Chhava - 1 in Hindi Spiritual Stories by Little Angle books and stories PDF | छावां - भाग 1

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छावां - भाग 1



श्री गणेशाय नमः।

          ये कहानी है इसे राजकुमार की जिसने अपने जीवन में हमेशा केवल कठिनायिओका सामना करना पडा। शस्त्र, शास्त्र हर कला में वे निपुल थे।पर कहते है ना अच्छे लोगोको हमेशा बुला दिया जाता हे।वही इनके साथ हुवा जिसे कोई नही मर पाया उसे अपने के धोखे के कारण मरना पड़ा। 
        ये कहानी ही मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति की हर बार नियति ने उनकी परीक्षा ली पर हर बार वह डटकर खड़े हुए।ये कहानी तब सुरु होती है जब मुगल साम्राज्य अपनी जड़े भारत में मजबूत बनाई थी। उनकी जुल्म और अत्याचार से लठाने के लिए सामने खड़े हुए मराठा साम्राज्य के पहले छत्रपति शिवाजी महाराज।

   ई.स.14 मे 1657के दिन पुरंदर पर सई बाई के पेट से एक पुत्र का जन्म हुवा।              



    

  उस पुत्र का नाम जिजाऊ ने अपने पहले पुत्र के नाम से संभा रखा।

                        *नामकरण*

सब लोग बोहत खुश थे।पर कहते है ना अच्छे को नजर लग जाती है।सई बाई की तबियत बिगड़नी सुरु हुईं।बाल संभाजी की परीक्षा बचपन से सुरु हुई। गाबाल संभाजी धीरे धीरे बड़े होने लगे की सई बाई दो साल के संभाजी को दादी जीजाबाई के पास देकर अपने प्राण त्याग दिए।
           उनके जाने के बाद उनकी परवरिश जिजाऊ ने ही की वह उनको महावीर, गुरू नानक ,नामदेव जसे महान लोगो की कहानी सुनाती।
                          *संस्कार*



जिजाऊ के सामने संभाजी महाराज का शास्त्र और शस्त्र की शिक्षा सुरु हुई। साथ साथ जिजाऊ उनको कूटनीति, राजनीति, युद्धनीति, हेरगिरी आदि के बारे में बताया।
    
                          *विवाह*

    दि.25 दिसंबर 1664 को संभाजी महाराज का विवाह जिऊ बाई के साथ हुआ। बाद में उनका नाम येसुबाई रखा गया।
      

संभाजी राजे और येसु बाई का शादी के बाद समतावादी धर्म शिक्षण सुरु किया गया।

     पर तभी मुगल शासक औरंगजेब ने उनका हुकुमी एक्खा मुरर्जाराजे जयसिंह को स्वराज्य की और भेज दिया।

    लगातार पराजय से औरंगजेब क्रोधित हो गया। उसने स्वराज्य को नष्ट करने के लिए अपना हुकमी अस्त्र मिर्जाराजा जयसिम्हा भेजा। उनके साथ दिलेर खां, सुजानसिंह बुंदेला, रायसिंह सासोदिया, समारा खां जैसे कई महान सरदार और चालीस हजार की सेना थी। मिर्जाराज ने शिवाजी के पकड़े जाने पर काशी विश्वेश्वर को 91 मन की सोने की चेन देने का संकल्प लिया था। डी। 3 मार्च, 1665 को मुगल सेना ने पुणे में पड़ाव डाला। 1659 ई. में अफजल खान के आक्रमण के बाद से रैयत संघर्ष से परेशान थे। लगातार युद्धों के कारण सेना थक गयी थी। इ.वि.सन 30 मार्च 1665 को मुगलों ने पुरंदर किले को घेर लिया। 


सासवड़ के ब्राह्मणों ने मुगलों की जीत के लिए अनुष्ठान स्थापित किये। उन्होंने शतचण्डी यज्ञ किया और भारी दक्षिणा प्राप्त की। पुरंदर के साहसी किलेदार मुरारबाजी केवल दो हजार मावलों के साथ बड़ी बहादुरी से किले पर युद्ध कर रहे थे। चालीस हज़ार मुग़ल सेना पर बल जमा रहे थे। डी। 15 मई 1665 को मुरारबाजी अपने सात सौ मावलों के साथ दिलेर खान की विशाल सेना पर टूट पड़े। वह पराक्रम की शर्त पर स्वराज्य के लिए वीरतापूर्ण मृत्यु मरे। शिवराय बहुत दुखी और परेशान थे. उसने दो कदम पीछे हटने का फैसला किया. उसमें ज्ञान निहित है।

                    

 आगे जारी 🚩🚩