Itihas Me Naam in Hindi Short Stories by Sandeep Meel books and stories PDF | इतिहास में नाम

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इतिहास में नाम

इतिहास में नाम

संदीप मील

विश्वविद्यालय की कैंटीन की एक मेज पर कुछ गंभीर बातें हो रही थी। ये बातें इस अर्थ में गंभीर कही जा सकतीं हैं कि मेज पर झुके आठ चेहरों पर तनाव था। असल में वे इस कैंपस में कुछ करना चाहते थे जिससे कैंपस की जकड़न टूटे और कुछ उमंग के नजारे दिखें। तीन दिन से इस चिंता पर चिंतन कर रहे थे और आज चौथे दिन तय कर लिया था कि भूख हड़ताल करेंगे। इन आठ चेहरों में से नरपेन और इरशाद को छोड़कर कोई भी विश्वविद्यालय का छात्र नहीं था। कोई किसी अखबार में नौकरी करता था, कोई किसी एनजीओ में। अपनी नौकरी के फुर्सत के क्षणों में वे देश और समाज के बारे में सोचते थे। किशन की कैंटीन इनका स्थाई अड्‌डा थी, जहां पर पांच रुपये की चाय और कभी—कभी सतर रुपये की व्हीस्की पीकर दुनिया बदलने के प्लान बनाये जाते थे। इस मंडली में कई नये छात्र आते और कई चले जाते मगर यह आठ चेहरे स्थाई थे। शायद ही ऐसा कोई दिन हो, जब मंडली कैंटीन में हाजिर नहीं हो। इनका नेता तेजसिंह एक अखबार में काम करने का दावा करता है, मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि आपने उस अखबार का नाम भी नहीं सुना है। खैर, इन सब बातों को छोड़ो।

आज कैंटीन में यह तय हुआ कि विश्वविद्यालय में अनशन करना है लेकिन यह तय नहीं हो पाया कि किस मुद्‌दे को लेकर अनशन किया जाये। बड़ा मुश्किल काम था मुद्‌दा तय करना। कोई कहता फीस वृद्धि, कोई कहता छात्रवृति, कोई कहता चुनाव कराओ और कोई कहता वीसी हटाओ। आठ लोग थे और साठ राय थीं। हर कोई अपने मुद्‌दे को सबसे ‘ज्वलंत' मानता था और फिर घंटों तक ‘ज्वलंतता' के मायनों पर सर खपाया जाता।

अंत में तेजसिंह ने कहा, ‘ऐसा करते हैं कि भूख हड़ताल शुरु कर दी जाये और उसके बाद सबसे ज्वलंत मुद्‌दे की तलाश की जायेगी।'

सब इससे सहमत थे क्योकि यह बिल्कुल नया आइडिया था क्योंकि पहले किसी ने ऐसी भूख हड़ताल नहीं की थी क्योंकि आगे कोई इस आइडिया पर काम कर सकता है। इसलिए आइडिया चोरी से बचाने के लिए सोमवार से ही भूख हड़ताल तय कर दी गई। तेजसिंह ने मंडली में सबको जिम्मेदारियां बांटी।

सोमवार को दस बजे से ही वाइस चांसलर के आफिस के सामने क्रमिक भूख हड़ताल शुरु हो गई। सबसे पहले इस मंडली ने ‘वाइस चांसलर मुर्दाबाद' और ‘हमारी मांगें पूरी करो' के नारे लगाने शुरु कर दिये। नारों की आवाज सुनकर आसपास के हॉस्टलों और डिपार्टमेंटों के छोरे इक्कट्टे हो गये। अब नारों की आवाज से आसमान गूंज रहा था, बीच में कुछ लड़के ‘इंकलाब जिंदाबाद' और ‘वंदे मातरम्‌' के नारे भी उछाल रहे थे। बड़ा लोकतांत्रिक माहौल बन गया थो, जो मर्जी हो वही नारा उछाल दो। इतने में एक लड़के ने ‘सलमान खान जिंदाबाद' का नारा उछाला, तो उसके बाद बालिवुड के तमान अभिनेताओं और अभिनेत्रियों को जिंदा करके आबाद किया गया। फिर क्रिकेटरों की बारी आयी और अंततः दो छात्रों के बीच झड़प हो गई। हुआ यूं कि जब इस तरह के नारों की बाढ़ आ रही थी, तो एक लड़के ने ‘लालू यादव जिंदाबाद' का नारा लगा दिया। इसी नारे के कारण रोहित ने विवके से पंगा कर लिया। जब स्थिति गंभीर होती दिखी तो नरपेन ने ऊंची आवाज में कहा, ‘दोस्तो, हम देश में इतिहास रचने जा रहे हैं। वैसे तो यहां हजारों अनशन होते हैं लेकिन यह पहला लोकतांत्रिक अनशन होगा। इसमें कोई नेता मुद्‌दा तय नहीं करेगा बल्कि आप सब लोग हमें मुद्‌दे लाकर देंगे। यहां पर एक बोक्स रखा हुआ जिसमें आप एक पर्ची पर अपना मुद्‌दा लिखकर डाल सकते हैं।'

‘नरपेन जिंदाबाद।'

‘जिंदाबाद! जिंदाबाद!'

