चाँदनी रात थी, आसमान पर टिमटिमाते सितारे मानो धरती को अपने आलिंगन में भरने को आतुर थे। रश्मि एक छोटे गाँव में अपनी दादी के घर कुछ दिन की छुट्टी बिताने आई थी। गाँव के शांत माहौल और प्राकृतिक खूबसूरती ने उसका मन मोह लिया था। मगर उसके दिमाग में वही पुराना सपना बार-बार कौंधता था—वह बाग़, जहाँ पेड़ सुनहरे पत्तों से लदे थे और फूलों की खुशबू किसी रहस्यमयी नशे की तरह लगती थी।
एक रात, चाँदनी की रोशनी में वह बाग़ अनायास ही प्रकट हुआ। रश्मि के कदम अनजाने ही उस दिशा में बढ़ गए। पेड़-पौधों के बीच वह धीरे-धीरे आगे बढ़ती गई। वहाँ का वातावरण अद्भुत था—हवा में एक अजीब-सा रोमांच था, जो उसकी त्वचा को सिहरन से भर रहा था। जैसे ही उसने बाग़ के बीचोंबीच कदम रखा, सामने एक ऊँचा और खूबसूरत पुरुष खड़ा था। उसकी आँखें गहरे नीले रंग की थीं, और शरीर इतना आकर्षक कि रश्मि का दिल धड़क उठा।
"तुम कौन हो?" रश्मि ने काँपते स्वर में पूछा।
पुरुष हल्का-सा मुस्कराया और आगे बढ़ा। "मैं अनिरुद्ध हूँ। इस जादुई बाग़ का रखवाला। यहाँ जो आता है, उसे मैं उसकी सबसे गहरी इच्छाएँ पूरी करने में मदद करता हूँ।" उसकी आवाज़ में एक अजीब-सा सम्मोहन था।
रश्मि की साँसें तेज हो गईं। उसकी आँखों में अनिरुद्ध की गहरी निगाहें उतरती चली गईं। उसने महसूस किया कि उसका शरीर उस अजनबी के आकर्षण में बँध चुका है। अनिरुद्ध धीरे-धीरे उसके करीब आया।
"क्या तुम अपनी इच्छाएँ जानना चाहोगी?" उसने रश्मि के कान के पास फुसफुसाया।
रश्मि की आँखें बंद हो गईं। अनिरुद्ध के स्पर्श से जैसे एक बिजली-सी उसके पूरे शरीर में दौड़ गई। उसने रश्मि का हाथ पकड़ा और एक बड़े फूलों के बिस्तर पर ले गया। वहाँ की नर्म पंखुड़ियाँ उनकी त्वचा को छू रही थीं। चाँद की रोशनी उन दोनों को निहार रही थी।
अनिरुद्ध ने धीरे-धीरे रश्मि की साड़ी के पल्लू को हटाया। उसकी उँगलियाँ बेहद नर्म थीं, जो उसकी त्वचा पर किसी पंख की तरह फिसल रही थीं। रश्मि के बदन में हलचल मच गई। उसने खुद को अनिरुद्ध के हाथों में छोड़ दिया।
उनके होंठ एक-दूसरे से मिल गए। अनिरुद्ध के स्पर्श में एक जादू था। रश्मि की देह में सनसनी फैल गई। अनिरुद्ध ने उसके गले से लेकर उसकी कमर तक को अपने होंठों से छू लिया। उसके स्पर्श में इतनी गर्मी थी कि रश्मि का पूरा शरीर पिघलने लगा।
"तुम्हारी त्वचा चाँदनी से भी नर्म है," अनिरुद्ध ने कहा और उसकी पीठ पर अपनी उँगलियाँ फेरने लगा।
रश्मि ने अपनी आँखें खोलीं और उसे गहरी नज़रों से देखा। उसने भी अनिरुद्ध के सीने पर अपनी उँगलियाँ फेरीं। उसकी मांसपेशियाँ मजबूत थीं, मगर स्पर्श के लिए नर्म। दोनों के बीच का फासला खत्म हो चुका था। वे एक-दूसरे की बाहों में खो गए।
अनिरुद्ध ने रश्मि को फूलों के बिस्तर पर लिटाया और धीरे-धीरे उसके कपड़े हटाने लगा। दोनों के बीच अब कोई पर्दा नहीं था। रश्मि का दिल धड़क रहा था, और शरीर गर्म हो चुका था। अनिरुद्ध ने उसके होठों को फिर से चूमा, मगर इस बार बेहद गहराई से।
उनकी साँसें एक-दूसरे में उलझ गईं। अनिरुद्ध का हर स्पर्श, हर चुंबन रश्मि को जन्नत में ले जा रहा था। उसकी उँगलियाँ रश्मि के शरीर के हर हिस्से को छू रही थीं, उसे रोमांचित कर रही थीं। धीरे-धीरे दोनों ने एक-दूसरे को उस बाग़ की चाँदनी के नीचे अपनाया।
