठने का आदेश दिया |
“सर मैं मिस नहीं, मिसेज प्रणाली घोष हूँ | मेरे पति बादल घोष एक दवाई की कम्पनी में सेल्स एरिया मैनेजर हैं |”
“ आय एम् सारी, मिसेज घोष | आपको देखने से नहीं लगता कि आप शादी शुदा हैं | इसलिए ऐसी गलती हुई |”
“कोई बात नहीं सर, हमारी शादी को अभी छ: महीने ही हुए हैं | ऐसी गलती होना स्वाभाविक है |” प्रणाली ने हँसते हुए उत्तर दिया तो प्राचीर उसकी मधुर हंसी कि खनखनाहट पर जैसे मोहित हो गया | प्राचीर ने प्रणाली को उसका केबिन दिखा दिया और काम भी समझा दिया | प्राचीर के ऑफिस से सटा प्रणाली का केबिन था और बीच में बनी आधी दीवार कांच की थी | इस शीशे की दीवार से प्राचीर और प्रणाली एक दूसरे को देख सकते थे | कार्य की अधिकता के कारण प्रणाली के पास प्राचीर को निहारने का समय नहीं था परन्तु प्राचीर प्रणाली से नज़रें हटा ही नहीं पा रहा था और प्रणाली के सानिध्य को लालायित प्राचीर कोई ना कोई बहाना बना प्रणाली को अपने केबिन में बुलाता रहता था |
इसी प्रकार छ: महीने का समय बीत गया | प्राचीर और प्रणाली के बीच संकोच की दीवार ढह चुकी थी | अब दोनों ही एक दूसरे से खुलकर बात चीत करते थे | यहाँ तक कि लंच और चाय भी साथ साथ ही पीते थे | प्रणाली की नीली आँखों की तारीफ़ करते करते प्राचीर ने उसका नया नाम नीलाक्षी रख दिया था | अब प्राचीर सदैव प्रणाली को नीलाक्षी के नाम से ही संबोधित करता था | इसी दौरान प्राचीर की मुलाकात कई बार प्रणाली के पति से भी हुई | प्रणाली का पति बादल अक्सर शाम को बिल्डिंग के बाहर प्रणाली का इंतज़ार करता प्राचीर को मिला |
शुक्रवार का दिन था | प्राचीर ऑफिस में बैठा चार्टेड एकाउन्टेंट की आडिट रिपोर्ट का अवलोकन कर रहा थे कि चपरासी ने आकर एक गिलास पानी के साथ कुछ दवाई की गोलियाँ प्राचीर के समक्ष रख दीं | प्राचीर ने प्रश्नवाचक नज़रों से चपरासी को देखते हुए पूछा, “यह क्या है?”
“सर आपने दवाई मंगवाई थी वही लाया हूँ |” चपरासी बोला |
प्राचीर ने दवाई को उलट पलट कर देखा, गोलियाँ बुखार के लिए पेरासिटामोल की थी| प्राचीर ने पुन: चपरासी को संबोधित करते हुए कहा, “ तुम्हारी भूलने की आदत किसी की जान ले सकती है | मैंने तुमसे ना तो कोई दवाई मंगवाई और ना ही मुझे बुखार है | तुम ये बुखार की दवाई मुझे क्यों दे रहे हो ?”
चपरासी ने चिंताग्रस्त हो माथे पर हाथ रख कुछ सोचने की प्रतिक्रिया की और बोला, “सारी सर, सेक्रेट्री मेडम की तबियत ठीक नहीं थी | उन्होंने दवाई मंगवाई और मैंने दवाई आपको लाकर दे दी |”
चपरासी ने दवाई उठा प्रणाली के केबिन का रुख किया | प्राचीर के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गयीं | प्राचीर सोचने लगा कि उसकी नीलाक्षी को बुखार है और फिर भी वह काम कर रही है | प्राचीर अपने आप पर संयम न रख सका और प्रणाली केबिन में पहुँच गया |
“नीलाक्षी, तुम्हें बुखार है तो आज ऑफिस नहीं आतीं | मुझे फोन द्वारा सुचना दे सकती थी|”
“ नहीं सर ऐसी कोई बात नहीं, थोड़ी हरारत थी | गोली खा ली है, ठीक हो जायेगी |”
“ नहीं नीलाक्षी, तुम अभी घर वापस चली जाओ और आराम करो |”
“ नहीं सर, मैं ठीक हूँ |” प्रणाली के लाख ना नुकुर करने पर भी प्राचीर न माना और उसने प्रणाली को घर वापस भेज दिया | प्रणाली के जाने के बाद प्राचीर का भी मन ऑफिस में नहीं लग रहा था | चिंता और झुंझलाहट प्राचीर के चेहरे पर साफ़ देखी जा सकती थी | यह झुंझलाहट रात को पत्नि वैशाली के समक्ष भी नजर आती रही |
अगले दिन जब प्राचीर ऑफिस पहुंचा, प्रणाली पहले से ही केबिन में मौजूद थी | प्राचीर सीधा प्रणाली के केबिन में गया और पूछा, “ अब कैसी तबियत है नीलाक्षी, मैं कल से तुम्हारी सेहत की सोच परेशान हूँ |”
प्राचीर को देख प्रणाली ने तुरंत अपने आंसू पोंछे | परन्तु प्राचीर की नज़रों से प्रणाली की यह हरकत न छुप सकी | प्राचीर ने देखा कि प्रणाली की आँखे सुर्ख लाल हो चुकी हैं | प्रणाली के चेहरे पर उदासी का आवरण चढा है | प्रणाली की सूरत से आभास हो रहा था कि वह रात भर नहीं सोई है और रोती रही है |
“ क्या बात है नीलाक्षी, अगर बुखार ठीक नहीं हुआ तो तुम्हें ऑफिस के बजाए डॉक्टर के पास जाना थे | यहाँ कोई आफत नहीं आ जाती अगर एक दिन और तुम घर पर आराम कर लेती |” प्राचीर ने बड़े संतापित मन से कहा |
“ अब बुखार नहीं है सर |”
“ फिर तुम्हारे चेहरे पर उदासी क्यों है ? “ पूछते हुए प्राचीर ने वहीँ कुर्सी खेंची और प्रणाली के केबिन में ही बैठ गया |
“ ऐसी कोई खास बात नहीं है सर |” कहते कहते प्रणाली का गला रुंध गया और ना चाहते हुए भी आंसुओं की प्रबल धारा पुरे प्रवाह से नयनों से बह निकली |प्राचीर भी अपने आप पर संयम न रख सका और खड़ा हो प्रणाली के नज़दीक जा सांत्वना स्वरूप अपना हाथ उसकी पीठ पर रख बोला, “ “ मुझे बताओ नीलाक्षी, क्या बात है ? एक ऑफिस में काम करने के नाते हम दोस्त जैसे हैं | कैसी भी परेशानी है तुम मुझे बताओ ? परेशानी का कोई ना कोई हल अवश्य निकलेगा |”
आज पहली बार प्राचीर ने प्रणाली के शरीर का स्पर्श किया था | प्राचीर के तन बदन में बिजली सी कौंध गयी | प्रणाली की मरमरी और गदराई पीठ पर हाथ के स्पर्श मात्र से प्राचीर का अंग अंग सिहर गया | प्राचीर ने तुरंत अपना हाथ प्रणाली की पीठ से अलग किया | उधर प्रणाली भी प्राचीर से कुछ ना छिपा सकी और उसने अपनी परेशानियों को कुछ इस तरह ब्यान किया |
“ कल जब मेरी हालत देख आपने मुझे ऑफिस से घर भेजा, मैं ऑटो से अपने घर जा रही थी | अचानक मैंने देखा कि मेरे पति बादल किसी सभ्रांत जवान महिला को अपनी मोटर साईकल पर बिठा ले जा रहे हैं | उस महिला के बैठने और मेरे पति को पीछे बैठ पति को पकड़ने का ढंग काफी आपत्तिजनक था | मैं अपने पति का यह रूप देख दंग रह गई | मैंने ऑटो वाले के मोटर साईकल का पीछा करने की हिदायत दे दी | मेरे पति उस महिला को ले जुहू बीच पर समुद्र के किनारे गए और वहाँ उन दोनों का व्यवहार शर्मसार करने वाला था |”
