पथरीले कंटीले रास्ते
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जेल में दिन हर रोज लगभग एक जैसा ही चढता है । अंधेरे को चीरती हुई सवेर की लौ दिखनी शुरू होती है , उसके साथ ही जेल की घंटी बज जाती है । संतरी बूटों की आवाज से ठक ठक करते हुए आते हैं और कोठरियाँ खोलते जाते हैं । कैदी जैसे इसी पल का इंतजार कर रहे होते हैं । जैसे ही कोठरी का ताला खुलता है , वे अपने नित्य कर्म के लिए बाहर आ जाते हैं । पूरा दिन सब कुछ सामान्य गति से चलता रहता है । व्यायाम , योगा , नहाना धोना , नाश्ता हाजरी कुछ भी नया नहीं । तो आज भी सभी कैदी अपनी कोठरियों से बाहर निकले । उन्होंने योग किया । कुछ आसान सी एक्सरसाईज की । नहा धो कर मैस में चले तो गणेश को नीम तले आँखें बंद किये रविंद्र बैठा दिखाई दिया । वह मैस को मुङता मुङता उसकी ओर बढ गया ।
क्या हुआ । यहाँ ऐसे क्यों अधलेटा हो रहा है ? नाश्ता नहीं करना क्या ?
करना तो है पर आज उठने का मन नहीं कर रहा ।
बुखार उखार तो नहीं है – उसने रविंद्र के माथे की ओर हाथ बढाया ।
यार माथा तो तेरा बिल्कुल ठंडा ठार पङा है । बुखार तो बिल्कुल नहीं है ।
.नहीं बुखार नहीं है ।
पर तेरी आँखें लाल टमाटर हुई पङी है । क्या हुआ ?
दो रातों से सो नहीं पाया । नींद ही नहीं आ रही । दिमाग पता नहीं कहाँ कहाँ घूमता रहा सारी रात ।
होता है भाई । जब घर से कोई मिलने आ जाता है तो ऐसे ही भटकन लगती है । कई कई दिन न दिन में चैन आता है न रात को । घर और घरवालों की बहुत याद सताती है । तू ज्यादा चिंता मत कर । जल्दी मन टिक जाएगा । शुरु शुरु में मेरा भी यही हाल हुआ करता था ।
अब चल उठ , नाश्ता कर ले । समय पर नहीं पहुँचे तो सारा दिन भूखा रहना पङेगा ।
मन न होने पर भी रविंद्र को मैस में जाना पङा । गणेश उसे इस हाल में अकेले छोङ कर जाने को तैयार ही नहीं था पर रसोई तक पहुँचते पहुँचते वहाँ से आती खुशबू ने उसे प्रसन्न कर दिया । आज मैस में पूरी आलू बने थे । साथ में सिवैया भी ।
आज क्या है जो इतने पकवान बनाए गये हैं ?
तुझे पता नहीं , आज रक्षाबंधन है । भाई बहन का पवित्र त्यहार । अभी थोङी देर में ज्यादातर कैदियों के घर से उनकी बहनें राखी बांधने आ जाएंगी ।
अच्छा !
वे थाल में पूरियाँ और सब्जी डलवाने लगे । मग में सिवैयाँ लेकर वे उसी नीम के पेङ के नीचे आ गये ।
रविंद्र की अपनी सगी कोई बहन नहीं थी पर हर राखी को उसकी दोनों बुआ पापा को राखी बाँधने आती तो तीनों भाइयों के लिए भी सुंदर राखियाँ जरूर लाती । ताऊ की बेटी भी अपने ससुराल से राखी बांधने अक्सर आ जाती । गली मौहल्ले की पाँच लङकियाँ भी उसकी कलाई में राखी बाँधने आती थी । कितनी चहलपहल रहती थी घर उस दिन । वह सौ नखरे करता ।
अभी थोङी देर रुको । अभी मैं नहाया नहीं हूँ ।
भई पहले नहा तो लेने दो ।
बस दो मिनट । बाल संवार के अभी आया ।
ये परफ्यूम तो लग जाय ।
मेरे पास राखी बंधवाई के देने को पैसे नहीं है ।
वे लङकियाँ जल्दी आने के लिए मिन्नतें करती , वह टलता जाता । सताने में उसे बहुत मजा आता । इतने में मम्मी बीच में आ जाती – ओये तू लङकियों को फालतू में क्यों सता रहा है । जल्दी कर । लङकियाँ सुच्चे मुँह राखी का थाल सजाके बैठी है । दो मिनट लगा ।
तब वह भागता । बुआ दरवाजे के सामने खङी पुकारती – जीवणजोगया जल्दी कर पुत । दो मिनट लगा । रब तुझे सुखी रखे ।
तब वह बाहर आता । बुआ उसे पीढी पर बैठाकर तिलक लगाती । कलावा बांधती । वह अपने जेब खर्च से बचाकर रखे रुपयों में से पचास रुपये बुआ को दे देता । बुआ रुपयों को अपने माथे से छुआती । उसे सौ सौ असीस देती । फिर बाकी लङकियों की बारी आती । वे सब भी कलावा बांध कर उसका मुँह मीठा करवाती । मां हमेशा इस दिन खीर और पूङे जरूर बनाया करती थी । सब मजा ले लेकर खाते । कितना खुशियों भरा दिन होता था यह राखी का दिन ।
