Diary Ke Panne in Hindi Short Stories by Nirmal Gupta books and stories PDF | डायरी के पन्ने

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डायरी के पन्ने

था।उसके पिता शहर के एक प्रसिद्ध अखबार में रिपोर्टर थे और अच्छे कहानीकारभी। अवकाश के क्षणोंमें वह अपनी लिखने की मेज पर टेबिल लैम्प जलाकर कुछ न कुछ लिखते रहते। उसने एक दिनउनसे पूछा, ‘पापा, आप डायरी में रोज क्या लिखा करते हैं?’ पिता ने बताया था कि वह अपनी डायरी में दिनभर की प्रमुख घटनाओं के बारे में लिखते हैं।

उससे क्या फायदा पापा, रोहित ने पूछा था।

‘बेटा, डायरी लिखने के बड़े फायदे हैं। मैं जब तुम्हारे बराबर छोटा था, तब से डायरी लिख रहा हूं। इससे रोजाना लिखने की आदत बनती है। अपनी बात को सही तरीके से लिखना आ जाता है।’

रोहित को पापा की कही बात समझ में आई। वह भी रोजाना डायरी लिखने लगा।रोहित ने एक दिन अपनी डायरीमें लिखा मेरे तीन ही दोस्तहैं। गौरव, सुशांत और वैभव, वेसे क्लास में तो औरभी बच्चे हैं। सभी अच्छे हैं।टेरेसा, जमशेद औरहरप्रीत भी मुझे अच्छे लगते हैं। पर ये अपनी टिफिन में अक्सर अंडे मछली या चिकन लाते हैं। ये मांस खाते हैं,हड्डियां चूसते हैं। टेरेसा तो मुझे दिखा-दिखा कर चिकन का ‘लेगपीस’ खाती है। उसे मालूम है मैं मांस नहीं खाता, वह मुझे चिढ़ाती है। जमशेद, टेरेसा और हरप्रीत पढ़ने में अच्छे हैं, और खेलने में भी। काश यमांस न खाते तो ये मेरे सबसे अच्छे दोस्त रहे होते।दादी मां कहती हैं कि मांस खाने वाले लोग अच्छे नहीं होते, क्या ये अच्छे बच्चें नहीं हैं। शायद हां, या शायद ......

रोहित ने एक दिन भूगोल की क्लास में उत्तरी ध्रुव के बारे में पढ़ा। टीचर ने बताया कि उत्तरी ध्रुव पर बहुत

ठंड पड़ती है। वहां बर्फ के सिवा कुछ नहीं होता, पेड़ पौधे भी नहीं होते। वहां जो लोग रहते हैं उन्हें एस्कीमो कहा जाता है। वे सील मछली का षिकार करते हैं।उसका मांस खाते हैं। उसी की खाल से अपने कपड़े बनाते

हैं।

रोहित स्कूल से घर आया तो उसके दिमाग में एक ही सवाल था कि क्या सारे एस्कीमो सील मछली खाते होंगे। उसने सोचा तो उसे खुद उत्तर मिला, जब वहां पेड़ पौधे ही नहीं होते तो फल सब्जी कैसे मिलती होगी। सील मछली ही वहां मिलती है, इसलिए वे वही खाते हैं।उसने उस रात को अपनी डायरी में लिखा, क्या सारे एस्कीमो बुरे लोग होते हैं क्योंकि वे सील मछली का मांस खाते हैं। ऐसा तो हो नहीं सकता कि सारे के सारे एस्कीमो बुरे होते हों, उनमें कोई तो होगा जो अच्छा होताहो, तो फिर।रोहित अपने सवाल में खुद उलझ गया। उसकी समझ में कुछ नहीं आया। उसने चाहा कि दादी मां से इस बारे में पूछे या फिर पापा से।

