Towards the Light – Reminiscence in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार 

प्रिय पाठक मित्रों 

     हाल ही में क्रिसमस का त्योहार गया है। हम सब इस त्योहार के बारे में अधिक जान सकें, इससे संबंधित एक अच्छा, सूचना पूर्ण लेख प्राप्त हुआ है। उसे मैं सब मित्रों के लिए साझा कर रही हूँ। आशा है आप सबको इससे कई नवीन जानकारी प्राप्त होंगी। 

हर साल 25 दिसंबर को ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है ।

लोग घरों में  क्रिसमस ट्री को सजाते हैं। इसे काफी शुभ माना जाता है। लेकिन क्‍या आपने कभी सोचा कि आखिर क्रिसमस ट्री का ईसाह मसीह से क्‍या कनेक्‍शन है? क्‍योंकि बाइबिल में इस वृक्ष का उल्लेख नहीं है ।

फिर इसे एक धर्म से क्यों  और कैसे जोड़ा गया?

जहाँ तक मैंने पढ़ा है इसके पीछे जुड़ी कुछ मान्यताएँ हैं।

एक मान्यता के अनुसार 

क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा 722 ईसवी  से जुड़ी बताई जाती है,यानि ईसा के जन्म के 722 वर्षों बाद।  कहा जाता है कि सबसे पहले इस वृक्ष को सजाने की परंपरा जर्मनी में शुरू हुई।

कुछ लोग एक विशाल ओक ट्री के नीचे एक बच्चे की कुर्बानी देने की तैयारी कर रहे थे, बच्‍चे की जान को बचाने के लिए जर्मनी के सेंट बोनिफेस ने  मौका पाकर उस ओक ट्री को काट दिया और कुछ समय बाद उस जगह पर क्रिसमस का पेड़ लगा दिया और लोगों को बताया कि ये एक दैवीय वृक्ष है और  इसकी डालियां स्वर्ग की ओर संकेत करती हैं।सेंट बोनिफेस की बात मानकर लोग फर के पेड़ को दैवीय मानने लगे और हर साल जीसस के जन्मदिन पर उस पवित्र वृक्ष को सजाने लगे।

एक अन्य मान्यता अनुसार  16वीं सदी में जर्मनी के ही ईसाई धर्म के सुधारक मार्टिन लूथर ने क्रिसमस ट्री को सजाने की शुरुआत की थी। एक बार वे बर्फीले जंगल से गुजर रहे थे,वहाँ उन्‍होंने सदाबहार  क्रिसमस के पेड़ को देखा।पेड़ की डालियाँ चाँद की रोशनी में चमक रही थीं, वे इससे बहुत प्रभावित हुए और अपने घर पर इस पेड़ को लगाया।जब ये थोड़ा बड़ा हुआ तो 25 दिसंबर की रात को उन्‍होंने इस पेड़ को छोटे-छोटे कैंडिल और गुब्‍बारों से सजाया। ये इतना खूबसूरत लग रहा था कि तमाम लोग इसे घर में लगाकर सजाने लगे।धीरे-धीरे हर साल 25 दिसबंर के दिन इस पेड़ को सजाने का चलन शुरू हो गया। 

 धीरे-धीरे यह परंपरा दूसरे देशों में पहुँची। 19वीं शताब्‍दी में इसका चलन इंग्‍लैंड में भी शुरू हो गया। उस समय अंग्रेजों का विश्व के अधिकतर देशों पर  राज था,कहा तो यह जाता था कि अंग्रेजों के राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता,अतः 

यहाँ से पूरी दुनिया में क्रिसमस के मौके पर वृक्ष सजाने का चलन चल पड़ा।

कई लोग क्रिसमस ट्री का सम्बन्‍ध ईसा से भी मानते हैं। कहा जाता है कि जब ईसा का जन्म हुआ था, तब देवदूत उनके माता- पिता को बधाई देने आए तो सितारों से रोशन सदाबहार यह वृक्ष उन्हें भेंट किया था। इसके बाद इस पेड़ को दैवीय पेड़ मानकर  हर साल ईसा के जन्‍मदिन पर सजाने का चलन शुरू हो गया। 

यह महज किंवदन्ती ही प्रतीत होती है क्योंकि बाईबिल में इसका कहीं उल्लेख नहीं है ।

पहले लोग असली क्रिसमस के पेड़ को घर में लगाकर सजाते थे। समय के साथ इसका चलन बढ़ा तो कृत्रिम क्रिसमस पेड़ बिकने लगे और लोग उसे  ही घर में लाकर सजाने लगे फिर हम भारतीय भी अंग्रेजों से पीछे कहाँ रहनेवाले और उनका

अनुकरण करते हुए हम भी ऐसा ही करने लगे ।

इसलिए 

आजकल कुछ सालों से (क्रिसमस का अप्रत्यक्ष विरोध कह लीजिए)25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस के रूप में मनाए जाने का एलान होने लगा ,जिसका शास्त्रों में कोई उल्लेख नहीं है क्योंकि तुलसी की पूजा नित्य ही होती है दिवस विशेष को नहीं ।हाँ, कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी विवाह जरूर संपन्न करते हैं। 

जाने क्यों क्रिसमस वृक्ष ईसाई हो गया और तुलसी का पौधा हिंदू !

पौधे और वृक्ष की उपयोगिता को देखते हुए उनके संरक्षण के लिए धर्म से जोड़ना ही शायद मुख्य उद्देश्य रहा होगा ।

लेकिन वृक्ष का कोई धर्म नहीं होता वे सबको समान रूप से लाभान्वित करते हैं ।

क्रिसमस वृक्ष को  धार्मिक नजरिए से न देखते हुए हम अपनी वाटिका में लगा सकते हैं। 

यह वृक्ष सदाबहार होता है और पतझड़ में भी उतनी ही मुस्तैदी से खड़े रहकर सकारात्मकता का संदेश देता है ।

इस सुन्दर से वृक्ष को मैंने अपने घर में लगा रखा है,जिसे क्रिसमस पर नहीं तो दिवाली पर बिजली के लट्टूओं से जरूर सजाते हैं।

अतः वृक्षों के प्रति पूर्वाग्रह न पालते हुए अपने घर की शोभा बनाइए ,हाँ आधुनिकता के चक्कर में कृत्रिम पेड़ लाकर सजाने का जैसे कोई तुक नहीं है वैसे ही हरे-भरे सचमुच का वृक्ष लगाने में हर्ज भी नहीं है।

इस लेख के लेखक /लेखिका का नाम नहीं मालूम है किंतु सार्थक है इसलिए इसे आप सब को पढ़वाना चाहती हूँ। 

 

सस्नेह 

आपकी मित्र

डॉ प्रणव भारती