Fasal in Hindi Short Stories by Ajay Kumar Sharma books and stories PDF | फसल

Featured Books
Categories
Share

फसल

कहानी की खोज

अज्ञात गजियाबदी


© COPYRIGHTS

This book is copyrighted content of the concerned author as well as Matrubharti.

Matrubharti has exclusive digital publishing rights of this book.

Any illegal copies in physical or digital format are strictly prohibited.

Matrubharti can challenge such illegal distribution / copies / usage in court.


दो टूक

मैं कोई साहित्यकार रचनाकार नहीं हूँ । एक सामान्य नागरिक की भांति जीवन व्यतीत करता हूँ । अपनी संस्कृतिए देशए लोगए धर्म से प्यार करने वाला एक सामान्य नागरिक । धर्म से प्यार करने का तात्पर्य यह कतई नहीं कि मैं दुसरे धमोर्ं का सम्मान नहीं करता । दुसरे धर्म चाहे वो कोई से भी हों मेरे विचार में उनकी अहमियत उतनी ही है जितने मेरे अपने धर्म की । कहानी हम सभी के आस पास से होकर गुजरती है । आये दिन हमारे चारों तरफ हजारों घटनाएँ मुहं फाड़े कड़ी रहती हैं । जिस घटना से मन व्यथित या द्रवित होता है उसे काल्पनिक पात्रों में ढ़ालए शब्दों का सही चयनए भाषा शैली के विधान को सम्मान देते हुए एक माला में पिरो देना ही कहानीकार की विशेषता है । मैं अपने अल्पज्ञान के अनुसार यह विशेषता अपने स्वयं के अंदर महसूस करता हूँ । वास्तविकता से तो परिचय पाठक ही करा सकते हैं । मेरे अनुसार तो कोई घटना जिसे कहानी में बाँधा जाए और वह कहानी पाठकों तक एक सकारात्मक सन्देश मनोरंजन के माध्यम से पहुँचा कर उन्हें सचेत कर देए सफल कहानी की श्रेणी में आती है । पुस्तक आपके हाथ में हैए निर्णय आपका शिरोधार्य ।

अज्ञात गजियाबदी

फसल

कुंवर पाल आज बहुत खुश था। आखिर वह कुंवरा से कुंवर पाल जी बन गया था। मंत्री पद की शपथ लेने के बाद सब लोग उसके लिए कुंवर पाल जी का ही संबोधन कर रहे थे। कुंवरा मंत्री भी ऐसा वैसा नहीं बल्कि प्रदेश का पहला युवा गृह मंत्री था। बंगले पर पहुँचा कुंवरा थकान से ग्रस्त सोफे पर पसर गया। सुबह मंत्री पद का शपथ समारोह और शाम को साधारण मकान से मंत्री के बंगले में शिफ्टिंग। हालांकि शिफ्टिंग के लिए अनगिनत हाथ मौजूद थेए परन्तु फिर भी उनके समक्ष खड़े होकर देखना भी थकन भरा कार्य था। पत्नीए बेटा और माँए यही परिवार था कुँवरे का। सब लोग बहुत खुश थे। चौदह कमरों के बंगले ने सभी सदस्यों को मोहित कर लिया था।

रात का खाना गृह सचिव ने होटल से भिजवा दिया। साथ ही सूचना भी भेज दी कि कल से नौकर और रसोइया बंगले पर नियुक्त कर दिए गए हैं। पत्नी नन्दिनीए बेटा तरुण और माँ बैकुंठी खाना खा वातानुकूलित कमरे में सोने चले गए और मंत्री कुंवर पाल वहीँ सोफे पर लेट गया। यही होता हैए जब अच्छा बिस्तर नहीं था तो कुंवरा रात्रि में थक हार चौन की नींद लेता था और आज आठ—आठ वातानुकूलितए गद्देदार शयन सुविधा होने के पश्चात भी सोफे पर पड़ा करवटें बदल रहा था। नींद जैसे आँखों से कोसों दूर थी।

सोफे पर लेटे लेटे उसका मष्तिष्क अतीत से अठखेलियां करने लगा। कुंवरा बीस वर्ष पुरानी घटना को याद कर रहा था जब वह बारहवीं कक्षा का छात्र था और महाराज पुर गांव में रहता था। कुंवरा पास के स्याना कस्बे के शासकीय विधालय में ही तो पढ़ता था।