रश्मि ने कभी ऐसा सुख नहीं महसूस किया था। उसकी सबसे गहरी इच्छाएँ पूरी हो चुकी थीं। अनिरुद्ध ने उसे अपने आलिंगन में कस लिया और दोनों देर तक एक-दूसरे में खोए रहे।
सुबह जब सूरज की रोशनी बाग़ में फैली, तो रश्मि ने खुद को उसी फूलों के बिस्तर पर पाया। मगर अनिरुद्ध कहीं नहीं था। उसने अपने होंठों पर अनिरुद्ध के आखिरी चुंबन का एहसास महसूस किया और मुस्करा दी।
उस जादुई बाग़ ने उसे उसकी इच्छाओं का स्वाद चखाया था, और वह रात हमेशा के लिए उसकी यादों में बस गई।
(भाग 2 - सतरंगी रात)
वह रात जैसे जादू से भरी थी। हवा में एक अजीब-सी मीठी सुगंध थी जो रश्मि की साँसों में उतरती जा रही थी। चाँदनी की सफेद रोशनी पूरे बाग़ को किसी स्वर्ग के बिछौने जैसा बना रही थी। अनिरुद्ध के कदमों की आहट उसके दिल की धड़कनों से मिलती-जुलती थी।
“यह सब सपना है या सच?” रश्मि ने हल्के स्वर में कहा।
अनिरुद्ध ने उसके चेहरे को अपनी उँगलियों के पोरों से छुआ। उसकी त्वचा पर वो हल्का स्पर्श जैसे बिजली-सा दौड़ गया। “यह सपना नहीं, बल्कि तुम्हारी अधूरी इच्छाओं का सच है। मैं उन इच्छाओं का रखवाला हूँ,” उसने धीमे स्वर में कहा।
रश्मि की आँखें झुक गईं, मगर उसके भीतर एक अजीब-सा आकर्षण पनपने लगा। अनिरुद्ध ने अपना हाथ उसकी ठोड़ी के नीचे रखकर उसका चेहरा ऊपर किया। उनकी आँखें मिलीं और समय जैसे ठहर-सा गया।
रश्मि की साँसें तेज हो रही थीं।
अनिरुद्ध ने धीरे से उसकी साड़ी का पल्लू हटाया। चाँदनी रोशनी में उसकी त्वचा झिलमिलाने लगी। उसकी देह पर फूलों की परछाईं पड़ रही थी, मानो प्रकृति खुद उसे सजा रही हो।
“तुम बहुत सुंदर हो,” अनिरुद्ध ने फुसफुसाया और उसके कंधे पर अपने होंठ रख दिए।
रश्मि के होंठों से एक हल्की-सी सिसकी निकली। उसकी उँगलियाँ अनिरुद्ध की पीठ पर खुद-ब-खुद सरकने लगीं। वह उसकी मांसल देह को महसूस कर रही थी। अनिरुद्ध ने उसे अपनी बाँहों में भर लिया और फूलों के बीच धीरे से लिटा दिया।
फूलों की पंखुड़ियाँ उसके गालों और कमर को छू रही थीं। वह हल्की-सी सिहर उठी। अनिरुद्ध उसके सामने बैठा था, उसकी आँखों में बेपनाह प्यार और चाहत थी।
“क्या तुमने कभी इतना महसूस किया है?” अनिरुद्ध ने हल्के-से उसके कान के पास कहा।
रश्मि ने आँखें बंद करके धीरे से सिर हिला दिया। उसकी साँसें अब अनिरुद्ध की साँसों से मिल रही थीं।
अनिरुद्ध ने अपने होंठों को उसके गालों पर रखा और धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ने लगा—उसकी गर्दन, उसके कॉलरबोन को चूमते हुए। हर स्पर्श के साथ रश्मि का शरीर काँप रहा था। उसकी उँगलियाँ अनिरुद्ध के कंधों को कसकर पकड़ने लगीं।
“अनिरुद्ध…” रश्मि ने उसका नाम पुकारा, उसकी आवाज़ भरी हुई थी।
अनिरुद्ध ने उसकी साड़ी के पल्लू को पूरी तरह से सरका दिया। चाँदनी अब उसकी देह को अपनी रोशनी में नहला रही थी। अनिरुद्ध की उँगलियाँ उसकी कमर पर फिसलती चली गईं। उसने रश्मि की आँखों में देखा, जहाँ उसकी सारी इच्छाएँ साफ झलक रही थीं।