परीक्षाएं समीप आती जा रही थी। पढ़ाई का दबाव बढ़ता जारहा था। दिनचर्या घर से स्कूल और स्कूल से घर तक सीमित हो गई थी। बचे हुए समय में पुराने पढ़े को दोहराना और साथ में होमवर्क भी। अब उसका डायरी लिखना भी छूट-सा गया। किसी दिन कुछ लिख लेता और किसी दिन कुछभी न लिख पाता।

एक दिन स्कूल से लौटते हुए उसकी साईकिल तेज मोड़ काटते हुए फिसल गई। उसके सीधे हाथ में चोट आ गई। खून तो नहीं निकला पर हाथ सूज गया। वह घर पहुंचा तो उसकी मम्मी उसे डाक्टर के यहां ले गई। डाक्टर ने एक्सरे किया और बतया कि फ्रेक्चर तो नहीं हुआ है पर मांसपोशियां खिंच गई हैं। पन्द्रह दिन तक हाथ से कोई काम न हो सकेगा। डाक्टर ने हाथ पर क्रेप बेंडेज बांध दी।

रोहित दो दिन क घर पर आराम करनेके बाद पट्टी बांध कर स्कूल जाने लगा। अब उसके सामने संकट यह था कि वह क्लास में लिखवाए जाने वाले नोट्स कैसे लिखे। शिक्षिका ने कहा परीक्षाएं पास हैं। मैं किसी से तुम्हारे नोट्स उतारने को नहीं कह सकती। तुम्हारा कोई दोस्त रिसैस में और स्कूल के समय के बाद तुम्हारे नोट्स उतार दे तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी। रोहित को उम्मीद थी कि गौरव, सुषांत या वैभव में से कोई उसकी सहायता करेगा। वे ही तो उसके दोस्त हैं। पर उसे बहुत आश्चर्य हुआ जब उन तीनों ने ही उसकी सहायता

करने में बारी-बारी करके अपनी कोई न कोई मजबूरी बता दी।रोहित निराश हुआ। उसे लगने लगा कि यह साल तो हुआ बेकार। जब नोट्स ही न होंगे तो वह पढ़ेगा क्या। कैसे होगा पास ?

लंच में तो वह अकेला बैठा खाना खा रहा था। तभी उसने देखा कि टेरेसा उठकर उसके पास आ रही है। वह समझ गया कि वह अपने हाथ में मछली का कांटा या मुर्गे की टांग ला रही होगी उसे चिढ़ाने के लिए। ‘रोहित तुम अपनी कापियां मुझे दे दो, मैं लिख दूंगी नोट्स’ टेरेसा ने कहा।

रोहित को अपने कानों पर मानों विष्वास ही न हुआ। क्या मांस-मछली खाने वाली टेरेसा, मेरी मदद करेगी। दादी मां तो कहती हैं कि मांस मछली खाने वाले बुरे लोग होते हैं।उसने अपनी कापियां टेरेसा को दे दी। फटाफट कुछ नोट्स टेरेसा ने लिखे, कुछ जमशेद ने और कुछ हरप्रीत ने।रोहित रात को पढ़ने बैठा तो उसकी इच्छा हुई कि डायरी लिखे। उसने अपने उल्टे हाथ में पैन थामा और जैसे-तैसे आड़े-तिरछे शब्दोंमें लिखा कोई क्या खाता है या क्या नहीं खाता, इससे तो कुछ भी नहीं होता।मांस मछली खाने वाले लोग भी अच्छे होते हैं। साग-सब्जी खाने वाले लोग भी बुरे हो सकते हैं।रोहित समझ गया कि किसी की बताई हर बात सही हो यह जरूरी नहीं, चाहे यह बात दादी मां की ही बताई गई क्यों न

हों। अपने सवालों के जवाब खुद ढूंढने चाहिए। वक्त आने पर हर सवाल का जवाब मिल ही जाता है।

निर्मल गुप्त

208-छीपी टेंक,

मेरठ-250001

दूरभाश:- 08171522922