कुंवरा का गठीला और कसरती बदन ऊपर से जितना कठोर थाए मन अंदर से उतना ही कोमल था। शिक्षक और छात्रों के प्रिय कुंवरा को सबने मिलकर जबरन छात्र संघ के चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए खड़ा कर दिया। सबके प्रिय कुंवर को इस चुनाव को जीतने में कोई परेशानी नहीं हुई। अध्यक्ष बनने के बाद उन्नति की प्रथम सीढ़़ी चड़ते ही कुंवर पूरे इलाके में नेताजी के नाम से मशहूर हो गया। कुंवरा राजनीतिज्ञ नहीं था और कालिज के अध्यक्ष पद की क्या अहमियत हैए वह नहीं जानता था। उसे तो केवल इतना ज्ञान था कि कालिज की पढ़़ाई और उन्नति में जो भी बाधा आती है छात्रोंए शिक्षकों और प्रशाशन के साथ मिल जुल कर एक नेक रास्ता निकाल ले। छात्रए शिक्षक और प्रशासन भी जानता था कि कुंवरा की नीयत में खोट नहीं है।

प्रथम बार उसे अपनी अहमियत का अहसास तब हुआए जब एक बाहरी नेतानुमा युवक ने विधायक भँवर लाल के बुलावे की सूचना कुंवरा को दी। एक बारगी को तो कुंवरा घबरा गया परन्तु आगंतुक युवक के आश्वासन से वह संतुष्ट हो गया कि विधायक आगामी विधायकी के चुनाव पर कुंवरा से चर्चा करना चाहते हैं। युवक ने कुंवर को सख्त हिदायत भी दी कि होने वाली मुलाका़त के बारे में कुंवरा किसी से जिक्र नहीं करेगा।

निर्धारित पर युवक ने कुंवरा को विधायक से मिलवा दिया। विधायक भँवर लाल ने कुंवरा को मुस्कुराते हुए देखा। कुंवरा कुछ सहमा हुआ अवश्य था मगर डरा हुआ नहीं था। कुंवरा जानता था उसने किसी का अहित नहीं किया तो डर कैसा। विधायक ने कुंवरा के नजदीक आ कुंवरा को बैठने का आदेश दिया और पूछाए

श्क्या नाम है तुम्हारा घ्श्

श्जी कुंवरा....कुंवर पाल सिंह।श्

श्ठाकुर हो घ्श्

श्जी....जी ..हाँ।श्

श्देखो इस साल के अंत में विधायकी के चुनाव हैं। तुम छात्र संघ के अध्यक्ष हो। मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता पड़ेगी। वैसे भी तुम मेरी जाति और समाज से होए तो मेरी मदद करना तुम्हारा फर्ज भी बनता है। अगर मैं चुनाव जीत जाता हूँ तो तुम्हें भी इसका फायदा अवश्य मिलेगा।श्

श्जी....जी सर।श् कुंवर ने संकोचवश कहा तो विधायकजी ने अपनापन जताते हुए आगे कहाए

श्देखो कुंवर पालए संकोच मत करो। मुझे साफ बोलने वाले लोग अधिक पसंद हैं। अगर कोई संशय या हिचकिचाहट तो साफ बोल दो। ऐसा ना हो कि मैं तुमसे उम्मीद रखूं और वक्त आने पर तुम मुझे धोखा दे दो। मुझसे अगर कोई प्रश्न पूछना चाहो तो अभी पूछ लो।श्

अपने लिए कुंवर पाल का संबोधन विधायक के मुँह से सुन कुंवरा का दिल बल्लियों उछल गया। कुंवरा के दिमाग की हलचल बढ़़ गयी। हजारों प्रश्न दिमाग में उपज रहे थे। परन्तु प्रश्न पूछ उत्तर माँगनाए वो भी विधायक सेए उसे नागवार लग रहा था। फिर भी कुंवरा ने हिम्मत कर पूछाए

श्मैं....मैं आपकी चुनाव में मदद किस प्रकार कर सकता हूँ घ्श्

नेताजी जोर से हंस कर बोलेए श्तुम स्वंम नहीं जानते कि तुम कहाँ खड़े हो घ् तुम सीधे और सज्जन व्यक्ति हो ठाकुर। अपने सीधेपन और सज्जनता को केवल लोगो को दिखाने के लिए रखो। राजनीति की डोरी पकड़ अपने जीवन को ऊँचा बनाने की कोशिश करो। राजनिति का पहला पाठ यही कहता है कि प्रत्येक नेता को दो मुखौटे रखने पड़ते हैंद्य एक हृदय रुपी मुखौटा जिससे बातें बना जनता को लुभाना पड़ता है। दूसरा मष्तिष्क रूपी मुखौटा जिससे प्रगति के पथ पर आगे बढ़़ना पड़ता है।श्

