Me and my feelings - 117 in Hindi Poems by Darshita Babubhai Shah books and stories PDF | में और मेरे अहसास - 117

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में और मेरे अहसास - 117

शीत लहर

मिलन के वादे से दिल में मीठी शीत लहर छा गई l

ख़त में लिखीं हुई सजने संवरने की बात भा गई ll

 

सारी क़ायनात को ख़त का पता चल गया है कि l

आज खुली खिड़की पर बैठ कोयल गीत गा गई ll 

 

अंग अंग तन मन में खुशी से तबस्सुम फैल गया l

गुलाबो सी गुलाबी लाल सुर्खी गालों पर ला गई ll

 

अब क्या बताऊँ कितने ऊँचे आसमान में उड़ रहा l

हृदय को चैन औ सुकूं की नशीली ठंडक पा गई ll

 

मधुर रसीली सी मुलाकात की तैयारियों में ही l

आज रातों की नींद औ पेट की भूख को खा गई ll

१६-१२-२०२४ 

 

संगम 

दो दिलों का संगम हो रहा हैं l

होशो हवास को खो रहा हैं ll

 

निगाहों की मस्ती को दिल में l

नशीली मोहब्बत बो रहा हैं ll

 

जज़्बातों को भड़काने के बाद l

प्यारी मदहोशी में सो रहा हैं ll

 

जल्द ही मिलने की उम्मीद में l

तन की क़ायनात ढो रहा हैं ll

 

मन तितलियों उड़ रहीं हैं कि l

छलकने से तड़प दो रहा हैं ll

 

किसीकी नज़र लगी शायद l

इसी वज़ह से वो रो रहा हैं ll

 

ठिठुरती शीत फिझा ओ में l   

इतजारे मज़ा लो रहा हैं ll

१७-१२-२०२४ 

 

मेला 

जिंदगी आती जाती साँसों का मेला हैं l

क़ायनात में कुछ सालों का डेरा हैं ll

 

सुनो जलजले से कम नहीं हैं इश्क़ l

दिल की दुनिया को मुकम्मल घेरा हैं ll

 

क्यूँ कर रहा साज ओ श्रींगार पगले l

तन मन हड्डियों मांस का थैला हैं ll

 

भीड़ भाड़ से भरी इस दुनिया में l

आता अकेला ओ जाता अकेला हैं ll

 

रंगबेरंगी विशिष्टता से भरपूर देख l

सखी जग ये निराला सा अलबेला हैं ll

१८-१२-२०२४ 

 

जीवन अनुभव

जीवन अनुभवों का जंगल हैं l

सुख और दुख का बंडल हैं ll

 

अँधेरों और उजालों में किये l

अच्छे प्रयत्नों का मंडल हैं ll

 

मंज़िल तक पहुंचने के लिए l

हमराही का साथ संदल हैं ll

 

उछल कर छलकते इश्क़ के l

प्यार में खनकती कंगन हैं ll

 

बसेरा दिल में बसाना चाहते l

सखी से मनचाहा बंधन हैं ll

 

कश्ती का तजुर्बा मौजों से l 

होती साहिल पे रंगत हैं ll

 

नया सवेरा नई उड़ान भरने l

रोज अध्याय की पंगत हैं ll

१९-१२-२०२४ 

 

देश रक्षक 

देश रक्षक के हौसले बुलंद होते हैं l

जान बाजों के पंख अनंत होते हैं ll

 

वतन के वास्ते मरने या मिटने के l

उनके जज्बात भी अभंग होते हैं ll

  

भारत माता की रखवाली करते हुए l

वीरों के हाथों में सदा तिरंग होते हैं ll

 

देश पर जान न्यौछावर करने वालों पे l

देशवासी के आशीर्वाद ससंग होते हैं ll  

 

सेना सरहद पर चौकसी करते वक़्त l

रात दिन हर लम्हा वो बजंग होते हैं ll  

 

महान माताओ की कुर्बानी को लेकर l

देखने वाले भी मुकम्मल दंग होते हैं ll

 

चट्टानों से भीड़ जाते गोली खाकर l

हौंसला और ज़ज्बा देख तंग होते हैं ll

२०-१२-२०२४ 

 

स्वच्छ भारत 

स्वच्छ भारत का सपना साकार करने 

को एकजुट होना पड़ेगा l

दिन का सुकून और रातों की नींद को

मुकम्मल खोना पड़ेगा ll

 

