Letter From Me - 5 in Hindi Letter by Rudra S. Sharma books and stories PDF | Letter From Me - 5

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Letter From Me - 5

(०)

करनें वाला राम और करानें वाला भी राम, मैं समुद्र के असीम जल की वों बूंद हूँ जो अपनें असीम और पूर्ण अर्थात् शून्य श्रोत से मिल गयी हैं अर्थात् मेरी अब कोई व्यक्तिगतता नहीं रह गयी हैं अतः अब जो हैं बस राम हैं, क्या आपकों करानें वाले पर और करनें वालें पर अर्थात कर्ता और माध्यम् यानी राम पर भरोसा हैं? तो आप भी वही कीजिये जो मैंने कर दिया हैं यानी अपने अस्तित्व की जड़ पर अपनें पूर्ण ध्यान अर्थात् जागरूकता रूपी जल की स्थिरता को अंजाम दीजियें, आपकी आंतरिक जगत की अर्थात् मानसिक जगत की और बाहरी यानी भौतिक जगत की उन्नती उसी तरह अपने आप हों जायेंगी जैसे जड़ में जल मिलनें से ज़मीन के नीचें के और ऊपर के हिस्से की उन्नति अपनें आप हों जाती हैं, हाँ! राम शब्द मात्र नहीं हैं बल्कि यह तो हमारी वास्तविकता के श्रोत की ओर सटिक संकेत हैं, राम पर अपना पूरा ध्यान दें यानी इसके प्रति जागरूकता को उपलब्ध होने के पूर्ण प्रयास करनें के कर्म को अंजाम दें, जब होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा अर्थात् जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे यह शिव कह कर राम में सदैव ध्यानस्थ रहतें हैं और हरि जो हर ही हैं वही कर्मण्येवाधिकारस्ते .. भी कहतें हैं, तब इसका स्पष्ट संकेत राम में ध्यान की स्थिरता के कर्म को ही अंजाम देना चाहियें इससें हैं।

समय - ०२:४९, दिनांक - ११:११:२३.

