Mukt - 8 in Hindi Women Focused by Neeraj Sharma books and stories PDF | मुक्त - भाग 8

Featured Books
Categories
Share

मुक्त - भाग 8

   (   मुक्त  ) --- उपन्यास की कहानी लिखने की इतनी बड़ी वजा ये नहीं कि हम कौम को आपने देश अफगानिस्तान  की धरती मे धर्म के पक्के शेरियत के पक्के बनाने मे दखल दे रहे है। बस ये कह रहे है, जो कारसाज दे रहा है उसमे सब्र सकून करना सीख लो। तो शायद हर देश की हद जो बनी है, गिर जाए। हम तो महजब पे लड़ पड़ते है, कयो ठीक है न ???
                       युसफ को मस्जिद मे वाग देने के बाद, नीचे ही सो गया था... सुबह हो गयी थी।  प्रबरदिगार का कोई संदेश अंदर से चल पड़ा था। " जो दानिश के बारे था। " बस चलता जाना जाना था ' 
                         दानिश एक ऐसा ही किरदार था, जिसको ईश्वर, मालिक, खुदा, आल्हा.... कुछ समझ देना चाहता था, कया.... जैसे जगत सुधारने की वजह बन जाए। समझाने की। यही चल सो चल जिंदगी मे समय दो, उस ईश्वर को। कभी दिया ही नहीं, शुक्राना कभी किया ही नहीं। किसी भी विशेष वस्तु का।
बस यही दिन चरया बनी रही।
                             खमोश सोचता रहा। युसफ का ये इलहाम था....    एक पहचान.... एक अजनबी राह की तलाश.... और डूब जाना बस जा मर जाना.... बस यही है। बस यही मिठास है, मिया और कुछ नहीं है। दानिश कया सोचता है। कभी सोचा भी करो , उस खुदा की सिफत को... दानिश को ही कयो बनाया था मालिक ने, कारसाज ने एक नेकी का इतना बड़ा मिसरा।
                          आँगन मे आ गया था.... जैसे कुछ टुटा सा हो, युसफ... थकावट मे, ये कैसी थकावट थी, उम्र भर चढ़ी रहने वाली खुमारी को वो बच्चा थकावट समझने लगा था....
तभी दूर से दानिश की हो शायद चोड़े टायरो वाली जीप... जो पता नहीं कितनी धूल उड़ाती आ रही थी... पर ये तो कोई और ही लग रहा था। शायद डाची हो... उट चलाने वाला जीप चलाने लग गया हो। उसे ऐसा ही लगा... पता नहीं कयो.... चिटे कुर्ते पजामे मे कितना सुन्दर लगे था आज युसफ खान। और लमे साफे से सिर पे बधी हुई थी,ये पूरा बशिदा लगे था, अफीगानी बशिदा...
                           तीन आदमी मुँह बाधे स्टेरगज हाथ मे लिए लमे कदम चलते उसके पास खडे थे... एक चक्र मे।
  " हे कादिर, रक्षा करना। "  युसफ ने दुआ की।देखने मे ही कसाई लगे वो तीनो। वो भी बस चिटे ही लिबास मे थे।
" कौन है तू --" तीनो ने ही बोला एक ही जुबा मे।
"----- मै उसका बंदा हू " तीनो हस पड़े, किसका, आलमगीर का तो नहीं... फिर  वो हस पड़े।
" खुदा का ----" वो एक दम सीरियस हो गए, फिर हसने लगे।
" कौन है तू.... ये बता, कुछ और नहीं पूछा समझे। " वो तीनो ही चीख पड़े।
"नाम मेरा युसफ खान ---" वो चुप हो गया। और उनके बीच भारा भार बैठ गया। " वो तीनो उनको छोड़ सीधी घुमावदार सीढ़ी के ऊपर चढ़ गए। ऊपर चढ़ कर बोले, छोटे... ओह छोटे.... मस्जिद का मौलवी किधर वल्ला वला.... " उन्हों को ऐसे करता देख, वो बदगी मे लीन हो कर जमीन पे ही लेट गया। 
  देख तो सही, कया करे जा रहा है.... छोटे... लेटा कयो है... बोल कुछ तो... चलो नीचे चलो.... ये कहते ही वो तीनो नीचे आ गए।
(चलदा )                             -- नीरज शर्मा -*
                                       शाहकोट, जलधर।