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अमृत की खोज

अमृत की खोज

बहुत समय पहले, जब दुनिया देवताओं और राक्षसों के बीच बंटी हुई थी, उस समय एक महान कथा ने जन्म लिया। यह कथा उन दिनों की है जब देवता और असुर एक दूसरे के कट्टर शत्रु थे। असुरों की ताकत और छल-कपट से परेशान देवता ब्रह्मांड के संतुलन को बनाए रखने के लिए अमृत की खोज में जुट गए।

अमृत, वह दिव्य पेय था जिसे पीने वाला अमर हो जाता था। यह अमृत समुद्र के गहरे गर्भ में छिपा हुआ था। यह कहा जाता था कि अमृत को प्राप्त करने के लिए केवल साहस, सच्चाई और बुद्धिमता की परीक्षा पास करनी होगी।

अर्जुन और श्रुति ने अमृत की उन बूंदों को खोजने का निश्चय किया जो समुद्र में छुपी हुई थीं। उनकी दादी ने उन्हें यह कहानी सुनाई थी कि अमृत की ये बूंदें केवल उन्हीं को मिलेंगी जिनका दिल पवित्र और मन निडर हो।

दादी ने उन्हें एक प्राचीन नक्शा दिया, जो उनके पुरखों के पास था। नक्शा उन स्थानों की ओर इशारा करता था, जहाँ अमृत की बूंदें गिरने की संभावना थी। लेकिन साथ ही, नक्शे पर चेतावनी भी लिखी थी:
"इस सफर में साहस के साथ धैर्य और सत्य की परीक्षा होगी।"

नक्शा उन्हें समुद्र के किनारे एक प्राचीन गुफा की ओर ले गया। जैसे ही वे गुफा के पास पहुँचे, उन्हें एक विशालकाय मछली दिखाई दी। यह मछली बोल सकती थी और समुद्र की रक्षक थी। उसने बच्चों को रोका और कहा:
"यदि तुम समुद्र में प्रवेश करना चाहते हो, तो पहले यह बताओ: सबसे बड़ा बल क्या है?"

अर्जुन ने कहा, "सच्चाई और विश्वास सबसे बड़ा बल है।"
मछली मुस्कुराई और बोली, "तुम्हारा उत्तर सही है। जाओ, लेकिन याद रखना, इस यात्रा में तुम्हारी सच्चाई की परीक्षा बार-बार होगी।"

 

समुद्र के भीतर, अर्जुन और श्रुति को एक भूलभुलैया मिली। यह एक जादुई स्थान था, जहाँ हर रास्ता एक जैसा दिखता था। श्रुति ने सुझाव दिया, "हमें अपने दिल की आवाज सुननी चाहिए। यह हमें सही दिशा दिखाएगी।"

उन्होंने अपनी बुद्धिमानी और आपसी सहयोग से भूलभुलैया पार की। जब वे बाहर निकले, तो उन्हें एक प्रकाशमयी द्वार दिखाई दिया।

द्वार के पास एक राक्षसी खड़ी थी, जो अमृत की बूंदों की रखवाली कर रही थी। उसने बच्चों से कहा,
"मैं तुम्हें आगे नहीं जाने दूँगी। लेकिन अगर तुम मेरी पहेली सुलझा लो, तो मैं रास्ता छोड़ दूँगी।"

राक्षसी ने पूछा:
"एक ऐसी चीज़ बताओ, जो जितनी बाँटो, उतनी बढ़ती है।"

श्रुति ने तुरंत जवाब दिया, "प्यार।"
राक्षसी हँस पड़ी और बोली, "तुम सचमुच बुद्धिमान हो। जाओ, अमृत तुम्हारे इंतजार में है।"

 

अर्जुन और श्रुति ने उस स्थान पर पहुँचकर अमृत की बूंदों को देखा। बूंदें एक दिव्य प्रकाश के साथ चमक रही थीं। उन्होंने देखा कि अमृत केवल उन लोगों के लिए था जो इसका उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करना चाहते थे।

जैसे ही उन्होंने अमृत की बूंदें उठाईं, समुद्र की लहरें शांत हो गईं। एक दिव्य आवाज आई:
"तुमने साहस, सच्चाई और बुद्धिमानी से यह खोज पूरी की है। यह अमृत धरती की समृद्धि और मानवता की भलाई के लिए है।"

 

अर्जुन और श्रुति अमृत की बूंदों को लेकर अपने गाँव लौटे। उन्होंने अमृत को किसी व्यक्ति को अमर बनाने के लिए नहीं, बल्कि उसे धरती की मिट्टी में मिलाकर लोगों के लिए अनाज, पानी और सुख-शांति का स्रोत बनाने का निर्णय लिया।

