-------(6) मुक्त उपन्यास की कहानी मे बहुत कुछ ऐसा है, कि आप मुझे माफ़ नहीं करोगे। ये धर्मसंकट वाला कोई उपन्यास नहीं, ना कहानी ही है। घबराओ नहीं, इससे भी बुरी हालते देखी है, मैंने... रिश्तों की --- आप कुछ ओर ही समझ गए कया।
ज़ब हम उम्र ना मिले, जयादा बड़ा हो, तो कया एहसास आता है, ए सच मे बताना.... जो हम उम्र हो, जोड़ी अच्छी हो, तो कया बाते होती है, जरा इसको तो मत बताना... जिंदगी दोहरे माप दंड कयो लेती है। कयो नहीं किसी की झोली मे प्यार किसी के उदासी किसी के आरजू भी ना हो... इश्क हकीकी मे मर जाने वाला ईरादन सच्चा आशिक होगा। वो युसफ मिया, उसकी बात कर रहा था।
बाप का दिया एक घर... मस्जिद खुदा की देन, और बांग... वाह कया जबरदस्त इश्क था मेहबूब से।
कौन पकीजा भूल गया था... दिसबर का महीना ठंड थी। आग बाल रहा था, कही से सुखी लकड़ो को इकट्ठा किया... और जला लीं आग... लोयी की बुक्ल लगा रखी थी। गर्म लोयी... माँ की देन थी। मेले से लायी थी... गर्म लोयी। कहती थी, " मेरा युसफ ---बस बहुत प्यार था उसका... कहती थी, शादी तेरी कोई नहीं करेगा देख लेना, सब मतलबी है, मैं मर गयी.. कौन पूछेगा तुम्हे... " आज कयो यादे आती थी उसकी..., भईया दो बड़े.. जा चुके थे आपनी ही सुसरालो मे...
मतलबी... सच मे.."
मैं कयो किसी को याद करू, कोई मुझे करता है, वो मस्जिद के आँगन मे बैठा आग की चटक चटक करती लपटो को देख ते हुए, सोच रहा था, 'कैसे जलने की काहली है इनको... फिर खाक ही तो होना है। " -------" कयो जोर होता है हर किसी को, पहले मै, नहीं पहले मै। " खाक फिर खाक... उड़ जाती है, मिटी मे मिटी.... कब्र... कच्ची बना लो, चाये पककी बना लो। " होना तो मिटी ही है।
हमेशा चुप रहने वाला, युसफ बस चुप था। सोचने वाली बात, बस यही है, कि मुकदर मे जो लिखा होता है, नसीब के मुताबिक ही मिलता है। न कम न जयादा। " मौलवी जी, जी एक गरमा गरम काफ़ी लीजिये। " युसफ ने शक्श की और देखा.. " नहीं---- मिया " हराम है, नहीं मिया... " युसफ काफ़ी पीछे हट गया। वो कोई और नहीं, उसके अब्बू का साथी था। हाँ कभी कभी आ जाता था... उसके पास...
उसने बता दिया था सत्य " तेरा अब्बू एक नंबर का पाब्द शक्श था... बिलकुल मुझे फखर है, आपनी शेरयत पर, तू भी एक नंबर का पाब्द शक्श है, तेरा नाम कया है। " उसने थोड़ा पास बैठते हुए, दूध को दो गर्म प्याली मे डाला... जो कैवा था, जो कोफिन को छोड़ के चाये बना लीं जाती थी, उबला हुआ काला पानी... उसके सामने था।
" मेरा नाम युसफ खान है "
" आप कौन है अंकल। " युसफ ने थोड़ा पास आते पीते कहा।
" मै तेरे अब्बा का हम उम्र हूँ। "
फिर वो ठहर के बोला, " मैं दानिश हूँ, बहुत देर बाहर देश मे रहा हूँ। " फिर एक सनाटा।
" किसी के चक्र होता है पैर के नीचे... " युसफ ने रुक कर कहा " माँ कहती थी। "
दानिश शक्श बहुत उच्ची हसा... " मेरे देखो !" जूती उतार के पैर के नीचे हाथ से तलवा साफ किया। फिर दुबारासे उसके भोले मुखड़े को देख हस पड़ा।
( चलदा ) नीरज शर्मा
शहकोट, जालंधर।