"शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल"( पार्ट -३३)
डॉक्टर शुभम का ध्यान अपने दरवाजे पर मौजूद व्यक्ति पर था.
वह एक अस्पताल कर्मचारी था.
रूपा बात कर रही थी लेकिन शुभम रूपा की बात नहीं सुन रहा था।
डॉक्टर शुभम ने मोबाइल साइड में रखा और दरवाजा खोलने चले गये.
लेकिन रूपा अपनी बात कहती रही.
रूपा:-'शुभम, उसका नाम दिव्या है। मैं प्यार से इसे दिवु कहता हूं. वह हम दोनों की बेटी है। वह प्रांजल से एक साल छोटी हो सकती है।'
लेकिन डॉ. शुभम् ने यह बात नहीं सुनी।
डॉक्टर शुभम ने दरवाज़ा खोला और कर्मचारी ने कहा:- 'सर, कुछ महिलाएँ आपसे मिलने आई हैं, वे आपके कार्यालय के बाहर आपका इंतजार कर रही हैं।'
डॉक्टर शुभम:- 'ठीक है..मैं अभी आ रहा हूं।'
डॉक्टर शुभम ने मोबाइल ले लिया और रूपा को फोन करके बताया कि मैं बाद में फोन करूंगा,कोई अस्पताल का दौरा करने आ गये है।
इतना कहकर शुभम ने फोन रख दिया और अस्पताल में अपने केबिन में चला गया।
डॉक्टर शुभम को केबिन के बाहर कोई नजर नहीं आया।
उसके केबिन में गया लेकिन कोई नहीं दिखा तो सोचा कि आने वाला कौन होगा? कहा चले गए?
अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे उसने मेज़ की ओर देखा तो वहाँ एक विज़िटर कार्ड था। कार्ड देखा तो वह जीवनज्योति एनजीओ का कार्ड था, विजिटर का नाम रूपज्योति था।
डॉक्टर शुभम को याद आया कि उन्होंने फोन करके आने को कहा था.
एक राजसी अधेड़ उम्र की महिला उस केबिन में दाखिल हुई जहां डॉ. शुभम आगंतुक का इंतजार कर रहे थे।
'गुड मॉर्निंग डॉक्टर शुभम्।'
डॉक्टर शुभम:- 'बहुत सुप्रभात रूप ज्योति जी। चलो, बैठो. मैंने ही आपको बुलाया था। आप कहां चले गए थे? मै आपका इंतज़ार कर रहा था! मेरी एक कॉल चल रही थी इसलिए थोड़ी देर हो गई।'
ज्योति:- 'ठीक है ठीक है । मुझे सिर्फ ज्योति कहों।चिंता मत करो मैं कई बार मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए आई हूं । इस बार मैंने थोड़ा बहुत बदलाव देखा है। सुविधा में भी सुधार किया गया है। अच्छा काम डॉक्टर शुभम् लेकिन आपने मुझे क्यों याद किया?'
डॉक्टर शुभम:-'अच्छा हुआ आप आये। मुझे आपका काम है थोड़ी मदद करनी होगी।'
ज्योति: मैं आपकी मदद करने आई हूं।पहले की बातें अलग थी। उस समय मैंने जो गलती की उसके लिए क्षमा करें..'
डॉक्टर शुभम:-'आपको सॉरी बोलने की जरूरत नहीं है। मैं जानता हूं आप दिल के बहुत अच्छे हैं. जब अस्पताल को मदद की जरूरत पड़ी तो आपने मदद की। उन पुरानी बातों को भूल जाओ। उस समय स्थिति ऐसी थी कि आपने युक्ति का पक्ष ले लिया। अभी इस बारे में बात करने की कोई जरूरत नहीं है।'
ज्योति:-'लेकिन मैं अभी भी दोषी महसूस करती हूं। मेरी वजह से आपका सामाजिक जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था ।देखो तुम आज भी अकेले हो। इंसान को जीने के लिए सहारे की जरूरत होती है। मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूं।मुझे तुमसे प्यार है। मुझे मालूम है कि आपने फिर से कोई नई दुनिया भी शुरू नहीं की है यानी कि दूसरी शादी नहीं की है। मैं जानती हूं कि आपने अपने बच्चों के लिए बलिदान दिया है। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र में आपकी सेवा सराहनीय है। मैंने एक बार आपके बारे में एक लेख लिखा था। मेरी आपसे सहानुभूति है।'
डॉक्टर शुभम:- 'हां..मुझे पता है. मैंने आपका लेख पढ़ा है। मैंने अपने जीवन में डॉक्टर के रूप में सेवा की है और सेवा करता रहूंगा। साथ ही एक अच्छे पिता का फर्ज भी निभा रहे हैं। मैं तुम्हारी भावना समझ सकता हूं। मैंने अभी मेरी दूसरी शादी के लिए सोचा नहीं है।'
ज्योति:-'तुम जो कहोगे मैं सुनूंगी ।और जो तुम चाहोगे वही करूंगी।लेकिन पहले मेरी बात सुनो मुझे सच में उस समय अपने किये पर पछतावा है। मैं... मैं पश्चाताप करना चाहती हूं। तुम मुझे माफ़ करोगे?'
ज्योति बोलते-बोलते रो पड़ी।
डॉक्टर शुभम:- 'ज्योतिजी, ऐसे रोने से काम नहीं चलेगा, तुम्हें एनजीओ चलाना पड़ेगा। आपके पर बड़ी जिम्मेदारी है। आप जैसी दयालु सामाजिक कार्यकर्ता मैंने देखा नहीं है। आपके कार्य से मैं प्रभावित हुआ हूं। पिछली बातें भूल जाओ। उसमें तुम्हारी गलती नहीं देखता। परिस्थितियां ही मुझसे विमुख थी उसमें आप ऐसा निर्णय लिया। मैंने आपको कब का माफ़ कर दिया है।'
ज्योति शांत हो गयी।
बोली:-'हां..लेकिन मुझे अपने किये पर शर्म आती है। मुझे इस युक्ति के बारे में बाद में पता चला। हमारी पहली मुलाकात में मैंने आपके साथ गलत किया। उस समय मुझे अचानक पता चला कि आप अपने अस्पताल में एक मानसिक रूप से बीमार महिला का यौन शोषण कर रहे हैं, यह सुनकर मुझे फिर से पुरुष जाति से नफरत हो गई। मैंने फिर से क्यूं कहा मालूम है?तुम्हें पता है मुझे पुरुषों से नफरत क्यों थी? मैं उस वक्त युवा थी,पापा मुझे एक एनजीओ संभालने के लिए दिया। वे मुझे ख्याल रखने के लिए कह रहे थे, लेकिन उस समय मैं एक युवक से प्यार करती थी, लेकिन बाद में मुझे पता चला कि उसे मेरी दौलत पसंद थी और उसने मुझे धोखा दिया। मुझे पता चला कि मेरा प्रेमी दूसरी दो लड़कियों के साथ प्यार का नाटक कर रहा था।'
( परिस्थितियां कहा से कहा बदलाव लाती है जानने के लिए पढ़िए मेरी धारावाहिक कहानी)
- कौशिक दवे