“क्या तुमने इस बात का जिक्र अपने पति से किया, या इस बारे में बादल से कुछ पूछताछ की ?” प्राचीर ने गंभीरता पूर्वक पूछा |
“नहीं, पर मैं तब से अब तक क्रोध की आग में सुलग रही हूँ | मैंने इमानदारी से जो प्यार, अधिकार, भावना और शरीर अपने पति को समर्पित किया उसका परिणाम अत्यंत भयानक निकला |” इतना कह प्रणाली फफक फफक कर रो पड़ी | प्राचीर ने आगे बढ़ प्रणाली के गालो पर लुढके आंसुओं को पोंछा | गालों पर प्राचीर की हथेलियों के स्पर्श से प्राचीर और प्रणाली दोनों ही रोमांचित हो उठे |
“ हम इसका हल खोजेंगे नीलाक्षी, वैसे तुम अपने आप पर संयम रखो | इस बात का जिक्र किसी से ना करना | खासतौर से अपने पति बादल से इस बात का कोई जिक्र ना करना |” कह कर प्राचीर अपने कक्ष में आ बैठा |
प्रणाली के शरीर को प्राप्त करने की इच्छा पहले से ही प्राचीर के हृदय में घर कर चुकी थी | आज की घटना ने इस इच्छा को और प्रबल कर दिया | वैसे भी नीलाक्षी की कमर और गालो के स्पर्श ने जैसे अपूरित आकांक्षा में आग सी लगा दी | अब प्राचीर और प्रणाली के बीच की हिचकिचाहट पूर्ण रूप से समाप्त हो चुकी थी | आप से तुम और तुम से तू पर दोनों ही आ चुके थे | अब मौका मिलने पर प्रणाली, प्राचीर की कार में इधर उधर घूमने भी चली जाती | प्राचीर ने प्रणाली के मन में पूर्ण रूप से यह बैठा दिया कि बादल की बेवफाई का बदला प्रणाली को स्वयं बेवफा बनकर देना चाहिए | यदि बादल किसी और महिला के साथ आनंदित है तो प्रणाली को भी अपने पुरुष मित्र के साथ आनंद उठाने का पूरा पूरा अधिकार है | आखिर प्राचीर अपनी चाल में कामयाब हो गया | प्रणाली यानी प्राचीर की नीलाक्षी ने प्राचीर को अपना तन समर्पित कर दिया |
अक्सर प्राचीर और प्रणाली इधर उधर होटलों में मिलते रहते | प्रणाली दुनिया के लिए प्रणाली घोष थी पर प्राचीर के लिए वही नीली और गहरी आँखों वाली जीवनमयी नीलाक्षी थी | प्राचीर सदैव उसे नीलाक्षी कहकर ही संबोधित करता और प्रणाली को भी प्राचीर का यह संबोधन अत्यंत सुखद लगता |
एक दिन प्राचीर और उसकी नीलाक्षी होटल के कमरे में प्रेम सलंग्न थे | इसी दौरान होटल पर पुलिस का छापा पड गया | प्राचीर और प्रणाली को होटल से थाने लाया गया | थाने में पहले से ही दो और जोड़े मौजूद थे जो दूसरे होटलों से लाये गए थे |
प्राचीर और प्रणाली जमीन की तरफ नज़रें गडाए बैठे थे | जैसे ही दोनों ने नजरें उठाई दूसरे जोड़ो में प्रणाली के पति बादल और प्राचीर की पत्नि वैशाली को बैठा देख दोनों के पैरों तले जमीन खिसक गयी | ये ही हाल बादल और वैशाली का भी था | चारों लोग एक दूसरे को क्रोधित आँखों से देख रहे थे | कुछ ही क्षणों में चारों के मुखमंडल पर आया गुस्सा शांत हो गया और अब चारों के चेहरों पर समन्वय के भाव थे |
इति
बोध
मधुबनी के नाम को बस पट्टिका पर लिखा देख अनन्य अनायास ही बदहवास सी मुद्रा में बस की तरफ भागा | पुरे दो घंटे बाद मधुबनी जाने वाली कोई बस आयी थी | भीड़ बहुत ज्यादा थी | अनन्य के बस तक पहुँचने तक भीड़ का हुजूम बस के दरवाजे पर जमा हो चुका था | अनन्य को विश्वास हो चला था कि अब बैठने के लिए स्थान नहीं मिल पायेगा | अचानक अनन्य कि नज़र पीछे की तरफ खिड़की के खुले कांच पर पड़ी | अनन्य फुर्ती से खिड़की पर पहुंचा और खुले कांच से सीट के ऊपर अपना हैंड बैग टिका दिया | अनन्य के चेहरे पर कुछ ऐसी मुस्कान तैर गई जैसे उसे बस में बैठने के स्थान का आरक्षण मिल गया हो | धीरे धीरे सभी सवारियां बस में चढ़ गईं | अनन्य भी बस में चढ अपनी स्व: आरक्षित सीट पर बैठ गया | जून का महीना था और गर्मी अपने पुरे शबाब पर थी | अपनी सीट तक पहुँचने में की गई मशक्कत से अनन्य के शरीर का तापमान और भी बढ़ा दिया | उसने बैग से पानी की छोटी बोतल निकाल गले को तर किया और रुमाल से पसीना पौंछ बस के चलने का इंतज़ार करने लगा | ठसाठस भरी होने के कारण गर्मी और ज्यादा लग रही थी परन्तु बस भरी होने के कारण जल्द ही अपने गंतव्य की तरफ बढ़ गयी |
अनन्य पेशे से अध्यापक था और उसकी नियुक्ति जिला सासाराम के पास स्थित गांव अलीपुर में थी | पैतृक मकान मधुबनी में होने के कारण पत्नि रिया और चार साल की बेटी सिमरन मधुबनी में ही रहते थे | महीने दो महीने में जब भी दो चार दिन की इकठ्ठी छुट्टियाँ होती, अनन्य अलीपुर से मधुबनी आ जाता | इस आवागमन में परेशानियां बहुत थी | अलीपुर से पटना तक का सफर छ: घंटे रेल में खड़े खड़े यात्रा करनी पड़ी | बहात्तर सवारियों की क्षमता वाले रेल के डब्बे में तीन सौ यात्री ठूंस ठूंस कर भरे थे | नींद से आँखे बोझिल हो रही थीं | खिड़की के पास सीट होने से, खुली खिड़की से आये गर्म हवा के गर्म थपेड़े पसीने से लथपथ चेहरे पर ठंडक का अहसास दे रहे थे| हाईवे पर आकर बस की गति और तेज हो गयी और अनन्य सुखद नींद के सागर में खो गया |
लगभग दो घंटे नींद लेने के बाद तेज गर्मी के अहसास ने अनन्य की नींद को भंग कर दिया | पूरा शरीर पसीने से नहाया हुआ था | अनन्य ने रुमाल निकाल चेहरे से पसीना पौंछा | अनायास ही अनन्य को लगा कि बस ठहरी हुई है | अनन्य ने खिड़की से सर बाहर निकाला, बाहर का नजारा चौंकाने वाला था | चारों तरफ वाहन ही वाहन खड़े थे | आगे पीछे बस, कार, ट्रक, स्कूटर, मोटर साइकिल और गाड़ियों की लंबी कतारे थी | अनन्य का मन किसी आशंकित दुर्घटना से डर गया |
“ क्या हो गया साहब, ट्रेफिक क्यों जाम है ? “ अनन्य ने सहयात्री से पूछा |
“ प्रदेश के बहुत बड़े मंत्री का काफिला चौराहे से गुजरना है | पुलिस ने चारों तरफ से चौराहे पर आने वाला ट्रेफिक रोक दिया है | “ एक अन्य यात्री ने प्रश्न का उत्तर दिया |
