"मेरी गाय
सुरेश दहाड़ मारकर रो रहा था।
सुरेश का जन्मगांव बसवा के एक कृषक परिवार में हुआ था।उसके दादा परदादा का पैतृक धंधा खेती ही था।समय के साथ साथ परिवार या दूसरे शब्दों मे खानदान में बढ़ोतरी होती गयी और जैसा सामाजिक नियम है।परिवार बट ते गये और परिवार बटने के साथ जमीन का भी बटवारा होता चला गया। ऐसा ही बालावत खानदान में भी हुआ।
सुरेश के दादा रामनाथ खेती करते थे।हमारा देश कृषि प्रधान था और आज भी है।हालांकि बदलती हुई दुनिया के साथ भारत मे भी केवल कृषि ही नही होती।भारत भी हर क्षेत्र मे प्रगति, उन्नति कर रहा है।अब केवल कृषि पर ही भारत की अर्थव्यवस्था व GDP निर्भर नहीं है।
रामनाथ के चार बेटे औऱ एक बेटी थी।चार बेटे कन्हैया, देवी, गणेश, राम और बेटी गुलाब।
भले ही भारत कृषि प्रधान देश था और यहाँ की अर्थव्यवस्था खेती से ही चलती हो लेकिन अंग्रेजो के राज में यह लाभदायक नही रही।
भारत मे अंग्रेज सन 1600 मे व्यापार करने के लिये आय थे।इंग्लैंड में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना होने के बाद वहां की महारानी ने 25 साल के लिए व्यापार करने की अनुमति दी थी।अंग्रेज पैसा लाते और भारत से मसाले, ढाका की मलमल व अन्य सामान खरीदकर ले जाते थे।
लेकिन यूरोप में औधोगिक क्रांति ने सारे समीकरण बदल दिय।औधोगिक क्रांति में इंग्लैंड अग्रणी रहा।वहा बड़े बड़े कारखाने लगने लगें जिनमे कम श्रम में ज्यादा उत्पादन होने लगा।इधर ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत मे राजाओं की आपसी फूट का फायदा उठाकर धीरे धीरे पूरे भारत मे अपना शासन स्थापित कर लिया।
औधोगिक क्रांति होने पर इंग्लैंड में कारखाने चलाने के लिए कच्चा माल चाहिय था और वहा तैयार होने वाले माल को बेचने के लिये बाजार चाहिय था।इन दोनों ही कामो के लिये इंग्लैंड के गुलाम देश जो थे।
उन्हें कच्चा माल सस्ते में खरीदना था इसलिय भारत मे कृषि उत्पादों की कीमतें नही बढ़ने देते थे।इसलिय किसान गरीब होता गया और उससे गुजरा भी नही चलता था क्योंकि
खेती लाभकारी नही रही।कन्हैया और राम रेलवे मे लग गए थे।गणेश मास्टर हो गया था और देवी ने खेती सम्हाल ली थी।देवी आजीवन कुंवारे रहे थे।गणेश के तीन लड़कियां और पांच लड़के थे।इनमें से एक सुरेश था।
सुरेश सब भाई बहन में अलग स्वभाव का था।हमारे घरों में गाय को पूजा जाता है और पहली रोटी गाय की ही बनती है।सुरेश को गाय से बचपन से ही लगाव था।मां गाय की रोटी निकालती उसे सुरेश ही गाय को अपने हाथों से खिलाकर आता था।
पढ़ाई पूरी करने के बाद सुरेश मास्टर हो गया था।उसकी पोस्टिंग भी पास के ही गांव में हो गयी थी।
नौकरी लगने के बाद उसकी शादी पास के ही गांव की लड़की से हो गई थी।
सुरेश की पत्नी भी उसी की तरह गांव की शांत स्वभाव की सुशील औरत थी।पति की तरह वह भी गाय की सेवा को अपना धर्म मानती थी।रोज तो वह गाय की रोटी निकालती ही थी।हर अमावस्या को पितरों के भोग के लिये खीर, पूड़ी आदि पकवान बनते थे।भोग लगाने के बाद पितरों की भोग की थाली को वह गाय को खिलाती थी।
