Jununiyat si Ishq - 4 in Hindi Love Stories by Miss Sundarta books and stories PDF | ..जुन्नूनियत..सी..इश्क.. (साजिशी इश्क़) - 4

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..जुन्नूनियत..सी..इश्क.. (साजिशी इश्क़) - 4

...!!जय महाकाल!!...

 
अब आगे...!!!
 
यहां द्रक्षता को कार्तिक ने होटल ड्रॉप कर दिया था.....द्रक्षता ने उसे थैंक्स कहा.....
तो कार्तिक ने मुस्कुराते हुए कहा:इसकी कोई जरूरत नहीं है.....तुम तो मेरी दोस्त हो.....और दोस्तो के बीच ये सॉरी थैंक्स जैसे वर्ड्स एग्जिट नहीं करते.....ओके तुम जाओ.....तुम्हे लेट हो रहा होगा.....!!
तो वोह वहां से चली गई.....ओर अंदर जाकर अपने काम जुट चुकी थी.....
बाहर कार्तिक जब तक वो अंदर ना चली गई.....वो उसे तब तक देखता रहा.....
अपने आप वो बड़बड़ाया:कब वो दिन आयेगा.....जब मैं तुम्हे अपने एहसासों के बारे में बता पाऊंगा.....काश तुम्हे बताने की हिम्मत जुटा पाता.....लेकिन मैं तुम्हे जरूर बताऊंगा.....!!
 