उमस बढ़ती जा रही थी | हवा के बजाए सूर्य की रौशनी अनन्य के मुखमंडल को लाल कर रही थी | बेबसी के साथ उत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी | इसी अवस्था में लगभग आधा घंटा और बीत गया | खाने पीने की चीजें बेकने वाले और भिखारी बार बार खिड़की पर आकर आवाजें लगा रहे थे | अनन्य ने पांच रुपये की कच्चे नारियल की फांक खरीद कर खा ली |
“ भैया, अभी कितना समय लगेगा मंत्री जी के काफिले में ? अनन्य ने नारियल वाले से पूछा |
“ भैया अभई घंटा दुई घंटा तो अवश्य लगि हैं | ऊहाँ दलित बस्ती मा नैताजी का रोक लयेल भा | उन्हा का स्वागत करी के समय तो लगबे का करी | “ नारियल विक्रेता की बात सुन अनन्य की बेबसी और उत्तेजना चरम पर जा पहुंची | गर्मी प्राण निकाले दे रही थी | अनन्य ने पुन: हैंड बैग सीट पर रख, बाक़ी समय बस से बाहर किसी वृक्ष के नीचे गुजारने का मन बना लिया |
बस से उतर अनन्य पास ही नीम के पेड़ के नीचे खड़ा हो गया | यहाँ पहले से लोगो का जमघट नेताजी और सरकारी व्यवस्था को कोसने में व्यस्त था | थके हारे अनन्य का मन किसी राजनितिक परिचर्चा में पात्र बनने का नहीं था | रह रह कर उसके समक्ष पत्नि रिया और बेटी सिमरन के चेहरे आ रहे थे | अनन्य सोच रहा था, अवश्य ही दोनों उसके आने का रास्ता निहार रहे होंगे | अनन्य ने मोबाइल निकाल रिया को सूचित कर दिया कि आने में देरी होगी | थोड़ी ही देर में पुलिस वालों की हलचल बढ़ गई | शायद दस पन्द्रह मिनट में मंत्री जी का काफिला आने वाला था | अनायास अनन्य के कदम उस तरफ बढ़ गए जहां पुलिस ने बेरीकेट्स लगा रखे थे | अनन्य पैदल पैदल सबसे आगे आकर खड़ा हो गया |
काफी भीड़ लगी थी | एक बड़ी भीड़ नेताजी के स्वागत में हाथों में मंत्री जी जिंदाबाद की तख्तियां और बैनर लिए खड़ी थी | बाकी भीड़ का हिस्सा मुझ जैसे लोग, जो मजबूरी और हताशा के शिकार थे | अचानक एक कुत्ता भीड़ से निकल बेरीकेट्स के नीचे से होता हुआ खाली पड़ी सड़क पर दौड़ लगाते हुए, उस तरफ बढ़ गया जहां से नेताजी के काफिले को आना था | कुछ पुलिस वाले डंडा और पत्थर ले कुत्ते के पीछे भागे | कुत्ते की दौड़ गति पुलिस वालों से ज्यादा तेज थी | जल्द ही कुत्ता सबकी नज़रों से ओझल हो गया |
“ हमें कैदियों की भाँती रोक लिया ठुल्लों ने, कुत्ते को रोक कर दिखाते | “ भीड़ के बीच से आवाज़ सुन सबकी हँसी छूट पड़ी | यह मनुष्य की फितरत ही तो है कि इतनी परेशानियों के बाद भी इस व्यंग्य को सुन सभी के चेहरे मुस्कान से खिल पड़े | इसके विपरीत पुलिस वालों की आँखें भीड़ में आवाज़ की दिशा में बोलने वाले व्यक्ति को ढूंढने का यत्न कर रहीं थी कि किसने यह व्यंग्य किया है |
तभी दूसरे कोने से एक और आवाज आई | “ भैया, नाती रिश्तेदारों को इन पुलिस वालों की छूट रहती है | इस भीड़ से क्या रिश्तेदारों को तो ये जेल थाने से भी निकाल भगा देते हैं | “
“ कौन बोला बे | “ पुलिस वाले ने उत्तेजनापूर्ण डंडा लहराया तो हँसने वाले लोग भी चुप हो गए | जैसे तैसे दूसरे पुलिस सहकर्मियों ने उस उत्तेजित पुलिस वाले को शांत किया |
अचानक एक असहाय सा दिखने वाला बुजुर्ग व्यक्ति आगे आया और पुलिस वाले को संबोंधित कर बोला, “ बेटा, यहाँ आस पास कहीं पानी मिलेगा ? ”
“ हाँ टाटा कम्पनी को आर्डर किये हैं | दो चार दिनों में यहाँ सयंत्र सहित आपके लिए पानी मुहैया करा देंगे | “ पुलिस वाले का जवाब सुन बूढ़े ने नजरें झुका ली |
तभी एक आकर्षक हीरोनुमां युवक पीठ पर बैग लटकाए आगे आया और बूढ़े की पीठ पर हाथ रख पुलिस वाले को कड़क आवाज में बोला, “ शर्म नहीं आती आपको | किसी बुजुर्ग से इस प्रकार बात करते हैं ? आपके भी बुजुर्ग माँ बाप या रिश्तेदार होंगे | अगर उनसे कोई इस प्रकार बात या व्यवहार करे तो आपको कैसा लगेगा ? “
पुलिस वाले ने युवक की तरफ लाल पीली आँखों से घूरा | युवक ने भी तुरंत पुलिस वाले के घूरने का उत्तर दिया, “ ऐसे क्या घूर रहे हो, खा जाओगे क्या ? इस प्रकार किसी बुजुर्ग से व्यवहार नहीं करना चाहिए था |”
“ मैं तुम्हें नहीं बल्कि तुम्हारी पीठ पर टंगे बैग के कोने से बाहर निकली बिसलेरी पानी की बोतल के ढक्कन को घूर रहा हूँ | अगर तुम्हें बुजुर्गो का इतना ही ख्याल है तो अपनी बोतल निकाल इनकी प्यास क्यों नहीं बुझा देते ? “ पुलिस वाले ने पलटवार करते हुए कहा |
“ मैं... मैं तो पिला ..... पिला देता, पर मैंने ....इस बोतल से मुँह अड़ा कर ....पानी पिया है| बोतल मेरी झूठी हो गयी है | “ युवक ने बूढ़े की पीठ से हाथ हटा, नज़रें झुका पीछे हटते हुए उत्तर दिया | हालात बता रहे थे कि युवक झूठ बोल रहा था | पुलिस वाले के साथ साथ सभी देखने वालों के चेहरों पर मुस्कान थी |
अचानक अनन्य की आँखे सफ़ेद कपड़ों में पैंतीस छत्तीस वर्षीय युवती पर जा टिकी | शक्ल से पढ़ी लिखी, सांवले रंग की मोटी सी दिखने वाली युवती में कोई भी ऐसी बात नहीं थी कि वह किसी के आकर्षण का केन्द्र बन सके | उस युवती के चेहरे पर छाये क्रोध, उत्तेजना से भरपूर आँखे और मुखमंडल पर छाये नफरत के भावों ने अनन्य को उसकी तरफ आकर्षित कर दिया | अनन्य समझ गया कि मंत्रीजी के काफिले की वजह से हुए ट्रेफिक जाम से युवती इतनी परेशान है कि सम्पूर्ण निराशा और हताशा के भाव चेहरे पर केंद्रित कर बैठी है |
अचानक सायरन की आवाज़ से अनन्य की तन्द्रा भंग हो गई | आगे आगे सफ़ेद रंग की जीपें, बंदूकधारी जवान उन पर सवार् और जीपों के पीछे अनगिनत गाडियां | मंत्रीजी का काफिला गुजर रहा था | अनन्य बस पकड़ने के लिए वापस मुडा ही था कि एक बार फिर अनन्य की नजर उस युवती पर जा टिकी | युवती की अगली प्रतिक्रिया देख अनन्य चौंक पडा | युवती बार बार नफरत के साथ मंत्रीजी के काफिले की तरफ थूंक रही थी और होठों में कुछ बुदबुदा रही थी | परेशान भीड़ के पास युवती की इस हरकत को देखने का समय नहीं था |