विधायक जी के मुख मण्डल से अपने लिए ठाकुर का संबोधन सुन जैसे कुंवरा के शरीर में कई किलो खून बढ़़ गया। कुंवरा का संकोच और झिझक काफी कम हो गयी थी। अब कुंवरा ने धैर्यपूर्वक अगला प्रश्न पूछाए

श्दो मुखौटे पहन कर भी मैं आपकी मदद किस प्रकार कर पाऊंगा घ्श्

श्तुम तो निरे भोले हो कुंवर पालए तुम्हे खोल कर समझाना ही पड़ेगा। मतदाता दो प्रकार के होते हैं। एक सरकारी कर्मचारी और उधोगपति। ये दोनों ही वर्ग हमारे काबू में हैद्य उधोगपतियों से हमारे संबद्ध अच्छे रहते हैं क्योंकि हम उन्हें और वे हमें अक्सर आर्थिक फायदा पहुंचाते रहते हैं। सरकारी कर्मचारीयों का जहां तक सवाल हैए अभी सरकार हमारी हैद्य ज्यादातर कर्मचारी हमारे मातहत और हमारे अधिकार क्षेत्र में हैं और बचा कुचा हम दस प्रतिशत की डी ए की किश्त देकर उनके मतों पर कब्जा कर लेंगे। दूसरे तबके में आती है आम जनताएजिसमे व्यापारीए छोटे कारोबारीए गरीब तबका और अन्य वर्ग आते हैं। ये लोग डर कर वोट देते हैं। डर वहीँ होता है जहाँ शक्ति होती है। शक्ति तुम्हारे पास है।श्

श्मेरे पास शक्ति। मैं अभी भी नहीं समझा।श् कुंवरा ने आश्चर्य से पूछा।

श्तुम तो वास्तव में ही बहुत भोले हो ठाकुर कुंवर पाल। तुम छात्र नेता हो। तुम्हारे पास छात्रों की ताकत है। तुम इस वर्ग को हर क्षेत्र में डरा सकते हो। जैसे .... जैसेए दस बीस लड़कों को भेज कोई भी कारण बना कुछ बस ट्रकों में तोड़ फोड करा दो। छात्र नेता होने के नाते भले बन ट्रक यूनियन के साथ मिल कर समझौता करा दो। बाजार में लूट कराओ और हमसे ही लड़ कर व्यापारियों को मुआवजा दिलवा दो। झोपडियों में आगजनी करवाओए हम तुम्हारे आग्रह पर पुनर्वास करवा देंगे। फिर यह तबका तुम जहां कहोगे वहाँ वोट डालेगा। वैसे भी अब तो अठ्‌ठारह साल के मतदाता हैं और छात्र और युवा वर्ग तुम्हारे साथ है। पैसे की चिंता मत करनाए बस इशारा करते रहनाएहर जरुरत पूरी होगी।श्

बहरहालए एक दो घंटे की मंत्रणा में ही कुंवरा राजनीति के बहुत गुण सीखए कुंवरा से ठाकुर कुंवर पाल बन गया। चुनाव आ गए थे। कुंवरा पूरे दिन रात विधायक भंवर लाल के बताए नुस्खे आजमाता। रात में थोड़े समय भंवर लाल के साथ मंत्रणा कर अगले दिन के कार्यक्रम निर्धारित करता और अगले दिन फिर उन्हें कार्यान्वित कर देता।

भँवर लाल भारी बहुमत से जीते। विधायक ने पैसा भी खूब खर्च किया। लाखों रूपये तो खुद कुंवरा ने अपने हाथो से खर्च किये। दारुए मुर्गाए खाना आदि आदि। कुंवरा के हाथ से यह पैसा खर्च होने से इलाके की सारी अराजक ताकतेंए कुंवरा के हाथ में आ गईं। हथियारबंद गुंडों से लेकर समाज के सफेदपोश भी कुंवरा से डरते और उसकी इज्जत भी करते। भंवर लाल विधायक के साथ साथ प्रदेश के मंत्री भी बन गए। मंत्री का हाथ कुंवरा के सिर पर होने की वजह से कुंवरा बिना किसी पद क्षेत्र का बेताज बादशाह बन गया।