उनकी इस निःस्वार्थता ने देवताओं को प्रसन्न किया, और अमृत की शक्ति से उनका गाँव खुशहाल हो गया।

गाँव में अमृत के चमत्कारिक प्रभाव से चारों ओर खुशहाली फैल गई। फसलें पहले से बेहतर उगने लगीं, नदियों का पानी साफ और मीठा हो गया, और लोगों के बीच प्रेम और सौहार्द बढ़ने लगा। लेकिन यह चमत्कार गाँव तक सीमित नहीं रह सकता था। अर्जुन और श्रुति ने तय किया कि अमृत की शक्ति का उपयोग पूरी दुनिया की भलाई के लिए करना चाहिए।

जब उन्होंने यह विचार गाँव के बुजुर्गों और दादी को बताया, तो दादी ने चेतावनी दी:
"अमृत की शक्ति को दुनिया में फैलाने के लिए तुम्हें और भी कठिन चुनौतियों का सामना करना होगा। लोभ और लालच वाले लोग इसे हथियाने की कोशिश करेंगे।"

 

अर्जुन और श्रुति की कहानी पूरे राज्य में फैल गई। राजा से लेकर बड़े व्यापारी तक, सभी ने अमृत की शक्ति को पाने की योजना बनाई। एक दिन, राजा का दूत गाँव आया और घोषणा की:
"राजा चाहते हैं कि यह अमृत उनके खजाने में रखा जाए। यह राज्य के लिए उपयोगी होगा।"

लेकिन अर्जुन और श्रुति ने विनम्रता से कहा, "अमृत किसी के खजाने में बंद होने के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए है। इसे किसी एक व्यक्ति के लिए सुरक्षित नहीं किया जा सकता।"

दूत यह सुनकर गुस्से में चला गया।

राजा ने अपने सैनिकों को गाँव पर हमला करने का आदेश दिया। लेकिन अर्जुन और श्रुति ने गाँव के बच्चों और युवाओं को एकजुट किया। उन्होंने गाँव की सुरक्षा के लिए एक योजना बनाई।

श्रुति ने गाँव के जंगलों में ऐसे रास्ते तैयार किए जो सैनिकों को भटका दें।
अर्जुन ने मिट्टी के घड़े बनाए और उन्हें अमृत जैसी रोशनी से भर दिया ताकि सैनिक भ्रमित हो जाएँ।
गाँव के बुजुर्गों ने सैनिकों को रोकने के लिए पहाड़ों से चट्टानें गिराने का इंतजाम किया।
जब राजा के सैनिक गाँव पहुँचे, तो वे घबरा गए। उन्हें ऐसा लगा जैसे पूरा गाँव अमृत की ताकत से संरक्षित हो।

अर्जुन और श्रुति ने राजा से मिलने की हिम्मत दिखाई। उन्होंने कहा,
"राजन, अमृत शक्ति नहीं, सेवा का प्रतीक है। इसे हथियाने से आपका राज्य खुशहाल नहीं होगा। इसे बाँटने से सभी का जीवन सुखद हो सकता है।"

राजा अर्जुन और श्रुति के साहस और निःस्वार्थता से प्रभावित हुआ। उसने अमृत को हथियाने का विचार छोड़ दिया और वचन दिया कि वह गाँव की मदद करेगा।

राजा और गाँव के लोगों ने मिलकर अमृत की शक्ति को पूरे राज्य में फैलाने का काम शुरू किया। अर्जुन और श्रुति ने अमृत को नदियों और फसलों में मिलाने की योजना बनाई ताकि इसका प्रभाव हर जगह पहुँचे।

राज्य में चारों ओर खुशहाली फैलने लगी। लोगों के बीच एकता बढ़ गई, और अमृत के कारण प्रेम और निःस्वार्थता का संदेश सब जगह फैल गया।

जब अमृत खत्म होने को था, अर्जुन और श्रुति ने उसे मंदिर में रखने का निर्णय लिया। उन्होंने गुरु देव से प्रार्थना की और कहा,
"अब अमृत का काम पूरा हो चुका है। हमें इसे लोभियों से बचाने के लिए सुरक्षित रखना होगा।"

गुरु देव ने अमृत की आखिरी बूंद को आकाश में उड़ा दिया। वह बूंद एक चमकते तारे में बदल गई, जो अब हर रात आसमान में चमकता है। गाँव के लोग कहते हैं कि वह तारा अमृत की याद दिलाता है और हमें सिखाता है कि सच्चाई, निःस्वार्थता, और साहस से बड़ा कोई खजाना नहीं।