अनन्य वापस आ अपनी सीट पर बैठ गया | उस युवती के आचरण और ट्रेफिक व्यवस्था से अनन्य का मान दुखी था | अनन्य सोच रहा था कि आम आदमी की हैसियत क्या है | मंत्रीजी भी भारत के नागरिक हैं और जाम में फसीं जनता भी भारत की नागरिक है | फिर ये कैसा सामान अधिकार है | समानता का डंका सरकार पीटना बंद कर दे तो अच्छा हो | किस प्रकार आम जनता दो घंटे एक मंत्री के आगमन के कारण अपराधियों की भांति पुलिस के डंडे के बल पर अपमान रूपी यातना झेलती रही | अपने अपने गंतव्य पर जाने को तरसती रही | भूख प्यास से तडफता हिन्दुस्तान का आम आदमी | मंत्री के काफिले पर अपने अधिकारों का बलिदान करता आम आदमी | इन नेताओं के विरोध में कुछ बोलने वाले को विशेषाधिकार हनन के नोटिस का खतरा | इस देश के आम आदमी के अधिकार और हैसियत अनन्य की समझ से बाहर थी | नेताओं को विशेषाधिकार और आम आदमी को वोट देने और कष्ट सहने का अधिकार | यही सोचते सोचते अनन्य अपने घर मधुबनी आ पहुंचा |
बेटी सिमरन पापा को देखते ही पापा की गोदी में चढ गई | पत्नि रिया का मुखमंडल भी खुशी से सरोबार था | पूरी शाम खाने, खेलने और बतियाने में समाप्त हो गयी | रात्री का भोजन कर थका हारा अनन्य बिस्तर पर गिर सुबह नौ बजे ही जाग पाया | तरोताजा हो चाय का प्याला थाम अनन्य टी वी के सामने बैठ गया | सदैव की भांति अनन्य ने समाचार चैनल लगा दिया | समाचारों में ब्रेकिंग न्यूज थी कि किसी महिला ने किसी मंत्री की घर में घुस कर मंत्री की हत्या कर दी | अनन्य चौंक पडा | टी वी के पर्दे पर कल जाम में फंसी वही थूक कर अपनी नफरत का इज़हार करने वाली औरत का फोटो था | अगले ही पल अनन्य ने देखा की काफिले वाले मंत्री का फोटो भी परदे पर आया और समाचार वाचक कुछ इस प्रकार समाचार पढ़ रहा था |
“ इस युवती ने मंत्रीजी के जन दरबार में मंत्रीजी से एकांत में मिलने की इच्छा जताई | एकांत में जाने पर इस युवती ने आंचल से चाक़ू निकाल मंत्री पर ताबड़तोड़ वार कर दिये | प्रत्यक्षदर्शी जब तक इसे रोक पाते, इसने आठ बार चाक़ू मंत्री जी के शरीर में घोंप दिया | मंत्रीजी को अस्पताल ले जाया जाता उससे पहले ही मंत्री जी ने दम तोड़ दिया | यह कातिल हसीना सरकारी स्कूल में शिक्षिका है | इसके पति की म्रत्यु के बाद इन्ही मंत्रीजी ने इस युवती की अनुकम्पा नियुक्ति करवाई | घटना के बाद पुलिस को दिए बयान में युवती ने अपने अपराध को स्वीकार किया है | इस युवती ने मंत्रीजी पर अनुकम्पा नियुक्ति की एवज में मंत्रीजी पर युवती के दैहिक शोषण और यौन उत्पीडन का आरोप भी लगाया है |”
अनन्य ने हाथ में पकड़ा चाय का प्याला मेज़ पर रख रिमोट उठा टी वी बंद कर दिया | अनन्य के मुख पर संतोष के भाव थे | शायद अनन्य को आम आदमी के अधिकारों और हैसियत का बोध हो गया था |
इति
फतवा खान
काली का घर भी धर्मनिर्क्षेपता की अजब मिसाल थी | परिवार के नाम पर तो काली पंडित और उसकी बहन कमला ही थे, पर काली के साथी और सह्कर्ता जोजेफ, हरिया, सरबजीत सरदार के अलावा फ़तेह अली खान भी घर के सदस्यों से अलग नहीं थे | इन सदस्यों के अलावा घर के नौकरों को भी घर के सदस्यों जैसा दर्ज़ा प्राप्त था |
आज पुरे घर में हर्ष का माहौल था | घर में मौजूद सभी लोगों की खुशी का कारण फ़तेह अली खान के भाई और पुत्र का अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से शिक्षा समाप्त कर वापस मुंबई घर पर आगमन था | बरसों बाद बच्चों के घर आने से प्रफुल्लता फ़तेह अली खान के चेहरे पर तो विद्यमान थी परन्तु काली पंडित सहित बाकी सदस्यों की खुशी का भी ठिकाना नहीं था | काली पंडित उत्साहपूर्वक घर में की गयी तैयारियों का जायजा ले रहा था |
“जोजेफ, गाडियां तैयार हैं | रेल ठीक ग्यारह बजे स्टेशन पर आ जायेगी |” काली ने जोजेफ को टोकते हुए पूछा |
“जी दद्दा |” काली को घर में सभी दद्दा कहकर पुकारते थे | “तीनो गाडियां ड्राइवर सहित तैयार हैं | सरबजीत फूलमाला लेकर आता ही होगा |” जोजेफ ने उत्तर दिया |
“फतवा (फ़तेह अली खान का संछिप्त नाम) नज़र नहीं आ रहा है |” काली ने पूछा |
“जी फतवा सामान (हथियार) जो ले जाना है, उन सबका जायजा ले रहे हैं | रास्ते और स्टेशन पर आशिक अली और उसके साथीयों से सावधान तो रहना पड़ेगा | दोनों बच्चों की सुरक्षा हेतु सजगता और सावधानी अति आवश्यक है दद्दा |” जोजेफ ने उत्तर दिया |
“पुरे मुंबई में एक ही दुश्मन है हमारा, आशिक अली | इसी कमबख्त की दुश्मनी के कारण फरहान और अख्तर को पांच साल की उम्र में बाहर पढ़ने के लिए मुंबई से दूर भेजना पड़ा था | आज इक्कीस साल बाद हमारे जिगर के टुकड़े वापस घर आ रहे हैं | सुरक्षा इंतजाम जरुरी है |” काली ने आह भरते हुए कहा | “जोजेफ फतवा को मुझसे मिलने के लिए भेजना जरा |”
“जी दद्दा |” कहकर जोजेफ बाहर चला गया | काली सोफे पर बैठ आशिक अली से हुई दुश्मनी के बारे में सोचने लगा | आशिक अली से काली की कोई जातीय दुश्मनी नहीं थी | आशिक अली के खिलाफ एक छोटी सी गवाही ने काली और आशिक अली के बीच दुश्मनी की जैसे खाई खोद दी थी |
काली और उसकी बहन कमला ने अपना बचपन गरीबी में फुटपाथों पर गुजारा था | आज इस अमीरी के मुकाम तक पहुँचने के लिए जमाने के जुल्म सहे थे | बचपन में मार भी खाई और और दुनिया की बेगार भी काटी थी | जुल्म और दर्दों से आहत भाई बहन ने किशोरावस्था में कदम रखा तो एक फकीर की नसीहत ने जैसे काली की किस्मत ही बदल दी | फकीर की नसीहत का एक एक शब्द काली को अभी तक याद था | फकीर ने कहा था,