कुंवरा की शिक्षा और भंवर लाल की राजनीति बदस्तूर प्रगति पर थी। हर पग पर भंवर लाल को ताकत की आवश्यकता होती और ताकत कुंवरा के पास थी। बीस वर्ष भँवर लाल और कुंवरा के गठबंधन को हो गए। अब भंवर लाल कि आँखे मुख्य मंत्री की कुर्सी पर थी। भंवर लाल ने अपनी अलग पार्टी बनाई और स्याना क्षेत्र से कुंवरा को विधायकी का टीकट दे दिया।

कुंवरा रिकार्ड मतों से जीता और मुख्य मंत्री भंवर लाल के नजदीकी होने के कारण गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी कँवर पाल को ही मिली।

कँवर पाल सोफे पर पड़ा यह सब सोच ही रहा था कि प्रातरू काल की सूर्य किरणे उसके मुहँ पर पडी तो वह समझ गया की सवेरा हो गया। कुंवर पाल सोफे पर ही बैठ गयाद्य थोड़ी देर में नन्दिनी भी शयनकक्ष से उठ कर बाहर आ गयी।

श्आप रात भर सोये नहीं शायद घ्श् नन्दिनी ने प्रश्न किया।

श्छात्र जीवन से गृह मंत्री बनने तक की जीवन यात्रा रात भर करता रहाए कैसे सो पाता घ् खैर छोडो जल्दी से तैयार हो जाता हूँ। आठ बजे मुख्य मंत्री जी के घर पहुंचना है और वहीँ से विधान सभा को प्रस्थान करना है।श् कँवर पाल ने हँसते हुए उत्तर दिया।

श्जी मंत्री जी।श् नन्दिनी ने भी कुंवरपाल की हंसी में साथ दिया।

गृह मंत्री और मुख्य मंत्री दोनों बैठे मुख्य मंत्री निवास पर चाय का लुत्फ उठा रहे थेद्य

श्कैसा लग रहा है ठाकुर गृह मंत्री बनकर घ्श् भंवर लाल ने पूछा।

श्जी बहुत अच्छा।श्

श्अब आगे क्या प्रगति करना चाहते हो घ्श्

श्जी इतना बहुत है।श्

श्अरे संतुष्ट हो गए तो क्या जीवन है घ्श् भँवर लाल ने चहंक कर कहा।

श्फिर घ्श् कुंवर पाल ने पूछा।

श्अभी मुख्य मंत्री की कुर्सी के सपने नहीं दिखाई देने प्रारम्भ हुए घ्श्

श्आपके रहते मैं कैसे मुख्य मंत्री के सपने देखने का साहस कर सकता हूँ घ् मैंने हर कदम पर आपसे कुछ न कुछ सीखा है परन्तु अपनों से गद्दारी करना आपने कभी नहीं सिखाया।श् कुंवरपाल ने उदारतापूर्ण उत्तर दिया।

श्अरे मैं अपनों से गद्दारी करने को कब कह रहा हूँ ठाकुर। मैं देश के प्रधान मंत्री की कुर्सी का सपना देख रहां हूँ तो तुम्हे मुख्य मंत्री की कुर्सी का सपना देखने में क्या हर्ज है घ्श्

श्पर साहब आपके पास मुझे बनाने की ताकत थी। आज मैं जो भी हूँ वह आपका ही बनाया हुआ हूँ। आपके ही शब्दों में मैं कितना भोला और नासमझ था। परन्तु आपने मुझे उस सांचे में ढ़ाला कि आज प्रदेश का गृह मंत्री हूँ।श्

भंवर लाल अट्टाहस लगा हँस पड़ा और कई मिनट तक हँसता रहा। कुंवर पाल अनजानी निगाहों से भंवर लाल को देख रहा था और उसकी हंसीं के मतलब को समझने का प्रयास कर रहा था। कुछ पाल पश्चात भंवर लाल की हंसी रुकी और वह बोलाए श्तुम आज भी भोले और बेवकूफ हो कुंवर पाल। मैंने तुम्हें बनाया नहीं काटा था। बीज के रूप में तुम्हारे माता पिता ने जिस फसल को लगाया था पकते ही मैंने उसे काट लिया। आज फिर बहुत सी फसल पक कर तैयार खड़ी हैए उत्तम से उत्तम फसल चुन कर काटो और मुख्य मंत्री के सपने को आँखों से दूर मत होने दो।श्

कुंवर पाल के मुख मण्डल पर मुस्कान तैर गई और वह समझ गया कि यह अंतिम राजनितिक दाव थाए भंवर लाल ने जो राजनितिक दाव कँवर पाल के साथ सबसे पहले खेला था उसका ज्ञान अंत में दिया है।