धीरे-धीरे उनका स्पर्श और गहरा होता गया। अनिरुद्ध ने रश्मि को अपनी बाँहों में कस लिया और उसके होठों पर एक लंबा, गहरा चुंबन दिया। रश्मि का पूरा शरीर गर्म हो चुका था। उसके होंठ काँप रहे थे, मगर उसने खुद को पूरी तरह से अनिरुद्ध के हवाले कर दिया।
उनकी साँसें उलझ रही थीं।
उनके शरीर के बीच अब कोई फासला नहीं था। अनिरुद्ध ने रश्मि को फूलों के बिस्तर पर और करीब खींच लिया। उसकी उँगलियाँ अब उसकी नर्म त्वचा पर जादू कर रही थीं।
“तुम्हारे बिना यह बाग़ अधूरा था,” अनिरुद्ध ने कहा और उसके होठों पर फिर से हल्का-सा चूमा।
रश्मि ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया, मगर उसकी आँखों में प्रेम और समर्पण का समंदर बह रहा था।
उस रात, अनिरुद्ध ने रश्मि के बदन पर जैसे प्यार की कविताएँ लिख दीं। उसके होंठों और हाथों के जादू ने उसे उस सुख तक पहुँचाया, जिसे उसने कभी सपनों में भी नहीं सोचा था। फूलों की पंखुड़ियाँ उनके बदन से चिपकी हुई थीं, और चाँदनी उनकी गवाह बनी हुई थी।
जब रात ढलने लगी, तो अनिरुद्ध ने रश्मि को अपनी बाहों में समेट लिया। उनकी धड़कनें एक-दूसरे से लिपटी हुई थीं।
“क्या यह रात फिर लौटेगी?” रश्मि ने धीमी आवाज़ में कहा।
“मैं हर उस जगह रहूँगा, जहाँ तुम मुझे चाहोगी,” अनिरुद्ध ने उसके बालों में उँगलियाँ फेरते हुए कहा।
सुबह की पहली किरण के साथ रश्मि ने खुद को अकेले उस फूलों के बिस्तर पर पाया। मगर उसकी त्वचा पर अनिरुद्ध के स्पर्श का एहसास, उसके होंठों पर उसका चुंबन और उसकी साँसों में उसकी महक अभी भी बाकी थी।
वह जादुई बाग़ उसके भीतर हमेशा के लिए बस चुका था।
(भाग 3 – अमर प्रेम)**
रश्मि की आँखों में अभी भी पिछली रात के जादू की छाया थी। उसका पूरा शरीर अब भी अनिरुद्ध के स्पर्श को महसूस कर रहा था। फूलों की खुशबू और चाँदनी का स्नेह उसके साथ था। लेकिन अनिरुद्ध कहीं नहीं था। वह फिर से उसी बाग़ की ओर खिंचती चली गई।
जैसे ही वह बाग़ में पहुँची, वहाँ का वातावरण और भी मोहक था। हवा में एक अजीब-सा नशा था, जैसे प्रेम की खुशबू घुली हुई हो। बीचोंबीच वही सुनहरे पेड़ और फूलों का बिछौना था, जहाँ वह पिछली रात खो गई थी। अचानक, उसके पीछे से वही जानी-पहचानी आवाज़ सुनाई दी।
*“तुम फिर आ गईं, रश्मि।”*
रश्मि ने पलटकर देखा, अनिरुद्ध उसके सामने खड़ा था। उसकी आँखों में वही नीला सम्मोहन और चेहरा हल्की मुस्कान से भरा हुआ था।
“तुम मुझे छोड़कर क्यों चले गए थे?” रश्मि की आवाज़ में शिकायत थी।
अनिरुद्ध ने धीरे से उसका हाथ पकड़ा और उसकी उँगलियों को अपनी उँगलियों में उलझा लिया। “ताकि तुम्हारी चाहत और गहरी हो सके। मैं तुम्हें अधूरा नहीं छोड़ना चाहता।”
रश्मि के गालों पर हल्की गुलाबी आभा फैल गई। अनिरुद्ध ने उसकी आँखों में गहराई से देखा। फिर उसके चेहरे को दोनों हाथों से थाम लिया।
“आज की रात तुम्हारी हर इच्छा पूरी होगी, रश्मि।”
वह उसे फूलों के बिछौने पर धीरे-से ले आया। फूलों की पंखुड़ियाँ उनके पैरों को छू रही थीं। अनिरुद्ध ने उसका चेहरा धीरे से ऊपर उठाया और अपनी नज़रों से उसे बाँध लिया। उसने रश्मि के होठों को अपने होंठों से हल्के-से छुआ। यह स्पर्श इतना नर्म था कि रश्मि का पूरा शरीर सिहर उठा।
यह चुंबन धीरे-धीरे गहराता गया। अनिरुद्ध के होंठों का स्वाद रश्मि को मदहोश कर रहा था। उसकी उँगलियाँ अनिरुद्ध की चौड़ी पीठ पर सरकने लगीं। अनिरुद्ध के हाथ अब उसकी कमर पर फिसल रहे थे।