“ बेटे, जुल्म का सहना भी उतना ही बड़ा अपराध है जितना जुल्म का करना | ऊपर वाले ने शरीर और शरीर में आत्मा दीं हैं | अपनी आत्मा को कष्ट देकर अगर कोई जुल्म को सहन करता है तो यह परवरदिगार का अपमान है, जिसने जिंदगी दी है | अपनी आत्मरक्षा के लिए अगर तुम किसी पर प्रहार करते हो तो यह पाप नहीं है | संसार में कुछ भी नष्ट हो जाए अपने आत्म सम्मान को नष्ट मत होने देना | तुम्हारी बहन जवानी की दहलीज़ पर है | अगर तुम दुनिया के कुकृत्यों को इसी सहन करते रहे तो तुमसे ज्यादा भयानक परिणाम तुम्हारी बहन को भुगतना पड़ेगा |” फकीर के शब्दों ने काली के ह्रदय और मष्तिष्क में उर्जा का संचार इस प्रकार किया कि काली ने एक योद्धा की भाँती हथियार उठा अपराध और गंदगी के खिलाफ लड़ना प्रारम्भ कर दिया | काली ने पापरूपी लोहे को काटने हेतु अपराध रूपी लोहे की आरी का सहारा ले लिया | फतवा के आगमन से कलि की विचार तन्द्रा टूट गयी |
“फतवा, स्टेशन चलने की सम्पूर्ण तैयारियां हो गयीं |”
“जी दद्दा | सब तैयारियां मुक़म्मल हो चुकी हैं | सरबजीत भी माला ले कर आ चुका है |”
“देखो फतवा, फरहान अख्तर के आने के पश्चात हमें आशिक अली से ज्यादा सावधान रहना पड़ेगा |”
“दद्दा, आप चिंता ना करें | सब इंतजाम हो चुके हैं | आपसे गुजारिश है कि स्टेशन चलें |”
स्टेशन पर गजब का माहौल था | फरहान और अख्तर को देख सभी की आँखों से खुशी के आंसू छलक पड़े | काली, फतवा, जोजेफ, हरिया और फतवा में गबरू जवान बच्चों को सीने से लगाने की जैसे होड सी मच गई | स्टेशन पर कड़ी भीड़ अद्भुत नज़ारे का लुत्फ़ उठा रही थी | गाड़ी में बैठ सभी लोग घर को प्रस्थानं कर गए |
घर पर कमला दरवाजे पर कड़ी सबकी राह देख रही थी | कमला को देख फरहान और अख्तर गाड़ी से निकल कमला से लिपट गए | आंसुओं की धरा कमला के नेत्रों से बिखर मातृत्व की किरणों का नज़ारा दे रही थी | कुछ ही देर में फरहान और अख्तर तरोताजा हो सबके साथ खाने कि मेज़ पर आ बैठे |
“रिश्ते में फरहान हमारा पुत्र और अख्तर हमारी भाई है | हमने आप दोनों को बच्चे समान पाला है | अत: आप दोनों हमारे बेटे ही हुए |” कमला ने खाना खाते हुए दोनों बच्चों को प्यार से निहारते हुए कहा |
“बिलकुल बहन, इन्होने पांच साल की उम्र के बाद अपनी तालीम बाहर गाँव में रहकर पाई है | परन्तु पांच साल की उम्र तक इनकी परवरिश आपने एक माँ की तरह अपनी औलाद से बढ़कर की है | फरहान और अख्तर का रिश्ता आपसे बहन और बुआ का ना होकर माँ बेटे का है |” फतवा की बात सुनकर कमला की आँखें नाम हो गयीऔर आवाज़ बैठ गयी | मामले की नजाकत देख काली बीच में बोल पड़ा,
“अब इन बातों को छोडिये | बच्चों को खाना खाकर आराम करने दीजियें | इतनी यात्रा करके बच्चे थक गए होंगे |” सरबजीत और जोजेफ ने भी काली की बात को सहमति दे दी | खाना खाकर सब अपने अपने कमरे में पहुच गए |
बिस्तर पर लेटा काली फिर अतीत के सागर में गोते लगाने लगा | उसे फतवा से पहली मुलाक़ात याद आ गयी | अहमदाबाद में पुलिस से बचता काली मालगाड़ी के एक खाली डिब्बे में चढ़ गया था |रात के अँधेरे में काली डिब्बे के एक कोने में लेट गया | डिब्बे से अँधेरे को चीरती बच्चे के रोने की आवाज़ ने काली को चौंका दिया | काली ने मोबाइल की टोर्च जला देखा तो दूसरे कोने में एक युवक के पास लेटा छोटा बच्चा रो रहा था | उसके ही हमउम्र नौजवान बच्चे के बराबर पड़ा कराह रहा था | काली ने बच्चे को उठा सीने से लगा लिया | तत्पश्चात काली बच्चे और नौजवान को अपने घर ले आया | काली ने डॉक्टर को बुलाया, कुछ उपचार के बाद नौजवान को होश आ गया | युवक अचंभित हो अपने आस पास बच्चे को ढूढने का यत्न करने लगा |
“तुम बिलकुल सुरक्षित हो, बच्चा भी मेरी बहन कमला के पास सुरक्षित है | डॉक्टर के अनुसार तुम्हे आराम की सख्त आवश्यकता है | मेरा नाम काली है .... काली पंडित | तुम्हारा नाम क्या है ?”
“फ़तेह अली खान “ युवक ने उत्तर दिया |
“रेल के डिब्बे में इस बच्चे के साथ तुम बेहोशी की हालत में कैसे पहुंचे ?” काली ने पूछा |
“मेरे हाथों वक़्त ने एक कत्ल करा दिया, पुलिस मेरे पीछे थी | मैं रेल के डिब्बे में छुप गया | पता नहीं कब बेहोशी ने आ घेरा | जब होश आया तो आपको सामने पाया |”
“किसका खून किया है तुमने ?” काली ने आश्चर्य भरे स्वर में पूछा |
“अपने अब्बा का |” फ़तेह अली खान के शब्दों से पुरे कमरे में स्तब्धता छा गई |
“क्या तुमने अपने पिता का खून किया है ? मगर क्यों ?” काली ने आश्चर्य से पूछा |
“इस वाकये को मैं अपने जहन में दोहराना नहीं चाहता | यकीन कीजिये उन्हें मारकर मैंने कोई गुनाह नहीं किया है | उनका कत्ल करके मैंने इस कायनात पर एक अहसान किया है | उनके कत्ल के इलज़ाम में खुदा बन्द करीम ने भी मुझे मुआफ कर दिया होगा | उन्हें मैंने उनके उस गुनाह की सजा दी है जिस गुनाह को करने से पहले शैतान भी दस बार सोचता है |” फ़तेह अली खान ने आह भरते हुए कहा |
“क्या गुनाह किया था उन्होंने ?” काली ने पूछा |
“आपने सहारा दिया है | मेरी जान बचाई है | तहे दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ | मगर यह सवाल आप ना ही पूछे तो अच्छा है | अगर आप मुझे सहारा नहीं देना चाहते तो मैं यहाँ से चला जाता हूँ | मेरा भाई....यानी वह बच्चा मुझे लौटा दो |”
कहाँ जाओगे ?” काली ने पूछा |
“जहां तकदीर और परवरदिगार ले जाएगा |” फ़तेह अली खान ने नज़रें झुका कर कहा |
“तुम कहीं नहीं जाओगे | समझे फ़तेह अली खान | आज से तुम भी इस परिवार का हिस्सा हो |” कुछ ही दिनों में काली ने अपना सम्पूर्ण इतिहास फतवा को बता दिया | फ़तेह अली खान फतवा बन काली की पाप और पुण्य के बीच दौड़ती जिदगी का एक अहम हिस्सा बन गया |काली ने अनेक बार फतवा से उसकी कहानी जाननी चाही परन्तु फतवा सदैव बात को टाल जाता | इन्ही विचारों में मग्न काली को निद्रामग्न हो गया |
