Aakhir Doshi Kaun in Hindi Short Stories by Tamanna Matlani books and stories PDF | आखिर दोषी कौन

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आखिर दोषी कौन

आखिर दोषी कौन....... ?

आज राह चलते जब अचानक ज्योति से मेरी मुलाकात हुई तो उसका मुरझाया और बेरंग चेहरा देखकर मैं हत्‌प्रभ रह गई । पूछने पर उसने बताया कि उसका पति किसी दूसरी नारी के प्यार में उलझकर ज्योति पर अत्याचार करता था और अपने बच्चे की दैनिक आवश्यक्ताओं पर भी ध्यान नहीं देता था । उसकी व्यथा और दशा सुनकर मेरी आत्मा भी व्यथित हो गई ।

आज इसप्रकार की समस्याऍ आम होती जा रही है, न जाने कितनी ही जगमगाती ज्योतियॉं इस कारण से असमय ही बुझ जाती हैं ।

अभी कुछ दिनों पहले की ही तो बात है जब हर लड़की की तरह दिल में हॅंसते—खेलते परिवार के हजारों सपने लेकर ज्योति अपने माता—पिता का घर—ऑंगन छोड़कर राकेश के साथ शादी के पवित्र बंधन में बॅंध गई । ससुराल आकर उसे सबकुछ अपने परिवार जैसा—ही तो लगा था । माता—पिता का स्थान सास—ससुर ने लिया, भाई—बहन का प्यार उसे देवर और ननद से मिला, खूब प्यार करने और ध्यान रखनेवाले राकेश को पति के रूप में पाकर ज्योति धन्य हो गई ।

प्रेम और स्नेह के इन सुखद क्षणो के साथ—साथ ज्योति का परिवार भी बढ़ा और उनकी जीवनरूपी बगिया में एक नन्हा—सा प!ूल खिलने में भी देर न लगी । राकेश जहॉं परिवार और ज्योति का खूब ध्यान और ख्याल रखता था वहीं ज्योति भी कभी राकेश को शिकायत का मौका नहीं देती थी । पति और परिवार की जिम्मेदारी निभाते हुए कब सुबह से शाम और शाम से रात हो जाती, उसे पता ही नहीं चलता । हर्षोउल्लास के ऐसे ही पलों के साथ जिंदगी अपनी रफतार से आगे बढ़ती जा रही थी ।

परन्तु, पता नहीं किसकी नजर इस हॅंसते—खेलते परिवार को लग गई । राकेश देर से घर आने लगा, बात—बात पर ज्योति को डॉंटने लगा, बच्चों के प्रति भी उसका पहले जैसा स्नेह नहीं रहा । राकेश के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से ज्योति बहुत हैरान— परेशान थी । उसने राकेश से कई बार पूछने की कोशिश भी की मगर राकेश ने उसे कुछ भी नहीं बताया ।

एक दिन अचानक राकेश का मोबाईल प!ोन घर पर ही रह गया, थोडी देर बाद राकेश के मोबाईल पर प!ोन आया । प!ोन उठाते ही बिना ज्योति की आवाज सुने, दूसरी ओर से एक अनजानी महिला जिसने अपना नाम शोभा बताया, की आवाज आई और वह बातों ही बातों में राकेश का नाम लेकर प्रेम—प्यार की बातें करने लगी, जिसे सुनकर ज्योति के पैरों तले जमीन खिसक गई और उसने बिना कुछ बोले प!ोन काट दिया ।

अब ज्योति को राकेश में आए बदलाव का कारण समझ में आ चुका था कि उसका पति दूसरी महिला शोभा के प्यार में पड़ चुका था । अब आए दिन ज्योति और राकेश के बीच तकरार होने लगी जिसका दुष्परिणाम बच्चे की पढ़ाई और स्वास्थ्य पर भी पड़ने लगा । हमेशा कमल की तरह मुस्कराने वाला उनका नन्हा प!ूल अब मुरझाया और गुमसुम—सा रहने लगा ।

आखिर ऐसा क्यों होता है कि क्षणिक प्यार, जीवन भर के प्यार और वप!ादारी पर भारी पड़ जाता है ? क्यों ऐसा प्यार, पारिवारिक प्यार पर हावी हो जाता है ? क्यों एैसे क्षणिक प्रेम से, हॅंसते—खेलते परिवार टूट जाते हैं ।

देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि राकेश ही इस पूरी घटना के लिये दोषी है परन्तु मैं यहॉं सारा दोष राकेश को नहीं दे सकती । राकेश के साथ—साथ शोभा भी उतनी ही दोषी है । उसे किसी दूसरी औरत का पति छीनने का क्या अधिकार है ? क्यों उसने एक हॅंसते—खेलते परिवार में आग लगाई ? क्या हम शोभा को माप! कर सकते हैं जिसने स्वंय एक महिला होकर भी ज्योति के सुखी संसार को तहस—नहस कर दिया? आखिर उसे भी तो यह ज्ञात था कि राकेश शादीशुदा मर्द ही नहीं बल्कि एक बच्चे का पिता भी है ? वहीं राकेश ने भी अपने बच्चे और परिवार का ध्यान न रखते हुए क्यों शोभा के साथ अपनी प्यार की पींगे बढ़ाई ? क्या इसप्रकार के प्यार को समाज कभी स्वीकार कर सकता है ? क्या यह निज स्वार्थ नहीं है ? ऐसे ही कई अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर हमें खोजने की आवश्यकता है ।