अपने नाम के नारे सुनकर उसके हौसले अंतरिक्ष में गोते लगाने लगा, ‘साथियो, इस विश्वविद्यालय का नाम अब स्वर्णीम अक्षरों में इतिहास में दर्ज होने वाला है। आज के अनशन के लिए साथी इरशाद और यह खाकसार तैयार है।'

भाषण के बाद अनशन शुरु हुआ। सैंकड़ों छात्र दरी पर बैठकर अनशन का समर्थन कर रहे थे। एक छात्र ने दूसरे से पूछा, ‘ यार, यह इतिहास में स्वर्णीम अक्षरों में नाम कहा लिखवाना पड़ता है?'

राजेश ने बड़े आत्मविश्वास से उसे समझाया, ‘देख बेटा, इतिहास में नाम लिखवाने का एक ऑफिस है। वहां पर जाकर अपने नाम के वजन के बराबर सोना देना पड़ता है, फिर वे लोग नाम लिख देते हैं। एकदम चमचमाते अक्षरों में, समझे।'

सवाल करने वाले छात्र ने गहरी सांस ली जो पूरी तरह से निराशामयी थी क्योंकि वह गरीब परिवार में पैदा हुआ था और उसके पास इतिहास में नाम लिखवाने के लिए सोना नहीं था।

अनशन का माहौल बड़ा ही रोमांचित करने वाला था क्योंकि वहां पर कोई छात्रा मौजूद नहीं थी। इसलिए छात्र उटपटांग बाते कर रहे थे। वहीं बाते जो हर कोई जानते हुए भी छुपाता है, सब औरत और मर्द के खालिश रिश्तों की बेपर्दा बातों पर पर्दा डालते रहता है। अनशन के साथ ही बोक्स में मुद्‌दे डालने का कार्य भी समान गति से चल रहा था। कुछ छात्रों ने तो अपने रजीस्टरों के तमाम पेजों को बोक्स के हवाले कर दिया।

इस अनशन से प्र्रशासन बड़ा खुश था क्योंकि इनकी न कोई मांगे थी और न ही मुद्‌दे, बेवजह ही विश्वविद्यालय चर्चा में आ जायेगा। लेकिन इस अनशन की एक वजह थी जो हर पल इस पर नजरें इनायत कर रखी थी।

कुल मिलाकर पहले दिन का अनशन सफल रहा, दो बोक्स मुद्‌दों से भर गये। अनेक छात्र अपना पूरा सहयोग दे रहे थे। प्रशासन अनशन स्थल पर बैठे छात्रों को लाठियों की बजाय पेप्सी पिला रहा था। चारों तरफ इतिहास लिखे जाने के चर्चे थे।

दूसरे दिन किसी ने मीडिया को अनशन की खबर दे दी थी। सुबह अनशन स्थल पर देशभर के टीवी चैनल और अखबार वाले पहुंच गये थे। अनशन का लाइव चल रहा था, हर चैनल दो—चार लड़कों को पकड़कर इंटरव्यू करने में लगा था। अधिकांश लड़के एक ही बात बोल रहे थे, ‘हम इतिहास रच रहे हैं, यह देश का पहला लोकतांत्रिक अनशन है।'

मीडिया ने इस अनशन को इतिहास की पाठशाला करार दे दिया था। देशभर में चर्चा हो गई। यहां पर कुछ दानदाताओं ने भंडारा भी लगवा दिया था। गुब्बारे उड़ाये जा रहे थे, बोक्स में मुद्‌दे डाले जा रहे थे.....................और उसी वक्त वाइस चांसलर ऑफिस में एक मीटिंग चल रही थी। मीटिंग खत्म होते ही वीसी बाहर निकले और छोत्रों को आश्वासन दिया, ‘प्रिय विद्यार्थियो, मैं आपके इस अनशन से बहुत खुश हूं। हमारे विश्वविद्यालय का नाम पूरे देश में चर्चित हो गया। मैं आपको आश्वासन देता हूं कि एक कमेटी का गठन करके आपके द्वारा एकत्रित किये गये मुद्‌दों की जांच की जायेगी और उन पर आवश्यक कार्रवाई की जायेगी।'

भाषण के बाद जोरदार तालियां बजायी गई। वीसी महोदय ने अनार का ज्यूस पिलाकर अनशन तुड़वाया और नरपेन व तेजसिंह को अपनी गाड़ी में बैठाकर रवाना हो गये।

अगले दिन प्रशासन का एक सकुर्लर आया जिसमें फीस वृद्धि, आरक्षण में कटौती सहित विश्वविद्यालय के दो विभागों की विदेशी विश्वविद्यालय से संलग्नता के निर्णय थे।

उसके बाद उस विश्वविद्यालय में आज तक अनशन नहीं हुआ। छात्र ‘अनशन' के नाम से ही डरते हैं कि कहीं फिर से इतिहास में स्वर्णीम अक्षरा में नाम न लिखा जाये।