दुसरे कमरे में फरहान और अख्तर एक बड़े बिस्तर पर लेटे थे | फरहान तो थाकान्वश सो गया पर अख्तर की आँखों से नींद दूर थी | एक नै जिम्मेदारी के अहसास ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया था | एक ऐसी जिम्मेदारी जिसे निभाना उसकी जिंदगी का मकसद और फ़र्ज़ बन गया था | कालिज आफ सेकंडरी एजुकेशन शिमला से शिक्षा ग्रहण कर अलीगढ युनिवेर्सिटी पहुँचने का लम्हा उसे अभी भी याद था | फरहान की नटखटता और चंचलता के विपरीत अख्तर संजीदा और शांत नवयुवक था |
अख्तर को याद था जब “जन्नत ए जमीं” कार्यक्रम के तहत ग्रुप टूर पर काश्मीर जाने का अवसर मिला | काश्मीर की सात दिनों की यात्रा ने जैसे अख्तर के जीने का मकसद ही बदल दिया | सोपोर की खूबसूरत पहाडियों के बीच उसकी मुलाक़ात मकबूल भट्ट से हुई | मकबूल के कथनानुसार मकबूल एक इस्लामिक क्रांतिकारी था | मकबूल ने अख्तर को उसी शाम होने वाली एक मजहबी महफ़िल में शामिल होने की दावत दे डाली | ना चाहते हुए भी अख्तर अब्दुल सराय में होने वाली इस बैठक में पहुँच गया |
महफ़िल का नज़ारा देख अख्तर समझ गया कि यह एक मजहबी मजलिस है | मंच पर पांच मौलवी नुमा व्यक्ति कतार में बैठे थे | अख्तर के हमउम्र कुछ पचास के करीबन लड़के दर्शक दीर्घा में बैठे थे | महफ़िल की खामोशी को तोड़ते हुए एक बूढ़े मौलवी ने मजलिस का आगाज़ कुछ यूँ किया |
“अस सलाम वालेकुम | हाजरीन आपका मैं तहेदिल से इस्तकबाल करता हूँ | मेरा नाम राशिद अल हसन है | मेरा मकसद इस्लाम को आसमान की उन बुलंदियों तक ले जाना है जहां इस्लाम के सिवा कोई और परचम ना लहर सके | मेरा मकसद भूले भटके मुसलामानों को इस्लाम की सच्ची राह दिखाना है | खुदा ने जो पाक जिंदगी हमें बक्षी है उसका मकसद ऐशो आराम हरगिज़ नहीं है | अपने मज़हब की हिफाज़त ही अपने मज़हब से की गयी मुहब्बत और अकीदत है | जिंदगी खुदा का दिया नायाब तोहफा है | क्या हमने कभी सोचा है कि खुदा ने यह नायाब तोहफा हमें क्यों दिया ? इस नायाब टोफे की एवज में खुदा हमसे क्या चाहता है ? खुदा चाहता है हम इस्लाम के बताए नेक रास्ते पर चलें | मज़हब की हिफाज़त के लिए कुरआन में बताए रास्ते पर चलकर कुरआन की रवायतों पर अमल करें |एक मुसलमान के घर में पैदा हो हम खुदा की बनाई कायनात का एक अहम हिस्सा हैं | हमारी रूह खुदा की नेमत का ही एक मामूली जर्रा है | आज इस्लाम पर ज़ुल्म के काले बादल छाये हैं | काश्मीर में हो रहे जुल्मों से हिन्दुस्तान के नहीं वर्ण पूरी दुनिया के मुसलमान खफा हैं | इस परेशानी के सबब को इस्लाम पर आया एक खतरा माना जा रहा है |” राशिद साहब ने एक सांस ले पुन: अपना भाषण इस प्रकार जारी रखा,
“हिन्दुस्तानी आवाम और बादशाहत इस्लाम का नाम मिटाना चाहती है | यह हम होने नहीं देंगे | जब तक हिन्दुस्तान की सरजमीं पर एक मुसलमान भी जिन्दा रहेगा हम इस रियासत में इस्लाम का बाल भी बांका ना होने देंगे | आओ, आज अहद करो कि चाहे हमारी जान क्यों ना चली जाए पर हम इस्लाम पर आंच नहीं आने देंगे | इस्लाम और मुसलामानों की हिफाज़त के लिए एक जंग की दरकार है | इसी जंग को लड़ने के लिए हमें जंगीयों की जरुरत है | मजहबी जुबां में इन्ही जंगीयों को जेहादी कहा जाता है | कुरआन में कहां गया है कि इस्लाम के रास्ते चल कर, इस्लाम की हिफाज़त के लिए जो जान देगा या जान लेगा वह जेहादी कहलायेगा और उसे जन्नत नसीब होगी |”
रशीद की तहरीर से सभी नौजवानों के चेहरे तमतमा उठे | सभी हाजरीन में इस्लाम के लिए कुछ कर गुजरने का ज़ज्बा जोर मारने लगा | अख्तर कल तक जिस काश्मीरी जंग को सियासती खेल समझ रहा था उसने इस मुसलामानों पर हो रहे जुल्मों कि सूरत अख्त्यार करने में वक्त ना लगा | राशिद साहब की तहरीर के बाद खाने का दौर चला | अख्तर ने प्लेट उठाई ही थी कि एक नौजवान ने आकार अख्तर के कंधे पर हाथ रख दिया |
“आप खाना खाने के बाद राशिद साहब से मिल लें | राशिद साहब आपसे सुछ कहना चाहते हैं |” नौजवान ने बड़े धीमे स्वर में अख्तर से कहा |
“कोई खास वजह ?” अख्तर ने घबराते हुए पूछा |
“नहीं कोई खास वजह नहीं | आप इत्मीनान से खाना खाकर उनसे कमरा नम्बर आठ में मिल लें |” अखतर के दिमाग में हवाइयां उड़ने लगीं | जाने क्यों राशिद साहब ने उसे ही बुलाया है | अख्तर ने अनमने ढंग से खाना खाया और कमरा नम्बर आठ की तरफ बढ़ गया | दरवाज़ा खटखटा कर उसने अंदर जाने की इजाजत मांगी |
“अंदर तशरीफ़ ले आइये अख्तर साहब |” आवाज़ राशिद साहब की थी |
“आदाब अर्ज है |” अख्तर ने अंदर जा दबी जुबां में कहा |
“तशरीफ़ रखिये |” राशिद के आग्रह पर अख्तर पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया |
“आपका नाम क्या है, कहाँ के रहने वाले हैं आप ?” राशिद ने सवाल किया |
जी, अख्तर नाम है मेरा, मैं मुंबई का रहने वाला हूँ और अलीगढ में तालीम पा रहा हूँ |”
“बहुत अच्छे |” राशिद के चेहरे पर अख्तर के उत्तर को सुन एक अजीब सी चमक आ गयी |
“आप जानकार खुश होंगे कि तमाम हाजरीन में से हमने आपको इस्लाम का खैरख्वाह बनाने के लिए पसंद किया है | आपकी तरफ देखते ही हम समझ गए की आप खुदा के वो फरिश्ते हो जो इस्लाम की हिफाज़त के लिए दुनिया में आये हो |”एक घंटे की तहरीर और बरगलाहट के बाद अख्तर भी सोचने के लिए मजबूर हो गया कि क्या उसका जन्म वास्तव में इस्लाम और मुसलामानों की हिफाजत के लिए ही हुआ है | तीन हफ्ते की जेहादी ट्रेनिंग लेने का वादा दे अख्तर ने राशिद साहब से रुखसती ले ली |
“जन्नत ए जमीं” का कार्यक्रम समाप्त कर अख्तर अलीगढ आ पहुंचा | एक काश्मीरी दोस्त की शादी का बहाना वह काश्मीर जाकर तीन हफ्ते की जेहादी ट्रेनिंग भी ले आये | ट्रेनिंग में अख्तर को बम बनाना, बम स्थापित करना, वेशभूषा बदलना आदि आदि गहन रूप से सिखाया गया | अख्तर को बड़े बड़े जेहादी कहे जाने वाले आकाओं से भी मिलवाया गया | उसके पश्चात कई बार अख्तर को बम, असला आदि की सुपुर्दगी करने मुंबई, अहमदाबाद और बंगलोर आदि स्थानों पर भी भेजा गया |