समय के साथ—साथ राकेश और ज्योति के बीच दूरियॉं भी बढ़ती गई । उनकी कलह से उनका बच्चा भी मॉं—बाप के प्यार को तरसने लगा । आखिरकार दोनों का रिश्ता अलगाव और तलाक की सीमा तक पहुॅंच गया । रोज—रोज के झगड़ो से परेशान होकर ज्योति ने भी अपने—आप को राकेश से अलग करने का प!ैसला कर लिया । राकेश ने भी यह नहीं सोचा कि उनके अलग होने से बच्चे पर क्या असर होगा ? ज्योति बिना किसी सहारे के किसप्रकार बच्चे का पालन—पोषण करेगी । वहीं ज्योति ने भी जाते—जाते बच्चे को राकेश के पैरों में बेड़ियों के रूप में बॉंधने पर विचार किया ।

यह कैसी विडंबना है कि जहॉं एक मॉं अपने बच्चे को आर्थिक अभावों के कारण और भविष्य में होनेवाली परेशानियों से बचाने के लिये अपने साथ रखना नहीं चाहती और पिता अपने ही बच्चे को बंधन समझकर उसे अपनाने को तैयार नहीं? यह कैसा प्यार है? जहॉं तक मैनें सुना है प्यार तो त्याग का दूसरा नाम है । आखिर यह क्या हो रहा है ? कहॉं जा रहे हैं हम ? क्या यही हमारी संस्कृति है ? क्या आज बच्चों के प्रति माता—पिता का स्नेह भी मात्र दिखावा रह गया है ? शोभा कहती है कि यदि बच्चा राकेश के साथ रहेगा तो वह उसके साथ नहीं रहेगी । वहीं ज्योति, राकेश को सजा देने के लिये अपने बच्चे को चाहते हुए भी साथ नहीं रखना चाहती । वहीं राकेश सही—गलत में अंतर किये बिना शोभा का प्यार पाने को बेकरार है । अतः वह भी अपने बच्चे को अपनाने को तैयार नहीं है ।

अब आप ही बताईये कि वह बच्चा कौन—सी तकदीर लेकर जी रहा है, जहॉं उसके मॉं—पिता ही उसके साथ नहीं ।

इस पूरी कहानी की विडंबना देखिये कि जो दोषी हैं उन्हें कोई सजा नहीं और जो निर्दोष है उसे ही सबसे बडी सजा मिल रही है याने ज्योति और राकेश का बच्चा ।

आधुनिकता की यह अंधी दौड़ आखिर हमें कहॉं ले जा रही है, क्या किसीने सोचा है ? आखिर ऐसी घटनाओं का अंत कहॉं जाकर होगा ? क्या पुरूषों के साथ—साथ महिलाऍ भी दोषी नहीं है ?

टी.वी. सीरियलों के समान हम अगर जिंदगी की गाडी को चलायेगें तो उसका नतीजा हमेशा बुरा ही होगा । इसप्रकार की अंधेरी गलियों में चलने का परिणाम तो हम सभी के सामने एक दिन जरूर आयेगा ।

अतः वक्त संभलने का है, प्यार—मोहब्बत करना बुरा नहीं होता परंतु जिस प्रेम के साथ निज स्वार्थ जुड़ जाए तो क्या वह वास्तविक प्रेम हो सकता है । इसका जवाब भी हमारे पास है । अरे यदि जिम्मेदारी एवं कर्तव्यों को भूलकर असमय ही प्यार में उलझोंगे तो उसका परिणाम उपरोक्त कहानी जैसा ही होगा या शायद उससे भी भयावह ।

आप यह कभी न भूलें कि जो आपके साथ है वह आपके पास है, वही अनमोल है, वही आपके प्यार का हकदार है । यदि कोई समस्या है भी तो उसे बातचीत व प्यार से ही सुलझाया जा सकता है । सच्चे प्रेम से क्या संभव नहीं हो सकता ? अर्थात जीवन को सुखमय बनाना हमारे ही हाथ में है ।

इसीलिए भाईयों और बहनों प्यार की राह में संभलकर चलना क्योंकि आपका कोई अपना ही घर पर आपका इंतजार कर रहा है । इसीलिये तो किसी शायर ने कहा है —

ष्रिश्तों की महक में अहसास होता है ,

सुनहरी यादों का हर लम्हा पास होता है ।

हर रिश्ते की बुनियाद नजरिये से होती है,

क्योंकि हर रिश्ते का नाम विश्वास होता है ।।ष्

ऐसे ही विश्वास का नजरिया रखनेवाली.................

श्रीमती तमन्ना मतलानी

गोंदिया