 
वहीं मुंबई के बिजी इलाके.....में से एक अंधेरी.....जहां काफी सारी ऊंची ऊंची इमारतें बनी हुईं थीं.....उन्हीं में से सबसे ऊंची 55 मंजिले.....जो कई एकड़ के जगह में फैला होगा.....ग्लास से बनी हुई बिल्डिंग.....जो दिखने में बाहर से बेहद क्लासी और एलिगेंट लुक दे रहा था.....उसके उसके बड़े बड़े अक्षरों में राजपूत कॉरपोरेशन अंकित किया हुआ था.....
उस इमारत के सबसे टॉप फ्लोर.....जहां सिर्फ चार केबिन बने हुए थे.....उन्हीं में से केबिन जो उन सब में से सबसे बड़ा था.....उस केबिन के नेमप्लेट पर सीईओ लिखा हुआ था.....
उसके सामने राघव भगवान का नाम लेते हुए खड़ा था.....तभी अंदर से बेहद ठंडी और शख्त आवाज आई.....
बाहर खड़े रहना है.....तो मैं तुम्हे हमेशा के लिए बाहर कर सकता हूं.....!!
यह सुनते ही राघव की हवा टाइट हो गई.....और वोह हड़बड़ाते हुए अपने चश्मे को ठीक से एडजस्ट करते हुए.....केबिन के दरवाजे पर नॉक किया.....क्योंकि उसमें रूल ब्रेक करने की हिम्मत नहीं थी.....की बिना नॉक किए वो अंदर जा सके.....नॉक करने पर दरवाजा ऑटोमेटिकली ओपेन हो गया.....
वो केबिन अंदर से इतना खूबसूरत था.....की कोई भी उसे अपलक देखते रह सकता है.....सब चीज सलीके से अपने जगह पर सेट था.....केबिन के बीचों बीच बड़े बड़े सोफे लगे हुए थे.....सोफे पर लगे गद्दे को देख के ही पता चल सकता था कि.....वो कितने मुलायम होंगे.....सोफे के बीचों बीच ग्लास का टेबल लगा हुआ था.....केबिन के लेफ्ट साइड सीईओ टेबल लगाया था.....जिसमें हेड चेयर किसी राजा का लग रहा था.....सारे आधुनिक चीजों से लैस वो केबिन जन्नत के सामान था.....केबिन के अंदर का हर सामान काफी एलिगेंट.....क्लासी.....और यूनीक थे.....जिसे अफोर्ड कर पाना एक आम इंसान के लिए नामुमकिन था.....
हेड चेयर पर बैठे सात्विक अपने हाथ में पकड़े पेपर वेट को घुमा रहे थे.....उनका औरा बेहद ठंडा और खतरनाक लग रहा था.....
राघव डरते हुए जाकर उनके सामने खड़े हो गया.....और एक फाइल उनके आगे रख दिया.....
सात्विक फाइल को एक नजर देख.....उसे जाने का इशारा कर दिए.....तो राघव वहां से चला गया.....उसके जाने के बाद डोर अपने आप लॉक हो गया.....
तब उन्होंने वो फाइल उठा कर.....उसे खोला तो पहले पेज पर द्रक्षता की फोटो थी.....जिसमें उसने एक गुलाब के फूल को पकड़ रखा था.....वो उसमें बेहद प्यारी और खूबसूरत लग रही थी.....
उसे देख उनका हृदय असामान्य गति से धड़कने लगा.....उन्होंने अपने दिल पर हाथ रखा.....फिर भी वो शांत नहीं हुई.....तो उन्होंने कोशिश करना छोड़ दिया.....
द्रक्षता के फोटो के नीचे उसका नाम लिखा हुआ था....."द्रक्षता चौहान".....यह नाम पढ़ उन्हें बहुत हद सुकून का एहसास होने लगा.....उनका मन पेज पलटने का हो ही नहीं रहा था.....वो एकटक उसकी तस्वीर को निहारे जा रहे थे.....
कुछ देर बाद उन्हें ध्यान आया.....की उन्हें आगे भी देखना था.....तब कही जाकर उन्होंने पेज को पलटा.....तो उनके सामने उसकी एक ओर तस्वीर आई.....जो शायद उसके टेंथ के फेयरवेल के थे.....जिसमें उसने एक गुलाबी रंग की सिंपल सी सारी पहनी हुई थी.....वोह उस सिंपल लुक बहुत खूबसूरत थी.....उनकी नजर फिर उसके ऊपर ठहर गई.....
ऐसे करते करते.....उन्होंने उस फाइल को देखने में पूरा एक घंटा वेस्ट कर दिया.....तब जाकर वो फाइल जो मात्र पंद्रह से सोलह पेज की थी.....कही खत्म हुई.....क्योंकि उसमें द्रक्षता की 16 साल के बाद की जिंदगी थी.....उसके बचपन के बारे में उसमें कुछ भी डिटेल्ड डिस्क्रिप्शन नहीं था.....
उन्होंने फाइल सामने पड़ी टेबल पर रख.....अपनी आँखें बंद कर द्रक्षता को महसूस करने लगे.....तभी उनके सामने आज दोपहर का दृश्य झलक उठा.....जिसमें द्रक्षता एक अजनबी के बाइक पर उसके साथ बैठी हुई थीं.....
यह याद आते ही उन्होंने अपनी आँखें खोल ली.....तो उनकी आंखें पूरी तरह लाल थी.....उन्होंने अपने एक हाथ को कस कर मुठ्ठी बांध ली.....और दूसरे हाथ से अपने सर को सहलाने लगे.....जैसे अपने गुस्से को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे हों.....जब उनसे यह नहीं हुआ.....तो उन्होंने सामने पड़ी फाइल उठा फिर से उसकी तस्वीर निहारन लगे.....तब कही जाकर उनका गुस्सा कुछ हद तक शांत हुआ.....
उन्होंने उसकी तस्वीर से कहा:अगर.....अभी तुम मेरे सामने होती.....तो मुझे नहीं पता.....मैं क्या कर जाता.....शुक्र मनाओ.....सामने नहीं हो.....!!(यह शब्द उन्होंने बेहद शिद्दत से कहा)
 