तालीम खत्म कर अलीगढ से मुंबई तबादले के वक्त अख्तर को मुंबई का सफरोश बनाया गया | एरिया कमांडर के रूप में अख्तर के ऊपर नियुक्त था आशिक अली | सुबह उसे आशिक अली से मिलने जाना था | यही कारण था कि नींद अख्तर की आँखों से बहुत दूर थी | अगले दिन अख्तर बिना किसी को बताए आशिक अली के अड्डे पर पहुँच गया | अख्तर के स्वागत के बाद काम की बात कुछ यूँ प्रारम्भ हुई |
“अख्तर पन्द्रह दिन बाद गणेश विसर्जन है | चौपाटी पर लाखों लोग विसर्जन के लिए आते हैं | वहाँ सिलसिलेवार बम विस्फोट कर हमें हिन्दुस्तान के हुक्मरानों को दिखलाना है कि काश्मीर में मुसलामानों पर हो रहे सितमों का खामियादा हिन्दुस्तानियों को चौपाटी पर अपनी जान देकर चुकाना पड़ेगा | इस काम के लिए हमने जगन भाई लाउड स्पीकर वाले को खरीद लिया है | तुम्हे बंदरगाह से बारूदी असला ले जगन भाई तक पहुंचाना है | लाउड स्पीकर में जब बम फटेंगे तो हिन्दुस्तानी हुक्मरानों की आँखें खुली खुली रह जायेंगी | इसके सिवा एक और विशेष काम राशिद भाई ने आपके लिए रख छोड़ा है |” आशिक अली ने कहा |
“वह विशेष काम क्या है |” अख्तर ने पूछा |
“”परसों आपके घर काली पंडित ‘साईं उत्सव’ का आयोजन कर रहे हैं | इस उत्सव में काली स्टेज पर होगा और भीड़ स्टेज के चारों तरफ होगी | आपको स्टेज के नीचे बम से धमाका करना होगा |”
अख्तर चुन कर बोला,”नहीं यह मैं नहीं कर पाऊंगा | काली बाबा ने किसी का क्या बिगाड़ा है | उन्होंने तो इस्लाम की राह में कोई रोड़ा नहीं अटकाया है | फिर मेरा भाई फतवा और मेरा भतीजा फरहान भी वहाँ होंगे | उनकी जान को भी खतरे में मैं नहीं डाल सकता |”
“मत भूलो अख्तर आप इस इलाके के सुबाफरोश और हम एरिया कमांडर हैं | उन्नीस सौ तिरानवे के बम धमाकों में इसी काली ने मेरे खिलाफ गवाही दी थी | मुझे चार साल जेल में रहना पड़ा | हमारा जेहाद करने की मुहीम चार साल इस काली की वजह से पिछड़ गयी | इसी वजह से काश्मीर में मुसलामानों का कत्लेआम आज तारीख तक जारी है | काली को उस गवाही का जवाब देने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा अख्तर | जहां तक फरहान और अख्तर का सवाल है उन्हें स्टेज से दूर रखने की कोशिश करना | फिर भी उन्हें कुछ होता है तो तारीख उनकी शहादत को याद रखेगी |” आशिक अली ने हँसते हुए कहा |
“काली बाबा कि मौत तुम्हारे जाती बदला लेने की कोशिश तो नहीं ?” अख्तर ने सवाल किया |
“मैं तुम्हारी राशिद साहब से बात करा देता हूँ | यह उन्ही का हुक्म है |”आशिक अली ने दीवार पर बनी अलमारी खोली | बटन दबाते ही अलमारी में बने स्क्रीन पर राशिद साहब की तस्वीर उभर आयी | राशिद साहब ने आगे कहना प्रारम्भ किया,
“अख्तर साहब, आशिक अली ने जो फरमाया है वह हमारा ही हुक्म है | काली का खत्म होना कौम और मज़हब के लिए फायदेमंद साबित होगा | यह काली का अंजाम ही नहीं, सुबाफरोश होने के नाते तुम्हारा पहला इम्तिहान भी है |” इतना कह राशिद की तस्वीर परदे से लुप्त हो जाती है | आशिक अली अख्तर को रिवाल्वर और टाइम बम देकर विदा करता है |
काली पंडित की कोठी में बने उपवन में बहुत सुसज्जित मंच बनाया गया है | मंच पर साईं बाबा की विशाल प्रतिमा स्थापित की गयी थी | मंच के चारों तरफ विशाल जनसमूह था | मौका देख अख्तर मंच के नीचे घुस गया | बारह बजे आरती प्रारम्भ होनी थी | अख्तर ने सवा बारह बजे का समय लगा बम को स्टेज के नीचे स्थापित कर दिया |
‘भाई जान मेरे पेट में बहुत जोर से दर्द हो रहा है | साथ ही सर भी चक्र रहा है |” पौने बारह बजते ही अख्तर ने फतवा खान से कहा |
“क्या हुआ अख्तर |” फतवा ने चिंतित स्वर में कहा | “तुम जाकर अपने कमरे में आराम करो | आरती के बाद मैं डॉक्टर को लेकर आता हूँ |”
“भाईजान मैं अकेले कमरे तक नहीं जा पाऊंगा | आप अगर मुझे मेरे कमरे तक छोड़ दें तो मेहरबानी होगी |” अख्तर ने तड़पने का सफल अभिनय करते हुए कहा |
फतवा अख्तर की हालत देख अख्तर के आग्रह को ना टाल सका | फतवा ने अख्तर को उसके कमरे में बिस्तर पर लिटा दिया | अख्तर पेट और सर पकड़ तड़पने का अभिनय जारी रख रहा था | फतवा अख्तर को इस हालत में छोड़ आरती में जाने का साहस नहीं कर पा रहा था |
“भाईजान मेरा दिल घबरा रहा है | आप फरहान को फोन कर यहीं बुला लीजिए |” अख्तर की तडपन इस वाक्य के साथ चरम सीमा पर थी | फतवा ने फरहान को फोन कर जल्द से जल्द अख्तर के कमरे में आने का आदेश दे डॉक्टर को फिर जल्दी आने का आग्रह भी फोन द्वारा कर दिया |
कुछ ही देर में फरहान भी अख्तर के कमरे में पहुँच गया | अख्तर तड़पने का सफल अभिनय करते हुए चोर नज़रों से बार बार घडी कि तरफ देख रहा था | अख्तर को अपनी चाल कामयाब होती दिखलाई दे रही थी | अख्तर बम भी स्थापित कर चूका था और फतवा और फरहान भी बम से दूर उसके पास थे | उधर आरती की आवाज़ भी वातावरण को चीरती अख्तर के कानो में आ रही थी |
आरती समाप्त हो गयी | घडी में साढ़े बारह हो गए और धमाका भी नहीं हुआ | अख्तर तड़पने का अभिनय भूल चुका था | कमला और काली पंडित भी चिंतित मुद्रा में अख्तर के कमरे में आ चुके थे | बम ना फटने से अख्तर बेचैन हो उठा और बाहर की तरफ भागा तो सभी अचंभित हो गए |
“क्या ढूंढने जा रहे हो अख्तर चचा | जिसे आप ढूंढने जा रहे हो वह यहाँ मेरे पास है |” फरहान ने टाइम बम दिखाते हुए कहा |“आपको बम मंच के नीचे रखते मैंने देख लिया था | आप अब्बू के साथ यहाँ आ गए और मैंने बम डीफ्यूज कर निकाल लिया |”
अख्तर उम्मीद के विपरीत परिस्तिथि देख पागल सा हो गया | अख्तर ने रिवाल्वर निकाल काली पंडित पर तान दी और बोला,“आज तुझे कोई नहीं बचा सकता काली पंडित, तुने आशिक अली के खिलाफ गवाही देकर हमारे मिशन को रोका था | काश्मीर की आज़ादी इसी वजह से हमसे चार साल दूर चली गयी | हमारे मुसलमान भाइयों की काश्मीर में जो हत्या हो रही है तू भी उसमे बराबर का शरीक है | मैं तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा |
