Mukt - 10 in Hindi Women Focused by Neeraj Sharma books and stories PDF | मुक्त - भाग 10

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मुक्त - भाग 10

मुक्त (10) -----

                              बस यही से शुरू होती है, एक नई खींच, एक नया बुलंदी का सबब... युसफ बदल सकता था, पर असुलू के आड़े नहीं आने देता था... मुझे दर्द हुई, तो उसे कितनी होई होंगी... जिसको हलाल किया होगा... कयो... किसी ने सोचा ही नहीं शायद... ये जीभ भी बहुत रंग बखेरती है... कया समझते हो.. कियामत के दिन कया मुँह लेकर जाओगे.... " खुदा मेरे कारसाज, मै ये नहीं जीभी का चस्का लेना चाहता... मुझे बक्श ले। " अभी सोचते हुए अंदर उसने उसको पुकारा ही था... शाम का डलता सूरज.... बरगद के पेड़ पीछे...

                    तभी जीप की हॉर्न की आवाज़ सुनी गयी। " कया हुआ  जी, युसफ बड़े खुश नजर आ रहे हो। " पकीजा ने पूछा।

"हाँ, देखो कोई बाहर मुझे दानिश लेने आया है। " पकीजा को सुन कर अटपटा सा लगा। कौन दानिश...

तभी चौखट पे.... दानिश ही था।

"आओ भाई " पकीजा जैसे हसरत मे युसफ को देखती रह गयी पर चुप।

दानिश की आखें नम थी। वो हटकोरा लेकर रो पड़ा। युसफ तुम ठीक हो, कार साज पर तुम्हारा विश्वाश वाह। " दानिश जैसे टूटे पते जैसा एक दम टुटा सा था।पर युसफ को मुस्काते देख... उसके जैसे जान मे जान आ गयी थी।

" --मेहमान को बैठने को नहीं कहोगे... युसफ। " पकीजा ने एक दम चेयर आगे करते कहा।

"हाँ बैठो ---" युसफ ने ख़ुशी से कहा।

"--हाँ ----मिला दू आपको ये मेरी भाभी और एक बड़ा भाई----" फिर चुप कर गया। " हाँ इनको मै पकीजा  ही कहता हू। "  दानिश चुप था। " बरखुरदार ये एक दम से हादसा कैसे हो गया... मिलिटेंट उठा ले गए... " दानिश जैसे वो वाक्य देख रहा हो।

"हाँ, भाई ---" फिर चुप... " किसी के इलफ़ाज़ ही शायद मैंने किसी को दुख दिया होगा... शायद... हवाओ के पास इसका जवाब होगा... " पकीजा जैसे पसीजी गयी, रो पड़ने को मन हुआ, जैसे जख्मो पे किसी ने नमक छिड़का हो। फिर से वो अदमरी सी हो गयी। भाई भी आ गया था... हाँ वो बहुत ही हम रिश्ते की तरा मिला था दानिश से। वो जानता था वो बहुत ही आमिरजादा व्यक्ति है... कितना ही... शायद अथा पैसा था उसके पास... पर कहा युसफ और कहा दानिश... भाई की निगाहे मै युसफ एक हीरा था, इस समय मे।

                                 कुछ खाने के लिए लाओ, चाये लाओ, कुछ भी हो लाओ... भाई ने कहा दानिश की सिफत मे,--"हमारे घर आज शहर के बहुत बड़े ही बड़े हैसियत के आदमी दानिश आये है। " 

थोड़ी देर मे ही ----------- टेबल पे।

सज गया... चिकन और उधर  बता दू, आपको रोटी इतनी मोटी और तंडूर की मिलेगी। मेरे हिसाब से भारती के लिए कठिन होगा खाना... चलो अब भाई को पूछा उसने, " आप कया करते है, महाशय। " दानिश ने बात आगे बड़ाई। भाई ने जबाब दिया... " एक सारुग कट रहे है... " ओह दानिश ने कहा, " अगर काम खत्म हो जाए... तो मेरे यहाँ नौकरी है, तुम्हारे लिए.. " भाई को आगाह कर, युसफ की सराहना करता बोला ---" इतनी रहम दिल इतनी छोटी उमर मे ये दुनिया से जिसका मन वरकत हो गया हो, कया ऐसा दलेर  युवक उसकी बंदगी के सिवा कोई नहीं... "  दानिश ने कहा... " तुम खा नहीं रहे हो... कयो??? " दानिश ने उसे वैसे ही बैठे देखा... कयो ??