[24/12, 12:10 pm] Munna Timarne: मेरे लिए मेरी दुनिया छोड़ना आसान नहीं था,
बेबसी थीं, ०९ तारीख वो दिन था जब रतन टाटा का बस नहीं चला तो मेरा कहा बस था।
मुझे क्षण भंगूरता यानी आज हों और कल नहीं यह पता हैं कि कितना असुविधा जनक होता हैं, यह ही वे कारण हैं कि मेरी यादों को जीर्ण शीर्ण कर रखा हैं मैंने, अभी जो वर्तमान में महसूस कर रहा हूं उसे तक चेष्ठा पूर्वक ध्यान में नहीं रखना चहता हैं, जो आज हैं और कल नहीं ऐसे से तो अभी आज ही नहीं रहे तो बेहतर हैं, कल का जाता आज जाए, जो क्षण भंगूर हैं उसे याद में रख कर क्या ही सुविधा हैं इसलिए वर्तमान को पूरे ध्यान से जी करके न अतीत की फिक्र करता हूं और न ही भविष्य का ध्यान करता हूं मैं, मैं तो बस हर वर्तमान में ऐसे जीता हूँ कि तत् क्षण मरता हूं मैं और न भूतों न भविष्यती एक वर्तमान से अगले वर्तमान का ही सीधे रुख करता हूं मैं, जो जीवन अब जीते हैं वैसा जीवन ये सच हैं कि मैं नहीं जी पता पर हैं मेरा तो ऐसा ही हैं, मौत को मुक्ति को जीता हूँ मैं, मोक्ष में जीना हों जाता हैं, और चाहिए भी क्या जब बिन चाहें, नहीं चाहने मुमुक्षा कि पूर्ति हों रही हैं, मुझे तो कुछ नहीं चाहिए, जो सब को चाहिए वो बिना चाहें ही मोती मिल रहे हैं; मेरी तो हर चाहें पूरी हों रही हैं, फिर न केवल मुक्ति मिली हुई हैं, हर समय बिंदुओं पर सतत् मिल रही हैं; अपने आप ही वह भी होता जा रहा हैं, जो राम करवा रहा हैं, कर वो रहा हैं, न मैं मध्यम हूँ न ही कर्ता, राम किसी को माध्यम तो कृत्य में उसके किसी को मुझे कर्ता तो किसी को माध्यम और कर्ता दोनों ही दिखा रहा हैं, जो दूसरे जीते हैं यही भूत और भविष्य दोनों की सहितता से वो भी आश्चर्य चकित रूप से जीना हों जा रहा हैं, कोई मर्यादा नहीं हैं कोई भी सीमा नहीं रही, पूर्ण हो गया हूँ मैं पर राम पूर्णता के साथ मर्यादा को जीकर के, वो मर्यादा पुरूषोत्तम मुझे मर्यादा पुरूषोत्तम दिखा रहा हैं, वो मेरे अंदर का शुद्ध चैतन्य, सभी शुद्ध चेतनाओ की जरूरतों के अनुकूल अधिक जरूरियत से कम जरूरियत के क्रम में, जो जितना लायक ऐसे एक के बाद एक करके सभी की जरूरतों को, उनकी जरूरतों की पूर्ति भी करवा रहा हैं, जरूरतों की पूर्ति पर्याप्तता से चाह लेना के ही मोहताज हैं, ऐसा करके सभी खुद से खुद की और सभी की, जो भी वो खुद ही हैं, यदि बिना किसी अशुद्धि यानी धुंधले पन के चश्में के, स्पष्ट अनुभव को देखने का सामर्थ्य चाह लें यानी इस वैज्ञानिक यही वास्तविक दृष्टिकोण तक आ ले जो स्पष्ट करता हैं कि हम और हमारे आस पास सब ठीक वैसे ही हैं जैसे मिट्टी के लिए मिट्टी और बहुत से उस मिट्टी में धसे घड़ों का ज़कीरा हों और वहीं वास्तविकता को देख पाता हैं जो इस संकीर्णता यानी सीमा से बाहर आता हैं अपने दृष्टिकोण पर लगे कुएं रूपी चश्में को छोड़ करके यानी उससे बाहर निकल करके, जो कुआं रूपी उसका चश्मा कुएं के अंदर से स्पष्ट हो रहे आसमान रूपी हकीकत का एक हिस्सा ही बता रहा हैं, वो वास्तविकता में मिट्टी दिखाई देती हैं उसे छोटे बढ़े हुए कुएं जैसे घड़े बताएं जा रहा हैं, जबकि वास्तविकता कोई कुआं यानी कि सीमितता का पर्याय कोई घड़ा या घड़ों का ज़कीरा नहीं बल्कि पूरा का पूरा मिट्टी द्वारा मिट्टी दिखाई देने वाला, नंगी आंखों से, ऐसा ज़किरा हैं तो मर्यादा ऐसी जो अति सीमित हैं उसे राम के स्नेह से प्राप्त हों जाती हैं, यहां राम मेरे अनुसार शब्द यानी हकीकत का चिह्न या भौतिक इंद्रियों से प्रतिबिंबित ध्वनी नहीं अपितु चिन्हों और ध्वनी के रूप में वो इशारा हैं जो कि नियंत्रण, योग यानी control यानी connection का खुद से यानी cognition से ऐसा perseption यानी कि ऐसी धारणा अर्थात् मानना मतलब belief का अहसान हैं यही संज्ञान हैं जिनकी ओर राम शब्द नहीं अपितु उस ध्वनी या चिन्ह से उस एक मात्र ओंकार अर्थात् निराकार की ओर जो बिना किसी ओर से घर्षण को उपलब्ध हुए कंपितता को उपलब्ध हों रहा हैं, वो निराकार का अहसान कहे या ओंकार का स्वतंत्र नाद, उस परम यानी सभी श्रेष्ठ जितना श्रेष्ठ होने से सर्वश्रेष्ठ हैं उस अहसान से हैं, उस जागृति की मूल धारणा से perseption से हैं, जो कि खुद से हीं खुद को पैदा करने वाली और जो तथा कथित यानी मिथक मृत्यु अर्थात् मौत हैं उसको उपलब्ध होता भी हैं बेहोशी के अहसान के रूप में और साथ साथ हर भ्रम से यानी मिथकता से परे भी हैं ऐसे परम तत्व की ओर परमात्मा की ओर इशारा हैं, सुनना या पढ़ना जिसकी ओर इशारे ही हों सकते हैं वो तो अनुभव कर लेना की ही बात हैं, वो संज्ञान कोई भौतिक ध्वनि या चिन्ह नहीं बल्कि हर भौतिक ध्वनि या चिन्हों से चेष्टा पूर्वक या अवचेतनत:फलित परम् की प्रेरणा फलित प्रेम प्रसाद यानी मेहर कहो या खैरात ऐसी बस सौगात हैं, ऐसा किस्मत से मिलने वाला प्रसाद स्वरूप प्रेम मात्र हैं, उस ऐसे प्रकाश जैसा जो कि पात्रों में भरे जल में प्रतिबिंबित होने से और प्रतिबिम्ब भर के ही सहजता से दिखाई देने से प्रतिबिम्ब आंतरिक और बाहरी स्पष्ट जगतो में उसका केवल होना स्पष्ट तो होता हैं पर वास्तविकता में जों वो सभी प्रतिबिम्ब नहीं जो जल से भरे पात्रों में स्पष्ट हों रहे बल्कि उन चिन्हों या ध्वनि के स्थान पर अनुभव स्वरूप संज्ञान रूपी प्रकाशित सूर्य के समान हैं, वो केवल सुनी सुझाई नहीं बल्कि अनुभूति की बात हैं जिससे भूत का अहसान यानी स्मृति या भविष्य का अहसास यानी दूर दर्शन नहीं अपितु वर्तमान की यानी जागरूकता, नियंत्रणयुक्तता, योग यानी connectivity अर्थात् cognition की बात हैं, राम यानी cognition के अहसास से हैं न कि चिन्ह या उसकी ध्वनि से,
[24/12, 12:17 pm] Munna Timarne: जब मेरे द्वारा "होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥" यह बात कही जाती हैं तो तब राम से मेरा मतलब उपरोक्त स्पष्टी से हैं बाकी उसमेंb एक बार एकाग्रता की फलितता हो जाती हैं तो तर्क भी यदि हों तो यह बातें उसी की प्रेरणा से आती हैं, अपने आप बिना किसी इच्छा के शब्दों और अर्थों की सहितता हो जाती हैं और शब्द और अर्थ ही किसी भी क्षेत्र की कला हों या कोई भी विज्ञान सब यहीं हैं, साहित्य कला विज्ञान, सारी सिद्धियाँ अपने आप आकर में आती हैं