और आज ... उसकी आँखों में आँसू छलकने को हुए पर उसने उन्हें भीतर ही पी लिया । तभी जमादार अपना रजिस्टर लेकर वहाँ आया । तुम में से किसकी कोई बहन नहीं है
रविंद्र तुम्हारी
जी नहीं , कोई नहीं ।
जमादार ने रजिस्टर में पहले से लिखे बीस नामों में उसका भी नाम लिख लिया और अपना डंडा फटकारता हुआ एक ओर चला गया ।
आज त्योहार की वजह से काम बंद था । किसी को कहीं जाना नहीं था तो वे सब खाना खाकर फुर्सत से इधर उधर घूम रहे थे । आपस में बातें कर रहे थे । रविंद्र ने कल जेल की लाइब्रेरी से भगत सिंह की डायरी नामक किताब निकलवाई थी । वह अपनी कोठरी के बाहर बरामदे के फर्श पर जाकर बैठ गया और किताब पढने लगा ।
तभी अर्दली ने आकर उसका नाम पुकारा – रविंद्र पाल सिंह ।
जी साहब
तुम्हें बङे साहब के दप्तर में बुलाया है ।
रविंद्र सोच में पङ गया । कल उसने अपना सारा काम अच्छे से किया था । कम्प्यूटर पर फाइलें चढाने के बाद अच्छे से जांची भी थी । शायद कुछ और काम आ गया होगा ।
पैर में चप्पल फंसा कर वह दफ्तर की ओर चल पङा । रास्ते में उसे और लोग भी मिले जिन्हें बङे साहब को हाजरी देने जाना था । वे सब भी आशंका से घिरे थे । साहब ने अपने दफ्तर में क्यों बुलाया होगा भला । किसी को कोई जानकारी नहीं थी । सब चिंता में डूबे हुए थे ।
क्या कारण रहा होगा । आपस में बातें करते हुए वे लोग आखिर दफ्तर पहुँच गये । धूप में पैदल चलने के श्रम से सब पसीने पसीने हो गये थे तो कुछ देर शीशम के पेङ के नीचे रूक कर वे कमरे में दाखिल हुए । वहाँ दस बारह कैदी पहले से ही दीवार के सात लगे खङे थे । जेलर साहब के सामने मेज के दूसरी ओर रखी कुर्सियों पर संभ्रांत घरों की चार महिलाएँ सजी संवरी बैठी थी ।
आओ इनसे मिलो - ये है मिसेज रेखा अग्रवाल, मिसेज तारा भंडारी , मिसेज सरोज रघुवंशी और मिसेज राधा सलूजा ये लोग ग्लोबल महिला क्लब चलाती हैं । आज तुम लोगों के साथ राखी उत्सव मनाने आई हैं । अचानक फोटोग्राफर प्रकट हुए । फ्लैश चमकने लगे । महिलाओं ने सजी संवरी थाली निकाली । उसमें रोली . बादाम और राखियाँ सजाई । फिर उन्होंने बङे प्यार से पुकारा – राजाराम आओ भाई ।
तुरंत ड्राइवर की वर्दी पहने एक दुबला पतला सा आदमी हाथों में लिफाफे पकङे प्रस्तुत हुआ – जी मेम साहब ।
वे थाली उठाये इन कैदियों की ओर बढी । एक एक कैदी की कलाई पर राखी सजने लगी । माथे पर रोली लगी । फिर सबको एक एक बादाम और एक डिब्बी मिठाई राजाराम के सौजन्य से प्राप्त हुई । फिर एक ग्रुप फोटो खींचा गया । करीब करीब शहर के सारे संवाददाता बुलाए गये थे । पत्रकारों ने जेलर साहब के विचार लिए फिर एक एक बाईट मिसेज रेखा अग्रवाल और मिसेज सरोज रघुवंशी की ली । कैदियों में से योगेश और रविंद्र को आज के अनुबव के बारे में पूछा गया । उसके बाद यह सारा दल दफ्तर से विदा हो गया । राजाराम ने कैदियों को बांटने से बचे हुए डिब्बे जेलर साहब को जेल कर्मचारियों में वितरित करने के लिए दे दिये और कार की ओर बढ गया । तब तक बाहर मुलाकातियों की भीङ लगना शुरु हो गया था । सब लोग जल्दी से जल्दी अपने रिश्तेदारों से मिलने और राखी बधवाने के लिए उतावले हो रहे थे ।
ओके जैंटलमैन , अब जाओ और आज का दिन एनज्वाय करो ।
जी जनाब ।
लाखन सिंह , इन्हें इनकी बैरकों तक छोङ आओ । साथ में सावन सिंह को भी ले जाओ ।
यस सर ।
लाखन सिंह बाहर जाने के लिए मुङा तो सारे कैदी भी उसके पीछे पीछे कमरे से बाहर निकल आए ।
बाकी फिर ...