अख्तर को निशाना लगाते देख फतवा काली और अख्तर के बीच खड़ा हो बोला, दद्दा पर गोली चलाने से पहले तुझे मेरी जान लेनी होगी अख्तर | मैंने क्या तालीम लेने तुझे घर से बाहर भेजा था और तू क्या तालीम लेकर आ गया | अपने काली बाबा पर बन्दूक तानते तुझे शर्म नहीं आ रही |”
“ काली बाबा से मेरा कैसा सम्बन्ध | काली हिंदू है और मैं मुसलमान | काली काफिर है और मैं जेहादी | खुदा के नाम पर और इस्लाम की राह पर ऐसे काफिरों को सजा ए मौत देना ही जेहाद है, मेरा फ़र्ज़ है | वैसे भी इस्लाम की हिफाज़त के लिए किया गया कत्ल जेहादी को जन्नत नसीब कराता है |” अख्तर गुस्से से बोला |
“जेहाद के माने वह नहीं जो तू कह रहा है | निर्दोष के कत्ल की इजाज़त इस्लाम तो क्या दुनिया का कोई मज़हब नहीं देता | इस्लाम की राह में कुर्बानी देना और इस्लाम की हिफाज़त करना सच्चा जेहाद है | काली दद्दा से इस्लाम को कोई ख़तरा नहीं है | मुसलमानों की अवनति या उन्नति से काली दद्दा का क्या लेना देना अख्तर ?” फतवा के बोल सुन अख्तर बिफर पड़ा |
“इनका दोष है | इनका दोष है कि यह हिंदू है | काफिर है यह | आज इस काली को खुदा भी मौत के मुंह से नहीं बचा सकता | सही कहा आपने भाईजान, मैं दुश्मन हूँ | काली का दुश्मन हूँ मैं | काली का ही नहीं बल्कि हर हिंदू का दुश्मन हूँ मैं |” अख्तर के शब्द सुन फतवा हँसने लगा | धीरे धीरे फतवा की हंसी ने अट्टाहस का रूप ले लिया | फतवा ने आगे कहना प्रारम्भ किया |
“काली दद्दा, पिछले लंबे अरसे से आप मेरी कहानी सुनना चाहते थे | मैं हमेशा टाल जाता था | आज समय आ गया है कि मैं अपनी कहानी आप सबको सुना दूं | अख्तर तुम भी अपनी सच्चाई जान लो तो अच्छा है | अपनी सच्चाई जानने के बाद भी अगर तुम काली दद्दा को मारना चाहोगे फिर मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा |” फतवा ने गहरी सांस लेकर बोलना शुरू किया |
“सत्ताईस बरस पहले की बात है | मेरे पिता वजाहत अली खान फौज में कर्नल थे | पिता आसाम बोर्डर पर तैनात थे तो मैं माँ के साथ अहमदाबाद में रह रहा था | सरना बेन घर में चौका बर्तन करने आती थी | सरना बेन की बेटी वासंती भी कभी कभी सरना बेन के साथ घर आती रहती थी | वासंती सुन्दर, सुशील और पढ़ी लिखी लड़की थी | कुछ ही दिनों में मेरा और वासंती का प्यार परवान चढ गया | मैंने इस बाबत माँ से बात की | माँ हतप्रभ थी कि उसका मुसलमान बेटा एक हिंदू लड़की से शादी करना चाहता है | माँ ने मन किया पर मैं अपनी जिद पर अडिग था | उन्होंने कर्नल साहब के आने तक फैसला रोकने की सलाह दी तो मैं मान गया | मेरे पिता आये, माँ ने उन्हें सब बता दिया | एक दिन अचानक वासंती और सरना बेन दोनों गायब हो गए | मैंने और मेरी माँ ने उन माँ बेटी को बहुत खोजा, परन्तु वह दोनों नहीं मिले | मेरे पिता भी नौकरी छोड़ बाद में अपने घर अहमदाबाद आ गए |” फतवा की आँखों के आंसू रुक नहीं पा रहे थे और यह भी ब्यान कर रहे थे कि फतवा जो कह रहा है वह सच है | फतवा ने आगे कहना प्रारंभ किया |
“एक दिन घर के दरवाजे पर किसी बच्चे के रोने की आवाज आयी | मैंने देखा एक बच्चा हमारे दरवाजे पर बास्केट में रखा था | बास्केट में बच्चे के साथ एक चिठ्ठी भी थी | मैंने चिठ्ठी उठा कर पढ़ी तो मेरे पैरों टेल जमीन खिसक गयी | माँ भी बच्चे को देख हैरान थी, मैंने चिठ्ठी माँ की तरफ बढ़ा दी | माँ ने चिठ्ठी पढ़ी तो गुस्से से पागल हो उठी | माँ ने चिठ्ठी अब्बू के हाथ में दे दी | अब्बू ने चिठ्ठी पढनी प्रारम्भ कर दी | चिठ्ठी कुछ इस प्रकार थी |
प्रिय फ़तेह, मैं जानती हूँ, आपने मुझे बहुत ढूंढा होगा |मैं तुम्हारे काबिल नहीं रह गयी थी | एक दिन जब अआप और आंटी घर पर नहीं थे तो आपके पिता ने मुझ पर दबाब बनाया कि मैं आपका पीछा छोड़ दूं | आपके साथ शादी का ख्याल त्याग दूं | मैंने मना किया तो उन्होंने कहा कि वह मुझे इस लायक नहीं छोड़ेंगे कि मैं अपने आपको आपके समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ | शराब के नशे में उन्होंने मेरे साथ ज्यादती की | जिसका परिणाम यह बच्चा है | जब तक तुम्हें यह खत और बच्चा मिलेगा मैं जान दे चुकी होउंगी | मुझे खोजने का यत्न ना करना | तुम्हारी ‘वासंती’
माँ का गुस्सा सातवें आसमान पर था | माँ टेलीफोन कि तरफ भागी तो अब्बू ने पूछा, “कहाँ जा रही हो |”
“पुलिस को फोन करने |” माँ ने उत्तर दिया |
‘अब्बू और माँ में बहुत बहस हुई | बहस का अंजाम अब्बू की बन्दूक कि एक गोली से मेरी माँ की मौत | मैं अपने आप पर काबू ना रख सका | अब्बू से बन्दुक छीन मैंने अब्बू का कत्ल कर दिया | बच्चे को ले पुलिस से बचता मैं रेल के डिब्बे में चढ गया जहां मैं काली दद्दा को मिला था | वह बच्चा यह अख्तर है | वाही अख्तर जिसकी रगों में बहने वाली एक एक बूँद एक हिंदू माँ की है | आज यह अख्तर कहता है कि हिंदू होना ही एक दोष है | जिस कौम की एक लड़की ने इसकी जान बचाने के लिए इसे हमारे सुपुर्द कर अपनी जान दे दी यह उसी कौम को काफिर का नाम दे रहा है | उस कौम को खत्म करना चाहता है यह | अख्तर मेरे भाई, उठा बन्दूक और एक गोली से काली दद्दा जैसे काफिर का कत्ल कर अपनी हिंदू माँ का क़र्ज़ उतार दे और दूसरी गोली से मुझे मार कर अपने मुसलमान बाप का क़र्ज़ अदा कर दे |” फतवा रो पड़ा |
अचानक गोली की आवाज़ सुन सभी चौंक पड़े | अख्तर ने गोली अपनी कनपटी पर चलाई थी | सभी दौड कर अख्तर के पास आ गए |
“मुझे मुआफ कर दो आप सब लोग | फरहान, काली बाबा, कमला बुआ | मैं गलत सीख ले बैठा | मुझे मुसलमान होने और जेहादी होने का जो अहसास ज़माने ने दिलाया था वह अधूरा था, एक अधूरा अहसास |” अख्तर की गर्दन एक तरफ ढलक गयी और शरीर फतवा की बाँहों में झूल गया |
इति