Shikshaprad Kahani in Hindi Short Stories by Nirmal Gupta books and stories PDF | शिक्षाप्रद कहानी

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शिक्षाप्रद कहानी

शिक्षाप्रद कहानी

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आईना

कालबैल बजी तो अमोल की मम्‍मी ने घर का दरवाजा खोल। उन्‍होंने देखा कि दरवाजे पर रिक्‍श्‍ो वाला, ‘भइया जी' खड़ा है। अमोल भइया जी की रिक्‍शा से स्‍कूल आया-जाया करता है। वह उसे देखते ही समझ गई कि भइया जी आज फिर अमोल की कोई शिकायत लेकर आये है। उन्‍होंने उससे पूछा,‘कहो, भइया जी क्‍या बात है, क्‍या अमोल ने फिर कोई गड़बड़ की?'

‘क्‍या बताएं बीबी जी' कहते-कहते वह रूआंसा-सा हो गया, ‘हम तो अमोल बाबा से बहुत परेशान हो गए हैं।'

‘आज क्‍या किया उसने?' उन्‍होंने पूछा।

‘ये देखिए हमारी कमीज', कहते हुए उसने घूमकर अपनी कमीज दिखाई, जो पिछली तरफ से कटी हुई थी, ‘बाबा ने आज रिक्‍शा में बैठे बैठे हमारी कमीज पर ब्‍लेड फिरा दिया। स्‍कूल पहुंचने तक तो हमें पता ही न चला। बाद में दूसरे बच्‍चों ने बताया कि अमोल ने काटी है कमीज।'

अमोल की मम्‍मी यह सुनकर बहुत दुःखी हुईं। उन्‍हें उस पर गुस्‍सा भी बहुत आया। उन्‍होंने रिक्‍शा वाले से कहा, ‘भइया जी, अमोल के किए पर मैं बहुत शर्मिन्‍दा हूँ, यह कहकर उन्‍होंने एक पचास रूपये का नोट उसे दिया और कहा, ‘भइया जी, अपनी कमीज ठीक करा लेना।'

रिक्‍शा वाले ने पैसे लेने से इन्‍कार कर दिया और कहा, ‘रहने दीजिए बीबी जी, आप अमोल बाबा को समझाएं कि वह ऐसा न किया करे। हम गरीब आदमी हैं। वह हमें क्‍यों सताता है। आज तो कमीज काटी है, हमसे डांट-फटकार तो वह रोज ही करता है। वह तो हमसे कहता है-तुम आदमी नहीं जानवर हो। हमारे नौकर हो, नौकरों की तरह रहा करो। और भी जाने क्‍या-क्‍या कहता है।'

अमोल की मम्‍मी ने सांत्‍वना दी, ‘भइया जी, अब वह ऐसा नहीं करेगा। आज मैं उसके पापा से उसकी शिकायत करूंगी। तुम यह रूपये रख लो।'

उन्‍होंने जब अधिक आग्रह किया तो रिक्‍शा वाले ने वह रूपये रख लिए और नमस्‍कार कर चला गया।

उसके जाने के बाद वह सोचती रही कि आखिर अमोल ऐसा क्‍यों करता है पढ़ने-लिखने में तो तेज़ है, पर उसकी यह हरकतें अब सहन नहीं होतीं। आज वह उसकी शिकायत उसके पापा से अवश्‍य करेंगी। वह ही उसे डांटे-डपटेंगे और कान उमेठेंगे, तब ही वह समझेगा।

शुरू-शुरू में अमोल की मम्‍मी उसकी श्‍ौतानियों को बचपना समझती थीं। धीरे-धीरे उसकी श्‍ौतानियां इतनी बढ़ गईं कि उन्‍हें लगने लगा कि कुछ न कुछ किया जाना चाहिए। पर क्‍या करें, उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उन्‍होंने अमोल के पापा से भी अनेक बार कहा कि आप ही उसे समझाया करें कि वह ऐसी हरकतें न किया करे।

अमोल के पापा एक फैक्‍ट्री में एकाउंटेंट थे। वह सुबह आठ बजे घर से निकल जाते और प्रायः रात आठ बजे ही घर में आया करते थे। अमोल की मम्‍मी जब भी कभी अमोल की शिकायत करतीं तो वह उसे समझाने का प्रयास करते। अमोल उनकी बात सुनता तो गर्दन हिला देता। एक-दो दिन उसकी कोई शिकायत न आती, कुछ दिन बाद वही क्रम फिर चालू हो जाता।

उस दिन रविवार था। अमोल का अवकाश था और उसके पापा को भी फैक्‍ट्री में नहीं जाना था। अमोल बरामदे में बैठा चमड़े़ की दो पट्टियां लिए उन्‍हें आपस में बंट रहा था। अमोल के पापा ने उसे ऐसा करते देखा, तो पूछ लिया, ‘ये क्‍या कर रहे हो बेटा?'

