यह कैसी दीपावली ?
तमन्ना मतलानी
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यह कैसी दीपावली ?
दीपावली यह शब्द सुनते ही मन में हजारों फुलझड़ियॉं और दिये ;दीपकद्ध जलने लगते हैं । मन खुशियों से झूम उठता है, मौसम खुशगवार बन जाता है, हर इंसान अपने दिले में नये—नये सपने सजाकर दीपावली त्यौहार का स्वागत करने के लिये आतुर दिखाई देता है । प्रत्येक व्यक्ति मॉं लक्ष्मी की छत्रछाया में रहकर जीवन जीना चाहता है, अपने दुखः—दर्द को भुलाकर उल्लास में जीना चाहता है । दिपावली जैसा त्यौहार जैसे—जैसे नजदीक आता है व्यक्ति की मनःस्थिती ऐसी बन जाती है कि वह बरबस कह उठता है—
आये फिर इस बार दीपावली आए,
मॉं लक्ष्मी संग अपने ढेरों खुशियॉं लाए ।
दीदार पाकर मॉं का मस्ती रूहानी छाए,
दुख—दर्द मिटाकर खुशियों की रोशनी फैलाए ।।
दीपावली त्यौहार की खुशी में किसी को प!सल की कटाई करना है, किसी को घर सजाना है और कोई नवीन सामान और गाड़ी लेना चाहता है । इसीप्रकार हर इंसान अपने—अपने सपनों को दीपावली के समय पूर्ण होते देखना चाहता है और सोचता है कि—
दीपक चमके, चमके ज्योति बाति संग ।
खिल उठे हर मन, जीवन में छाए उमंग ।।
लेकिन क्या किसी ने गरीब की कुटिया में जाकर देखा है कि वह दीपावली जैसे खुशियों के त्यौहार का स्वागत किसप्रकार करता है ? तो आओ आज एक निर्धन की कुटिया में झॉंककर देखें कि उसकी दीपावली कैसे मनती है ?
गरीब की कुटिया में दीपावली की जगमगाहट तो दूर, रोशनी के लिए अगर एक दीपक जलता है तो वह भी तेल की कमी के चलते अपनी तकदीर पर ऑंसू बहाता हुआ गरीब की कुटिया में रोशनी देने की असप!ल कोशिश करता रहता है । एक समय थ्।ा जब भगवान राम की अयोध्या वापसी पर अमीर—गरीब, छोटा—बड़ा सभी व्यक्तियों ने मिलकर खुश—प्रसन्न होकर, दीपावली मनाकर इस त्यौहार की शुरूवात की । उस समय सभी लोगों ने एकजुट होकर उल्हास और उमंग के साथ्। खुशियॉं मनाई परन्तु आज समय विपरीत दृश्य दिखा रहा है, इस दृश्य में लोग अलग—अलग कई गुटों में विभक्त होते जा रहे हैं । प्रत्येक व्यक्ति निज स्वाथ्र्। की पूति में लगा हुआ है । आज मनुष्य केवल अपने ही लाभ के बारे में सोचता है, चिन्तन करता है, मनन करता है । किसी भी व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति से कोई सरोकार नहीं है । आज सौ में से नब्बे प्रतिशत लोग किसी गरीब की व्यथा हटाना तो दूर बल्कि सुनना भी अपनी शान के खिलाप! समझते हैं । भारत में कई गरीब परिवार एैसे हैं जो गरीबी में जन्म लेते हैं, जीवनभर संघर्ष करते हैं और संघर्ष करते—करते उनकी जीवन की लड़ी समाप्त हो जाती है अथवा अंधकारमय जीवन जीते हुए किसी घोर अंधकार में गुम हो जाते है अर्थात उनका मनुष्य जन्म एक गुमनाम जन्म
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बनकर रह जाता है । एक गरीब हमेशा अपनी ऑंखों में आशाओं की किरणें लेकर जीता है कि शायद कभी ईश्वर कोई चमत्कार कर दे, शायद उसके जीवने से भी गरीबी का अंधकार दूर करनेवाला कोई दीपक प्रज्वलित हो जाये, शायद कभी धनलक्ष्मी अपने शुभ कदम लेकर उसके घर पधारे, शायद उसे भी कभी एक सम्पन्न व्यक्ति के समान जीवन प्राप्त हो, शायद सरकार द्वारा निर्धारित आगामी बजट उसके ;गरीबद्ध के अनुरूप हो । ऐसी ही कई आशाओं को वह हर क्षण मन में संजोकर अपनी जिंदगी व्यतीत करता रहता है ।
जहॉं साधन—सम्पन्न लोग दीपावली का बेसब्री से इंतजार करते हैं वहीं गरीब अपनी केवल दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करता हुआ अपने काम में तल्लीन होता है उसे इंतजार होता है तो केवल सॉंझ ढलने का, जब वह अपने काम के बदले मिलनेवाले वेतन से अपने परिवार के लिए कुछ राशन ले जा सके, जिससे उसके परिवार को एक दिन और पेट में अनाज मिल सके । आप भी समझ सकते हैं उसके इस संघर्ष को, एैसे में आप ही सोचिए वह कैसे दीपावली की खुशियॉं मनाए ?