स्वच्छता ही सेवा गली गली गाँव गाँव अभियान करना होगा l

हर घर हर इन्सान के दिलों दिमाग में विचार बोना पड़ेगा ll

 

प्लास्टिक, गुटका, तम्बाकू की मुक्त मुहिम में प्रदूषण से बचाये l

श्रमदान करके स्वच्छ स्वदेश को मुकम्मल धोना पड़ेगा ll

 

हवा, पानी, खुराक और जमीन को गंदा किये जा रहे मुर्ख लोग l

ग़र अभी भी चौंकाना ना हुए तो भावी में स्वास्थ्य खोना पड़ेगा ll

 

सुनो स्वच्छता को जीवन मंत्र बनाना चाहिए आज से नहीं तो l

लगातार प्रदषित वातावरण से बीमारी का बोझ ढोना पड़ेगा ll

२१-१२-२०२४ 

 

रिवाजों में थोड़ी सी रियायत होनी चाहिये l

खुलकर जीने की भी इजाजत होनी चाहिये ll

 

ऐशो आराम करलो,क़ायनात में घूमो पर l

सुबह शाम हररोज इबादत होनी चाहिये ll

 

अपनों के लिए तो सभी जी रहे हैं दुनिया में l

आमदनी से थोड़ी सी सखावत होनी चाहिये ll

 

याद आते हैं हसीन लम्हें जो साथ गुजारे l

पुरानी यादों की सजावट होनी चाहिये ll

 

जिंदगी का लुफ्त उठाने के वास्ते मुकम्मल l

वक्त बेवक्त दोस्तों से जमावट होनी चाहिये ll

 

तबीयत दुरस्त रखने के लिए महफिलों में l

दिल मिलने मिलाने की रवायत होनी चाहिये ll

२२-१२-२०२४ 

 

याद आते हैं 

पुराने नशीले ज़माने याद आते हैं l

इत्तफाक से फ़साने याद आते हैं ll

 

फुलझड़ी, टेटे, जलेबी, अनार व् l

बचपन वाले पटाख़े याद आते हैं ll

 

एक नज़र हुस्न का दीदार करने को l

छत पे जाने के बहाने याद आते हैं ll

 

 

महकते ख़त के ख़ज़ाने याद आते हैं ll

 

जरूरत क्या है  

तराने याद आते हैं ll

२३-१२-२०२४ 

 

ओ बंजारे अपनी धुन में जिये जा l

जो मिले अमृत जान कर पिये जा ll

 

गाँव गाँव शहर शहर घूम कर तुम l

लोगों के दुख व् दर्द को सिये जा ll

 

सदाकत की राह पर चल रहा है तो l

सत्संग ओ आख्यानों को किये जा ll

 

पृथ्वी पर के सभी जीवो की आज l

साथ अपने दुआओं को लिये जा ll

 

परदेश जाते वक्त पहचान छोड़ के l

ज्ञान ओ आशिष वचन दिये जा ll

२४-१२-२०२४

 

चाहता हूँ 

क़ायनात को स्वर्ग बनाना चाहता हूँ l

नई खुशियाँ नया ज़माना चाहता हूँ ll

 

लोगों के दिलों में प्यार को जगाकर l 

रोशनी से भरपूर सजाना चाहता हूँ ll

 

जिंदादिली औ जज़्बातों को छलका के l

बारहा हर दिन जश्न मनाना चाहता हूँ ll

 

जिंदगी को खुलकर जीने का सिखा के l 

अब चाहतों का जहां बसाना चाहता हूँ ll

 

मुकम्मल जीत को हासिल करने को l

हौसलों से डर को हराना चाहता हूँ ll

२५-१२-२०२५ 

 

ओ बंजारे

सुकूं के साथ जीने के लिए अपनी मस्ती में जी ओ बंजारे l

जग का विष पीने के लिए अपनी मस्ती में जी ओ बंजारे ll

 

भटकने की जगह मन को स्थिर करके मग्न होकर जी l

जाक जिगर सीने के लिए अपनी मस्ती में जी ओ बंजारे ll

 

आत्मसंतोष के वास्ते मन के भीतर की शक्ति उजागर कर l

जीवन के सफ़ीने के लिए अपनी मस्ती में जी ओ बंजारे ll

२६-१२-२०२४ 

 

 चाय तो सिर्फ बहाना है मुलाक़ात का l

मौके का फायदा उठाना हालात का ll

 