I will be back 

 (०)

रिक्तत्व की सन्निकट प्रकटता हैं शरुप्ररा अर्थात् मेरी प्रत्येक शब्द प्राकट्यता, सत्य मतलब की मुमुक्षा ही जिसके प्रति जागरूकता को आकार दें सकती हैं अतः मुक्ति की योग्य इच्छा ही इसके प्रति जागृति उपलब्ध करायेंगी, मतलब साफ हैं कि मेरी हर बात केवल योग्य मुमुक्षु के ही समझ आयेंगी अतएव मुमुक्षा लाओं, नहीं समझ आनें के बहानें मत बनाओं क्योंकि ऐसा करना खुद के प्रति लापरवाही हैं, जो खुद की परवाह के प्रति जागरूक नहीं, वह कहाँ से मुक्ति की तड़पन अर्थात् मेरी अभिव्यक्ति को अहसास यानी समझ में लानें की पात्रता लायेंगा और योग्यता के आभाव से निश्चित मर्म सें इसकें चूक जायेंगा, इशारें जिस ओर हैं वह दृश्य का अहसास, भावना, विचार, कल्पना यानी हर आकार के अहसासों से भी सूक्ष्म तथा परे यानी दूर का अहसास हैं, मेरे दर्शायेंप शब्द, उनके माध्यम् से लक्ष्य बनायें भावों, भावों के सहयोग से लक्षित विचारों और उनके माध्यम से हर काल्पनिकता की ओर संकेत दियें जा रहें हैं यानी हर आकारों को रचनें की योग्यता की मध्यस्थता उस अंतिम ध्येय तक सटीकता से इशारा करनें में ली जा रही हैं जिससें उस आकर रिक्तत्वता की योग्यता के परिणाम से आकार रिक्तता के अहसास पर सटीकता के साथ किसी भी जागरूकता या ध्यान को लें जाया जा सकें अतएव आपका ध्यान मन के सभी दायरों से परें देख पायेंगा तो ध्येय उसका हैं।

समय - १२:००, रविवार १४ मई २०२३