‘मैं हंटर बना रहा हूँ, पापा।' अमोल का जवाब था।

‘इसका क्‍या करोगे?' उन्‍होंने पूछा।

‘पापा, हमारे घर के बाहर बने लॉन में जो हैंडपंप लगा है, उसने पानी पीने सैंकड़ों लोग हमारे बगीचे में घुस आते हैं। मना करने पर नहीं मानते। अब कोई घुसा तो उसकी इससे खबर लूंगा।' अमोल ने जवाब दिया।

इसका ऐसा जवाब सुनकर पापा को बड़ा आश्‍चर्य हुआ। वह सोचने लगे कि अमोल को क्‍या होता जा रहा है। क्‍या किया जाये? इसको कैसे इसे समझाएं कि वह ऐसा न किया करे।

वह यह सोच ही रहे थे कि फैक्‍ट्री का चपरासी आया और यह संदेश दे गया कि सेठ जी ने उन्‍हें कोठी पर बुलाया है। कुछ खास काम है।

अमोल के पापा यह संदेश पाकर चलने को तैयार होने लगे। उन्‍हें तैयार होता देख अमोल बोला, पापा मैं भी चलूंगा आपके साथ। आपने बताया था कि सेठ जी की कोठी बड़ी है। उनके बगीचे में सुन्‍दर फूल हैं, लॉन में हरे मखमल जैसी घास है। एक छोटा-सा तालाब भी है। जहां बत्‍तख तैरती हैं।

‘ठीक है चलो, पर वहां कोई गड़बड़ न करना।' पापा ने कहा।

अपने पापा के स्‍कूटर पर बैठकर अमोल चल दिया। थोड़ी ही देर में उनका स्‍कूटर लोहे के एक विशालकाय फाटक के बाहर खड़ा था। पापा ने स्‍कूटर पर बैठे-बैठे दरवाजे पर खड़े दरबान से पूछा-सेठ जी हैं घर में?' दरबान ने बताया कि सेठ जी घर पर ही हैं। वह उनसे मिल सकते हैं।

स्‍कूटर दरवाजे पर खड़ा करके पापा अमोल को लेकर भीतर चल पड़े।

अमोल ने कोठी के भीतर जो देखा, तो देखता ही रह गया। कोठी भीतर से वाकई वैसी ही थी, जैसी उसके पापा बताते थे। कोठी में लम्‍बा-चौड़ा लॉन था, जिसमें हरे मखमल जैसी घास लगी थी। एक कोने में छोटा-सा तालाब था, जिसमें बत्‍तखें तैर रही थीं। लॉन के बीच में एक बड़ा रंगीन छाता लगा था, जहां कुछ कुर्सियां पड़ी थीं।

अमोल पापा के साथ उस रंगीन छतरी के पास पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी ही आयु के दो बच्‍चे वहां बैठे हैं। एक बच्‍चे ने अपने पैर सामने रखी मेज पर फैला रखे थे। अमोल के पापा को देखकर वे दोनों बच्‍चे वैसे ही बैठे रहे।

अमोल के पापा ने बड़ी विनम्रता से उन बच्‍चों से पूछा-‘बेटा, सेठ जी हैं क्‍या?' उनका यह सवाल सुनकर दोनों चुप बैठे रहे। बस कंधे उचका दिए।

अमोल को यह देखकर बड़ा बुरा लगा। पर वह क्‍या कर सकता था। पापा ने फिर पूछा-‘बेटा, सेठ जी हों तो उन्‍हें बता दो कि श्‍याम लाल उनसे मिलने आए हैं।'

उन बच्‍चों में से एक ने वहीं बैठे-बैठे आवाज लगाई-रामू, ऐ रामू, जा पापा को बता दे कि कोई श्‍यामलाल आया है, उनसे मिलने।

अमोल को बहुत गुस्‍सा आ रहा था। उसे अपने पापा के नाम का यूं लिया जाना अच्‍छा नहीं लगा। अमोल अपने पापा के साथ वहीं खड़ा रहा।

किसी ने उनसे बैठने तक को नहीं कहा। वह चाह रहा था कि कुर्सी पर बैठे इन दोनों बच्‍चों की कमीज का कालर पकड़कर उठाए और कहे कि क्‍या अपने से बड़ों से ऐसा ही व्‍यवहार किया जाता है। पर वह अपने को बेबस अनुभव कर रहा था।

कुछ ही देर बाद रामू कोठी से बाहर आया बोला, आइए, सेठ जी आपको बुला रहे हैं। अमोल वहीं खड़ा रहा। अमोल के पिता रामू के साथ कोठी के भीतर चले गए। थोड़ी देर बाद वह बाहर आए तो उन्‍होंने देखा कि अमोल का चेहरा अभी तक क्रोध और अपमान से तमतमाया हुआ है। उन्‍होंने पूछा-‘क्‍यों अमोल क्‍या बात है क्‍या तबीयत ठीक नहीं है तुम्‍हारी?'

अमोल चुप ही रहा। उसे सेठ जी के बच्‍चों का व्‍यवहार बहुत बुरा लग रहा था। घर पहुंचने तक वह चुप ही रहा। उसकी मम्‍मी ने जब उसका लटका चेहरा देखा तो पूछा-‘क्‍या हुआ अमोल, इतने उदास क्‍यों हो?'

अमोल नहीं चाहता था कि जो कुछ उसने देखा है, वह किसी को बताए। वह यह भी नहीं चाहता था उसका लटका हुआ उदास चेहरा देखकर कोई उससे कुछ पूछे। वह अपना मुंह धोने के लिए वाश-बेसिन के पास पहुंचा। वाश-बेसिन के ऊपर लगे दर्पण में उसने अपना चेहरा देखना चाहा तो उसे उसमें अपने चेहरे की जगह रिक्‍शा वाले भाइया जी का उदास चेहरा दिखाई दिया।

उस दिन के बाद फिर कभी अमोल की कोई शिकायत रिक्‍शा वाले भइया जी को नहीं करनी पड़ी। अमोल के इस बदले व्‍यवहार पर उसके मम्‍मी पापा दोस्‍त सहपाठी और सबसे अधिक भइया जी आश्‍चर्यचकित थे।

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निर्मल गुप्‍त