सुरेश सरल,मिलनसार स्वभाव और सहयोगी प्रवर्ति का था।वह हरेक के सुख दुख में शामिल रहता था।इसलिए गांव के लोग उसे प्यार करते औऱ चाहते थे।दिन में उससे मिलने के लिय कोई न कोई आता रहता था।जो भी आता वह उसे बिना चाय पियें नही आने देता था।उसके घर मे चाय न जाने कितनी बार बनती थी।चाय के अलावा घर मे भी दूध दही चाहिय।
एक दूध वाला दूध दे जाता था।लेकिन उसका दूध सही नही आता था।पानी मिला हुआ और रोज दूध वाले से झिक झिक होती थी।रोज की माथापच्ची से बचने के लिये सुरेश बीस साल पहले एक गाय खरीद लाया था।
लोगो को गाय का घी दूध खाने का शौक औऱ बेचने का लालच तो है लेकिन गाय की सेवा करना बेगार समझते हैं और उसे खिलाना पिलाना बोझ।इसलिय सुबह गाय का दूध निकालकर उसे घर से बाहर छोड़ देते हैं।गाय दिन भर गली मोहल्लों में पेट भरने के लिये भटकती रहती है।किसी घर से रोटी मिल गयी तो ठीक।वरना गली में सड़ा गला खाना, सब्जी के छिलके या अन्य कुछ पड़ा मिल जाये तो खा लेती है।कई बार तो प्लास्टिक की थैली तक खा जाती है।
लेकिन सुरेश ने ऐसा नही किया।उसने गाय के रहने के लिये घर के आंगन में टिन शेड लगवाया।वह गाय को बाहर नही छोड़ता था।उसके खाने के लिये तुड़ा, हरी घास, खल बिनोले और गुड़ अनाज सब चीजें मंगवाता था।गाय को पशु न समझकर घर का ही सदस्य समझते थे।
सुरेश की पत्नी त्रिवेणी गाय की पूरी देखभाल करती थी।उसे समय पर खाना देना।पानी पिलाना।उसे निहलाना और जहाँ पर गाय को बांधा जाता था।वहाँ पर रोज सुबह झाड़ू लगाना और गोबर हटाना।सुरेश भी इस काम मे मदद करता था।
वह गाय का दूध बेचते नही थे।चाय और पीने के अलावा जो दूध बचता उसे जमा देते।दही बिलोने के बाद जो छाछ बनती उसे बेचते नही थे।मौहल्ले के लोगो को ही बांट देते थे।कोई भी मौहल्ले या गांव का आदमी सुरेश के घर से छाछ ले जा सकता था।मौहल्ले के लोग गयााय को रोोटी.देेेने य्ध्ध्् 8साल मे गाय ने 8 बार बछिया को जन्म दिया था।औऱ पिछले आठ साल से गाय ने दूध देना बंद कर दिया था।
गाय दूध देना बंद कर देती है।तब लोग गाय को कसाई को बेच देते हैं या छोड़ देते हैं।ऐसी गाये या तो जंगलों में, खेतो में या जगह जगह सड़कों पर झुंड में घूमती हुई दिख जाएगी।
लेकिन सुरेश ने न गाय बेची, न ही खुली छोड़ दी और उसने दूध की बंदी बांध ली लेकिन दूसरी गाय नही खरीदी।उस गाय को उसी सम्मान और प्यार से रखा और इसी तरह सेवा करते रहे जैसे कोई अपने बूढ़े मां बाप की करता है।पहले की तरह उसे खाना पानी देना।उसे नहलाना और जहाँ बंधती थी वहां की साफ सफाई करना।दूध देना बंद करने के बाद भी 8 साल तक घर के सदस्य की तरह रखना।
और गाय ने8 आठ दिन पहले
खाना पीना बन्द कर दिया था।वह जमीन पर बैठी तो फिर खड़ी हुई नही थी।सुरेश ने वेटरनरी डॉक्टर को भी दिखाया।हर संभव प्रयास किया लेकिन कोई प्रयास काम नही आया।सब व्यर्थ और गाय आज उन्हें छोड़कर इस दुनिया से चली गयी थी।
सुरेश गाय के प्राण त्यागने पर दहाड़ मारकर रो रहा था।मौहल्ले के लोग उसे समझा रहे थे।