कैसे महॅंगाई में आम इंसान दीपावली मनाए ?
कैसे अपने जीवन में खुशियॉं वह लाए ?
कैसे अपने मन की दुविधाऍं वह सुलझाए ?
कैसे अपने दुखों से छुटकारा वह पाए ?
आज सरकार की ओर से संसद में बैठे, हमारे द्वारा चुने हुए जनप्रतिनिधी गरीबों और बेरोजगार तथा आश्रित लोगों के लिए अनेक योजनाऍं बनाते हैं । वास्तव में यदि इन सभी योजनाओं का कार्यान्वयन सही रूप में हो जाए तो ही सभी की दीपावली में उमंगें आ सकती है, सभी परिवारों में खुशियों के दीपक जल सकते हैं । परन्तु आज के पूंजीवाद ने जिस एक मुख्य समस्या को जन्म दिया है वह है महॅंगाई । महॅंगाई एक राक्षस बनकर धीरे—धीरे गरीबों को अपना ग्रास बनाता जा रहा है । भ्रष्टाचार की जडे़ इतनी अधिक एवं गहराई तक अपना जाल फैलाती जा रही है कि उसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ रहा है । आज एक गरीब केवल आशाओं की तमन्ना में जी रहा है लेकिन उन तमन्नाओं को पूर्ण नहीं कर पा रहा है । बढ़ती महॅंगाई के कारण दीपावली पर मालपुए, पकवान, मिठाईयॉं खाना या जुटाना बहुत मुश्किल होता जा रहा है । नेताओं के कारण आम जनता का पैसा ही आम जनता की पहुॅंच से दूर होता जा रहा है । क्या जन प्रतिनिधियों का चुनाव आम जनता इसी उद्देश्य से करती है ?
नेता ये मेरे देश के भ्रष्ट नेता,
भ्रष्टाचार करके, नोट ये कमाऍं ।
गरीबों का करें यदि ये उद्धार,
मिट जायेगा देश से भूख, लाचारी और भ्रष्टाचार ।।
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अगर सभी साधन संपन्न लोग सही रूप में समाज को कुछ दे सकते हैं अथवा यदि वास्तव में वे आम आदमी की ऑंखों से सुनापन दूर करना चाहता है तो सबसे पहले उसे एक गरीब को उसका हक दिलाने का प्रयास करना होगा और यदि एक गरीब को उसका हक मिलेगा तभी हमारे समाज में, देश में सही अर्थो में दीपावली मनेगी, तभी हर एक चेहरे पर मुस्कान बिखरेगी, तभी समाज की वीरानी दूर होगी ।
आओ आज हम सभी लोग मिल—जुलकर साथ में यह प्रण ले कि समाज में भाईचारा लायेगें, जाति—पाति के बंधनों को तोड़कर सभी को समान बनाने के लिये हम सदैव प्रयास करते रहेगें । निर्धनों को अपने से कमजोर न समझकर उसे भी समाज में सम्मान से जीने का अवसर देने का हमें प्रयास करना होगा । जब हर घर में खुशियों के दीप जलेगें, कोई भूखा नहीं सोयेगा, हर ऑंख में खुशियों की चमक होगी, सबके होठों पर मुस्कान होगी तब सही अर्थो में हमारी दीपावली मनेगी ।
रे मानव जगमग—जगमग करें हम दीपक बनकर सभी,
छोड़ वैर—नप!रत—आतंकवाद अपनाए अमन—शांति अभी ।
एक है हम सब क्या हिन्दू—मुस्लिम—सिक्ख—ईसाई,
करे तमन्ना हुआ यही जीवन बनेगा सप!ल तभी ।।
आज की दीपावली पर इतना ही, हर परिवार में खुशियॉं आऍ, हर चेहरे पर मुस्कान रहे, बस इन्हीं शुभकामनाओं के साथ ...............
सभी को थोड़ी—सी खुशियॉं दिलाने की कोशिश में .........................
श्रीमती तमन्ना मतलानी
गोंदिया