श्याम 

दर्शन दिवाने नैन ढूँढे राधे श्याम को कहां छुपे हो l

कैसे भी करके राधा ढूँढ ही लेगी जहां छुपे हो ll

 

प्रीत की डोर में मन से बाँध कर अब कहाँ चल दिये l

माँ के ममता की गोद में वापसी जाके वहां छुपे हो ll

 

एक पल भी जी ना सकेगी पगली राधा दिवानी है l

जहां प्यार की बड़ी सरिता बहती है तहां छुपे हो ll

 

गोप गोपियाँ राधा रानी सभी तो दिवाने तेरे है l

अब किस से रूठकर मथुरा जाकर सखा छुपे हो ll

 

नटखट बिन दिन सुना रात काली काली लगे है l

कृष्णा से दूर जाकर इस तरह कैसे भला छुपे हो ll

२७-१२-२०२४ 

 

आई खुशबु 

 

महफिलों से होती हुई महकती नशीली आई खुशबु l

मादकता से भरी हुस्न के प्यार का जाम लाई खुशबु ll

 

भूल जाते हैं कहां और क्यूँ आ गए हैं सुगंधी लेते हुए l

चाहत की फिझाओ में बिखरी हुई रसीली पाई खुशबु ll

 

तन मन में प्रेम ज्वाला को प्रज्वलित कर दिया है कि l

दिल में समा लेने को जी करता है इतनी भाई खुशबु ll

 

न जाने क्या जादू कर जाती है निगोड़ी के मुकम्मल l

सखी चाँद रात में मन भावन ग़ज़लों को गाई खुशबु ll

 

गुमसुम एकांत में बैठकर पढ़ रहा महकते ख़त पुराने l

अतीत की यादों को ताजा की ये कैसी वाई खुशबु ll

२८-१२-२०२४ 

 

पहले की तरह अब वो हवा नहीं हैं l

यहां कोई किसीका भी सगा नहीं हैं ll

 

न जाने कौन सी धुन में जी रहे हैं l

कौन क्या कर रहा है पता नहीं हैं ll

 

अपना कह सके एसे इन्सान से l

अभी तक तो पाला पड़ा नहीं हैं ll

 

कोई खुशी या गम कहे किसीसे कि l

दिल लगा सके एसा मिला नहीं हैं ll

 

कारवाँ के साथ कई जगह घूमे पर l

हमसफ़र ओ हमराही बना नहीं हैं ll

२९-१२-२०२४ 

 

चाह की चाहत होनी चाहिये l

नशे की आदत होनी चाहिये ll

 

फावत 

 

आए दिन ग़ज़लों में अल्फ़ाज़ कहाँ से आते हैं l

शब्दों में रस, लय, ताल मेल व् भाव लाते हैं ll

 

 

 

गहरी नींद

चाँदनी रात में हुस्न गहरी नींद में सो रहा हैं l

आशिकों का चैन और सुकून को खो रहा हैं ll

 

राग रागिनी से भरी सुरीली महफिल सजी l

ख्वाबों का मनमोहक शजर को बो रहा हैं ll

 

होशो हवास को उड़ाकर निगल गई भूख l

आज सर्दियों से भी लंबा सफ़र ढो रहा हैं ll

 

शाम ढले ही ऋण निगाहों का उतारने को l

सखी कुछ लूटने का अह्सास हो रहा हैं ll

 

गहरी नींद से याराना इस तरह हुआ कि l

यादों का पलकों से वाबस्ता जो रहा हैं ll

३०-१२-२०२४ 

 

सुनहरी यादें 

सुनहरी यादों से दिल बाग-बाग हो गया l

महकती हसीन खिली वादियों में खो गया ll

 

स्वनिल वादियों में रूहानी सुकून भरके l

दिन रात में प्यारी सी ताजगी को बो गया ll

 

फिझाओ में गुजारे हुए लम्हें याद आते ही l

नखराली नशीली निगाहों को भिगो गया ll

 

शीत लहर चले तो गुल गुलशन बहकाये l

नादां सनम को रूमानियत से संजो गया ll

 

मुस्कराती अल्लड़ मुलाकातें याद आते ही l

पुरानी तस्वीरों को सीने लगा सो गया ll

 

नई कलम नया कलाम के रोज के विषय ने l

प्यारी बातों को लिखाने को समो गया ll

 

महबूबा के आगोश में चाँद सितारों के साथ l

प्यार के समंदर में डूबा तब समजो गया ll

३१-१२-२०२४