वह धीरे-धीरे उसकी साड़ी की प्लेट्स को खोलने लगा। हर हलके खिंचाव के साथ रश्मि की साँसें तेज हो रही थीं। उसकी साड़ी सरसराहट के साथ नीचे सरकने लगी और अब उसकी नाजुक देह चाँदनी की रोशनी में और भी चमकने लगी।
अनिरुद्ध ने अपनी उँगलियाँ रश्मि की नग्न कमर पर फेरते हुए उसे और करीब खींच लिया। उसकी साँसें अब रश्मि की गर्दन पर गिर रही थीं। उसने उसकी गर्दन पर हल्के-हल्के चूमना शुरू किया। रश्मि ने अपनी आँखें बंद कर लीं।
“अनिरुद्ध…” उसने धीमी आवाज़ में कहा।
अनिरुद्ध का हर स्पर्श उसके भीतर एक लहर पैदा कर रहा था। उसने रश्मि के कॉलरबोन पर अपने होंठ रखे और फिर धीरे-धीरे नीचे की तरफ बढ़ा। उसकी देह की हर बारीकी पर अनिरुद्ध अपना प्यार उंडेल रहा था।
रश्मि का पूरा शरीर गर्म हो चुका था। उसकी उँगलियाँ अनिरुद्ध के बालों में उलझ गईं। अनिरुद्ध ने उसके सीने पर अपने होंठ रख दिए। उसका हर चुंबन जैसे एक आग सुलगा रहा था। रश्मि का बदन अब उसके स्पर्श के अधीन था।
वह उसे और करीब खींचता गया। फूलों की पंखुड़ियाँ अब उनके शरीरों से चिपक चुकी थीं। रश्मि ने अनिरुद्ध की शर्ट के बटन खोल दिए और उसकी मजबूत छाती पर अपनी उँगलियाँ फिराने लगी। उसकी मांसपेशियों का स्पर्श उसे और उत्तेजित कर रहा था।
अनिरुद्ध ने अब उसे पूरी तरह से नग्न कर दिया। उसकी आँखें रश्मि के बदन को निहार रही थीं। रश्मि शर्म से थोड़ी सिमट गई, मगर अनिरुद्ध ने उसके गालों को छूते हुए कहा, “तुम्हारी सुंदरता किसी देवी से कम नहीं है।”
रश्मि ने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में लिया और उसे अपनी तरफ खींच लिया। उनके होंठ फिर से एक-दूसरे में समा गए। अब उनके बीच कोई पर्दा नहीं था। अनिरुद्ध ने रश्मि को अपने नीचे ले लिया और उसके शरीर के हर हिस्से को अपने प्यार से भरने लगा।
रश्मि के होठों से हल्की-हल्की सिसकियाँ निकल रही थीं। अनिरुद्ध ने उसके पेट पर, उसकी जाँघों पर हल्के-हल्के चुंबन दिए। रश्मि का पूरा शरीर कामना से तड़प उठा।
“मुझे और करीब ले आओ, अनिरुद्ध,” रश्मि ने भर्राई हुई आवाज़ में कहा।
अनिरुद्ध ने उसके पैरों को धीरे से अलग किया और उसके नग्न बदन को अपने आलिंगन में भर लिया। उनके शरीर एक-दूसरे में सिमटते चले गए। दोनों की साँसें तेज थीं, उनकी धड़कनें अब एक हो चुकी थीं।
रश्मि ने अपने पैरों को अनिरुद्ध के चारों ओर लपेट लिया और खुद को पूरी तरह से उसके हवाले कर दिया। अनिरुद्ध का हर गहरा स्पर्श उसे जन्नत के दरवाजे तक ले जा रहा था।
*उनकी मिलन की लहरें बाग़ के हर कोने तक गूँज रही थीं।*
कई घंटों तक वे एक-दूसरे में खोए रहे। अनिरुद्ध ने उसकी थकी देह को अपनी बाँहों में भर लिया और उसके माथे पर हल्का-सा चुंबन दिया।
“तुम अब मेरी हो, हमेशा के लिए,” अनिरुद्ध ने कहा।
रश्मि ने मुस्कुराते हुए अपनी आँखें खोलीं। उसकी नग्न देह पर फूलों की पंखुड़ियाँ बिखरी हुई थीं और अनिरुद्ध की बाँहों में वह खुद को सबसे सुरक्षित महसूस कर रही थी।
चाँद अभी भी आसमान से उन दोनों को देख रहा था—इस अमर प्रेम का साक्षी बनकर।
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