यहां द्रक्षता अपनी ड्यूटी पूरी कर चुकी थी.....और अब वह बाहर टैक्सी ले लिए खड़ी थी.....लेकिन उसे कोई टैक्सी नहीं दिख रही थी.....कार्तिक को डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी.....क्योंकि उसने उसकी बहुत हेल्प कर दी थी.....और अब वह उससे कोई हेल्प नहीं लेना चाहती थी.....
तभी उसे सामने से कई सारी कार्स आते हुए दिखाई दी.....उसने सोचा कि वह उनसे लिफ्ट मांग लेगी.....लेकिन उसे ये करने का मन नहीं कर रहा था.....किसी अंजान से लिफ्ट मांगना.....उसे सही भी नहीं लग रहा था.....उसने ज्यादा ना सोचा.....और वो गाड़ी रोकने के लिए हाथ दिखाने लगी.....
उसके हाथ दिखाने पर वह गाड़ी रुक भी गई.....लेकिन उसका मिरर लगा हुआ था.....वोह उसे हाथ से खोलने के लिए इशारा करने लगी.....अंदर बैठे आदमी.....जो कि सात्विक थे.....उसे ही एकटक देखने लगे.....जब द्रक्षता थक गई.....उसे लगा.....की यह सब उसकी हेल्प नहीं करेंगे.....तो वोह फिर से अपनी जगह वापस चली गई.....
तब कही जाकर गाड़ी में बैठे.....सात्विक का ध्यान टूटा.....और उसके वापस चले जाने की समझ आई.....तो उन्होंने अपने ड्राइवर को उसे लेने जाने को कहा.....
जब द्रक्षता ने ड्राइवर को अपने पास आते देखा.....तो उसे कुछ समझ नहीं आया.....
ड्राइवर उसके पास आकर बोला:सर आपको बुला रहे है.....मेरे साथ चलिए.....!!
द्रक्षता और ड्राइवर दोनों कार के पास आकर रुके.....तो ड्राइवर ने बैक सीट का डोर खोल दिया.....द्रक्षता उसमें बैठ गई.....तब उसकी नजर लैपटॉप पर काम कर रहे सात्विक पर पड़ी.....जिन्हें देखते ही उसकी धड़कने तेज हो गई.....
वो मन ही मन सोचने लगी:यह तो वहीं है.....जो कल होटल में आए थे.....द्रक्षता कहां फंस गई.....और मेरी धड़कने फिर से क्यों बढ़ती जा रही हैं.....इनके पास होने से मुझे ऐसा क्यों होने लगता हैं.....!!
उसका ध्यान सात्विक की आवाज से टूटा.....
वोह उसे कह रहे थे:मिस आप होश में तो हैं.....या ना सुनाई देने की दिक्कत है.....आपको.....!!
द्रक्षता का हाल ऐसा था.....कि उसकी चोरी पकड़ी गई हो.....
वोह हड़बड़ाते हुए बोली:नहीं मुझे कोई दिक्कत नहीं है.....वोह मैं कह रही थी कि.....आप मुझे मेरे घर ड्रॉप कर देंगे.....वोह क्या है ना.....की मेरी स्कूटी मेकैनिक के पास है.....और इतनी रात को कैब भी नहीं आ रही.....प्लीज ड्रॉप कर दीजिए.....!!
सात्विक हल्का स्माइल कर:इसमें मुझे इतना एक्सप्लेन करने की.....क्या जरूरत.....ड्रॉप ही तो करना है.....एड्रेस ड्राइवर को दे दीजिए.....!!
द्रक्षता अपना एड्रेस ड्राइवर को बता देती है.....और शांति से बाहर देखने लग जाती हैं.....क्योंकि उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी.....की वोह इस आदमी को देखे.....उसे देखने का तो बहुत दिल कर रहा था.....लेकिन फिर भी वह उसकी तरफ नहीं देखती.....
सात्विक की नजरें उस पर से हटे नहीं हट रही थी.....वो बीच बीच में तिरछी नजरों से निहार ले रहे थे.....
वो अपने मन में सोच रहे थे:यह दूरियां मै मिटा कर रहूंगा.....तुम्हे अपने करीब कर के रहूंगा.....तुम तो खुद चल कर मेरे पास आ गईं.....लेकिन अब जाओगी मेरी मर्जी से.....!!(इतना सोच वो तिरछा मुस्कुरा दिए)
कुछ 25 से 30 मिनिट में उसका घर आ गया.....तो ड्राइवर ने उसे उसका स्टॉप के बारे में बता दिया.....तो वो दरवाजा खोल बाहर निकल गई.....
और सात्विक से बोली:थक यू.....मुझे ड्रॉप कर देने के लिए.....!!
सात्विक ने बस हम्म में जवाब दिया.....तोह वह अपने घर चली गई.....सात्विक उसे तब तक देखते रहे.....जब तक वो उनके आंखों से ओझल न हो गई.....
 
...!!जय महाकाल!!...
 
क्रमशः..!!